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  • “अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना”

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  • “अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना”
  • हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा — सभा पुस्तिका—2018
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mwb18 फरवरी पेज 4

जीएँ मसीहियों की तरह

“अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना”

यीशु बचपन से अपने माता-पिता की “आज्ञा मानता” था। (लूक 2:51, फु.) यही वजह है कि वह बेझिझक लोगों से कह पाया कि उन्हें यहोवा की यह आज्ञा माननी चाहिए, “अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।” (निर्ग 20:12; मत 15:4) यीशु ने अपनी मौत से पहले इस बात का खयाल रखा कि उसके न रहने पर उसकी माँ की देखभाल की जाए।​—यूह 19:26, 27.

आज भी परमेश्‍वर का भय माननेवाले बच्चे अपने माता-पिता का आदर करते हैं, इसलिए वे उनकी आज्ञा मानते हैं और उनसे अदब से बात करते हैं। माता-पिता के बूढ़े हो जाने पर भी हमें उनका आदर करना चाहिए और उनसे सलाह लेनी चाहिए। (नीत 23:22) आदर करने का एक और तरीका है, उनकी भावनाओं का खयाल रखना और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें आर्थिक सहायता देना। (1ती 5:8) चाहे हम उम्र में छोटे हों या बड़े, हमें अपने माता-पिता से अच्छी तरह बातचीत करनी चाहिए। उनका आदर करने का यह एक अहम तरीका है।

मम्मी-पापा से कैसे बात करूँ? नाम का बोर्डवाला कार्टून देखिए और आगे दिए सवालों के जवाब दीजिए:

  • आपको मम्मी-पापा से बात करना मुश्‍किल क्यों लग सकता है?

  • उनसे बात करते वक्‍त आप उनका आदर कैसे कर सकते हैं?

    एक लड़का अपने मम्मी-पापा को खत लिख रहा है, उनसे बात कर रहा है और पापा के साथ फुटबॉल खेल रहा है
  • उनसे सलाह लेना अक्लमंदी क्यों होगी? (नीत 15:22)

    माता-पिता अपने बेटे को आगे आनेवाली मुश्‍किलों का सही तरह से सामना करना सिखा रहे हैं

    मम्मी-पापा से सलाह लेने से आप जीवन में कामयाब हो सकते हैं

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