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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
नहेमायाह

नहेमायाह

1 ये बातें हकल्याह के बेटे नहेमायाह*+ ने लिखीं: राजा* की हुकूमत के 20वें साल में, किसलेव* नाम के महीने में जब मैं शूशन* नाम के किले*+ में था, 2 तब यहूदा से मेरा एक भाई हनानी+ और कुछ आदमी मेरे पास आए। मैंने उन यहूदियों का हाल-चाल पूछा जो बँधुआई से छूटकर वापस गए थे+ और यरूशलेम के बारे में भी पूछा। 3 उन्होंने बताया, “यहूदा प्रांत में रहनेवालों का बुरा हाल है। लोग उनका मज़ाक उड़ाते हैं, उनका अपमान करते हैं।+ यरूशलेम की शहरपनाह अब भी टूटी पड़ी है+ और उसके फाटक जो आग में फूँक दिए गए थे, वे वैसे-के-वैसे पड़े हैं।”+

4 यह सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और शोक मनाने लगा। कई दिनों तक मैंने उपवास किया+ और स्वर्ग के परमेश्‍वर के सामने प्रार्थना की। 5 मैंने कहा, “हे स्वर्ग के परमेश्‍वर यहोवा, तू महान और विस्मयकारी परमेश्‍वर है, अपना करार निभाता है और जो तुझसे प्यार करते हैं और तेरी आज्ञाएँ मानते हैं, उन्हें तू अपने अटल प्यार का सबूत देता है।+ 6 इसलिए तेरा यह सेवक तेरे लोगों के लिए दिन-रात तुझसे जो बिनती कर रहा है, उस पर कान लगा और उसकी तरफ ध्यान दे।+ इसराएलियों ने तेरे खिलाफ पाप किया है और मैं उनके पाप तेरे सामने कबूल करता हूँ। हाँ, मैंने और मेरे पिता के घराने ने पाप किया है।+ 7 हमने सचमुच तेरे खिलाफ दुष्ट काम किए हैं+ और उन आज्ञाओं, कायदे-कानूनों और न्याय-सिद्धांतों को नहीं माना जो तूने अपने सेवक मूसा को दिए थे।+

8 हे परमेश्‍वर, ज़रा उस बात* को याद कर जो तूने अपने सेवक मूसा से कही थी, ‘अगर तुम लोग मेरे साथ विश्‍वासघात करोगे, तो मैं तुम्हें देश-देश के लोगों में तितर-बितर कर दूँगा।+ 9 लेकिन अगर तुम मेरी ओर फिरकर मेरी आज्ञाएँ मानोगे तो मैं तुम्हें इकट्ठा करूँगा। चाहे तुम धरती के कोने-कोने तक क्यों न बिखर गए हो, मैं तुम्हें उस जगह वापस ले आऊँगा+ जो मैंने अपने नाम की महिमा के लिए चुनी है।’+ 10 ये तेरे ही सेवक और तेरे ही लोग हैं जिन्हें तूने अपनी ताकत से, अपने शक्‍तिशाली हाथ से छुड़ाया था।+ 11 इसलिए हे यहोवा, अपने इस सेवक की बिनती पर कान लगा और उन सेवकों की प्रार्थना भी सुन जिन्हें तेरे नाम का डर मानने से खुशी मिलती है। अपने इस सेवक को आज कामयाबी दे। और राजा का दिल पिघला दे ताकि वह मुझ पर दया करे।”+

उन दिनों मैं राजा का साकी था।+

2 अब राजा अर्तक्षत्र के राज+ के 20वें साल में+ नीसान* नाम का महीना आया। राजा के लिए दाख-मदिरा लायी गयी और हमेशा की तरह मैंने वह दाख-मदिरा उसे पेश की।+ मैं राजा के सामने पहले कभी इतना उदास नहीं रहा। 2 इसलिए राजा ने मुझसे पूछा, “तू बीमार नहीं, फिर तेरे चेहरे पर उदासी क्यों छायी है? ज़रूर कोई बात तुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रही है।” यह सुनकर मैं बहुत घबरा गया।

3 मैंने राजा से कहा, “राजा की जय हो! जिस शहर में मेरे पुरखों को दफनाया गया था, जब वही उजाड़ पड़ा हो और उसके फाटक जलकर राख हो गए हों, तो भला मैं खुश कैसे रह सकता हूँ?”+ 4 राजा ने मुझसे पूछा, “बता, तू क्या चाहता है?” उसी वक्‍त मैंने स्वर्ग के परमेश्‍वर से प्रार्थना की।+ 5 फिर मैंने राजा से कहा, “अगर राजा को यह मंज़ूर हो और अगर वह अपने इस सेवक से खुश है, तो वह मुझे यहूदा जाने दे। मुझे उस शहर जाने दे, जहाँ मेरे पुरखों को दफनाया गया था ताकि मैं उसे दोबारा बना सकूँ।”+ 6 तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी हुई थी मुझसे कहा, “तेरा यह सफर कितने दिनों का होगा? और तू कब लौटेगा?” राजा मुझे भेजने के लिए तैयार हो गया+ और मैंने उसे बताया कि मुझे लौटने में कितने दिन लगेंगे।+

7 मैंने राजा से एक और गुज़ारिश की, “हुज़ूर, मुझे महानदी के उस पार* के राज्यपालों के नाम खत दे+ कि वे मुझे अपने इलाके से होकर जाने दें और मैं सही-सलामत यहूदा पहुँच सकूँ। 8 मुझे शाही बाग के रखवाले आसाप के नाम भी एक खत दे ताकि वह मुझे लकड़ियाँ ले जाने दे और मैं ‘मंदिर के किले’+ के फाटक, शहरपनाह+ और अपने रहने के लिए घर बना सकूँ।” मेरा परमेश्‍वर मेरे साथ था इसलिए राजा ने मुझे वे खत दे दिए।+

9 जब मैं महानदी के उस पार पहुँचा, तो मैंने वहाँ के राज्यपालों को राजा के खत दिए। राजा ने मेरे साथ अपने सेनापतियों और घुड़सवारों को भी भेजा था। 10 बेत-होरोन के रहनेवाले सनबल्लत+ और अम्मोनी+ अधिकारी* तोब्याह+ ने जब सुना कि इसराएल के लोगों की मदद करने कोई आया है, तो वे गुस्से से भर गए।

11 एक लंबा सफर तय करने के बाद, मैं यरूशलेम पहुँचा और तीन दिन तक वहीं रहा। 12 मैं रात में कुछ आदमियों को लेकर निकल पड़ा। मैंने किसी को कुछ नहीं बताया कि मेरे परमेश्‍वर ने यरूशलेम के बारे में मेरे मन में क्या बात डाली है। सवारी के लिए हमारे पास एक ही गधा था और उस पर मैं सवार था। 13 मैं रात को ‘घाटी के फाटक’+ से शहर के बाहर निकला और अजगर सोते* के सामने से होते हुए ‘राख के ढेर के फाटक’+ पर पहुँचा। मैंने यरूशलेम की टूटी दीवारों का और राख हो चुके उसके फाटकों का मुआयना किया।+ 14 फिर मैं उस फाटक से होते हुए गया जो सोता फाटक कहलाता है+ और ‘राजा के तालाब’ की तरफ बढ़ा। वहाँ मेरे गधे के निकलने के लिए जगह काफी नहीं थी। 15 फिर भी मैं घाटी+ के रास्ते से ऊपर की तरफ बढ़ता गया और रात-भर शहरपनाह का मुआयना करता रहा। इसके बाद मैं वापस लौट आया और ‘घाटी के फाटक’ से शहर के अंदर आ गया।

16 अधिकारी*+ नहीं जानते थे कि मैं कहाँ गया था और क्या कर रहा था। क्योंकि मैंने अब तक अधिकारियों,* यहूदियों, याजकों, बड़े-बड़े लोगों और मरम्मत का काम करनेवालों को कुछ नहीं बताया था। 17 मुआयना करने के बाद मैंने उन सबसे कहा, “तुम देख सकते हो कि हमारी हालत कितनी बुरी है। यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जलकर राख हो चुके हैं। आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को दोबारा खड़ा करें ताकि लोग हमारा मज़ाक उड़ाना बंद कर दें।” 18 फिर मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा परमेश्‍वर मेरे साथ था+ और राजा ने मुझसे क्या-क्या कहा।+ यह सुनकर वे बोल उठे, “आओ, हम काम शुरू करें।” इस बढ़िया काम के लिए उन्होंने एक-दूसरे की हिम्मत बँधायी।+

19 जब इस बात की खबर बेत-होरोन के रहनेवाले सनबल्लत, अम्मोनी+ अधिकारी* तोब्याह+ और अरब के रहनेवाले गेशेम+ को मिली, तो वे हमारी खिल्ली उड़ाने लगे+ और हमें नीचा दिखाने लगे। वे कहने लगे, “यह क्या हो रहा है? क्या तुम लोग राजा से बगावत कर रहे हो?”+ 20 लेकिन मैंने कहा, “स्वर्ग का परमेश्‍वर हमारे साथ है और वही हमें कामयाबी देगा।+ हम उसके सेवक हैं और हम यह शहरपनाह बनाएँगे। लेकिन यरूशलेम में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं, कोई हक नहीं! न ही तुमने यरूशलेम के लिए कुछ किया है कि तुम्हें याद किया जाए।”+

3 महायाजक एल्याशीब+ और उसके भाइयों ने, जो याजक थे, भेड़ फाटक+ बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने उसे पवित्र ठहराया*+ और उसके दरवाज़े लगाए। उन्होंने हम्मेआ मीनार और हननेल मीनार तक शहरपनाह की मरम्मत की और उसे पवित्र ठहराया।+ 2 यरीहो के आदमियों+ ने शहरपनाह का अगला हिस्सा बनाया और इमरी के बेटे जक्कूर ने उसके बाद का हिस्सा।

3 हस्सनाह के बेटों ने मछली फाटक+ बनाया। उन्होंने लकड़ियों से उसकी चौखट तैयार की+ और उसमें पल्ले, कुंडे और बेड़े लगाए। 4 आगे की दीवार मरेमोत+ ने बनायी जो उरीयाह का बेटा था और उरीयाह हक्कोस का बेटा था। उसके साथवाला हिस्सा मशुल्लाम+ ने बनाया जो बेरेक्याह का बेटा था और बेरेक्याह मशेजबेल का बेटा था। उसके बाद के हिस्से की मरम्मत बाना के बेटे सादोक ने की। 5 वहाँ से आगे की शहरपनाह तकोआ के रहनेवालों+ ने बनायी। लेकिन तकोआ के बड़े-बड़े आदमियों को यह मंज़ूर नहीं था कि वे अपने अधिकारियों के अधीन रहकर काम करें।*

6 पासेह के बेटे योयादा और बसोदयाह के बेटे मशुल्लाम ने ‘पुराने शहर के फाटक’+ की मरम्मत की। उन्होंने लकड़ियों से उसकी चौखट तैयार की और उसमें पल्ले, कुंडे और बेड़े लगाए। 7 उससे आगे के हिस्से की मरम्मत गिबोनी+ मलत्याह और मेरोनोत के रहनेवाले यादोन ने की। गिबोन और मिसपा+ के ये आदमी महानदी*+ के इस पार के राज्यपाल के अधीन थे। 8 शहरपनाह के अगले हिस्से की मरम्मत उज्जीएल नाम के एक सुनार ने की जो हरहयाह का बेटा था। अगला हिस्सा हनन्याह ने खड़ा किया जो खुशबूदार तेल* बनानेवालों में से था। उन्होंने ‘चौड़ी शहरपनाह’+ तक यरूशलेम में पक्की सड़क बनायी।* 9 इससे आगे की शहरपनाह पर रपायाह ने मरम्मत का काम किया। वह हूर का बेटा और यरूशलेम के आधे ज़िले का हाकिम था। 10 हरुमप के बेटे यदायाह ने दीवार के अगले हिस्से की मरम्मत की, जो उसके घर के सामने पड़ता था। वहाँ से आगे के हिस्से को हशबन्याह के बेटे हत्तूश ने ठीक किया।

11 हारीम के बेटे+ मल्कियाह और पहत-मोआब के बेटे+ हश्‍शूब ने शहरपनाह का एक दूसरा हिस्सा और ‘तंदूरों की मीनार’+ दोबारा खड़ी की। 12 इसके बाद का हिस्सा शल्लूम और उसकी बेटियों ने बनाया। शल्लूम हल्लोहेश का बेटा और यरूशलेम के आधे ज़िले का हाकिम था।

13 हानून ने जानोह के निवासियों+ के साथ मिलकर ‘घाटी के फाटक’+ की मरम्मत की। उन्होंने इसमें पल्ले, कुंडे और बेड़े लगाए। उन्होंने 1,000 हाथ* की दूरी तक शहरपनाह भी बनायी, जो ‘राख के ढेर के फाटक’ पर पहुँचती थी।+ 14 ‘राख के ढेर के फाटक’ की मरम्मत मल्कियाह ने की, जो रेकाब का बेटा और बेत-हक्केरेम+ ज़िले का हाकिम था। उसने उसके दरवाज़े खड़े किए और उसमें कुंडे और बेड़े लगाए।

15 मिसपा+ ज़िले के हाकिम और कोलहोजे के बेटे शल्लून ने सोता फाटक+ की मरम्मत की। उसने फाटक की छत बनायी, उसके दरवाज़े खड़े किए और उसमें कुंडे और बेड़े लगाए। उसने ‘राजा के बाग’+ के पास ‘नहर के तालाब’+ से लगी शहरपनाह भी खड़ी की और फिर दाविदपुर+ से नीचे उतरनेवाली सीढ़ियों+ तक इसे बनाया।

16 अगले हिस्से की मरम्मत नहेमायाह ने की, जो अजबूक का बेटा और बेत-सूर+ के आधे ज़िले का हाकिम था। उसने उस शहरपनाह की मरम्मत की जो ‘दाविद के कब्रिस्तान’*+ के सामने से होकर खोदे गए तालाब+ तक जाती थी और वहाँ से ‘वीर योद्धाओं के भवन’ पर पहुँचती थी।

17 शहरपनाह के आगे के हिस्सों की मरम्मत लेवियों ने की। इसका एक हिस्सा बानी के बेटे रहूम की निगरानी में बनाया गया। दूसरा हिस्सा, कीला+ के आधे ज़िले के हाकिम हशब्याह ने अपने ज़िले की ओर से बनाया। 18 उसके बादवाला हिस्सा उनके भाइयों ने बव्वै की निगरानी में तैयार किया, जो हेनादाद का बेटा और कीला के आधे ज़िले का हाकिम था।

19 उसके बाद का हिस्सा येशू के बेटे+ एजेर ने ठीक किया, जो मिसपा का हाकिम था। शहरपनाह का यह हिस्सा पुश्‍ते+ के पास हथियार-घर तक जानेवाली चढ़ाई के सामने था।

20 पुश्‍ते से लेकर महायाजक एल्याशीब+ के घर के द्वार के सामने तक का हिस्सा जब्बै+ के बेटे बारूक ने पूरे ज़ोर-शोर से बनाया।

21 इसके बाद मरेमोत+ ने एक और हिस्सा बनाया। वह उरीयाह का बेटा था और उरीयाह हक्कोस का बेटा था। उसने एल्याशीब के घर के द्वार से लेकर उसका घर जहाँ खत्म होता था, वहाँ तक की शहरपनाह बनायी।

22 अगले हिस्से पर यरदन ज़िले*+ के याजकों ने काम किया। 23 बिन्यामीन और हश्‍शूब ने उसके आगे के हिस्से की मरम्मत की, जो उनके घर के सामने पड़ता था। उसके बाद के हिस्से पर अजरयाह ने काम किया, जो मासेयाह का बेटा था और मासेयाह अनन्याह का बेटा था। उसने अपने घर के पासवाली शहरपनाह की मरम्मत की। 24 वहाँ से आगे हेनादाद के बेटे बिन्‍नूई ने काम किया और पुश्‍ते+ और शहरपनाह के मोड़ तक का हिस्सा बनाया।

25 इसके बाद ऊजै के बेटे पालाल ने शहरपनाह के आगे का हिस्सा बनाया। यह हिस्सा पुश्‍ते के सामने और राजभवन+ में खड़ी मीनार के सामने था। यह ऊपरी मीनार ‘पहरेदारों के आँगन’+ में थी। शहरपनाह के आगे का हिस्सा परोश के बेटे+ पदायाह ने खड़ा किया।

26 ओपेल में रहनेवाले मंदिर के सेवकों*+ ने पूरब में पानी फाटक+ के सामने तक और उभरी हुई मीनार तक शहरपनाह बनायी।

27 तकोआ के लोगों+ ने शहरपनाह का एक और हिस्सा बनाया। उन्होंने उभरी हुई मीनार के सामने से लेकर ओपेल की दीवार तक मरम्मत की।

28 घोड़ा फाटक+ से ऊपर की शहरपनाह याजकों ने बनायी। हर याजक ने शहरपनाह के उस हिस्से की मरम्मत की जो उसके घर के सामने पड़ता था।

29 आगे का हिस्सा इम्मेर के बेटे सादोक+ ने बनाया। यह हिस्सा उसके घर के सामने था।

उसके बाद का हिस्सा शकन्याह के बेटे शमायाह ने बनाया, जो पूरब फाटक+ का रखवाला था।

30 शेलेम्याह के बेटे हनन्याह और सालाप के छठे बेटे हानून ने शहरपनाह के अगले हिस्से की मरम्मत की।

वहाँ से आगे का हिस्सा बेरेक्याह के बेटे मशुल्लाम+ ने बनाया, जो उसके बड़े कमरे के सामने पड़ता था।

31 आगे की शहरपनाह सुनारों के संघ के सदस्य मल्कियाह ने बनायी। उसने निरीक्षण फाटक के पास मंदिर के सेवकों*+ और लेन-देन करनेवालों के घर तक शहरपनाह खड़ी की। उसने शहरपनाह के मोड़ पर बने ऊपरी कमरे तक भी मरम्मत का काम किया।

32 फिर मोड़ पर बने ऊपरी कमरे से लेकर भेड़ फाटक+ तक का हिस्सा सुनारों और लेन-देन करनेवालों ने बनाया।

4 जब सनबल्लत+ ने सुना कि हम लोग शहरपनाह की मरम्मत कर रहे हैं, तो यह बात उसे रास नहीं आयी और वह बहुत गुस्सा हुआ। वह हम यहूदियों का मज़ाक भी उड़ाने लगा। 2 वह अपने भाइयों और सामरिया की सेना के सामने कहने लगा, “ये कमज़ोर यहूदी क्या कर रहे हैं? क्या वे अपने दम पर शहरपनाह खड़ी कर लेंगे? और बलिदान चढ़ाएँगे? क्या उनका काम एक ही दिन में पूरा हो जाएगा? कहाँ से लाएँगे पत्थर, क्या मलबे में पड़े जले पत्थर लगाएँगे दीवारों में?”+

3 उसके पास खड़े अम्मोनी+ तोब्याह+ ने कहा, “ये जो दीवार बना रहे हैं, उस पर अगर एक लोमड़ी भी चढ़ जाए तो यह आसानी से गिर जाएगी।”

4 तब मैंने प्रार्थना की, “हे हमारे परमेश्‍वर, देख! ये लोग कैसे हमें नीचा दिखा रहे हैं।+ ऐसा हो कि जिस तरह ये हमारा अपमान कर रहे हैं, उसी तरह इनका भी अपमान हो।+ और इन्हें बंदी बनाकर पराए देश में ले जाया जाए, जैसे लूट का माल ले जाया जाता है। 5 तू इनके दोष को अनदेखा मत करना और इनके पापों को मत मिटाना।+ क्योंकि इन्होंने शहरपनाह बनानेवालों का अपमान किया है।”

6 हम शहरपनाह की मरम्मत करते रहे। वह जहाँ-जहाँ से टूटी थी, उसे हमने फिर से बनाया। और बनाते-बनाते हमने उसे आधी ऊँचाई तक खड़ा कर दिया। लोग दिल लगाकर काम करते रहे।

7 जब सनबल्लत, तोब्याह,+ अरबी लोगों,+ अम्मोनियों और अशदोदियों+ ने सुना कि यरूशलेम की शहरपनाह का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है और उसके टूटे हुए हिस्से दोबारा बनाए जा रहे हैं, तो वे बौखला उठे। 8 उन्होंने मिलकर साज़िश की कि वे यरूशलेम पर हमला बोलेंगे और चारों तरफ खलबली मचा देंगे। 9 तब हमने अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना की और दुश्‍मनों से बचने के लिए दिन-रात पहरा बिठा दिया।

10 अब यहूदा के लोग कहने लगे, “शहरपनाह का काम करनेवाले* पस्त हो चुके हैं और अभी-भी बहुत सारा मलबा हटाना बाकी है। इन लोगों के बिना हम शहरपनाह का काम कभी पूरा नहीं कर पाएँगे।”

11 हमारे दुश्‍मन आपस में कह रहे थे, “इससे पहले कि वे हमें आते देख लें या समझ जाएँ कि हम क्या करनेवाले हैं, आओ हम उनके बीच घुसकर उन्हें मार डालें और उनका काम रोक दें।”

12 उनके आस-पास रहनेवाले यहूदी जब भी मरम्मत करने यरूशलेम आते, तो हमसे बार-बार* कहते, “दुश्‍मन चारों तरफ से हम पर हमला कर देंगे।”

13 इसलिए मैंने खुली जगहों पर और जहाँ शहरपनाह की दीवारें नीची थीं, वहाँ आदमी तैनात कर दिए। मैंने उनके परिवार के हिसाब से उन्हें खड़ा किया और उनके हाथ में तलवारें, बरछियाँ और तीर-कमान दिए। 14 जब मैंने देखा कि लोग डर रहे हैं, तो मैंने फौरन वहाँ के बड़े-बड़े लोगों, अधिकारियों* और बाकी लोगों से कहा,+ “दुश्‍मनों से मत डरो।+ अपने महान और विस्मयकारी परमेश्‍वर यहोवा+ को याद रखो और अपने भाइयों, बेटे-बेटियों, पत्नियों और अपने घरों के लिए लड़ो।”

15 उधर दुश्‍मनों ने सुना कि हमें उनकी साज़िश का पता चल गया है और उन्होंने जान लिया कि सच्चे परमेश्‍वर ने उनकी चाल नाकाम कर दी है। इधर हम फिर से शहरपनाह बनाने में लग गए। 16 मगर उस दिन से मेरे आधे आदमी मरम्मत का काम करने लगे+ और आधे आदमी बख्तर पहने और बरछी, ढाल और तीर-कमान लिए पहरा देने लगे। और हाकिम+ मदद करने के लिए यहूदा के उन लोगों के पीछे खड़े रहे 17 जो शहरपनाह की मरम्मत कर रहे थे। बोझ ढोनेवाले एक हाथ से काम कर रहे थे और दूसरे हाथ में हथियार* पकड़े हुए थे। 18 शहरपनाह बनानेवाला हर आदमी कमर में तलवार बाँधे काम कर रहा था। और नरसिंगा फूँकनेवाला+ आदमी मेरे साथ खड़ा था।

19 तब मैंने बड़े-बड़े लोगों, अधिकारियों* और बाकी लोगों से कहा, “अब भी बहुत काम बाकी है। हम शहरपनाह के अलग-अलग हिस्सों पर काम कर रहे हैं और इस वजह से एक-दूसरे से काफी दूर हैं। 20 इसलिए जब तुम नरसिंगे की आवाज़ सुनो, तो हमारे पास आकर इकट्ठा हो जाना। हमारी तरफ से हमारा परमेश्‍वर लड़ेगा।”+

21 हम हर दिन पौ फटने से लेकर रात को तारे निकलने तक काम करते रहे। हममें से आधे लोग शहरपनाह बना रहे थे और आधे लोग बरछी पकड़े पहरा दे रहे थे। 22 तब मैंने लोगों से कहा, “हर आदमी अपने सेवक के साथ यरूशलेम में ही रात गुज़ारे। वे रात-भर पहरा देंगे और दिन में काम करेंगे।” 23 इसलिए मैं, मेरे भाई, मेरे सेवक+ और मेरे साथ रहनेवाले पहरेदार दिन-रात अपने कपड़े पहने रहे। हममें से हरेक अपने दाएँ हाथ में हथियार लिए तैयार रहता था।

5 फिर कुछ आदमी और उनकी पत्नियाँ अपने यहूदी भाइयों के खिलाफ बड़ी-बड़ी शिकायतें लेकर आए।+ 2 उनमें से कुछ कहने लगे, “हमारा परिवार बड़ा है, हमारे कई बेटे-बेटियाँ हैं। ज़िंदा रहने के लिए हमें कम-से-कम अनाज तो चाहिए।” 3 कुछ और लोगों ने कहा, “हमें अपने खेत, अंगूरों के बाग और घर गिरवी रखने पड़ रहे हैं ताकि इस अकाल में हमें खाने को मिल सके।” 4 दूसरे यह शिकायत करने लगे, “हमें राजा को कर चुकाने के लिए अपने खेत और अंगूरों के बाग गिरवी रखकर उधार लेना पड़ रहा है।+ 5 हम कोई पराए नहीं, उनके अपने भाई हैं। हमारे बच्चे उनके बच्चों की तरह हैं। फिर भी हमें अपने बेटे-बेटियों को उनकी गुलामी में देना पड़ रहा है। हमारी कुछ बेटियाँ तो पहले से उनकी गुलामी में हैं।+ हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमारे खेत और अंगूरों के बाग अब हमारे नहीं रहे।”

6 उनकी बातें और रोना-बिलखना सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। 7 मैंने इन बातों पर बहुत सोचा और फिर यहूदियों के बड़े-बड़े लोगों और अधिकारियों* को फटकार लगायी। मैंने कहा, “यह मैं क्या सुन रहा हूँ, तुम अपने ही भाइयों से ब्याज खा रहे हो?”+

उनकी वजह से मैंने एक बड़ी सभा बुलायी। 8 मैंने उनसे कहा, “हमारे यहूदी भाई दूसरे राष्ट्रों के हाथ बिक चुके थे और हमसे जो कुछ बन पड़ा वह हमने किया और उन्हें छुड़ाया। लेकिन अब तुम अपने ही भाइयों को गुलामी में बेच रहे हो?+ क्या उन्हें छुड़ाने के लिए हमें तुम्हें भी पैसे देने पड़ेंगे?” यह सुनकर वे बगलें झाँकने लगे और वहाँ चुप्पी छा गयी। 9 मैंने कहा, “यह तुम अच्छा नहीं कर रहे। तुम्हें परमेश्‍वर का डर मानना चाहिए+ और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे दुश्‍मन राष्ट्र हमारी खिल्ली उड़ाएँ। 10 इसलिए मेहरबानी करके ब्याज लेना बंद करो। मैं, मेरे भाई और मेरे सेवक भी अपने यहूदी भाइयों को बगैर ब्याज के पैसा और अनाज उधार दे रहे हैं।+ 11 तुमसे बिनती है कि आज ही अपने भाइयों के खेत, अंगूर और जैतून के बाग और उनके घर उन्हें लौटा दो।+ और ब्याज के तौर पर तुमने उनसे जो पैसा,* अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल लिया है, उसे भी वापस कर दो।”

12 उन आदमियों ने कहा, “हम उनका सबकुछ लौटा देंगे और उनसे कुछ नहीं माँगेंगे। जैसा तूने कहा है हम वैसा ही करेंगे।” तब मैंने याजकों को बुलाया और उन आदमियों से इसकी शपथ खिलवायी। 13 मैंने अपने बागे की ऊपरी तह झाड़कर कहा, “जो आदमी अपनी बात से मुकर जाएगा, सच्चा परमेश्‍वर उसे उसके घर और उसकी जायदाद से अलग कर देगा। इस तरह उसे झाड़ दिया जाएगा और वह कंगाल हो जाएगा।” यह सुनकर पूरी मंडली ने कहा “आमीन!”* फिर सबने यहोवा की बड़ाई की और लोगों ने जो-जो कहा था उसे पूरा किया।

14 राजा अर्तक्षत्र+ ने अपने राज के 20वें साल में+ मुझे यहूदा के इलाके का राज्यपाल बनाया था+ और उसके राज के 32वें साल तक+ मैं यहूदा का राज्यपाल रहा। मगर इन 12 सालों में मैंने और मेरे भाइयों ने कभी-भी यहूदियों से खाने का भत्ता नहीं माँगा, जो कि एक राज्यपाल का हक था।+ 15 लेकिन मुझसे पहले जितने भी राज्यपाल रहे, उन सबने लोगों का जीना दूभर कर दिया था। वे अपने खाने और दाख-मदिरा के लिए उनसे हर दिन 40 शेकेल* चाँदी लेते थे। उनके सेवकों ने भी लोगों के साथ बहुत ज़्यादती की। जबकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया+ क्योंकि मैं परमेश्‍वर का डर मानता था।+

16 यही नहीं, मैंने शहरपनाह बनाने में भी हाथ बँटाया और मेरे सेवकों ने भी इसे बनाने में मदद दी। लेकिन हमने किसी की ज़मीन नहीं ली।+ 17 इसके बजाय, मेरे यहाँ 150 यहूदी और अधिकारी* और दूसरे राष्ट्रों से आए लोग खाना खाते थे। 18 हर दिन मेरे हुक्म पर* एक बैल, छ: मोटी-ताज़ी भेड़ें और चिड़ियाँ पकायी जाती थीं। हर दसवें दिन तरह-तरह की दाख-मदिरा बहुतायत में पेश की जाती थी। मगर मैंने कभी-भी राज्यपाल को मिलनेवाला भत्ता नहीं माँगा क्योंकि लोग पहले से राजा की सेवा में पिसे जा रहे थे। 19 हे मेरे परमेश्‍वर, मैंने इन लोगों की खातिर जो काम किए हैं, उन्हें तू याद रखना और मुझ पर कृपा करना।*+

6 अब सनबल्लत, तोब्याह,+ अरब के रहनेवाले गेशेम+ और हमारे बाकी दुश्‍मनों को यह पता चला कि मैंने पूरी शहरपनाह बना ली है+ और सारे टूटे हुए हिस्सों की मरम्मत कर दी है (हालाँकि उस समय तक मैंने फाटकों के पल्ले नहीं लगाए थे)।+ 2 तब सनबल्लत और गेशेम ने तुरंत मुझे यह संदेश भेजा, “हम तुझसे मिलना चाहते हैं। क्यों न हम एक समय तय करें और ओनो+ के मैदान में बसे एक गाँव में मिलें?” मगर उनका इरादा मुझे नुकसान पहुँचाने का था। 3 इसलिए मैंने अपने आदमी भेजकर उनसे कहा, “मैं बहुत ज़रूरी काम में लगा हूँ, मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता। अगर मैं आया, तो यह काम रुक जाएगा।” 4 उन्होंने चार बार मुझे यही संदेश भिजवाया और हर बार मेरा वही जवाब था।

5 तब सनबल्लत ने पाँचवीं बार उसी संदेश के साथ अपना सेवक भेजा। उसके हाथ में एक खुली चिट्ठी थी। 6 उसमें लिखा था, “लोगों में यह चर्चा हो रही है और गेशेम+ का भी कहना है कि तू और तेरे यहूदी लोग राजा से बगावत करने की सोच रहे हैं,+ इसीलिए तू यह शहरपनाह बना रहा है। यह भी सुनने में आया है कि तू यहूदियों का राजा बनना चाहता है। 7 तूने अपने लिए भविष्यवक्‍ता भी ठहराए हैं, जो पूरे यरूशलेम में तेरे बारे में यह ऐलान कर रहे हैं, ‘यहूदा में एक नया राजा आया है।’ ये बातें राजा तक पहुँच ही जाएँगी। इसलिए आ, हम इस मामले पर बात करें और इसे सुलझाएँ।”

8 लेकिन मैंने उसे यह जवाब दिया, “जो कुछ तूने कहा वह सरासर झूठ है। ये सब तेरे मन की गढ़ी हुई बातें हैं।” 9 दरअसल यह हमें डराने के लिए किया गया था। उन्हें लगा कि अगर हमारे हाथ ढीले पड़ जाएँ, तो हमारा काम धरा-का-धरा रह जाएगा।+ इसलिए हे परमेश्‍वर, मेरे हाथों को मज़बूत कर।+

10 फिर मैं शमायाह के घर गया जो दलायाह का बेटा और महेतबेल का पोता था। शमायाह अपने घर में छिपकर बैठा था। उसने मुझसे कहा, “दुश्‍मन तुझे मारने आ रहे हैं। आ, हम तय करें कि हम किस वक्‍त सच्चे परमेश्‍वर के भवन में, मंदिर के अंदर मिलेंगे। हम मंदिर के दरवाज़े बंद कर लेंगे और छिप जाएँगे। देख! आज रात ही वे तुझे मारने आ रहे हैं।” 11 लेकिन मैंने कहा, “क्या मैं कोई डरपोक हूँ जो भागकर छिप जाऊँ? और अगर मुझ जैसा आम आदमी मंदिर के अंदर गया, तो क्या मारा नहीं जाएगा?+ नहीं! मैं मंदिर के अंदर नहीं जाऊँगा।” 12 मैं समझ गया कि शमायाह परमेश्‍वर की तरफ से नहीं बोल रहा है, वह तोब्याह और सनबल्लत+ के हाथ बिक चुका है। 13 उनके कहने पर उसने मुझे डराने की कोशिश की और मुझसे पाप करवाना चाहा ताकि दुश्‍मनों को मेरे नाम पर कीचड़ उछालने और मुझ पर दोष लगाने का मौका मिल जाए।

14 हे मेरे परमेश्‍वर, तुझसे बिनती है कि तू तोब्याह+ और सनबल्लत के बुरे कामों को मत भूलना। और भविष्यवक्‍तिन नोअद्याह और बाकी भविष्यवक्‍ताओं ने बार-बार मुझे डराने की जो कोशिश की, उसे भी मत भूलना।

15 एलूल* महीने के 25वें दिन शहरपनाह बनकर तैयार हो गयी। उसे बनाने में कुल 52 दिन लगे।

16 जब हमारे दुश्‍मनों और आस-पास के देशों के लोगों को यह खबर मिली, तो वे बहुत शर्मिंदा हुए।*+ और वे जान गए कि हमारे परमेश्‍वर की मदद से ही हम यह काम पूरा कर पाए हैं। 17 उन दिनों यहूदा के बड़े-बड़े लोग+ तोब्याह को बहुत-से खत लिखते थे और तोब्याह भी उनकी चिट्ठियों का जवाब दिया करता था। 18 कई यहूदियों ने तोब्याह का साथ देने की कसम खायी हुई थी क्योंकि वह आरह के बेटे+ शकन्याह का दामाद था। और तोब्याह के बेटे यहोहानान ने भी बेरेक्याह के बेटे मशुल्लाम+ की बेटी से शादी की थी। 19 ये यहूदी हमेशा मुझसे तोब्याह के बारे में अच्छी-अच्छी बातें करते थे और मैं उनसे जो भी कहता था उसकी खबर वे तुरंत तोब्याह को दे देते थे। और फिर तोब्याह मुझे डराने के लिए खत भेजता था।+

7 जैसे ही शहरपनाह बनकर तैयार हुई,+ मैंने उसके फाटकों में पल्ले लगवाए।+ इसके बाद मैंने पहरेदारों,+ गायकों+ और लेवियों+ को ठहराया कि वे अपना-अपना काम करें। 2 फिर मैंने अपने भाई हनानी+ और किले+ के प्रधान हनन्याह को यरूशलेम की देखरेख का ज़िम्मा सौंपा। मैंने हनन्याह को इसलिए चुना क्योंकि वह दूसरों से ज़्यादा सच्चे परमेश्‍वर का डर मानता था+ और बहुत भरोसेमंद था। 3 मैंने उन्हें हुक्म दिया, “दिन चढ़ने के बाद ही पहरेदार फाटक खोलें और पहरेदारी खत्म करने से पहले वे फाटक बंद करके उसके बेड़े लगा दें। पहरा देने के लिए यरूशलेम के निवासियों को ठहराओ। कुछ लोगों को पहरे की चौकियों पर तैनात करो और कुछ को उनके घरों के सामने।” 4 यरूशलेम एक बड़ा शहर था और दूर-दूर तक फैला हुआ था। मगर उसमें सिर्फ मुट्ठी-भर लोग रहते थे+ और गिने-चुने घर थे।

5 तब मेरे परमेश्‍वर ने मेरे मन में यह बात डाली कि मैं बड़े-बड़े लोगों, अधिकारियों* और बाकी लोगों को इकट्ठा करूँ और उनकी वंशावलियों के हिसाब से उनके नाम लिखूँ।+ उस वक्‍त मुझे वंशावली की किताब मिली, जिसमें उन लोगों के नाम लिखे थे जो सबसे पहले यरूशलेम लौटे थे। उस किताब में लिखा था:

6 “ये लोग उनमें से हैं जिन्हें बैबिलोन का राजा नबूकदनेस्सर+ बंदी बनाकर ले गया था+ और जो छूटकर वापस यरूशलेम और यहूदा में अपने-अपने शहर लौटे। पूरे प्रांत से ये लोग+ 7 जरुबाबेल,+ येशू,+ नहेमायाह, अजरयाह,* राम्याह,* नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिसपेरेत,* बिगवै, नीहुम* और बानाह के साथ वापस आए।

लौटनेवाले इसराएलियों की गिनती यह थी:+ 8 परोश के बेटे* 2,172; 9 शपत्याह के बेटे 372; 10 आरह के बेटे+ 652; 11 पहत-मोआब के घराने+ से येशू और योआब के बेटे+ 2,818; 12 एलाम के बेटे+ 1,254; 13 जत्तू के बेटे 845; 14 जक्कै के बेटे 760; 15 बिन्‍नूई के बेटे 648; 16 बेबई के बेटे 628; 17 अजगाद के बेटे 2,322; 18 अदोनीकाम के बेटे 667; 19 बिगवै के बेटे 2,067; 20 आदीन के बेटे 655; 21 हिजकियाह के घराने से आतेर के बेटे 98; 22 हाशूम के बेटे 328; 23 बेजै के बेटे 324; 24 हारीप के बेटे 112; 25 गिबोन के बेटे+ 95; 26 बेतलेहेम और नतोपा के आदमी 188; 27 अनातोत+ के आदमी 128; 28 बेत-अज़मावेत के आदमी 42; 29 किरयत-यारीम,+ कपीरा और बएरोत+ के आदमी 743; 30 रामाह और गेबा+ के आदमी 621; 31 मिकमास+ के आदमी 122; 32 बेतेल+ और ऐ+ के आदमी 123; 33 दूसरे नबो के आदमी 52; 34 एलाम नाम के एक दूसरे आदमी के बेटे 1,254; 35 हारीम के बेटे 320; 36 यरीहो के बेटे 345; 37 लोद, हादीद और ओनो+ के बेटे 721 38 और सना के बेटे 3,930.

39 लौटनेवाले याजकों की गिनती यह थी:+ येशू के घराने से यदायाह के बेटे 973; 40 इम्मेर के बेटे 1,052; 41 पशहूर के बेटे+ 1,247 42 और हारीम के बेटे+ 1,017.

43 लौटनेवाले लेवियों की गिनती यह थी:+ होदवा के बेटों में से येशू या कदमीएल के बेटे+ 74. 44 गायकों+ में, आसाप+ के बेटे 148. 45 पहरेदारों+ में, शल्लूम के बेटे, आतेर के बेटे, तल्मोन के बेटे, अक्कूब+ के बेटे, हतीता के बेटे और शोबै के बेटे 138.

46 मंदिर के सेवकों* में से ये आदमी लौटे:+ ज़ीहा के बेटे, हसूपा के बेटे, तब्बाओत के बेटे, 47 केरोस के बेटे, सीआ* के बेटे, पादोन के बेटे, 48 लबाना के बेटे, हगाबा के बेटे, शलमै के बेटे, 49 हानान के बेटे, गिद्देल के बेटे, गहर के बेटे, 50 रायाह के बेटे, रसीन के बेटे, नकोदा के बेटे, 51 गज्जाम के बेटे, उज्जा के बेटे, पासेह के बेटे, 52 बेसै के बेटे, मऊनियों के बेटे, नपीशीसिम* के बेटे, 53 बकबूक के बेटे, हकूपा के बेटे, हरहूर के बेटे, 54 बसलीत* के बेटे, महीदा के बेटे, हरशा के बेटे, 55 बरकोस के बेटे, सीसरा के बेटे, तेमह के बेटे, 56 नसीह के बेटे और हतीपा के बेटे।

57 सुलैमान के सेवकों के ये बेटे लौटे:+ सोतै के बेटे, सोपेरेत के बेटे, परीदा* के बेटे, 58 याला के बेटे, दरकोन के बेटे, गिद्देल के बेटे, 59 शपत्याह के बेटे, हत्तील के बेटे, पोकरेत-हसबायीम के बेटे और आमोन* के बेटे। 60 मंदिर के सेवकों*+ की और सुलैमान के सेवकों के बेटों की कुल गिनती 392 थी।

61 कुछ आदमी जो तेल-मेलह, तेल-हरशा, करूब, अद्दोन और इम्मेर से लौटे थे, वे यह साबित नहीं कर पाए कि वे इसराएली हैं और उनके पिता का कुल इसराएल से निकला है। वे थे,+ 62 दलायाह के बेटे, तोब्याह के बेटे और नकोदा के बेटे 642. 63 और याजकों में से हबायाह के बेटे, हक्कोस के बेटे+ और बरजिल्लै के बेटे। यह वही बरजिल्लै है जिसने गिलादी बरजिल्लै+ की एक बेटी से शादी की थी और उनका नाम अपना लिया था। 64 इन लोगों ने अपनी वंशावली साबित करने के लिए दस्तावेज़ों में अपने घराने का नाम ढूँढ़ा, मगर उन्हें नहीं मिला। इसलिए याजकपद के लिए वे अयोग्य ठहरे।*+ 65 राज्यपाल*+ ने उनसे कहा कि जब तक कोई याजक नहीं ठहराया जाता जो ऊरीम और तुम्मीम की मदद से इस मामले का पता लगा सके,+ तब तक तुम सबसे पवित्र चीज़ों में से मत खाना।+

66 बँधुआई से लौटनेवाली पूरी मंडली की कुल गिनती 42,360 थी।+ 67 इसके अलावा, उनके साथ लौटनेवाले दास-दासियों+ की गिनती 7,337 थी। और 245 गायक-गायिकाएँ उनके साथ थे।+ 68 यही नहीं, उनके पास 736 घोड़े, 245 खच्चर, 69 435 ऊँट और 6,720 गधे थे।

70 कुछ लोगों ने, जो अपने पिता के कुल के मुखिया थे, काम के लिए दान दिया।+ राज्यपाल* ने खज़ाने में 1,000 द्राख्मा* सोना, 50 कटोरे और याजकों के लिए 530 पोशाकें दीं।+ 71 और इसराएल के कुल के कुछ मुखियाओं ने 20,000 द्राख्मा सोना और 2,200 मीना* चाँदी दी। 72 बाकी लोगों ने 20,000 द्राख्मा सोना, 2,000 मीना चाँदी और याजकों के लिए 67 पोशाकें दीं।

73 तब याजक, लेवी, पहरेदार, गायक,+ मंदिर के सेवक* और बाकी लोग अपने-अपने शहरों में बस गए।+ इस तरह सातवें महीने+ तक सभी इसराएली अपने-अपने शहरों में रहने लगे।”+

8 फिर सब लोग एक मन होकर पानी फाटक+ के सामनेवाले चौक में इकट्ठा हुए। उन्होंने नकल-नवीस* एज्रा+ को मूसा के कानून की किताब+ लाने को कहा, जिसमें इसराएलियों के लिए यहोवा की आज्ञाएँ लिखी थीं।+ 2 तब याजक एज्रा कानून की किताब लेकर मंडली के सामने आया।+ वहाँ आदमी-औरतों के अलावा ऐसे बच्चे भी थे, जो बतायी जानेवाली बातें समझ सकते थे। यह सातवें महीने का पहला दिन था।+ 3 एज्रा ने पानी फाटक के सामनेवाले चौक में सुबह से लेकर दोपहर तक कानून की किताब पढ़कर सुनायी।+ और वहाँ इकट्ठा आदमी-औरतों और बच्चों ने ध्यान से सुना।+ 4 नकल-नवीस* एज्रा लकड़ी के मंच पर खड़ा था, जो खास इसी मौके के लिए बनाया गया था। एज्रा के साथ उसके दायीं तरफ मतित्याह, शमा, अनायाह, उरियाह, हिलकियाह और मासेयाह खड़े थे। और बायीं तरफ पदायाह, मीशाएल, मल्कियाह,+ हाशूम, हश-बद्दाना, जकरयाह और मशुल्लाम खड़े थे।

5 एज्रा एक ऊँची जगह पर खड़ा था, जहाँ लोग उसे देख सकते थे। जब उसने कानून की किताब खोली, तो सब-के-सब खड़े हो गए। 6 वह सच्चे और महान परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई करने लगा। और सब लोग अपने हाथ ऊपर उठाकर कहने लगे, “आमीन!”* “आमीन!”+ इसके बाद उन्होंने मुँह के बल गिरकर यहोवा को दंडवत किया। 7 फिर लेवियों में से येशू, बानी, शेरेब्याह,+ यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदियाह, मासेयाह, कलीता, अजरयाह, योजाबाद,+ हानान और पलायाह लोगों को कानून में लिखीं बातें समझाने लगे।+ लोग खड़े-खड़े उनकी बातें सुनते रहे। 8 लेवी सच्चे परमेश्‍वर के कानून की किताब पढ़कर सुनाते रहे। वे उसमें लिखी बातें खुलकर समझाने और उनका मतलब बताने लगे। इस तरह, पढ़ी जानेवाली बातों को समझने में उन्होंने लोगों की मदद की।*+

9 फिर उस वक्‍त के राज्यपाल* नहेमायाह, याजक और नकल-नवीस* एज्रा+ और लोगों को सिखानेवाले लेवियों ने वहाँ मौजूद भीड़ से कहा, “यह दिन तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा के लिए पवित्र है।+ इसलिए न तो रोओ, न ही शोक मनाओ।” उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि लोग कानून में लिखी बातें सुनकर रो रहे थे। 10 नहेमायाह ने उनसे कहा, “जाओ और जाकर चिकना-चिकना खाना खाओ और कुछ मीठा पीओ। और उन लोगों को खाने की चीज़ें भेजो+ जिनके पास खाने को कुछ नहीं है। यह दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है। दुखी मत हो क्योंकि जो खुशी यहोवा देता है वह तुम्हारे लिए एक मज़बूत गढ़ है।”* 11 लेवी सब लोगों को यह कहकर शांत करने लगे, “रोओ मत, दुखी मत हो! क्योंकि यह दिन एक पवित्र दिन है।” 12 तब सब लोग खाने-पीने गए और उन्होंने दूसरों को भी खाने की चीज़ें भेजीं। उन्होंने बड़ी खुशियाँ मनायीं+ क्योंकि जो-जो बातें उन्हें पढ़कर सुनायी गयी थीं, वे उनकी समझ में आ गयी थीं।+

13 अगले दिन इसराएल के कुलों के मुखिया, याजक और लेवी, कानून में लिखी बातों की और ज़्यादा समझ पाने के लिए नकल-नवीस* एज्रा के पास आए। 14 उन्होंने कानून में यह लिखा हुआ पाया कि यहोवा ने मूसा के ज़रिए इसराएलियों को आज्ञा दी थी कि सातवें महीने में जो त्योहार मनाया जाएगा, उस दौरान उन्हें छप्परों में रहना है।+ 15 और सभी शहरों और पूरे यरूशलेम में यह ऐलान करना है,+ “पहाड़ी इलाके में जाओ और जैतून, चीड़, मेंहदी और खजूर के पेड़ की घनी डालियाँ तोड़कर लाओ और दूसरे पेड़ों से भी घनी डालियाँ तोड़कर लाओ। और उनसे छप्पर बनाओ क्योंकि कानून में यही लिखा है।”

16 तब लोग जाकर घनी डालियाँ ले आए और उन्होंने छप्पर बनाए। हरेक ने अपने घर की छत पर और आँगन में इसे खड़ा किया। साथ ही, सच्चे परमेश्‍वर के भवन के आँगनों में,+ पानी फाटक के चौक में+ और एप्रैम फाटक+ के चौक में भी छप्पर बनाए गए। 17 इस तरह, बँधुआई से छूटकर आए लोगों की पूरी मंडली ने छप्पर बनाए और उनमें रहने लगे। नून के बेटे यहोशू+ के दिनों से लेकर आज तक, इसराएलियों ने इस तरह छप्परों का त्योहार नहीं मनाया था। इसलिए उन्होंने बड़ी खुशी के साथ इसे मनाया।+ 18 त्योहार के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक, हर रोज़ सच्चे परमेश्‍वर के कानून की किताब पढ़ी गयी।+ लोगों ने सात दिन तक यह त्योहार मनाया और आठवें दिन पवित्र सभा रखी, ठीक जैसा कानून में बताया गया था।+

9 सातवें महीने के 24वें दिन इसराएली इकट्ठा हुए और उन्होंने शोक मनाया। उन्होंने टाट ओढ़ा, अपने सिर पर धूल डाली और उपवास किया।+ 2 तब जो लोग इसराएल के वंश से थे उन्होंने खुद को परदेसियों से अलग किया।+ उन्होंने खड़े होकर अपने पाप और अपने पुरखों के गुनाह कबूल किए।+ 3 वे जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रहे और उन्हें यहोवा के कानून की किताब पढ़कर सुनायी गयी।+ सुबह तीन घंटे तक उनके सामने यह किताब पढ़ी गयी और अगले तीन घंटे तक वे अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने दंडवत करके अपने पाप कबूल करते रहे।

4 तब येशू, बानी, कदमीएल, शबनयाह, बुन्‍नी, शेरेब्याह,+ बानी और कनेनी उस मंच पर खड़े हुए,+ जिसे लेवियों के लिए तैयार किया गया था। और वे अपने परमेश्‍वर यहोवा को ज़ोरदार आवाज़ में पुकारने लगे। 5 लेवियों में से येशू, कदमीएल, बानी, हशबन्याह, शेरेब्याह, होदियाह, शबनयाह और पतहयाह कहने लगे, “अब उठो और अपने परमेश्‍वर यहोवा की युग-युग तक* तारीफ करो!+ हे परमेश्‍वर, तेरे नाम की जितनी भी तारीफ और वाह-वाही की जाए, वह कम है। फिर भी तू इन लोगों को अपने शानदार नाम की बड़ाई करने दे।

6 तू ही यहोवा है!+ तूने आकाश, हाँ, ऊँचे-से-ऊँचा आकाश और उसकी पूरी सेना बनायी है। धरती और जो कुछ उस पर है, समुंदर और जो कुछ उसमें है, सबकुछ तूने रचा है। तू ही उनका जीवन कायम रखता है। आकाश की सेनाएँ तेरे आगे झुकती हैं। 7 तू ही सच्चा परमेश्‍वर यहोवा है जिसने अब्राम को अपना सेवक चुना,+ उसे कसदियों के ऊर शहर से निकालकर लाया+ और उसका नाम बदलकर अब्राहम रखा।+ 8 तूने पाया कि वह दिल से विश्‍वासयोग्य है,+ इसलिए तूने उसके साथ एक करार किया कि तू उसे और उसके वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों और गिरगाशियों का देश देगा।+ तूने अपना यह वादा पूरा किया क्योंकि तू सच्चा है।

9 तूने मिस्र में हमारे पुरखों की दुख-तकलीफें देखीं+ और लाल सागर पर उनकी दर्द-भरी पुकार सुनी। 10 तब तूने फिरौन, उसके सेवकों और उसके लोगों के सामने चिन्ह और चमत्कार दिखाए+ क्योंकि तू जानता था कि वे तेरे लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं।+ ऐसा करके तूने बड़ा नाम कमाया, जो आज भी कायम है।+ 11 तूने सागर को दो हिस्सों में बाँट दिया ताकि तेरे लोग सूखी ज़मीन पर चलकर उसे पार कर सकें।+ मगर उनका पीछा करनेवालों को तूने वहीं डुबो दिया। वे सागर की गहराइयों में ऐसे समा गए, जैसे तूफानी सागर में फेंका गया पत्थर हों।+ 12 दिन के वक्‍त तूने बादल के खंभे से उन्हें राह दिखायी और रात को आग के खंभे की रौशनी से उन्हें रास्ता दिखाया।+ 13 तू सीनै पहाड़ पर उतरा+ और तूने स्वर्ग से उनसे बातें कीं।+ तूने उन्हें अपने खरे न्याय-सिद्धांत, भरोसेमंद कायदे-कानून, बढ़िया-से-बढ़िया नियम और आज्ञाएँ दीं।+ 14 तूने उन्हें बताया कि वे तेरे लिए पवित्र सब्त रखें।+ तूने अपने सेवक मूसा के ज़रिए उन्हें आज्ञाएँ, नियम और कानून दिए। 15 जब वे भूखे थे तो तूने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।+ जब वे प्यासे थे तो तूने उनके लिए चट्टान से पानी निकाला।+ तूने उन्हें आज्ञा दी कि वे उस देश में कदम रखें और उस पर अधिकार करें, जिसे देने की तूने शपथ खायी थी।

16 लेकिन हमारे पुरखे ढीठ और गुस्ताख बन गए+ और उन्होंने तेरी आज्ञाओं पर कान नहीं लगाया। 17 उन्होंने तेरी सुनने से इनकार कर दिया।+ वे हैरान कर देनेवाले उन कामों को भूल गए जो तूने उनके सामने किए थे। वे इतने हठीले बन गए कि मिस्र की गुलामी में लौट जाने के लिए उन्होंने एक अगुवा ठहराया।+ लेकिन तू ऐसा परमेश्‍वर है जो माफ करने को तैयार रहता है, तू करुणा करनेवाला और दयालु है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है,+ इसलिए तूने उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा।+ 18 तब भी नहीं जब उन्होंने बछड़े की एक मूरत ढालकर इसराएलियों से कहा, ‘यही तुम्हारा परमेश्‍वर है जो तुम्हें मिस्र से बाहर ले आया है।’+ और उन्होंने बुरे-से-बुरा काम करके तेरा अपमान किया। 19 उस वक्‍त भी तूने उन पर बड़ी दया की और उन्हें वीराने में अकेला नहीं छोड़ा।+ बादल का वह खंभा उनके पास से नहीं हटा जो दिन के वक्‍त उन्हें राह दिखाता था और न ही आग का वह खंभा हटा जो रात को रौशनी देकर उन्हें रास्ता दिखाता था।+ 20 तूने अपनी पवित्र शक्‍ति* उन्हें दी ताकि वे समझ से काम ले सकें।+ तूने उन्हें मन्‍ना देना बंद नहीं किया+ और जब वे प्यासे थे तो तूने उन्हें पानी पिलाया।+ 21 वीराने में 40 साल तक तू उन्हें खाना देता रहा।+ उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं हुई। उनके कपड़े पुराने होकर नहीं फटे,+ न ही उनके पैरों में सूजन आयी।

22 तूने राजाओं के राज्यों और उनके लोगों को इसराएलियों के अधीन कर दिया और उनकी ज़मीन इसराएलियों में बाँट दी।+ इसलिए उन्होंने हेशबोन के राजा सीहोन के इलाके+ को और बाशान के राजा ओग के इलाके को अपने कब्ज़े में कर लिया।+ 23 तूने उनके बेटों को आसमान के तारों की तरह बेशुमार कर दिया।+ फिर तू उन्हें उस देश में ले आया जिसके बारे में तूने उनके पुरखों से वादा किया था कि वे उस देश में कदम रखकर उसे अपने अधिकार में कर लेंगे।+ 24 इसलिए उनके बेटों ने जाकर पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया+ और तूने वहाँ रहनेवाले कनानियों को उनके अधीन कर दिया।+ तूने उनके राजाओं और लोगों को इसराएलियों के हवाले कर दिया कि वे उनके साथ मनचाहा सलूक करें। 25 उन्होंने उनके किलेबंद शहर जीत लिए+ और उपजाऊ ज़मीन+ और उन घरों को ले लिया, जिनमें हर तरह की बेहतरीन चीज़ें थीं। उन्होंने खुदे हुए हौद, अंगूरों और जैतून के बाग और अनगिनत फलदार पेड़ों पर कब्ज़ा कर लिया।+ वे जी-भरकर खाने-पीने लगे और फलने-फूलने लगे। तूने उन्हें कोई कमी नहीं होने दी, तेरी बड़ी भलाई की वजह से वे सुख से रहने लगे।

26 इस सबके बाद भी, उन्होंने तेरा कहा नहीं माना। वे तेरे खिलाफ हो गए+ और उन्होंने तेरे कानून का तिरस्कार किया।* तेरे भविष्यवक्‍ताओं ने उन्हें समझाया कि वे तेरे पास लौट आएँ, मगर उन्होंने भविष्यवक्‍ताओं को ही मार डाला। उन्होंने बुरे-बुरे काम करके तेरा घोर अपमान किया।+ 27 इसलिए तूने उन्हें दुश्‍मनों के हवाले कर दिया,+ जो उन्हें सताते रहे।+ मुसीबत की घड़ी में जब वे तुझसे फरियाद करने लगे, तब तूने स्वर्ग से उन पर ध्यान दिया। तुझे उन पर बड़ी दया आयी और तूने उनके पास कुछ आदमी भेजे कि वे उन्हें दुश्‍मनों से छुड़ाएँ।+

28 मगर जैसे ही उन्हें दुश्‍मनों से चैन मिला, वे दोबारा उन कामों में लग गए जो तेरी नज़र में बुरे थे।+ और तूने फिर से उन्हें दुश्‍मनों के हाथ कर दिया जिन्होंने उन्हें बहुत सताया।+ तब वे लौटकर तेरे पास आए और तुझसे मदद की भीख माँगने लगे।+ तूने स्वर्ग से उनकी तरफ ध्यान दिया और तुझे उन पर बड़ी दया आयी। तू इसी तरह हर बार उन्हें छुड़ाता रहा।+ 29 तू उन्हें बार-बार समझाता रहा कि वे तेरे पास लौट आएँ और तेरा कानून मानें। मगर उन्होंने अकड़ दिखायी और तेरी आज्ञाओं को मानने से साफ इनकार कर दिया।+ उन्होंने तेरे उन नियमों को तोड़ दिया जिनका पालन करने से एक इंसान ज़िंदा रहता है।+ उन्होंने तुझसे मुँह फेर लिया और वे ढीठ बन गए। उन्होंने तेरी एक न सुनी। 30 मगर तूने बरसों तक सब्र रखा+ और भविष्यवक्‍ताओं को अपनी पवित्र शक्‍ति से उभारा कि वे उन्हें बार-बार चेतावनी दें। पर उन्होंने उनकी बात पर कान नहीं लगाया। आखिरकार, तूने उन्हें आस-पास के देशों के हवाले कर दिया।+ 31 मगर तेरी दया इतनी महान है कि तूने उनका नाश नहीं किया,+ न ही उन्हें लावारिस छोड़ा क्योंकि तू करुणा करनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है।+

32 हे महान, शक्‍तिशाली और विस्मयकारी परमेश्‍वर, तू जो अपना करार पूरा करता है और अपने अटल प्यार का सबूत देता है,+ तुझसे बिनती है कि हमारे दुखों पर ध्यान दे, उन्हें हलका मत समझ। अश्‍शूर के राजाओं के दिनों से लेकर+ अब तक हम, हमारे राजा, हाकिम,+ याजक,+ भविष्यवक्‍ता+ और पुरखे, तेरे सभी लोग बहुत दुख झेलते आए हैं। 33 मगर हम पर जो भी बीती हम उसी के लायक थे, तूने हमारे साथ कोई अन्याय नहीं किया। तू हमेशा से वफादार रहा, दुष्टता तो हमने की।+ 34 हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों और पुरखों ने तेरा कानून नहीं माना। और-तो-और, तूने उन्हें जो आज्ञाएँ दीं और उन्हें खबरदार करने के लिए बार-बार जो हिदायतें दीं, उन पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। 35 तब भी नहीं जब देश पर उनका राज था और वे उस बड़े और उपजाऊ देश में रह रहे थे, जो तूने उन्हें दिया था और जब वे तेरी अपार भलाई का मज़ा ले रहे थे। उन्होंने तेरी सेवा नहीं की+ बल्कि वे बुरे-से-बुरा काम करते रहे। 36 इसलिए देख, आज हम उसी देश में गुलाम हैं+ जो तूने हमारे पुरखों को दिया था ताकि वे यहाँ की पैदावार और बेहतरीन चीज़ों का मज़ा लें। 37 हमारे पापों की वजह से हमारे देश की भरपूर उपज वे राजा खा रहे हैं, जिनके अधीन तूने हमें कर दिया है।+ वे हम पर, हमारे मवेशियों पर मनमाना राज करते हैं। हम बहुत दुखी हैं।

38 इन सब बातों की वजह से आज हम तुझसे एक करार करते हैं,+ जिसे हम लिखकर देंगे और जिस पर हमारे हाकिम, लेवी और याजक अपनी-अपनी मुहर लगाकर उसे पुख्ता करेंगे।”+

10 ये उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने करार पर अपनी मुहर लगाकर उसे पुख्ता किया:+

हकल्याह का बेटा* राज्यपाल* नहेमायाह,

इसके अलावा सिदकियाह, 2 सरायाह, अजरयाह, यिर्मयाह, 3 पशहूर, अमरयाह, मल्कियाह, 4 हत्तूश, शबनयाह, मल्लूक, 5 हारीम,+ मरेमोत, ओबद्याह, 6 दानियेल,+ गिन्‍नतोन, बारूक, 7 मशुल्लाम, अबियाह, मियामीन, 8 माज्याह, बिलगै और शमायाह। ये सभी याजक थे।

9 जिन लेवियों ने करार पर अपनी मुहर लगायी उनके नाम ये हैं: आजन्याह का बेटा येशू, बिन्‍नूई जो हेनादाद के बेटों में से था, कदमीएल,+ 10 शबनयाह, होदियाह, कलीता, पलायाह, हानान, 11 मिका, रहोब, हशब्याह, 12 जक्कूर, शेरेब्याह,+ शबनयाह, 13 होदियाह, बानी और बनीनू।

14 जिन इसराएली मुखियाओं ने करार पर अपनी मुहर लगायी उनके नाम ये हैं: परोश, पहत-मोआब,+ एलाम, जत्तू, बानी, 15 बुन्‍नी, अजगाद, बेबई, 16 अदोनियाह, बिगवै, आदीन, 17 आतेर, हिजकियाह, अज्जूर, 18 होदियाह, हाशूम, बेजै, 19 हारीप, अनातोत, नेबै, 20 मगपीआश, मशुल्लाम, हेजीर, 21 मशेजबेल, सादोक, यद्‌दू, 22 पलत्याह, हानान, अनायाह, 23 होशेआ, हनन्याह, हश्‍शूब, 24 हल्लोहेश, पिलहा, शोबेक, 25 रहूम, हशबना, मासेयाह, 26 अहियाह, हानान, आनान, 27 मल्लूक, हारीम और बानाह।

28 बाकी लोग यानी याजक, लेवी, पहरेदार, गायक, मंदिर के सेवक* और वे लोग जिन्होंने सच्चे परमेश्‍वर का कानून मानने के लिए खुद को आस-पास के देश के लोगों से अलग किया था,+ उन्होंने अपनी-अपनी पत्नियों और बेटे-बेटियों को साथ लिया। हाँ, हर कोई जो समझ सकता था* इकट्ठा हुआ। और उन्होंने 29 अपने भाइयों, अपने खास-खास आदमियों के साथ मिलकर शपथ खायी और कहा कि अगर हम इस शपथ को पूरा नहीं करेंगे तो हम पर शाप पड़े। उन्होंने शपथ खायी कि हम सच्चे परमेश्‍वर के कानून के मुताबिक चलेंगे, जो उसने अपने सेवक मूसा को दिया था। और हम अपने प्रभु यहोवा की हर आज्ञा, न्याय-सिद्धांत और नियम का करीबी से पालन करेंगे। 30 हम आस-पास के देशों के लोगों को न तो अपनी बेटियाँ देंगे न ही अपने बेटों के लिए उनकी बेटियाँ लेंगे।+

31 अगर सब्त के दिन या किसी और पवित्र दिन पर आस-पास के देश के लोग अपना माल और अनाज बेचने आएँ, तो हम उनसे कुछ नहीं खरीदेंगे।+ हम सातवें साल में खेतों की उपज नहीं लेंगे+ और किसी से कर्ज़ चुकाने की माँग नहीं करेंगे।+

32 हम यह भी वचन देते हैं कि हममें से हरेक अपने परमेश्‍वर के भवन* में होनेवाली उपासना के लिए हर साल एक-तिहाई शेकेल* देगा।+ 33 इससे उन चीज़ों का खर्च उठाया जाएगा जो सब्त और नए चाँद के दिन चढ़ायी जाती हैं यानी रोटियों के दो ढेर,*+ नियमित तौर पर चढ़ाया जानेवाला अनाज+ और होम-बलियाँ।+ इसके अलावा, साल के अलग-अलग वक्‍त पर मनाए जानेवाले त्योहारों,+ पवित्र चीज़ों, इसराएल के प्रायश्‍चित के लिए पाप-बलियों+ और परमेश्‍वर के भवन के बाकी कामों का खर्च भी इसी से उठाया जाएगा।

34 हमने यह भी तय किया है कि याजक, लेवी और बाकी लोग हमारे परमेश्‍वर के भवन के लिए लकड़ियाँ लाएँगे ताकि हमारे परमेश्‍वर यहोवा की वेदी पर आग जलती रहे, जैसा कि मूसा के कानून में लिखा है।+ इसलिए हम चिट्ठियाँ डालकर तय करेंगे कि उन्हें अपने पिता के घराने के हिसाब से कब-कब लकड़ियाँ लानी हैं और वे हर साल उसी वक्‍त पर लकड़ियाँ लाएँगे। 35 हम वादा करते हैं कि हम हर साल अपनी ज़मीन की पहली उपज और हर तरह के फलदार पेड़ों के पहले फल यहोवा के भवन में लाएँगे।+ 36 हम अपने पहलौठे बेटे, साथ ही अपने गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहलौठे भी लाएँगे,+ जैसा कानून में लिखा है। हम उन्हें परमेश्‍वर के भवन में सेवा करनेवाले याजकों के पास लाएँगे।+ 37 हम अपने परमेश्‍वर के भवन के भंडारों में+ याजकों के पास ये सब लाएँगे: पहली फसल का दरदरा कुटा हुआ अनाज,+ हर तरह के पेड़ों के फल,+ नयी दाख-मदिरा, तेल+ और दान। साथ ही, हम अपनी ज़मीन की उपज का दसवाँ हिस्सा लेवियों को देंगे,+ जो हमारे उन सभी शहरों से दसवाँ हिस्सा इकट्ठा करते हैं जहाँ खेती-बाड़ी की जाती है।

38 जब लेवी दसवाँ हिस्सा इकट्ठा करें तब याजक यानी हारून का बेटा भी उनके साथ रहे। और लेवी अपने हिस्से में से दसवाँ हिस्सा परमेश्‍वर के भवन के लिए दें,+ जिसे भंडार-घर के कमरों में रखा जाएगा। 39 इन्हीं कमरों में इसराएलियों और लेवियों का दिया अनाज का दान, नयी दाख-मदिरा और तेल+ जमा किया जाएगा।+ ये वही कमरे हैं जहाँ पवित्र-स्थान के बरतन रखे जाते हैं और जहाँ सेवा करनेवाले याजक, पहरेदार और गायक आया-जाया करते थे। हमने ठान लिया है कि हम अपने परमेश्‍वर के भवन की देखरेख करने में कभी लापरवाही नहीं करेंगे।+

11 इसराएलियों के हाकिम तो यरूशलेम में रहते थे,+ मगर बाकी लोग दूसरे शहरों में बसे हुए थे। इसलिए यह तय हुआ कि चिट्ठियाँ डाली जाएँगी+ और हर दस घराने में से जिस एक घराने के नाम चिट्ठी निकलेगी, वह पवित्र शहर यरूशलेम आकर रहेगा और बचे हुए नौ घराने अपने ही शहरों में रहेंगे। 2 इसके अलावा, जो आदमी अपनी मरज़ी से यरूशलेम में रहने आए, लोगों ने उनकी तारीफ की।

3 ये यहूदा ज़िले के उन मुखियाओं के नाम हैं, जो यरूशलेम में आकर बस गए। (बाकी इसराएली, याजक, लेवी, मंदिर के सेवक*+ और सुलैमान के सेवकों के बेटे*+ यहूदा में अपने-अपने शहरों में ही रहे, जो उन्हें दिए गए थे।+

4 यरूशलेम में यहूदा और बिन्यामीन के कुछ लोग भी बसे हुए थे।) यहूदा के लोगों में से अतायाह आया। वह उज्जियाह का बेटा था, उज्जियाह जकरयाह का, जकरयाह अमरयाह का, अमरयाह शपत्याह का और शपत्याह महल-लेल का बेटा था। ये लोग पेरेस के घराने से थे।+ 5 अतायाह के अलावा मासेयाह भी आया। मासेयाह बारूक का बेटा था, बारूक कोलहोजे का, कोलहोजे हजायाह का, हजायाह अदायाह का, अदायाह योयारीब का और योयारीब जकरयाह का बेटा था। जकरयाह, शेलह के खानदान से था। 6 पेरेस के बेटे जो यरूशलेम में रहने गए उनकी कुल गिनती 468 थी। वे सब शूरवीर थे।

7 बिन्यामीन के लोगों में से सल्लू+ यरूशलेम आया। वह मशुल्लाम का बेटा था, मशुल्लाम योएद का, योएद पदायाह का, पदायाह कोलायाह का, कोलायाह मासेयाह का, मासेयाह ईतीएल का और ईतीएल यशाया का बेटा था। 8 सल्लू के अलावा, गब्बै और सल्लै भी आए, कुल 928 आदमी। 9 जिक्री का बेटा योएल उनकी निगरानी करता था और हस्सनूआ का बेटा यहूदा, शहर की देखरेख करने में उसका मददगार था।

10 याजकों में से ये लोग यरूशलेम आए: योयारीब का बेटा यदायाह, याकीन+ 11 और सरायाह। सरायाह हिलकियाह का बेटा था, हिलकियाह मशुल्लाम का, मशुल्लाम सादोक का, सादोक मरायोत का और मरायोत अहीतूब+ का बेटा था। अहीतूब सच्चे परमेश्‍वर के भवन* में एक अगुवा था। 12 उनके अलावा, उनके वे भाई भी यरूशलेम आए जो भवन में सेवा करते थे, कुल मिलाकर 822 आदमी। उनके साथ अदायाह भी आया जो यरोहाम का बेटा था। यरोहाम पलल्याह का बेटा था, पलल्याह अमसी का, अमसी जकरयाह का, जकरयाह पशहूर+ का और पशहूर मल्कियाह का बेटा था। 13 अदायाह के भाई भी यरूशलेम आए जो अपने-अपने पिता के कुल के मुखिया थे, सब मिलाकर 242 आदमी। अमशै भी आया। वह अजरेल का बेटा था, अजरेल अहजै का, अहजै मशिल्लेमोत का और मशिल्लेमोत इम्मेर का बेटा था। 14 अमशै के साथ उसके भाई भी यरूशलेम आए, जो बड़े ताकतवर और दिलेर थे, कुल मिलाकर 128 आदमी। उनकी निगरानी करनेवाला जब्दीएल था, वह एक जाने-माने घराने से था।

15 लेवियों में से शमायाह+ आया। वह हश्‍शूब का बेटा था, हश्‍शूब अजरीकाम का, अजरीकाम हशब्याह का और हशब्याह बुन्‍नी का बेटा था। 16 शमायाह के अलावा, शब्बतै+ और योजाबाद+ भी आए जो लेवियों के मुखियाओं में से थे और सच्चे परमेश्‍वर के भवन से जुड़े बाहरी कामों की देखरेख करते थे। 17 उनके अलावा मत्तन्याह+ भी आया जो मीका का बेटा था, मीका जब्दी का और जब्दी आसाप का बेटा था।+ मत्तन्याह संगीत-संचालक था और प्रार्थना के वक्‍त बड़ाई के गीत में अगुवाई करता था।+ उसका मददगार बकबुक्याह भी आया। अब्दा भी आया जो शम्मू का बेटा था, शम्मू गालाल का और गालाल यदूतून+ का बेटा था। 18 पवित्र शहर में रहने आए इन सभी लेवियों की कुल गिनती 284 थी।

19 फाटकों के पहरेदारों में से अक्कूब, तल्मोन+ और उनके भाई आए, कुल 172 आदमी।

20 बाकी इसराएली, याजक और लेवी, यहूदा के दूसरे शहरों में रहे जो उन्हें दिए गए थे।* 21 मंदिर के सेवक*+ ओपेल में रहते थे+ और उनके ऊपर ज़ीहा और गिश्‍पा को ठहराया गया।

22 यरूशलेम में लेवियों की निगरानी करनेवाला उज्जी था। उज्जी बानी का बेटा था, बानी हशब्याह का, हशब्याह मत्तन्याह+ का और मत्तन्याह मिका का बेटा था। उज्जी, आसाप के गायकों के घराने से था और सच्चे परमेश्‍वर के भवन के काम की देखरेख करता था। 23 इन्हीं गायकों के बारे में यह शाही फरमान जारी किया गया था+ कि उन्हें हर दिन के हिसाब से खाने-पीने की चीज़ें दी जाएँ। 24 पतहयाह राजा का सलाहकार था* और लोगों से जुड़े मामलों पर राजा को सलाह देता था। पतहयाह मशेजबेल का बेटा था, मशेजबेल जेरह के घराने से था और जेरह यहूदा का बेटा था।

25 ये उन जगहों और देहातों के नाम हैं जहाँ यहूदा के कुछ लोग रहते थे: किरयत-अरबा+ और उसके आस-पास के नगर, दीबोन और उसके आस-पास के नगर, यकबसेल+ और उसकी बस्तियाँ, 26 येशू, मोलादा,+ बेत-पालेत,+ 27 हसर-शूआल,+ बेरशेबा और उसके आस-पास के नगर, 28 सिकलग,+ मकोना और उसके आस-पास के नगर, 29 एन-रिम्मोन,+ सोरा,+ यरमूत, 30 जानोह,+ अदुल्लाम और उनकी बस्तियाँ, लाकीश+ और उसके देहात और अजेका+ और उसके आस-पास के नगर। वे लोग बेरशेबा से लेकर हिन्‍नोम घाटी+ तक बस गए।*

31 ये उन शहरों के नाम हैं जहाँ बिन्यामीन के लोग रहते थे: गेबा,+ मिकमाश, अय्या, बेतेल+ और उसके आस-पास के नगर, 32 अनातोत,+ नोब,+ अनन्याह, 33 हासोर, रामाह,+ गित्तैम, 34 हादीद, सबोईम, नबल्लत, 35 लोद, ओनो+ और कारीगरों की घाटी। 36 लेवियों के कुछ दल जो पहले यहूदा के इलाके में रहते थे, अब बिन्यामीन के इलाके में आकर रहने लगे।

12 शालतीएल के बेटे* जरुबाबेल+ और येशू+ के साथ बँधुआई से लौटे याजकों और लेवियों के नाम ये हैं: सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा, 2 अमरयाह, मल्लूक, हत्तूश, 3 शकन्याह, रहूम, मरेमोत, 4 इद्दो, गिन्‍नतोई, अबियाह, 5 मियामीन, माद्‌याह, बिलगा, 6 शमायाह, योयारीब, यदायाह, 7 सल्लू, आमोक, हिलकियाह और यदायाह। ये लोग येशू के दिनों में याजकों और अपने भाइयों के मुखिया थे।

8 लेवियों में से येशू, बिन्‍नूई, कदमीएल,+ शेरेब्याह, यहूदा और मत्तन्याह लौटे।+ मत्तन्याह और उसके भाई धन्यवाद के गीत गाने में अगुवाई करते थे। 9 बकबुक्याह और उन्‍नी पहरा देने का काम करने के लिए* अपने इन भाइयों के सामने दूसरी तरफ खड़े होते थे। 10 येशू योयाकीम का पिता था, योयाकीम एल्याशीब+ का, एल्याशीब योयादा का,+ 11 योयादा योनातान का और योनातान यद्‌दू का पिता था।

12 योयाकीम के दिनों में ये याजक अपने-अपने कुल के मुखिया थे: सरायाह+ के कुल में मरायाह, यिर्मयाह के कुल में हनन्याह, 13 एज्रा+ के कुल में मशुल्लाम, अमरयाह के कुल में यहोहानान, 14 मल्लूकी के कुल में योनातान, शबनयाह के कुल में यूसुफ, 15 हारीम के कुल+ में अदना, मरायोत के कुल में हेलकै, 16 इद्दो के कुल में जकरयाह, गिन्‍नतोन के कुल में मशुल्लाम, 17 अबियाह+ के कुल में जिक्री, मिन्यामीन के कुल में . . . ,* मोअद्याह के कुल में पिलतै, 18 बिलगा+ के कुल में शम्मू, शमायाह के कुल में यहोनातान, 19 योयारीब के कुल में मत्तनै, यदायाह+ के कुल में उज्जी, 20 सल्लै के कुल में कल्लै, आमोक के कुल में एबेर, 21 हिलकियाह के कुल में हशब्याह और यदायाह के कुल में नतनेल।

22 ये वे लेवी और याजक हैं जो अपने-अपने पिता के कुल के मुखिया थे और जिनके नाम एल्याशीब, योयादा, योहानान और यद्‌दू+ के दिनों में यानी फारस के राजा दारा की हुकूमत तक लिखे गए थे।

23 जो लेवी अपने-अपने पिता के कुल के मुखिया थे, उनके नाम इतिहास की किताब में लिखे गए। इस किताब में एल्याशीब के बेटे योहानान के दिनों तक की घटनाएँ लिखी गयी थीं। 24 उन मुखियाओं के नाम थे: हशब्याह, शेरेब्याह और कदमीएल का बेटा+ येशू।+ उनके भाई उनके सामने दूसरी तरफ खड़े होकर परमेश्‍वर की बड़ाई करते और धन्यवाद के गीत गाते थे, ठीक जैसा सच्चे परमेश्‍वर के सेवक दाविद ने हिदायत दी थी।+ पहरेदारों का एक दल, दूसरे दल के सामने होता था। 25 मत्तन्याह,+ बकबुक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब+ पहरेदार थे+ और मंदिर के दरवाज़ों के पास भंडारों पर पहरा देते थे। 26 वे योयाकीम के दिनों में सेवा करते थे जो येशू+ का बेटा था और येशू योसादाक का बेटा था। उन्होंने राज्यपाल नहेमायाह, साथ ही नकल-नवीस,* याजक एज्रा+ के दिनों में भी सेवा की।

27 यरूशलेम की शहरपनाह के उद्‌घाटन के लिए लेवियों को अपने-अपने इलाके से ढूँढ़कर यरूशलेम लाया गया ताकि वे झाँझ, तारोंवाले बाजे और सुरमंडल पर धन्यवाद के गीत गाएँ+ और बड़ी धूम-धाम से उद्‌घाटन किया जाए। 28 गायकों के बेटे* इन जगहों से इकट्ठा किए गए: ज़िले से,* पूरे यरूशलेम से, नतोपा के लोगों की बस्तियों+ से, 29 बेत-गिलगाल+ से, गेबा और अज़मावेत+ के देहातों से।+ उन्हें जगह-जगह से इसलिए इकट्ठा किया गया क्योंकि वे यरूशलेम के इर्द-गिर्द बस्तियाँ बनाकर रहते थे। 30 तब याजकों और लेवियों ने पहले खुद को शुद्ध किया फिर लोगों को।+ उन्होंने फाटकों और शहरपनाह को भी शुद्ध करके पवित्र ठहराया।+

31 फिर मैं यहूदा के हाकिमों को शहरपनाह के ऊपर ले गया और मैंने धन्यवाद के गीत गानेवाले दो बड़े दल बनाए। और उनके पीछे-पीछे चलने के लिए लोगों के दो समूह भी बनाए। एक गायक-दल दाएँ हाथ पर ‘राख के ढेर के फाटक’+ की तरफ बढ़ा। 32 उनके पीछे-पीछे ये लोग चल रहे थे: होशायाह, यहूदा के हाकिमों में से आधे लोग, 33 अजरयाह, एज्रा, मशुल्लाम, 34 यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह और यिर्मयाह। 35 उनके साथ याजकों के कुछ बेटे भी थे जो हाथ में तुरहियाँ लिए हुए थे।+ एक था जकरयाह, जो योनातान का बेटा था। योनातान शमायाह का बेटा था, शमायाह मत्तन्याह का, मत्तन्याह मीकायाह का, मीकायाह जक्कूर का और जक्कूर आसाप का बेटा था।+ 36 जकरयाह के साथ उसके भाई शमायाह, अजरेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी भी थे। वे सच्चे परमेश्‍वर के सेवक दाविद के बाजे लिए हुए थे।+ नकल-नवीस* एज्रा+ उनके आगे-आगे चल रहा था। 37 सोता फाटक+ से आगे वे दाविदपुर+ की सीढ़ियों+ को पार करते हुए शहरपनाह पर चलते रहे। शहरपनाह चढ़ाई पर थी और वे ‘दाविद के भवन’ के ऊपर से होते हुए पूरब में पानी फाटक+ की तरफ बढ़े।

38 धन्यवाद के गीत गानेवाला दूसरा दल शहरपनाह पर उलटी दिशा में गया और मैं बचे हुए लोगों के साथ उसके पीछे-पीछे चला। यह दल ‘तंदूरों की मीनार’+ पार करके ‘चौड़ी शहरपनाह’+ तक आया। 39 फिर यह दल एप्रैम फाटक,+ ‘पुराने शहर के फाटक,’+ मछली फाटक,+ हननेल मीनार+ और हम्मेआ मीनार को पार करते हुए भेड़ फाटक+ पर निकला और ‘पहरेदारों के फाटक’ पर आकर रुक गया।

40 कुछ वक्‍त बाद धन्यवाद के गीत गानेवाले दोनों दल, सच्चे परमेश्‍वर के भवन के सामने मिले और वहीं खड़े रहे। और मैं अधिकारियों* में से आधे लोगों के साथ वहाँ इकट्ठा हुआ। 41 वहाँ याजक एल्याकीम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकरयाह और हनन्याह तुरही लिए खड़े थे। 42 मासेयाह, शमायाह, एलिआज़र, उज्जी, यहोहानान, मल्कियाह, एलाम और एजेर भी वहाँ थे। यिज्रयाह की निगरानी में गायकों ने ज़ोरदार आवाज़ में गाना गया।

43 उस दिन उन्होंने ढेरों बलिदान चढ़ाए और खुशियाँ मनायीं+ क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर ने उन्हें इतनी खुशियाँ दीं कि वे मगन हो गए। औरतें और बच्चे भी फूले नहीं समा रहे थे।+ यरूशलेम में इस कदर खुशियाँ मनायी जा रही थीं कि दूर-दूर तक इसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी।+

44 उस दिन कुछ आदमियों को भंडार-घरों की देखरेख के लिए ठहराया गया,+ जहाँ लोगों से मिलनेवाले दान,+ पहली उपज+ और दसवाँ हिस्सा इकट्ठा किया जाता था।+ इन आदमियों को शहर के खेतों से उतनी उपज इकट्ठा करके भंडार-घरों में जमा करनी थी, जितनी मूसा के कानून में याजकों और लेवियों के लिए ठहरायी गयी थी।+ यहूदा के लोगों ने इस माँग को खुशी-खुशी पूरा किया क्योंकि याजक और लेवी सेवा कर रहे थे। 45 याजक और लेवी परमेश्‍वर की सेवा में अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभाने लगे और चीज़ों को शुद्ध करके उन्हें पवित्र ठहराने का काम भी करने लगे। इसके अलावा, गायकों और पहरेदारों ने भी अपना-अपना काम सँभाला, ठीक जैसे दाविद और उसके बेटे सुलैमान ने हिदायतें दी थीं। 46 बहुत समय पहले दाविद और आसाप के दिनों में गायकों के लिए संगीत-निर्देशक हुआ करते थे। साथ ही, परमेश्‍वर की बड़ाई करने और उसका धन्यवाद देने के लिए अलग-अलग गीत होते थे।+ 47 जरुबाबेल+ के दिनों में और नहेमायाह के दिनों में सभी इसराएली हर दिन गायकों और पहरेदारों की ज़रूरत के हिसाब से उन्हें खाने-पीने की चीज़ें देते थे।+ वे लेवियों के लिए उनका हिस्सा अलग रखते थे+ और लेवी अपने हिस्से में से हारून के वंशजों का हिस्सा अलग रखते थे।

13 उस दिन लोगों को मूसा की किताब से पढ़कर सुनाया गया।+ उसमें लिखा हुआ था कि कोई भी अम्मोनी या मोआबी+ सच्चे परमेश्‍वर की मंडली का हिस्सा नहीं बन सकता।+ 2 क्योंकि उन्होंने इसराएलियों को न तो रोटी दी, न ही पानी। उलटा उन्हें शाप देने के लिए उन्होंने बिलाम को पैसे देकर बुलाया।+ लेकिन हमारे परमेश्‍वर ने उसके शाप को आशीर्वाद में बदल दिया।+ 3 जब लोगों ने कानून की ये बातें सुनीं, तो वे फौरन अपने बीच से उन लोगों को अलग करने लगे जो गैर-इसराएली* थे।+

4 उन दिनों, याजक एल्याशीब+ हमारे परमेश्‍वर के भवन* के भंडारों की देखरेख करता था।+ वह तोब्याह+ का रिश्‍तेदार था। 5 उसने तोब्याह को भंडार का एक बड़ा कमरा दे रखा था, जिसमें पहले अनाज का चढ़ावा, लोबान और बरतन रखे जाते थे। साथ ही जहाँ लेवियों, गायकों और पहरेदारों के लिए अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल का दसवाँ हिस्सा+ और याजकों के लिए दान भी जमा किया जाता था।+

6 जब यह सब हुआ तब मैं यरूशलेम में नहीं था क्योंकि बैबिलोन के राजा अर्तक्षत्र के राज+ के 32वें साल में,+ मैं वापस उसके पास चला गया था। थोड़े समय बाद मैंने राजा से यरूशलेम लौटने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी माँगी। 7 फिर जब मैं यरूशलेम आया तो मैंने देखा कि एल्याशीब+ ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन के आँगन में तोब्याह+ को भंडार का एक कमरा दिया हुआ है। एल्याशीब के इस घिनौने काम पर 8 मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने कमरे से तोब्याह का सारा सामान निकालकर बाहर फेंक दिया। 9 इसके बाद मेरी आज्ञा पर भंडार के कमरों को शुद्ध किया गया और मैंने सच्चे परमेश्‍वर के भवन के बरतन, अनाज का चढ़ावा और लोबान+ वापस वहाँ रखवा दिया।+

10 मुझे यह भी पता चला कि लेवियों को उनका हिस्सा+ नहीं दिया जा रहा है,+ इसलिए लेवी और गायक अपनी सेवा छोड़कर खेतों में काम कर रहे हैं।+ 11 मैंने अधिकारियों* को झिड़का,+ “सच्चे परमेश्‍वर के भवन के लिए ऐसी लापरवाही क्यों दिखायी जा रही है?”+ फिर मैंने उन सभी लेवियों को इकट्ठा किया और उन्हें भवन में दोबारा अपनी-अपनी सेवा के पद पर ठहराया। 12 तब यहूदा से सभी लोग अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल का दसवाँ हिस्सा+ लाकर भंडारों में जमा करने लगे।+ 13 मैंने उन भंडारों पर याजक शेलेम्याह, नकल-नवीस* सादोक और लेवियों में से पदायाह को अधिकारी ठहराया। और उनकी मदद के लिए मैंने हानान को ठहराया, जो जक्कूर का बेटा और मत्तन्याह का पोता था। ये सभी बड़े भरोसेमंद थे और उन्हें अपने भाइयों को उनका हिस्सा बाँटने की ज़िम्मेदारी दी गयी।

14 हे मेरे परमेश्‍वर, मेरा यह काम याद रखना!+ तेरे भवन और उसमें सेवा* करनेवालों के लिए मैंने अपने अटल प्यार का जो सबूत दिया है, उसे मत भूलना।+

15 उन दिनों मैंने देखा कि यहूदा में लोग सब्त के दिन हौद में अंगूर रौंद रहे हैं,+ अनाज के गट्ठर गधों पर लाद रहे हैं। साथ ही, दाख-मदिरा, अंगूर, अंजीर और तरह-तरह का बोझ ढो-ढोकर यरूशलेम ला रहे हैं।+ मैंने उन्हें खबरदार किया कि वे सब्त के दिन इन चीज़ों को न बेचें।* 16 यरूशलेम में रहनेवाले सोर के लोग सब्त के दिन मछलियाँ और तरह-तरह का माल शहर में लाकर यहूदियों को बेच रहे थे।+ 17 तब मैंने यहूदा के बड़े-बड़े लोगों को झिड़का, “ये तुम क्या दुष्टता कर रहे हो? सब्त के दिन को अपवित्र कर रहे हो! 18 क्या तुम्हारे पुरखों ने भी यही गलती नहीं की थी, जिस वजह से परमेश्‍वर हम पर और इस शहर पर मुसीबतें लाया था? अब तुम भी सब्त को अपवित्र करके+ इसराएल पर परमेश्‍वर की जलजलाहट लाना चाहते हो?”

19 जैसे ही शहर के फाटकों पर अँधेरा छाने लगा और सब्त का दिन शुरू होनेवाला था, मैंने आज्ञा दी कि यरूशलेम के फाटक बंद कर दिए जाएँ और तब तक बंद रखे जाएँ, जब तक सब्त खत्म नहीं हो जाता। मैंने वहाँ अपने कुछ सेवक भी तैनात किए कि वे सब्त के दिन किसी भी तरह का माल शहर के अंदर न आने दें। 20 इसलिए लेन-देन करनेवालों और तरह-तरह का माल बेचनेवालों ने एक-दो बार यरूशलेम के बाहर रात बितायी। 21 मैंने उन्हें खबरदार किया और कहा, “तुम लोग क्यों पूरी-पूरी रात शहरपनाह के सामने बैठे रहते हो? अगर आइंदा तुम सब्त के दिन नज़र आए, तो मुझे तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करनी पड़ेगी।” इसके बाद से उन्होंने सब्त के दिन आना बंद कर दिया।

22 मैंने लेवियों को आज्ञा दी कि वे नियमित तौर पर खुद को शुद्ध करें और सब्त के दिन को पवित्र रखने+ के लिए शहर के फाटकों पर पहरा दें। हे मेरे परमेश्‍वर, मेरा यह काम भी तू याद रखना! और मुझ पर रहम करना क्योंकि तू अटल प्यार से भरपूर है।+

23 उन दिनों मुझे यह भी पता चला कि कुछ यहूदियों ने अशदोदी,+ अम्मोनी और मोआबी+ औरतों से शादी कर ली है।*+ 24 उनके आधे बच्चे अशदोदी भाषा और आधे बच्चे दूसरे देशों की भाषाएँ बोलते थे, मगर उनमें से किसी को यहूदियों की भाषा नहीं आती थी। 25 इसलिए मैंने उन यहूदियों को झिड़का और ज़बरदस्त फटकार लगायी। मैंने उनमें से कुछ को पिटवाया,+ उनके सिर के बाल नुचवाए और उनसे कहा, “परमेश्‍वर के सामने शपथ खाओ कि तुम उनकी बेटियों से शादी नहीं करोगे और न ही अपने बेटे-बेटियों की शादी उनके बेटे-बेटियों से करवाओगे।+ 26 क्या इसी वजह से इसराएल के राजा सुलैमान ने पाप नहीं किया था? सारे राष्ट्रों में उसके जैसा राजा कोई नहीं था।+ परमेश्‍वर ने सुलैमान को पूरे इसराएल पर राजा ठहराया क्योंकि वह उससे प्यार करता था।+ मगर दूसरे देशों से आयी सुलैमान की पत्नियों ने उसे बहका दिया और उससे पाप करवाया।+ 27 और अब तुम भी दूसरे देशों की औरतों से शादी करके अपने परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात कर रहे हो।+ यह कितनी घिनौनी बात है!”

28 महायाजक एल्याशीब+ के बेटे योयादा+ के बेटों में से एक ने होरोन के रहनेवाले सनबल्लत+ की बेटी से शादी कर ली थी इसलिए मैंने उसे अपने पास से खदेड़ दिया।

29 हे मेरे परमेश्‍वर, तू उन लोगों को मत भूलना क्योंकि उन्होंने याजकपद दूषित किया है और याजकों और लेवियों के साथ अपना करार तोड़ा है।+

30 इसके बाद मैंने उन्हें पराए लोगों के हर बुरे असर से छुड़ाकर शुद्ध किया। और सभी याजकों और लेवियों को उनके अपने-अपने काम पर वापस ठहराया।+ 31 मैंने यह इंतज़ाम भी किया कि परमेश्‍वर के भवन में कब-कब लकड़ियाँ लायी जाएँ+ और फसल की पहली उपज अर्पित की जाए।

हे मेरे परमेश्‍वर, मुझे याद रखना और मुझ पर कृपा करना।*+

मतलब “याह दिलासा देता है।”

यानी अर्तक्षत्र।

अति. ख15 देखें।

या “सूसा।”

या “महल।”

या “चेतावनी।”

अति. ख15 देखें।

यानी फरात नदी के पश्‍चिम में।

शा., “कर्मचारी।”

मुमकिन है कि यह एन-रोगेल का कुआँ था।

या “मातहत अधिकारी।”

या “मातहत अधिकारियों।”

शा., “कर्मचारी।”

या “परमेश्‍वर की सेवा के लिए अलग ठहराया।”

या “मालिकों की सेवा का जुआ अपनी गरदन पर लें।”

या “फरात नदी।”

या “इत्र।”

या “में सिल बिछायी।”

करीब 445 मी. (1,460 फुट)। अति. ख14 देखें।

ज़ाहिर है कि यह दाविद का और उसके बाद यहूदा के दूसरे राजाओं का कब्रिस्तान था।

या शायद, “पासवाले ज़िले।”

या “नतीन लोगों।” शा., “दिए गए लोगों।”

या “नतीन लोगों।” शा., “दिए गए लोगों।”

या “बोझ ढोनेवाले।”

शा., “दस बार।”

या “मातहत अधिकारियों।”

या “भाला।”

या “मातहत अधिकारियों।”

या “मातहत अधिकारियों।”

शा., “सौंवा भाग।” यानी हर महीने एक प्रतिशत ब्याज।

या “ऐसा ही हो!”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “मातहत अधिकारी।”

या “मेरे पैसों से।”

या “और मेरा भला करना।”

अति. ख15 देखें।

शा., “वे अपनी ही नज़रों में गिर गए।”

या “मातहत अधिकारियों।”

एज 2:2 में इसे “सरायाह” कहा गया है।

एज 2:2 में इसे “रेलायाह” कहा गया है।

एज 2:2 में इसे “मिसपार” कहा गया है।

एज 2:2 में इसे “रहूम” कहा गया है।

इस अध्याय में “बेटे” का मतलब “वंशज” भी हो सकता है। और कुछ जगहों पर “बेटे” का मतलब “निवासी” भी हो सकता है।

या “नतीन लोगों।” शा., “दिए गए लोगों।”

एज 2:44 में इसे “सीहा” कहा गया है।

एज 2:50 में इसे “नपीसीम” कहा गया है।

एज 2:52 में इसे “बसलूत” कहा गया है।

एज 2:55 में इसे “परूदा” कहा गया है।

एज 2:57 में इसे “आमी” कहा गया है।

या “नतीन लोगों।” शा., “दिए गए लोगों।”

या “वे अशुद्ध ठहरे और उन्हें निकाल दिया।”

या “तिरशाता।” यह किसी प्रांत के राज्यपाल को दिया एक फारसी खिताब है।

या “तिरशाता।” यह किसी प्रांत के राज्यपाल को दिया एक फारसी खिताब है।

माना जाता है कि द्राख्मा, सोने के फारसी सिक्के दर्कनोन के बराबर था जिसका वज़न 8.4 ग्रा. था। मगर यह यूनानी शास्त्र में बताया द्राख्मा नहीं है। अति. ख14 देखें।

इब्रानी शास्त्र में बताए एक मीना का वज़न 570 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “नतीन लोग।” शा., “दिए गए लोग।”

या “शास्त्री।”

या “शास्त्री।”

या “ऐसा ही हो!”

या “उन्होंने इस तरह पढ़ा कि सुननेवालों को समझ में आए।”

या “तिरशाता।” यह किसी प्रांत के राज्यपाल को दिया एक फारसी खिताब है।

या “शास्त्री।”

या “वह तुम्हारी ताकत है।”

या “शास्त्री।”

या “हमेशा से हमेशा तक।”

या “भली पवित्र शक्‍ति।”

शा., “तेरे कानून को पीठ के पीछे फेंक दिया।”

इस अध्याय में “बेटे” का मतलब “वंशज” भी हो सकता है।

या “तिरशाता।” यह किसी प्रांत के राज्यपाल को दिया एक फारसी खिताब है।

या “नतीन लोग।” शा., “दिए गए लोग।”

या शायद, “जिनकी समझने की उम्र थी।”

या “मंदिर।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

यानी नज़राने की रोटी।

या “नतीन लोग।” शा., “दिए गए लोग।”

इस अध्याय में “बेटे” का मतलब “वंशज” भी हो सकता है।

या “मंदिर।”

या “जो उनकी विरासत थी।”

या “नतीन लोग।” शा., “दिए गए लोग।”

शा., “राजा का दायाँ हाथ था।”

या “तक डेरे डाले हुए थे।”

इस अध्याय में “बेटे” का मतलब “वंशज” भी हो सकता है।

या शायद, “उपासना के वक्‍त।”

ज़ाहिर है कि इब्रानी पाठ में यहाँ कोई नाम नहीं है।

या “शास्त्री।”

या “तालीम पाए हुए गायक।”

यानी यरदन ज़िले के आस-पास से।

या “शास्त्री।”

या “मातहत अधिकारियों।”

कुछ लोग शायद इसराएली और गैर-इसराएली माँ-बाप से पैदा हुए थे।

या “मंदिर।”

या “मातहत अधिकारियों।”

या “शास्त्री।”

या “उसकी देखरेख।”

या शायद, “उस दिन उन्हें खबरदार किया कि वे इन चीज़ों को न बेचें।”

या “को अपने घर ले आए।”

या “और मेरा भला करना।”

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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