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  • mwbr23 ସେପ୍ଟେମ୍ବର ପୃଷ୍ଠା ୧-୧୪
  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले

ଏ ସମ୍ୱନ୍ଧରେ କୌଣସି ଭିଡିଓ ଉପଲବ୍ଧ ନାହିଁ ।

ଭିଡିଓ ଲୋଡିଙ୍ଗ୍ ହେବାରେ କିଛି ତ୍ରୁଟି ରହିଛି । ଆମେ ଦୁଃଖିତ ।

  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले
  • ଜୀବନ ଓ ସେବା ପାଇଁ ରେଫରେନ୍‌ସ—ସଭା ପୁସ୍ତିକା (୨୦୨୩)
  • ଉପଶୀର୍ଷକ
  • 4-10 सितंबर
  • 11-17 सितंबर
  • 18-24 सितंबर
  • 25 सितंबर–1 अक्टूबर
  • 2-8 अक्टूबर
  • 9-15 अक्टूबर
  • 16-22 अक्टूबर
  • 23-29 अक्टूबर
  • 30 अक्टूबर–5 नवंबर
ଜୀବନ ଓ ସେବା ପାଇଁ ରେଫରେନ୍‌ସ—ସଭା ପୁସ୍ତିକା (୨୦୨୩)
mwbr23 ସେପ୍ଟେମ୍ବର ପୃଷ୍ଠା ୧-୧୪

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

© 2023 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania

4-10 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | एस्तेर 1-2

“एस्तेर की तरह मर्यादा में रहिए”

प्र17.01 पेज 25 पै 11

मुश्‍किल हालात में भी आप मर्यादा में रह सकते हैं

11 जब हमारी खूब तारीफ की जाती है, तब भी हमारी परख हो सकती है कि हम मर्यादा में रहते हैं या नहीं। एस्तेर की इसी तरह परख हुई। उसकी बहुत तारीफ की गयी क्योंकि वह फारस की खूबसूरत लड़कियों में से एक थी। पूरे एक साल तक बाकी लड़कियों की तरह उसका रंग-रूप निखारा गया। उसके आस-पास जितनी भी लड़कियाँ थीं उनका ध्यान सिर्फ सँजने-सँवरने पर था, वे किसी भी हाल में राजा का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहती थीं। लेकिन राजा ने एस्तेर को अपनी रानी चुना। क्या इन बातों ने एस्तेर को स्वार्थी बना दिया? नहीं। वह अपनी मर्यादा में रही और प्यार और आदर से पेश आयी।—एस्ते. 2:9, 12, 15, 17.

विश्‍वास की मिसाल पेज 130 पै 15

उसने अपने लोगों को बचाने के लिए कदम उठाया

15 जब वह समय आया कि एस्तेर को राजा के सामने पेश किया जाए, तो वह अपनी खूबसूरती को और निखारने के लिए मनचाही चीज़ें माँग सकती थी। मगर एस्तेर अपनी मर्यादा में रही और हेगे ने उसे जो कुछ दिया उससे ज़्यादा उसने कुछ नहीं माँगा। (एस्ते. 2:15) शायद उसे एहसास था कि वह सिर्फ अपनी खूबसूरती से राजा का दिल नहीं जीत सकती। इसके बजाय, नम्रता और मर्यादा जैसे गुण ज़्यादा अनमोल हैं क्योंकि ये गुण उस दरबार में बहुत कम लोगों में थे। क्या उसकी सोच सही थी?

प्र17.01 पेज 25 पै 12

मुश्‍किल हालात में भी आप मर्यादा में रह सकते हैं

12 अगर हम मर्यादा में रहते हैं तो हम अपने पहनावे और व्यवहार से दिखाएँगे कि हम दूसरों का और खुद का आदर करते हैं। खुद के बारे में शेखी मारने या दूसरों की नज़रों में छाने के बजाय हमारी कोशिश रहेगी कि हम “शांत और कोमल स्वभाव” के हों। (1 पतरस 3:3, 4 पढ़िए; यिर्म. 9:23, 24) खुद के बारे में हमारा क्या नज़रिया है यह हमारी बोली से और कामों में नज़र आएगा। उदाहरण के लिए, हम शायद दूसरों पर यह जताएँ कि हमारे पास कोई अनोखी ज़िम्मेदारी है, हमारे पास ऐसी जानकारी है जो किसी और के पास नहीं है या ज़िम्मेदार भाइयों से हमारी अच्छी जान-पहचान है। यह भी हो सकता है कि हम किसी ऐसे काम के लिए खुद वाह-वाही लूटें जिसे पूरा करने में असल में दूसरों का भी हाथ था। ज़रा यीशु के बारे में सोचिए। वह इतना बुद्धिमान था कि वह लोगों की नज़रों में छा सकता था। मगर उसने कभी-भी अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा बल्कि परमेश्‍वर के वचन का हवाला दिया। वह नहीं चाहता था कि लोग उसकी वाह-वाही करें। उसने हमेशा यही चाहा कि सिर्फ यहोवा की महिमा हो।—यूह. 8:28.

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प्र22.11 पेज 31 पै 3-6

क्या आप जानते हैं?

उन खोज करनेवालों को मिट्टी की एक पटिया मिली जिस पर मरदूका नाम के एक आदमी का ज़िक्र किया गया था (हिंदी में मोर्दकै)। उसमें बताया गया था कि वह शूशन शहर में एक अधिकारी था और शायद हिसाब-किताब रखा करता था। ध्यान दीजिए कि इस पटिया के बारे में आर्थर उँगनाड नाम के एक विशेषज्ञ ने क्या कहा जो उस इलाके के इतिहास के जानकार थे: ‘अब तक हमने सिर्फ बाइबल में ही मोर्दकै के बारे में पढ़ा था। पहली बार ऐसा हुआ है कि हमें कहीं और भी मोर्दकै का नाम पढ़ने को मिला।’

आगे चलकर खोज करनेवालों को ऐसी हज़ारों और पटियाएँ वगैरह मिलीं और उन पर लिखी बातों का अनुवाद किया गया। जैसे जब परसे-पोलिस शहर के खंडहरों में खुदाई की गयी, तो शहरपनाह के पास शाही खज़ाने के खंडहरों में मिट्टी की कई छोटी-छोटी पटियाएँ मिलीं। ये क्षयर्ष प्रथम के ज़माने की हैं और इन पर एलामी भाषा में कुछ बातें लिखी हुई हैं। इनमें ऐसे कई लोगों के नाम लिखे हैं जिनके नाम एस्तेर की किताब में भी पाए जाते हैं।

परसे-पोलिस में मिली पटियाओं में मरदूका नाम कई जगहों पर आता है। और ऐसा मालूम पड़ता है कि जब क्षयर्ष प्रथम का राज चल रहा था, तब वह शशून के महल में एक शास्त्री था। एक पटिया से यह भी पता चलता है कि मरदूका एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद किया करता था। बाइबल में भी मोर्दकै के बारे में कुछ ऐसा ही बताया गया है। एस्तेर की किताब पढ़ने से पता चलता है कि वह राजा अहश-वेरोश (क्षयर्ष प्रथम) के महल में दरबारी था और उसे कम-से-कम दो भाषाएँ आती थीं। बाइबल में यह भी लिखा है कि मोर्दकै राजा के महल के फाटक पर बैठा करता था। (एस्ते. 2:19, 21; 3:3) महल का फाटक दरअसल एक बहुत बड़ी इमारत थी जहाँ महल के दरबारी काम किया करते थे।

परसे-पोलिस की पटियाओं में जिस मरदूका का ज़िक्र किया गया है और बाइबल में जिस मोर्दकै के बारे में बताया गया है, उन दोनों की बहुत-सी बातें एक-जैसी हैं। वे दोनों एक ही समय में जीए थे, एक ही जगह पर रहते थे और एक ही जगह पर एक ही तरह का काम करते थे। इन सब बातों से ऐसा लगता है कि मरदूका एस्तेर की किताब में बताया गया मोर्दकै ही होगा।

11-17 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | एस्तेर 3-5

“जी-जान से यहोवा की सेवा करने में दूसरों की मदद कीजिए”

इंसाइट-2 पेज 431 पै 7

मोर्दकै

हामान के आगे झुकने से इनकार करता है: राजा अहश-वेरोश ने हामान को प्रधानमंत्री बनाया और उसने आज्ञा दी कि महल के फाटक पर जितने भी सेवक हैं, वे हामान के आगे झुकें। लेकिन मोर्दकै ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया और इसकी वजह बताते हुए उसने कहा कि वह एक यहूदी है। (एस 3:1-4) बीते समय में इसराएली, राजाओं या बड़े-बड़े अधिकारियों को आदर देने के लिए उनके सामने झुकते थे। (2शम 14:4; 18:28; 1रा 1:16) लेकिन मोर्दकै हामान के आगे नहीं झुका क्योंकि मुमकिन है कि हामान एक अमालेकी था। और अमालेकी लोगों के बारे में यहोवा ने कहा था कि वह ‘पीढ़ी-पीढ़ी तक उनसे युद्ध करता रहेगा।’ (निर्ग 17:16) इसलिए मोर्दकै के लिए हामान के आगे झुकना कोई राजनैतिक मसला नहीं बल्कि यहोवा के वफादार रहने का मसला था।

इंसाइट-2 पेज 431 पै 9

मोर्दकै

उसके ज़रिए इसराएल बचाया गया: जब मोर्दकै को पता चला कि सभी यहूदियों को मार डालने का आदेश दिया गया है, तो उसने यकीन के साथ एस्तेर से कहा कि उसे रानी इसलिए बनाया गया है ताकि वह यहूदियों को बचा सके। उसने एस्तेर को एहसास दिलाया कि उस पर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है। उसने उसे राजा से मदद माँगने की हिदायत भी दी। लेकिन राजा से मदद माँगना खतरे से खाली नहीं था। फिर भी एस्तेर ने मोर्दकै की बात मानी।—एस 4:7–5:2.

विश्‍वास की मिसाल पेज 133 पै 22-23

उसने अपने लोगों को बचाने के लिए कदम उठाया

22 जब एस्तेर ने यह संदेश सुना तो उसका दिल डूब गया होगा। अब उसके विश्‍वास की सबसे बड़ी परीक्षा होनेवाली थी। वह बहुत डर गयी और यह बात उसने मोर्दकै को साफ बतायी। उसने मोर्दकै को राजा का यह कानून याद दिलाया कि अगर कोई बिन बुलाए राजा के सामने जाएगा तो उसे मौत की सज़ा दी जाएगी। वह सिर्फ तभी बच सकता है अगर राजा उसकी तरफ अपना सोने का राजदंड बढ़ाएगा। एस्तेर के पास यह उम्मीद करने की कोई वजह नहीं थी कि उसके साथ कोई रिआयत की जाएगी। जब रानी वशती को राजा का हुक्म तोड़ने पर सज़ा दी गयी थी, तो एस्तेर को यह कानून तोड़ने पर कैसे बख्शा जाएगा? एस्तेर ने मोर्दकै को बताया कि पिछले 30 दिन से राजा ने उससे मिलने के लिए नहीं बुलाया है! राजा इतने दिनों से उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, यह देखकर एस्तेर ने सोचा होगा कि कहीं राजा का दिल उससे उठ तो नहीं गया है, क्योंकि वैसे भी उसके मिज़ाज का कोई भरोसा नहीं था।—एस्ते. 4:9-11.

23 एस्तेर का विश्‍वास मज़बूत करने के लिए मोर्दकै ने सख्ती से बताया कि उसे क्या करना चाहिए। उसने पूरे यकीन के साथ कहा कि अगर एस्तेर कुछ नहीं करेगी तो यहूदियों का उद्धार किसी और तरीके से ज़रूर होगा। लेकिन अगर एक बार यहूदियों पर ज़ुल्म शुरू हो जाए तो एस्तेर भी बच नहीं पाएगी। इस तरह मोर्दकै ने दिखाया कि उसे यहोवा पर पक्का विश्‍वास था कि वह अपने लोगों को कभी मिटने नहीं देगा और उसके वादे ज़रूर पूरे होंगे। (यहो. 23:14) फिर मोर्दकै ने एस्तेर से कहा, “क्या पता, तुझे इसी दिन के लिए रानी बनाया गया हो?” (एस्ते. 4:12-14) क्या मोर्दकै हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल नहीं? उसे अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरा भरोसा था। क्या हमें भी भरोसा है?—नीति. 3:5, 6.

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राज किताब पेज 160 पै 14

उपासना करने की आज़ादी के लिए लड़ाई

14 पुराने ज़माने के एस्तेर और मोर्दकै की तरह, आज यहोवा के लोग कानूनी लड़ाइयाँ इसलिए लड़ते हैं कि उन्हें यहोवा की उपासना उसके बताए तरीके से करने की आज़ादी मिले। (एस्ते. 4:13-16) क्या आप भी इसमें मदद कर सकते हैं? बेशक। आप उन भाई-बहनों के लिए लगातार प्रार्थना कर सकते हैं जो आज कानून के हाथों अन्याय सह रहे हैं। आपकी प्रार्थनाओं से उन्हें ज़ुल्म सहने में मदद मिल सकती है। (याकूब 5:16 पढ़िए।) क्या यहोवा ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब देता है? हमें अदालतों में कई बार जो जीत मिली है उससे साबित होता है कि वह ज़रूर जवाब देता है!—इब्रा. 13:18, 19.

18-24 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | एस्तेर 6-8

“एस्तेर की तरह बनिए, अच्छी तरह बात कीजिए”

विश्‍वास की मिसाल पेज 140 पै 15-16

उसने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया

15 जब एस्तेर ने सब्र रखा और राजा से अपनी बात कहने के लिए एक और दिन इंतज़ार किया, तो उस दौरान हामान अपने लिए ही गड्ढा खोदने लगा। और जिस तरह राजा की अचानक नींद उड़ गयी क्या उसके पीछे यहोवा परमेश्‍वर का हाथ नहीं रहा होगा? (नीति. 21:1) इसलिए यह हैरानी की बात नहीं कि बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम ‘परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करें।’ (मीका 7:7 पढ़िए।) ऐसा करने से हम पाएँगे कि अपनी समस्याओं के लिए हम जो भी हल सोचते हैं उससे कई गुना बेहतर तरीके से परमेश्‍वर उनका हल करता है।

उसने हिम्मत से बात की

16 एस्तेर नहीं चाहती थी कि राजा के सब्र का बाँध टूट जाए। इसलिए उसने दूसरी दावत में राजा को सबकुछ बताने का फैसला किया। मगर वह यह कैसे करती? खुद राजा ने उसे यह मौका दिया। उसने एक बार फिर एस्तेर से पूछा कि उसकी क्या बिनती है। (एस्ते. 7:2) अब एस्तेर के “बोलने का समय” आ गया।

विश्‍वास की मिसाल पेज 140-141 पै 17

उसने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया

17 हम कल्पना कर सकते हैं कि एस्तेर ने पहले मन-ही-मन प्रार्थना की होगी और फिर उसने कहा, “अगर राजा मुझसे खुश है और अगर राजा को यह मंज़ूर हो, तो मेरी बस यही बिनती है कि वह मेरी और मेरे लोगों की जान बचा ले।” (एस्ते. 7:3) गौर कीजिए कि उसने राजा को यकीन दिलाया कि वह उसके फैसले की इज़्ज़त करती है। देखा आपने, एस्तेर राजा की पहली पत्नी वशती से कितनी अलग थी जिसने जानबूझकर अपने पति का अपमान किया था! (एस्ते. 1:10-12) इसके अलावा, एस्तेर ने राजा से यह नहीं कहा कि उसने हामान पर भरोसा करके कितनी बेवकूफी की है। उसने बस राजा से मिन्‍नत की कि वह उसकी जान बचाए।

विश्‍वास की मिसाल पेज 141 पै 18-19

उसने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया

18 एस्तेर की यह बिनती सुनकर राजा ज़रूर चौंक गया होगा। किसकी मजाल कि वह रानी को मार डालने की कोशिश करे? एस्तेर ने कहा, “हमें खत्म करने और हमारा वजूद मिटाने के लिए हमें बेच दिया गया है। अगर हमें गुलामी में बेचा जाता तो मैं कुछ न कहती। लेकिन जब हमारे विनाश से खुद राजा को नुकसान होगा तो भला मैं चुप कैसे रह सकती हूँ? इस आफत को रोकना ही होगा।” (एस्ते. 7:4) ध्यान दीजिए कि एस्तेर ने अपनी समस्या के बारे में साफ-साफ बताया। उसने यह भी कहा कि अगर उन्हें सिर्फ गुलामी में बेचने की बात होती तो वह चुप रहती। मगर यह उनकी पूरी-की-पूरी जाति को मिटाने का मसला था जिससे राजा को भारी नुकसान होता, इसलिए वह चुप नहीं रह सकी।

19 एस्तेर से हम दूसरों को कायल करने के हुनर के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं। अगर आपको किसी गंभीर समस्या के बारे में अपने किसी अज़ीज़ को या अधिकारी को बताना पड़े तो सब्र रखिए, आदर से पेश आइए और सबकुछ साफ-साफ बताइए।—नीति. 16:21, 23.

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प्र06 3/1 पेज 11 पै 1

एस्तेर किताब की झलकियाँ

7:4—यहूदियों की पूरी जाति के मिटने से “राजा की हानि” कैसे होती? एस्तेर ने बड़ी कुशलता के साथ, राजा को यह गुंजाइश बतायी कि अगर यहूदियों को गुलामों की तरह बेचा जाए तो उसे ज़्यादा फायदा होगा और इस तरह एस्तेर ने दिखाया कि उनके मार डाले जाने से राजा का कितना बड़ा नुकसान होता। हामान ने शाही खज़ाने में 10,000 चाँदी के टुकड़े देने का वादा किया था, लेकिन अगर वह यहूदियों को गुलाम बनाकर बेचने की साज़िश रचता, तो शाही खज़ाने को कहीं ज़्यादा धन मिलता। इसके अलावा, हामान की साज़िश को अंजाम देने का यह भी मतलब होता कि राजा अपनी रानी से भी हाथ धो बैठता।

25 सितंबर–1 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | एस्तेर 9-10

“उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल लोगों के फायदे के लिए किया”

इंसाइट-2 पेज 432 पै 2

मोर्दकै

मोर्दकै को हामान की जगह प्रधानमंत्री बनाया गया। राजा ने उसे अपनी मुहरवाली अँगूठी भी दी, जो सरकारी दस्तावेज़ों पर ठप्पा लगाने के लिए इस्तेमाल की जाती थी। इस अधिकार से मोर्दकै ने एक और फरमान जारी किया, जिससे यहूदियों को खुद का बचाव करने का कानूनी अधिकार मिला। इस फरमान के बारे में जानकर यहूदियों ने राहत की साँस ली और वे खुश हुए। इसलिए जब 13 अदार का दिन आया, जब दोनों फरमान लागू किए जाने थे, तो यहूदी तैयार थे। शूशन में राजा की इजाज़त से अगले दिन भी लड़ाई चलती रही। नतीजा, पूरे फारस साम्राज्य में 75,000 से भी ज़्यादा दुश्‍मन मारे गए, जिनमें हामान के 10 बेटे भी शामिल थे। (एस 8:1–9:18) फिर मोर्दकै ने सभी यहूदियों से कहा कि वे अब से हर साल अदार महीने के 14वें और 15वें दिन त्योहार मनाया करें और यह त्योहार ‘पूरीम का त्योहार’ कहलाएगा। इस त्योहार के दौरान उन्हें बड़ी-बड़ी दावतें रखनी थीं, खुशियाँ मनानी थीं, एक-दूसरे को खाने-पीने की चीज़ें भेजनी थीं और गरीबों में खैरात बाँटने थे। पूरे साम्राज्य में राजा के बाद मोर्दकै ही सबसे शक्‍तिशाली आदमी था। वह यहूदियों की सलामती के लिए काम करता रहा और यहूदी भी उसकी इज़्ज़त करते थे।—एस 9:19-22, 27-32; 10:2, 3.

इंसाइट-2 पेज 716 पै 5

पूरीम

क्यों मनाया जाता था? पूरीम का त्योहार इसलिए मनाया जाने लगा ताकि यहोवा का सम्मान हो, क्योंकि उसने अपने लोगों को दुश्‍मनों के हाथ से बचाया था। लेकिन आज यहूदी इस त्योहार को अलग तरीके से मनाते हैं।

यहोवा के करीब पेज 101-102 पै 12-13

अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने में “परमेश्‍वर के समान बनो”

12 यहोवा ने कलीसिया में अगुवाई के लिए ओवरसियरों को ठहराया है। (इब्रानियों 13:17) इन काबिल भाइयों को परमेश्‍वर से मिले अधिकार का इस्तेमाल करके झुंड की ज़रूरी देखभाल करनी चाहिए ताकि उनकी आध्यात्मिक खुशहाली बढ़ती चली जाए। क्या प्राचीनों का पद उन्हें अपने संगी भाई-बहनों पर रोब जमाने का हकदार बनाता है? बिलकुल नहीं! प्राचीनों के लिए ज़रूरी है कि वे कलीसिया में अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में संतुलित नज़रिया रखें और नम्र हों। (1 पतरस 5:2, 3) बाइबल ओवरसियरों से कहती है: “परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने प्रिय पुत्र के रक्‍त से प्राप्त किया है।” (प्रेरितों 20:28, नयी हिन्दी बाइबिल) यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों झुंड के हर सदस्य के साथ कोमलता से पेश आना ज़रूरी है।

13 इसे समझने के लिए हम यह उदाहरण ले सकते हैं। आपका एक करीबी दोस्त अपनी किसी कीमती चीज़ की देखभाल करने के लिए आपसे कहता है। आप जानते हैं कि आपके दोस्त ने इस चीज़ को बहुत बड़ी कीमत देकर पाया है। तो क्या आप उस अमानत को बहुत संभालकर, हद-से-ज़्यादा एहतियात के साथ नहीं रखेंगे? उसी तरह, परमेश्‍वर ने प्राचीनों को अपनी एक बहुत ही बेशकीमती चीज़ संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी है, वह है: कलीसिया, जिसके सदस्यों की तुलना भेड़ों से की गयी है। (यूहन्‍ना 21:16, 17) यहोवा को अपनी भेड़ें बेहद प्यारी हैं—इतनी प्यारी कि उसने उन्हें अपने एकलौते पुत्र, यीशु मसीह का कीमती लहू देकर मोल लिया है। यहोवा ने अपनी इन भेड़ों के लिए सबसे बड़ी कीमत अदा की है। नम्र प्राचीन इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर यहोवा की भेड़ों के साथ प्यार से पेश आते हैं।

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प्र06 3/1 पेज 11 पै 4

एस्तेर किताब की झलकियाँ

9:10, 15, 16—जारी फरमान के मुताबिक यहूदी अपने दुश्‍मनों का धन लूट सकते थे, फिर भी उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? ऐसा करके यहूदियों ने साफ दिखाया कि उनका मकसद सिर्फ खुद की जान बचाना था, ना कि दूसरों को लूटकर मालामाल होना।

2-8 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 1-3

“दिखाते रहिए कि आपको यहोवा से कितना प्यार है”

प्र18.02 पेज 6-7 पै 16-17

नूह, दानियेल और अय्यूब जैसा विश्‍वास रखिए और आज्ञा मानिए

16 अय्यूब को किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा? अय्यूब “पूरब के रहनेवालों में सबसे बड़ा आदमी था।” (अय्यू. 1:3) उसके पास दौलत और शोहरत थी और लोग उसकी इज़्ज़त करते थे। (अय्यू. 29:7-16) यह उसके लिए एक परीक्षा बन सकती थी। वह खुद को दूसरों से बेहतर समझने लग सकता था और सोच सकता था कि उसे परमेश्‍वर की ज़रूरत नहीं। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। हम यह कैसे जानते हैं? क्योंकि यहोवा ने अय्यूब को ‘अपना सेवक’ बताया और उसके बारे में कहा, “वह एक सीधा-सच्चा इंसान है जिसमें कोई दोष नहीं। वह परमेश्‍वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता है।”—अय्यू. 1:8.

17 फिर अचानक अय्यूब की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गयी। उसका सबकुछ छिन गया और वह इतना निराश हो गया कि मरना चाहता था। हम जानते हैं कि शैतान ही अय्यूब पर आफतें लाया था। उसने अय्यूब पर झूठा इलज़ाम लगाया कि वह अपने मतलब के लिए यहोवा की सेवा कर रहा है। (अय्यूब 1:9, 10 पढ़िए।) यहोवा ने इस इलज़ाम को गंभीरता से लिया। उसने शैतान को दुष्ट और झूठा साबित करने के लिए क्या किया? उसने अय्यूब को यह साबित करने का मौका दिया कि वह वफादार है और उससे प्यार करता है इसलिए उसकी सेवा करता है।

प्र19.02 पेज 5 पै 10

निर्दोष बने रहिए!

10 शैतान ने अय्यूब के बारे में जो सवाल किया, उसका आपसे क्या ताल्लुक है? शैतान आपके बारे में भी दावा करता है कि आपको यहोवा से प्यार नहीं है, अपनी जान बचाने के लिए आप उसकी सेवा करना छोड़ देंगे और आपकी वफादारी बस एक ढोंग है! (अय्यू. 2:4, 5; प्रका. 12:10) यह सुनकर आपको कैसा लगता है? बेशक आपको बहुत बुरा लगता होगा। लेकिन ज़रा इस बात पर सोचिए: यहोवा को आप पर पूरा भरोसा है, इसीलिए वह शैतान को आपकी वफादारी परखने देता है। यहोवा को यकीन है कि आप उसके वफादार रहेंगे और शैतान को झूठा साबित करेंगे। वह आपकी मदद करने का भी वादा करता है। (इब्रा. 13:6) क्या यह आपके लिए सम्मान की बात नहीं कि सारे जहान का मालिक आप पर भरोसा करता है? अब तक हमने देखा कि वफादारी बनाए रखना क्यों ज़रूरी है। इससे हम शैतान के झूठ को गलत साबित कर पाते हैं, अपने पिता यहोवा का नाम बुलंद कर पाते हैं और उसकी हुकूमत का साथ दे पाते हैं। अब सवाल है, निर्दोष और वफादार रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र21.04 पेज 11 पै 9

यीशु के आखिरी शब्दों से सीखिए

9 यीशु ने क्या कहा? यीशु ने अपनी मौत के ठीक पहले कहा, “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46) बाइबल साफ-साफ नहीं बताती कि यीशु ने ये शब्द क्यों कहे। लेकिन उसने जो कहा, उससे हमें कुछ बातें पता चलती हैं। पहली बात, ये शब्द कहकर यीशु उस भविष्यवाणी को पूरा कर रहा था, जो भजन 22:1 में लिखी है। दूसरी बात, यहोवा ने अपने बेटे की “हिफाज़त के लिए [उसके] चारों तरफ बाड़ा” नहीं बाँधा। (अय्यू. 1:10) यीशु जानता था कि यहोवा ने उसके दुश्‍मनों को छूट दी है कि वे उसके विश्‍वास को पूरी तरह परखें। यीशु को जिस हद तक परखा गया, उतना किसी और इंसान को नहीं परखा गया। तीसरी बात, उसके शब्दों से यह भी पता चलता है कि उसने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था, जिसके लिए उसे मौत की सज़ा दी जाए।

9-15 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 4-5

“गलत जानकारी से सावधान रहिए”

इंसाइट-1 पेज 713 पै 11

एलीपज

2. एलीपज, अय्यूब के तीन झूठे दोस्तों में से एक था। (अय 2:11) वह अब्राहम का वंशज था और अय्यूब का दूर का एक रिश्‍तेदार था। वह और उसके वंशज अपनी बुद्धि के बारे में डींगे मारते थे। (यिर्म 49:7) ऐसा लगता है कि अय्यूब के तीन दोस्तों में से एलीपज का सबसे ज़्यादा दबदबा था। वह शायद उम्र में भी सबसे बड़ा था। इसलिए जब उन्होंने तीन बार अय्यूब के साथ बहसबाज़ी की, तो सबसे पहले उसने ही बोला। और उसकी बातें सबसे लंबी थीं।

प्र05 9/15 पेज 26 पै 2

गलत सोच का विरोध कीजिए!

एलीपज अपने साथ हुई एक अलौकिक घटना को याद करते हुए कहता है: “एक आत्मा मेरे साम्हने से होकर चली; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए। वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखों के साम्हने कोई रूप था; पहिले सन्‍नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा।” (अय्यूब 4:15, 16) यह आत्मा क्या थी जिसने एलीपज की सोच पर असर किया था? एलीपज ने आगे जो कड़वे शब्द कहे, उनसे पता चलता है कि यह आत्मा परमेश्‍वर का कोई धर्मी स्वर्गदूत हो ही नहीं सकता। (अय्यूब 4:17, 18) दरअसल वह एक दुष्ट आत्मिक प्राणी था। और उसी आत्मिक प्राणी के बहकावे में आकर एलीपज और उसके दोनों साथियों ने यहोवा के बारे में गलत बातें कही थी। यही वजह है कि यहोवा ने उन्हें झिड़का। (अय्यूब 42:7) जी हाँ, एलीपज पर दुष्टात्मा का असर था। उसकी बातों से पता चलता है कि उसकी सोच परमेश्‍वर की सोच के खिलाफ थी।

प्र10 2/15 पेज 19-20 पै 5-6

शैतान के झूठ का डटकर मुकाबला कीजिए

शैतान ने एलीपज के ज़रिए यह दलील दी कि इंसान कमज़ोर है और परमेश्‍वर का वफादार नहीं रह सकता। एलीपज अय्यूब के तीन दोस्तों में से एक था। उसने इंसानों की बनावट के बारे में कहा कि वे “मिट्टी के घरों में रहते हैं।” फिर उसने अय्यूब से कहा: “[उनकी] नेव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे की नाईं पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना। वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता।”—अय्यू. 4:19, 20.

बाइबल की दूसरी आयतों में हमारी तुलना “मिट्टी के बरतनों” से की गयी है जो बहुत नाज़ुक होते हैं। (2 कुरिं. 4:7) हम कमज़ोर हैं क्योंकि हमें आदम से पाप और असिद्धता मिली है। (रोमि. 5:12) अगर हमें अपने हाल पर छोड़ दिया जाए तो हम आसानी से शैतान का निशाना बन सकते हैं। पर मसीही होने के नाते हम अकेले नहीं, यहोवा हमारे साथ है। हममें कमियाँ होने के बावजूद परमेश्‍वर हमें अनमोल समझता है। (यशा. 43:4) इतना ही नहीं, यहोवा अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्‍ति देता है। (लूका 11:13) उसकी पवित्र शक्‍ति हमें “वह ताकत” दे सकती है “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।” इसकी मदद से हम हर उस मुश्‍किल का सामना कर सकते हैं जो शैतान हम पर लाता है। (2 कुरिं. 4:7; फिलि. 4:13) अगर हम “विश्‍वास में मज़बूत रहकर” शैतान का मुकाबला करें, तो परमेश्‍वर हमें शक्‍तिशाली बनाएगा। (1 पत. 5:8-10) इसलिए हमें शैतान से डरने की कोई ज़रूरत नहीं।

कुछ और विषय 32 पै 13-17

गलत जानकारी से बचकर रहिए!

● जाँचिए कि जानकारी कहाँ से आयी है और उसमें क्या बताया गया है

बाइबल में लिखा है, “सब बातों को परखो।”—1 थिस्सलुनीकियों 5:21.

किसी भी जानकारी पर यकीन करने या उसे दूसरों को भेजने से पहले पक्का कीजिए कि वह सच्ची है या नहीं। ऐसा तब भी कीजिए जब वह जानकारी जानी-मानी हो या बार-बार खबरों में दोहरायी जा रही हो। यह आप कैसे कर सकते हैं?

सोचिए कि जानकारी कहाँ से आयी है या फिर वह आपको किसने दी है। क्या आप उस पर भरोसा कर सकते हैं? अलग-अलग मीडियावाले और दूसरे संगठन शायद किसी खबर को इस तरह पेश करें जिससे उन्हें फायदा हो। या फिर हो सकता है कि राजनैतिक मामलों में उनकी जो सोच होती है, उसी के मुताबिक वे वह खबर फैलाएँ। इसलिए एक ही खबर के बारे में अलग-अलग न्यूज़ एजेंसियों ने क्या कहा है, उनकी तुलना करके देखिए। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि आपके दोस्त बिना सोचे-समझे कोई गलत जानकारी सबको ईमेल कर दें या उसके बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दें। इसलिए जब तक आप पता नहीं लगा लेते कि जहाँ से या जिससे खबर मिली है वह भरोसे के लायक है या नहीं, तब तक उस पर यकीन मत कीजिए।

यह भी ध्यान रखिए कि जानकारी में क्या बताया गया है। क्या वह ताज़ा-तरीन और सही है? क्या कोई घटना यूँ ही बतायी गयी है या तारीखें दी गयी हैं? क्या बातें हवा में कही गयी हैं या उनका कोई आधार है? क्या उस जानकारी को सच मानने के पक्के सबूत हैं? कुछ ऐसे लेख या वीडियो भी हो सकते हैं जिनमें कोई पेचीदा-सी बात या मसले के बारे में बिना ज़्यादा जानकारी दिए बता दिया गया हो। या कभी-कभी हो सकता है कि जानकारी इस तरह पेश की जाए जिससे लोग भावनाओं में बहकर कुछ कर दें। ऐसी जानकारी से और भी ज़्यादा सावधान रहिए।

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प्र03 5/15 पेज 22-23 पै 5-6

दृढ़ बने रहो और जीवन की दौड़ जीत लो

सच्चे उपासकों के विश्‍वव्यापी संगठन का एक हिस्सा होना, हमारे लिए स्थिर रहने में बहुत मददगार हो सकता है। दुनिया भर के भाइयों की प्यार भरी बिरादरी का भाग होना क्या ही बढ़िया आशीष है! (1 पतरस 2:17) और बदले में हम भी अपने संगी उपासकों को दृढ़ कर सकते हैं।

धर्मी अय्यूब की मिसाल पर गौर कीजिए कि किस तरह उसने दूसरे लोगों की मदद की थी। यहाँ तक कि उसे झूठा दिलासा देनेवाले, एलीफज़ ने यह कबूल किया: “गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया।” (अय्यूब 4:4) क्या हम दूसरों की मदद करते हैं? हममें से हरेक की ज़िम्मेदारी बनती है कि हम अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों की मदद करें ताकि वे धीरज के साथ परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहें। हम अपने भाई-बहनों के साथ उस तरह व्यवहार कर सकते हैं, जैसा कि इस आयत में बताया गया है: “ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो।” (यशायाह 35:3) जब भी आप अपने भाई-बहनों से मिलते हैं, तो क्यों न कम-से-कम एक या दो भाई-बहनों को हिम्मत देने और उनका उत्साह बढ़ाने का लक्ष्य रखें? (इब्रानियों 10:24, 25) यहोवा को खुश करने के लिए वे जो लगातार मेहनत करते हैं, अगर हम उसके लिए उनकी तहेदिल से तारीफ करें और कदर दिखाएँ, तो इससे उन्हें जीवन की दौड़ जीत लेने में वाकई मदद मिलेगी।

16-22 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 6-7

“जब आपका दुख बरदाश्‍त से बाहर हो जाए”

प्र06 3/15 पेज 14 पै 9

किताब की झलकियाँ

7:1; 14:14 (NHT)—“श्रम” या “कठिन सेवा” का क्या मतलब है? अय्यूब अपने दुःख-दर्द से इतना टूट चुका था कि उसकी नज़र में ज़िंदगी एक सख्त मज़दूरी के सिवा कुछ न थी, जिसके श्रम से आदमी पस्त हो जाता है। (अय्यूब 10:17, NW, फुटनोट) दूसरी तरफ, इंसान जब तक शिओल में रहता है, यानी उसकी मौत से उसके पुनरुत्थान के वक्‍त तक, उसे वह वक्‍त कब्र में ही गुज़ारना पड़ता है और उसके लिए दूसरा कोई चारा नहीं होता। इसलिए इस वक्‍त को अय्यूब ने कठिन सेवा कहा।

प्र20.12 पेज 16 पै 1

‘यहोवा उन्हें बचाता है जो निराश हैं’

हम सब कभी-कभी बहुत निराश हो जाते हैं। इस छोटी-सी ज़िंदगी में हमें कई दुख झेलने पड़ते हैं। देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी “दुखों से भरी” होती है। (अय्यू. 14:1) पुराने ज़माने में भी यहोवा के कई सेवक निराश हो जाते थे। कुछ तो इतने निराश हो गए थे कि वे मर जाना चाहते थे। (1 राजा 19:2-4; अय्यू. 3:1-3, 11; 7:15, 16) लेकिन जब भी वे निराश हुए, यहोवा ने उनकी हिम्मत बँधायी और उनके दुखी मन को दिलासा दिया। उन्हें अपने परमेश्‍वर पर भरोसा था और परमेश्‍वर ने उन्हें छोड़ा नहीं। परमेश्‍वर ने उनके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उनसे सीखें और हमें भी दिलासा मिले।—रोमि. 15:4.

सज 4/12 पेज 14-16

जब न हो जीने की आस

चाहे आपके हालात कितने ही बुरे क्यों न हो, एक बात हमेशा याद रखिए कि आप अकेले नहीं हैं। आज लगभग सभी लोग किसी-न-किसी मुश्‍किल से गुज़र रहे हैं। बाइबल कहती है: “सारी सृष्टि . . . एक-साथ कराहती और दर्द से तड़पती रहती है।” (रोमियों 8:22) हो सकता है, आपको लगे कि आपकी मुश्‍किलें पहाड़ जैसी हैं, उनका कोई हल नहीं। मगर अकसर देखा गया है कि वक्‍त के गुज़रते हालात सुधर जाते हैं। लेकिन तब तक, क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

किसी समझदार, भरोसेमंद दोस्त को अपनी भावनाएँ बताइए। बाइबल बताती है: “[सच्चा] मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” (नीतिवचन 17:17) बाइबल में अय्यूब नाम के एक नेक आदमी के बारे में बताया गया है। उस पर जब बुरा वक्‍त आया, तो उसने दूसरों को बताया कि वह कैसा महसूस कर रहा है। वह “अपने जीवन से ऊब गया” था और उसने कहा: “मैं जी भर कर अपना दुखड़ा रोऊंगा; मैं अपने मन की कड़ुवाहट में बोलूंगा।” (अय्यूब 10:1, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) किसी भरोसेमंद दोस्त को अपनी भावनाएँ बताने से आप कुछ हद तक इन पर काबू पा सकेंगे। और इससे शायद आप अपनी मुश्‍किलों को एक अलग नज़रिए से देखने लगें।

प्रार्थना में परमेश्‍वर को अपने दिल का सारा हाल कह सुनाइए। कुछ लोगों का मानना है कि प्रार्थना करने से सिर्फ मन का बोझ हलका होता है और कुछ नहीं। मगर बाइबल ऐसा नहीं कहती। इसके उलट, भजन 65:2 में लिखा है कि यहोवा परमेश्‍वर ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है। और 1 पतरस 5:7 कहता है कि “उसे तुम्हारी परवाह है।” बाइबल की कई आयतें बताती हैं कि मुश्‍किलों के दौरान परमेश्‍वर पर भरोसा रखना क्यों ज़रूरी है। मिसाल के लिए:

“तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5, 6.

“जो [यहोवा] से डरते हैं वह उनकी इच्छा पूरी करेगा; वह उनकी दुहाई भी सुनेगा और उन्हें बचा लेगा।”—भजन 145:19, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।

“हमें परमेश्‍वर के बारे में यह भरोसा है कि हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।”—1 यूहन्‍ना 5:14.

“यहोवा दुष्टों से दूर रहता है, परन्तु धर्मियों की प्रार्थना सुनता है।”—नीतिवचन 15:29.

अगर आप परमेश्‍वर को अपनी मुश्‍किलों के बारे में बताएँ, तो वह ज़रूर आपकी मदद करेगा। इसीलिए बाइबल आपको बढ़ावा देती है कि “हर समय उस पर भरोसा रखो; उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो।”—भजन 62:8.

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प्र20.04 पेज 16-17 पै 10

सुनिए, जानिए और करुणा कीजिए

10 हमें भी अपने भाई-बहनों के हालात को समझना चाहिए। अपने भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए। सभाओं से पहले और बाद में उनसे बात कीजिए, उनके साथ प्रचार कीजिए और मुमकिन हो तो उन्हें अपने घर खाने पर बुलाइए। तब आप ऐसे भाई-बहनों के हालात समझ पाएँगे जिनका बरताव आपको ठीक नहीं लगता। अगर आप एक बहन के बारे में सोचते हैं कि वह दूसरों से दूर-दूर रहती है, तो उससे बात करने पर आप पाएँगे कि वह दरअसल शर्मीली स्वभाव की है। आप शायद एक अमीर भाई के बारे में सोचें कि उसे दौलत कमाने का जुनून है, लेकिन आप पाएँगे कि वह बहुत दरियादिल है। अगर एक बहन अपने बच्चों के साथ अकसर सभाओं में देर से आती है, तो उसे जानने से आपको पता चलेगा कि उसे कितने विरोध का सामना करना पड़ रहा है। (अय्यू. 6:29) अपने भाई-बहनों को जानने का मतलब यह नहीं कि हम उनके निजी “मामलों में दखल” दें। (1 तीमु. 5:13) हमें उनके बारे में यह जानना चाहिए कि वे किन हालात से गुज़रे हैं जिस वजह से आज उनका स्वभाव ऐसा है।

23-29 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 8-10

“यहोवा के अटल प्यार की वजह से हम शैतान की बातों में नहीं आते”

प्र15 10/1 पेज 10 पै 3

क्या हम ईश्‍वर को खुश कर सकते हैं?

अय्यूब की ज़िंदगी में एक-के-बाद-एक कई मुश्‍किलें आयीं। उसे लगा कि उसके साथ नाइंसाफी हो रही है। उसे यह गलतफहमी हो गयी थी कि ईश्‍वर को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उसका वफादार रहता है या नहीं। (अय्यूब 9:20-22) अय्यूब को इस बात पर इतना यकीन था कि वह नेक है कि लोगों को ऐसा लगा कि वह ईश्‍वर से भी ज़्यादा नेक होने का दावा कर रहा है।—अय्यूब 32:1, 2; 35:1, 2.

प्र21.11 पेज 6 पै 14

यहोवा आपसे अटल प्यार करता है

14 परमेश्‍वर के अटल प्यार की वजह से उसके साथ हमारा रिश्‍ता अटूट रहता है। दाविद ने प्रार्थना में यहोवा से कहा, “तू मेरे लिए छिपने की जगह है, तू मुसीबत से मेरी हिफाज़त करेगा। तू मुझे छुड़ाकर मेरे चारों ओर खुशियों का समाँ बाँध देगा। . . . यहोवा पर भरोसा रखनेवाला उसके अटल प्यार से घिरा रहता है।” (भज. 32:7, 10) पुराने ज़माने में शहर के चारों तरफ ऊँची दीवारें होती थीं, जिनसे लोगों की दुश्‍मनों से हिफाज़त होती थी। यहोवा का अटल प्यार भी दीवार की तरह हमारी हिफाज़त करता है, ताकि उसके साथ हमारा रिश्‍ता न टूटे। इसके अलावा, अटल प्यार की वजह से वह हमें अपनी तरफ खींचता है। इसलिए हमें यकीन है कि हम सुरक्षित रहेंगे।—यिर्म. 31:3.

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प्र10 10/15 पेज 6-7 पै 19-20

“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”

19 हमने ‘यहोवा के मन’ के बारे में क्या सीखा? अगर हम उसके मन को सही-सही समझना चाहते हैं तो हमें अपने विचारों को उसके वचन के मुताबिक ढालना ज़रूरी है। हमें न तो यह सोचना चाहिए कि यहोवा हमारी तरह सीमाओं में बँधा है और न ही उसे अपने स्तरों और सोच के मुताबिक परखना चाहिए। अय्यूब ने कहा: “[परमेश्‍वर] मेरे तुल्य मनुष्य नहीं है कि मैं उस से वादविवाद कर सकूं, और हम दोनों एक दूसरे से मुक़द्दमा लड़ सकें।” (अय्यू. 9:32) जब अय्यूब की तरह हम यहोवा के मन को समझने लगते हैं तो हम यह कहे बिना नहीं रह पाते कि “देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?”—अय्यू. 26:14.

20 बाइबल पढ़ते वक्‍त जब हमें कोई वाकया समझना मुश्‍किल लगता है, खासकर यहोवा की सोच के बारे में, तब क्या करना चाहिए? अगर खोजबीन करने के बाद भी हमें संतोषजनक जवाब नहीं मिलता तो यह यहोवा पर हमारे विश्‍वास की परीक्षा हो सकती है। याद रखिए कि कई बार बाइबल में कुछ ऐसी बातें हो सकती हैं जो हमें यहोवा के गुणों पर अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने का मौका दें। आइए हम इस बात को नम्रता से कबूल करें कि हम यहोवा के हर काम को नहीं समझ सकते। (सभो. 11:5) इसलिए हम प्रेषित पौलुस के इन शब्दों से सहमत होंगे: “वाह! परमेश्‍वर की दौलत और बुद्धि और ज्ञान की गहराई क्या ही अथाह है! उसके फैसले हमारी सोच से कितने परे और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! इसलिए कि ‘कौन यहोवा के मन को जान सका है या कौन उसे सलाह देनेवाला हुआ?’ या ‘कौन है जिसने उसे पहले कुछ दिया हो जो उसे लौटाया जाए?’ क्योंकि सबकुछ उसी की तरफ से, उसी के ज़रिए और उसी के लिए है। उसकी महिमा हमेशा-हमेशा होती रहे। आमीन।”—रोमि. 11:33-36.

30 अक्टूबर–5 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 11-12

“बुद्धि पाने के तीन तरीके”

प्र09 4/15 पेज 6-7 पै 17

अय्यूब ने यहोवा का नाम रौशन किया

17 किस बात ने अय्यूब को अपनी खराई पर बने रहने में मदद दी? अय्यूब ने विपत्ति आने से पहले ही यहोवा के साथ एक करीबी रिश्‍ता बना लिया था। हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि अय्यूब को उस चुनौती के बारे में पता था या नहीं, जो शैतान ने यहोवा को दी थी। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि अय्यूब ने ठान लिया था कि वह यहोवा का वफादार बना रहेगा। उसने कहा: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।” (अय्यू. 27:5) अय्यूब ने परमेश्‍वर के साथ इतना करीबी रिश्‍ता कैसे बनाया? वह ज़रूर उन बातों पर ध्यान से सोचता होगा, जो उसने परमेश्‍वर के बारे में सुनी थीं। उसने सुना होगा कि परमेश्‍वर ने उसके दूर के रिश्‍तेदारों, अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ कैसा व्यवहार किया था। इसके अलावा सृष्टि पर गौर करके भी वह यहोवा की कई खूबियों के बारे में जान सका होगा।—अय्यूब 12:7-9, 13, 16 पढ़िए।

प्र21.06 पेज 10-11 पै 10-12

आप अकेले नहीं हैं, यहोवा आपके साथ है

10 भाई-बहनों से दोस्ती कीजिए। मंडली में उन लोगों से दोस्ती कीजिए जिनसे आप अच्छी बातें सीख सकते हैं, फिर चाहे उनकी उम्र या संस्कृति आपसे अलग क्यों न हो। बाइबल बताती है, ‘बुद्धि, बड़े-बूढ़ों में पायी जाती है।’ (अय्यू. 12:12) बुज़ुर्ग लोग भी जवान लोगों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। दाविद और योनातान की उम्र में बहुत बड़ा फर्क था, फिर भी उनमें गहरी दोस्ती थी। (1 शमू. 18:1) उनकी ज़िंदगी में बहुत सारी मुश्‍किलें आयीं, पर उन्होंने यहोवा की सेवा करते रहने में एक-दूसरे की मदद की। (1 शमू. 23:16-18) आइरीना, जो सच्चाई में अकेली है, कहती है, “मंडली के भाई-बहन हमारे माता-पिता और भाई-बहन जैसे बन सकते हैं। उनके ज़रिए यहोवा हमारी हर कमी पूरी कर सकता है।”

11 नए दोस्त बनाना आसान नहीं होता, खासकर अगर आप शर्मीले हों। रतना नाम की एक बहन भी शर्मीली थी। उसने विरोध के बावजूद सच्चाई सीखी। वह कहती है, “मुझे एहसास हुआ कि मुझे मंडली के भाई-बहनों का सहारा चाहिए था।” यह सच है कि किसी भाई या बहन को अपने मन की बात बताना आसान नहीं होता। लेकिन अगर आप उसे बताते हैं, तो वह आपका अच्छा दोस्त बन सकता है। मंडली के भाई-बहन आपकी मदद करना चाहते हैं, आपका हौसला बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन वे तभी मदद कर पाएँगे, जब आप उन्हें अपनी परेशानी बताएँगे।

12 दोस्त बनाने का सबसे अच्छा तरीका है, भाई-बहनों के साथ प्रचार करना। कैरल, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहती है, “मैंने अलग-अलग बहनों के साथ प्रचार किया और यहोवा की सेवा में दूसरे काम किए। इस तरह कई सारी बहनें मेरी अच्छी दोस्त बनीं। यहोवा ने इन दोस्तों के ज़रिए हमेशा मुझे सँभाला।” भाई-बहनों से दोस्ती करना अच्छी बात है। क्योंकि जब आप निराश होते हैं और अकेला महसूस करते हैं, तो यहोवा इन दोस्तों के ज़रिए आपका हौसला बढ़ाता है।—नीति. 17:17.

इंसाइट-2 पेज 1190 पै 2

बुद्धि

परमेश्‍वर की बुद्धि: बाइबल में लिखा है कि यहोवा ही “एकमात्र बुद्धिमान परमेश्‍वर” है। (रोम 16:27; प्रक 7:12) इससे पता चलता है कि उसके जैसा बुद्धिमान और कोई नहीं। ज्ञान का मतलब है, किसी चीज़ की जानकारी होना। यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है और वह “हमेशा से परमेश्‍वर रहा है और हमेशा रहेगा।” (भज 90:1, 2) इसलिए उसे सब चीज़ों का ज्ञान है। वह विश्‍व और उसके इतिहास के बारे में सबकुछ जानता है। उसी ने कुदरत के सारे नियम और चक्र बनाए हैं, जो खोजबीन करने और नयी-नयी चीज़ें ईजाद करने के लिए ज़रूरी हैं। इनसे भी बढ़कर यहोवा ने हमें नैतिक नियम दिए हैं, जो सही फैसले लेने और एक अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए ज़रूरी हैं। (व्य 32:4-6) जितनी समझ उसके पास है उतनी किसी और के पास नहीं है। (यश 40:13, 14) हालाँकि यहोवा ऐसी कुछ चीज़ें होने दे जो उसके नैतिक स्तरों के मुताबिक न हों और वे कुछ समय के लिए बढ़ती भी रहें, पर वह हमेशा के लिए उन्हें ऐसा नहीं रहने देगा। आखिरकार वही होगा जो उसने ठाना है। वह अपने मकसद को “ज़रूर अंजाम” देगा।—यश 55:8-11; 46:9-11.

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प्र08 10/1 पेज 19 पै 5

किशोरों के साथ बातचीत

▪ ‘क्या मैं शब्दों की आड़ में छिपे मतलब को समझ पाता हूँ?’ अय्यूब 12:11 कहता है: “जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान में वचन नहीं परखे जाते?” अब पहले से कहीं ज़्यादा आपको अपने बेटे या बेटी की कही बातों को ‘परखने’ की ज़रूरत है। किशोर बच्चे अकसर इस तरह बात करते हैं, मानो वे जो कहते हैं बिलकुल सही कहते हैं। मिसाल के तौर पर शायद आपका बेटा या बेटी कहे, “आप हमेशा मुझसे ऐसे बात करते हैं, जैसे मैं कोई बच्चा हूँ।” या “आप मेरी बात कभी नहीं सुनते।” “हमेशा” या “कभी नहीं” जैसे शब्दों पर कान लगाने के बजाय, आप उनके पीछे छिपी भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। उदाहरण के लिए, जब आपका बच्चा कहता है कि “आप हमेशा मुझसे ऐसे बात करते हैं, जैसे मैं कोई बच्चा हूँ” तो शायद वह कहना चाह रहा हो कि “मुझे लगता है, आपको मुझ पर भरोसा नहीं है।” और जब वह कहता है, “आप मेरी बात कभी नहीं सुनते” तो शायद वह कहना चाह रहा हो, “मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैं कैसा महसूस करता हूँ।” शब्दों की आड़ में छिपे मतलब को समझने की कोशिश कीजिए।

    ଓଡ଼ିଆ ପ୍ରକାଶନ (୧୯୯୮-୨୦୨୫)
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