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  • मैं सीख क्यों नहीं सकता?

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  • मैं सीख क्यों नहीं सकता?
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सजग होइए!–1996
g96 7/8 पेज 26-28

युवा लोग पूछते हैं . . .

मैं सीख क्यों नहीं सकता?

जॆसिका याद करती है “मैं घर जाकर अपने माता-पिता का सामना नहीं करना चाहती थी। फिर एक बार मैं कई कोर्स में फेल हो गयी थी।”a १५ की उम्र में, जॆसिका अक़लमंद और सुंदर है। लेकिन कई युवाओं की तरह, उसे अपने नंबरों के साथ जूझना पड़ता है।

स्कूल में ख़राब प्रदर्शन अकसर शिक्षा अथवा शिक्षक के प्रति एक व्यक्‍ति की उदासीन मनोवृत्ति के परिणामस्वरूप होता है। लेकिन जॆसिका के साथ समस्या यह नहीं है। वह अमूर्त विचारों को समझना अत्यधिक रूप से मुश्‍किल पाती है। स्वाभाविक रूप से, इसने जॆसिका का गणित में सफल होना मुश्‍किल बना दिया। और पढ़ने में कठिनाई से उसके लिए अन्य विषयों में अच्छा करना मुश्‍किल हो गया।

दूसरी ओर, मारिया ठीक से वर्तनी नहीं कर सकती। हमेशा वह अपने नोट्‌स को छिपाती है जो वह मसीही सभाओं में ले जाती है क्योंकि वह अपनी वर्तनी की ग़लतियों से शर्मिंदा है। परन्तु, न तो जॆसिका ना ही मारिया बुद्धू हैं। जॆसिका लोगों के साथ इतनी कुशल है कि जब उसके स्कूल-साथियों के बीच समस्या खड़ी हो जाती है, तब वह एक स्कूल-नियुक्‍त मध्यस्थ, अथवा समस्या सुलझानेवाली के तौर पर कार्य करती है। एवं शैक्षिक तौर पर मारिया अपनी कक्षा में प्रथम १० प्रतिशत बच्चों में है।

समस्या: जॆसिका और मारिया को सीखने के विकार है। विशेषज्ञ विश्‍वास करते हैं कि सभी बच्चों में से कुछ ३ से १० प्रतिशत बच्चों को शायद सीखने में समान कठिनाइयाँ हों। तान्या, जो अब अपनी प्रारम्भिक बीसादि में है, उससे पीड़ित है जिसे एडीएचडी (ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार) कहते हैं।b वह कहती है: “ध्यान देने या यहाँ तक कि चुप बैठने में मेरी असमर्थता के कारण मुझे मसीही सभाओं, व्यक्‍तिगत अध्ययन, और प्रार्थना को लेकर बहुत कठिनाई होती है। मेरी सेवकाई प्रभावित हुई है क्योंकि मैं एक विषय से दूसरे विषय पर इतनी जल्दी कूदती हूँ कि कोई नहीं समझ सकता।”

जब इसके साथ अतिसक्रियता न हो, तो यह विकार एडीडी (ध्यान अभाव विकार) कहलाता है। इस विकारवाले लोगों को अकसर दिवास्वप्न देखनेवालों के तौर पर वर्णित किया जाता है। एडीडी से पीड़ित लोगों के बारे में तंत्रिका-विज्ञानी डॉ. ब्रूस रोज़मन ने कहा: “वे लोग पुस्तक के सामने बैठते हैं, और ४५ मिनट तक कुछ नहीं होता।” किसी भी हालत उनके लिए एकाग्र होना कठिन होता है।

चिकित्सीय अनुसंधायक विश्‍वास करते हैं कि हाल ही में उन्होंने समझना शुरू किया है कि ये समस्याएँ किन कारणों से होती हैं। फिर भी, अब तक कई बातें पता नहीं हैं। और विविध विकारों और अक्षमताओं के बीच की सीमाएँ जो सीखने में दख़ल देती हैं, हमेशा स्पष्ट नहीं होतीं। चाहे एक विशिष्ट विकार का जो भी ठीक-ठीक कारण या नाम बताया गया हो—चाहे एक समस्या पढ़ने, याद करने, ध्यान देने, या अतिसक्रिय होने की हो—यह विकार व्यक्‍ति की शिक्षा में दख़ल दे सकता है और बहुत पीड़ाओं का कारण हो सकता है। यदि आपमें सीखने की अक्षमता है, तो आप उसका सामना कैसे कर सकते हैं?

सामना करने की चुनौती

जॆसिका के बारे में विचार कीजिए, जिसका उल्लेख शुरूआत में किया गया था। अपनी पढ़ने की अक्षमता पर क़ाबू पाने के लिए दृढ़संकल्प, वह अलग-अलग पुस्तकों को पढ़ने की कोशिश करती रही। एक मोड़ आया जब उसने कविताओं की एक पुस्तक पायी जो उसके लिए दिलचस्प थी। उसने एक वैसी ही पुस्तक प्राप्त की, जिसे पढ़ने का भी उसने मज़ा लिया। उसके पश्‍चात्‌ वह कहानी की पुस्तकों की श्रंखला में दिलचस्पी लेने लगी, और रफ़्ता-रफ़्ता पढ़ना एक समस्या नहीं रही। इससे यह सबक़ सीखा जाना है कि लगन से प्रतिफल मिलता है। आप भी पढ़ने की अक्षमता पर क़ाबू पा सकते हैं अथवा हार न मानने के द्वारा उस दिशा में कम-से-कम अच्छी प्रगति कर सकते हैं।—गलतियों ६:९ से तुलना कीजिए।

अल्पकालिक स्मरण समस्या के साथ निपटने के बारे में क्या? इस समस्या को हल करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कुंजी इस लोकोक्‍ति में है: “दोहराव स्मरण की जननी है।” निकी ने पाया कि जो उसने सुना और पढ़ा है, उसे मौखिक रूप से ख़ुद को दोहराने से उसे बातों को याद रखने में मदद मिली। इसे आज़माकर देखिए। शायद यह आपकी भी मदद करे। यह महत्त्वपूर्ण है कि बाइबल समयों में लोग शब्दों को उच्चारित किया करते थे, ख़ुद अपने लिए पढ़ते समय भी। अतः यहोवा ने बाइबल लेखक यहोशू को आज्ञा दी: “तू [परमेश्‍वर की व्यवस्था को] धीमे स्वर में रात और दिन पढ़ना।” (यहोशू १:८, NW; भजन १:२) शब्दों को उच्चारित करना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? क्योंकि ऐसा करने से दो इंद्रियों का प्रयोग होता था—श्रवण और दृष्टि सम्बन्धी—और यह पाठक के मन में और भी गहरी छाप छोड़ने में मदद करता था।

जॆसिका के लिए, गणित सीखना भी एक बहुत बड़ा काम था। लेकिन, उसने गणित के नियमों को दोहराने के द्वारा उन्हें सीखने की कोशिश की—कभी-कभी तो प्रत्येक नियम पर क़रीब-क़रीब आधा घंटा बिताकर। उसके प्रयास अंततः रंग लाए। सो दोहराइए, दोहराइए, दोहराइए! कक्षा में सुनते समय या पढ़ते समय क़ागज़ और पॆन्सिल सुलभ रखना एक बुद्धिमत्तापूर्ण आदत है, ताकि आप नोट्‌स ले सकें।

यह अति-महत्त्वपूर्ण है कि आप सीखने में ख़ुद को लौलीन करें। स्कूल के बाद रुकना और अपने शिक्षकों के साथ बात करना एक आदत बनाइए। उन्हें जानिए। उन्हें बताइए कि आपको सीखने की समस्या है परन्तु आप उस पर क़ाबू पाने के लिए दृढ़संकल्प हैं। अधिकांश शिक्षक सहायता देने के लिए उत्सुक होंगे। उनकी मदद को स्वीकार कीजिए। जॆसिका ने ऐसा किया और एक सहानुभूतिशील शिक्षक से उसने बहुत-ज़रूरी सहारा पाया।

एकाग्र होना सीखिए

ख़ुद के लिए एक लक्ष्य और प्रतिफल व्यवस्था रखने से भी मदद मिल सकती है। टॆलीविज़न या अपना मनपसंद संगीत लगाने से पहले एक विशिष्ट लक्ष्य रखना—जैसे कि गृहकार्य नियुक्‍ति के एक भाग को पूरा करना—आपको एकाग्र होने के लिए प्रेरित कर सकता है। निश्‍चित होइए कि जो लक्ष्य आप बनाते हैं वे तर्कसंगत हैं।—फिलिप्पियों ४:५ से तुलना कीजिए।

कभी-कभार अपने माहौल में रचनात्मक परिवर्तन करने से भी मदद मिल सकती है। अच्छी तरह एकाग्र होने के लिए निकी ने कक्षा में शिक्षक के पास आगे बैठने का प्रबन्ध किया। जॆसिका ने एक अध्ययनशील सहेली के साथ गृहकार्य करना लाभदायक पाया। आप अपने कमरे को सुखकर और आरामदायक बनाना ही शायद सहायक पाएँ।

बेचैनी कम करना

यदि आप अतिसक्रिय होने की ओर प्रवृत्त होते हैं, तो सीखना एक दर्दनाक परीक्षा हो सकती है। लेकिन, कुछ विशेषज्ञ सुझाते हैं कि अतिसक्रियता शारीरिक कसरत में इस्तेमाल की जा सकती है। “इस बात के प्रमाण का अम्बार लग रहा है,” यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट कहती है, “कि हर व्यक्‍ति की नई जानकारी पर दक्षता हासिल करने और पुरानी को याद रखने की क्षमता मस्तिष्क में ऎरोबिक अनुकूलन द्वारा लाए गए जैविक परिवर्तनों से सुधर गयी है।” अतः, संतुलित मात्रा में कसरत—तैरना, दौड़ना, गेंद खेलना, सायकिल चलाना, स्केटिंग करना, और इत्यादि—शरीर और मन, दोनों के लिए अच्छी हो सकती है।—१ तीमुथियुस ४:८.

सीखने के विकारों के लिए औषधियाँ हमेशा सुझायी जाती हैं। यह दावा किया जाता है कि एडीएचडी से पीड़ित कुछ ७० प्रतिशत बच्चों ने, जिन्हें उद्दीपक दवाइयाँ दी गयी हैं, प्रतिक्रिया दिखायी है। आप औषधीय-चिकित्सा स्वीकार करते हैं या नहीं, इसका निर्णय आपको तथा आपके माता-पिता को करना है, जो समस्या की गंभीरता, सम्भव गौण-प्रभाव, और अन्य तत्वों को ध्यान में रखने के बाद किया जाना है।

अपना आत्म-सम्मान बनाए रखिए

जबकि सीखने में कठिनाई को एक भावात्मक समस्या नहीं समझा जाता, इसके भावात्मक परिणाम हो सकते हैं। माता-पिता और शिक्षकों से नियमित अस्वीकृति और आलोचना, स्कूल के ख़राब या साधारण परिणाम, और क़रीबी मित्रों के अभाव का सम्मिश्रण आसानी से कम आत्म-सम्मान उत्पन्‍न कर सकता है। कुछ युवा इस भावना को एक क्रोधित और ख़तरनाक तरीक़े से बर्ताव करने के द्वारा छिपा देते हैं।

परन्तु सीखने की समस्याओं के कारण आपको आत्म-सम्मान खोने की ज़रूरत नहीं है।c सीखने की समस्यावाले बच्चों के साथ काम करनेवाले एक पेशेवर कहते हैं, “मेरा लक्ष्य है जीवन के प्रति उनकी मनोवृत्ति को बदलना—‘मैं बुद्धू हूँ, और मैं कोई काम सही नहीं कर सकता’ से ‘मैं एक समस्या पर क़ाबू पा रहा हूँ, और मैं इतना ज़्यादा कर सकता हूँ जितना कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं कर पाऊँगा।’”

हालाँकि आप दूसरों की मनोवृत्तियों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते, आप स्वयं अपनी मनोवृत्ति को प्रभावित कर सकते हैं। जॆसिका ने यही किया। वह कहती है: “जब मैंने स्कूल में बच्चों ने जो कहा उसके और उनके चिढ़ाने के आधार पर अपने आपको आँका, तो मैं स्कूल से भाग जाना चाहती थी। परन्तु अब जो वे कहते हैं उसे मैं नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करती हूँ और अपना भरसक करती रहती हूँ। यह कठिन है, और मुझे अपने आपको याद दिलाते रहना पड़ता है, लेकिन इससे काम बनता है।”

जॆसिका को एक और हक़ीक़त से संघर्ष करना पड़ा। उसका बड़ा भाई अव्वल नम्बर का विद्यार्थी था। “यह मेरे आत्म-सम्मान को नाश किया करता था,” जॆसिका कहती है, “जब तक कि मैंने उसके साथ अपनी तुलना करनी बन्द नहीं की।” सो अपनी तुलना अपने भाई-बहनों से मत कीजिए।—गलतियों ६:४ से तुलना कीजिए।

एक भरोसेमन्द मित्र से बात करना, बातों को उचित दृष्टिकोण से देखने में भी आपकी मदद करेगा। एक सच्चा मित्र आपके साथ निष्ठापूर्वक लगा रहेगा जैसे-जैसे आप सुधरने की कोशिश करते हैं। (नीतिवचन १७:१७) दूसरी ओर, एक झूठा मित्र या तो आपको फाड़ देगा अथवा आपको आपके बारे में एक अनुचित उन्‍नत राय बताएगा। अतः अपने मित्रों को ध्यानपूर्वक चुनिए।

यदि आपको सीखने की समस्या है, तो सम्भवतः अन्य युवाओं के मुक़ाबले आपको अधिक डाँट मिलती है। लेकिन इसकी वज़ह से अपने बारे में एक नकारात्मक दृष्टिकोण मत बना लीजिए। अनुशासन को एक धर्मपरायण तरीक़े से देखिए, एक ऐसी चीज़ जिसका बहुत मूल्य है। याद रखिए, आपके माता-पिताओं द्वारा दिया गया अनुशासन इस बात का प्रमाण है कि वे आपसे प्यार करते हैं और आपके लिए सर्वोत्तम चाहते हैं।—नीतिवचन १:८, ९; ३:११, १२; इब्रानियों १२:५-९.

जी नहीं, आपकी सीखने की समस्याओं से आपको निराश नहीं होना है। आप उनके बारे में कुछ कर सकते हैं और एक फलदायी जीवन जी सकते हैं। परन्तु आशा के लिए और भी बड़ा कारण है। परमेश्‍वर ने एक धार्मिकता का नया संसार लाने की प्रतिज्ञा की है जहाँ ज्ञान की प्रचुरता होगी और जहाँ मन और शरीर के हर विकार को सुधारा जाएगा। (यशायाह ११:९; प्रकाशितवाक्य २१:१-४) सो यहोवा परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों के बारे में अधिक सीखने के लिए दृढ़संकल्प रहिए, और उस ज्ञान के सामंजस्य में काम कीजिए।—यूहन्‍ना १७:३.

[फुटनोट]

a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

b कृपया सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के नवम्बर २२, १९९४ के अंक की श्रंखला “कठिन बच्चों को समझना” और मई ८, १९८३ में लेख “क्या आपके बच्चे को सीखने की समस्या है?” देखिए।

c सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के अप्रैल ८, १९८३ के अंक में लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं अपना आत्म-सम्मान कैसे बना सकता हूँ?” देखिए।

[पेज 28 पर तसवीरें]

सीखने में लौलीन रहिए

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