चुनौती का सामना करना
सालों से ए.डी.एच.डी. के लिए कई उपचारों का प्रस्ताव रखा गया है। इनमें से कुछ ने आहार पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन, कुछ अध्ययन सुझाते हैं कि आम तौर पर अतिसक्रियता भोजन में मसालों के कारण नहीं होती और आहार-सम्बन्धी हल अकसर प्रभावरहित होते हैं। ए.डी.एच.डी. का इलाज करने के अन्य तरीक़े हैं औषधोपचार, आचरण संशोधन, और ज्ञानात्मक प्रशिक्षण।a
औषधोपचार। क्योंकि ए.डी.एच.डी. में प्रतीयमानतः मस्तिष्क की गड़बड़ी शामिल है, उचित रासायनिक संतुलन को पुनःस्थापित करने के लिए औषधोपचार अनेक लोगों के लिए सहायक रहा है।b बहरहाल, औषधोपचार सीखने की जगह नहीं लेता। यह बच्चे को केवल ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है, और उसे एक ऐसा आधार प्रदान करता है जिस पर वह नए हुनर सीख सके।
इस तरह ए.डी.एच.डी. से पीड़ित अनेक वयस्कों को औषधोपचार से मदद दी गयी है। लेकिन, सावधानी बरतना ज़रूरी है—युवाओं और वयस्कों के लिए—क्योंकि ए.डी.एच.डी. का उपचार करने के लिए इस्तेमाल किए गए कुछ उद्विपक औषधोपचार की लत लग सकती है।
आचरण संशोधन। एक बच्चे का ए.डी.एच.डी. माता-पिता को अनुशासन देने की बाध्यता से मुक्त नहीं करता। हालाँकि इस सम्बन्ध में बच्चे की ख़ास ज़रूरतें हों, बाइबल माता-पिताओं को सलाह देती है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” (नीतिवचन २२:६) अपनी पुस्तक आपका अतिसक्रिय बच्चा (अंग्रेज़ी) में बार्बरा इंगरसॉल कहती है: “वे माता-पिता जो बस हार मान लेते हैं और अपने अतिसक्रिय बच्चे को ‘बेकाबू छोड़’ देते हैं बच्चे का कोई भला नहीं करते। किसी भी अन्य बच्चे की तरह, अतिसक्रिय बच्चे को एक व्यक्ति के रूप में आदर के साथ सतत अनुशासन की ज़रूरत है। इसका मतलब है स्पष्ट सीमाएँ और उचित प्रतिफल और सज़ाएँ।”
इसीलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि माता-पिता ठोस नियमावली प्रदान करें। इसके अतिरिक्त, दैनिक गतिविधियों में एक सख़्त नित्यक्रम होना चाहिए। माता-पिता बच्चे को यह सारणी बनाने में शायद कुछ छूट देना चाहें, जिसमें गृहकार्य, अध्ययन, नहाने और इत्यादि के लिए समय शामिल हो। फिर उसे क़ायम रखने में संगत रहिए। यह निश्चित कीजिए कि दैनिक नित्यक्रम का पालन किया जाता है। फ़ाय डॆल्टा काप्पान नोट करता है: “चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, स्कूल प्राधिकारियों, और शिक्षकों की बच्चे और बच्चे के माता-पिता के प्रति यह समझाने की एक बाध्यता है कि ए.डी.डी. या ए.डी.एच.डी. के निदान का यह अर्थ नहीं है कि बच्चा डाँट-डपट के बिना कुछ भी कर सकता है, बल्कि इसे एक स्पष्टीकरण होना चाहिए जो शायद पीड़ित बच्चे की ज़रूरी मदद की ओर ले जाए।”
ज्ञानात्मक प्रशिक्षण। इसमें स्वयं अपने प्रति और अपने विकार के प्रति बच्चे की मनोवृत्ति को बदलने में मदद देना शामिल है। “ध्यान-अभाव विकार से पीड़ित लोग ‘बदसूरत, बुद्धू, और अयोग्य’ महसूस करते हैं, चाहे वे ख़ूबसूरत, बुद्धिमान, और अच्छे दिलवाले भी क्यों न हों,” डॉ. रोनल्ड गोल्डबर्ग कहता है। अतः, ए.डी.डी. अथवा ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे को अपनी योग्यता का एक उचित दृष्टिकोण रखने की ज़रूरत है, और उसे यह जानने की ज़रूरत है कि उसकी ध्यान-सम्बन्धी कठिनाइयों से निपटा जा सकता है। यह किशोरावस्था के दौरान ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है। ए.डी.एच.डी. से पीड़ित व्यक्ति जब तक किशोरावस्था में पहुँचता है, उसने समकक्षों, शिक्षकों, सहोदरों, और सम्भवतः माता-पिता से भी बहुत आलोचना का अनुभव किया होगा। अब उसे वास्तविक लक्ष्य रखने और ख़ुद को कठोरता के बजाय उचित रूप से आँकने की ज़रूरत है।
उपचार की उपरोक्त प्रणालियाँ ए.डी.एच.डी. से पीड़ित वयस्क भी अपना सकते हैं। “उम्र के आधार पर संशोधन आवश्यक हैं,” डॉ. गोल्डबर्ग लिखता है, “लेकिन उपचार के आधार—जहाँ उपयुक्त हो वहाँ औषधोपचार, आचरण संशोधन, और ज्ञानात्मक [प्रशिक्षण]—पूरी ज़िन्दगी तक वैध क़दम बने रहते हैं।”
सहारा देना
जॉन, जो ए.डी.एच.डी. से पीड़ित एक किशोर का पिता है, उसी से मिलती-जुलती स्थिति के माता-पिताओं से कहता है: “इस समस्या के बारे में आप जो कुछ सीख सकते हैं उसे सीखिए। जानकार निर्णय कीजिए। सबसे बढ़कर, अपने बच्चे से प्रेम कीजिए, उसे प्रोत्साहित कीजिए। कम आत्मसम्मान एक ख़ूनी है।”
ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे को पर्याप्त सहारा मिले, इसके लिए ज़रूरी है कि दोनों माता-पिता सहयोग करें। डॉ. गॉर्डन सर्फ़ोन्टाइन लिखता है कि ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे को “यह जानने की ज़रूरत है कि घर पर सब उसे चाहते हैं और यह प्यार उस प्यार से आता है जो माता-पिता के बीच मौजूद है।” (तिरछे टाइप हमारे।) दुःख की बात है कि ऐसा प्यार हमेशा दिखाया नहीं जाता। डॉ. सर्फ़ोन्टाइन आगे कहता है: “यह अच्छी तरह स्थापित किया जा चुका है कि उस परिवार में जहाँ [एक ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चा] है, वहाँ सामान्य परिवार की तुलना में वैवाहिक अनबन और फूट की घटना क़रीब-क़रीब ३३ प्रतिशत ज़्यादा होती है।” ऐसी अनबन से बचने के लिए, पिता को ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे को बड़ा करने में एक अहम भूमिका अदा करनी चाहिए। ज़िम्मेदारी पूरी तरह माँ पर नहीं डाली जानी चाहिए।—इफिसियों ६:४; १ पतरस ३:७.
जिगरी दोस्त, हालाँकि परिवार के भाग नहीं होते, बहुत बड़ा सहारा हो सकते हैं। कैसे? “कृपापूर्ण होइए,” पहले उद्धृत जॉन कहता है। “आपकी आँखें जो देख सकती हैं उसके आगे देखिए। बच्चे को जानने की कोशिश कीजिए। माता-पिता के साथ भी बात कीजिए। वे कैसे हैं? रोज़-ब-रोज़ वे किसका सामना करते हैं?”—नीतिवचन १७:१७.
मसीही कलीसिया के सदस्य ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे और उसके माता-पिता के लिए सहारा बनने के लिए काफ़ी कुछ कर सकते हैं। कैसे? अपनी अपेक्षाओं में तर्कसंगत होने के द्वारा। (फिलिप्पियों ४:५) कभी-कभी, ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चा शायद तोड़-फोड़ करनेवाला हो। कठोरतापूर्वक यह कहने के बजाय कि “आप अपने बच्चे को क्यों नहीं सम्भालते?” या “आप उसे डाँटते क्यों नहीं?” एक समझदार संगी-विश्वासी यह समझेगा कि उसके माता-पिता ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे की परवरिश करने की दैनिक माँगों से शायद पहले ही दब चुके हों। बेशक, माता-पिता को वह सब करना चाहिए जो वे बच्चे की तोड़-फोड़ करने के व्यवहार को सीमित करने के लिए कर सकते हैं। जो भी हो, खीजकर बरस पड़ने के बजाय, विश्वास में सम्बन्धित लोगों को “कृपा” दिखानी चाहिए और ‘आशीष देने’ की कोशिश करनी चाहिए। (१ पतरस ३:८, ९) वाक़ई, अकसर यह करुणामय संगी-विश्वासियों के द्वारा होता है कि परमेश्वर “दीनों को शान्ति” देता है।—२ कुरिन्थियों ७:५-७.
बाइबल के विद्यार्थियों को यह एहसास है कि सभी मानवी अपरिपूर्णता, जिनमें सीखने की असमर्थताएँ और ए.डी.एच.डी. भी शामिल हैं, प्रथम पुरुष, आदम से विरासत में मिली हैं। (रोमियों ५:१२) वे यह भी जानते हैं कि सृष्टिकर्ता, यहोवा एक धर्मी नया संसार लाने की अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा जिसमें दुःखी करनेवाली बीमारियाँ नहीं रहेंगी। (यशायाह ३३:२४; प्रकाशितवाक्य २१:१-४) यह आश्वासन उन लोगों के लिए सहारे का विश्वसनीय लंगर है जो ए.डी.एच.डी. जैसे विकारों से पीड़ित हैं। “उम्र, प्रशिक्षण, और अनुभव हमारे बेटे को अपनी बीमारी समझने और उससे निपटने में मदद कर रहे हैं,” जॉन कहता है। “लेकिन वह इस रीति-व्यवस्था में तो कभी-भी पूरी तरह ठीक नहीं होगा। रोज़ हमारी सांत्वना यह है कि नए संसार में, यहोवा हमारे बेटे के विकार को ठीक करेगा और ज़िन्दगी का पूरी तरह मज़ा लूटने में उसे समर्थ करेगा।”
[फुटनोट]
a सजग होइए! किसी विशिष्ट उपचार की सिफ़ारिश नहीं करता। मसीहियों को सावधान होना चाहिए कि जो भी इलाज वे लेते हैं, वह बाइबल सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं है।
b कुछ लोग औषधोपचार के अनचाहे गौण प्रभावों का अनुभव करते हैं, जिसमें चिन्ता और कुछ अन्य भावात्मक समस्याएँ भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उद्विपक औषधोपचार टूरेट सिंड्रोम जैसे पेशी-संकुचन विकार के मरीज़ों में ऐंठन को और भी बदतर कर सकता है। अतः औषधोपचार को किसी डॉक्टर की देखरेख में किया जाना चाहिए।
[पेज 8 पर बक्स]
माता-पिताओं के लिए सावधानी के दो शब्द
लगभग सभी बच्चे कभी-कभी ध्यान नहीं देते, आवेगशील, और अतिसक्रिय होते हैं। इन गुणों की मौजूदगी हमेशा ए.डी.एच.डी. को सूचित नहीं करती है। अपनी पुस्तक बहुत देर हो जाने से पहले (अंग्रेज़ी) में, डॉ. स्टैन्टॉन ई. सैमॆनो कहता है: “मैंने ऐसे बेशुमार मामले देखे हैं जहाँ एक बच्चे को जो फ़लाना काम नहीं करना चाहता, माफ़ कर दिया जाता है क्योंकि समझा जाता है कि वह विकलांगता या उस स्थिति से पीड़ित है जिसमें उसका कोई क़सूर नहीं है।”
डॉ. रिचर्ड ब्रॉमफ़ील्ड भी सावधानी की ज़रूरत देखता है। “निश्चित ही, ए.डी.एच.डी. से पीड़ित कुछ लोग तंत्रिकीय रूप से क्षत हैं और उन्हें औषधोपचार की ज़रूरत है,” वह लिखता है। “लेकिन इस विकार को सभी प्रकार के दुर्व्यवहारों, पाखण्डों, उपेक्षाओं और अन्य सामाजिक बुराइयों का भी दोषी करार दिया जा रहा है जिनका अधिकांश मामलों में ए.डी.एच.डी. से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, आधुनिक जीवन में मूल्यों की कमी—निरुद्श्य हिंसा, नशीली दवाओं का ग़ैर-इस्तेमाल और, कम भयानक तत्व जैसे अनुशासनहीन और अव्यवस्थित घर—किसी भी तंत्रिकीय गड़बड़ी कमी की तुलना में ए.डी.एच.डी. जैसी बेचैनी को प्रवर्तित करने के लिए अधिक उपयुक्त है।”
अतः यह अच्छे कारण से ही है कि डॉ. रॉनल्ड गोल्डबर्ग ए.डी.एच.डी. को एक “सर्व-समावेशी धारणा” के रूप में इस्तेमाल करने के विरुद्ध चेतावनी देता है। उसकी सलाह है कि यह “निश्चित करना कि कोई भी नैदानिक क़सर नहीं छोड़ी गयी है।” ए.डी.एच.डी. से मिलते-जुलते लक्षण शायद अनेक शारीरिक या भावात्मक समस्याओं में से किसी एक को सूचित करें। अतः एक ठीक-ठीक निदान करने में एक अनुभवी डॉक्टर की सहायता आवश्यक है।
चाहे निदान किया भी गया हो, यह अच्छा होगा कि माता-पिता औषधोपचार के फ़ायदों और नुक़सानों पर विचार करें। रिटालिन अनचाहे लक्षणों को निकाल सकता है, लेकिन इसके दुःखद दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि अनिद्रारोग, बढ़ी हुई चिन्ता, और घबराहट। अतः, डॉ. रिचर्ड ब्रॉमफ़ील्ड एक बच्चे का उपचार करवाने में बहुत जल्दबाज़ होने के विरुद्ध चिताता है ताकि बस उसके लक्षणों को निकाला जाए। “कई बच्चों, और अधिकाधिक वयस्कों को अनुचित रूप से रिटालिन दिया जा रहा है,” वह कहता है। “मेरे अनुभव से, लगता है कि रिटालिन का इस्तेमाल काफ़ी हद तक बच्चे के आचरण को बरदाश्त करने की माता-पिताओं और अध्यापकों की क्षमता पर निर्भर करता है। मैं ऐसे बच्चों को जानता हूँ जिन्हें यह उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के बजाय उन्हें शान्त कराने के लिए दिया जाता है।”
अतः माता-पिता को अपने बच्चों पर यह ठप्पा लगाने में जल्दबाज़ नहीं होना चाहिए कि उन्हें ए.डी.एच.डी. या सीखने की कोई असमर्थता है। इसके बजाय, उनको एक कुशल पेशेवर की मदद से प्रमाण को ध्यानपूर्वक आँकना चाहिए। यदि यह निर्धारित किया जाता है कि बच्चे को कोई सीखने का विकार या ए.डी.एच.डी. है, तो माता-पिता को उस समस्या के बारे में अच्छी जानकारी लेने के लिए समय निकालना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों के सर्वोत्तम हित में काम कर सकें।
[पेज 9 पर तसवीर]
ए.डी.एच.डी. से पीड़ित बच्चे को कृपापूर्ण, फिर भी निरन्तर अनुशासन की ज़रूरत है
[पेज 10 पर तसवीर]
जनकीय सराहना से बहुत मदद मिलती है