युवा लोग पूछते हैं. . . .
मेरे भाई की तरफ़ ही हमेशा क्यों ध्यान दिया जाता है?
“मुझे तब दिक़्क़त होती है जब मेरे भाई या बहनें शरारत करते हैं और फिर भी उनकी तरफ़ बहुत ध्यान दिया जाता है—चाहे वो ग़लत हो या सही। मगर क्योंकि मैं कहना मानती हूँ इसलिए मुझ पर ध्यान नहीं दिया जाता।”—१८ साल की कविता।a
“मुझसे ज़्यादा मेरे भाई-बहनों पर ध्यान दिया जाता है और उनके साथ बेहतर सलूक किया जाता है। कभी अगर मुझ पर ध्यान दिया भी जाता है तो वह सिर्फ़ सुधारने के लिए ही होता है। अगर उन्हें भी मेरी तरह सलाह दी जाती तो मुझे अच्छा लगता।—१५ साल की लता।
“मुझे ऐसा लगता है कि मेरे बड़े भाई-बहनों को ज़्यादा छूट मिलती है और उन पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है।”—१३ साल का विनोद।
पैदाइश से ही हमें अपने माँ-बाप के ध्यान की ज़रूरत होती है। अगर आप यह महसूस करते हैं कि आप पर वह ध्यान नहीं दिया जा रहा है जो दिया जाना चाहिए, तो ज़ाहिर है कि आपके दिल को चोट पहुँचती है और आपको गुस्सा आता है। ख़ासकर अगर ऐसा लगता है कि आपके भाई-बहनों पर—चाहे वे बड़े हों या छोटे, तमीज़दार हों या बदतमीज़—हमेशा ध्यान दिया जाता है। तब आप शायद दाऊद की तरह महसूस करें जब उसने लिखा: “मृतक के समान मैं लोगों के मन से भुला दिया गया हूँ; मैं टूटे बर्तन के समान हूं।”—भजन ३१:१२, NHT.
जब आप देखते हैं कि जो ध्यान आप पर दिया जाना चाहिए वह आपके भाई-बहनों पर दिया जा रहा है, तो आपके लिए बहुत दर्दनाक हो सकता है। मगर क्या इसका यह मतलब है कि आपको प्यार नहीं किया जाता? बिलकुल नहीं। कभी-कभी कुछ बच्चों पर ख़ास ध्यान इसलिए दिया जाता है क्योंकि उनके पास कुछ ख़ास क़ाबिलीयत होती है या वे बहुत मिलनसार होते हैं। ११ साल का मोहन कहता है: “जबकि मेरा छोटा भाई कुमार तीसरी क्लास में है फिर भी वह पाँचवी क्लास के बच्चों के बैंड में है। वह खेलकूद और गणित में भी बहुत अच्छा है। दरअसल, वह स्कूल में सभी सब्जेक्टस् में अव्वल आता है। कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि लोग मुझसे ज़्यादा उसे पसंद करते हैं। मगर मुझे जलन नहीं होती। पर शायद कभी-कभी होती है।”
ऐसे भी बच्चे हैं जिन्हें हमेशा अपने माँ-बाप का पूरा-पूरा वक़्त मिलता है, सिर्फ़ इसलिए कि या तो वे घर में सबसे बड़े हैं या सबसे छोटे। जवान यूसुफ के बारे में बाइबल कहती है: “इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था।” (उत्पत्ति ३७:३, ४) दूसरी तरफ़, १८ साल के टॉड ने महसूस किया कि उसका भाई इसलिए लाडला था क्योंकि वह सबसे बड़ा था। वह कहता है: “एक बार हमें एक स्कूल प्रॉजॆक्ट के लिए अपने बचपन की पसंदीदा तसवीर लाने के लिए कहा गया। मुझे अपनी इक्का-दुक्का तसवीरें ही मिलीं जबकि मैंने देखा कि मेरे बड़े भाई की बहुत सारी तसवीरें थीं। मैंने सोचा, आख़िर ऐसा क्यों।”
क्योंकि आपके भाई-बहनों को कुछ समस्याएँ हैं—शायद ऐसी समस्याएँ जिनके बारे में आप नहीं जानते—इसलिए अकसर उन पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है। कमल, जो अब २२ साल की है, कहती है “जब मैं १६ साल की थी, मेरा बड़ा भाई मुश्किलाहटों से गुज़र रहा था। वह दृढ़ नहीं था कि वह यहोवा कि सेवा करे या नहीं और मेरे माँ-बाप इसीलिए पूरा ध्यान उसी पर देते थे। उस वक़्त मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है। मैं सोचती थी कि वे मेरी परवाह बिलकुल नहीं करते हैं। इसलिए मैं बहुत दुःखी हो जाती थी और अकेला महसूस करती थी—बहुत गुस्सा भी आता था।”
वे क्यों तरफ़दारी करते हैं
बहरहाल माँ-बाप कभी-कभी तरफ़दारी करने के क़ुसूरवार होते हैं। एक माँ क़बूल करती है: “मैं जानती हूँ कि मेरा बेटा पॉल इस बात से दुखी है कि हमें अपनी बेटी पर बहुत नाज़ है। उसने हमसे सीधा कहा, ‘जब भी लिज़ कुछ कहती है तो हमेशा तुम और डैडी एक दूसरे की तरफ़ देखते हो।’ पहले हम समझ नहीं पाते थे कि वह क्या कहना चाहता है। मगर बाद में हमें एहसास हुआ कि हम वाक़ई हमेशा गर्व से एक दूसरे को देखते थे और मानो कह रहे हों ‘है न हमारी बेटी लाजवाब’। क्योंकि उसने हमें आगाह कर दिया है, अब हम कोशिश करते हैं कि हम वैसा कभी दोबारा ना करें।”
मगर माँ-बाप तरफ़दारी करते ही क्यों हैं? शायद एक वज़ह उनकी अपनी परवरिश हो सकती है। मसलन, अगर आपकी माँ सबसे छोटी लड़की के रूप में पली-बड़ी थी तो शायद उसे अपने सबसे छोटे बच्चे के साथ ज़्यादा लगाव हो। अनजाने में वो शायद उसकी तरफ़दारी करे। या ऐसा हो सकता है कि एक माता या पिता को किसी बच्चे से लगाव इसलिए है क्योंकि उनका स्वभाव या रुचि उनसे मिलती-जुलती है। रिबका और इसहाक के जुड़वा बच्चे याकूब और एसाव के बारे में बाइबल जो कहती है उस पर ग़ौर कीजिए: “फिर वे लड़के बढ़ने लगे और एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य था, और तम्बुओं में रहा करता था। और इसहाक तो एसाव के अहेर का मांस खाया करता था, इसलिये वह उस से प्रीति रखता था: पर रिबका याकूब से प्रीति रखती थी।”—उत्पत्ति २५:२७, २८.
अगर आपके माँ-बाप आपके भाई या बहन की तरफ़दारी करते हैं तो आपको क्या करना चाहिए?b शायद इसके बारे में आप शांति से और बिना इलज़ाम लगाए उनसे बात कर सकते हैं। (नीतिवचन १५:२२) अदब से उनकी सुनने से आप शायद उनके नज़रिए से बात को समझ सकें। ऐसा करना शायद आपकी कुंठा को शांत करने में मददगार हो। (नीतिवचन १९:११) एक जवान लड़की कहती है: “मुझे एक बात बहुत परेशान कर रही थी कि मम्मी को मुझसे ज़्यादा मेरे भाई से लगाव था। जब मैंने उनसे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरे भाई से उनका इतना लगाव इसलिए है क्योंकि वह मेरे पापा पर गया है। लेकिन मैं क्योंकि मम्मी पर गयी हूँ इसलिए पापा को मुझसे बहुत लगाव था। लेकिन क्योंकि हम दोनों एक जैसी हैं हमारी नहीं पटती। क्योंकि मेरा भाई और पापा एक जैसे हैं वे एक दूसरे से खिसियाते हैं। इस तरह जब उन्होंने मुझे समझाया तो मैं ख़ुश तो नहीं हुई मगर इस बात को किसी तरह मान सकी।”
असमान व्यवहार—क्या नाइंसाफ़ी है?
आख़िर क्यों माँ-बाप सब बच्चों से समान व्यवहार नहीं कर सकते? बीना जो कि अब १८ साल की है कहती है: “जब मैं क़रीब १३ साल की थी तो मुझे लगा कि मुझसे और मेरे भाई से एक समान व्यवहार किया जाना चाहिए—बिलकुल एक समान। मगर मैं ही थी जिसको हमेशा घुड़कियाँ खानी पड़ती थी जबकि वह हमेशा बच जाता था। और पापा उसके साथ ज़्यादा टाइम बिताते थे। ये मुझे एकदम नाइंसाफ़ी लगती थी।”
मगर ये ज़रूरी नहीं कि असमान व्यवहार का मतलब नाइंसाफ़ी हो। अपने प्रेरितों के साथ यीशु मसीह के व्यवहार पर ज़रा ग़ौर कीजिए। इसमें कोई शक नहीं कि उसने बारहों को बहुत प्यार किया। लेकिन फिर भी सिर्फ़ तीन को ही कुछ ख़ास बातों का गवाह बनाने के लिए अपने साथ लेकर गया। इनमें से कुछ घटनाएँ थीं, उसका रूपांतरण और याईर की बेटी को जी उठाना। (मत्ती १७:१; मरकुस ५:३७) इसके अलावा, प्रेरित यूहन्ना से यीशु की एक ख़ास नज़दीकी दोस्ती थी। (यूहन्ना १३:२३; १९:२६; २०:२; २१:७, २०) क्या यह असमान व्यवहार था? जी हाँ, बिलकुल। क्या यह नाइंसाफ़ी थी? हरगिज़ नहीं। जबकि यीशु को कुछ प्रेरितों से ख़ास लगाव था, फिर भी उसने कभी बाक़ी प्रेरितों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया।—मरकुस ६:३१-३४.
इसी तरह, आपके भाई-बहन को भी शायद उनके हुनर, व्यक्तित्व या ज़रूरतों की वज़ह से ख़ास ध्यान मिल रहा हो। तो स्वाभाविक है कि इससे दर्द होगा। मगर सवाल ये उठता है कि क्या आपकी ज़रूरतों को वाक़ई नज़रअंदाज़ किया जा रहा है? जब आपको अपने माँ-बाप की सलाह, मदद या सहारे की ज़रूरत होती है तो क्या वे इसे आपको देते हैं? अगर हाँ, तो क्या आप वाक़ई कह सकते हैं कि आप नाइंसाफ़ी का शिकार हैं? बाइबल हमें प्रोत्साहित करती है कि हम एक दूसरों के लिए “जो कुछ अवश्य हो” उसके मुताबिक़ व्यवहार करें। (रोमियों १२:१३) क्योंकि आप और आपके भाई-बहनों की अलग-अलग ज़रूरतें हैं, आपके माँ-बाप के लिए हमेशा एकसमान व्यवहार करना मुमकिन नहीं है।
बीना को, जिसका हवाला पहले दिया गया था, महसूस हुआ कि एकसमान व्यवहार हमेशा इंसाफ़ी नहीं है और इंसाफ़ी व्यवहार हमेशा एकसमान नहीं होता। वह कहती है: “मैं समझी कि मैं और मेरा भाई दो अलग तरह के इंसान हैं और इसलिए ज़रूरी था कि हमसे अलग तरीक़े से व्यवहार किया जाए। अब मैं जब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मुझे यक़ीन नहीं होता है कि जब मैं छोटी थी तब इस बात को समझ नहीं सकी। शायद यह इसलिए कि उस उम्र में आप जो नज़रिया रखते हैं वह अलग होता है।”
समझ सीखना
जी हाँ, आप किस तरह अपनी परिस्थिति के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं वह ज़्यादातर “आप जो नज़रिया रखते हैं” उस पर निर्भर है। रंगीन चश्मे की तरह आप की भावनाएँ आपके नज़रिए पर रंग चढ़ा सकती हैं। और साथ ही माँ-बाप के ध्यान और मंज़ूरी की भावनात्मक ज़रूरत तेज़ हो सकती है। शोधकर्ता स्टीवन बैंक और माइकल कान कहते हैं: “अगर माँ-बाप अलग-अलग बच्चों से एकसमान व्यवहार करने का नामुमकिन-सा सपना पूरा कर लें तोभी हरेक बच्चा महसूस करेगा कि माँ-बाप दूसरे बच्चे की तरफ़दारी कर रहे हैं।”
मसलन, उन तीन जवानों पर फिर से ग़ौर कीजिए जिनका हवाला शुरू में दिया गया था। उनकी हालत बहुत मनहूस लगती है मगर एक और बात है: वो तीनों भाई-बहन हैं! जी हाँ, हरेक यह सोच रहा है कि उनको नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और दूसरों को उनसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है! तो इसका मतलब है कि अकसर हमारा नज़रिया धुँधला होता है। “जिसकी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरुष ठहरता है,” नीतिवचन १७:२७ कहता है। समझवाला होने का मतलब है कि हम बातों को जज़्बात में नहीं बल्कि असलियत में देखते हैं। समझ आपको यह महसूस करने में मदद देगी कि हालाँकि आपके माँ-बाप आप सब के साथ एकसमान व्यवहार न करें फिर भी अपने दिल से वे आप सब की बेहतरी ही चाहते हैं! इस बात का एहसास आपको गुस्सा न करने और गिला न रखने के लिए मदद करेगा।
मगर तब क्या अगर वाजिब ही ऐसा लगता है कि आपको वह ध्यान नहीं मिल रहा है जिसके आप हक़दार हैं? तब आप क्या कर सकते हैं? इस बात पर सजग होइए! के एक आनेवाले अंक में ग़ौर किया जाएगा।
[फुटनोट]
a कुछ नाम बदल दिये गये हैं।
b एक आनेवाला अंक तरफ़दारी से कैसे निपटें इस विषय पर और ज़्यादा बताएगा।
[पेज 26 पर तसवीर]
असमान व्यवहार नाइंसाफ़ी लग सकता है