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व्यवस्थाविवरण का सारांश

      • आज्ञा मानने से मिलनेवाली आशीषें (1-14)

      • आज्ञा न मानने से मिलनेवाले शाप (15-68)

व्यवस्थाविवरण 28:1

संबंधित आयतें

  • +व्य 26:18, 19

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/1995, पेज 26

व्यवस्थाविवरण 28:2

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:3, 4; नीत 10:22; यश 1:19

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2010, पेज 19-20

    9/15/2010, पेज 7-8

    9/15/2001, पेज 10

व्यवस्थाविवरण 28:3

संबंधित आयतें

  • +व्य 11:14

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    6/15/1996, पेज 15

व्यवस्थाविवरण 28:4

फुटनोट

  • *

    शा., “तुम्हारे गर्भ के फल।”

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:9; व्य 7:13; भज 127:3; 128:3

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    6/15/1996, पेज 15-16

व्यवस्थाविवरण 28:5

संबंधित आयतें

  • +व्य 26:2
  • +निर्ग 23:25

व्यवस्थाविवरण 28:7

संबंधित आयतें

  • +व्य 32:30; यह 10:11
  • +व्य 7:23; 2इत 14:13

व्यवस्थाविवरण 28:8

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:10; नीत 3:9, 10; मला 3:10

व्यवस्थाविवरण 28:9

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  • +व्य 7:6
  • +निर्ग 19:6

व्यवस्थाविवरण 28:10

संबंधित आयतें

  • +यश 43:10; दान 9:19; प्रेष 15:17
  • +गि 22:3; व्य 11:25; यह 5:1

व्यवस्थाविवरण 28:11

संबंधित आयतें

  • +उत 15:18
  • +व्य 30:9; भज 65:9

व्यवस्थाविवरण 28:12

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  • +लैव 26:4; व्य 11:14
  • +व्य 15:6

व्यवस्थाविवरण 28:13

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  • +1रा 4:21

व्यवस्थाविवरण 28:14

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  • +व्य 5:32; यह 1:7; यश 30:21
  • +लैव 19:4

व्यवस्थाविवरण 28:15

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  • +लैव 26:16, 17; दान 9:11

व्यवस्थाविवरण 28:16

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  • +1रा 17:1

व्यवस्थाविवरण 28:17

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:26; व्य 26:2

व्यवस्थाविवरण 28:18

फुटनोट

  • *

    शा., “तुम्हारे गर्भ के फल।”

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:20, 22; विल 2:11, 19; 4:10

व्यवस्थाविवरण 28:20

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  • +यह 23:16

व्यवस्थाविवरण 28:21

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:25; यिर्म 24:10

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  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2021, पेज 9

व्यवस्थाविवरण 28:22

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:16
  • +लैव 26:33
  • +आम 4:9

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  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2021, पेज 9

व्यवस्थाविवरण 28:23

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:19; व्य 11:17; 1रा 17:1

व्यवस्थाविवरण 28:25

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:14, 17; 1शम 4:10
  • +यिर्म 29:18; लूक 21:24

व्यवस्थाविवरण 28:26

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 7:33

व्यवस्थाविवरण 28:28

फुटनोट

  • *

    या “मन में घबराहट पैदा करेगा।”

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  • +निर्ग 4:11

व्यवस्थाविवरण 28:29

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  • +यश 59:10
  • +न्या 3:14; 6:1-5; नहे 9:27

व्यवस्थाविवरण 28:30

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  • +यश 5:9; विल 5:2
  • +आम 5:11; मी 6:15

व्यवस्थाविवरण 28:32

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  • +2इत 29:9

व्यवस्थाविवरण 28:33

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  • +नहे 9:37; यश 1:7

व्यवस्थाविवरण 28:36

संबंधित आयतें

  • +2रा 17:6; 25:7; 2इत 33:11; 36:5, 6
  • +यिर्म 16:13

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    दानिय्येल की भविष्यवाणी, पेज 71-72

व्यवस्थाविवरण 28:37

फुटनोट

  • *

    शा., “कहावत।”

संबंधित आयतें

  • +1रा 9:8; 2इत 7:20; यिर्म 24:9; 25:9

व्यवस्थाविवरण 28:38

संबंधित आयतें

  • +यश 5:10; हाग 1:6

व्यवस्थाविवरण 28:39

संबंधित आयतें

  • +सप 1:13

व्यवस्थाविवरण 28:41

संबंधित आयतें

  • +2रा 24:14; यिर्म 52:15, 30

व्यवस्थाविवरण 28:42

फुटनोट

  • *

    या “भिनभिनाते कीड़े।”

व्यवस्थाविवरण 28:44

संबंधित आयतें

  • +नीत 22:7
  • +एज 9:7

व्यवस्थाविवरण 28:45

संबंधित आयतें

  • +व्य 28:15; 29:27
  • +व्य 11:26-28; 2रा 17:20; यिर्म 24:10

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/1995, पेज 15-16

व्यवस्थाविवरण 28:46

संबंधित आयतें

  • +1कुर 10:11

व्यवस्थाविवरण 28:47

संबंधित आयतें

  • +व्य 12:7; नहे 9:35

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/1995, पेज 15-16

व्यवस्थाविवरण 28:48

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 44:27
  • +2इत 12:8, 9; यिर्म 5:19

व्यवस्थाविवरण 28:49

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 6:22; हब 1:6
  • +यिर्म 4:13; हो 8:1
  • +यिर्म 5:15

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  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 7/2019, पेज 3

व्यवस्थाविवरण 28:50

संबंधित आयतें

  • +2इत 36:17; यश 47:6; लूक 19:44

व्यवस्थाविवरण 28:51

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:26; यिर्म 15:13

व्यवस्थाविवरण 28:52

फुटनोट

  • *

    शा., “फाटकों के अंदर।”

संबंधित आयतें

  • +2रा 17:5; 25:1; लूक 19:43

व्यवस्थाविवरण 28:53

फुटनोट

  • *

    शा., “अपने गर्भ के फल।”

संबंधित आयतें

  • +2रा 6:28; विल 4:10; यहे 5:10

व्यवस्थाविवरण 28:55

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 52:6

व्यवस्थाविवरण 28:56

संबंधित आयतें

  • +विल 4:5

व्यवस्थाविवरण 28:58

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 24:7; व्य 31:26
  • +निर्ग 3:15; 6:3; 20:2; भज 83:18; 113:3; यश 42:8
  • +व्य 10:17; भज 99:3

व्यवस्थाविवरण 28:59

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:21; दान 9:12

व्यवस्थाविवरण 28:62

संबंधित आयतें

  • +व्य 10:22
  • +व्य 4:27

व्यवस्थाविवरण 28:64

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:33; नहे 1:8; लूक 21:24
  • +व्य 4:27, 28

व्यवस्थाविवरण 28:65

संबंधित आयतें

  • +आम 9:4
  • +यहे 12:19
  • +लैव 26:16, 36

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

व्यव. 28:1व्य 26:18, 19
व्यव. 28:2लैव 26:3, 4; नीत 10:22; यश 1:19
व्यव. 28:3व्य 11:14
व्यव. 28:4लैव 26:9; व्य 7:13; भज 127:3; 128:3
व्यव. 28:5व्य 26:2
व्यव. 28:5निर्ग 23:25
व्यव. 28:7व्य 32:30; यह 10:11
व्यव. 28:7व्य 7:23; 2इत 14:13
व्यव. 28:8लैव 26:10; नीत 3:9, 10; मला 3:10
व्यव. 28:9व्य 7:6
व्यव. 28:9निर्ग 19:6
व्यव. 28:10यश 43:10; दान 9:19; प्रेष 15:17
व्यव. 28:10गि 22:3; व्य 11:25; यह 5:1
व्यव. 28:11उत 15:18
व्यव. 28:11व्य 30:9; भज 65:9
व्यव. 28:12लैव 26:4; व्य 11:14
व्यव. 28:12व्य 15:6
व्यव. 28:131रा 4:21
व्यव. 28:14व्य 5:32; यह 1:7; यश 30:21
व्यव. 28:14लैव 19:4
व्यव. 28:15लैव 26:16, 17; दान 9:11
व्यव. 28:161रा 17:1
व्यव. 28:17लैव 26:26; व्य 26:2
व्यव. 28:18लैव 26:20, 22; विल 2:11, 19; 4:10
व्यव. 28:20यह 23:16
व्यव. 28:21लैव 26:25; यिर्म 24:10
व्यव. 28:22लैव 26:16
व्यव. 28:22लैव 26:33
व्यव. 28:22आम 4:9
व्यव. 28:23लैव 26:19; व्य 11:17; 1रा 17:1
व्यव. 28:25लैव 26:14, 17; 1शम 4:10
व्यव. 28:25यिर्म 29:18; लूक 21:24
व्यव. 28:26यिर्म 7:33
व्यव. 28:28निर्ग 4:11
व्यव. 28:29यश 59:10
व्यव. 28:29न्या 3:14; 6:1-5; नहे 9:27
व्यव. 28:30यश 5:9; विल 5:2
व्यव. 28:30आम 5:11; मी 6:15
व्यव. 28:322इत 29:9
व्यव. 28:33नहे 9:37; यश 1:7
व्यव. 28:362रा 17:6; 25:7; 2इत 33:11; 36:5, 6
व्यव. 28:36यिर्म 16:13
व्यव. 28:371रा 9:8; 2इत 7:20; यिर्म 24:9; 25:9
व्यव. 28:38यश 5:10; हाग 1:6
व्यव. 28:39सप 1:13
व्यव. 28:412रा 24:14; यिर्म 52:15, 30
व्यव. 28:44नीत 22:7
व्यव. 28:44एज 9:7
व्यव. 28:45व्य 28:15; 29:27
व्यव. 28:45व्य 11:26-28; 2रा 17:20; यिर्म 24:10
व्यव. 28:461कुर 10:11
व्यव. 28:47व्य 12:7; नहे 9:35
व्यव. 28:48यिर्म 44:27
व्यव. 28:482इत 12:8, 9; यिर्म 5:19
व्यव. 28:49यिर्म 6:22; हब 1:6
व्यव. 28:49यिर्म 4:13; हो 8:1
व्यव. 28:49यिर्म 5:15
व्यव. 28:502इत 36:17; यश 47:6; लूक 19:44
व्यव. 28:51लैव 26:26; यिर्म 15:13
व्यव. 28:522रा 17:5; 25:1; लूक 19:43
व्यव. 28:532रा 6:28; विल 4:10; यहे 5:10
व्यव. 28:55यिर्म 52:6
व्यव. 28:56विल 4:5
व्यव. 28:58निर्ग 24:7; व्य 31:26
व्यव. 28:58निर्ग 3:15; 6:3; 20:2; भज 83:18; 113:3; यश 42:8
व्यव. 28:58व्य 10:17; भज 99:3
व्यव. 28:59लैव 26:21; दान 9:12
व्यव. 28:62व्य 10:22
व्यव. 28:62व्य 4:27
व्यव. 28:64लैव 26:33; नहे 1:8; लूक 21:24
व्यव. 28:64व्य 4:27, 28
व्यव. 28:65आम 9:4
व्यव. 28:65यहे 12:19
व्यव. 28:65लैव 26:16, 36
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
व्यवस्थाविवरण 28:1-68

व्यवस्थाविवरण

28 अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की सभी आज्ञाओं को सख्ती से मानोगे जो मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ और इस तरह उसकी बात सुनोगे तो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें दुनिया के सभी राष्ट्रों से ऊँचा उठाएगा।+ 2 अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात हमेशा सुनोगे तो ये सारी आशीषें तुम्हें आ घेरेंगी:+

3 चाहे तुम शहर में रहो या देहात में, परमेश्‍वर की आशीष तुम पर बनी रहेगी।+

4 तुम्हारे बच्चों* पर, तुम्हारी ज़मीन की उपज पर और तुम्हारे बछड़ों और मेम्नों पर परमेश्‍वर की आशीष बनी रहेगी।+

5 तुम्हारी टोकरी+ और आटा गूँधने के बरतन+ पर परमेश्‍वर की आशीष बनी रहेगी।

6 तुम जो भी काम हाथ में लोगे, तुम पर आशीष बनी रहेगी।

7 जब तुम्हारे दुश्‍मन तुम्हारे खिलाफ उठेंगे तो यहोवा ऐसा करेगा कि वे तुमसे हार जाएँगे।+ वे एक दिशा से आकर तुम पर हमला करेंगे, मगर तुमसे हारकर सात दिशाओं में भाग जाएँगे।+ 8 तुम्हारे अनाज के भंडारों पर और तुम जो भी काम हाथ में लेते हो उस पर यहोवा आशीष का हुक्म देगा,+ हाँ, तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें जो देश दे रहा है वहाँ तुम्हें ज़रूर आशीषें देगा। 9 अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाएँ मानते रहोगे और उसकी राहों पर चलते रहोगे, तो यहोवा तुम्हें अपने पवित्र लोग बनाएगा,+ ठीक जैसे उसने शपथ खाकर तुमसे कहा था।+ 10 तब धरती के सब लोग साफ देख पाएँगे कि तुम यहोवा के नाम से पुकारे जाते हो+ और वे तुमसे डरेंगे।+

11 यहोवा ने तुम्हारे पुरखों से जिस देश का वादा किया था+ वहाँ यहोवा तुम्हें बहुत-सी संतानें देगा, तुम्हारे मवेशियों की बढ़ोतरी करेगा और तुम्हारी ज़मीन से भरपूर उपज देगा।+ 12 यहोवा तुम्हारे लिए आकाश का भंडार खोलकर तुम्हारे देश को वक्‍त पर बारिश देगा+ और तुम्हारे सभी कामों पर आशीष देगा। तुम्हारे पास इतना होगा कि तुम बहुत-से राष्ट्रों को उधार दे सकोगे जबकि तुम्हें कभी उनसे उधार नहीं लेना पड़ेगा।+ 13 यहोवा तुम्हें दूसरे राष्ट्रों से आगे रखेगा, पीछे नहीं, तुम हमेशा ऊँचे रहोगे,+ नीचे नहीं, बशर्ते तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाएँ मानते रहो जो आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ। 14 आज मैं तुम्हें जो-जो आज्ञाएँ दे रहा हूँ, उनसे तुम न तो कभी दाएँ मुड़ना और न बाएँ+ और दूसरे देवताओं के पीछे चलकर उनकी सेवा मत करना।+

15 लेकिन अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की सभी आज्ञाओं और विधियों को सख्ती से नहीं मानोगे जो आज मैं तुम्हें सुना रहा हूँ और इस तरह उसकी बात नहीं सुनोगे, तो ये सारे शाप तुम पर आ पड़ेंगे:+

16 चाहे तुम शहर में रहो या देहात में, तुम शापित होगे।+

17 तुम्हारी टोकरी और आटा गूँधने का बरतन शापित होगा।+

18 तुम्हारे बच्चे,* तुम्हारी ज़मीन की उपज, तुम्हारे बछड़े और मेम्ने शापित होंगे।+

19 तुम जो भी काम हाथ में लोगे, तुम शापित होगे।

20 अगर तुम बुरे कामों में लगे रहोगे और यहोवा को छोड़ दोगे, तो तुम जो भी काम हाथ में लोगे उस पर वह शाप देगा, उसमें गड़बड़ी पैदा कर देगा और उसे नाकाम कर देगा और तुम देखते-ही-देखते नाश हो जाओगे।+ 21 यहोवा तुम पर बीमारी भेजेगा जो तुम्हें तब तक अपनी चपेट में लिए रहेगी जब तक कि उस देश से तुम्हारी हस्ती न मिट जाए जिसे तुम अपने अधिकार में करनेवाले हो।+ 22 यहोवा तुम्हें तपेदिक, तेज़ बुखार,+ ज़बरदस्त तपिश, हरारत और तलवार से मारेगा+ और तुम्हारी फसलों को झुलसन और बीमारी से नाश कर देगा।+ ये मुसीबतें तब तक तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगी जब तक कि तुम मिट नहीं जाते। 23 तुम्हारे ऊपर का आसमान ताँबे की तरह बन जाएगा और तुम्हारे नीचे की ज़मीन लोहे जैसी हो जाएगी।+ 24 यहोवा आकाश से तुम्हारे देश पर तब तक धूल-मिट्टी बरसाता रहेगा जब तक कि तुम मिट नहीं जाते। 25 यहोवा ऐसा करेगा कि तुम अपने दुश्‍मनों से हार जाओगे।+ तुम एक दिशा से जाकर उन पर हमला करोगे, मगर तुम हारकर सात दिशाओं में भाग निकलोगे। तुम्हारा ऐसा हश्र होगा कि धरती के सब राज्य देखकर दहल जाएँगे।+ 26 तुम्हारी लाशें आकाश के पक्षियों और धरती के जानवरों का निवाला बन जाएँगी और उन्हें डराकर भगानेवाला कोई न होगा।+

27 यहोवा तुम्हें ऐसे फोड़ों से पीड़ित करेगा जो मिस्र में आम हैं और तुम्हें बवासीर, खाज और त्वचा पर होनेवाले घावों से मारेगा और तुम कभी ठीक नहीं हो पाओगे। 28 यहोवा तुम्हें पागलपन से पीड़ित करेगा, तुम्हें अंधा कर देगा+ और उलझन में डाल देगा।* 29 तुम भरी दोपहरी में भी रास्ता टटोलते रह जाओगे जैसे कोई अंधा अपनी अँधेरी दुनिया में टटोलता फिरता है।+ तुम किसी भी काम में कामयाब नहीं होगे। तुम कदम-कदम पर ठगे और लूटे जाओगे और तुम्हें बचानेवाला कोई न होगा।+ 30 तुम्हारी सगाई तो होगी, मगर कोई दूसरा आदमी आकर तुम्हारी मँगेतर का बलात्कार कर देगा। तुम घर तो बनाओगे मगर उसमें रह नहीं पाओगे।+ तुम अंगूरों का बाग लगाओगे मगर उसके अंगूर नहीं खा पाओगे।+ 31 तुम्हारा बैल तुम्हारी आँखों के सामने हलाल किया जाएगा, मगर तुम उसका गोश्‍त नहीं खा सकोगे। तुम्हारा गधा तुम्हारे सामने ही चुरा लिया जाएगा और तुम्हें कभी लौटाया नहीं जाएगा। तुम्हारी भेड़ों को तुम्हारे दुश्‍मन आकर उठा ले जाएँगे और उन्हें छुड़ानेवाला कोई न होगा। 32 तुम्हारे बेटे-बेटियों को पराए लोग आकर ले जाएँगे+ और तुम देखते रह जाओगे। तुम सारी ज़िंदगी उनके लौटने की राह देखोगे, मगर कुछ नहीं कर पाओगे। 33 तुम्हारी ज़मीन की सारी उपज और खाने-पीने की सारी चीज़ें दूसरे लोग आकर खा जाएँगे, जिन्हें तुम जानते तक नहीं।+ तुम हमेशा ठगे और कुचले जाओगे। 34 तुम अपनी आँखों से ऐसी बरबादी देखोगे कि पागल हो जाओगे।

35 यहोवा तुम्हारे दोनों पैरों और घुटनों को दर्दनाक फोड़ों से पीड़ित करेगा, जो तुम्हारे पैरों के तलवे से लेकर सिर की चाँद तक फैल जाएँगे और उनका कोई इलाज न होगा। 36 यहोवा तुम्हें और तुम्हारे चुने हुए राजा को ऐसे देश में भगाएगा जिसे न तुम जानते हो और न तुम्हारे बाप-दादे जानते थे।+ वहाँ तुम दूसरे देवताओं की, लकड़ी और पत्थर के देवताओं की सेवा करोगे।+ 37 यहोवा तुम्हें भगाकर जिन देशों में भेजेगा वहाँ के सब लोग तुम्हारा हश्र देखकर दहल जाएँगे, तुम मज़ाक* बनकर रह जाओगे, तुम्हारी बरबादी देखकर सब हँसेंगे।+

38 तुम अपने खेत में बहुत बीज बोओगे, मगर उपज कम बटोरोगे+ क्योंकि टिड्डियाँ आकर उसे खा जाएँगी। 39 तुम अंगूरों के बाग लगाओगे और उनकी देखभाल में बहुत मेहनत करोगे, मगर तुम्हें न पीने के लिए दाख-मदिरा मिलेगी, न ही खाने के लिए अंगूर मिलेंगे+ क्योंकि कीड़े तुम्हारे अंगूर खा जाएँगे। 40 तुम्हारे देश-भर में जैतून के पेड़ होंगे, मगर तुम उनका तेल शरीर पर नहीं मल पाओगे क्योंकि तुम्हारे जैतून के फल झड़ जाएँगे। 41 तुम बेटे-बेटियों को जन्म दोगे, मगर वे तुम्हारे नहीं रहेंगे क्योंकि वे बंदी बना लिए जाएँगे।+ 42 तुम्हारे सब पेड़ों और फसलों पर कीड़ों के झुंड-के-झुंड* हमला करेंगे। 43 तुम्हारे बीच रहनेवाला परदेसी तुमसे बढ़ता जाएगा और तुम घटते जाओगे। 44 वह तुम्हें उधार देगा मगर तुम उसे उधार नहीं दे सकोगे।+ वह तुमसे आगे निकल जाएगा और तुम पीछे रह जाओगे।+

45 अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाओं और विधियों को नहीं मानोगे और इस तरह उसकी बात नहीं सुनोगे, तो ये सारे शाप तुम पर ज़रूर आ पड़ेंगे+ और तब तक तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे जब तक कि तुम मिट नहीं जाते।+ 46 ये शाप तुम पर और तुम्हारे वंशजों पर आ पड़ेंगे और हमेशा के लिए एक चेतावनी और निशानी बन जाएँगे+ 47 क्योंकि सबकुछ बहुतायत में होते हुए भी तुमने आनंद और दिली खुशी से अपने परमेश्‍वर यहोवा की सेवा नहीं की होगी।+ 48 यहोवा तुम्हारे खिलाफ दुश्‍मनों को भेजेगा और तुम भूखे-प्यासे,+ फटे-पुराने कपड़ों में और घोर तंगी झेलते हुए उनकी सेवा करोगे।+ परमेश्‍वर तब तक तुम्हारी गरदन पर लोहे का जुआ रखा रहेगा जब तक कि तुम्हें मिटा नहीं देता।

49 यहोवा दूर से, धरती के छोर से एक राष्ट्र को तुम्हारे खिलाफ भेजेगा,+ जो उकाब की तरह तुम पर अचानक झपट पड़ेगा।+ वह ऐसा राष्ट्र होगा जिसकी भाषा तुम नहीं समझते,+ 50 वह खूँखार होगा, न किसी बूढ़े का लिहाज़ करेगा, न किसी बच्चे पर तरस खाएगा।+ 51 उस राष्ट्र के लोग आकर तुम्हारे झुंड के बछड़े और मेम्ने और तुम्हारी ज़मीन की सारी उपज खा जाएँगे और ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक कि तुम मिट नहीं जाते। वे तुम्हारे लिए ज़रा भी अनाज, नयी दाख-मदिरा या तेल या एक भी बछड़ा या मेम्ना तक नहीं छोड़ेंगे और तुम्हें तबाह करके ही रहेंगे।+ 52 वे तुम्हारे सभी शहरों को घेर लेंगे और तुम अपने ही शहरों में* कैद हो जाओगे और वे तब तक घेराबंदी किए रहेंगे जब तक कि तुम्हारी ऊँची-ऊँची, मज़बूत शहरपनाह गिर नहीं जाती जिस पर तुमने भरोसा रखा होगा। हाँ, वे तुम्हारे उस देश के सभी शहरों की घेराबंदी करेंगे जो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें देनेवाला है।+ 53 तुम्हारे शहरों की घेराबंदी इतनी सख्त होगी और दुश्‍मन तुम्हारा इतना बुरा हाल करेंगे कि तुम्हें अपने ही बच्चों* को खाना पड़ेगा। तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें जो बेटे-बेटियाँ दिए हैं, तुम उन्हीं का माँस खाओगे।+

54 तुम्हारे बीच जो आदमी सबसे नरम-दिल है और ठाट-बाट से जीने का आदी है, वह भी अपने भाई पर रहम नहीं करेगा। वह न अपनी प्यारी पत्नी पर, न ही अपने बचे हुए बेटों पर दया करेगा। 55 वह अकेला ही अपने बेटों का माँस खा जाएगा और उनमें से किसी को भी नहीं देगा, क्योंकि घेराबंदी इतनी सख्त होगी और दुश्‍मन तुम्हारे शहरों को इस तरह तबाह कर देंगे कि उसके पास खाने के लिए कुछ और नहीं होगा।+ 56 और तुम्हारे बीच जो औरत सबसे नरम-दिल है और इतनी नाज़ुक है कि अपने पाँव ज़मीन पर रखने की कभी सोच भी नहीं सकती,+ वह भी न अपने पति पर रहम करेगी, न ही अपने बेटे या बेटी पर तरस खाएगी। 57 वह अपने नए जन्मे बच्चे पर या बच्चा जनते वक्‍त उसके गर्भ से जो कुछ निकलता है उस पर भी तरस नहीं खाएगी। वह चोरी-छिपे यह सब खाएगी क्योंकि घेराबंदी बहुत सख्त होगी और दुश्‍मन तुम्हारे शहरों को तबाह कर देंगे।

58 अगर तुम कानून की इस किताब+ में लिखी सभी आज्ञाओं को सख्ती से नहीं मानोगे और अपने परमेश्‍वर यहोवा+ के शानदार और विस्मयकारी नाम से नहीं डरोगे,+ 59 तो यहोवा तुम पर और तुम्हारे बच्चों पर भयानक-से-भयानक कहर ढाएगा। वह तुम पर ऐसे बड़े-बड़े कहर+ और दर्दनाक बीमारियाँ ले आएगा कि तुम उन्हें सालों-साल झेलते रहोगे। 60 परमेश्‍वर तुम पर मिस्र देश की सारी बीमारियाँ ले आएगा जिनसे तुम बहुत डरते थे और वे बीमारियाँ तुम्हें लगी रहेंगी। 61 इतना ही नहीं, यहोवा तुम पर ऐसी हर बीमारी और कहर लाएगा जिसका ज़िक्र कानून की इस किताब में नहीं है और वह ऐसा तब तक करता रहेगा जब तक कि तुम मिट नहीं जाते। 62 भले ही आज तुम्हारी गिनती आसमान के तारों जैसी अनगिनत है,+ लेकिन अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात न मानने की वजह से तुममें से सिर्फ मुट्ठी-भर लोग ही रह जाएँगे।+

63 जिस तरह एक वक्‍त पर यहोवा ने खुशी-खुशी तुम्हें गिनती में बढ़ाया और तुम्हें खुशहाली दी, उसी तरह तुम्हें नाश करने और मिटाने में यहोवा को खुशी मिलेगी और तुम उस देश से उखाड़ दिए जाओगे जिसे तुम अपने अधिकार में करनेवाले हो।

64 यहोवा तुम्हें धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक सब राष्ट्रों में तितर-बितर कर देगा+ और वहाँ तुम्हें लकड़ी और पत्थर के ऐसे देवताओं की सेवा करनी पड़ेगी जिन्हें न तुम जानते हो, न ही तुम्हारे बाप-दादे जानते थे।+ 65 उन राष्ट्रों में रहते तुम्हें शांति नहीं मिलेगी+ और न ही तुम्हें किसी एक जगह रहने का ठिकाना मिलेगा। यहोवा ऐसा करेगा कि तुम्हारा मन हमेशा चिंताओं से घिरा रहेगा,+ छुटकारे की राह तकते-तकते तुम्हारी आँखें थक जाएँगी और तुम पूरी तरह टूट जाओगे।+ 66 तुम्हारी जान जोखिम में होगी, तुम रात-दिन खौफ के साए में जीओगे और तुम पर यह चिंता हावी रहेगी कि कल का दिन मैं देख पाऊँगा भी या नहीं। 67 तुम्हारे दिल में ऐसा डर बैठ जाएगा और तुम्हारी आँखों के सामने ऐसे हालात होंगे कि सुबह होने पर तुम कहोगे, ‘शाम कब होगी?’ और शाम होने पर कहोगे, ‘सुबह कब होगी?’ 68 और यहोवा तुम्हें जहाज़ से उसी रास्ते वापस मिस्र ले जाएगा जिसके बारे में मैंने तुमसे कहा था, ‘तुम इस रास्ते से फिर कभी नहीं जाओगे।’ मिस्र में तुम लाचार होकर खुद को अपने दुश्‍मनों के हाथ बेचना चाहोगे और उनके दास-दासी बनना चाहोगे मगर तुम्हें खरीदनेवाला कोई न होगा।”

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