विक्टोरिया झील—अफ्रीका की गोद में विशाल सागर
केन्या में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
दूर कहीं अफ्रीका में, १८५८ में एक अंग्रेज़ ऐसे जंगली इलाके में रास्ता बनाकर आगे बढ़ रहा था, जहाँ पहले किसी इंसान के कदम नहीं पड़े थे। वह बस कुछ अफ्रीकी कुलियों को साथ लेकर चल रहा था। वह बीमार और थकावट से चूर था, और नहीं जानता था कि आगे क्या होगा। पर वह अपने लोगों से आगे बढ़ने के लिए कहता रहा। वह आदमी था जॉन हैनिंग स्पीक। वह एक ऐसी चीज़ की तलाश कर रहा था जिसे उसने कभी देखा भी नहीं था। वो देखना चाहता था कि नील नदी कहाँ से शुरू होती है।
उस नदी के बारे में दास्तानों से प्रेरित होकर, जिसे अरब के दास बेचने-खरीदनेवाले ‘उकेरेवे’ कहते थे, स्पीक बस जंगलों को पार करता चला गया, मगर उसे अपनी मंज़िल कहीं दिखायी नहीं दे रही थी। आखिरकार २५ दिन तक चलने के बाद, उन मुसाफिरों को अपनी मंज़िल का एक शानदार नज़ारा देखने को मिला। वहाँ उनकी आँखों के ठीक सामने मीठे पानी का बहुत बड़ा समंदर था। जहाँ तक वे देख सकते थे, बस पानी ही पानी था। स्पीक ने बाद में लिखा: “अब मेरे दिल में कोई शक नहीं था कि वह शानदार नदी यहीं, इसी झील से निकलती है। इसी झील से जो हमारी आँखों के सामने है। इस नदी के उद्गम के बारे में कई लोगों ने अकटलें लगाई हैं और कई लोगों ने बड़ी-बड़ी यात्राएँ की हैं।” उसने अपनी इस खोज को उस समय की इंग्लैंड की महारानी—विक्टोरिया—का नाम दिया।
नील नदी का उद्गम
आज भी यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील इसी नाम से जानी जाती है। दुनिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील उत्तरी अमरीका की लेक सुपिरियर है जो आकार में भी बड़ी है। भूमध्य की चमकती धूप में बहुत बड़े आइने की तरह यह विक्टोरिया झील ६९,४८४ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली है। इसके उत्तर छोर से भूमध्य रेखा गुज़रती है और यह ग्रेट रिफ्ट वैली के पूर्वी और पश्चिमी भाग में स्थित है। इसका ज्यादातर हिस्सा तंज़ानिया और युगांडा में और केन्या की सीमा पर है।
इस झील में ज़्यादातर पानी तंज़ानिया की कागेरा नदी से आता है, जिसमें रुवांडा के पहाड़ों का पानी बहकर आता है। लेकिन विक्टोरिया में सबसे ज़्यादा पानी बरसात का होता है जो अगल-बगल के करीब २,००,००० वर्ग किलोमीटर इलाके से बहकर आता है। इस झील से पानी के बाहर जाने के लिए एकमात्र रास्ता है युगांडा का जिंजा। यहाँ से पानी उत्तर की ओर बढ़ता है और यहीं से व्हाइट नाइल (सफेद नील नदी) की शुरुआत होती है। हालाँकि विक्टोरिया झील ही नील नदी का एकमात्र स्रोत नहीं है, यह एक बहुत बड़े जलकुंड का काम देती है जिसका मीठा पानी हमेशा नील नदी में बहता रहता है और मिस्र तक जीवन को आबाद रखता है।
झील की ज़िंदगी
एक नाव झील में आती है। हवा में लहराता उसका सफेद पाल एक तितली के पंखों की तरह लग रहा है। अगल-बगल के इलाके से आनेवाली रोज़ की हवा से यह छोटी-सी नाव झील में बहुत दूर तक पहुँच जाती है। दोपहर तक हवा की दिशा बदल जाती है और फिर वह नाव उसके साथ वापस अपनी जगह आ जाती है। हज़ारों सालों से मछुआरे यही तरीका अपनाते आ रहे हैं।
विक्टोरिया झील के चारों किनारों पर छोटे-छोटे गाँव बसे हैं जिनमें भूरे रंग की झोपड़ियाँ हैं। नील नदी पर निर्भर रहनेवाले गाँववालों के लिए मछली ही रोज़ी-रोटी है और रोज का खाना भी। मछुआरे का दिन सूरज निकलने से पहले ही शुरू हो जाता है। पुरुष अपनी नाव में भरे हुए पानी को निकालकर धुंध-भरी झील में ही निकल पड़ते हैं। सुर में सुर मिलाकर गाते हुए वे लोग झील में काफी अंदर तक चले जाते हैं और अपने फटे-पुराने पाल को उठाते हैं। उनकी औरतें किनारे पर खड़े होकर देखती रहती हैं जब तक कि छोटी-छोटी नाव आँखों से ओझल नहीं हो जातीं। जल्द ही वे लौट आती हैं क्योंकि अभी काफी काम करना बाकी है।
बच्चे किनारे पर पानी में उछलते कूदते रहते हैं, और औरतें अपने कपड़े धोने और पीने के लिए पानी भरने में लगी रहती हैं। फिर, झील के किनारे का अपना सारा काम निपटाकर, सिर पर मिट्टी के घड़े रखकर, अपने पीछे अपने छोटे बच्चों को बाँधे, और दोनों हाथ में धोए हुए कपड़ों की टोकरियाँ लिए, ये औरतें धीरे-धीरे अपने घर की ओर निकल पड़ती हैं। घर जाकर मकई और बीन की अपनी छोटी-सी बगिया की देखभाल करती हैं, जलाने के लिए लकड़ी जमा करती हैं, और गोबर और राख से बना लेप लगाकर अपने कच्चे घरों की मरम्मत करती हैं। वहीं पर किनारे से थोड़ी दूर, औरतें बड़ी ही कुशलता से बाँस या सीसल के रेशों से मज़बूत रस्सियाँ और सुंदर-सुंदर टोकरियाँ बनाती हैं। कुछ पुरुष पेड़ के बड़े से तने से डोंगी बनाते हैं, और हवा में कुल्हाड़ी की आवाज़ गूँजती रहती है।
जैसे दिन ढलने लगता है, फिर से औरतों की आँखें उसी झील पर टिक जाती हैं। दूर समंदर में छोटी-छोटी नावों की ज़रा-सी झलक से शोर मच जाता है कि आदमी लोग आ रहे हैं। वे बड़ी ही बेसब्री से उनका इंतज़ार करती हैं। वे अपने पति को वापस आते और पकड़ी हुई मछलियों को देखना चाहती हैं।
इस झील के सभी किनारों पर और छोटे-छोटे द्वीपों पर बसी छोटी-छोटी बस्तियाँ शांति का संदेश लानेवाले लोगों का स्वागत कर रही हैं। पैदल या डोंगियों में हर गाँव तक पहुँचा जा रहा है। लोग बहुत नम्र हैं और संदेश सुनने के लिए बेताब रहते हैं। खासकर वे लोग अपनी नीलोटिक और बांतू भाषा में बाइबल की किताबें पढ़ने के लिए बहुत बेताब रहते हैं।
झील के जीव-जंतु
विक्टोरिया झील में ४०० से ज़्यादा किस्म की ऐसी मछलियाँ पायी जाती हैं जो दुनिया में कहीं और नहीं पायी जातीं। इनमें सबसे ज़्यादा मिलनेवाली मछली है साइक्लिड। इन रंगबिरंगी छोटी-छोटी मछलियों के भी रंगीले नाम हैं, जैसे फ्लेमबैक, पिंक फ्लश, और किसुमु फ्रॉगमाउथ। कुछ साइक्लिड मछलियाँ अपने बच्चों की रक्षा बड़े अनोखे ढंग से करती हैं। जब कोई खतरा नज़र आता है, तब यह बड़ी साइक्लिड मछली अपना मुँह खोल लेती है और सारे छोटे-छोटे बच्चे सुरक्षा के लिए उसके मुँह में घुस जाते हैं। खतरा टल जाने के बाद, यह अपना मुँह खोल देती है और फिर सब-के-सब बाहर आ जाते हैं, और बस फिर से उनकी मौज-मस्ती शुरू हो जाती है।
विक्टोरिया झील बहुत ही खूबसूरत और अलग-अलग किस्म के पक्षियों का घरौंदा भी है। ग्रीब, कॉर्मोरैंच और ऐन्हिंगा पानी के अंदर गोता खाकर बड़ी ही कुशलता से अपनी चोंच से मछली पकड़ती हैं। सारस, बगुला, लगलग और स्पूनबिल कम पानी में बिना हिले खड़े रहते हैं, और मछली के पास आने का धीरज के साथ इंतज़ार करते हैं। अगर सिर उठाकर ऊपर देखो तो पेलिकन पक्षियों के झुंड के झुंड बड़े-बड़े ग्लाइडर्स की तरह उड़ते हैं। और जब वे झुंड की तरह तैरते हैं तो वे मछलियों के बड़े झुंड को घेर लेते हैं और टोकरी जैसी अपनी बड़ी-बड़ी चोंच में भर लेते हैं। मगर आसमान का बेताज़ बादशाह तो शक्तिशाली पंखोंवाला फिश इगल या चील है। पानी से काफी ऊँचे किसी पेड़ की डाली से तेज़ी से नीचे आते हुए, बड़ी ही आसानी से यह झील में ऊपर आनेवाली मछलियों को झपट लेती है। झील के किनारे पर पपीरस से सरकंडों के झुंड में रंग-बिरंगे विवरबर्ड घोंसले बनाती हैं, वहीं थोड़ी दूरी पर एकेशिया के जंगलों में करकोचा अपना दुखड़ा सुनाता है।
सुबह-सुबह और शाम के वक्त जब पूरी झील पर खामोशी छाई होती है, तब दरियाई-घोड़ों की घुरघुराहट दूर तक सुनाई देती है। दोपहर ढलते-ढलते वहीं तट पर पानी में वो दुनिया भूल कर सो जाते हैं। दूर से तो कोई उन्हें पानी में पड़ा हुआ पत्थर ही समझ ले। झील के किनारे रहनेवाले लोगों को सबसे बड़ा खतरा नील के मगरमच्छों से होता है। इनमें से कुछ खतरनाक जीव अब भी विक्टोरिया झील के कुछ दूर-दराज़ इलाकों में रहते हैं, हालाँकि इनमें से ज़्यादातर मगरमच्छों को इंसानों ने खत्म कर दिया है।
मुसीबत में झील
जब जॉन स्पीक ने पहली बार विक्टोरिया को देखा था, तब से अभी तक अफ्रीका की जनसंख्या में बहुत भारी वृद्धि हुई है। इस झील के किनारे पर ही अब करीब ३ करोड़ लोग रहते हैं जिनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया बस यही झील है। पुराने ज़माने में छोटे-छोटे मछुआरे मछली पकड़ने के लिए पुराने तरीके इस्तेमाल करते थे। मछली के जाल, सरकंडे के जाल, काँटे और भाले का इस्तेमाल करके वे लोग बस उतनी ही मछलियाँ पकड़ते थे जितनी उनकी ज़रूरत थी। आज ट्रॉलर्स और नायलन गिल के जाल के आ जाने से, बहुत ही बड़े क्षेत्र में और कई टन मछलियाँ पकड़ी जा सकती हैं। इसकी वज़ह से झील में मछलियाँ बिलकुल कम हो गयी हैं और इस झील का पारिस्थितिक संतुलन खतरे में है।
यहाँ पर दूसरी जगह की मछलियों को भी डाला जा रहा है, जिसकी वज़ह से यहाँ का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ गया है और छोटे-छोटे मछुआरे बहुत परेशान हैं। मानो ये सारी मुसीबत कम थी, इसमें पानी के हाइसिंथ से और भी समस्या खड़ी हो गयी है। यह पानी पर तैरनेवाली वनस्पति है जिसमें सुंदर बैंजनी फुल लगते हैं। दक्षिण अमरीका से इसे लाया गया था। यह वनस्पति इतनी तेज़ी से उगती और फैलती है कि इसने झील के ज़्यादातर किनारों और पानी के प्रवेशों को बंद कर रखा है। इससे मालवाहक नाव, पैसेंजर ले जानेवाली नाव, और मछुआरों की डोंगियाँ नदी के किनारों और पोतघाट तक नहीं जा सकते। झील के आस-पास की वन कटाई से, इसमें गंदे पानी के आने से और औद्योगिकरण से झील का भविष्य खतरे में पड़ गया है।
क्या विक्टोरिया झील बच पाएगी? इस सवाल पर काफी बहस हो रही है, और कोई नहीं जानता कि इसकी सभी मुसीबतों को कैसे सुलझाया जाएगा। लेकिन विक्टोरिया झील कुदरत की एक देन है, जो इस पृथ्वी पर बनी रहेगी, जब परमेश्वर का राज्य ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों’ को निकाल देगा।—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
[पेज 24 पर बक्स/तसवीर]
मछली ही झील को निगल रही है
इसका बदन बहुत चिकना होता है, बहुत खाती है, बड़ी तेज़ी से पैदा होती है, और इसकी लंबाई छः फीट तक हो सकती है। यह है क्या? लेट्स निलोटिकस! लेकिन सामान्यतः इसे नाइल पर्च के नाम से जाना जाता है। यह बड़ी-सी भुक्खड़ मछली विक्टोरिया झील में १९५० के देशक में डाली गई। इसके आने से झील का पारिस्थितिक संतुलन पूरी तरह गड़बड़ा गया। ४० साल के अंदर इसने झील की ४०० से ज़्यादा मछली की जातियों को चट कर लिया है। इसकी वज़ह से वहाँ रहनेवाले लाखों लोगों को खाने के लाले पड़ने का खतरा है क्योंकि वो लोग अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए छोटी टिलापिया, साइक्लिड, और झील की दूसरी मछलियों पर निर्भर करते हैं। ये छोटी मछलियाँ भी झील को साफ-सुथरा और अच्छा रखती हैं। इनमें से कुछ घोंघा खाती हैं जिससे एक खतरनाक बीमारी, बिलहार्ज़िया होने का खतरा रहता है। इस तरह यह मछलियाँ बीमारी भी फैलने नहीं देतीं। दूसरी मछलियाँ आल्गे और अन्य वनस्पति खाती हैं जो अब बेतहाशा बढ़ रही हैं। इसकी वज़ह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है जिसे युट्रोफिकेशन कहा जाता है। इस स्थिति में सड़नेवाली वनस्पति पानी में रहकर पानी में ऑक्सिजन की मात्रा कम कर देती हैं। क्योंकि इस गंदगी को साफ करने के लिए बहुत कम पुरानी जाति की मछलियाँ बची हैं, इसलिए “डॆड ज़ोन्स,” यानी ऐसे इलाके बढ़ रहे हैं जहाँ के पानी में ऑक्सिजन नहीं है। इससे और भी मछलियाँ मर रही हैं। अब क्योंकि बहुत ही कम मछलियाँ बाकी हैं, सो यह भुक्खड़ मछली, नाइल पर्च कुछ नया खाना खाने लगी है—अपने बच्चों को ही! सो जिस मछली ने पूरी झील को निगल लिया था, अब उसके खुद को ही निगल जाने का खतरा पैदा हो गया है!
[पेज 21 पर तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
युगांडा
केन्या
तंज़ानिया
विक्टोरिया झील
[पेज 21 पर तसवीर]
विक्टोरिया झील के किनारे गवाही देते हुए
[पेज 22 पर तसवीर]
वीवरबर्ड
[पेज 22 पर तसवीर]
पॆलिकन
[पेज 23 पर तसवीर]
इग्रॆट
[पेज 23 पर तसवीर]
नील नदी के मगरमच्छ
[पेज 23 पर तसवीर]
दरियाई-घोड़े पर खड़ा बगुला