आतंकवाद—उसके पीछे क्या है और क्यों?
“लंदन, अप्रैल १७—मुअम्मर-अल-गद्दाफी की सरकार के विरुद्ध एक विरोध के दौरान लिबियायी दूतावास से एक भीड़ पर मशीन-गन से गोली चलायी गयी, जिस में एक पुलीस अफसर मारा गया और १० व्यक्तियाँ घायल हो गए।”—द न्यू यॉर्क टाइम्स।
“स्पष्ट रूप से देखो तो भीतर के ये सशस्त्र व्यक्तियों ने एक खुली खिड़की से प्रदर्शनकारियों को स्वचालित गन की गोलियों से छलनी कर दिया . . . वह निरस्त्र महिला पुलिस पीछे से मार दी गयी . . . इस क्रूर घटना के दस दिन बाद अँग्रेज सरकार ने इन हत्यारों को, उनके शस्त्रों के साथ, देश से निकलने के लिए सुरक्षित यात्रा प्रदान की।”—टेररिज़म—हौ द वेस्ट कॉन विन।
दूतावास स्टाफ होने के कारण उन्हें राजनयिक प्रतिरक्षा दी गयी।
लोग और दल क्यों आतंकवाद का सहारा लेते हैं? मुख्य लक्ष्य कौन-कौन है? आतंकवाद क्या सम्पादित करता है?
एक दृष्टिकोण यह है कि आतंकवाद एक चिह्न है जो अनेक प्रकार के जातीय, सामाजिक और राजनीतिक अन्यायों को सूचित करता है। कैथॉलिक पादरी और धर्मविज्ञानी जेम्स टी. बर्टशेल ने बताया: “कुछ आतंकवाद जातीय और/या धार्मिक (साधारणतः आर्थिक) अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा स्थायी बनाए गए हैं: स्पेन के बॉस्क, अल्स्टर के कैथॉलिक, फिलिप्पी हुक। . . . कुछेक उन सरकारों द्वारा अनुमोदित हैं जो एक अधिसंख्यक विमति से धमकाए गए हैं . . . कुछ तो एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वर्ग के कार्य हैं जो सरकार को नियंत्रण में लाने की चाह रखते हैं।”
लेकिन क्या सिर्फ अल्पसंख्यक दल ही है, जो आतंकवाद का प्रयोग करते हैं? बर्टशेल आगे कहते हैं: “कुछेक आतंकवाद सरकारों द्वारा समर्थित है जो कोई और असहयोगी राष्ट्र की सरकार को बदनाम करने, अस्थिर करने और उद्वासित करने के लिए है।”—फायटिंग बॉक।
अन्य टीकाकारों के अनुसार, आतंकवाद के पीछे के उद्देश्यौं को अलग अलग रीति से व्याख्या किया जा सकता है जो प्रेक्षक के राजनीतिक हमदर्दी पर निर्भर है। कुछ लोग तर्क करते हैं कि जब अन्याय होता है और लोगों को कोई वैधिक हरज़ाना नहीं मिलता तब आतंक ही उनका एकमात्र उत्तर बन जाता है। दूसरे शासन आतंकवाद में पश्चिमी प्रजातंत्रों के विरुद्ध एक योजना देखते हैं जो विरोधी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित और छलयोजित है। तो चलो इस जटिल समस्या के कुछ मतों और तथ्यों की हम जाँच करेंगे।
उत्तरी आयरलैन्ड में यह आतंक क्यों?
नॉर्थन आयरलैन्ड—डिवाइडेड प्रॉविन्स के लेखकों के अनुसार, ३५० से अधिक वर्षां से पहले, अँग्रेजी प्रॉटेस्टैन्ट, जिन में से कई स्कॉटलैन्ड से थे, आयरलैन्ड के कैथॉलिक मिट्टी में बसाए गए, जो संस्कृतियों के बीच एक संघर्ष उत्पन्न किया और जो बाद में नौकरी-प्राप्ती के लिए एक मुकाबले की ओर ले गयी। यह पुस्तक कहती हैः “उत्तरी आयरलैन्ड के प्रॉटेस्टैन्ट लोग ज्यादातर १७-वीं सदी के दौरान आए, एक ऐसी प्रक्रिया जो १६०७ में शुरू हुई और अलस्टर का ‘रोपण’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह आखिर दृढ़ अँग्रेजी शासन को आयरलैन्ड के सम्पूर्ण द्वीप पर स्थापित किया।” यही अँग्रेजी शासन सदियों पुरानी यह कड़वाहट और अत्याचार की बुनियाद है।
१९२१ में आयरलैन्ड के कैथॉलिक स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया और उत्तर-पूर्व के छः मुख्य प्रॉटेस्टैन्ट प्रान्तों को एक अलग हस्ती के रूप में छोडा गया जिससे उत्तरी आयरलैण्ड बन गयी। आयरलैन्ड के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुसार इससे आयरलैन्ड का अंगच्छेद हुआ। तब से अब तक यह अवैधिक आय आर ए (आयरलैन्ड की गणतन्त्रिक सेना) आयरलैन्ड को पुनःएकत्रित करने के लिए लड़ते आए हैं—जिसका प्रॉटेस्टैन्ट लोग प्रबलता से विरोध करते हैं। क्यों? क्योंकि उनके अनुसार डबलिन में ‘कैथॉलिक पोप-समर्थक राज’ है जिसके नीचे आने से वे इनकार करते हैं।
प्रॉटेस्टैन्ट दृष्टिकोण, द न्यू यॉर्क टाइम्स के इन शब्दों में जुड़ा हुआ है, जो हाल के तलाक पर प्रतिबन्ध कायम रखने के लिए एक मत-प्रस्ताव के बारे में था, जो ३ में २ की अनुपात से समर्थित था: “उत्तरी आयरलैन्ड के राजनीतिज्ञ जो गणतंत्र से कोई भी वास्ता का विरोध करते हैं, उन में पहले थे जो इस मत-प्रस्ताव का आयरलैन्ड के गणतंत्र पर रोमन कैथॉलिक चर्च की ‘निरोधक सत्ता’ का एक उपाय होने का दोषारोपण कर रहे थे।”
आय आर ए इस समय दो गुटों में विभाजित है—अधिकारी वर्ग और अस्थायी वर्ग (प्रोवो)। इतिहास के प्रॉफेसर थॉमस ई. हॉची के अनुसार, “आय आर ए के अधिकारी एक सम्पूर्ण आयरलैन्ड या बत्तीस प्रान्तीय समाजवादी गणतंत्र से प्रतिबध्द है। . . . प्रोवो वर्ग एक संघीय हल और आयरलैन्ड के लिए एक संघीय संविधान के लिए आन्दोलन कर रहे हैं।” (द रॉशनलैज़ेशन ऑफ टेररिज़) अवरोक्त वर्ग कितनी गम्भीरता से उनके उद्देश्यों को लेते हैं यह तब स्पष्ट हुआ जब ये प्रोवो वर्ग ने ब्राइटन होटेल में एक टाईम बम छोड़ रखा जिससे ब्रिटिश प्रधान मन्त्री थॉचर और उसके मन्त्रि-मण्ड़ल बाल-बाल बच निकले।
धार्मिक, राजनीतिक और जातीय कारणों के बावजूद कुछ प्रश्न रह जाते हैं: आतंकवाद के पीछे क्या कोई गहरे उद्देश्य हैं? बड़ी शक्तियाँ किस कदर तक सम्बध्द हैं?
आतंकवाद के पीछे के उद्देश्य
अधिकतम अरबी आतंकवादी दल उनके कार्यों को फिलस्तीनी शरणार्थियों की दुर्दशा की ओर सूचित करते हुए न्यायोचित ठहराते हैं, जो १९४८ में जब इस्राएल राष्ट्र का स्थापन हुआ अपने स्वदेश खो दिए। कई शतकों से भावनाएं इतनी बढ़ गई हैं कि अब इन अरबी आतंकवादियों का उद्देश्य न सिर्फ एक अलग स्वदेश है बल्कि यहूदियों के लिए कुछ अधिक अनर्थकारी—इस्राएल का विनाश। यह कैसे जान लिया गया?
यह निम्नलिखित उद्धरण हिज़बल्लाह (“परमेश्वर की पार्टी”), के “खुला पत्र” से लिया गया जो एक शियायी दल है जो मध्य पूर्व में कार्य करते हैं।
“हमारे बेटे इस वक्त, इन शत्रुओं के विरोध में [इस्राएल, संयुक्त राष्ट्र, फ्रान्स और (लेबानोन) के फलान्गे] एक सदा बढ़नेवाले मुकाबले में स्थित है जब तक निम्नलिखित लक्ष्य प्राप्त न होः
“लेबानोन से इस्राएल का उसके अस्तित्व से अन्तिम विनाश के प्रस्तावना के रूप में अन्तिम प्रस्थान और श्रद्धेय यरूशलेम की क़ब्ज़े के चुगंल से मुक्ति।”—हाइड्रा ऑफ कारनेज।
दूसरी ओर कई आतंकवादी कार्य इरान के अयातोल्लाह खोमेनी और उसके तत्वज्ञान के प्रभाव से “शहीदों” के द्वारा किया गया, जो सेक्रेड़ रेज पुस्तक के इन शब्दों में अभिव्यक्त हैः “विश्व की सरकारों को यह जानना होगा कि इस्लाम हराया नहीं जा सकता। दुनिया के सारे राष्ट्रों में इस्लाम जीत पाएगा और इस्लाम और कुरान की शिक्षाएं सारी दुनिया में प्रबल होंगी।”
यह दृष्टिकोण उसकी अगली समाप्ति की ओर ले जाता हैः “वास्तव में हमारे पास और कोई चारा नहीं बल्कि उन सरकारों की व्यवस्थाओं का नाश करना जो अपने में ही भ्रष्ट है . . . और सभी विश्वासघाती, भ्रष्ट अत्याचारी और अपराधिक शासनों को गिरा देना। यह सभी मुसलमानों का कर्तव्य है जिसे उन्हें निभाना है।
अन्य आतंकवादियों का प्रेरक बल क्रान्तिकारी समाजवाद और पूँजीदारी की समाप्ति है। अपनी पुस्तक द अल्टिमेट वेपन—टेररिस्ट्स ऑन्ड वल्ड ऑडर में लेखक जॉन स्क्रीबर बताते हैं: “साधारणतः शोषण करने की समर्थता को पूँजीदारी के बराबर माना गया है और पूँजीदारी, चाहे वह प्रजातन्त्र से संतुलित है या नहीं, वह फासीवादी के बराबर है।” जैसे आतंकवाद के एक जापानी समर्थक ने अभिव्यक्त किया: “जो हम इस दुनिया में कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे वह यह है कि लोगों द्वारा अन्य लोगों का शोषण करना, जिसे पूँजीदारी ने लाया है। यही वह उद्देश्य है जिसके लिए हम लड़ने के लिए तैयार रहेंगे।”
किन्तु दूसरे, आतंकवादियों को, एक अलग दृष्टि से देखते हैं। इस्राएली राजदूत बेन्जामिन नेतन्याहू लिखते हैं: “आतंकवाद किसी बात का अविवेचित परिणाम नहीं है। यह एक चयन है, एक दुष्ट चयन।” वह तर्क करता हैः “आतंकवाद का मूल कारण शिकायतों में नहीं है लेकिन उस अनियंत्रित अत्याचार की ओर की झुकाव में है। इसका सम्बन्ध उस विश्व दृष्टिकोण से मिलाया जा सकता है जो निश्चयपूर्वक कहता है कि कुछ सैद्धान्तिक और धार्मिक लक्ष्य सभी नैतिक निषेधों को छोड़ना उचित सिध्द करते हैं या उनकी माँग करते हैं।”—टेररिज़म—हौ द वेस्ट कॉन विन।
लेकिन हमारा आधुनिक समाज अचानक आतंकवाद का शिकार क्यों बन गया?
एक असुरक्षित समाज
आतंकवाद पर अमरीका के एक विशेषज्ञ नील लिविंगस्टन लिखते हैं: “जैसे हमारा संसार अधिकाधिक शहरी और पेचीदा बन गया है, हम उसके अनुरूप छोटे दलों के या अकेले व्यक्तियों के षड्यन्त्रों से और भी अधिक असुरक्षित बन गए हैं जो कि अधिकांश लोगों की ज़िन्दगियों को भंग करने या अपनी इच्छा उन पर जबरन लागू करने पर तुले हुए हैं।” हमारा समाज आतंकवादी कार्यों से इतने असुरक्षित क्यों है? “पानी, ऊर्जा, परिवहन, संचारण और सफाई-प्रबन्धों के हमारी पतली जीवन-रेखाएं तक परिष्कृत आतंकवादियों और विध्वंसकों के वश में है।”—हाइड्रा ऑफ कारनेज।
हमारी जीवन-रक्षा व्यवस्थाओं की दुर्बलता के कारण प्राचीन समयों की एक सेना की शक्ति आज एक आतंकवादी प्रयोग में ला सकता है। लिविंगस्टण आगे कहते हैं: “तकनीकी प्रगति के कारण . . . घातक प्रौद्योगिकी पर एक व्यक्ति को पहले से कहीं अधिक नियंत्रण रख सकता है। प्रौद्योगिकी के इस युग में एक व्यक्ति [उस युग के] एक सेना के बराबर है जब युध्द के मुख्य अस्त्र तलवार, धनुष और बरछा थे। आतंकवादी इस समकालीन दुनिया में ऐसी एक आशंका प्रस्तुत करने का यही एक मुख्य कारण है।”
आधुनिक समाज की एक और दोषपूर्ण बात समाचार घटनाओं का तात्कालिक संघात है। दूरदर्शन आतंकवाद के बल को बढ़ाता है। आतंकवादी अपने हेतु के लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि चाहता है—और जनसंचार माध्यमों के द्वारा उसे यह मिलता है!
केवल एक सदी पहले तक समाचार को दुनिया भर में फैलने के लिए कई दिन लगते थे। अब समाचार तात्क्षणिक है। कुछ घटनाओं में आतंकवादी खुद अपने आप को दूरदर्शन पर अपनी भूमिका निभाते हुए देख सकता है। अक़सर वह यह जानता है कि दूसरा पक्ष क्या कर रहा है, जब कि वह अपनी योजनाएं अनजान रखता है। जॉन स्क्रीबर आगे इतना तक कहता है कि “सार्वजनिक ध्यान आकर्षित करने की प्रेरणा, सब से अधिक संसक्ति से सफल आतंकवादी तरकीब” है।
लेकिन आतंकवाद सफल रहने का क्या कोई अन्य कारण है?
आतंकवाद और दो विरोधी विचारधाराएं
भविष्य के लिए कोई भी आशा न देते हुए आतंकवाद के दो परामर्शदाताएं लिखते हैं: “आतंकवाद समाप्त नहीं होगा। छोटे कमजोर राष्ट्रों ने यह पाया है कि यह उनके राजनीतिक लक्ष्यों को बढ़ा सकता है, और साधनों की कमी से पीड़ित होने से आतंकवाद का, जो एक राजनीतिक और सैन्य उपकरण है, त्याग नहीं करेंगे।” उसी समय, वे यह भी कहते हैं कि कुछ बड़ी शक्तियाँ आतंकवाद के द्वारा प्रतिनियुक्त युद्ध लड़ने के फायदें देख रेहे हैं। “तुलना में, बड़े शक्तिशाली राष्ट्रों ने यह जान लिया है कि आतंकवादी प्रतिनिधित्व उनके राष्ट्रीय उद्देश्यों को सफल करने के लिए उपयोग कर सकते हैं, उस खतरे के बिना जो साधारण अन्य तरह के युध्दों के साथ होता है।”—फायटिंग बॉक।
अगर इन अधिक समर्थ देशों ने यह पाया है कि आतंकवाद उनके लक्ष्यों को पाने के लिए सहायक है, तो क्या ये आतंकवाद के कुछ या अधिकांश भाग के लिए जिम्मेदार हैं? जॉन स्क्रीबर लिखते हैं: “उन्नीस सौ पचहत्तर के लगभग प्रकट की गयी बातें उस विषय को सुदृढ़ किया जो निष्पक्ष प्रेक्षकों ने बिना किसी सबूत के ही जान लिए थे; यह कि इस दुनिया की दो प्रमुख विचारधाराओं ने उनके शत्रुओं को हराने के लिए और सर्वोच्चता को पाने या कायम रखने के लिए सभी न्यायोचित और नियमविरुद्ध माध्यमों का उपयोग किए हैं और सम्भवतः करते रहेंगे।”
विचारधाराओं का यह संघर्ष सोवियत नेता गोर्बाचेव के भाषण में अन्तर्निहित है जब उन्होंने कहा: “यह सुस्पष्ट होना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को सामान्य सहयोग के मार्ग में लाना केवल तब सम्भव है जब साम्राज्यवादी इन दो सामाजिक व्यवस्थाओं के बीच के ऐतिहासिक वाद-विषय को सैनिक माध्यमों से हल करने की कोशिशों को त्याग दें।”—अ टाइम फॉर पीस।
दूसरे भी इस दो प्रमुख शक्तियों के बीच के यह अन्तर्राष्ट्रीय “शतरंज के खेल” को पहचान रहे हैं। उदाहरणार्थ, रॉबिन राअट उसकी पुस्तक सेक्रड रेज में कहती हैः “मुसलमान उग्रवादियों को यह भी लगता है कि संयुक्त राज्य ने मध्य पूर्व को मुख्यतः सोवियत संघ के साथ की प्रतिद्वन्द्विता के लिए एक क्षेत्र के रूप में देखते हैं और वास्तव में वे उन शक्तिशाली स्थानीय प्रभावों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। एक द्विध्रुविय दुनिया की स्वीकृति के लिए की गई व्याहत पुकारों की ओर भावुक नहीं है।” स्पष्टतया कुछ छोटे राष्ट्रों को ऐसा लग रहा है कि उन्हें विचारधाराओं के इस संघर्ष में कठपुतलियों के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
पश्चिमि विशेषज्ञ आतंकवाद को ज़्यादा पूँजीवादी व्यवस्था को अस्थायी करने का एक हथियार के रूप देख रहे हैं। राजदूत रॉबर्ट बी. ओकले, एक संयुक्त राज्य प्रति-आतंकवाद विशेषज्ञ ने कहा: “अगर निर्विरोध किया गया, आतंकवाद का चढ़ाव राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सम्बन्धों की व्यवस्था को दुर्बल बना देगा, जिन पर संयुक्त राज्य और उससे सन्धिबद्ध राष्ट्र सुरक्षा, बचाव और उनके राष्ट्रीय और आपसी हितों के बढ़ावे के लिए भरोसा रखते हैं . . . आनेवाले वर्षां के दौरान हम अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निरन्तर आनेवाली गम्भीर धमकियों के लिए तैयार रहना है . . . जो प्रायः थोड़े-से निष्ठूर सरकारों से समर्थित और प्रोत्साहित है।”
संयुक्त राज्य के राजदूत रॉबर्ट एम. सेर ने अपनी राय को अधिक स्पष्टता से व्यक्त किया: “आतंकवाद राजनीतिक रूप से प्रेरित और आयोजित और संघटित है। . . . इसका अधिकांश भाग मार्क्सवादी-लेनिनवादी राज्यों और दलों से कार्यान्वित है और सोवियत संघ और उसके पूर्वी-गुट साथियाँ सहायता और सान्त्वना प्रदान करते हैं—डिपार्टमेन्ट ऑफ स्टेट बुलेटिन।
आतंकवाद और बाइबल भविष्यवाणी
आतंकवाद को एक साधन के रूप में उपयोग करते हुए, इन दो महान शक्तियों के बीच की टक्कर बाइबल विद्यार्थियों के लिए खास महत्त्व क्यों रखता है? बाइबल पुस्तक दानिय्येल के अध्याय ११ में पायी एक अर्थवान् भविष्यवाणी की वजह से। यह भविष्यवाणी दो महान शक्तियों के बीच, “उत्तर देश का राजा” और “दक्षिण देश का राजा” के बीच की टक्कर का वर्णन करती है। अपने “पुरखाओं के देवता” को अस्वीकृत करने से “उत्तर देश का राजा” नास्तिक के रूप में परिचित हैं। (दानिय्येल ११:३७) वह अपने आप को बड़ा करता है और दृढ़ गढ़ों के देवता या युध्द सामग्री की महिमा करता है। वह प्रभावकारी रूप से मज़बूत गढ़ों का विरोध करता है और अपना विश्व स्थान स्थापित करता है। (दानिय्येल ११:३८,३९) जब उसका प्रतिपक्षी विकसित होता है तब क्या “दक्षिण देश का राजा” कार्यहीन खड़ा रहता है?
वह अनिष्टसूचक भविष्यवाणी बताती हैः “अन्त में दक्षिण देश का राजा उसको सींग मारने लगेगा; परन्तु उत्तर देश का राजा उस पर बवण्डर की नाई बहुत से रथ-सवार और जहाज़ लेकर चढ़ाई करेगा; इस रीति से वह बहुत देशों में फैल जाएगा और उन में से निकल जाएगा।” (दानिय्येल ११:४०) युक्तियुक्त रीति से, आतंकवाद उसके अनेक रूपों में दोनों राजाओं द्वारा विश्व सर्वोच्चता पाने के संघर्ष में उपयोग किए जा रहे हैं।a दानिय्येल के शब्द सूचित करते हैं कि इन दो प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच तब तक प्रतियोगी सहास्तित्व होगा जब तक परमेश्वर उसके हरमगिदोन के युद्ध में उनकी प्रतिद्वंद्विता का अन्त करेगा।”—प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६.
ये सवाल रह जाते हैं: क्या मनुष्य अकेला आतंकवाद का इस महाविपत्ति का अन्त ला सकता है? अगर ऐसा हो तो कैसे और कब? अगर नहीं, तो क्यों? हमारा अगला लेख इन सवालों की चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a इन राजाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए “युअर विल बी डन ऑन अर्थ” (अंग्रेजी) पुस्तक के अध्याय ११ देखिए जो कि १९५८ में वॉचटावर बाइबल और ट्रैक्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित है।
[पेज 7 पर तसवीर]
आतंकवाद के पीछे छिपे उद्देश्य अन्तिम समय के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी से सम्बन्धित है
[चित्र का श्रेय]
Pacemaker Press Int’l, Belfast
[पेज 8 पर तसवीर]
आधुनिक आतंकवाद जनसंचार माध्यमों का प्रभावकारी उपयोग करता है
[चित्र का श्रेय]
Reuters/Bettmann Newsphotos