श्रेष्ठगीत
4 “ओ मेरी सजनी, तू कितनी खूबसूरत है,
तेरी खूबसूरती का जवाब नहीं!
घूँघट से झाँकती तेरी आँखें फाख्ते जैसी हैं।
तेरी ज़ुल्फें गिलाद के पहाड़ों से उतरती बकरियों के झुंड जैसी हैं।+
2 तेरे दाँत उन उजली भेड़ों के समान हैं,
जिनका ऊन अभी-अभी कतरा गया है
और जो नहाकर पानी से बाहर आयी हैं।
वे सभी एक सीध में हैं, हरेक का जोड़ीदार है,
उनमें से कोई भी छूटा नहीं है।
3 तेरे होंठ सुर्ख लाल धागे जैसे हैं,
तेरी बातें मन को मीठी लगती हैं,
घूँघट में तेरे गालों* की चमक,
अनार की फाँक जैसी है।
4 तेरी गरदन+ दाविद की सुंदर मीनार जैसी है,+
जो पत्थरों के रद्दे लगाकर खड़ी की गयी है,
उस पर हज़ार ढालें, हाँ, योद्धाओं की गोल-गोल ढालें सजी हैं।+
5 तेरे स्तन हिरन के दो बच्चों जैसे हैं,
हाँ, चिकारे के जुड़वाँ बच्चों जैसे,+
जो सोसन* के फूलों के बीच चरते हैं।”
6 “इससे पहले कि ठंडी-ठंडी हवा बहने लगे और छाया गायब होने लगे,
मैं गंधरस के पहाड़ की ओर,
लोबान की पहाड़ी की ओर चली जाऊँगी।”+
हम अमाना* की चोटी से उतरकर,
सनीर से, हाँ, हेरमोन की ऊँचाई से+ उतरकर,
शेरों की माँद और चीतों के पहाड़ों से दूर चले जाएँ।
9 हे मेरी बहन, मेरी दुल्हन, तूने मेरा दिल चुरा लिया,+
तेरी एक ही नज़र ने इस दिल को दीवाना बना दिया।
तेरे गले के हार की एक झलक ही मेरी धड़कनें तेज़ कर देती है।
10 हे मेरी बहन, मेरी दुल्हन, तेरा प्यार* लाजवाब है,+
तेरे कपड़ों की खुशबू लबानोन की खुशबू जैसी है।
12 मेरी बहन एक बंद बगिया जैसी है,
मेरी दुल्हन, बंद बगिया और ढके हुए सोते जैसी है।
13 तेरी डालियाँ* अनार का बाग हैं,
जहाँ अच्छे-अच्छे फल लगे हैं,
जहाँ मेंहदी और जटामाँसी के पौधे,
14 हाँ, जटामाँसी,+ केसर, वच,*+ दालचीनी,+
लोबान के अलग-अलग पेड़, गंधरस, अगर+
और बढ़िया किस्म के खुशबूदार पौधे लगे हैं।
16 हे उत्तर की हवा उठ!
हे दक्षिण की हवा आ!
हौले-हौले मेरी बगिया से होकर जा
कि इसकी महक चारों तरफ फैल जाए।”
“मेरा साजन अपनी बगिया में आए
और बढ़िया-बढ़िया फल खाए।”