27 बल्कि मैं अपने शरीर को मारता-कूटता* हूँ+ और उसे एक दास बनाकर काबू में रखता हूँ ताकि दूसरों को प्रचार करने के बाद मैं खुद किसी वजह से अयोग्य न ठहरूँ।
22 तुम्हें सिखाया गया था कि तुम्हें अपनी पुरानी शख्सियत को उतार फेंकना चाहिए+ जो तुम्हारे पहले के चालचलन के मुताबिक है और जो उसकी गुमराह करनेवाली इच्छाओं के मुताबिक भ्रष्ट होती जा रही है।+
5 इसलिए अपने शरीर के उन अंगों को* मार डालो+ जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध,* अशुद्धता, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करना,+ बुरी इच्छाएँ और लालच जो कि मूर्तिपूजा के बराबर है।