ଏପ୍ରିଲ୍—ଜୀବନ ଓ ସେବା ସଭା ପୁସ୍ତିକା ପାଇଁ ରେଫରେନ୍ସ
୧-୭ ଏପ୍ରିଲ୍
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୭-୯
“ଅବିବାହିତ ରହିବା—ଏକ ଉପହାର”
ପ୍ର୧୧-ହି ୧/୧୫ ୧୮ ¶୩
ଅବିବାହିତ ରହିବାର ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଲାଭ ଉଠାନ୍ତୁ
୩ ସାଧାରଣତଃ, ଜଣେ ବିବାହିତ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ତୁଳନାରେ ଅବିବାହିତ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ପାଖରେ ଅଧିକ ସମୟ ଓ ସ୍ୱାଧୀନତା ଥାଏ । (୧ କରି. ୭:୩୨-୩୫) ତେଣୁ ସେ ବିଶେଷ କରି ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଅଧିକ ପ୍ରେମ ଦେଖାଇପାରନ୍ତି, ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ସେବାରେ ଅଧିକ ସମୟ ଦେଇପାରନ୍ତି ଏବଂ ତାହାଙ୍କ ଆହୁରି ନିକଟବର୍ତ୍ତୀ ହୋଇପାରନ୍ତି । ଅବିବାହିତ ରହିବାର ଲାଭଗୁଡ଼ିକୁ ଧ୍ୟାନରେ ରଖି ଅନେକ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ଅତି କମରେ କିଛି ସମୟ ପାଇଁ “ଅବିବାହିତ” ରହିବାର ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇଛନ୍ତି । ଏମିତି ମଧ୍ୟ କିଛି ଭାଇଭଉଣୀ ଅଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନେ ହୁଏତ ଅବିବାହିତ ରହିବାକୁ ଚାହାନ୍ତି ନାହିଁ, କିନ୍ତୁ କିଛି ପରିସ୍ଥିତି ଯୋଗୁଁ ସେମାନେ ବିବାହ କରି ନାହାନ୍ତି । ଏହି ଭାଇଭଉଣୀମାନେ ଏବିଷୟରେ ପ୍ରାର୍ଥନା କଲେ ଏବଂ ଶେଷରେ ଜାଣିପାରିଲେ ଯେ ଯିହୋବାଙ୍କ ସାହାଯ୍ୟରେ ସେମାନେ ମଧ୍ୟ ଅବିବାହିତ ରହିବାର ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇପାରିବେ । ଏହିପରି ଭାବେ ସେମାନେ ନିଜ ପରିସ୍ଥିତିକୁ ଆପଣାଇ ଅବିବାହିତ ରହିବା ପାଇଁ ସଙ୍କଳ୍ପ କଲେ ।—୧ କରି. ୭:୩୭, ୩୮.
ପ୍ର୦୮-ହି ୭/୧୫ ୨୭ ¶୧
କରିନ୍ଥୀୟମାନଙ୍କୁ ଲେଖାଯାଇଥିବା ଚିଠିଗୁଡ଼ିକର ମୁଖ୍ୟାଂଶ
୭:୩୩, ୩୪—‘ସାଂସାରିକ ବିଷୟ’ କହିଲେ କʼଣ, ଯାହା ପାଇଁ ବିବାହିତ ପୁରୁଷ ଓ ସ୍ତ୍ରୀ ଚିନ୍ତିତ ଥାʼନ୍ତି? ପାଉଲ ଏଠାରେ ଦୈନନ୍ଦିନ ଜୀବନର କଥାଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରୁଥିଲେ, ଯାହା ପାଇଁ ବିବାହିତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କୁ ଚିନ୍ତନ କରିବା ଉଚିତ୍ । ଏଥିରେ ଖାଦ୍ୟ, ବସ୍ତ୍ର ଓ ବାସଗୃହ ଭଳି ଜିନିଷଗୁଡ଼ିକ ସାମିଲ୍ । କିନ୍ତୁ ଏଥିରେ ସଂସାରର ମନ୍ଦ ଜିନିଷଗୁଡ଼ିକ ସାମିଲ୍ ନାହିଁ, ଯେଉଁଗୁଡ଼ିକଠାରୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନେ ଦୂରେଇ ରହିବା ଉଚିତ୍ ।—୧ ଯୋହ. ୨:୧୫-୧୭.
ପ୍ର୯୬-ହି ୧୦/୧୫ ୧୨-୧୩ ¶୧୪
ଅବିବାହିତ ରହିବା—ଏକାଗ୍ର ମନରେ ସେବା କରିବାର ଦ୍ୱାର
୧୪ ଯେଉଁ ଅବିବାହିତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ନିଜ ଅବିବାହିତ ରହିବାର ଅବସ୍ଥାକୁ ସ୍ୱାର୍ଥପୂର୍ଣ୍ଣ ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ପାଇଁ ଚେଷ୍ଟା କରେ, ସେ ବିବାହିତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କ ଅପେକ୍ଷା “ଆହୁରି ଭଲ” କରୁ ନାହିଁ । ସେ “ସ୍ୱର୍ଗରାଜ୍ୟ ସକାଶେ” ନୁହେଁ, ବରଂ ନିଜ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ କାରଣ ଯୋଗୁଁ ଅବିବାହିତ ରହୁଛି । (ମାଥିଉ ୧୯:୧୨) ଅବିବାହିତ ପୁରୁଷ କିମ୍ବା ସ୍ତ୍ରୀ “ପ୍ରଭୁଙ୍କ ବିଷୟ ଘେନି ଚିନ୍ତିତ” ହେବା ଉଚିତ୍ । ସେ ଏହା ମଧ୍ୟ ଚିନ୍ତା କରିବା ଉଚିତ୍ ଯେ ସେ “କିପରି ପ୍ରଭୁଙ୍କର ସନ୍ତୋଷପାତ୍ର” ହେବ ଏବଂ “ଏକାଗ୍ର ମନରେ” କିପରି ପ୍ରଭୁଙ୍କ ସେବାରେ ଲାଗି ରହିବ । ଏହାର ଅର୍ଥ ଯିହୋବା ଓ ଯୀଶୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କ ସେବାରେ ନିଜ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଧ୍ୟାନ କେନ୍ଦ୍ରିତ କରିବା । କେବଳ ଏପରି କରିବା ଦ୍ୱାରା ହିଁ ଅବିବାହିତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ପୁରୁଷ ଓ ସ୍ତ୍ରୀମାନେ ବିବାହିତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କଠାରୁ “ଆହୁରି ଭଲ” କରିଥାʼନ୍ତି ।
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ ଖୋଜନ୍ତୁ
ପ୍ରେମରେ ସ୍ଥିର (ହିନ୍ଦୀ) ୨୫୧, ଅଧିକ ବିବରଣୀ
ଛାଡ଼ପତ୍ର ଦେବା କିମ୍ବା ଅଲଗା ହେବା
କିଛି ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ପତିପତ୍ନୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କେହି ଅନୈତିକ ସମ୍ପର୍କ ରଖି ନାହାନ୍ତି, କିନ୍ତୁ ଅଲଗା ରହନ୍ତି, ଏପରିକି ସେମାନେ ଛାଡ଼ପତ୍ର ମଧ୍ୟ ଦେଇ ନାହାନ୍ତି । (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୭:୧୧) ଆଗକୁ ଦିଆଯାଇଥିବା କାରଣଗୁଡ଼ିକ ଯୋଗୁଁ ଜଣେ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ଚାହିଁଲେ ନିଜ ସାଥୀଠାରୁ ଅଲଗା ହେବା ବିଷୟରେ ଭାବିପାରନ୍ତି ।
• ଯେତେବେଳେ ସାଥୀ ଜଣକ ପରିବାରର ଦାୟିତ୍ୱ ତୁଲାନ୍ତି ନାହିଁ: ଜଣେ ପତି ଜାଣିଶୁଣି ନିଜ ପରିବାରର ଆବଶ୍ୟକତାଗୁଡ଼ିକୁ ପୂରଣ କରନ୍ତି ନାହିଁ, ଯାହାଫଳରେ ତାଙ୍କ ସ୍ତ୍ରୀ ଓ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଖାଇବାକୁ ମଧ୍ୟ ମିଳେ ନାହିଁ ।—୧ ତୀମଥି ୫:୮.
• ଯେତେବେଳେ ସାଥୀ ଜଣକ ବହୁତ ମାଡ଼ପିଟ୍ କରନ୍ତି: କେହି ନିଜ ସାଥୀଙ୍କୁ ଏତେ ମାଡ଼ପିଟ୍ କରନ୍ତି ଯେ ତାଙ୍କ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟକୁ ଗୁରୁତର ଭାବେ କ୍ଷତି ପହଞ୍ଚେ କିମ୍ବା ତାଙ୍କ ଜୀବନ ବିପଦରେ ପଡ଼ିଯାଏ ।—ଗାଲାତୀୟ ୫:୧୯-୨୧.
• ଯେତେବେଳେ ସାଥୀ ଜଣକ ଯୋଗୁଁ ଯିହୋବାଙ୍କ ସହ ସମ୍ପର୍କ ବଜାୟ ରଖିବା କଷ୍ଟକର ହୋଇଯାଏ: ସାଥୀ ଜଣକ ଏତେ ସମସ୍ୟା ସୃଷ୍ଟି କରନ୍ତି ଯେ ଜଣେ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ଯିହୋବାଙ୍କ ସେବା କରିପାରନ୍ତି ନାହିଁ ।—ପ୍ରେରିତ ୫:୨୯.
ପ୍ର୦୦-ହି ୭/୧୫ ୩୧ ¶୨
ଅନୈତିକ ସଂସାରରେ ମଧ୍ୟ ଅକଳୁଷିତ ରହିବା ସମ୍ଭବ
ଯୁବକଯୁବତୀମାନେ, ମନେ ରଖନ୍ତୁ ଯେ ଯେତେବେଳେ ଆରମ୍ଭ ଆରମ୍ଭରେ ଆପଣଙ୍କଠାରେ ଯୌନ ଇଚ୍ଛାଗୁଡ଼ିକ ବଢ଼ିବାକୁ ଲାଗେ, ସେତେବେଳେ ତରବରରେ ବିବାହ କରନ୍ତୁ ନାହିଁ । ବିବାହ ଖେଳଘର ନୁହେଁ । ଏଥିରେ ପତିପତ୍ନୀଙ୍କୁ ଆଜୀବନ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପରସ୍ପର ସହିତ ରହିବାକୁ ହୁଏ ଏବଂ ବୁଝିବିଚାରି କାମ କରିବାକୁ ହୁଏ । (ଆଦି ପୁସ୍ତକ ୨:୨୪) ଭଲ ହେବ ଯଦି ଆପଣ “ଯୌବନାବସ୍ଥା ଗତ” ହେବା ପରେ ହିଁ ବିବାହ କରିବେ । କାରଣ ଯୌବନ ଅବସ୍ଥାରେ ଯୌନ ଇଚ୍ଛାଗୁଡ଼ିକ ବହୁତ ପ୍ରବଳ ହୋଇଥାଏ । ତେଣୁ ଯୁବକଯୁବତୀମାନେ ସଠିକ୍ ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇପାରନ୍ତି ନାହିଁ । (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୭:୩୬) ଆଉ, ଯଦି କୌଣସି ପୁଅ କିମ୍ବା ଝିଅକୁ ଜୀବନସାଥୀ ମିଳେ ନାହିଁ ଏବଂ ସେ ନିଜର ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କରିବା ପାଇଁ ଅନୈତିକ କାମ କରେ, ତେବେ ଏହା ମୂର୍ଖାମି ଓ ଏକ ଘୃଣ୍ୟ ପାପ ହେବ ।
୮-୧୪ ଏପ୍ରିଲ୍
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୦-୧୩
“ଯିହୋବା ବିଶ୍ୱାସଯୋଗ୍ୟ ଅଟନ୍ତି”
ପ୍ର୧୭.୦୨-ହି ୨୯-୩୦
आपने पूछा
प्रेषित पौलुस ने लिखा कि यहोवा “तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो।” (1 कुरिं.10:13) तो क्या इसका मतलब है कि यहोवा पहले से जान लेता है कि हम क्या बरदाश्त कर सकते हैं और फिर तय करता है कि कौन-सी परीक्षाएँ हम पर आएँगी?
▪ अगर यह बात सच है तो ज़रा सोचिए इसका क्या मतलब होगा। एक भाई जिसके बेटे ने खुदकुशी की, वह पूछता है, ‘क्या यहोवा ने पहले से जान लिया था कि मुझमें और मेरी पत्नी में इस हादसे को सहने की ताकत है? क्या यह घटना इसीलिए हुई क्योंकि परमेश्वर ने तय कर लिया था कि हम इसे बरदाश्त कर लेंगे?’ क्या इस बात को मानने की कोई ठोस वजह है कि यहोवा हमारी ज़िंदगी में ऐसा कुछ करता है?
पहला कुरिंथियों 10:13 के शब्दों की जाँच करने पर हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं: बाइबल में ऐसा कहीं नहीं बताया गया है कि यहोवा पहले से यह जान लेता है कि हममें बरदाश्त करने की कितनी ताकत है और फिर वह तय करता है कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं, आइए इसकी चार वजहों पर गौर करें।
पहली वजह, यहोवा ने इंसान को खुद फैसला करने की आज़ादी दी है। वह चाहता है कि हम खुद अपने फैसले करें। (व्यव. 30:19, 20; यहो. 24:15) अगर हम ऐसे फैसले लें जो यहोवा को खुश करते हैं, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि वह हमें सही राह दिखाएगा। (नीति. 16:9) लेकिन अगर हम गलत फैसले करेंगे, तो हमें इसके बुरे अंजाम भुगतने पड़ेंगे। (गला. 6:7) ज़रा सोचिए, अगर यहोवा ने हमें आज़ादी दी है तो क्या उसका यह तय करना सही होगा कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी? अगर ऐसा है, तो हमारे पास फैसला करने की आज़ादी कहाँ रही?
दूसरी वजह, यहोवा ‘मुसीबत की घड़ी और हादसों’ से हमें नहीं बचाता। (सभो. 9:11) कभी-कभी लोग इत्तफाक से ऐसी जगह होते हैं जहाँ अचानक कोई हादसा होता है और वे उसके शिकार हो जाते हैं। यीशु ने भी एक ऐसी घटना के बारे में बताया था जिसमें एक मीनार के गिरने से 18 लोगों की मौत हो गयी थी। उसने साफ-साफ बताया कि उन लोगों की मौत के पीछे परमेश्वर का हाथ नहीं था। (लूका 13:1-5) तो क्या यह मानना सही होगा कि कोई हादसा होने से पहले परमेश्वर तय कर लेता है कि उसमें कौन बचेगा और कौन मरेगा?
तीसरी वजह, हममें से हरेक को यहोवा के वफादार बने रहना है। शैतान ने दावा किया कि यहोवा के सभी सेवक स्वार्थी हैं और मुश्किलें आने पर यहोवा के वफादार नहीं रहेंगे। (अय्यू. 1:9-11; 1:4; प्रका. 12:10) अगर यहोवा हम पर कुछ परीक्षाएँ नहीं आने देता क्योंकि उसे लगता है कि हम उन्हें बरदाश्त नहीं कर सकते, तो क्या वह शैतान के दावे को सच साबित नहीं कर रहा होगा?
चौथी वजह, यहोवा पहले से यह जानने की कोशिश नहीं करता कि हमारे साथ क्या-क्या होगा। यह सच है कि अगर वह चाहे तो भविष्य में होनेवाली घटनाओं को पहले से जान सकता है। (यशा. 46:10) लेकिन बाइबल बताती है कि वह हर मामले में ऐसा नहीं करता। (उत्प. 18:20, 21; 22:12) यहोवा एक प्यार करनेवाला और नेक परमेश्वर है। इसलिए वह ऐसा कुछ नहीं करता जिससे फैसला करने की हमारी आज़ादी हमसे छिन जाए।—व्यव. 32:4; 2 कुरिं. 3:17.
तो फिर पौलुस के इन शब्दों का क्या मतलब था कि यहोवा “तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो”? यहाँ पौलुस समझा रहा था कि यहोवा परीक्षाओं के दौरान क्या करता है, न कि परीक्षाएँ आने से पहले क्या करता है। पौलुस हमें यकीन दिला रहा था कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें तो वह किसी भी परीक्षा का सामना करने में हमारी मदद कर सकता है। (भज. 55:22) पौलुस ऐसा क्यों कह पाया, आइए इसकी दो वजहों पर गौर करें।
पहली वजह है, हम पर ऐसी कोई परीक्षा नहीं आती है, “जो दूसरे इंसानों पर न आयी हो।” जब तक हम शैतान की दुनिया में जी रहे हैं हमें मुश्किल हालात का सामना करना पड़ेगा और हमारे साथ कोई बुरी घटना भी हो सकती है। लेकिन अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो हम इन परीक्षाओं का सामना कर सकते हैं और उसके वफादार बने रह सकते हैं। (1 पत. 5:8, 9) पहला कुरिंथियों अध्याय 10 की पहली कुछ आयतों में पौलुस ने उन परीक्षाओं के बारे में बताया जो वीराने में इसराएलियों पर आयी थीं। (1 कुरिं. 10:6-11) जिन इसराएलियों ने यहोवा पर भरोसा रखा वे उन परीक्षाओं का सामना कर पाए। लेकिन कुछ इसराएलियों ने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा, इसलिए उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी और उसके वफादार नहीं रहे।
दूसरी वजह है कि “परमेश्वर विश्वासयोग्य है।” इसका क्या मतलब है? जब हम गौर करते हैं कि पुराने समय में यहोवा ने अपने लोगों को किस तरह सँभाला था, तो हम समझ पाते हैं कि “जो उससे प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं” उनसे वह वफादारी निभाता है और उनकी मदद करता है। (व्यव. 7:9) हम यह भी सीखते हैं कि यहोवा हमेशा अपने वादे पूरे करता है। (यहो. 23:14) इससे हमें दो बातों का यकीन होता है: (1) यहोवा किसी भी परीक्षा को उस हद तक नहीं जाने देगा कि हम उसे बरदाश्त न कर सकें और (2) वह ‘उससे निकलने का रास्ता निकालेगा।’
यहोवा उन लोगों के लिए कैसे ‘रास्ता निकालता है’ जो उस पर भरोसा रखते हैं? बेशक यहोवा चाहे तो किसी भी परीक्षा को हटा सकता है। लेकिन याद कीजिए पौलुस ने कहा था कि यहोवा “उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा ताकि तुम इसे सह सको।” इसलिए ज़्यादातर मामलों में यहोवा हमें ज़रूरी मदद देता है ताकि हम परीक्षाओं को सह सकें और वफादार बने रह सकें। इस तरह वह हमारे लिए रास्ता निकालता है। आइए कुछ तरीकों पर ध्यान दें कि यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है:
▪ यहोवा “हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है।” (2 कुरिं. 1:3, 4) परीक्षाओं के दौरान यहोवा बाइबल, अपनी पवित्र शक्ति और विश्वासयोग्य दास के ज़रिए हमारे बेचैन दिल और मन को शांत कर सकता है।—मत्ती 24:45; यूह. 14:16, फु.; रोमि. 15:4.
▪ यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए हमें राह दिखा सकता है। (यूह. 14:26) पवित्र शक्ति हमें बाइबल के ऐसे ब्यौरे और सिद्धांत याद दिला सकती है जो बुद्धि-भरे फैसले लेने में हमारी मदद कर सकते हैं।
▪ यहोवा अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए भी हमारी मदद कर सकता है।—इब्रा. 1:14.
▪ यहोवा हमारी मदद करने के लिए मसीही भाई-बहनों को भी उभार सकता है। वे अपनी बातों और कामों से हमारी हिम्मत बढ़ा सकते हैं।—कुलु. 4:11.
तो हमने 1 कुरिंथियों 10:13 में दर्ज़ पौलुस के शब्दों से क्या सीखा? यहोवा यह तय नहीं करता कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी। लेकिन हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें तो हम किसी भी परीक्षा का सामना कर सकते हैं। हमने यह भी जाना है कि यहोवा हमेशा हमारे लिए रास्ता निकालेगा ताकि हम उसके वफादार बने रहें।
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ ଖୋଜନ୍ତୁ
ପ୍ର୦୪-ହି ୪/୧ ୨୯
पाठकों के प्रश्न
पहला कुरिन्थियों 10:8 में ऐसा क्यों कहा गया है कि व्यभिचार करने की वजह से एक ही दिन में 23,000 इस्राएली मारे गए, जबकि गिनती 25:9 में मरनेवालों की संख्या 24,000 बतायी गयी है?
इन दोनों आयतों में अलग-अलग संख्या देने की कई वजह हो सकती हैं। एक सीधी-सी वजह यह हो सकती है कि मरनेवालों की असल संख्या 23,000 और 24,000 के बीच रही होगी, इसलिए पूर्ण संख्या इस्तेमाल करने के लिए 23,000 और 24,000 लिखा गया है।
एक और वजह पर गौर कीजिए। प्राचीन कुरिन्थ शहर लुचपन के लिए बहुत बदनाम था, इसलिए प्रेरित पौलुस ने वहाँ के मसीहियों को चेतावनी देने के लिए इस्राएलियों के साथ शित्तीम में हुए वाकये का ज़िक्र किया। उसने लिखा: “न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।” व्यभिचार करने की वजह से जिन लोगों को खुद यहोवा ने मारा था, सिर्फ उनकी संख्या पौलुस ने 23,000 बतायी।—1 कुरिन्थियों 10:8.
लेकिन गिनती किताब का अध्याय 25 बताता है कि ‘इस्राएली बालपोर देवता के संग मिल गए; और यहोवा का क्रोध इस्राएल पर भड़क उठा।’ (NW)उसके बाद, यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी कि वह “प्रजा के सब प्रधानों” को मार डाले। और मूसा ने न्यायियों को इस आज्ञा का पालन करने का हुक्म दिया। आखिर में, जब पीनहास ने एक ऐसे इस्राएली को मारने के लिए फौरन कदम उठाया, जो इस्राएल के डेरे में एक मिद्यानी स्त्री को लाया, तो ‘मरी थम गई।’ उस वृत्तांत के आखिर में लिखा गया है: “मरी से चौबीस हज़ार मनुष्य मर गए।”—गिनती 25:1-9.
ज़ाहिर है कि गिनती की किताब में मरनेवालों की संख्या में, ‘प्रजा के सब प्रधान’ शामिल होंगे जिन्हें न्यायियों ने मारा था और दूसरे इस्राएली जिन्हें खुद यहोवा ने नाश किया था। न्यायियों के हाथ मरनेवाले प्रधानों की संख्या हज़ार के आस-पास रही होगी जिसकी वजह से मरनेवालों की कुल गिनती 24,000 हुई। इन प्रधानों यानी बलवा करनेवालों के सरदारों ने व्यभिचार किया या नहीं, जश्न में हिस्सा लिया या नहीं, या फिर इसमें शामिल होने के लिए लोगों को इजाज़त दी कि नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है, लेकिन एक बात तय है कि वे “बालपोर के संग मिल” जाने के दोषी थे।
बाइबल के बारे में लिखी एक किताब कहती है कि ‘मिल जाने’ के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब “किसी इंसान के साथ खुद को बाँध लेना” हो सकता है। इस्राएली यहोवा के समर्पित लोग थे जिसकी वजह से परमेश्वर के साथ उनका एक खास रिश्ता था। लेकिन जब वे “बालपोर के संग मिल” गए, तो उन्होंने परमेश्वर से रिश्ता तोड़ दिया। करीब 700 साल बाद, यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता होशे के ज़रिए इन इस्राएलियों के बारे में कहा: “उन्हों ने पोर के बाल के पास जाकर अपने तईं को लज्जा का कारण होने के लिये अर्पण कर दिया, और जिस पर मोहित हो गए थे, वे उसी के समान घिनौने हो गए।” (होशे 9:10) जिन-जिन लोगों ने यह घिनौना काम किया, वे सब परमेश्वर से कड़ी-से-कड़ी सज़ा पाने के लायक थे। इसलिए मूसा ने इस्राएल की संतानों को याद दिलाया: “तुम ने तो अपनी आंखों से देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या क्या किया; अर्थात् जितने मनुष्य बालपोर के पीछे को लिये थे उन सभों को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला।”—व्यवस्थाविवरण 4:3.
ପ୍ର୧୫-ହି ୨/୧୫ ୩୦
ପାଠକମାନଙ୍କ ପ୍ରଶ୍ନ
ଯଦି ଜଣେ ଭଉଣୀ ଏକ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ଭାଇଙ୍କ ଉପସ୍ଥିତିରେ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାନ୍ତି, ତେବେ କʼଣ ସେ ଓଢ଼ଣୀ ଦେବା ଉଚିତ୍?
▪ ୧୫ ଜୁଲାଇ ୨୦୦୨ର ପ୍ରହରୀଦୁର୍ଗର ଲେଖା “ପାଠକମାନଙ୍କ ପ୍ରଶ୍ନରେ” କୁହାଯାଇଥିଲା ଯେ ଯଦି ଜଣେ ଭଉଣୀ କୌଣସି ବାଯ୍ତିସ୍ମପ୍ରାଯ୍ତ କିମ୍ବା ବାଯ୍ତିସ୍ମରହିତ ପୁରୁଷ ପ୍ରଚାରକଙ୍କ ଉପସ୍ଥିତିରେ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାନ୍ତି, ତେବେ ସେହି ଭଉଣୀ ମୁଣ୍ଡଳୀରେ ଓଢ଼ଣୀ ଦେବା ଉଚିତ୍ । କିନ୍ତୁ ଏବିଷୟରେ ଭଲ ଭାବେ ଯାଞ୍ଚ କରିବା ପରେ, ଏହି ନିର୍ଦ୍ଦେଶରେ କିଛି ପରିବର୍ତ୍ତନ କରାଯାଇଛି ।
ଯଦି ଜଣେ ବାଯ୍ତିସ୍ମ ନେଇଥିବା ପ୍ରଚାରକ ଭାଇ, ଜଣେ ଭଉଣୀଙ୍କ ସହ ଏପରି ଏକ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନରେ ଯାʼନ୍ତି, ଯାହା କିଛି ସମୟ ଧରି ଚାଲୁଛି ଏବଂ ଭଉଣୀ ଜଣକ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାନ୍ତି, ତେବେ ଭଉଣୀଙ୍କୁ ନିଶ୍ଚିତ ଭାବେ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାଇବା ସମୟରେ ନିଜ ମୁଣ୍ଡରେ ଓଢ଼ଣୀ ଦେବା ଉଚିତ୍ । ଏପରି କରିବା ଦ୍ୱାରା ସେହି ଭଉଣୀ ଖ୍ରୀଷ୍ଟୀୟ ମଣ୍ଡଳୀରେ ଅଧୀନତା ଦେଖାଇ ଯିହୋବାଙ୍କ ବ୍ୟବସ୍ଥା ପ୍ରତି ଆଦର ଦେଖାନ୍ତି । କାରଣ ସେମସୟରେ ସେ ଭଉଣୀ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାଇ ଏପରି ଏକ ଦାୟିତ୍ୱ ତୁଲାନ୍ତି, ଯାହା ବିଶେଷ କରି ଜଣେ ଭାଇଙ୍କୁ ତୁଲାଇବା ଉଚିତ୍ । (୧ କରି. ୧୧:୫, ୬, ୧୦) କିମ୍ବା ଯଦି ସେ ଭାଇ ଜଣକ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାଇବା ପାଇଁ ଯୋଗ୍ୟ ଏବଂ ସେ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାଇପାରିବେ, ତେବେ ଭଉଣୀ ଚାହିଁଲେ ସେହି ଭାଇଙ୍କୁ ଅଧ୍ୟୟନ ଚାଲଇବା ପାଇଁ କହିପାରିବେ ।
ଅନ୍ୟ ପକ୍ଷରେ, ଯଦି ଜଣେ ବାଯ୍ତିସ୍ମରହିତ ପ୍ରଚାରକ ଜଣେ ଭଉଣୀଙ୍କ ସହ କିଛି ସମୟ ଧରି ଚାଲୁଥିବା ଏକ ବାଇବଲ ଅଧ୍ୟୟନରେ ଯାʼନ୍ତି, ଆଉ ସେହି ପ୍ରଚାରକ ଜଣକ ଭଉଣୀଙ୍କ ପତି ନୁହନ୍ତି, ତେବେ ଶାସ୍ତ୍ର ଅନୁଯାୟୀ ଅଧ୍ୟୟନ ଚଲାଇବା ସମୟରେ ଭଉଣୀଙ୍କୁ ଓଢ଼ଣୀ ଦେବା ଆବଶ୍ୟକ ନୁହେଁ । କିନ୍ତୁ ଏପରି ପରିସ୍ଥିତିରେ ମଧ୍ୟ ହୁଏତ କିଛି ଭଉଣୀଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କ ବିବେକ ନିଜ ମୁଣ୍ଡରେ ଓଢ଼ଣୀ ଦେବା ପାଇଁ ପ୍ରେରିତ କରିପାରେ ।
୨୨-୨୮ ଏପ୍ରିଲ୍
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୪-୧୬
“ଈଶ୍ୱର ‘ସର୍ବେସର୍ବା’ ହେବେ”
ପ୍ର୯୮-ହି ୭/୧ ୨୧ ¶୧୦
“ମୃତ୍ୟୁକୁ ଲୋପ କରାଯିବ”
୧୦ ଏହି “ଯୁଗାନ୍ତ” ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କ ହଜାର ବର୍ଷ ଶାସନକାଳର ଅନ୍ତ ଅଟେ, ଯେତେବେଳେ ଯୀଶୁ ନମ୍ରତା ଓ ନିଷ୍ଠାର ସହ ନିଜ ଶାସନ ନିଜ ଈଶ୍ୱର ଓ ପିତାଙ୍କ ହାତରେ ସମର୍ପି ଦେବେ । (ପ୍ରକାଶିତ ବାକ୍ୟ ୨୦:୪) ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଏହି ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ପୂରଣ ହେବ— “ସମସ୍ତ ବିଷୟ ସେ ଆପଣା ନିମନ୍ତେ ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କଠାରେ ଏକୀଭୂତ କରିବେ ।” (ଏଫିସୀୟ ୧:୯, ୧୦) କିନ୍ତୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟ ଏହା ପୂର୍ବରୁ ଯିହୋବା ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଅଟଳ ଇଚ୍ଛାର ବିରୋଧକାରୀମାନଙ୍କର “ସମସ୍ତ କର୍ତ୍ତାପଣ, ସମସ୍ତ କ୍ଷମତା ଓ ଶକ୍ତି ଲୋପ” କରିବେ । ଏଥିରେ ହର୍ମିଗିଦ୍ଦୋନ୍ରେ ହେବାକୁ ଥିବା ବିନାଶ ଛଡ଼ା ଆହୁରି କିଛି ସାମିଲ୍ ଅଛି । (ପ୍ରକାଶିତ ବାକ୍ୟ ୧୬:୧୬; ୧୯:୧୧-୨୧) ପାଉଲ କୁହନ୍ତି, “ସେ [ଖ୍ରୀଷ୍ଟ] ସମସ୍ତ ଶତ୍ରୁଙ୍କୁ ନିଜର ପାଦ ତଳେ ନ ରଖିବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ତାହାଙ୍କୁ ଅବଶ୍ୟ ରାଜତ୍ୱ କରିବାକୁ ହେବ । ଶେଷ ଶତ୍ରୁ ସ୍ୱରୂପେ ମୃତ୍ୟୁକୁ ଲୋପ କରାଯିବ ।” (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୫:୨୫, ୨୬) ହଁ, ଆଦମଠାରୁ ମିଳିଥିବା ପାପ ଓ ମୃତ୍ୟୁକୁ ଲୋପ କରିଦିଆଯିବ । ଆଉ ଏହି ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟକୁ ପୂରଣ କରିବା ପାଇଁ ସେତେବେଳେ ଈଶ୍ୱର ମରିଯାଇଥିବା ଲୋକଙ୍କୁ ଜୀବିତ କରି ‘ସମାଧି’ ବା କବରକୁ ଖାଲି କରିଦେଇଥିବେ ।—ଯୋହନ ୫:୨୮.
ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ରାଜ୍ୟ (ହିନ୍ଦୀ) ୨୩୭ ¶୨୧
ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ରାଜ୍ୟ ପୃଥିବୀରେ ତାହାଙ୍କ ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କରିବ
୨୧ କିନ୍ତୁ ମୃତ୍ୟୁର କʼଣ ହେବ, ଯାହା ରୋଗ ଓ ପାପର ଭୟଙ୍କର ପରିଣତି ଅଟେ? ମୃତ୍ୟୁ ଆମର “ଶେଷ ଶତ୍ରୁ” ଅଟେ । ଏହା ଏପରି ଏକ ଶତ୍ରୁ ଯେଉଁଥିରୁ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପାପି ମଣିଷ ଦିନେ ନା ଦିନେ ହାରିଯାଏ । (୧ କରି. ୧୫:୨୬) କିନ୍ତୁ କʼଣ ମୃତ୍ୟୁ ଏତେ ଶକ୍ତିଶାଳୀ ଯେ ଯିହୋବା ମଧ୍ୟ ତାକୁ ହରାଇପାରିବେ ନାହିଁ? ଯିଶାଇୟଙ୍କ ଏହି ଭବିଷ୍ୟତବାଣୀ ପ୍ରତି ଧ୍ୟାନ ଦିଅନ୍ତୁ: “ସେ ମୃତ୍ୟୁକୁ ଅନନ୍ତ କାଳ ନିମନ୍ତେ ଗ୍ରାସ କରିଅଛନ୍ତି ଓ ପ୍ରଭୁ, ସଦାପ୍ରଭୁ, ସମସ୍ତଙ୍କ ମୁଖରୁ ଲୋତକ ଜଳ ପୋଛି ଦେବେ ।” (ଯିଶା. ୨୫:୮) କʼଣ ଆପଣ କଳ୍ପନା କରିପାରୁଛନ୍ତି ଯେ ସେସମୟ କିପରି ହେବ? ଶୋକ ସଭା ହେବ ନାହିଁ, କବର ହେବ ନାହିଁ ଏବଂ କେହି ଦୁଃଖରେ ଅଶ୍ରୁ ଗଡ଼ାଇବେ ନାହିଁ । ଏହା ବ୍ୟତୀତ ଆମ ଆଖିରେ ଖୁସିର ଅଶ୍ରୁ ହେବ, କାରଣ ଯିହୋବା ଯେତେବେଳେ ନିଜ ପ୍ରତିଜ୍ଞା ଅନୁଯାୟୀ ମରିଯାଇଥିବା ଲୋକଙ୍କୁ ଜୀବିତ କରିବେ, ତାହା କେତେ ରୋମାଞ୍ଚକର ସମୟ ହେବ! (ଯିଶାଇୟ ୨୬:୧୯ ପଢ଼ନ୍ତୁ।) ମୃତ୍ୟୁ ଆମକୁ ଯେଉଁ ଅସଂଖ୍ୟ ଆଘାତ ଦେଇଛି, ସେସବୁ ସମାଯ୍ତ କରିଦିଆଯିବ ।
ପ୍ର୧୨-ହି ୯/୧୫ ୧୨ ¶୧୭
ଶାନ୍ତି—ହଜାର ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଏବଂ ତାʼ ପରେ ମଧ୍ୟ!
୧୭ ହଜାର ବର୍ଷର ଅନ୍ତ ବିଷୟରେ ଆମେ ପଢ଼ୁ ଯେ “ଈଶ୍ୱର ସର୍ବେସର୍ବା ହୁଅନ୍ତି ।” ଏଥିରୁ ବଢ଼ିଆ ବର୍ଣ୍ଣନା ଆଉ କʼଣ ହୋଇପାରେ! କିନ୍ତୁ ଏହି ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକର ଅର୍ଥ କʼଣ? ଟିକେ ସେସମୟକୁ ମନେ ପକାନ୍ତୁ, ଯେତେବେଳେ ଏଦନ ଉଦ୍ୟାନରେ ସିଦ୍ଧ ମଣିଷ ଆଦମ ଓ ହବା ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ପରିବାରର ଭାଗ ଥିଲେ, ସେ ପରିବାରର ଯେଉଁଥିରେ ଶାନ୍ତି ଓ ଏକତା ଥିଲା । ସମଗ୍ର ବିଶ୍ୱର ମହାରାଜା ଓ ମାଲିକ ଯିହୋବା ଏହି ପରିବାର ଉପରେ ସିଧାସଳଖ ଶାସନ କରୁଥିଲେ, ଯାହା ମଣିଷ ଓ ସ୍ୱର୍ଗଦୂତମାନଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ଗଠିତ ଥିଲା । ସେମାନେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ସହ କଥା ହୋଇପାରୁଥିଲେ, ତାହାଙ୍କ ଉପାସନା କରୁଥିଲେ, ଆଉ ତାହାଙ୍କଠାରୁ ଆଶିଷ ପାଉଥିଲେ । ଯିହୋବା ହିଁ “ସର୍ବେସର୍ବା” ଥିଲେ ।
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ ଖୋଜନ୍ତୁ
ପ୍ର୧୨-ଇଂ ୯/୧ ୯, ବକ୍ସ
କʼଣ ପ୍ରେରିତ ପାଉଲ ସ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ମଣ୍ଡଳୀରେ କହିବା ପାଇଁ ମନା କରିଥିଲେ ?
ପ୍ରେରିତ ପାଉଲ କହିଲେ, “ସ୍ତ୍ରୀଲୋକମାନେ ମଣ୍ଡଳୀରେ ନୀରବ ରହନ୍ତୁ।” (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୪:୩୪) ପାଉଲଙ୍କ କହିବାର ଅର୍ଥ କʼଣ ଥିଲା? କʼଣ ସେ କହୁଥିଲେ ଯେ ସ୍ତ୍ରୀଲୋକମାନଙ୍କର ବୁଦ୍ଧି ନାହିଁ? ନା, ପାଉଲ କିଛି ପଦଗୁଡ଼ିକରେ କହିଲେ ଯେ ସ୍ତ୍ରୀମାନେ ଭଲ କଥା ଶିଖାଇପାରିବେ । (୨ ତୀମଥି ୧:୫; ତୀତସ ୨:୩-୫) କରିନ୍ଥୀୟମାନଙ୍କୁ ଲେଖିଥିବା ଚିଠିରେ ପାଉଲ କେବଳ ସ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ନୁହେଁ, ବରଂ ଏପରି ଲୋକମାନଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ‘ନୀରବ’ ରହିବା ପାଇଁ ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ, ଯେଉଁମାନଙ୍କୁ ଅନ୍ୟ ଭାଷା କହିବା ଏବଂ ଭବିଷ୍ୟତବାଣୀ କରିବାର ବରଦାନ ମିଳିଥିଲା । କୌଣସି ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ କଥା କରୁଥିବା ସମୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ମଝିରେ କହିବାର ନ ଥିଲା । (୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୪:୨୬-୩୦, ୩୩) ହୁଏତ କିଛି ସ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ହେବାର ଅଳ୍ପ ସମୟ ହୋଇଥିଲା ଏବଂ ସେମାନେ ଏତେ ଉତ୍ସାହୀ ଥିଲେ ଯେ ମଣ୍ଡଳୀରେ କୌଣସି ଭାଇ ଶିଖାଇବା ସମୟରେ ସେମାନେ ମଝିରେ ହିଁ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚାରିବାକୁ ଲାଗୁଥିଲେ । କରିନ୍ଥ ସହରର ଲୋକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଏପରି ମଝିରେ କଥା କହିବା ଅତି ସାଧାରଣ ଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନ ସଭାରେ ଏପରି କରିବା ଯୋଗୁଁ ଗୋଳମାଳ ହେଉଥିଲା । ତେଣୁ ପାଉଲ ସ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ପରାମର୍ଶ ଦେଲେ ଯେ ଯଦି ସେମାନେ କିଛି ଜାଣିବାକୁ ଚାହାନ୍ତି, ତେବେ ସେମାନେ “ଘରେ ଆପଣା ଆପଣା ସ୍ୱାମୀମାନଙ୍କୁ ପଚାରନ୍ତୁ ।”—୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୪:୩୫.
ଇନସାଇଟ୍-୧ ୧୧୯୭-୧୧୯୮
ଅକ୍ଷୟତା
ଅଭିଷିକ୍ତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କୁ ଯେତେବେଳେ ସେମାନଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ପରେ ଜୀବିତ କରାଯାଏ, ସେମାନେ ସ୍ୱର୍ଗର ପ୍ରାଣୀ ହୋଇ ନା କେବଳ ସଦାକାଳ ପାଇଁ ଜୀବନ ପାଆନ୍ତି, ବରଂ ଯୀଶୁଙ୍କ ଭଳି ଅମରତା ଏବଂ ଅକ୍ଷୟତା ମଧ୍ୟ ପାଆନ୍ତି । ପୃଥିବୀରେ ରହିବା ସମୟରେ ସେମାନଙ୍କ ଶରୀର ନଷ୍ଟ ହୁଏ । କିନ୍ତୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତତାର ସହ ସେବା କରିବା ପରେ ଯେତେବେଳେ ସେମାନଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ହୋଇଯାଏ, ସେମାନଙ୍କୁ ଅଦୃଶ୍ୟ ଶରୀର ମିଳେ, ଯାହା ଅକ୍ଷୟ ଶରୀର ଅଟେ । ପାଉଲ ଏ କଥା ୧ କରିନ୍ଥୀୟ ୧୫:୪୨-୫୪ ପଦଗୁଡ଼ିକରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବେ କହିଛନ୍ତି । ଅମରତାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି, ଏପରି ଜୀବନ ଯାହା କେବେ ମଧ୍ୟ ଶେଷ କିମ୍ବା ନଷ୍ଟ ହେବ ନାହିଁ । ଆଉ ଅକ୍ଷୟତାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି, ଏପରି ଶରୀର ଯାହା କେବେ ମଧ୍ୟ ନଷ୍ଟ ହେବ ନାହିଁ କିମ୍ବା ପଚିବ ନାହିଁ । ଏଥିରୁ ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ଈଶ୍ୱର ସେମାନଙ୍କୁ ଏପରି ଶକ୍ତି ଦିଅନ୍ତି, ଯାହାଫଳରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଅନ୍ୟ ପ୍ରାଣୀ ଓ ସ୍ୱର୍ଗଦୂତମାନଙ୍କ ଭଳି କୌଣସି ବାହାର ସ୍ରୋତରୁ ଶକ୍ତି ଆବଶ୍ୟକ ହୁଏ ନାହିଁ । ସେମାନେ ଆପେ ଆପେ ଜୀବିତ ରହିପାରନ୍ତି । ଏହା ଦେଖାଏ ଯେ ଯିହୋବା ସେମାନଙ୍କ ଉପରେ କେତେ ଭରସା କରନ୍ତି । କିନ୍ତୁ ଏଭଳି ଆତ୍ମନିର୍ଭର ହେବା ଏବଂ ଅକ୍ଷୟତା ଥିବାର ଅର୍ଥ ନୁହେଁ ଯେ ସେମାନଙ୍କ ଉପରେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କର କୌଣସି ଅଧିକାର ନାହିଁ । ଏହା ବ୍ୟତୀତ, ସେମାନେ ନିଜ ମୁଖିଆ ଯୀଶୁ ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କ ଭଳି ସର୍ବଦା ନିଜ ପିତାଙ୍କ ଅଧୀନ ରହିବେ, ତାହାଙ୍କ ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କରିବେ ଏବଂ ତାହାଙ୍କ ନିର୍ଦ୍ଦେଶଗୁଡ଼ିକୁ ପାଳନ କରିବେ ।—୧କରି ୧୫:୨୩-୨୮.
୨୯ ଏପ୍ରିଲ୍–୫ ମେ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ୨ କରିନ୍ଥୀୟ ୧-୩
“ଯିହୋବା—ସମସ୍ତ ସାନ୍ତ୍ୱନାଦାତା ଈଶ୍ୱର”
ପ୍ର୧୭.୦୭-ହି ୧୩ ¶୪
“ଯେଉଁମାନେ ରୋଦନ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ରୋଦନ କର।”
୪ ଆମ ପ୍ରେମମୟ ପିତା ମଧ୍ୟ ଏହି ଦୁଃଖ ସହିଛନ୍ତି । ସେ ନିଜ ଆତ୍ମୀୟ ଅବ୍ରହାମ, ଯାକୁବ, ମୋଶା ଓ ଦାଉଦଙ୍କୁ ମୃତ୍ୟୁରେ ହରାଇବାର ଦୁଃଖ ସହିଛନ୍ତି । (ଗଣ. ୧୨:୬-୮; ମାଥି. ୨୨:୩୧, ୩୨; ପ୍ରେରି. ୧୩:୨୨) ବାଇବଲ କହେ ଯେ ଯିହୋବା ନିଜ ବିଶ୍ୱସ୍ତ ସେବକମାନଙ୍କୁ ପୁଣିଥରେ ଜୀବିତ କରିବା ପାଇଁ ବ୍ୟାକୁଳ ଅଛନ୍ତି । (ଆୟୁ. ୧୪:୧୪, ୧୫) ପୁନରୁତ୍ଥାନ କରାଯିବା ପରେ ସେମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଖୁସିରେ ଭରିଯିବ ଏବଂ ସେମାନେ ଉତ୍ତମ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ପାଇବେ । କିନ୍ତୁ ଏହି ସେବକମାନଙ୍କ ବ୍ୟତୀତ ଯିହୋବା ନିଜ ପୁତ୍ରଙ୍କୁ ମୃତ୍ୟୁରେ ହରାଇବାର ଦୁଃଖ ମଧ୍ୟ ସହିଛନ୍ତି । ବାଇବଲ କହେ ଯେ ଯୀଶୁ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ବହୁତ “ପ୍ରିୟ” ଥିଲେ । (ମାଥି. ୩:୧୭) ଆମେ ଏହା କଳ୍ପନା ସୁଦ୍ଧା କରିପରିବା ନାହିଁ ଯେ ଯିହୋବାଙ୍କୁ କେତେ ଦୁଃଖ ଲାଗିଥିବ, ଯେତେବେଳେ ସେ ନିଜ ପୁତ୍ରଙ୍କ ଏତେ ଦୁଃଖଦ ମୃତ୍ୟୁ ଦେଖିଥିବେ ।—ଯୋହ. ୫:୨୦; ୧୦:୧୭.
ପ୍ର୧୭.୦୭-ହି ୧୫ ¶୧୪
“ଯେଉଁମାନେ ରୋଦନ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ରୋଦନ କର।”
୧୪ ବେଳେ ବେଳେ ହୁଏତ ଆମେ ବୁଝିପାରି ନ ଥାଉ ଯେ ଯେଉଁମାନେ ଦୁଃଖରେ ଅଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କୁ କʼଣ କହିବା । କିନ୍ତୁ ବାଇବଲ କହେ, “ଜ୍ଞାନୀର ଜିହ୍ୱା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟଜନକ ।” (ହିତୋ. ୧୨:୧୮) ଯେତେବେଳେ ଆପଣଙ୍କ କୌଣସି ଆତ୍ମୀୟଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ହୁଏ (ହିନ୍ଦୀ) ପୁସ୍ତିକାରେ ଭଲ ପରାମର୍ଶଗୁଡ଼ିକ ଦିଆଯାଇଛି, ଯାହା ଆମେ ସାନ୍ତ୍ୱନା ଦେବା ବେଳେ କହିପାରିବା । କିନ୍ତୁ ଅଧିକାଂଶ ସମୟରେ ଦେଖାଯାଇଛି ଯେ ସାନ୍ତ୍ୱନା ଦେବାର ସବୁଠୁ ଉତ୍ତମ ଉପାୟ ହେଉଛି, “ଯେଉଁମାନେ ରୋଦନ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ରୋଦନ କର ।” (ରୋମୀ. ୧୨:୧୫) ନିଜ ପତିଙ୍କୁ ମୃତ୍ୟୁରେ ହରାଇଥିବା ଗେବୀ କୁହନ୍ତି: “କେବେ କେବେ ମୁଁ ନିଜ ଦୁଃଖ କହିପାରେ ନାହିଁ, କେବଳ କାନ୍ଦିଥାଏ । ଯେତେବେଳେ ମୋʼ ସାଙ୍ଗମାନେ ମୋʼ ସହ କାନ୍ଦନ୍ତି, ମୋʼ ମନ ହାଲୁକା ହୋଇଯାଏ । ସେତେବେଳେ ମତେ ଲାଗେ ଯେ ମୋʼ ସାଙ୍ଗମାନେ ମୋʼ ଦୁଃଖ ବୁଝନ୍ତି ।”
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ ଖୋଜନ୍ତୁ
ପ୍ର୧୬.୦୪-ହି ୩୨
ପାଠକମାନଙ୍କ ପ୍ରଶ୍ନ
ପାଉଲ ଯେତେବେଳେ କହିଲେ ଯେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଅଭିଷିକ୍ତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନଙ୍କୁ ଈଶ୍ୱରଙ୍କଠାରୁ “ବଇନା” ମିଳେ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ଉପରେ “ମୁଦ୍ରାଙ୍କିତ” କରାଯାଏ, ତାଙ୍କ ଏପରି କହିବାର ଅର୍ଥ କʼଣ ଥିଲା?—୨ କରି. ୧:୨୧, ୨୨.
▪ ବଇନା: ଗୋଟିଏ ବହି ଅନୁଯାୟୀ ୨ କରିନ୍ଥୀୟ ୧:୨୨ ପଦରେ ଯେଉଁ ଗ୍ରୀକ୍ ଶବ୍ଦର ଅନୁବାଦ “ବଇନା” କରାଯାଇଛି, ତାହା “ଏକ ଆଇନ ଏବଂ ବ୍ୟବସାୟ ଜଡ଼ିତ ଶବ୍ଦ” ଥିଲା । ତାର ଅର୍ଥ ଥିଲା, ‘ପ୍ରଥମ କିସ୍ତି, ଜମା ରାଶି କିମ୍ବା କ୍ରୟ କରିବା ସମୟରେ ଦିଆଯାଉଥିବା ଆଂଶିକ ମୂଲ୍ୟ, ଯାହା କୌଣସି ଜିନିଷ କିଣିବା ପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ମୂଲ୍ୟର କିଛି ଅଂଶ ହେଉଥିଲା ଏବଂ ଏହା ଆଗରୁ ଦିଆଯାଉଥିଲା । ଏହିପରି ଭାବେ ଆଇନ୍ ଅନୁସାରେ, କିଣାଯାଉଥିବା ଜିନିଷଟି କିଣୁଥିବା ବ୍ୟକ୍ତିର ବୋଲି ମନେ କରାଯାଉଥିଲା କିମ୍ବା ଏହି କାରବାର ପକ୍କା ବୋଲି ମନେ କରାଯାଉଥିଲା ।’ ଅଭିଷିକ୍ତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କ ମାମଲାରେ ଯିହୋବା ସେମାନଙ୍କୁ ଯେଉଁ ପୁରସ୍କାର ଦେଉଛନ୍ତି, ତାʼ ପାଇଁ ସେ “ବଇନା” ଦେଇଛନ୍ତି । ଦ୍ୱିତୀୟ କରିନ୍ଥୀୟ ୫:୧-୫ ପଦରେ କୁହାଯାଇଛି ଯେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମୂଲ୍ୟ କିମ୍ବା ପୁରସ୍କାର ରୂପେ ସେମାନଙ୍କୁ ସ୍ୱର୍ଗରେ ଅକ୍ଷୟ ଶରୀର ମିଳିବ । ଏହି ପୁରସ୍କାରରେ ଅମରତାର ଉପହାର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍ ହେବ ।—୧ କରି. ୧୫:୪୮-୫୪.
ଆଜିର ସମୟରେ କୁହାଯାଉଥିବା ଗ୍ରୀକ୍ ଭାଷାରେ ଏହା ସହ ମେଳ ଖାଉଥିବା ଶବ୍ଦ ନିର୍ବନ୍ଧର ମୁଦି ପାଇଁ ବ୍ୟବହାର ହୁଏ । ଏହା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଏକ ସଠିକ୍ ଉଦାହରଣ, ଯେଉଁମାନେ ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କ ଲାକ୍ଷଣିକ ସ୍ତ୍ରୀର ଭାଗ ହେବେ ।—୨ କରି. ୧୧:୨; ପ୍ରକା. ୨୧:୨, ୯.
▪ ମୁଦ୍ରାଙ୍କିତ: ପୁରାତନ ସମୟରେ କୌଣସି ଜିନିଷ କାହାର ଅଟେ କିମ୍ବା ଏହା ଉପରେ କାହାର ଅଧିକାର ଅଛି, ତାହା ନିଶ୍ଚିତ କରିବା ପାଇଁ ମୁଦ୍ରାଙ୍କନ କରାଯାଉଥିଲା, ଯାହା ଏକ ପ୍ରକାର ଦସ୍ତଖତ ଥିଲା । ଏହାଦ୍ୱାରା କୌଣସି ଚୁକ୍ତିକୁ ମଧ୍ୟ ନିଶ୍ଚିତ କରାଯାଉଥିଲା । ଅଭିଷିକ୍ତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନମାନଙ୍କ ଉପରେ ପବିତ୍ର ଶକ୍ତି ଜରିଆରେ ଲାକ୍ଷଣିକ ଭାବେ “ମୁଦ୍ରାଙ୍କିତ” କରାଯାଇଛି ବା ମୋହର ଦିଆଯାଇଛି ଯେ ସେମାନେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ନିଜ ଖାସ୍ ସମ୍ପତ୍ତି ହେବେ । (ଏଫି. ୧:୧୩, ୧୪) କିନ୍ତୁ ଏହି ମୁଦ୍ରାଙ୍କନ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନିଶ୍ଚିତ ହୋଇ ନ ଥାଏ । ଏହା ଜଣେ ବିଶ୍ୱସ୍ତ ଖ୍ରୀଷ୍ଟିୟାନଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁର ଠିକ୍ କିଛି ସମୟ ପୂର୍ବେ କିମ୍ବା ମହାକ୍ଳେଶର ଆରମ୍ଭ ହେବାର କିଛି ସମୟ ପୂର୍ବେ ସ୍ଥିର କରାଯାଏ ।—ଏଫି. ୪:୩୦; ପ୍ରକା. ୭:୨-୪.
ପ୍ର୧୧-ହି ୪/୧୫ ୨୮
ଆପଣ ଜାଣିଥିଲେ କି?
ଯେତେବେଳେ ପାଉଲ “ବିଜୟଯାତ୍ରା” ବିଷୟରେ କହିଲେ, ତାଙ୍କ ମନରେ କʼଣ ଥିଲା?
▪ ପାଉଲ ଲେଖିଲେ, “ଈଶ୍ୱର . . . ସବୁବେଳେ ଆମ୍ଭମାନଙ୍କୁ ଘେନି ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କଠାରେ ବିଜୟଯାତ୍ରା କରୁଅଛନ୍ତି, ଆଉ ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ତାହାଙ୍କ ଜ୍ଞାନରୂପ ସୁବାସ ଆମ୍ଭମାନଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରକାଶ କରୁଅଛନ୍ତି, କାରଣ ପରିତ୍ରାଣ ପାଉଥିବା ଓ ବିନାଶ ହେଉଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଆମ୍ଭେମାନେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିରେ ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କର ସୁଗନ୍ଧ ସ୍ୱରପ, ଏକ ପକ୍ଷର ଲୋକଙ୍କ ପ୍ରତି ମୃତ୍ୟୁଦାୟକ ଓ ଅନ୍ୟ ପକ୍ଷରେ ଲୋକଙ୍କ ପ୍ରତି ଜୀବନଦାୟକ ସୁବାସ ସ୍ୱରୂପ ।”—୨ କରି. ୨:୧୪-୧୬.
ରୋମୀୟମାନଙ୍କର ଏକ ପ୍ରଥା ଥିଲା ଯେ ଯେତେବେଳେ କୌଣସି ସେନାପତି ଦେଶର ଶତ୍ରୁମାନଙ୍କ ଉପରେ ଜୟ ହାସଲ କରି ଫେରୁଥିଲା, ତେବେ ତା ଖୁସିରେ ଏକ ବିଜୟଯାତ୍ରା କରାଯାଉଥିଲା ଏବଂ ପାଉଲଙ୍କ ମନରେ ଏହି ବିଜୟଯାତ୍ରା ଥିଲା । ଏଥିରେ ଯୁଦ୍ଧରେ ହାରିଥିବା ବନ୍ଦୀ ସୈନିକ ଏବଂ ଲୁଟି ଆଣିଥିବା ଜିନିଷପତ୍ରର ପ୍ରଦର୍ଶନ କରାଯାଉଥିଲା, ବଳିଦାନ ପାଇଁ ବଳଦ ନିଆଯାଉଥିଲା ଏବଂ ଲୋକେ ଜୟ ହାସଲ କରିଥିବା ସେନାପତି ଓ ତାଙ୍କ ସେନାର ଉଚ୍ଚ ସ୍ୱରରେ ଜୟଧ୍ୱନୀ କରୁଥିଲେ । ଶେଷରେ ବଳଦମାନଙ୍କୁ ବଳି ଦିଆଯାଉଥିଲା ଏବଂ ଅନେକ ବନ୍ଦୀମାନଙ୍କୁ ହତ୍ୟା କରାଯାଉଥିଲା ।
ଦି ଇଣ୍ଟରନେସନାଲ୍ ଷ୍ଟାଣ୍ଡାଡ୍ ବାଇବଲ ଏନସାଇକ୍ଲୋପିଡିଆ କହେ, “ରୋମୀୟମାନଙ୍କ ବିଜୟଯାତ୍ରାରେ ଧୂପ ଜଳାଇବାର ପ୍ରଥା ଥିଲା, ଆଉ ହୁଏତ ଏଥିରୁ” ଏହି ରୂପକ “ଖ୍ରୀଷ୍ଟଙ୍କର ସୁଗନ୍ଧ” କିମ୍ବା “ସୁବାସ” ନିଆଯାଇଛି, ଯାହା କିଛି ଲୋକଙ୍କ ପାଇଁ ଜୀବନଦାୟକ, କିନ୍ତୁ ଆଉ କିଛି ଲୋକଙ୍କ ପାଇଁ ମୃତ୍ୟୁଦାୟକ ସୂଚାଉ ଥିଲା । “ସେହି ସୁବାସ ଗୋଟିଏ ପକ୍ଷରେ ବିଜୟ ହାସଲ କରିଥିବା ଲୋକଙ୍କ ଜୟକୁ ଦର୍ଶାଉଥିଲା, କିନ୍ତୁ ଅନ୍ୟ ପକ୍ଷରେ ଏହା ବନ୍ଦୀମାନଙ୍କୁ ହୃଦୟଙ୍ଗମ କରାଉଥିଲା ଯେ ସେମାନଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ଅତି ନିକଟ ।”