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नास्तिकों का आंदोलन

समाज में नास्तिकों का एक नया समूह उभर रहा है। इन्हें नए नास्तिक कहा जाता है और ये लोग अपने विचार अपने तक ही सीमित नहीं रखना चाहते। दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए इन्होंने एक आंदोलन चलाया है। लेखक रिचर्ड बर्नस्टाइन ने लिखा कि ये लोग पूरे “जोशो-खरोश के साथ धर्म में आस्था रखनेवाले लोगों पर अपनी बात थोपने की कोशिश कर रहे हैं और उन पर ऐसा करने की धुन सवार हो गयी है।” इनके निशाने पर वे लोग भी हैं जो परमेश्‍वर के वजूद पर शक करते हैं, क्योंकि ये नए नास्तिक हर कीमत पर अपनी बात मनवाना चाहते हैं। उनके लिए सीधी-साफ बात यह है कि परमेश्‍वर नहीं है। इसके आगे वे कुछ कहना-सुनना नहीं चाहते।

नोबल पुरस्कार विजेता स्टीवन वाइनबर्ग ने कहा कि “लोग लंबे समय से धर्म पर आस्था रखते आए हैं, जो कि एक डरावने सपने की तरह है और जिससे उन्हें जागने की ज़रूरत है। धर्म के असर को कम करने के लिए हम वैज्ञानिकों को अपना पूरा ज़ोर लगाना चाहिए और मानव समाज के लिए शायद यही हमारा सबसे बड़ा योगदान हो।” लेखों और किताबों के ज़रिए भी धर्म की पकड़ ढीली करने की कोशिश की जा रही है। और देखा गया है कि इनसे लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ी भी है, क्योंकि कुछ नए नास्तिकों की किताबें काफी मशहूर रही हैं।

धर्म ने नए नास्तिकों की लगायी आग में घी का काम किया है, क्योंकि लोग धर्म के नाम पर किए जानेवाले बुरे कामों, आतंकवाद और दुनिया में चल रहे लड़ाई-झगड़ों से तंग आ चुके हैं। एक प्रमुख नास्तिक कहता है कि “धर्म ने हर चीज़ में ज़हर घोल दिया है।” इससे बढ़कर कहा जाता है कि इस “ज़हर” में कट्टरपंथी सोच ही नहीं बल्कि सारे धार्मिक विश्‍वास भी शामिल हैं। नए नास्तिकों के मुताबिक धर्म की मूल शिक्षाओं का परदाफाश कर देना चाहिए और उन पर कतई विश्‍वास नहीं करना चाहिए, साथ ही इनकी जगह तर्क और सबूतों पर आधारित बुद्धि-भरी सोच अपनायी जानी चाहिए। सैम हैरिस जो कि एक नास्तिक है, लिखता है कि लोगों को कुरान और बाइबल में दी “जीवन को तबाह करनेवाली बड़ी-बड़ी बेवकूफियों” के बारे में खुलकर बात करने से नहीं डरना चाहिए। वह कहता है, “धर्म पर आस्था रखनेवाले लोगों की भावनाओं का ख्याल रखने के लिए अब हम अपनी बात कहने से पीछे नहीं हट सकते।”

एक ओर जहाँ नए नास्तिक, धर्म के बारे में बुरा-भला कहते हैं वहीं दूसरी ओर वे विज्ञान की बहुत इज़्ज़त करते हैं। कुछ का तो यह दावा है कि विज्ञान के मुताबिक परमेश्‍वर वजूद में है ही नहीं। पर क्या यह सच है? क्या विज्ञान इसे साबित कर सकता है? हैरिस कहता है कि “समय के गुज़रते एक पक्ष इस बहस में ज़रूर जीतेगा और दूसरे को करारी हार मिलेगी।”

आपको क्या लगता है, कौन जीतेगा? इस मामले पर गौर करते वक्‍त खुद से पूछिए: ‘क्या सृष्टिकर्ता पर विश्‍वास करने में वाकई हमारा नुकसान है? अगर सभी नास्तिक बन जाएँ, तो क्या यह दुनिया बेहतर हो जाएगी?’ आइए देखें कि नास्तिकता, धर्म और विज्ञान के विषय में कुछ जाने-माने वैज्ञानिक और तत्वज्ञानी क्या कहते हैं। (g10-E 11)

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