अपंगता के बावजूद उच्च कोटि का जीवन
“पर्वतारोही फिर से शिखर पर है।” जब टॉम विटिकर एवरॆस्ट पर्वत के शिखर पर पहुँचा तो एक अखबार ने यह टिप्पणी की। इससे पहले भी कई लोग उस ऊँची चोटी पर पहुँचे हैं, लेकिन टॉम विटिकर वहाँ तक पहुँचनेवाला पहला अपंग व्यक्ति था! एक यातायात दुर्घटना में विटिकर का पैर चला गया। लेकिन नकली पैर लगवाने के कारण वह फिर से पर्वत पर चढ़ सका जो कि उसका शौक है। इसी तरह के कृत्रिम अंग हज़ारों अपंग लोगों की मदद कर रहे हैं कि वे उच्च कोटि के जीवन का आनंद ले सकें। असल में, आजकल अपंग लोगों को दौड़ते, बासकॆट बॉल खेलते या साइकिल चलाते देखना आम बात हो गयी है।
शुरू-शुरू में नकली हाथ-पैर लकड़ी के लट्ठे से बनाये जाते थे और उन पर लोहे के हुक लगे होते थे। वे भोंडे-से दिखते थे। लेकिन जब युद्धों में हज़ारों लोग अपंग होने लगे तो कृत्रिम अंगों की बनावट में सुधार किया जाने लगा। इसमें हैरानी की बात नहीं कि सबसे पहले बढ़िया कृत्रिम अंग बनाने का श्रेय १६वीं सदी के एक आर्मी सर्जन को दिया जाता है। वह फ्रांस का रहनेवाला था और उसका नाम आँब्राज़ पारे था। कृत्रिम अंगों को बनाने के लिए आज हाइड्रॉलिक्स, बहुत ही आधुनिक प्रक्रिया से बने घुटने के जोड़, कार्बन-फाइबर से बने लचीले पाँव, सिलिकॉन, प्लास्टिक और बढ़िया टॆक्नॉलजी से बनी दूसरी चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इनके सहारे बहुतेरे लोग इतनी ज़्यादा सहजता और आराम से चल-फिर सकते हैं जितना कि हम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे। माइक्रोइलॆक्ट्रॉनिक्स में हुई प्रगति के कारण आज नकली बाँहों और हाथों को ज़्यादा सहजता से इस्तेमाल किया जा सकता है। आज के कृत्रिम अंग देखने में भी ज़्यादा अच्छे लगते हैं। आजकल के नकली हाथ-पैरों में उँगलियाँ भी बनायी जाती हैं और किसी-किसी में तो लगता है कि नसें भी हैं। उदाहरण के लिए, एक मॉडल को कैंसर के कारण अपना एक पैर कटवाना पड़ा। बाद में उसने नकली पैर लगवाया जो इतना असली दिखता था कि वह अपना मॉडलिंग का काम जारी रख सकी।
मनोवृत्ति महत्त्वपूर्ण है
लेकिन, मानसिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञा ऎलन विनचल चिताती है: “जब आपके साथ व्यक्तिगत रूप से कोई हादसा होता है जैसे अंग-विच्छेद, तो आपके जीवन का हर पहलू—शारीरिक, भावात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलू—मानो आग से गुज़रता है।” विलियम को ही लीजिए। उसे चोट लगी जो कोथ (गैंग्रीन) में बदल गयी और इस कारण उसे अपना एक पैर कटवाना पड़ा। वह कहता है: “जीवन में किसी भी चुनौती का मुकाबला करने के लिए सही मनोवृत्ति बहुत ज़रूरी है। मैंने अपनी अपंगता को कभी एक कमज़ोरी नहीं समझा। बल्कि उस दुर्घटना के बाद मुझे जो भी धक्के लगे हैं उनको मैंने सकारात्मक रीति से देखा है।” ऎलन विनचल का भी अंग-विच्छेद हुआ है और वह भी इसी बात की पुष्टि करती है कि निराशावादी लोगों की तुलना में वे लोग ज़्यादा अच्छी तरह अपनी स्थिति से समझौता कर लेते हैं जो सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। बाइबल कहती है: “मन का आनन्द अच्छी औषधि है।”—नीतिवचन १७:२२.
सजग होइए! ने ऐसे कई मसीहियों से बातचीत की जिन्होंने अपनी अपंगता के साथ अच्छी तरह जीना सीख लिया है। उनमें से ज़्यादातर ने यह सुझाव दिया कि अपंग लोगों को अपनी अपंगता के बारे में ही नहीं सोचते रहना चाहिए या उसके बारे में चुप्पी नहीं साध लेनी चाहिए। डॆल को अपना बायाँ पैर घुटने तक कटवाना पड़ा। उसने कहा, ‘यदि दूसरों को ऐसा लगे कि वे इस बारे में मुझसे बात नहीं कर सकते, तो मुझे ज़्यादा उलझन होगी। मैं सोचता हूँ कि इससे सभी अजीब-सा महसूस करते हैं।’ कुछ विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि यदि आपका दायाँ हाथ नहीं है और किसी से आपका परिचय कराया जाता है तो आपको खुद पहल करके उससे अपना बायाँ हाथ मिलाना चाहिए। और यदि कोई आपसे आपके कृत्रिम अंग के बारे में पूछता है तो उसे बताइए। आप आराम से बात करेंगे तो दूसरे की झिझक भी मिट जाएगी। और फिर आम तौर पर ऐसा होता है कि जल्द ही किसी दूसरे विषय पर बात छिड़ जाती है।
‘हंसने का समय’ होता है। (सभोपदेशक ३:४ख) एक स्त्री जिसका एक हाथ नहीं रहा, यह कहती है: ‘सबसे बड़ी बात है खुशमिज़ाज रहना! हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हम अपने बारे में जैसी राय रखते हैं दूसरे भी काफी हद तक हमारे बारे में वैसी ही राय रखेंगे।’
“रोने का समय”
पैर कट जाने के बाद शुरू में डॆल ने सोचा, “अब कुछ नहीं बचा। मेरी ज़िंदगी खत्म हो गयी।” अंगोला में बारूदी सुरंगों के फटने से फ्लोरिन्डू और फ्लोर्यानू अपंग हो गये। फ्लोरिन्डू कहता है कि वह तीन दिन और तीन रात रोता रहा। वैसे ही फ्लोर्यानू को भी अपनी भावनाओं पर काबू रखने में परेशानी हुई। “मैं सिर्फ २५ साल का था,” वह लिखता है। “एक दिन पहले तक मैं सब कुछ कर सकता था, और दूसरे दिन मैं खड़ा भी नहीं हो सकता था। मैं हताश और निराश हो गया।”
“रोने का समय” होता है। (सभोपदेशक ३:४क) और जब आपके साथ कोई भारी हादसा होता है तो कुछ समय तक शोक मनाना स्वाभाविक है। (न्यायियों ११:३७; सभोपदेशक ७:१-३ से तुलना कीजिए।) “शोक मनाने के बाद मन हलका हो जाता है,” ऎलन विनचल लिखती है। किसी हमदर्द के साथ अपने दुःख बाँटने से अकसर काफी राहत मिलती है। (नीतिवचन १२:२५) लेकिन रोते-रोते ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती। अपंग हो जाने पर कुछ लोग थोड़े समय के लिए भावात्मक रूप से ज़्यादा अस्थिर हो जाते हैं, दोष लगाने लगते हैं, बेचैन हो जाते हैं या फिर गुमसुम रहने लगते हैं। लेकिन, आम तौर पर ये भावनाएँ दब जाती हैं। यदि ये नहीं दबतीं, तो शायद हताशा ने बीमारी का रूप ले लिया है जिसके लिए आम तौर पर डॉक्टरों की मदद की ज़रूरत होती है। घरवालों और दोस्तों को ध्यान रखना चाहिए कि कहीं ऐसी कोई निशानी तो नहीं दिख रही जिससे पता चले कि उनके प्रियजन को डॉक्टरी मदद की ज़रूरत है।a
डब्ल्यू. मिचॆल की दोनों टाँगों को लकवा मार गया है। वह लिखता है: “हम सबको ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो हमारी परवाह करते हैं। यदि हमें लगता है कि हम दोस्तों और रिश्तेदारों से घिरे हुए हैं तो हम मानो हर दुःख झेल सकते हैं, लेकिन यदि कोई अकेले ही ज़िंदगी से जूझ रहा हो तो छोटी-सी मुश्किल भी उसे पस्त कर सकती है। और दोस्ती अपने आप ही नहीं हो जाती, दोस्ती करनी पड़ती है, दोस्ती बढ़ानी पड़ती है, नहीं तो वह टूट जाती है।”—नीतिवचन १८:२४ से तुलना कीजिए।
अपंग होते हुए भी उच्च कोटि का जीवन
अपनी अपंगता के बावजूद, बहुत से लोग बढ़िया जीवन जी रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब रसल का जन्म हुआ तो उसके बाँयें पैर का निचला हिस्सा नहीं था। आज ७८ साल की उम्र में भी वह नियमित रूप से कसरत करता है और अपना जीवन पूरी तरह से जीता है, हालाँकि अब उसे छड़ी के सहारे चलना पड़ता है। हँसमुख स्वभाव के रसल ने कहा कि बहुत सालों से लोग प्यार से उसे ‘हैप्पी’ (खुश) बुलाते हैं।
डगलस का एक पैर दूसरे विश्व युद्ध में जाता रहा। वह आधुनिक किस्म के नकली पैर की मदद से चलता है। वह यहोवा का साक्षी है और पिछले छः सालों से उसने एक नियमित पायनियर या पूर्ण-समय सुसमाचारक के रूप में सेवा करने का आनंद लिया है। और क्या आपको डॆल याद है, जिसने पैर कट जाने पर सोचा था कि उसकी ज़िंदगी खत्म हो गयी है? वह भी पायनियर के रूप में बड़े संतोष का जीवन बिता रहा है और किसी पर बोझ नहीं है।
लेकिन, गरीब या युद्ध-ग्रस्त देशों में अपंग लोग कैसे जीते हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है: “आज सच्चाई तो यह है कि बहुत कम अपंग लोगों को मदद मिलती है।” बहुतों को यहाँ-वहाँ जाने के लिए छड़ी और भोंडी बैसाखियों का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन कभी-कभी मदद मिल जाती है। अंगोला में बारूदी सुरंग के शिकार, फ्लोर्यानू और फ्लोरिन्डू को इंटरनैशनल रॆड क्रॉस और स्विस सरकार की मदद से कृत्रिम अंग मिल गये। फ्लोर्यानू यहोवा के साक्षियों की स्थानीय कलीसिया में एक सहायक सेवक के रूप में खुशी-खुशी काम करता है और फ्लोरिन्डू एक प्राचीन और पूर्ण-समय सुसमाचारक के रूप में सेवा कर रहा है।
विकलांगों की सेवा में जुटी एक संस्था बड़े सुंदर ढंग से कहती है: “अपाहिज सिर्फ वे हैं जो हिम्मत हार चुके हैं!” दिलचस्पी की बात है कि विकलांगों की हिम्मत बढ़ाने में बाइबल का बड़ा हाथ रहा है। डॆल कहता है: “उस हादसे के बाद बाइबल की सच्चाई सीखने से मुझे दर्द भुलाने में बहुत मदद मिली।” वैसे ही रसल भी कहता है: “बाइबल पर आधारित मेरी आशा ने मुश्किलों का सामना करने में हमेशा मुझे मदद दी है।” लेकिन बाइबल विकलांगों के लिए क्या आशा देती है?
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के मार्च १५, १९९० अंक में लेख “फिर से आनंदित होने में हताश लोगों की मदद कैसे करें” देखिए।
[पेज 8 पर बक्स]
काल्पनिक पीड़ा
काल्पनिक अंग संवेदना ऐसा सचमुच का एहसास है कि कटा हुआ अंग अभी भी मौजूद है। ऑपरेशन के बाद अपंग लोगों को आम तौर पर ऐसा एहसास होता है और यह एहसास इतना गहरा होता है कि अपंग लोगों की एक पुस्तिका कहती है: “अपने नकली पैर के बिना बिस्तर या कुर्सी से उठते समय काल्पनिक संवेदना के बारे में चौकस रहिए। अपने आपको याद दिलाने के लिए कि आपका पैर नहीं है, उठने से पहले हमेशा नीचे देखिए।” एक मरीज़ के दोनों पैर काट दिये गये थे और जब वह अपने डॉक्टर से हाथ मिलाने के लिए खड़ी होने लगी तो ज़मीन पर गिर पड़ी!
दूसरी समस्या है काल्पनिक अंग पीड़ा। इसमें सचमुच यह एहसास होता है कि कटे हुए हाथ या पैर में दर्द हो रहा है। यह काल्पनिक पीड़ा कितनी तीव्र होती है, किस किस्म की होती है और कितने समय तक रहती है, इसके बारे में हर मरीज़ का अपना अलग अनुभव होता है। खुशी की बात यह है कि समय के बीतने पर आम तौर पर काल्पनिक संवेदना और काल्पनिक पीड़ा घट जाती है।
[पेज 6 पर तसवीर]
आधुनिक कृत्रिम अंग अनेक विकलांग लोगों के जीवन को कहीं ज़्यादा सुखमय बना देते हैं
[चित्र का श्रेय]
Photo courtesy of RGP Prosthetics
[पेज 7 पर तसवीर]
भारी हादसा होने पर शोक मनाना सामान्य प्रतिक्रिया है
[पेज 8 पर तसवीर]
अनेक विकलांग लोग उच्च कोटि के जीवन का आनंद लेते हैं