अय्यूब
35 फिर एलीहू ने यह कहा,
3 तू कहता है, ‘मेरे निर्दोष बने रहने से तुझे* क्या फर्क पड़ता है?
पाप न करके भला मुझे क्या फायदा हुआ?’+
6 अगर तू पाप करे, तो परमेश्वर का क्या बिगड़ेगा?+
अगर तेरे अपराध बढ़ जाएँ, तो उसे क्या नुकसान होगा?+
8 तेरी दुष्टता से सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचेगा
और तेरी अच्छाई से सिर्फ इंसानों को फायदा होगा।
9 ज़ुल्म के बढ़ने पर इंसान फरियाद करता है,
ताकतवरों की तानाशाही* से राहत पाने के लिए वह गिड़गिड़ाता है,+
10 मगर कोई यह नहीं पूछता, ‘मेरा महान रचनाकार+ कहाँ है?
परमेश्वर कहाँ है, जो रात में गाने के लिए प्रेरित करता है?’+
11 वह धरती के जानवरों+ से ज़्यादा हमें सिखाता है+
और आकाश के पंछियों से ज़्यादा हमें बुद्धिमान बनाता है।
14 तेरी तो वह और भी नहीं सुनेगा क्योंकि तेरी शिकायत है कि वह तुझे अनदेखा कर रहा है।+
तेरा मुकदमा उसके सामने पेश कर दिया गया है,
अब तू उसके फैसले का इंतज़ार कर।+