मलेरिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में फिर से प्रारंभिक हल की ओर आना
दुनिया की निगाह गृह युद्धों, अपराध, बेरोज़गारी, और अन्य संकटों पर जमी हुई है, तो मलेरिया के कारण हुई मौते बमुश्किल ही मुख्य समाचार का विषय बनती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि फिर भी संसार की तक़रीबन आधी आबादी पर मलेरिया का ख़तरा मंडराता है, और कुछ ३० करोड़ से ५० करोड़ लोग हर साल इससे संक्रमित होकर बीमार पड़ते हैं, जिससे मलेरिया “सभी उष्णकटिबंधी बीमारियों में सबसे व्यापक और सबसे घातक” बीमारी बन गयी है। कितनी घातक?
हर २० सेकंड में कोई-न-कोई मलेरिया की वज़ह से मरता है। हर साल इसके शिकार होकर मरनेवालों की संख्या १५ लाख से भी ज़्यादा है। यह संख्या अफ्रीकी राष्ट्र के बॉट्स्वाना की पूरी आबादी के बराबर है। मलेरिया की वज़ह से हुई दस में से नौ मौतें उष्णकटिबंधी अफ्रीका में होती हैं, जहाँ अधिकांश शिकार छोटे बच्चे होते हैं। अमरीका के देशों में, डब्ल्यूएचओ ने अमॆज़ॉन इलाक़े में मलेरिया की सबसे ज़्यादा घटना को दर्ज़ किया। वन-अपरोपण और अन्य पारिस्थितिक परिवर्तनों के कारण दुनिया के उस भाग में मलेरिया के शिकारों की संख्या बढ़ी है। ब्राज़िल के अमॆज़ॉन के कुछ समुदायों में, समस्या अब इतनी गंभीर हो गयी है कि हर १,००० निवासियों में से ५०० से ज़्यादा निवासी संक्रमित हैं।
चाहे यह अफ्रीका, अमरीकी देश, एशिया हो या कहीं और, मलेरिया मुख्यतः लोगों के सबसे ग़रीब समूहों पर प्रहार करता है। डब्ल्यूएचओ नोट करता है कि “स्वास्थ्य सेवाएँ [इन लोगों की] पहुँच से बाहर हैं, [ये] बमुश्किल ही निजी सुरक्षा करवा सकते हैं और [ये] मलेरिया के लिए संगठित नियंत्रण कार्यों से सबसे दूर हैं।” फिर भी, इन ग़रीबों की दुर्दशा आशाहीन नहीं है। उष्णकटिबंधी-बीमारी शोध पर एक समाचार पत्रिका, टी.डी.आर. समाचार (अंग्रेज़ी) कहती है, हाल के वर्षों में मलेरिया से हुई मृत्यु को रोकने के सबसे आशाजनक तरीक़ों में से एक तरीक़ा अब ज़्यादा उपलब्ध हो गया है। उस जीवनरक्षक का नाम? कीटनाशक-व्याप्त मच्छड़दानियाँ।
शुद्ध लाभ
हालाँकि मच्छड़दानियों का प्रयोग करना प्रारंभिक हल है, डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका दफ़्तर के निर्देशक, डॉ. इब्राहीम सामबा ने पानोस संस्था की समाचार पत्रिका, पानोस विशेषताएँ (अंग्रेज़ी) को बताया कि मलेरिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में, मच्छड़दानियों की प्रभावकारिता को परखने के लिए की गयी परीक्षाओं ने “बहुत ही उत्तेजक परिणाम” दिखाए हैं। मिसाल के तौर पर केन्या में, जैव-विभाजीय कीटनाशकों से व्याप्त मच्छड़दानियों के प्रयोग ने, पाँच वर्ष से नीचे की आयु के बच्चों में न केवल मलेरिया से हुई मौतों को बल्कि कुल मृत्यु की संख्या को एक तिहाई तक कम कर दिया है। लोगों की जान बचाने के अलावा, “मच्छड़दानियाँ स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़े बोझ को काफ़ी कम कर सकती हैं” क्योंकि बहुत ही कम मरीज़ों को मलेरिया के लिए अस्पताल के इलाज की ज़रूरत होगी।
लेकिन एक समस्या का अब भी हल किया जाना बाक़ी है: मच्छड़दानियों के लिए कौन पैसा भरेगा? जब एक अफ्रीकी देश के लोगों से दान करने के लिए कहा गया तो अधिकांश लोग मुकर गए। और इसमें कोई ताज्जुब नहीं, क्योंकि ऐसे देशों में रहनेवाले लोग जो स्वास्थ्य देखरेख में हर साल प्रति व्यक्ति $५ (अमरीकी) से भी कम ख़र्च करते हैं, तो उनके लिए एक मच्छड़दानी भी—कीटनाशकवाली या इसके बिना—विलास वस्तु है। लेकिन, चूँकि मलेरिया के मरीज़ों का इलाज करने पर किए गए ख़र्च से रोकथाम के इस तरीक़े से सरकार को कम ख़र्च पड़ेगा, यू.एन. के विशेषज्ञ नोट करते हैं कि “यह व्याप्त मच्छड़दानियों को वितरित करने और इनका ख़र्च उठाने के लिए कम सरकारी निधियों का बहुत ही लागत-प्रभावकारी प्रयोग होगा।” वाक़ई, सरकारों के लिए मच्छड़दानियाँ उपलब्ध कराना निधि बचाने का एक तरीक़ा हो सकता है। लेकिन, उनके लाखों ग़रीब नागरिकों के लिए यह उससे कहीं बढ़कर है—यह उनके जीवन बचाने का एक ज़रिया है।
[पेज 31 पर चित्र का श्रेय]
CDC, Atlanta, Ga.