17 तुम मन-ही-मन अपने भाई से नफरत न करना।+ अगर तुम्हारे संगी-साथी ने कोई पाप किया है, तो उसे सुधारने के लिए ज़रूर फटकारना+ ताकि तुम उसके पाप में साझेदार न बनो।
2 तू वचन का प्रचार कर।+ और वक्त की नज़ाकत को समझते हुए इसमें लगा रह, फिर चाहे अच्छा समय हो या बुरा। सब्र से काम लेते हुए और कुशलता से सिखाते हुए गलती करनेवाले को सुधार,+ डाँट और समझा।+