ଜୀବନ ଓ ସେବା ସଭା ପୁସ୍ତିକା ପାଇଁ ରେଫରେନ୍ସ
୪-୧୦ ଜାନୁୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୧୮-୧୯
“ଆପଣଙ୍କ ଚାଲିଚଳନ ସର୍ବଦା ଶୁଦ୍ଧ ରହୁ”
ପ୍ର୧୯.୦୬-ହି ପୃ ୨୮ ¶୧
ଶୟତାନର ଏକ ଭୟଙ୍କର ଫାନ୍ଦ—ଏଥିରୁ କିପରି ରକ୍ଷା ପାଇବା ?
जब यहोवा आस-पास के राष्ट्रों के अनैतिक कामों का ज़िक्र कर रहा था, तो उसने इसराएलियों से कहा, “न ही तुम कनान के लोगों के जैसे काम करना, जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ । . . . वह देश अशुद्ध है और मैं उसमें रहनेवालों को उनके गुनाहों की सज़ा दूँगा ।” इसराएल के पवित्र परमेश्वर की नज़र में कनान के लोगों का रहन-सहन इतना घिनौना था कि इस वजह से वह देश अशुद्ध या दूषित हो गया था।—लैव्य. 18:3, 25.
ପ୍ର୧୭.୦୨-ହି ପୃ ୨୦ ¶୧୩
ଯିହୋବା ନିଜ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ମାର୍ଗଦର୍ଶନ ଦିଅନ୍ତି
13 वहीं दूसरी तरफ, दूसरे देश के अगुवे इंसानी बुद्धि के मुताबिक चलते थे जो बहुत सीमित होती है । मिसाल के लिए, कनानी राजा और उनके लोग घिनौने काम करते थे । वे बच्चों की बलि चढ़ाते थे, मूर्तियों को पूजते थे, अपने नज़दीकी रिश्तेदारों और जानवरों के साथ यौन-संबंध रखते थे । यही नहीं, वहाँ की औरतें औरतों के साथ और आदमी आदमियों के साथ संबंध रखते थे । (लैव्य. 18:6, 21-25) इसके अलावा, बैबिलोन और मिस्र के राजा साफ-सफाई के उन नियमों को नहीं मानते थे जिन्हें परमेश्वर के लोग मानते थे । (गिन. 19:13) परमेश्वर के लोग साफ देख सकते थे कि उनके अगुवे दूसरे देश के अगुवों से कितने अलग हैं । ये अगुवे उन्हें अपने शरीर को साफ-सुथरा रखने, उपासना के मामले में और लैंगिक मामलों में शुद्ध बने रहने का बढ़ावा देते थे । इससे साफ पता चलता है कि यहोवा उनकी अगुवाई कर रहा था ।
ପ୍ର୧୪-ହି ୧୦/୧ ପୃ ୭ ¶୨
ଈଶ୍ୱର କʼଣ ପଦକ୍ଷେପ ନେବେ ?
लेकिन उनका क्या होगा जो अपने तौर-तरीके बदलना नहीं चाहते और बुराई करने में लगे रहते हैं? ज़रा इस वादे पर गौर कीजिए: “धर्मी लोग [“धरती पर,” एन. डब्ल्यू.] बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे । दुष्ट लोग [धरती पर] से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे ।” (नीतिवचन 2:21, 22) जी हाँ, फिर दुनिया पर बुरे लोगों का असर नहीं होगा । उस शांति-भरे माहौल में, परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले इंसान धीरे-धीरे पाप और असिद्धता से आज़ाद कर दिए जाएँगे जो उन्हें आदम से विरासत में मिले हैं।—रोमियों 6:17, 18; 8:21.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୦୬-ହି ୭/୧ ପୃ ୧୪ ¶୧୧
“ମୁଁ ତୁମ୍ଭର ବ୍ୟବସ୍ଥାକୁ କିପରି ପ୍ରିୟ ମଣେ”
୧୧ ମୋଶାଙ୍କ ବ୍ୟବସ୍ଥାର ଆଉ ଏକ ନିୟମରୁ ସ୍ପଷ୍ଟଭାବେ ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ଈଶ୍ୱର ନିଜ ଲୋକମାନଙ୍କ ଭଲମନ୍ଦ ବିଷୟରେ ବହୁତ ଚିନ୍ତା କରୁଥିଲେ । ସେହି ନିୟମ ଶସ୍ୟ ଗୋଟାଇବା ବିଷୟରେ ଥିଲା । ଯିହୋବା ଆଜ୍ଞା ଦେଇଥିଲେ ଯେ ଯେତେବେଳେ ଜଣେ ଇସ୍ରାଏଲୀୟ ଚାଷୀ ନିଜ କ୍ଷେତରେ ଫସଲ କାଟେ, ସେତେବେଳେ ସେ ଆବଶ୍ୟକ କରୁଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କୁ ବାକି ରହିଥିବା ଫସଲକୁ ଗୋଟାଇବା ପାଇଁ କିମ୍ବା ସଂଗ୍ରହ କରିବା ପାଇଁ ଅନୁମତି ଦେବା ଉଚିତ୍ । ଚାଷୀମାନଙ୍କୁ କୁହାଯାଇଥିଲା ଯେ ଯେତେବେଳେ ସେମାନେ ଫସଲ କାଟିବେ, ସେମାନେ କ୍ଷେତର କୋଣଗୁଡ଼ିକରେ ଥିବା ଫସଲକୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଭାବେ ନ କାଟନ୍ତୁ । ଏପରିକି ଜୀତ ଗଛରୁ କିମ୍ବା ଅଙ୍ଗୁର ଗଛରୁ ସବୁ ଫଳ ନ ତୋଳନ୍ତୁ । ଯଦି କେହି କ୍ଷେତରୁ ଗହମର କେଣ୍ଡାଗୁଡ଼ିକୁ ଆଣିବାକୁ ଭୁଲିଯାଉଥିଲା, ତାହେଲେ ସେ ପୁଣି ତାହା ଆଣିବା ମନା ଥିଲା । ଏହା ଗରିବ, ବିଦେଶୀୟ, ଅନାଥ ଓ ବିଧବାମାନଙ୍କ ପାଇଁ ପ୍ରେମଭରା ବ୍ୟବସ୍ଥା ଥିଲା । ଏହା ସତ ଯେ ଶସ୍ୟ ଗୋଟାଇବା ପାଇଁ ଏମାନଙ୍କୁ ବହୁତ ପରିଶ୍ରମ କରିବାର ଥିଲା, କିନ୍ତୁ ଏ ନିୟମ ଯୋଗୁଁ ସେମାନଙ୍କୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଖରେ ଭିକ ତ ମାଗିବାକୁ ପଡ଼ୁ ନ ଥିଲା ।—ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୧୯:୯, ୧୦; ଦ୍ୱିତୀୟ ବିବରଣ ୨୪:୧୯-୨୨; ଗୀତସଂହିତା ୩୭:୨୫.
୧୧-୧୭ ଜାନୁୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୨୦-୨୧
“ଯିହୋବା ନିଜ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଜଗତରୁ ଭିନ୍ନ କରିଛନ୍ତି”
ପ୍ର୦୪-ହି ୧୦/୧୫ ପୃ ୧୧ ¶୧୨
କʼଣ ଆପଣ ପାରଦୀଶର ଆଶା ଉପରେ ଭରସା କରିପାରିବେ ?
12 लेकिन एक बात है जिसे हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए । परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा था: “जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभों को माना करना, इसलिये कि तुम सामर्थी होकर उस देश में . . . प्रवेश करके उसके अधिकारी हो जाओ ।” (व्यवस्थाविवरण 11:8) लैव्यव्यवस्था 20:22, 24 में भी उसी देश का ज़िक्र है: “तुम मेरी सब विधियों और मेरे सब नियमों को समझ के साथ मानना; जिससे यह न हो कि जिस देश में मैं तुम्हें लिये जा रहा हूं वह तुम को उगल देवे । और मैं तुम लोगों से कहता हूं, कि तुम तो उनकी भूमि के अधिकारी होगे, और मैं इस देश को जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम्हारे अधिकार में कर दूंगा ।” जी हाँ, इस्राएलियों को वादा किए गए देश में बने रहने के लिए ज़रूरी था कि वे यहोवा परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखें । जब उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ दिया, तभी परमेश्वर ने उनको बाबुलियों के हवाले कर दिया । बाबुलियों ने उन पर फतह हासिल की और उन्हें अपने देश से निकाल दिया ।
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୧୧୯୯
ଉତ୍ତରାଧିକାରୀ
एक व्यक्ति की मौत पर उसकी जो ज़मीन-जायदाद उसके वारिस या किसी और हकदार को मिलती है, उसे विरासत कहते हैं । ऐसी कोई भी चीज़ जो माता-पिता से या पुरखों से आनेवाली पीढ़ियों को मिलती है, वह भी विरासत होती है । इब्रानी भाषा में विरासत के लिए खास तौर से जो क्रिया इस्तेमाल होती है, वह है नशाल (संज्ञा, नशाला) । इसका मतलब है कोई चीज़ बापदादों से विरासत में पाना या आनेवाली पीढ़ी को देना । (गि 26:55; यहे 46:18) इब्रानी में विरासत के लिए एक और क्रिया इस्तेमाल होती है । वह है याराश । कुछ आयतों में इस क्रिया का मतलब ‘वारिस बनना’ है, मगर ज़्यादातर आयतों में इसका मतलब है कोई ज़मीन-जायदाद ‘अधिकार में करना ।’ (उत 15:3; लैव 20:24) इस क्रिया का एक और मतलब है, सैनिक हमला करके किसी इलाके पर ‘कब्ज़ा करना’ और वहाँ के लोगों को ‘खदेड़ देना ।’ (व्य 2:12; 31:3) यूनानी में विरासत के लिए शब्द है, क्लेरोस । इसका असल में मतलब था, ‘चिट्ठी ।’ बाद में इस शब्द का मतलब “हिस्सा” और “विरासत” भी समझा जाने लगा ।–मत 27:35; प्रेष 1:17; 26:18.
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୩୧୭ ¶୨
ପକ୍ଷୀ
जल-प्रलय के बाद नूह ने जानवरों के साथ-साथ “शुद्ध पंछियों” की भी बलि चढ़ायी । (उत 8:18-20) इसके बाद से परमेश्वर ने इंसान को पक्षियों का माँस खाने की इजाज़त दे दी । बस उन्हें उनका खून नहीं खाना था । (उत 9:1-4; लैव 7:26; 17:13 से तुलना करें ।) परमेश्वर ने शायद किसी तरह यह ज़ाहिर किया था कि वह सिर्फ कुछ पक्षियों का बलिदान स्वीकार करेगा । शायद इसी कारण से उस वक्त कुछ पक्षियों को शुद्ध कहा गया था । बाइबल से पता चलता है कि मूसा का कानून आने तक खाने के मामले में किसी भी पक्षी को अशुद्ध नहीं कहा गया था । बाद में मूसा के कानून में कुछ पक्षियों को “अशुद्ध” बताया गया, जिसका मतलब यह था कि उन्हें खाना मना था । (लैव 11:13-19, 46, 47; 20:25; व्य 14:11-20) यह साफ नहीं बताया गया है कि किन कारणों से कुछ पक्षियों को “अशुद्ध” कहा गया था । हालाँकि जिन पक्षियों को अशुद्ध कहा गया था उनमें से ज़्यादातर पक्षी शिकार करते हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें इसी वजह से अशुद्ध कहा गया था । कुछ ऐसे पक्षियों को भी अशुद्ध कहा गया था जो शिकार नहीं करते । जब नया करार लागू हुआ, तो यह नियम हटा दिया गया कि अशुद्ध पक्षियों को खाना मना है । यह बात परमेश्वर ने एक दर्शन में पतरस को बतायी थी ।—प्रेष 10:9-15.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୦୪-ହି ୯/୧୫ ପୃ ୨୭ ¶୩
ଲେବୀୟ ପୁସ୍ତକ ବହିର ମୁଖ୍ୟାଂଶ
ଲେବୀ ୧୪:୧—ନିଜ ଶରୀରକୁ କ୍ଷତବିକ୍ଷତ ବା କଟାକଟି କରିବା ଦେଖାଏ ଯେ ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି ନିଜ ଶରୀରକୁ ଆଦର କରେ ନାହିଁ ଏବଂ ଏହି ପ୍ରଥା ମିଥ୍ୟା ଧର୍ମ ସହ ମଧ୍ୟ ଜଡ଼ିତ ହୋଇପାରେ । ତେଣୁ ଆମେ ଏହାଠାରୁ ଦୂରେଇ ରହିବା ଉଚିତ୍ । (୧ ରାଜା ୧୮:୨୫-୨୮) ମୃତ ବ୍ୟକ୍ତିମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଏହିପରି ଭାବେ ଶୋକ କରିବା ଠିକ୍ ହେବ ନାହିଁ, କାରଣ ଆମ ପାଖରେ ପୁନରୁତ୍ଥାନର ଆଶା ଅଛି ।
୧୮-୨୪ ଜାନୁୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୨୨-୨୩
“ଇସ୍ରାଏଲୀୟମାନଙ୍କର ପର୍ବଗୁଡ଼ିକରୁ ଆମେ କʼଣ ଶିଖୁ ?”
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୮୨୬-୮୨୭
ଖମୀରଶୂନ୍ୟ ରୋଟୀର ପର୍ବ
बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के पहले दिन एक खास सभा होती थी । यह पहला दिन सब्त भी होता था । इस त्योहार के दूसरे दिन यानी नीसान 16 को जौ की फसल के पहले फल का एक पूला लाकर याजक को दिया जाता था । इसराएल देश में जौ की फसल ही साल की सबसे पहली फसल होती थी । इसराएली इस त्योहार से पहले नयी फसल का न तो अनाज खा सकते थे, न उस अनाज से बनी रोटी और न ही उसे भूनकर खा सकते थे । जब याजक को जौ का पूला लाकर दिया जाता, तो वह यहोवा के सामने उसे आगे-पीछे हिलाता था । ऐसा करना उस पूले को यहोवा के लिए अर्पित करने जैसा था । इसके अलावा, एक साल के नर मेम्ने की होम-बलि, तेल मिलाया हुआ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना था । (लैव 23:6-14) आगे चलकर याजक अनाज या उससे बने आटे को वेदी पर जलाने लगे, मगर कानून में ऐसा करने के लिए नहीं बताया गया था । याजक जो पूला और दूसरे बलिदान यहोवा के लिए अर्पित करता था, वह सब पूरे राष्ट्र की तरफ से होता था । इसके अलावा, ऐसे हर परिवार और व्यक्ति को भी धन्यवाद बलियाँ चढ़ानी थीं जिनकी इसराएल में विरासत की ज़मीन होती थी।—निर्ग 23:19; व्य 26:1, 2.
त्योहार मनाने का कारण । इस त्योहार में लोगों को बिन-खमीर की रोटियाँ खानी थीं, क्योंकि यहोवा ने मूसा के ज़रिए ऐसा करने की सख्त हिदायत दी थी । निर्गमन 12:14-20 में इस बारे में लिखा है । आयत 19 कहती है, “इन सात दिनों के दौरान तुम्हारे घरों में खमीरा आटा बिलकुल भी न पाया जाए ।” व्यवस्थाविवरण 16:3 में बिन-खमीर की रोटियों को ‘दुख की रोटियाँ’ कहा गया है । हर साल जब यहूदी इस त्योहार में ये रोटियाँ खाते, तो उन्हें याद रहता कि उन्होंने हड़बड़ी में मिस्र देश छोड़ा था । ऐसे में उनके पास आटे में खमीर मिलाने के लिए भी वक्त नहीं था । (निर्ग 12:34) उन्हें याद रहता कि मिस्र में गुलामी करते समय उन्होंने कितना दुख झेला था । यहोवा ने उन्हें बताया कि उन्हें यह त्योहार क्यों मनाना है । उसने कहा, “तुम ऐसा इसलिए करना ताकि तुम्हें सारी ज़िंदगी वह दिन याद रहे जब तुम मिस्र से बाहर आए थे ।” जब इसराएली वादा किए गए देश में जाते, तो वे एक आज़ाद राष्ट्र बनते । तब उन्हें हमेशा याद रखना था कि यहोवा ने ही उन्हें छुड़ाया था । इसी को ध्यान में रखकर वे बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार मनाते जो कि इसराएलियों के तीन बड़े त्योहारों में से पहला त्योहार था।—व्य 16:16.
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୫୯୮ ¶୨
ପେଣ୍ଟିକଷ୍ଟ ପର୍ବ
पिन्तेकुस्त त्योहार के दिन गेहूँ की फसल का पहला फल यहोवा को अर्पित किया जाता था । इसे अर्पित करने का तरीका जौ का पहला फल चढ़ाने के तरीके से अलग था । एपा के दो-दहाई भाग मैदे में (4.4 लीटर के बराबर) खमीर मिलाकर दो रोटियाँ बनायी जाती थीं और उन्हें तंदूर में सेंका जाता था । इसराएलियों को “अपने घरों से” ये रोटियाँ लाकर उनका चढ़ावा देना था । इसका मतलब यह था कि वे रोज़ अपने लिए जो रोटियाँ बनाते थे, वैसे ही बनाकर लाना था । ये पवित्र चढ़ावे की रोटियाँ जैसी नहीं होतीं बल्कि आम रोटियाँ थीं । (लैव 23:17) उन्हें रोटियों के अलावा होम-बलियाँ, एक पाप-बलि और दो नर मेम्नों की शांति-बलियाँ भी चढ़ानी थीं । याजक रोटियों और मेम्नों के टुकड़ों के नीचे हाथ रखता और उन्हें यहोवा के सामने आगे-पीछे हिलाता था । ऐसा करना यहोवा के सामने ये सब अर्पित करने जैसा था । जब ये सब यहोवा को अर्पित कर दिए जाते, तो इसके बाद याजक उन्हें शांति-बलि के तौर पर खा सकता था।—लैव 23:18-20.
ପ୍ର୧୪-ହି ୫/୧୫ ପୃ ୨୮ ¶୧୧
କʼଣ ଆପଣ ଯିହୋବାଙ୍କ ସଂଗଠନ ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛନ୍ତି ?
11 यहोवा का संगठन हमें पौलुस की इस सलाह पर चलने का बढ़ावा देता है: “आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें, और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है । बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ, और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो ।” (इब्रा. 10:24, 25) पुराने ज़माने में इसराएली यहोवा की उपासना करने और उसके ज़रिए सिखलाए जाने के लिए नियमित तौर पर इकट्ठा होते थे । नहेमायाह के ज़माने में मनाया जानेवाला झोपड़ियों का त्योहार ऐसा ही एक खुशी का मौका था । (निर्ग. 23:15, 16; नहे. 8:9-18) आज हमारे ज़माने में भी सभाएँ, सम्मेलन और अधिवेशन होते हैं । हमें इन सभी मौकों पर हाज़िर होने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि ये हमें यहोवा के करीब बने रहने और उसकी सेवा में खुशी पाने में मदद देते हैं ।—तीतु. 2:2.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୧୯.୦୨-ହି ପୃ ୩ ¶୩
ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ ରହନ୍ତୁ !
୩ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ସେବକମାନେ କିପରି ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ ରହିପାରିବେ ? ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ହୃଦୟରୁ ଯିହୋବାଙ୍କୁ ପ୍ରେମ କରି ଓ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପରିସ୍ଥିତିରେ ବିଶ୍ୱସ୍ତ ରହି । ଏପରି କଲେ ଆମେ ସବୁବେଳେ ଯିହୋବା ଯେଉଁ କାମଗୁଡ଼ିକରେ ଖୁସି ହୁଅନ୍ତି, ସେହି କାମ କରିବା । ଆସନ୍ତୁ ଦେଖିବା ଯେ ବାଇବଲରେ “ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ” ଶବ୍ଦ କିପରି ବ୍ୟବହାର କରାଯାଇଛି । ଯେଉଁ ଏବ୍ରୀ ଶବ୍ଦର ଅନୁବାଦ “ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ” କରାଯାଇଛି, ତାର ମୂଳ ଅର୍ଥ ହେଉଛି, “ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ, ଯେଉଁଥିରେ କୌଣସି ଖୁଣ ବା ଦୋଷ ନାହିଁ ।” ଉଦାହରଣ ପାଇଁ, ଇସ୍ରାଏଲୀୟମାନେ ଯିହୋବାଙ୍କୁ ପଶୁ ବଳି ଚଢ଼ାଉଥିଲେ । ବ୍ୟବସ୍ଥାରେ କୁହାଯାଇଥିଲା ଯେ ବଳି ପାଇଁ ଏପରି ପଶୁ ଅଣାଯିବା କଥା, ଯେଉଁଥିରେ କୌଣସି ଖୁଣ ବା ଦୋଷ ନ ଥିବ । (ଲେବୀ. ୨୨:୨୧, ୨୨) ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଏପରି ପଶୁର ବଳି ଚଢ଼ାଇବାର ନ ଥିଲା, ଯାହା ଲେଙ୍ଗଡ଼ା କିମ୍ବା ରୋଗୀ ହୋଇଥିବ । କିମ୍ବା ତାର ଗୋଟିଏ ଆଖି କିମ୍ବା କାନ ନ ଥିବ । ଯିହୋବାଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ବହୁତ ମହତ୍ତ୍ୱ ରଖୁଥିଲା ଯେ ପଶୁ ସୁସ୍ଥ ହୋଇଥିବ ଏବଂ ତାଠାରେ କୌଣସି ଦୋଷ ନ ଥିବ । (ମଲାଖି ୧:୬-୯) ଆମେ ଯିହୋବାଙ୍କ ଭାବନାଗୁଡ଼ିକୁ ବୁଝିପାରୁ, କାରଣ ଯେତେବେଳେ ଆମେ କୌଣସି ଜିନିଷ କିଣୁ, ସେତେବେଳେ ପ୍ରଥମେ ଆମେ ଦେଖୁ ଯେ ସେଇ ଜିନିଷରେ କୌଣସି ତ୍ରୁଟି ତ ନାହିଁ, କିମ୍ବା ତାର ସବୁ ଅଂଶ ଅଛି କି ନାହିଁ । ଏପରିକି ଆମେ କୌଣସି ବହି କିମ୍ବା ଉପକରଣ କିମ୍ବା ଫଳ କିଣିବା ସମୟରେ ମଧ୍ୟ ଆମେ ଏପରି ଜିନିଷ ଚାହୁଁ, ଯାହା ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ଥିବ ଏବଂ ପୂରାପୂରି ଠିକ୍ ଥିବ । ଯିହୋବା ମଧ୍ୟ ଚାହାନ୍ତି ଯେ ତାହାଙ୍କ ପାଇଁ ଆମ ପ୍ରେମ ଓ ବିଶ୍ୱସ୍ତତା ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ହେଉ, ସେଥିରେ କୌଣସି ଖୁଣ ବା ଦୋଷ ନ ରହୁ ।
୨୫-୩୧ ଜାନୁୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୨୪-୨୫
“ଇସ୍ରାଏଲରେ ଯୋବେଲ ବର୍ଷ ଓ ଭବିଷ୍ୟତରେ ମୁକ୍ତି”
ପ୍ର୧୯.୧୨-ହି ପୃ ୮ ¶୩
3 यीशु जिस रिहाई की बात कर रहा था, उसे अच्छी तरह समझने के लिए आइए पहले छुटकारे के उस इंतज़ाम पर गौर करें, जो परमेश्वर ने इसराएलियों के लिए किया था । यहोवा ने उनसे कहा, “तुम 50वें साल को पवित्र मानना और देश के सभी निवासियों के लिए छुटकारे का ऐलान करना । तुम सबके लिए 50वाँ साल छुटकारे का साल होगा । उस साल तुममें से हर किसी को उसकी बेची हुई जायदाद लौटा दी जाएगी । हर कोई अपने परिवार के पास लौट जाए ।” (लैव्यव्यवस्था 25:8-12 पढ़िए ।) पिछले लेख में हमने देखा था कि हर हफ्ते सब्त मनाने से इसराएलियों को फायदा हुआ । लेकिन छुटकारे के साल से उन्हें क्या फायदा होता? मान लीजिए, एक इसराएली कर्ज़ में डूबा है । कर्ज़ चुकाने के लिए उसे मजबूरन अपनी ज़मीन बेचनी पड़ती है । लेकिन फिर छुटकारे का साल आता है और उसे उसकी ‘जायदाद लौटा दी जाती है ।’ अब वह अपनी ज़मीन अपने बच्चों के लिए बचाकर रख सकता है । एक और हालात पर ध्यान दीजिए । एक इसराएली बड़ी मुसीबत में है । उस पर बहुत बड़ा कर्ज़ है और उसे उतारने के लिए उसे अपने बच्चे को या फिर खुद को गुलामी में बेचना पड़ता है । लेकिन छुटकारे के साल वह दास “अपने परिवार के पास लौट” जाता है । इस इंतज़ाम की वजह से कोई भी हमेशा के लिए दास नहीं बना रहता । सच में, यहोवा को अपने लोगों की कितनी परवाह थी !
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୧୨୦୦ ¶୨
ଉତ୍ତରାଧିକାରୀ
इसराएल में हर परिवार की जो ज़मीन होती थी, वह विरासत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलती थी । इसलिए किसी को भी अपनी ज़मीन हमेशा के लिए बेचने का अधिकार नहीं था । अगर एक इसराएली अपनी ज़मीन बेचता, तो वह उसे सिर्फ पट्टे पर दे सकता था, यानी वह ज़मीन सिर्फ कुछ समय के लिए ही खरीदनेवाले की होती । उसकी ज़मीन में छुटकारे के साल तक जो पैदावार होगी, उस पैदावार की बराबर कीमत पर वह अपनी ज़मीन पट्टे पर दे सकता था । छुटकारे के साल उन सभी इसराएलियों को उनकी ज़मीन लौटा दी जाती थी जिन्होंने उसे बेच दिया था । अगर एक इसराएली के बस में होता, तो वह छुटकारे का साल आने से पहले खुद उसे वापस खरीद सकता था । (लैव 25:13, 15, 23, 24) जिनका घर खुली बस्ती में होता, वे अगर अपना घर बेच देते, तो उन्हें भी छुटकारे के साल अपना घर वापस मिल जाता था, क्योंकि खुली बस्तियों में जो घर होते थे, उन्हें खेत का हिस्सा माना जाता था । लेकिन अगर एक इसराएली का घर शहरपनाहवाले नगर में होता और उसे वह बेच देता, तो उसके पास अपना घर वापस खरीदने का हक एक साल तक होता था । अगर वह एक साल के अंदर अपना घर वापस नहीं खरीद पाता तो छुटकारे के साल उसे घर वापस नहीं मिलता । इस मामले में लेवियों के लिए कानून थोड़ा अलग था । उनके शहरों में जो घर थे, उन्हें अगर लेवी बेच देते, तो वे कभी-भी उन्हें वापस खरीद सकते थे । लेवियों के पास अपना घर वापस खरीदने का अधिकार हमेशा के लिए होता था, क्योंकि इसराएल देश में उन्हें विरासत की कोई ज़मीन नहीं दी गयी थी।—लैव 25:29-34.
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୧୨୨-୧୨୩
ଯୋବେଲ ବର୍ଷ
जब इसराएलियों ने छुटकारे के साल के बारे में परमेश्वर का दिया कानून माना, तो इससे देश का भला हुआ । किसी को भी तंगी नहीं झेलनी पड़ी । आज कई देशों का हाल यह है कि लोग या तो बहुत अमीर होते हैं या बहुत गरीब, मगर छुटकारे के साल का नियम मानने से इसराएल देश की ऐसी हालत नहीं होती थी । कोई भी गरीब या बेरोज़गार नहीं होता बल्कि सबके पास काम होता । उनकी मेहनत की वजह से देश की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती थी । यहोवा की आशीष से पैदावार अच्छी होती । इसके अलावा लोगों को परमेश्वर के नियमों के बारे में सिखाया जाता था और जब वे उन नियमों को मानते तो देश में खुशहाली होती थी । इसराएल में जब परमेश्वर के बताए तरीके से हुकूमत चलती, तो ही सबकुछ कायदे से और सही-सही होता।—यश 33:22.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୧୦-ହି ୧/୧ ପୃ ୧୨ ¶୩
ଯେତେବେଳେ କେହି ଆପଣଙ୍କ ମନକୁ ଆଘାତ ଦିଅନ୍ତି
ଯଦି ଦୁଇ ଜଣ ଇସ୍ରାଏଲୀୟଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ମାଡ଼ପିଟ୍ ହୁଏ, ଆଉ ପ୍ରଥମ ଜଣ ଅନ୍ୟଜଣର ଆଖିକୁ ଫୁଟାଇ ଦିଏ, ତେବେ ଇସ୍ରାଏଲ ଜାତିକୁ ଦିଆଯାଇଥିବା ବ୍ୟବସ୍ଥା ଅନୁସାରେ ପ୍ରଥମ ବ୍ୟକ୍ତିର ଆଖିକୁ ବି ଫୁଟାଇ ଦେବାର ଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏହି ପ୍ରତିଶୋଧ ଆଖି ଫୁଟି ଯାଇଥିବା ବ୍ୟକ୍ତି କିମ୍ବା ତାʼ ପରିବାରର ସଦସ୍ୟମାନେ ନେଇପାରି ନ ଥାʼନ୍ତେ । ବରଂ ବ୍ୟବସ୍ଥାରେ କୁହାଯାଇଥିଲା ସେ ମାମଲାକୁ ନିଯୁକ୍ତ କରାଯାଇଥିବା ବିଚାରକର୍ତ୍ତାମାନଙ୍କ ପାଖକୁ ନେବାର ଥିଲା, ଯାହାଫଳରେ ମାମଲାକୁ ସଠିକ୍ ଭାବେ ସମାଧାନ କରାଯାଇପାରନ୍ତା । ଏ ଉଦାହରଣରୁ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବେ ଜଣାପଡ଼େ, ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଭଲ ଭାବେ ଜଣାଥିଲା ଯେ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଜାଣିଶୁଣି ହିଂସାର କାମ କଲେ, ସେମାନଙ୍କ ସହ ବି ତାହା କରାଯିବ । ତେଣୁ ସେମାନେ ବିନା କାରଣରେ ପ୍ରତିଶୋଧ ନେଉ ନ ଥିଲେ । କିନ୍ତୁ ଏ ମାମଲାରେ ଆଉ ବି କିଛି ସାମିଲ୍ ଥିଲା ।
୧-୭ ଫେବୃୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଲେବୀ ପୁସ୍ତକ ୨୬-୨୭
“ଯିହୋବାଙ୍କ ଆଶିଷ କିପରି ପାଇବା ?”
ପ୍ର୦୮-ହି ୪/୧୫ ପୃ ୪ ¶୮
‘ଅସାର ବିଷୟଠାରୁ’ ଦୂରେଇ ରହନ୍ତୁ
8 “धन” किस मायने में हमारे लिए देवता बन सकता है? इस बात को समझने के लिए आइए एक मिसाल लें । प्राचीन इस्राएल के एक खेत में पड़ा एक पत्थर, घर या दीवार बनाने के काम आ सकता था । लेकिन अगर उसी पत्थर के आगे “दण्डवत्” किया जाता, तो यह यहोवा के लोगों के लिए ठोकर का कारण बन सकता था । (लैव्य. 26:1) उसी तरह, पैसे की अपनी एक जगह है । दुनिया में जीने के लिए हमें इसकी ज़रूरत है । यहाँ तक कि हम यहोवा की सेवा में भी इसका अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं । (सभो. 7:12; लूका 16:9) लेकिन अगर हम धन-दौलत कमाने को मसीही सेवा से ज़्यादा अहमियत देने लगें, तो यह हमारे लिए देवता बन सकता है । (1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए ।) इस दुनिया में जहाँ लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ है, वहाँ हमें इस मामले में सही नज़रिया बनाए रखने की ज़रूरत है।—1 तीमु. 6:17-19.
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୨୨୩ ¶୩
ବିସ୍ମୟ
यहोवा मूसा के साथ बहुत ही अनोखे तरीके से पेश आया और उसने मूसा को कई खास ज़िम्मेदारियाँ दीं । इसलिए परमेश्वर के लोग मूसा का गहरा आदर (इब्रानी, मोहरा) करते थे । (व्य 34:10, 12; निर्ग 19:9) वे मूसा के अधीन रहते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यहोवा ने मूसा को अधिकार सौंपा है । वे जानते थे कि यहोवा मूसा के ज़रिए ही उनसे बात कर रहा है । इसराएलियों को बताया गया था कि उनके दिल में यहोवा के पवित्र-स्थान के लिए भी गहरा आदर होना चाहिए । (लैव 19:30; 26:2) पवित्र-स्थान का गहरा आदर करने की वजह से उन्हें यहोवा की उपासना उसी तरीके से करनी थी जैसे यहोवा ने उन्हें बताया था । साथ ही उन्हें पवित्र-स्थान में ऐसा कुछ नहीं करना था जो उसकी आज्ञाओं के खिलाफ होता ।
ପ୍ର୯୨-ହି ୧/୧ ପୃ ୨୦ ¶୧୦
‘ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଶାନ୍ତିକୁ’ ଆପଣଙ୍କ ହୃଦୟକୁ ସୁରକ୍ଷିତ ରଖିବାକୁ ଦିଅନ୍ତୁ
10 यहोवा ने इसराएलियों से कहा था, “अगर तुम मेरी विधियों पर चलते रहोगे, मेरी आज्ञाओं का पालन करते रहोगे और उनके मुताबिक चलोगे, तो मैं तुम्हारे लिए वक्त पर बारिश कराऊँगा और देश की ज़मीन पैदावार देगी और मैदान के पेड़ फल दिया करेंगे । मैं इस देश को शांति दूँगा और तुम चैन की नींद सो पाओगे, कोई तुम्हें नहीं डराएगा । मैं देश से खूँखार जंगली जानवरों को दूर कर दूँगा और कोई भी तलवार लेकर तुम्हारे देश पर हमला नहीं करेगा । मैं तुम्हारे बीच चलूँगा-फिरूँगा और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँगा और तुम भी मेरे लोग बने रहोगे ।” (लैव्यव्यवस्था 26:3, 4, 6, 12) इसका क्या मतलब है कि इसराएल देश में शांति होती? देश पर दुश्मन हमला नहीं करते, देश फलता-फूलता और लोगों का यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता रहता । लेकिन यह सब तभी होता जब लोग यहोवा का कानून मानते।—भजन 119:165.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୬୧୭
ମହାମାରୀ
ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଆଜ୍ଞାକୁ ଉଲ୍ଲଙ୍ଘନ କରିବା ଯୋଗୁଁ ମହାମାରୀ ବ୍ୟାପିଲା । ଇସ୍ରାଏଲ ରାଷ୍ଟ୍ରକୁ ପୂର୍ବରୁ ସତର୍କ କରାଯାଇଥିଲା ଯେ ଯଦି ସେମାନେ ଜାଣିଶୁଣି ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ନିୟମକୁ ଉଲ୍ଲଙ୍ଘନ କରିବେ, ତାହେଲେ ସେ ସେମାନଙ୍କ ‘ମଧ୍ୟରେ ମହାମାରୀ ପଠାଇବେ ।’ (ଲେବୀ ୨୬:୧୪-୧୬, ୨୩-୨୫; ଦ୍ୱିବି ୨୮:୧୫, ୨୧, ୨୨) ବାଇବଲର ଅନେକ ପଦଗୁଡ଼ିକରୁ ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ଭଲ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ଓ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ସହ ସମ୍ପର୍କ ତାହାଙ୍କ ଆଶିଷ ଦ୍ୱାରା ହିଁ ସମ୍ଭବ । (ଦ୍ୱିବି ୭:୧୨, ୧୫; ଗୀତ ୧୦୩:୧-୩; ହିତୋ ୩:୧, ୨, ୭, ୮; ୪:୨୧, ୨୨; ପ୍ରକା ୨୧:୧-୪) କିନ୍ତୁ ମହାମାରୀ ଓ ରୋଗର କାରଣ ପାପ ଓ ଅସିଦ୍ଧତା ଅଟେ । (ଯାତ୍ରା ୧୫:୨୬; ଦ୍ୱିବି ୨୮:୫୮-୬୧; ଯିଶା ୫୩:୪, ୫; ମାଥି ୯:୨-୬, ୧୨; ଯୋହ ୫:୧୪) ଏହା ସତ ଯେ ପ୍ରାଚୀନ ସମୟରେ ଯେତେବେଳେ କିଛି ଲୋକମାନେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ବିରୁଦ୍ଧରେ କାମ କଲେ, ସେତେବେଳେ ସେ ସେମାନଙ୍କୁ ଦଣ୍ଡ ଦେବା ପାଇଁ ସେମାନଙ୍କ ଉପରେ କିଛି ରୋଗ ଆଣିଲେ । ଯେପରି ମରୀୟମ, ଉଷୀୟ, ଗିହେଜୀଙ୍କ ଉପରେ ସେ କୁଷ୍ଠରୋଗ ଆଣିଲେ । (ଗଣ ୧୨:୧୦; ୨ବଂଶା ୨୬:୧୬-୨୧; ୨ରାଜା ୫:୨୫-୨୭) କିନ୍ତୁ ଅଧିକାଂଶ ସମୟରେ ଦେଖାଯାଇଛି ଯେ ଯେତେବେଳେ ଲୋକମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ କିମ୍ବା ରାଷ୍ଟ୍ରଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରେ ମହାମାରୀ ବ୍ୟାପିଲା, ତାହା ଯିହୋବାଙ୍କ ତରଫରୁ କୌଣସି ଦଣ୍ଡ ନ ଥିଲା । ଖରାପ କାମ କରିବା ଯୋଗୁଁ ହିଁ ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ରୋଗ ବ୍ୟାପିଲା, ଅର୍ଥାତ୍ ସେମାନେ ନିଜେ କରିଥିବା ଖରାପ କାମର ହିଁ ପ୍ରତିଫଳ ପାଇଲେ । ପାପ କରିବାର ଖରାପ ପ୍ରଭାବ ସେମାନଙ୍କ ଶରୀରରେ ପଡ଼ିଲା । ଏହିପରି ଭାବେ ସେମାନେ ଯାହା ବୁଣିଲେ ତାହା ହିଁ କାଟିଲେ । (ଗାଲା ୬:୭, ୮) ପ୍ରେରିତ ପାଉଲ କହିଲେ, ଯେଉଁ ଲୋକମାନେ ନୀଚ ଅନୈତିକ କାମ କଲେ, ସେମାନଙ୍କୁ ଈଶ୍ୱର ‘ଅଶୁଚିତାରେ ସମର୍ପଣ କଲେ, ଯେପରି ସେମାନଙ୍କ ଶରୀର ପରସ୍ପର ଦ୍ୱାରା କଳୁଷିତ ହୁଏ । ପୁଣି, ସେମାନେ ଆପଣା ଆପଣାଠାରେ ସ୍ୱ ସ୍ୱ ଭ୍ରଷ୍ଟତାର ସମୁଚିତ ପ୍ରତିଫଳ ପାଇଲେ ।’—ରୋମୀ ୧:୨୪-୨୭.
୮-୧୪ ଫେବୃୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଗଣନା ପୁସ୍ତକ ୧-୨
“ଯିହୋବା ନିଜ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ବ୍ୟବସ୍ଥିତ କରନ୍ତି”
ପ୍ର୯୪-ହି ୧୨/୧ ପୃ ୯ ¶୪
ଆମ ଜୀବନରେ ଯିହୋବାଙ୍କ ଉପାସନାର ଉଚିତ୍ ସ୍ଥାନ
4 यदि आप वीराने में डेरा डाले हुए इस्राएल को ऊपर से देख सकते, तो आपने क्या देखा होता? तंबुओं का एक विशाल, लेकिन सुव्यवस्थित क्रम, जिसमें संभवत: 30 लाख या उससे ज़्यादा लोग रह रहे थे, जो तीन-गोत्र विभाजनों के अनुसार उत्तर, दक्षिण, पूरब, और पश्चिम में समूहित किए गए थे । ज़्यादा क़रीब से देखने पर, आप छावनी के मध्य के आस-पास एक और समूहन भी देख पाते । इन चार थोड़े छोटे तंबुओं के झुंड में लेवी के गोत्र के परिवार रहते थे । छावनी के बीचोंबीच, कपड़े की दीवार से अलग किए गए एक क्षेत्र में एक अनोखा भवन था । यह ‘मिलापवाला तम्बू,’ या निवासस्थान था, जिसे उन इस्राएलियों ने यहोवा की योजनानुसार बनाया था जिनके “हृदय में बुद्धि का प्रकाश” था।—गिनती 1:52, 53; 2:3, 10, 17, 18, 25; निर्गमन 35:10.
ଇନସାଇଟ୍-୧ ପୃ ୩୯୭ ¶୪
ଛାଉଣି
इसराएलियों की छावनी बहुत बड़ी थी । सेना में जिन आदमियों के नाम लिखे गए थे, उनकी कुल गिनती 6,03,550 थी । उनके अलावा, इसराएलियों की छावनी में औरतें, बच्चे, बूढ़े, अपंग लोग, 22,000 लेवी और गैर-इसराएलियों की “एक मिली-जुली भीड़” भी थी । (निर्ग 12:38, 44; गि 3:21-34, 39) तो छावनी में सब लोगों की कुल गिनती 30,00,000 या उससे ज़्यादा रही होगी । हमें ठीक-ठीक नहीं पता कि वे सब कितने बड़े इलाके में डेरा डालते थे । बाइबल बताती है कि जब वे यरीहो के सामने मोआब के वीरानों में पहुँचे, तो उन्होंने “बेत-यशिमोत से लेकर दूर आबेल-शित्तीम तक” डेरा डाला था ।—गि 33:49.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୭୬୪
ନାମ ପଞ୍ଜିକରଣ
ଲୋକମାନଙ୍କ ଜାତି ଓ ପରିବାର ହିସାବରେ ସେମାନଙ୍କର ନାମ ଓ ବଂଶାବଳୀ ଲେଖାଯାଉଥିଲା । ବାଇବଲରେ ଯେଉଁଠାରେ ବି ଇସ୍ରାଏଲ ଦେଶରେ ନାମ ପଞ୍ଜିକରଣ କରାଯିବା ବିଷୟରେ ଲେଖାଅଛି, ତାହା କେବଳ ଜନଗଣନା ବା ଲୋକଙ୍କ ଗଣନା ପାଇଁ କରାଯାଇ ନ ଥିଲା । ଏହା ପରିବର୍ତ୍ତେ, ଏହି ନାମ ପଞ୍ଜିକରଣ ସାଧାରଣତଃ କର ଆଦାୟ କରିବା, ସେନାରେ ଲୋକଙ୍କୁ ଭର୍ତ୍ତି କରିବା ଓ ଲେବୀୟମାନଙ୍କୁ ପବିତ୍ର ସ୍ଥାନରେ ନିଯୁକ୍ତ କରିବା ପାଇଁ କରାଯାଇଥିଲା ।
୧୫-୨୧ ଫେବୃୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଗଣନା ପୁସ୍ତକ ୩-୪
“ଲେବୀୟମାନଙ୍କ ସେବା”
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୬୮୩ ¶୩
ଯାଜକ
कानून के करार में । जब यहोवा ने दसवें कहर में मिस्रियों के हर पहलौठे को मार डाला था, तब उसने कहा था कि उसने इसराएलियों के हर पहलौठे को अपने लिए अलग किया है । (निर्ग 12:29; गि 3:13) इसका मतलब यह था कि अब से इसराएलियों के सभी पहलौठों पर यहोवा का हक होता और वह उन्हें खास सेवा के लिए अलग से चुन लेता । परमेश्वर चाहता तो उन पहलौठों को पवित्र-स्थान की देखरेख करने और वहाँ याजकों के नाते सेवा करने का काम सौंप सकता था । मगर उनके बदले उसने लेवी गोत्र के सभी आदमियों को इस खास सेवा के लिए चुना । इसी वजह से इसराएल के बाकी 12 गोत्रों के आदमियों की जगह लेवी गोत्र के आदमियों को चुना गया । (यूसुफ के बेटे एप्रैम और मनश्शे के वंशजों को दो गोत्र माना जाता था, इसलिए लेवियों के अलावा 12 गोत्र थे ।) जब जन-गणना की गयी, तो पाया गया कि बाकी 12 गोत्रों के पहलौठों की गिनती लेवी आदमियों की गिनती से ज़्यादा थी । उनके 273 पहलौठे ज़्यादा थे । इसलिए परमेश्वर ने कहा कि उन 273 में से हर पहलौठे की फिरौती के लिए पाँच शेकेल (करीब 800 रुपए) दिए जाएँ । यह पैसा हारून और उसके बेटों को दिया जाना था । (गि 3:11-16, 40-51) परमेश्वर ने इस इंतज़ाम के बारे में बताने से पहले ही बता दिया था कि उसने लेवी गोत्र में से हारून के परिवार के आदमियों को याजक का काम करने के लिए चुन लिया है।—गि 1:1; 3:6-10.
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୨୪୧
ଲେବୀୟ
काम । लेवियों का गोत्र लेवी के तीन बेटों के घरानों से बना था । वे थे गेरशोन (गेरशोम), कहात और मरारी । (उत 46:11; 1इत 6:1, 16) वीराने में इन तीनों घरानों को पवित्र डेरे के पास छावनी डालने के लिए कहा गया था । कहात के घराने में से हारून का परिवार पवित्र डेरे के सामने यानी पूरब में छावनी डालता था । कहात के घराने के बाकी परिवार दक्षिण में छावनी डालते थे । गेरशोन के वंशज पश्चिम में और मरारी के वंशज उत्तर में छावनी डालते थे । (गि 3:23, 29, 35, 38) पवित्र डेरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए उसके हिस्से खोलना, उन्हें ढोकर ले जाना और फिर उन्हें दोबारा जोड़कर खड़ा करना, यह सब लेवियों का काम था । जब भी डेरा उठाने का समय आता, तो हारून और उसके बेटे उस परदे को उतार देते जो पवित्र भाग और परम-पवित्र भाग के बीच में होता था । फिर वे करार के संदूक को, वेदियों को और बाकी पवित्र चीज़ों और बरतनों को ढक देते थे । इसके बाद कहात के वंशज इन चीज़ों को ढोकर ले जाते थे । गेरशोन के वंशज तंबू के कपड़े, चादरें, परदे, आँगन की कनातें और तंबू की रस्सियाँ (ये रस्सियाँ शायद पवित्र डेरे की थीं) उठाकर ले जाते थे । मरारी के वंशज चौखटें, खंभे, तंबू की खूँटियाँ और दूसरी रस्सियाँ (ये रस्सियाँ शायद डेरे के आँगन की थीं) उठाकर ले जाते थे।—गि 1:50, 51; 3:25, 26, 30, 31, 36, 37; 4:4-33; 7:5-9.
ଇନସାଇଟ୍-୨ ପୃ ୨୪୧
ଲେବୀୟ
मूसा के दिनों में लेवी गोत्र के आदमी 30 साल की उम्र में पवित्र डेरे में सेवा शुरू करते थे । जैसे तंबू के हिस्से और उसका सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम । (गि 4:46-49) डेरे के कुछ काम वे 25 साल की उम्र से भी शुरू कर सकते थे । लेकिन शायद इस उम्र में वे भारी काम नहीं कर सकते थे, जैसे पवित्र डेरे को ढोकर ले जाना । (गि 8:24) राजा दाविद के दिनों में काम शुरू करने की उम्र घटाकर 20 कर दी गयी । दाविद ने उम्र घटाने की यह वजह बतायी कि अब डेरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की ज़रूरत नहीं थी । बहुत जल्द उसकी जगह मंदिर बननेवाला था । लेवियों को 50 की उम्र तक सेवा करनी थी । (गि 8:25, 26; 1इत 23:24-26) इसके बाद भी अगर कोई सेवा करना चाहता, तो यह उसकी मरज़ी थी । लेवियों के लिए ज़रूरी था कि उन्हें कानून का अच्छा ज्ञान हो । उन्हें अकसर लोगों के सामने कानून पढ़कर सुनाने और उसके बारे में सिखाने का काम दिया जाता था।—1इत 15:27; 2इत 5:12; 17:7-9; नहे 8:7-9.
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୦୬-ହି ୮/୧ ପୃ ୨୪ ¶୧୩
ନିଜଠାରେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଭୟରଖି ବୁଦ୍ଧିମାନ ହୁଅନ୍ତୁ !
୧୩ ସମସ୍ୟା ସମୟରେ ଯେତେବେଳେ ଯିହୋବା ଦାଉଦଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କଲେ, ସେତେବେଳେ ଦାଉଦ ଆହୁରି ଅଧିକ ଯିହୋବାଙ୍କୁ ଭୟ କରିବାକୁ ଲାଗିଲେ ଏବଂ ତାଙ୍କ ବିଶ୍ୱାସ ଆହୁରି ମଜବୁତ୍ ହେଲା । (ଗୀତସଂହିତା ୩୧:୨୨-୨୪) କିନ୍ତୁ ଧ୍ୟାନ ଦିଅନ୍ତୁ ଯେ ତିନୋଟି ଘଟଣାରେ ଦାଉଦଙ୍କଠାରେ କିଛି ସମୟ ପାଇଁ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ଭୟ ନ ଥିଲା ଏବଂ ଏହାର ପରିଣାମ ବହୁତ ଭୟଙ୍କର ହେଲା । ପ୍ରଥମ ଘଟଣାରେ ସେ ଯିହୋବାଙ୍କ ନିୟମ-ସିନ୍ଦୁକକୁ ଯିରୂଶାଲମ ଆଣିବା ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ଶଗଡ଼ ଗାଡ଼ିର ବ୍ୟବହାର କଲେ । କିନ୍ତୁ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ବ୍ୟବସ୍ଥାରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବେ ଲେଖାଯାଇଥିଲା ଯେ ଲେବୀୟମାନଙ୍କୁ ତାକୁ ନିଜ କାନ୍ଧରେ ଉଠାଇ ଆଣିବାର ଥିଲା । ତେଣୁ, ଯେତେବେଳେ ଉଷ ସେହି ଶଗଡ଼ ଗାଡ଼ିର ଆଗେ ଆଗେ ଚାଲୁଥିଲା ଏବଂ ନିୟମ-ସିନ୍ଦୁକ ପଡ଼ିଯିବା ସମୟରେ ତାକୁ ଧରିଲା, ଠିକ୍ ସେତିକିବେଳେ ଯିହୋବା ତାର “ଭ୍ରମ ସକାଶୁ” ତାକୁ ସେଠାରେ ମାରିଦେଲେ । ଅର୍ଥାତ୍ ଉଷ ନିୟମ-ସିନ୍ଦୁକକୁ ଆଦର ନ ଦେଖାଇବାରୁ ଯିହୋବା ତାକୁ ମାରିଦେଲେ । ଯଦିଓ ଉଷ ବହୁତ ବଡ଼ ପାପ କରିଥିଲା, କିନ୍ତୁ ଦେଖିବାକୁ ଗଲେ ଏଇ ଦୁଃଖଦ ଘଟଣା ପାଇଁ ଦାଉଦ ଦାୟୀ ଥିଲେ । ସେ ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ବ୍ୟବସ୍ଥାରେ ଦିଆଯାଇଥିବା ନିୟମକୁ ଭଲଭାବେ ପାଳନ କଲେ ନାହିଁ । ଈଶ୍ୱରଙ୍କୁ ଭୟ କରିବାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି, ତାହାଙ୍କ ଅନୁସାରେ କାମ କରିବା ।—୨ ଶାମୁୟେଲ ୬:୨-୯; ଗଣନା ପୁସ୍ତକ ୪:୧୫; ୭:୯.
୨୨-୨୮ ଫେବୃୟାରୀ
ବାଇବଲର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଧନ ପାଆନ୍ତୁ | ଗଣନା ପୁସ୍ତକ ୫-୬
“କʼଣ ଆପଣଙ୍କଠାରେ ନାସରୀୟମାନଙ୍କ ଭଳି ମନୋଭାବ ଅଛି ?”
ପ୍ର୦୪-ହି ୮/୧ ପୃ ୨୪ ¶୭
ଗଣନା ପୁସ୍ତକ ବହିର ମୁଖ୍ୟାଂଶ
गि 6:1-7. नाज़ीरों को अंगूर की बनी चीज़ों और हर तरह की शराब से परहेज़ करना था । इसके लिए उन्हें अपनी इच्छाओं का त्याग करने की ज़रूरत थी । उन्हें अपने बाल बढ़ाने थे क्योंकि लंबे बाल, यहोवा के अधीन रहने की निशानी थी, ठीक जैसे स्त्रियों को भी अपने पतियों या पिताओं के अधीन रहना था । नाज़ीरों को अपनी शुद्धता बनाए रखने के लिए किसी भी लाश से दूर रहना था, यहाँ तक कि अपने नज़दीकी रिश्तेदारों की लाश से भी । आज पूरे समय के सेवक नाज़ीरों की मिसाल पर चलते हैं । यहोवा और उसके इंतज़ामों के अधीन रहने के लिए वे भी त्याग की भावना दिखाते और अपनी ख्वाहिशों को दरकिनार कर देते हैं । हो सकता है, उन्हें यहोवा की सेवा के लिए किसी दूर देश जाना पड़े और इसलिए वे अपने किसी अज़ीज़ की मौत होने पर उसके अंतिम-संस्कार के लिए जा न सकें ।
ବହୁମୂଲ୍ୟ ରତ୍ନ
ପ୍ର୦୫-ହି ୧/୧୫ ପୃ ୩୦ ¶୨
ପାଠକମାନଙ୍କ ପ୍ରଶ୍ନ
କିନ୍ତୁ ଶାମ୍ଶୋନ୍ ଅନ୍ୟ ଏକ ଅର୍ଥରେ ନାସରୀୟ ଥିଲେ । ତାଙ୍କ ଜନ୍ମ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ଯିହୋବାଙ୍କ ସ୍ୱର୍ଗଦୂତ ତାଙ୍କ ମାଆଙ୍କୁ କହିଥିଲେ: “ତୁମ୍ଭେ ଗର୍ଭବତୀ ହୋଇ ପୁତ୍ର ପ୍ରସବ କରିବ, ଆଉ ତାହାର ମସ୍ତକରେ କ୍ଷୁର ଲାଗିବ ନାହିଁ; ଯେହେତୁ ସେ ବାଳକ ଗର୍ଭାବଧି ପରମେଶ୍ୱରଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ନାସରୀୟ ହେବ ଓ ସେ ପଲେଷ୍ଟୀୟମାନଙ୍କ ହସ୍ତରୁ ଇସ୍ରାଏଲକୁ ଉଦ୍ଧାର କରିବାକୁ ଆରମ୍ଭ କରିବ ।” (ବିଚାରକର୍ତ୍ତା ୧୩:୫) ଶାମ୍ଶୋନ୍ ନିଜେ ନାସରୀୟ ହେବେ ବୋଲି ଶପଥ କରି ନ ଥିଲେ । ଈଶ୍ୱର ନିଜେ ଶାମ୍ଶୋନ୍ଙ୍କୁ ତାଙ୍କ ଜନ୍ମ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ନାସରୀୟ ଭାବେ ନିଯୁକ୍ତ କରିଥିଲେ, ଆଉ ତାଙ୍କୁ ସାରାଜୀବନ ଏପରି ହିଁ ରହିବାର ଥିଲା । ଶବକୁ ଛୁଇଁବା ବିଷୟରେ ଯେଉଁ କଟକଣା ଥିଲା, ତାହା ତାଙ୍କ ଉପରେ ଲାଗୁ ହୋଇପାରି ନ ଥାʼନ୍ତା । ଯଦି ଏହା ଲାଗୁ ହୁଅନ୍ତା ଏବଂ ସେ ଅଜାଣତରେ କୌଣସି ଶବକୁ ଛୁଅନ୍ତେ, ତେବେ କʼଣ ସେ ପୁଣି ଜନ୍ମ ହୋଇ ନାସରୀୟର ଜୀବନ ପୁଣି ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଥାʼନ୍ତେ ? ନା । ଏହା ସ୍ପଷ୍ଟ ଯେ ଯେଉଁମାନେ ସାରାଜୀବନ ନାସରୀୟ ହୋଇ ରହୁଥିଲେ, ସେମାନଙ୍କଠାରୁ ଯାହା ଆଶା କରାଯାଉଥିଲା ଏବଂ ନିଜେ ନାସରୀୟ ହୋଇଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କଠାରୁ ଯାହା ଆଶା କରାଯାଉଥିଲା, ସେମଧ୍ୟରେ କିଛି ପାର୍ଥକ୍ୟ ଥିଲା ।