बाइबल का दृष्टिकोण
क्या मसीही सेवकाई कौमार्यव्रत की माँग करती है?
कौमार्यव्रत सही अर्थ में अविवाहित अवस्था है। लेकिन, द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार यह शब्द “आम तौर पर धर्म अधिकारी, धर्मगुरु या भक्त के रूप में कौमार्यव्रती व्यक्ति की भूमिका के संबंध में प्रयोग किया जाता है।” शब्द “कौमार्यव्रती” उनको सूचित करता है “जो आत्मत्याग की पवित्र शपथ या कृति या इस विश्वास के फलस्वरूप अविवाहित अवस्था में हैं कि यह अवस्था एक व्यक्ति के धार्मिक पद या उसकी अखंड भक्ति के कारण उसके लिए बेहतर है।”
अतीत में किसी समय कुछ प्रमुख धर्मों ने कौमार्यव्रत को अपने सेवकों के लिए एक माँग बना दिया। लेकिन मसीहीजगत के किसी दूसरे धर्म में कौमार्यव्रत इतना बड़ा पहचान-चिन्ह नहीं बना जितना कि कैथोलिकवाद में। आज, कैथोलिक कौमार्यव्रत को लेकर बहुत वाद-विवाद चल रहा है। द विल्सन क्वार्टर्ली ने कहा कि “हाल के दशकों में अनेक अध्ययन इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि पादरियों को भरती करने और उन्हें बनाए रखने में चर्च की समस्याओं की जड़ अनिवार्य कौमार्यव्रत है, जो १२वीं सदी से कैथोलिक पादरियों के लिए एक माँग है।” समाजविज्ञानी रिचर्ड ए. शूएन्हर के अनुसार, “इतिहास के प्रबल तथ्य और सामाजिक परिवर्तन इसके विरुद्ध जा रहे हैं कि कैथोलिक पादरीवर्ग में केवल कौमार्यव्रती पुरुषों को लिया जाए।” कौमार्यव्रत के बारे में बाइबल का दृष्टिकोण क्या है?
विवाह या कुँवारापन?
पूरे इतिहास में अनेक धर्मों के अनगिनत भक्त पुरुषों और स्त्रियों ने कौमार्यव्रत लेने का चुनाव किया है। क्यों? अनेक लोगों ने ऐसा इस विश्वास के कारण किया कि शारीरिक, भौतिक बातें “बुराई की जड़” हैं। इससे यह धारणा उत्पन्न हुई कि आत्मिक शुद्धता केवल तभी संभव है जब लैंगिक कामों से पूर्ण रूप से दूर रहा जाए। लेकिन यह बाइबल का दृष्टिकोण नहीं है। बाइबल में, विवाह को परमेश्वर से प्राप्त शुद्ध, पवित्र वरदान माना गया है। सृष्टि के बारे में उत्पत्ति वृत्तांत स्पष्ट रूप से विवाह को परमेश्वर की दृष्टि में “अच्छा” बताता है और प्रकट करता है कि यह परमेश्वर के साथ आत्मिक रूप से शुद्ध संबंध रखने में कोई बाधा नहीं।—उत्पत्ति १:२६-२८, ३१; २:१८, २२-२४. नीतिवचन ५:१५-१९ भी देखिए।
प्रेरित पतरस और परमेश्वर के अन्य स्वीकृत सेवक विवाहित पुरुष थे और उनके पास आरंभिक मसीही कलीसिया में अधिकार के पद थे। (मत्ती ८:१४; प्रेरितों १८:२; २१:८, ९; १ कुरिन्थियों ९:५) कलीसिया ओवरसियरों या “बिशपों” को नियुक्त करने के बारे में प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को जो निर्देश दिये उससे यह स्पष्ट हो जाता है। उसने लिखा: “अवश्य है कि बिशप निर्दोष हो, एक ही पत्नी का पति हो।” (तिरछे टाइप हमारे; १ तीमुथियुस ३:२, रिवाइज़्ड स्टैंडर्ड वर्शन, कैथोलिक संस्करण) ध्यान दीजिए कि इसका कोई संकेत नहीं है कि “बिशप” का विवाह करना किसी भी तरह अनुचित है। पौलुस ने सिर्फ इतना कहा कि “बिशप” को बहुविवाही नहीं होना चाहिए; यदि विवाहित हो तो उसकी केवल एक पत्नी होनी चाहिए। असल में, मक्लिनटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया ऑफ बिबलिकल, थिओलॉजिकल, एण्ड एक्लिसिएस्टिकल लिटरेचर यह निष्कर्ष निकालती है: “नये नियम के किसी परिच्छेद का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि सुसमाचार विधान में पादरियों के विवाह की मनाही है।”
बाइबल विवाह को बहुत मान देती है, परंतु यह किसी भी हालत अविवाहित अवस्था की निंदा नहीं करती यदि यह अपना निजी चुनाव है। बाइबल कहती है कि कुछ लोगों के लिए ऐसे ही रहना ज़्यादा अच्छा है। (१ कुरिन्थियों ७:७, ८) यीशु मसीह ने कहा कि कुछ पुरुष और स्त्रियाँ जानबूझकर अविवाहित रहने का चुनाव करते हैं। (मत्ती १९:१२) क्यों? इसलिए नहीं कि विवाह में ही कुछ अशुद्ध बात है जिससे उनके आत्मिक विकास में बाधा होगी। वे इस मार्ग को बस इसलिए चुनते हैं कि वे उस समय को महत्त्वपूर्ण समझते हुए परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में तन-मन से जुट जाना चाहते हैं।
अनिवार्य कौमार्यव्रत की राह
लेकिन, मसीह के समय के बाद की सदियों में स्थिति बदल गयी। हमारे सामान्य युग की पहली तीन सदियों में, “विवाहित और अविवाहित दोनों तरह के सेवक थे,” डेविड राइस बताता है। वह एक डॉमिनिकन है और उसने विवाह करने के लिए पादरी पद छोड़ दिया। फिर, तथाकथित मसीही उस विचार से प्रभावित होने लगे जिसे एक धार्मिक लेखक ने “यूनानी और बाइबलीय विचारों का मिश्रण” कहा। उससे सॆक्स और विवाह के बारे में एक विकृत विचार जन्मा।
कुछ लोग फिर भी अविवाहित रहे सिर्फ इसलिए कि “परमेश्वर के राज्य के कार्य में [अपने आपको] लगा देने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र रह सकें।” लेकिन, दूसरे उन विधर्मी तत्त्वज्ञानों से ज़्यादा प्रभावित हुए जो उन्होंने अपना लिये थे। द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है: “यह विश्वास कि लैंगिक संभोग दूषित करता है और पवित्रता से मेल नहीं खाता, कौमार्यव्रत की प्रथा के लिए प्रमुख प्रेरणा बनकर [तथाकथित मसीही चर्च में] आ गया।”
राइस कहता है कि चौथी सदी में चर्च ने “विवाहित पादरी को कम्यूनियन मनाने से पहलेवाली रात को लैंगिक संभोग करने से वर्जित किया।” जब चर्च ने हर दिन कम्यूनियन शुरू किया तो इसका अर्थ था कि पादरियों को हमेशा ही लैंगिक संभोग से दूर रहना था। कुछ समय बाद, पादरियों के विवाह को पूरी तरह वर्जित कर दिया गया। इस प्रकार चर्च में सेवक बननेवाले हर व्यक्ति के लिए कौमार्यव्रत अनिवार्य बन गया।
प्रेरित पौलुस ने ऐसी बातों के बारे में पहले से चिता दिया था। उसने लिखा: “आत्मा ने स्पष्टता से कहा है कि अंतिम समयों में कुछ लोग विश्वास को त्याग देंगे और भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाना पसंद करेंगे . . . वे कहेंगे कि विवाह वर्जित है।”—१ तीमुथियुस ४:१, ३, जरूसलेम बाइबल।
“बुद्धि अपने कार्यों से प्रमाणित होती है,” यीशु मसीह ने कहा। (मत्ती ११:१९, NHT) परमेश्वर के स्तरों से बहकने की मूर्खता अपने कार्यों या नतीजों से प्रमाणित हो गयी है। लेखक डेविड राइस ने अनिवार्य कौमार्यव्रत के विषय पर संसार भर में अनेक पादरियों का इंटरव्यू लिया। जिनसे उसने बात की उनमें से कुछ ने कहा: “आप पादरीवर्ग में रहिए, जितना भला आपसे हो सके कीजिए, साथ ही ऐसी भक्त और प्रशंसा करनेवाली स्त्रियों का चुपचाप लाभ उठाइए जो लैंगिक संबंध रखने के लिए तैयार रहती हैं।”
मत्ती ७:२० को उद्धृत करते हुए राइस कहता है: “‘उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे,’ यीशु ने कहा।” फिर वह ज़बरदस्ती थोपे गये कौमार्यव्रत के कारण हुई त्रासदी पर टिप्पणी करता है: “अनिवार्य कौमार्यव्रत के फल वे हज़ारों पुरुष हैं जो दोहरा जीवन जी रहे हैं, वे हज़ारों स्त्रियाँ हैं जो बरबाद जीवन जी रही हैं, वे हज़ारों बच्चे हैं जिन्हें उनके पादरी पिताओं ने ठुकरा दिया है, और पादरी स्वयं जो घाव लिये फिर रहे हैं उसकी बात तो अलग रही।”
आदरणीय विवाह परमेश्वर की ओर से आशिष है। ज़बरदस्ती थोपा गया कौमार्यव्रत आध्यात्मिक रूप से हानिकर साबित हुआ है। दूसरी ओर, स्वयं चुना गया कुँवारापन पवित्रता या उद्धार के लिए ज़रूरी तो नहीं, परंतु यह कुछ लोगों के लिए फलदायी और आध्यात्मिक रूप से संतोषदायी जीवन-शैली साबित हुआ है।—मत्ती १९:१२.
[पेज 18 पर चित्र का श्रेय]
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