बाइबल क्या कहती है?
क्या बाइबल और विज्ञान में कोई तालमेल है?
“जब मैं कुछ नया खोजता हूँ और खुद से कहता हूँ, ‘यानी परमेश्वर ने यह इस तरह किया!’ तो उन पलों में मुझे अपने काम से खुशी मिलती है और इसके मायने समझ में आते हैं।” —हेनरी शेफर, रसायन विज्ञान के प्रोफेसर।
विज्ञान की मदद से हम काफी हद तक कुदरत के बारे में समझ हासिल कर पाए हैं और जान पाए हैं कि सबकुछ कितना जटिल है और इसमें कितना बेहतरीन क्रम और सटीकता है। यह देखकर कई लोगों को लगता है कि इसके पीछे ज़रूर एक बेहद बुद्धिमान और ताकतवर परमेश्वर का हाथ है। उनके हिसाब से विज्ञान न सिर्फ प्रकृति की गहरी समझ देता है बल्कि यह परमेश्वर के सोचने के तरीके को भी ज़ाहिर करता है।
इस विचार से बाइबल की कई आयतें मेल खाती हैं। रोमियों 1:20 में लिखा है: “[परमेश्वर के] अनदेखे गुण दुनिया की रचना के वक्त से साफ दिखायी देते हैं यानी यह कि उसके पास अनंत शक्ति है और सचमुच वही परमेश्वर है।” इसी तरह भजन 19:1, 2 में लिखा है: “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है।” कुदरत अजूबों से भरी है, लेकिन फिर भी यह हमारे सृष्टिकर्ता की शख्सियत के कुछ ही पहलुओं पर रौशनी डालती है।
विज्ञान कहाँ सीमित हो जाता है
विज्ञान परमेश्वर के बारे में कई सच्चाइयाँ सिखाने में नाकाम है। मिसाल के लिए, शायद एक वैज्ञानिक एक चॉकलेट केक में मौजूद हर अणु की जानकारी दे सके, लेकिन उसकी जाँच से यह नहीं पता चलेगा कि केक क्यों या किसके लिए बनाया गया है? अधिकतर लोग कहेंगे कि इन सवालों के जवाब जानना ज़्यादा ज़रूरी है और इसके लिए उस इंसान से पूछना पड़ेगा जिसने वह केक बनाया।
ऑस्ट्रिया के भौतिक विज्ञानी और नोबल पुरस्कार विजेता एरविन श्रॉडिंगर ने लिखा कि विज्ञान “काफी सारी चीज़ों के बारे में जानकारी देता है, . . . लेकिन यह उन मामलों पर चुप्पी साधे हुए है, जो हमारे दिल के करीब हैं और जिनसे वाकई हमारा वास्ता है।” उनके मुताबिक इनमें से दो मामले हैं, “परमेश्वर और अनंत समय।” उदाहरण के लिए सिर्फ परमेश्वर ही इन सवालों के जवाब दे सकता है: यह विश्व क्यों अस्तित्व में है? हमारे ग्रह पर जीवन इतनी बहुतायत में क्यों है, जिसमें बुद्धिमान प्राणी भी शामिल हैं? अगर परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, तो वह बुराई और दुख-तकलीफें क्यों रहने देता है? क्या मरने के बाद भी कोई आशा है?
क्या परमेश्वर ने इन सभी सवालों के जवाब दिए हैं? जी हाँ, बाइबल में उसने इन सवालों के जवाब दिए हैं। (2 तीमुथियुस 3:16) शायद आप पूछें, ‘मैं यह कैसे यकीन करूँ कि बाइबल वाकई परमेश्वर की तरफ से है?’ विज्ञान की नज़र से देखा जाए, तो बाइबल हमारी दुनिया के बारे में जो कुछ बताती है वह वैज्ञानिक तथ्यों से मेल खाना चाहिए, क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि परमेश्वर करे कुछ और बताए कुछ। क्या बाइबल विज्ञान से मेल खाती है? कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए।
अपने समय के विज्ञान से दो कदम आगे
जिस समय बाइबल लिखी गयी थी, तब कई लोगों का मानना था कि अलग-अलग देवता दुनिया पर राज करते हैं। और सूरज, चंद्रमा, ऋतुओं, उपज और बाकी चीज़ों पर उन्हीं का नियंत्रण है, न कि प्राकृतिक नियमों का। लेकिन सच्चे परमेश्वर के प्राचीन भविष्यवक्ता ऐसा नहीं मानते थे। वे अच्छी तरह जानते थे कि यहोवा परमेश्वर कुदरत को अपने इशारे पर चला सकता है और ऐसा उसने कुछ मौकों पर किया भी है। (यहोशू 10:12-14; 2 राजा 20:9-11) यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफर्ड, इंग्लैंड के गणित के प्रोफेसर जॉन लेनॉक्स कहते हैं कि पुराने समय के उन भविष्यवक्ताओं को “कभी यह धारणा छोड़नी नहीं पड़ी कि अलग-अलग देवता ही इस विश्व को चला रहे हैं . . . इसका आसान-सा कारण यह था कि वे कभी ऐसा विश्वास करते ही नहीं थे। इस अंधविश्वास से वे इसलिए बच पाए क्योंकि वे आकाश और धरती के सृष्टिकर्ता, एक सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करते थे।”
इस विश्वास ने कैसे उन भविष्यवक्ताओं को अंधविश्वास से दूर रखा? सच्चे परमेश्वर ने पहले ही उन पर ज़ाहिर कर दिया था कि वह इस विश्व को तय नियमों या विधियों के हिसाब से चलाता है। उदाहरण के लिए, आज से करीब 3,500 साल पहले यहोवा परमेश्वर ने अपने सेवक अय्यूब से पूछा: “क्या तू आकाशमण्डल की विधियां जानता” है? (अय्यूब 38:33) ईसा पूर्व सातवीं सदी में भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने ‘आकाश और पृथ्वी के नियमों’ के बारे में लिखा।—यिर्मयाह 33:25.
इसलिए प्राचीन समय में जो लोग बाइबल पर विश्वास करते थे, वे अच्छी तरह जानते थे कि यह विश्व सोचे-समझे नियमों के हिसाब से चलता है, न कि तुनक-मिज़ाज काल्पनिक देवताओं की मरज़ी से। इसलिए परमेश्वर का भय माननेवाले वे लोग ना तो परमेश्वर की बनायी सृष्टि जैसे सूरज, चाँद या सितारों के सामने झुकते थे और ना ही उनके मन में कभी इन चीज़ों की उपासना करने का खयाल आया। (व्यवस्थाविवरण 4:15-19) इसके बजाय, उनके लिए ये चीज़ें परमेश्वर की बुद्धि, शक्ति और दूसरे गुणों के बारे में सीखने का ज़रिया थीं।—भजन 8:3-9; नीतिवचन 3:19, 20.
आज के ज़माने के कई वैज्ञानिकों की तरह प्राचीन समय के इसराएली यह विश्वास करते थे कि इस दुनिया की एक शुरूआत है। बाइबल में उत्पत्ति 1:1 कहता है “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” इसके अलावा परमेश्वर ने अपने सेवक अय्यूब पर ज़ाहिर किया कि पृथ्वी “बिना टेक” लटकी है। (अय्यूब 26:7) और आज से लगभग 2,500 साल से पहले भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा कि धरती गोल है।—यशायाह 40:22.a
जी हाँ, प्रकृति के बारे में बाइबल जो भी बताती है वह वैज्ञानिक तथ्यों से पूरी तरह मेल खाता है। दरअसल देखा जाए तो बाइबल और विज्ञान ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और परमेश्वर को जानने में हमारी मदद करते हैं। अगर हम दोनों में से किसी एक को दरकिनार कर देंगे तो हमें परमेश्वर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलेगी।—भजन 119:105; यशायाह 40:26. (g11-E 02)
[फुटनोट]
a परमेश्वर के अस्तित्व और बाइबल कितनी सही है, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए जीवन की शुरूआत पाँच सवाल—जवाब पाना ज़रूरी ब्रोशर और बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 2 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
क्या आपने कभी सोचा है?
● सृष्टि से हम परमेश्वर के बारे में क्या सीख सकते हैं?—रोमियों 1:20.
● परमेश्वर के बारे में कौन-सी सच्चाइयाँ विज्ञान के दायरे से बाहर हैं?—2 तीमुथियुस 3:16.
● सच्चे परमेश्वर के भविष्यवक्ता क्यों सृष्टि की उपासना नहीं करते थे?—यिर्मयाह 33:25.
[पेज 19 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
विश्व तय नियमों के मुताबिक चलता है—“आकाश और पृथ्वी के नियम।”—यिर्मयाह 33:25