वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g98 1/8 पेज 4-9
  • जीत और हार

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • जीत और हार
  • सजग होइए!–1998
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • आख़िरकार, एक इलाज!
  • घातक वापसी
  • यह घातक वापसी क्यों?
  • एच.आई.वी. और टी.बी.—दोहरा दुःख
  • मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टी.बी.
  • रोकथाम और इलाज
  • टीबी का मुकाबला करने के लिए नया हथियार
    सजग होइए!–1999
  • जानलेवा दोस्ती
    सजग होइए!–1998
  • मृत्युसंख्या जो युद्ध के टक्कर की है
    सजग होइए!–1998
  • क्षयरोग पुनःआक्रमण करता है!
    सजग होइए!–1996
और देखिए
सजग होइए!–1998
g98 1/8 पेज 4-9

जीत और हार

“पिछले ३० सालों के दौरान तपेदिक की कहानी जीत और हार की कहानी रही है—उन वैज्ञानिकों की जीत जिन्होंने इस बीमारी को नियंत्रण में करने और अंततः दूर करने का तरीक़ा निकाला, और हार इस बात की कि हम उनकी खोजों का फ़ायदा उठाने से बड़े पैमाने पर चूक गये।”—जे. आर. बिगनल, १९८२.

तपेदिक (टी.बी.) लंबे अरसे से जान ले रही है। यूरोपवासियों के दक्षिण अमरीका में आने से कहीं पहले, इसने परू की राजा-प्रजा को पीड़ित किया था। इसने उस समय मिस्रियों पर हमला किया जब फ़िरौन वैभव में राज करते थे। पुराने समय के लेख दिखाते हैं कि टी.बी. ने प्राचीन बाबुल, यूनान, और चीन में, क्या बड़े क्या छोटे, किसी को नहीं छोड़ा।

अठारहवीं सदी से बीसवीं सदी की शुरूआत तक, टी.बी. पाश्‍चात्य देशों में मृत्यु का मुख्य कारण थी। अंततः, १८८२ में, जर्मन डॉक्टर रोबर्ट कॉक ने औपचारिक रूप से घोषित किया कि उसने इस बीमारी के ज़िम्मेदार जीवाणु को खोज निकाला है। तेरह साल बाद विल्हॆल्म रॆंटजन ने X किरणों की खोज की, जिससे जीवित मनुष्यों के फेफड़ों में गुलिकीय घावों का पता लगाना संभव हुआ। उसके बाद, १९२१ में, फ्राँसीसी वैज्ञानिकों ने टी.बी. की एक वैक्सीन बनायी। जिन वैज्ञानिकों ने इसे बनाया था उन्हीं के नाम पर, बी.सी.जी. (बैसिलस कॉलमॆट-गेराँ) इस बीमारी की एकमात्र उपलब्ध वैक्सीन है। लेकिन, टी.बी. ने बड़ी संख्या में जान लेना जारी रखा।

आख़िरकार, एक इलाज!

चिकित्सक टी.बी. के मरीज़ों को आरोग्यशालाओं में भेज देते थे। ये अस्पताल आम तौर पर पहाड़ों पर बने होते थे, जहाँ मरीज़ आराम कर सकता था और ताज़ी हवा में साँस ले सकता था। फिर, १९४४ में, अमरीका में डॉक्टरों ने स्ट्रॆप्टोमाइसिन की खोज की। यह पहली ऐन्टीबायोटिक है जो टी.बी. के लिए प्रभावकारी है। जल्द ही दूसरी ऐन्टी-टी.बी. दवाएँ आने लगीं। अंततः, टी.बी. के मरीज़ों का इलाज किया जा सकता था, और वह भी उन्हीं के अपने घरों में।

जैसे-जैसे संक्रमण दरें घटीं, लगा कि भविष्य उज्ज्वल है। आरोग्यशालाएँ बंद कर दी गयीं, और टी.बी. शोध के लिए पैसा मिलना रुक गया। रोकथाम कार्यक्रम रोक दिये गये, और वैज्ञानिकों तथा डॉक्टरों ने नयी चिकित्सीय चुनौतियों की तलाश की।

जबकि टी.बी. अभी भी विकासशील देशों में बड़ी संख्या में जानें ले रही थी, फिर भी स्थिति निश्‍चित ही सुधर जाती। टी.बी. अतीत बन चुकी थी। लोगों ने तो यही सोचा था, लेकिन वे ग़लत थे।

घातक वापसी

दशक १९८० के मध्य में, टी.बी. ने भयानक और घातक वापसी शुरू की। फिर, अप्रैल १९९३ में, विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने टी.बी. को “एक विश्‍वव्यापी संकटस्थिति” घोषित कर दिया, और आगे कहा कि “यदि इसके फैलाव को रोकने के लिए तात्कालिक क़दम न उठाए जाएँ तो यह बीमारी अगले दशक में तीन करोड़ से अधिक जानें ले लेगी।” यह WHO के इतिहास में अपने क़िस्म की पहली घोषणा थी।

तब से कोई “तात्कालिक क़दम” इस बीमारी के फैलाव को नहीं रोक पाया है। असल में, स्थिति बदतर हो गयी है। हाल ही में, WHO ने रिपोर्ट किया कि १९९५ के दौरान टी.बी. से इतने लोग मरे जितने कि इतिहास के किसी दूसरे साल में नहीं मरे थे। WHO ने यह चेतावनी भी दी कि अगले ५० सालों में ५० करोड़ तक लोग टी.बी. से ग्रस्त हो सकते हैं। लोगों की बढ़ती संख्या, अकसर-लाइलाज, मल्टीड्रग-रेसिस्टॆंट टी.बी. का शिकार हो सकती है।

यह घातक वापसी क्यों?

एक कारण है कि पिछले २० सालों के दौरान, संसार के अनेक भागों में टी.बी.-नियंत्रण कार्यक्रम धीमे पड़ गये हैं या रुक गये हैं। इसके कारण बीमारों का पता लगाने और इलाज करने में देरी हुई है। क्रमशः, इसके कारण और अधिक मौतें हुई हैं और बीमारी फैली है।

टी.बी. की वापसी का एक और कारण है ग़रीबों और कुपोषित लोगों की बढ़ती संख्या, जो जनसंकुल शहरों में, ख़ासकर विकासशील देशों के महानगरों में रहते हैं। जबकि टी.बी. ग़रीब लोगों तक ही सीमित नहीं है—टी.बी. किसी को भी लग सकती है—गंदी और संकुल जगह में रहना, एक व्यक्‍ति से दूसरे व्यक्‍ति का संक्रमित होना ज़्यादा आसान बना देता है। यह इसकी संभावना भी बढ़ा देता है कि लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र इतना कमज़ोर होगा कि वह बीमारी का विरोध नहीं कर पाएगा।

एच.आई.वी. और टी.बी.—दोहरा दुःख

एक प्रमुख समस्या है कि टी.बी. ने एड्‌स विषाणु, एच.आई.वी. के साथ घातक गठबंधन कर लिया है। वर्ष १९९५ के दौरान एड्‌स-संबंधित कारणों से मरे अनुमानित दस लाख लोगों में से, संभवतः एक तिहाई लोग टी.बी. से मरे। ऐसा इसलिए है कि एच.आई.वी. टी.बी. का विरोध करने की शरीर की क्षमता को कमज़ोर कर देता है।

अधिकतर लोगों में टी.बी. संक्रमण इस हद तक नहीं बढ़ता कि उन्हें बीमार कर दे। क्यों? क्योंकि टी.बी. जीवाणु मैक्रोफ़ेज नामक कोशिकाओं में क़ैद होते हैं। वहाँ, वे व्यक्‍ति के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा, ख़ासकर टी लिम्फ़ोसाइट, या टी कोशिकाओं द्वारा क़ैद रहते हैं।

टी.बी. जीवाणु टोकरियों में ढक्कनों से कसकर बंद रखे गये नागों जैसे होते हैं। टोकरियाँ मैक्रोफ़ेज होती हैं, और ढक्कन टी कोशिकाएँ। लेकिन, जब एड्‌स विषाणु प्रवेश करता है तब यह टोकरियों पर से ढक्कन उतार फेंकता है। ऐसा होने पर, जीवाणु भाग निकलते हैं और शरीर के किसी भी अंग को हानि पहुँचाने के लिए मुक्‍त होते हैं।

इसलिए, एड्‌स के रोगियों को सक्रिय टी.बी. होने का उनसे कहीं ज़्यादा ख़तरा रहता है जिनका प्रतिरक्षा तंत्र स्वस्थ है। “जिन लोगों में एच.आई.वी. है वे बहुत ही आसानी से इसके शिकार हो जाते हैं,” स्कॉटलॆंड के एक टी.बी. विशेषज्ञ ने कहा। “लंदन की एक क्लीनिक में दो एच.आई.वी. मरीज़ों को गलियारे में बैठे-बैठे यह बीमारी लग गयी जब वहाँ से एक टी.बी. के मरीज़ को ट्रॉली में ले जाया जा रहा था।”

अतः, एड्‌स ने टी.बी. महामारी को बढ़ाने में योग दिया है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष २००० तक, एड्‌स महामारी के कारण टी.बी. से १४ लाख लोग पीड़ित होंगे जो अन्यथा पीड़ित नहीं होते। टी.बी. की बढ़ोतरी में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व यह है कि एड्‌स के मरीज़ न सिर्फ़ ख़ुद आसानी से टी.बी. की बीमारी पकड़ लेते हैं बल्कि वे दूसरे लोगों को भी टी.बी. लगा सकते हैं, जिनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें एड्‌स नहीं है।

मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टी.बी.

एक अंतिम बात जो टी.बी. के विरुद्ध लड़ाई को ज़्यादा कठिन बना रही है वह यह है कि टी.बी. के ड्रग-रॆसिस्टॆंट जीवाणु आ गये हैं। ये जीवाणु फिर से इस बीमारी को लाइलाज बना सकते हैं, जैसे यह ऐन्टीबायोटिक आने से पहले के समय में थी।

विडंबना है कि ऐन्टी-टी.बी. दवाओं को ठीक से न लेना ही मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टी.बी. का मुख्य कारण है। टी.बी. का प्रभावकारी इलाज कम-से-कम छः महीने तक चलता है और इसके लिए ज़रूरी होता है कि मरीज़ बिना नाग़ा चार दवाएँ ले। मरीज़ को एक दिन में एक दर्जन तक गोलियाँ खानी पड़ सकती हैं। यदि मरीज़ नियमित रूप से दवाएँ नहीं लेते या इलाज पूरा नहीं करते, तो टी.बी. के ऐसे जीवाणु विकसित हो सकते हैं जिनको मारना कठिन या तो असंभव होता है। कुछ जीवाणुओं पर टी.बी. की अनेक आम दवाओं, सात दवाओं तक का असर नहीं होता।

मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टी.बी. के मरीज़ों का इलाज करना कठिन ही नहीं, महँगा भी है। दूसरे टी.बी. मरीज़ों का इलाज करने की तुलना में इसका ख़र्च लगभग १०० गुना अधिक हो सकता है। उदाहरण के लिए, अमरीका में इसके एक मरीज़ के इलाज का ख़र्च २,५०,००० डॉलर से अधिक हो सकता है!

WHO का अनुमान है कि संसार भर में क़रीब १० करोड़ लोग टी.बी. के ड्रग-रॆसिस्टॆंट जीवाणुओं से संक्रमित हैं, जिनमें से कुछ का इलाज किसी भी उपलब्ध ऐन्टी-टी.बी. दवा से नहीं हो सकता। ये घातक जीवाणु आम जीवाणुओं के जितने ही संक्रामक हैं।

रोकथाम और इलाज

इस विश्‍वव्यापी संकटस्थिति का सामना करने के लिए क्या किया जा रहा है? इस बीमारी पर नियंत्रण करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है कि आरंभिक अवस्था में ही संक्रमित लोगों को पहचान लिया जाए और उनका इलाज किया जाए। यह न सिर्फ़ उनकी मदद करता है जो पहले ही बीमार हैं बल्कि बीमारी को दूसरों तक फैलने से भी रोकता है।

जब टी.बी. का इलाज नहीं किया जाता, तब यह अपने आधे से अधिक शिकारों की जान ले लेती है। लेकिन, ठीक से इलाज किये जाने पर, टी.बी. लगभग हर मामले में दूर की जा सकती है बशर्ते कि यह ऐसे जीवाणु से न हुई हो जिस पर टी.बी. की कई दवाओं का असर नहीं होता।

जैसा कि हमने देखा है, प्रभावकारी इलाज के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ पूरी तरह इलाज करवाएँ। अकसर वे ऐसा नहीं करते हैं। क्यों नहीं? क्योंकि खाँसी, बुख़ार, और दूसरे लक्षण आम तौर पर इलाज शुरू करने के कुछ ही हफ़्तों में चले जाते हैं। सो, अनेक मरीज़ यह सोच बैठते हैं कि वे ठीक हो गये हैं और दवाएँ लेना बंद कर देते हैं।

इस समस्या का सामना करने के लिए, WHO एक कार्यक्रम को बढ़ावा देता है जिसे DOTS कहा जाता है। यह “डाइरॆक्टली ऑबसर्व्ड ट्रीटमॆंट, शॉर्ट-कोर्स” का संक्षिप्त नाम है। जैसे नाम से ही स्पष्ट है, स्वास्थ्य कर्मी यह निश्‍चित करने के लिए निगरानी रखते हैं कि उनके मरीज़ इलाज के कम-से-कम पहले दो महीनों तक दवाओं की हर ख़ुराक लें। फिर भी, ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि टी.बी. से पीड़ित अनेक लोग समाज की दहलीज़ पर रहते हैं। क्योंकि उनके जीवन प्रायः अशांति और समस्याओं से भरे होते हैं—कुछ तो बेघर भी होते हैं—इसलिए नियमित रूप से यह देखना कि वे अपनी दवा ले रहे हैं, एक बड़ी चुनौती हो सकता है।

सो मानवजाति के इस प्रकोप को अंततः दूर करने के क्या कोई आसार हैं?

[पेज 5 पर बक्स]

टी.बी. के बारे में आवश्‍यक जानकारी

विवरण: टी.बी. एक ऐसी बीमारी है जो आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करती है और उन्हें सड़ा देती है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में, ख़ासकर दिमाग़, गुर्दों, और हड्डियों में फैल सकती है।

लक्षण: फेफड़ों की टी.बी. से खाँसी आना, वज़न घटना और भूख न लगना, रात को बहुत पसीना आना, कमज़ोरी, साँस फूलना, और छाती में दर्द हो सकता है।

रोग-निदान कैसे होता है: गुलिकीय चर्म जाँच दिखा सकती है कि व्यक्‍ति जीवाणु के संपर्क में आया है या नहीं। छाती के एक्सरे से पता लग सकता है कि फेफड़ों को कितना नुक़सान पहुँचा है, जो एक सक्रिय टी.बी. संक्रमण का संकेत दे सकता है। मरीज़ के थूक की प्रयोगशाला जाँच टी.बी. जीवाणु का पता लगाने का सबसे विश्‍वसनीय तरीक़ा है।

किसे जाँच करानी चाहिए: जिनमें टी.बी. के लक्षण हैं या जिनका टी.बी. के मरीज़ के साथ नज़दीकी और बार-बार संपर्क रहा है—ख़ासकर उन कमरों में जिनमें हवा के आने-जाने की अच्छी सुविधा नहीं।

वैक्सीनेशन: केवल एक वैक्सीन है—जिसे बी.सी.जी. कहते हैं। यह बच्चों को भयंकर टी.बी. से बचाती है लेकिन किशोरों और वयस्कों पर इसका असर नहीं होता। ज़्यादा-से-ज़्यादा, यह वैक्सीन क़रीब १५ साल तक बचाव करती है। बी.सी.जी. केवल उनका बचाव करती है जो संक्रमित नहीं हैं; यह उनको फ़ायदा नहीं पहुँचाती जो पहले ही संक्रमित हैं।

[पेज 6 पर बक्स]

टी.बी. और फ़ैशन

शायद यह बहुत अजीब लगे, लेकिन १९वीं सदी के दौरान टी.बी. पर रूमानी रंग चढ़ाया गया था, क्योंकि लोगों का मानना था कि इस बीमारी के लक्षण संवेदनशील, कलात्मक गुणों को निखारते हैं।

फ्राँसीसी नाटककार और उपन्यासकार आलॆक्सान्द्रे ड्यूमा ने अपनी मेमवार (जीवनी) में १८२० आदि के बारे में लिखा: “छाती की शिकायतें होना फ़ैशन माना जाता था; हर किसी को तपेदिक थी, ख़ासकर कवियों को; तीस की उम्र से पहले ही मर जाना अच्छा माना जाता था।”

कहते हैं कि अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बाइरन ने कहा: “मैं तपेदिक [टी.बी.] से मरना चाहता हूँ . . . क्योंकि सारी सुंदरियाँ कहेंगी, ‘बेचारा बाइरन, देखो मरते हुए कितना प्यारा लग रहा है!’”

प्रत्यक्षतः टी.बी. से मरे अमरीकी लेखक, हॆन्री डेविड थरो ने लिखा: “क्षय और रोग अकसर सुंदर होते हैं, जैसे. . .तपेदिक का तमतमाता बुख़ार।”

टी.बी. से इतने मोह पर टिप्पणी करते हुए, द जरनल ऑफ़ दी अमेरिकन मॆडिकल असोसिएशन के एक लेख ने कहा: “बीमारी से इस विरोधाभासी लगाव का फ़ैशन हर जगह था; स्त्रियाँ पीली, कमज़ोर-सी दिखना चाहती थीं, फीका-सा श्रंगार करती थीं, और पतले, मलमल के कपड़े पसंद करती थीं—कुछ वैसी ही जैसी आज की मॉडलें मरियल-सी दिखना चाहती हैं।”

[पेज 7 पर बक्स]

क्या टी.बी. लगना आसान है?

“तपेदिक के बैक्टीरिया से बचकर कहीं नहीं भाग सकते,” डॉ. अराटा कोची चिताता है, जो डब्ल्यू.एच.ओ. विश्‍वव्यापी टी.बी. कार्यक्रम का निदेशक है। “हवा में खाँसे या छींके गये टी.बी. कीटाणु को साँस में लेने भर से कोई भी व्यक्‍ति टी.बी. पकड़ सकता है। ये कीटाणु हवा में घंटों, यहाँ तक कि सालों रह सकते हैं। हम सभी को ख़तरा है।”

लेकिन, इससे पहले कि एक व्यक्‍ति टी.बी. से बीमार हो जाए, दो बातों का होना ज़रूरी है। पहली, वह टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित हुआ या हुई है। दूसरी, संक्रमण ने बढ़कर बीमारी का रूप ले लिया है।

जबकि एक बहुत ही संक्रामक व्यक्‍ति के साथ थोड़ा भी संपर्क होने पर संक्रमित होना संभव है, लेकिन बार-बार संपर्क होने से टी.बी. के फैलने की संभावना बढ़ जाती है, जैसे कि संकुल घर में परिवार के सदस्यों का बार-बार संपर्क में आना।

व्यक्‍ति जिन जीवाणुओं को साँस में लेकर संक्रमित हो जाता है वे छाती में बढ़ने लगते हैं। लेकिन, १० में से ९ लोगों में, प्रतिरक्षा तंत्र संक्रमण के फैलाव को रोक देता है और संक्रमित व्यक्‍ति बीमार नहीं पड़ता। लेकिन, यदि प्रतिरक्षा तंत्र एच.आई.वी., मधुमेह, कीमोथॆरॆपी कैंसर उपचार, या अन्य कारणों से बुरी तरह कमज़ोर पड़ जाता है, तो कभी-कभी निष्क्रिय जीवाणु सक्रिय हो सकते हैं।

[पेज 4 पर चित्र का श्रेय]

New Jersey Medical School—National Tuberculosis Center

[पेज 7 पर तसवीर]

एड्‌स विषाणु द्वारा मुक्‍त किये गये टी.बी. जीवाणु टोकरियों में से मुक्‍त किये गये नागों के समान होते हैं

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें