यहोवा के साक्षियों का यूनान में समर्थन किया गया
सजग होइए! संवाददाता द्वारा
क्रीट के गाज़ी गाँव के आर्थोडॉक्स पादरी ने अपने एक धर्मोपदेश में कहा: “यहोवा के साक्षियों का एक सभागृह हमारे गाँव में ही है। उनसे पीछा छुड़ाने के लिए मुझे आपकी मदद चाहिए।” कुछ दिन बाद, एक शाम को राज्यगृह की खिड़कियाँ चकनाचूर थीं और अज्ञात लोगों ने उस पर गोलियाँ चलायी थीं। इस प्रकार यूनान में फिर से धार्मिक स्वतंत्रता का वाद-विषय उठा।
इन घटनाओं ने चार स्थानीय साक्षियों, कीरीयाकॉस बाक्सेवानीस, वासीलीस हाद्ज़ाकीस, कोस्तास माकरीदाकीस, और तीतोस मानूसाकीस को प्रेरित किया कि शिक्षा और धार्मिक मामलों के मंत्री के सामने धार्मिक सभाएँ आयोजित करने के परमिट के लिए एक याचिका दायर करें। उन्होंने आशा की कि एक परमिट प्राप्त करना आख़िरकार पुलिस सुरक्षा भी दिलाएगा। लेकिन, यह इतनी आसानी से नहीं होना था।
उस पादरी ने इराक्लीयन में, सुरक्षा पुलिस के मुख्यालय को एक पत्र भेजा, जिसमें उसने अपने इलाक़े में यहोवा के साक्षियों के राज्यगृह की ओर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया था और निवेदन किया था कि पाबंदी लगायी जाए और उनकी सभाओं पर प्रतिबंध लगाया जाए। इसके परिणामस्वरूप पुलिस जाँच और पूछताछ हुई। आख़िरकार, आरोपी ने साक्षियों के विरुद्ध फौजदारी कार्यवाही शुरू की, और इस मुक़द्दमे को अदालत के सामने लाया गया।
अक्तूबर ६, १९८७ के दिन, इराक्लीयन की फ़ौजदारी अदालत ने चार प्रतिवादियों को निर्दोष क़रार दिया, और कहा कि “उन पर जिसका इल्ज़ाम लगाया जा रहा है उन्होंने वह काम नहीं किया है, क्योंकि एक धर्म के सदस्य सभाएँ चलाने के लिए आज़ाद हैं . . . , जिसके लिए परमिट की कोई आवश्यकता नहीं।” इसके बावजूद, आरोपी ने दो दिन बाद इस निर्णय के विरुद्ध अपील की, और इस मुक़द्दमे को उच्च न्यायालय के सामने लाया गया। फरवरी १५, १९९० के दिन, इस अदालत ने इन साक्षियों को दो महीने की क़ैद और क़रीब $१०० जुर्माने की सज़ा सुनायी। उसके बाद, इन प्रतिवादियों ने यूनान के सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
मार्च १९, १९९१ के दिन, सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को रद्द कर दिया और दोष-सिद्धि का समर्थन किया। दो से ज़्यादा साल बाद, सितंबर २०, १९९३ के दिन जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की घोषणा की गयी, तो पुलिस ने राज्यगृह सीलबंद कर दिया। पुलिस के एक दस्तावेज़ से जैसे ज़ाहिर होता है, क्रीट का आर्थोडॉक्स चर्च इस कार्यवाही के पीछे था।
यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि कुछ नियम, जिन्हें धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक लगाने के उद्देश्य से १९३८ में बनाया गया था, अब भी यूनान में जारी हैं। ये माँग करते हैं कि अगर एक व्यक्ति उपासना का एक स्थान चलाना चाहता है, तो शिक्षा और धार्मिक मामलों के मंत्रालय से परमिट प्राप्त किया जाना चाहिए और आर्थोडॉक्स चर्च के स्थानीय बिशप से भी। अनेक दशकों तक, इन पुराने नियमों ने यहोवा के साक्षियों के लिए अनेक मुश्किलें खड़ी की हैं।
धर्म की स्वतंत्रता, और मानव अधिकार
यह जानने के बाद कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी दोष-सिद्धि का समर्थन किया था, उन चार साक्षियों ने स्ट्राज़बर्ग, फ्रांस में मानव अधिकारों के यूरोपीय आयोग में अगस्त ७, १९९१ के दिन एक आवेदन-पत्र दिया। आवेदकों ने दावा किया कि उनकी दोष-सिद्धि यूरोपीय समझौते के अनुच्छेद ९ का उल्लंघन है, जो विचार, अंतःकरण, और धर्म की स्वतंत्रता, साथ ही अपना धर्म अकेले ही या समुदाय में दूसरों के साथ खुलेआम या निजी रूप से व्यक्त करने के अधिकार की रक्षा करता है।
मई २५, १९९५ के दिन, आयोग के २५ सदस्यों ने एकमत निर्णय लिया कि इस मामले में यूनान ने यूरोपीय आयोग के अनुच्छेद ९ का उल्लंघन किया है। उनका निर्णय था कि जिस दोष-सिद्धि पर सवाल उठाया गया है वह धार्मिक स्वतंत्रता की भावना से मेल नहीं खाती और एक लोकतंत्रीय समाज में इसकी ज़रूरत नहीं है। इस मुक़द्दमे के स्वीकारयोग्य होने के बारे में इस निर्णय में यह भी कहा गया: “आवेदक . . . एक ऐसे अभियान के सदस्य हैं जिनके धार्मिक रीत-रिवाज़ और कार्य सुविख्यात हैं और अनेक यूरोपीय देशों द्वारा मान्यता-प्राप्त हैं।” आख़िर में, आयोग ने इस मुक़द्दमे को मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत को सौंप दिया।
यहोवा के साक्षियों को रोका नहीं जा सकता
मई २०, १९९६ की तारीख़ को सुनवाई रखी गयी। अदालत में २०० से अधिक लोग मौजूद थे, जिनमें स्थानीय विश्वविद्यालय के विद्यार्थी और प्रॉफ़ॆसर, पत्रकार, और यूनान, जर्मनी, बेल्जियम और फ्रांस के अनेक यहोवा के साक्षी थे।
एथॆन्स विश्वविद्यालय के सेवामुक्त प्रॉफ़ॆसर और साक्षियों के वकील, श्री. फ़ॆदोन वॆग्लरीस ने पैरवी की कि राष्ट्रीय अधिकारियों द्वारा अपनायी गयी कार्यनीति और दिए गए फ़ैसले से न केवल यूरोपीय आयोग बल्कि यूनान के संविधान का भी उल्लंघन हुआ है। “सो यह राष्ट्रीय कानून और उसके अनुप्रयोग का मामला है जिसे अदालत ने हाथ में लिया है।”
यूनान की सरकार का वकील राज्य परिषद् का एक न्यायाधीश था, जिसने तथ्यों पर चर्चा करने के बजाय, यूनान में आर्थोडॉक्स चर्च द्वारा ली गयी स्थिति, सरकार और लोगों के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों, और अन्य धर्मों पर नियंत्रण रखने की तथाकथित ज़रूरत का ज़िक्र किया। इसके अलावा, उसने कहा कि १९६० से, यहोवा के साक्षी अपनी संख्या को बढ़ाने में बहुत ज़्यादा सफल रहे थे। दूसरे शब्दों में, आर्थोडॉक्स एकाधिकार को निश्चय ही चुनौती दी गयी थी!
धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन
सितंबर २६ के दिन फ़ैसला दिया जाता। हर तरफ दुविधा थी, ख़ासकर यहोवा के साक्षियों के लिए। सदन के अध्यक्ष, श्री. रुडोल्फ़ बर्नहार्ट ने फ़ैसला पढ़कर सुनाया: नौ न्यायाधीशों से बनी अदालत ने, एकमत से यह निर्णय किया कि यूनान ने यूरोपीय समझौते के अनुच्छेद ९ का उल्लंघन किया है। इसने ख़र्चे की भरपाई करने के लिए आवेदकों को लगभग $१७,००० की राशि भी प्रदान की। सबसे महत्त्वपूर्ण, इस फ़ैसले में धार्मिक स्वतंत्रता के पक्ष में अनेक उल्लेखनीय तर्क शामिल थे।
अदालत ने कहा कि यूनान का कानून “धार्मिक स्वतंत्रता के प्रयोग में राजनैतिक, प्रशासनिक और गिरजे के अधिकारियों द्वारा व्यापक हस्तक्षेप” की अनुमति देता है। इसने आगे कहा कि परमिट प्राप्त करने के लिए ज़रूरी प्रक्रिया का प्रयोग, सरकार ने “कुछ ग़ैर-रूढ़िवादी अभियानों, ख़ासकर यहोवा के साक्षियों के धार्मिक विश्वासों के पालन पर सख़्त, या वास्तव में निषेधक शर्तों को, थोपने के लिए” प्रयोग किया है। इतने दशकों से आर्थोडॉक्स चर्च द्वारा प्रयोग किए गए हिंसक हथकंडों का इस अंतर्राष्ट्रीय अदालत द्वारा पर्दाफ़ाश किया गया।
अदालत ने ज़ोर दिया कि “समझौते के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी, सरकार द्वारा यह निर्धारित करने के किसी भी अधिकार को वर्जित कर देती है कि धार्मिक विश्वास या ऐसे विश्वासों को व्यक्त करने का माध्यम उचित है या नहीं।” इसने यह भी कहा कि “यहोवा के साक्षी यूनान के कानून में दिए गए ‘ज्ञात धर्म’ की परिभाषा पर ठीक बैठते हैं . . . इसके अलावा सरकार ने इस बात को स्वीकार किया था।”
कोई छोटी-मोटी बात नहीं
अगले कुछ दिनों में, यूनान के अधिकांश प्रमुख समाचार-पत्रों ने इस मुक़द्दमे का प्रसार किया। सितंबर २९, १९९६ के दिन, काथीमॆरीनी के रविवार के संस्करण ने यह टिप्पणी की: “यूनान की सरकार जितना चाहे इसे ‘एक छोटी मोटी बात’ समझकर टरकाना चाहे, स्ट्राज़बर्ग की मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत से इसके ‘मुँह पर जो तमाचा’ लगा है वह एक वास्तविकता है, ऐसी वास्तविकता जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाक़ायदा लेखबद्ध किया गया है। अदालत ने यूनान को मानव अधिकारों पर समझौते के अनुच्छेद ९ की याद दिलायी और उसने एकमत से यूनान के कानून की भर्त्सना की।”
एथॆन्स के दैनिक एथनोस ने सितंबर २८, १९९६ को लिखा, कि यूरोपीय अदालत ने “यूनान की निंदा की, और उसे अपने उन नागरिकों का भुगतान करने के लिए कहा जिनका दुर्भाग्य था कि वे यहोवा के साक्षी थे।”
आवेदकों के एक वकील, श्री. पानोस बीटसाखीस का एक रेडियो कार्यक्रम पर इंटरव्यू लिया गया, उसने कहा: “हम १९९६ साल में जी रहे हैं, २१वीं शताब्दी की चौखट पर, और यह कहने की ज़रूरत नहीं कि धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार के प्रयोग को लेकर प्रशासन की तरफ़ से कोई पक्षपात, सताहट या हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। . . . सरकार के लिए यह एक अच्छा मौक़ा है कि अपनी नीति को फिर से जाँचे और इस बेकार के पक्षपात को ख़त्म करे, जिनका वर्तमान समय और युग में कोई उद्देश्य नहीं है।”
मानूसाकीस और अन्य बनाम यूनान मुक़द्दमे का फ़ैसला यह आशा जगाता है कि यूनान की सरकार अपने कानून को यूरोपीय अदालत के न्याय के अनुरूप करेगी, ताकि यूनान में यहोवा के साक्षी प्रशासन, पुलिस या गिरजे के हस्तक्षेप के बिना धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद उठा सकें। इसके अलावा, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में यह यूनान के न्यायतंत्र के विरुद्ध यूरोपीय अदालत द्वारा दिया गया दूसरा न्यायदण्ड है।a
यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि यहोवा के साक्षी, ऐसे सब मामलों में जो परमेश्वर के वचन के विरुद्ध नहीं हैं, सरकारी “प्रधान अधिकारियों” की आज्ञा मानते हैं। (रोमियों १३:१, ७) वे किसी भी तरीक़े से सार्वजनिक व्यवस्था के लिए ख़तरा नहीं हैं। इसके विपरीत, उनके प्रकाशन और जन सेवकाई सब को प्रोत्साहित करते हैं कि एक विधिपालक नागरिक बनें और एक शांतिपूर्ण जीवन जीएँ। वे सीधे लोग हैं और उनका धर्म सुस्थापित है, और उनके सदस्यों ने अपने पड़ोस के कल्याण के लिए काफ़ी योगदान दिया है। बाइबल के उच्च नैतिक दर्जों को ऊँचा उठाए रखने का उनका दृढ़-निश्चय और पड़ोसी के लिए उनके प्रेम से, जो ख़ासकर उनके बाइबल शैक्षिक कार्य में व्यक्त होता है, जिन २०० से अधिक देशों में वे रहते हैं उनमें एक हितकर प्रभाव हुआ है।
यह आशा की जाती है कि यूरोपीय अदालत द्वारा दिए गए फ़ैसले यूनान में यहोवा के साक्षियों और अन्य सभी धार्मिक अल्प-संख्यकों के लिए ज़्यादा धार्मिक स्वतंत्रता लाने का कार्य करेंगे।
[फुटनोट]
a पहला फ़ैसला, जो १९९३ में दिया गया था, कोक्कीनाकीस बनाम यूनान का मुक़द्दमा था।—सितंबर १, १९९३ की प्रहरीदुर्ग, (अंग्रेज़ी) पृष्ठ २७ देखिए।
[पेज 12 पर तसवीर]
सितंबर २०, १९९३ के दिन पुलिस द्वारा सीलबन्द किया गया पहला राज्यगृह
[पेज 12 पर तसवीर]
मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत, स्ट्राज़बर्ग
[पेज 13 पर तसवीर]
अंतर्ग्रस्त साक्षी: टी. मानूसाकीस, वी. हाद्ज़ाकीस, के. माकरीदाकीस, के. बाक्सेवानीस