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g95 7/8 पेज 5-7

कुछ समस्याएँ क्या हैं?

बुज़ुर्ग, माता-पिता और नातीपोते—तीन पीढ़ियाँ जिनकी उम्र में सिर्फ़ कुछ दशकों का फ़ासला, लेकिन स्वभाव में अकसर एक अथाह खाई का।

अनेक बुज़ुर्ग द्वितीय विश्‍व युद्ध के डरावने अनुभव, और उसके तबाही मचानेवाले तमाम परिणामों से गुज़रे। ६० के दशक में विद्रोह और गरमबाज़ारी के समय उनके बच्चे शायद छोटे थे। उनके नाती-पोते आज मूल्यों से खाली संसार में जीते हैं। लोकप्रिय आदर्शों में आज तेज़ परिवर्तन के कारण, एक पीढ़ी के लिए यह आसान नहीं है कि अगली पीढ़ी में अपने अनुभव के लिए क़दर पैदा करे। कुछ बात है जिसकी कमी है, ऐसी बात जो भिन्‍न पीढ़ियों के लोगों को सहयोग करने और एक दूसरे का आदर करने के लिए उकसाए। लेकिन यह कौन-सी बात हो सकती है?

अकसर, बुज़ुर्ग अपने विवाहित बच्चों के पारिवारिक मामलों में अच्छे इरादों के साथ दख़ल देते हैं, और यह शिकायत करते हैं कि माता-पिता नातीपोतों के साथ बहुत ज़्यादा सख़्ती बरतते अथवा बहुत ज़्यादा ढील देते प्रतीत होते हैं। दूसरी ओर, एक स्पैनिश कहावत कहती है: “बुज़ुर्गों की सज़ा से अच्छे नातीपोते उत्पन्‍न नहीं होते”—क्योंकि बुज़ुर्गों की प्रवृत्ति ज़्यादा ही लाड़-प्यार करने की होती है। वे शायद दख़ल देते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे कुछ ग़लतियाँ करने से दूर रहें, जिन्हें वे अपने अनुभव के कारण स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं। लेकिन, वे शायद अपने विवाहित बच्चों के साथ इन बदलते सम्बन्धों पर संतुलित रीति से फिर से विचार करने और इन्हें समझने में असमर्थ हों। बच्चे, जिन्होंने शादी के माध्यम से आज़ादी के लिए अपनी लम्बे अर्से की ललक को पूरा किया है, दख़लअंदाज़ी बर्दाश्‍त करने के लिए तैयार नहीं होते। अब जबकि वे अपने परिवार की देखभाल करने के लिए काम करते हैं, वे अपने निर्णय ख़ुद करने के अपने अधिकार पर आक्रमण को स्वीकार नहीं कर सकते। उनके नातीपोते, जो शायद सोचते हैं कि उन्हें पहले से सबकुछ मालूम है, नियमों और विनियमों के कारण कुढ़ते हैं और शायद अपने बुज़ुर्गों को जीवन की वर्तमान सच्चाइयों से अनजान समझते हैं। आधुनिक समाज में, ऐसा लगता है कि बुज़ुर्ग अपना आकर्षण खो चुके हैं। उनका अनुभव ज़्यादातर नज़रअंदाज़ किया जाता है।

जब बातचीत बन्द हो जाती है

कभी-कभी आपसी समझ के अभाव की एक अभेद्य दीवार, बुज़ुर्गों को बाक़ी के परिवार से अलग कर देती है, तब भी जब वे अपने बच्चों के साथ रहते हैं। दुःख की बात है कि यह ठीक उसी समय पर होता है जब, बुढ़ापा बोझ बनने के कारण, बुज़ुर्गों को और अधिक स्नेह की ज़रूरत होती है। एक व्यक्‍ति को अकेला महसूस करने के लिए अकेला होने की ज़रूरत नहीं है। जब बातचीत बन्द हो जाती है, जब आदर और स्नेह की जगह मेहरबानी या चिड़चिड़ाहट ले लेती है, तब इसके परिणाम होते हैं पूरी तरह परायापन और बुज़ुर्गों द्वारा महसूस की जा रही गहरी निराशा। उनकी अन्तरतम भावनाओं को ठेस पहुँचती है। शिक्षक जाकोमो डाक्वीनो लिखता है: “परिवार में प्रेम, जिसकी समानता हाल ही में किसी ने गाड़ी के एक पुराने, बेकार मॉडल से की, अब भी एक सर्वोत्तम जरा-चिकित्सा दवा है। एक हमदर्दी-भरा चेहरे का भाव, एक मनोहर मुस्कान, एक प्रोत्साहक शब्द, या एक चुम्बन अनेकों दवाइयों से ज़्यादा प्रभावकारी होता है।”—लीबर्टा डी इनवेकयार (वृद्ध होने की आज़ादी)।

आपके उदाहरण से फ़र्क पड़ सकता है

बिगड़ते पारिवारिक सम्बन्धों से जो तनाव उत्पन्‍न होता है, वह एक पीढ़ी का दूसरी पीढ़ी के विरुद्ध लगातार शिकायतों का भी कारण होता है। परिवार का एक सदस्य शायद महसूस करे कि दूसरा व्यक्‍ति जो कुछ करता है वह ग़लत है। लेकिन इसके बुरे असर सब महसूस करते हैं। बच्चे बुज़ुर्गों के साथ अपने माता-पिता के व्यवहार को, और बदले में बुज़ुर्गों की प्रतिक्रिया को देखते हैं। सामान्यतः, शायद वृद्ध जन चुपचाप सहते रहें, फिर भी नातीपोते सुनते, देखते और याद रखते हैं। इस प्रकार उनके अपने भावी बर्ताव के तरीक़ों पर प्रभाव पड़ता है। बड़े होकर, वे भी संभवतः अपने माता-पिता से वैसा ही व्यवहार करें जैसा माता-पिता ने बुज़ुर्गों से किया था। बाइबल के सिद्धान्त से बच निकलना असंभव है: “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”—गलतियों ६:७.

अगर नातीपोते माता-पिता को बुज़ुर्गों के साथ बदतमीज़ी से व्यवहार करते हुए—उनका मज़ाक उड़ाते हुए, उन्हें कठोरता से दबाते हुए, यहाँ तक कि उनका अनुचित लाभ उठाते हुए—देखते हैं, तो इसके बदले में वे शायद अपने माता-पिता के वृद्ध होने पर इसी तरीक़े से उनके साथ पेश आएँ। बुज़ुर्गों की तस्वीर को फ्रेम लगाकर मेज़ पर रखना काफ़ी नहीं है—व्यक्‍तियों के तौर पर उन्हें आदर दिया जाना है और उनसे प्रेम किया जाना है। समय आने पर, शायद नातीपोते वही व्यवहार करें। कहा जाता है कि बुज़ुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के वाक़ियात अधिकाधिक बढ़ रहे हैं। कुछ यूरोपीय देशों में, जिन वृद्ध जनों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, उनके पक्ष में दख़ल देने के लिए टेलिफ़ोन व्यथा लाइनें लगायी गयी हैं, उन्हीं लाइनों के समान जो पहले ही बच्चों की सुरक्षा के लिए लगायी जा चुकी हैं।

स्वार्थ, घमण्ड और प्रेम का अभाव हमदर्दी की कमी को विकसित करते और बढ़ाते हैं। अतः, वृद्धाश्रम में उनको दाख़िल करने के द्वारा, बुज़ुर्गों से अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश करनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है। वृद्ध जनों की देखभाल करने की समस्या से ख़ुद को मुक्‍त करने के लिए कुछ व्यक्‍ति पैसे ख़र्च करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, वे उन्हें या तो सारी नवीनतम टॆक्नॉलॉजी से सज्जित विशिष्टीकृत केन्द्रों को अथवा फ्लोरिडा या कैलिफोर्निया, अमरीका के सेवानिवृत्ति क़स्बों जैसे संस्थानों को सौंप देते हैं, जिनमें सुपरमार्केट और मनोरंजन के स्थानों की बहुतायत है लेकिन फिर भी प्रिय जनों की मुस्कान और चुम्बन और नातीपोतों के आलिंगन की कमी है। विशेषकर छुट्टियों के समय, अनेक लोग दादा-दादी को “रखने” के लिए कोई जगह ढूँढते हैं। भारत में स्थिति कभी-कभी और भी बदतर हो सकती है जब कुछ बुज़ुर्गों को योंही त्याग दिया जाता है और अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है।

तलाक़ के द्वारा नज़दीकी पारिवारिक सम्बन्धों को बनाए रखने की मुश्‍किलें बढ़ जाती हैं। ४ में से सिर्फ़ १ ब्रिटिश परिवार में दोनों माता-पिता अब भी परिवार के साथ रहते हैं। तलाक़ संसार-भर में बढ़ रहा है। अमरीका में, हर साल दस लाख से अधिक तलाक़ होते हैं। बुज़ुर्ग इस प्रकार अचानक अपने आप को अपने बच्चों की वैवाहिक संकट-स्थिति का और अपने नातीपोतों के साथ सम्बन्धों में परिणामी प्रचण्ड परिवर्तनों का सामना करते हुए पाते हैं। पिछले दामाद या पिछली बहू से सम्बन्ध बनाए रखने की उलझन के साथ, अगर “उनके बेटे या बेटी के नए साथी के पास पिछली शादी से बच्चे हों, तो ‘नव-प्राप्त’ नातीपोतों के आकस्मिक आगमन” की समस्या जुड़ जाती है, जैसे कि इटालियन समाचारपत्र कोरीअर सालूट रिपोर्ट करता है।

“हमारे जीवन में चमक”

फिर भी, अपने बुज़ुर्गों के साथ एक दिली, स्नेहपूर्ण सम्बन्ध, चाहे वे बाक़ी के परिवार के साथ रहते हों या नहीं, सभी के लिए बहुत लाभदायक है। “अपने बच्चों और नातीपोतों के लिए कुछ करना,” फूकूई, जापान से एक दादीमाँ, रयोको कहती हैं, “हमारे जीवन में चमक लाने के लिए काफ़ी है।” कोरीअर सालूट द्वारा प्रकाशित खोज के परिणामों के अनुसार, रिपोर्ट किया गया कि अमरीकी विशेषज्ञों के एक समूह ने कहा: “जब बुज़ुर्गों और नातीपोतों को एक भावप्रवण और स्नेहपूर्ण सम्बन्ध का आनन्द लेने का अच्छा अनुभव होता है, तो न सिर्फ़ बच्चों को बल्कि पूरे परिवार को भी बहुत लाभ मिलता है।”

तो फिर, व्यक्‍तिगत मतभेदों, पीढ़ियों के अंतर और स्वार्थ की ओर स्वाभाविक झुकाव पर, जो पारिवारिक सम्बन्धों पर इतना हानिकारक प्रभाव डालते हैं, क़ाबू पाने के लिए क्या किया जा सकता है? इस विषय पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“बूढ़ा होने के बारे में बुरी बात यह है कि आपकी सुनी नहीं जाती।”—आल्बर्‌ कैमस, फ्राँसीसी उपन्यासकार

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