वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g98 2/8 पेज 4-8
  • आज़ादी देना सीखना

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • आज़ादी देना सीखना
  • सजग होइए!–1998
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • बच्चों को ज़िम्मेदार बनना सिखाना
  • प्रेममय सुधार
  • जीवन के लिए शिक्षा
  • अपने बच्चे को बालकपन से प्रशिक्षित कीजिए
    पारिवारिक सुख का रहस्य
  • माता-पिताओ—अपने बच्चों को प्यार से तालीम दीजिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • माता-पिताओ, अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाइए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • आध्यात्मिक रूप से एक मज़बूत परिवार बनाना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2001
और देखिए
सजग होइए!–1998
g98 2/8 पेज 4-8

आज़ादी देना सीखना

“जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं,” बाइबल भजनहार ने लिखा। (भजन १२७:४) तीर अपने निशाने तक यूँ ही नहीं पहुँच जाता। बड़े ध्यान से निशाना लगाना पड़ता है। उसी तरह, माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना, बच्चे ज़िम्मेदार वयस्क बनने के लक्ष्य तक शायद न पहुँचें। “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये,” बाइबल प्रोत्साहन देती है, “और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।”—नीतिवचन २२:६.

बचपन में अधीनता से लेकर बड़ेपन में स्वाधीनता का बदलाव रातोंरात नहीं किया जा सकता। सो अपने बच्चों को स्वाधीन बनाने का प्रशिक्षण माता-पिता को कब शुरू करना चाहिए? प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस नामक युवक को याद दिलाया: “बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्‍वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (२ तीमुथियुस ३:१५) कल्पना कीजिए, तीमुथियुस की माँ ने उसे तभी से आध्यात्मिक प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया जब वह नन्हा-सा था!

सो, यदि छोटे बच्चे आध्यात्मिक प्रशिक्षण से लाभ उठा सकते हैं, तो क्या यह तर्कसंगत नहीं कि बच्चों को सयानेपन के लिए जल्दी-से-जल्दी प्रशिक्षण दिया जाए? ऐसा करने का एक तरीक़ा यह है कि उन्हें ज़िम्मेदार बनना, अपने फ़ैसले ख़ुद करना सिखाया जाए।

बच्चों को ज़िम्मेदार बनना सिखाना

आप अपने बच्चों को ज़िम्मेदार बनने का प्रोत्साहन कैसे दे सकते हैं? जैक और नोरा नाम के एक विवाहित जोड़े ने अपनी बेटी के बारे में याद किया: “जब उसने चलना शुरू ही किया था, तभी से उसने मोजे या छोटी-छोटी चीज़ें अपने कमरे में ले जाना और उन्हें सही दराज़ में रखना सीखा। उसने खिलौनों और किताबों को भी उनकी जगह पर रखना सीखा।” छोटी-छोटी बातों से शुरूआत हुई, लेकिन बच्ची ने तभी से यह सीखना शुरू कर दिया कि ज़िम्मेदार फ़ैसले कैसे करे।

जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे कुछ बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जा सकती हैं। सो आबरा और अनीता ने अपनी बेटी को एक पालतू कुत्ता रखने की अनुमति दी। उसे कुत्ते को सँभालने की ज़िम्मेदारी दी गयी और कुत्ते की देखभाल के लिए वह अपनी जेबख़र्च में से कुछ पैसे भी देती थी। बच्चों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का प्रशिक्षण देना धीरज की माँग करता है। लेकिन ऐसा करना लाभकर है और उनके भावात्मक विकास में योग देता है।

घरेलू काम बच्चों को ज़िम्मेदारी सिखाने का एक और अवसर प्रदान करते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को घर के कामों से मानो पूरी छूट दे देते हैं। वे समझते हैं कि बच्चों के हाथ बँटाने से मदद तो कम, सिरदर्द ज़्यादा होता है। दूसरे यह सोचते हैं कि हमारे बच्चों को ‘वह सब नहीं सहना चाहिए जो हमने अपने बचपन में सहा।’ यह तर्क सही नहीं है। शास्त्र कहता है: “जो अपने दास का पालन-पोषण उसके बचपन से ही लाड़-प्यार से करता है, वह जान ले कि यही अंत में उसका पुत्र [कृतघ्न] बन बैठेगा।” (नीतिवचन २९:२१, NHT) इस पाठ का सिद्धांत निश्‍चित ही बच्चों पर लागू होता है। यह दुःख की बात होती है जब एक युवा बड़ा होकर न सिर्फ़ ‘कृतघ्न’ निकलता है बल्कि छोटे-से-छोटा घरेलू काम करने में भी असमर्थ होता है।

बाइबल समय में युवाओं को आम तौर पर घरेलू काम दिये जाते थे। उदाहरण के लिए, १७ साल की कच्ची उम्र में, युवा यूसुफ पर परिवार के मवेशियों की देखभाल की कुछ ज़िम्मेदारी थी। (उत्पत्ति ३७:२) यह कोई छोटा काम नहीं था, क्योंकि उसके पिता के पास बहुत मवेशी थे। (उत्पत्ति ३२:१३-१५) इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यूसुफ बड़ा होकर एक शक्‍तिशाली अगुवा बना, यह मानना कठिन नहीं कि उसके व्यक्‍तित्व को सकारात्मक रूप से ढालने में उसे बचपन में मिले प्रशिक्षण का बड़ा हाथ था। उसी तरह, इस्राएल के भावी राजा, दाऊद को लड़कपन में अपने परिवार के मवेशी सौंपे गये थे।—१ शमूएल १६:११.

आज माता-पिताओं के लिए सबक़? अपने बच्चों को अर्थपूर्ण घरेलू काम दीजिए। समय, प्रयास, और धीरज के साथ, आप युवाओं को सफ़ाई करने, खाना पकाने, आँगन का रखरखाव करने, और घर तथा गाड़ी की मरम्मत करने में हिस्सा लेना सिखा सकते हैं। सच है, काफ़ी कुछ बच्चे की उम्र और क्षमता पर निर्भर करता है। लेकिन छोटे बच्चे भी आम तौर पर ‘गाड़ी ठीक करने में पापा की मदद’ कर सकते हैं या ‘खाना पकाने में मम्मी की मदद’ कर सकते हैं।

घरेलू काम सिखाना यह माँग भी करता है कि माता-पिता अपने बच्चों को सबसे मूल्यवान उपहार दें—अपना समय। दो बच्चों के माता-पिता, एक विवाहित दंपति से पूछा गया कि सफल बाल प्रशिक्षण का रहस्य क्या है। उन्होंने उत्तर दिया: “समय, समय, समय!”

प्रेममय सुधार

जब बच्चे अपना काम अच्छी तरह करते हैं, या कम-से-कम ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तब उनकी ढेर सारी और सच्ची प्रशंसा करके उनका उत्साह बढ़ाइए! (मत्ती २५:२१ से तुलना कीजिए।) इसमें शक नहीं कि बच्चे शायद ही कभी बड़ों-जैसी कुशलता से अपना काम करते हैं। और जब बच्चों को अपने फ़ैसले ख़ुद करने दिया जाता है, तब वे अकसर ग़लतियाँ करते हैं। लेकिन ज़्यादा हाय-तोबा करने से दूर रहिए! क्या बड़े होने पर भी आपने ग़लतियाँ नहीं की हैं? सो जब आपका बच्चा ग़लती करता है तब क्यों न धीरज धरें? (भजन १०३:१३ से तुलना कीजिए।) ग़लतियों की गुंजाइश छोड़िए। उन्हें सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा समझिए।

लेखक माइकल शूलमन और ईवा मॆकलर कहते हैं: “जिन बच्चों के साथ दोस्ताना ढंग से व्यवहार किया जाता है उन्हें इस बात का डर नहीं रहता कि अपनी मर्ज़ी से कोई काम करने पर उन्हें सज़ा दी जाएगी।” लेकिन, “भावशून्य या कठोर माता-पिता के बच्चे बिना पूछे मानो कोई भी काम करने से डरते हैं, चाहे वह फ़ायदे का ही क्यों न हो, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि उनके माता-पिता उनके काम में कुछ नुक़्स ज़रूर निकालेंगे और उनकी आलोचना करेंगे या उन्हें सज़ा देंगे।” यह टिप्पणी माता-पिताओं को दी गयी बाइबल की चेतावनी से मेल खाती है: “अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।” (कुलुस्सियों ३:२१) सो जब एक बच्चा आपकी अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतरता, तब क्यों न उसकी प्रशंसा करें कि कम-से-कम उसने कोशिश तो की? अगली बार और अच्छा करने के लिए उसे प्रोत्साहन दीजिए। उसे बताइए कि उसकी प्रगति से आपको आनंद होता है। उसे अपने प्रेम का आश्‍वासन दीजिए।

यह सही है कि कभी-कभी सुधार ज़रूरी होता है। इसकी ज़रूरत ख़ासकर तरुणावस्था में पड़ सकती है, जब युवा अपनी ख़ुद की पहचान बनाने, अपने दम पर स्वीकार किये जाने के संघर्ष में फँसे होते हैं। इसलिए आज़ादी पाने की ऐसी कोशिशों को यदि माता-पिता समझदारी से सँभालें बजाय इसके कि हमेशा इन्हें विद्रोह समझें, तो वे बुद्धिमानी करेंगे।

सच है, युवा आवेग में आकर काम करने या “जवानी की अभिलाषाओं” के आगे झुकने को प्रवृत्त होते हैं। (२ तीमुथियुस २:२२) सो लड़कपन के व्यवहार पर सीमाएँ न लगाने से बच्चे को भावात्मक रूप से हानि पहुँच सकती है; वह आत्म-संयम और आत्म-अनुशासन सीखने से चूक जाएगा। बाइबल चिताती है: “जो लड़का योंही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण होता है।” (नीतिवचन २९:१५) लेकिन प्रेम से दिया गया उचित अनुशासन लाभकर होता है और युवा को सयानेपन की माँगों और दबावों के लिए तैयार करता है। बाइबल प्रोत्साहन देती है: “जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है।” (नीतिवचन १३:२४) लेकिन, याद रखिए कि अनुशासन का उद्देश्‍य है सिखाना और प्रशिक्षण देना—सज़ा देना नहीं। यहाँ “छड़ी” संभवतः चरवाहों द्वारा अपने मवेशियों को दिशा दिखाने के लिए इस्तेमाल किये गये सोंटे को सूचित करती है। (भजन २३:४) यह प्रेममय मार्गदर्शन का प्रतीक है—कठोर क्रूरता का नहीं।

जीवन के लिए शिक्षा

जब बच्चे की शिक्षा की बात आती है, तब माता-पिता का मार्गदर्शन ख़ासकर ज़रूरी है। अपने बच्चे की शिक्षा में दिलचस्पी लीजिए। स्कूल में उसे उपयुक्‍त विषय चुनने में और इस बारे में ज़िम्मेदार फ़ैसला करने में मदद दीजिए कि क्या किसी अतिरिक्‍त शिक्षा की ज़रूरत पड़ेगी।a

निःसंदेह, सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा है आध्यात्मिक शिक्षा। (यशायाह ५४:१३) सयानों के संसार में जीने के लिए बच्चों को ईश्‍वरीय मूल्यों की ज़रूरत होगी। उनकी ‘ज्ञानेन्द्रियों’ को अभ्यास से पक्का किया जाना है। (इब्रानियों ५:१४) इस संबंध में माता-पिता उनकी काफ़ी मदद कर सकते हैं। यहोवा के साक्षियों के बीच परिवारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि अपने बच्चों के साथ बाइबल का नियमित अध्ययन करें। तीमुथियुस की माता के उदाहरण पर चलकर, जिसने उसे बचपन से शास्त्र सिखाया, साक्षी माता-पिता भी अपने छोटे बच्चों को वैसे ही सिखाते हैं।

बारब्रा नाम की एकल माँ अपने बच्चों के लिए बाइबल के पारिवारिक अध्ययन को एक बहुत ही सुखद अनुभव बनाती है। “उस शाम मैं बच्चों को अच्छा खाना और साथ में उनकी पसंद की मिठाई ज़रूर देती हूँ। मैं सही माहौल बनाने के लिए किंग्डम मॆलोडीज़ के टेप चलाती हूँ। फिर, प्रार्थना से शुरू करके, हम आम तौर पर प्रहरीदुर्ग पत्रिका का अध्ययन करते हैं। लेकिन यदि कोई ख़ास ज़रूरत हो, तो मैं युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर (अंग्रेज़ी) जैसे प्रकाशन भी इस्तेमाल करती हूँ।”b बारब्रा के अनुसार, बाइबल का अध्ययन करने से उसके बच्चों को “यहोवा का दृष्टिकोण जानने” में मदद मिलती है।

जी हाँ, एक बच्चे को परमेश्‍वर के वचन, बाइबल के ज्ञान और समझ से बड़ा कोई उपहार नहीं दिया जा सकता। यह “भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक” दे सकता है। (नीतिवचन १:४) इस प्रकार लैस, एक युवा नये दबावों और स्थितियों का सामना करने में सक्षम, सयानेपन में क़दम रखता है।

फिर भी, बच्चों का घर छोड़ जाना अधिकतर माता-पिताओं की जीवन-शैली में एक बड़ा बदलाव लाता है। वे खाली बसेरे का सामना सफलतापूर्वक कैसे कर सकते हैं, इसकी चर्चा हमारे अगले लेख में की गयी है।

[फुटनोट]

a सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के सितंबर ८, १९८८ अंक में श्रृंखला “माता-पिताओ—आपको भी गृहकार्य करना है!” देखिए।

b वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“भावशून्य या कठोर माता-पिता के बच्चे बिना पूछे मानो कोई भी काम करने से डरते हैं, चाहे वह फ़ायदे का ही क्यों न हो, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि उनके माता-पिता उनके काम में कुछ नुक़्स निकालेंगे और उनकी आलोचना करेंगे या उन्हें सज़ा देंगे।” —सदाचारी बच्चे को बड़ा करना (अंग्रेज़ी), माइकल शूलमन और ईवा मॆकलर द्वारा

[पेज 6 पर बक्स]

एक-जनक—आज़ादी देने की चुनौती

रबॆका नाम की एकल माँ कहती है: “एक-जनक के लिए अपने बच्चों को जाने देना बहुत कठिन है। यदि हम अपने आपको सँभालें नहीं, तो हम उन्हें ज़्यादा ही सुरक्षा देने और दबाकर रखने के लिए प्रवृत्त होते हैं।” पुस्तक पारिवारिक सुख का रहस्य,c पृष्ठ १०६-७, ये सहायक सुझाव देती है:

“एक-जनक के लिए ख़ासकर अपने बच्चों के निकट होना स्वाभाविक है, परन्तु ध्यान रखा जाना चाहिए कि माता-पिताओं और बच्चों के बीच परमेश्‍वर-नियुक्‍त सीमाएँ न टूट जाएँ। उदाहरण के लिए, यदि एक एकल माँ अपने पुत्र से अपेक्षा करती है कि घर में मुखिया की ज़िम्मेदारी उठाए या अपनी पुत्री के साथ एक विश्‍वासपात्र की तरह व्यवहार करती है और उस पर निजी समस्याओं का भार लाद देती है, तो गंभीर समस्याएँ उठ सकती हैं। ऐसा करना अनुचित और तनावपूर्ण है, और एक बच्चे को उलझन में डाल सकता है।

“अपने बच्चों को आश्‍वस्त कीजिए कि आप, एक जनक होने के नाते उनकी देखभाल करेंगी—इसका उलटा नहीं। (२ कुरिन्थियों १२:१४ से तुलना कीजिए।) कभी-कभी, आपको शायद कुछ सलाह या सहारे की ज़रूरत पड़े। यह मसीही प्राचीनों या संभवतः प्रौढ़ मसीही स्त्रियों से लीजिए, अपने नाबालिग बच्चों से नहीं।—तीतुस २:३.”

जब एक-जनक उचित सीमाएँ बनाते हैं और अपने बच्चों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखते हैं, तब आम तौर पर उनके लिए आज़ादी देना आसान होता है।

[फुटनोट]

c वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

[पेज 7 पर तसवीरें]

व्यावहारिक प्रशिक्षण बच्चों को ज़्यादा ज़िम्मेदार वयस्क बनने में मदद दे सकता है

[पेज 8 पर तसवीर]

बाइबल का पारिवारिक अध्ययन बच्चों को सयानेपन के जीवन का सामना करने के लिए ज़रूरी बुद्धि दे सकता है

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें