गर्मियों के लिए आपकी क्या योजनाएँ हैं?
क्या यह सच नहीं कि जब हम अपने समय का उत्तम प्रयोग करने की योजना बनाते हैं तब अपने कीमती लक्ष्यों को पाने की संभावना ज़्यादा होती है? गर्मी के महीनों में हमें ईश्वरशासित कार्यों में आगे बढ़ने के बहुत-से अवसर मिलते हैं। (नीति. २१:५) इनमें से कुछ कौन-से हैं?
२ क्यों न गर्मियों में अपनी क्षेत्र सेवा की गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बनाएँ? गर्मी के मौसम में लंबे दिनों के कारण आप प्रचार के काम में ज़्यादा समय बिता सकेंगे। स्कूल की छुट्टियाँ, युवाओं को गर्मियों में एक से ज़्यादा महीने के लिए सहयोगी पायनियर-कार्य करने के अवसर प्रदान करती हैं। दूसरे लोग भी पहले से अगस्त के महीने में सहयोगी पायनियर-कार्य करने की योजना बना सकते हैं, जिसमें पूरे पाँच सप्ताहांत होंगे। अगस्त में ही हमारा सेवा वर्ष समाप्त हो जाएगा इसलिए मिलकर प्रयास किए जाएँगे कि हरेक जहाँ तक हो सके सेवकाई में पूरी तरह भाग ले।
३ क्या आप निकट की ऐसी किसी कलीसिया को सहायता देने की योजना बना रहे हैं, जिसे अपना क्षेत्र पूरा करने में मदद की ज़रूरत है? सर्किट ओवरसियर ऐसी किसी भी ज़रूरत के बारे में प्राचीनों को जानकारी दे सकता है। या, अगर आप योग्य साबित होते हैं और कभी-कभार काम किए गए क्षेत्र या अनियुक्त क्षेत्र में काम करने के लिए सोसाइटी को अर्ज़ी भेजना चाहते हैं, तो प्राचीनों से इनके बारे में बात कीजिए। अगर आप घर से दूर कहीं छुट्टी पर जाएँगे तो वहाँ की कलीसिया की सभाओं में उपस्थित होने और क्षेत्र सेवा में भाग लेने की योजना बनाइए। अगर आप ऐसे रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं, जो यहोवा के साक्षी नहीं हैं तो सच्चाई के बारे में आप उनसे किन तरीकों से बात करेंगे इसकी तैयारी पहले से कीजिए।
४ “ईश्वरीय जीवन का मार्ग” ज़िला अधिवेशन एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है जिसमें उपस्थित होने की योजना हम सभी को बनानी चाहिए। स्कूल या काम से छुट्टी लेने का प्रबंध पहले से ही कर लीजिए ताकि आप अधिवेशन के हर दिन उपस्थित हो सकें। अगर व्यावहारिक हो तो जितनी जल्दी हो सके रहने का इंतज़ाम कीजिए साथ ही अपनी यात्रा का भी प्रबंध कर लीजिए।
५ गर्मियों के लिए आपकी योजनाएँ क्या हैं? आप ज़रूर शारीरिक रूप से ताज़गी पाना चाहते हैं। लेकिन उन अधिक मूल्यवान मौकों को भी अनदेखा मत कीजिए जो आपको आध्यात्मिक रूप से शक्ति से भर देते हैं, जब आप राज्य को लगातार अपने जीवन में प्रथम स्थान पर रखते हैं।—मत्ती ६:३३; इफि. ५:१५, १६.