नौजवान पूछते हैं
मुझे सोशल नेटवर्क के बारे में क्या पता होना चाहिए?—भाग 2
नीचे दी बातें आपके लिए जितनी अहमियत रखती हैं उस क्रम से उनके आगे नंबर लिखिए।
___ मेरी निजी जानकारी
___ मेरा समय
___ मेरी नेकनामी
___ मेरे दोस्त
आपने किसके सामने 1 लिखा? ज़ाहिर है वह आपके लिए सबसे अहम है। लेकिन सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल आपकी ज़िंदगी के इन सभी अहम पहलुओं पर असर कर सकता है।
क्या आपको सोशल नेटवर्क वेब साइट पर खाता खोलना चाहिए? अगर आप अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, तो यह फैसला उन्हें करना होगा।a (नीतिवचन 6:20) बेशक, इंटरनेट के किसी भी इस्तेमाल की तरह सोशल नेटवर्क के भी अपने फायदे और नुकसान हैं इसलिए अगर वे नहीं चाहते कि आप एक खाता खोलें, तो आपको उनका फैसला मानना चाहिए।—इफिसियों 6:1.
दूसरी तरफ, अगर आपके माता-पिता आपको सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करने दें, तो आप उसके खतरों से कैसे बच सकते हैं? पिछले लेख में हमारी निजी जानकारी और समय के बारे में चर्चा की गयी थी। इस लेख में हम देखेंगे कि सोशल नेटवर्क, दोस्तों के हमारे चुनाव और हमारी नेकनामी पर क्या असर कर सकता है।
नेकनामी
नेकनामी बनाए रखने का मतलब है, दूसरों को अपने बारे में गलत सोचने की कोई जायज़ वजह न देना। मिसाल के लिए, सोचिए कि आपके पास एक नयी गाड़ी है जिसमें एक खरोंच तक नहीं आयी है। क्या आप नहीं चाहेंगे कि वह ऐसी ही रहे? आपको कैसा लगेगा अगर आपकी लापरवाही की वजह से कोई दुर्घटना हो जाए और वह गाड़ी पूरी तरह तहस-नहस हो जाए?
कुछ इसी तरह, सोशल नेटवर्क साइट का गलत इस्तेमाल आपके नाम को मिट्टी में मिला सकता है। क्लैरा नाम की एक लड़की कहती है, “बिना सोचे-समझे डाली गयी एक तसवीर या लिखा गया कोई कमेंट आपको बदनाम कर सकता है।” आइए देखें कि नीचे दी गयी बातों का आपके नाम पर क्या असर पड़ सकता है।
● आपकी तसवीरें। प्रेषित पतरस ने लिखा: “दुनिया के लोगों के बीच तुम बढ़िया चालचलन बनाए रखो।” (1 पतरस 2:12) सोशल नेटवर्क पर लोग जिस तरह की तसवीरें लगाते हैं उसके बारे में आप क्या सोचते हैं?
“कई बार ऐसा हुआ है कि जिस इंसान की मैं बहुत इज़्ज़त करती हूँ, उसने ऐसी तसवीर लगायी होती है जिसे देखकर लगता है कि उसने बहुत पी रखी है।”—अनीता, 19 साल।
“मैं कुछ लड़कियों को जानती हूँ जो अपने पेज पर ऐसे फोटो लगाती हैं जिससे उनके शरीर पर ज़्यादा ध्यान जाए। सोशल नेटवर्क पेज पर उनकी तसवीरें वैसी बिलकुल नहीं लगतीं, जैसी वे हकीकत में दिखती हैं।”—क्लैरा, 19 साल।
अगर कोई वेब साइट पर अपनी फोटो में (1) छोटे या तंग कपड़े पहने हुए है या (2) शराब के नशे में धुत्त मालूम होता है, तो आप उसके बारे में क्या सोचेंगे?
1 ․․․․․
2 ․․․․․
● आपके कमेंट। इफिसियों 4:29 कहता है, “कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले।” कई लोगों ने पाया है कि सोशल नेटवर्क वेब साइटों पर लोग अकसर गंदे शब्द इस्तेमाल करने लगते हैं, दूसरों के बारे में गलत बातें कहते हैं या अनैतिक विषयों के बार में बातचीत करते हैं।
“सोशल नेटवर्क वेब साइट पर लोग कम झिझक महसूस करते हैं। शायद वे कुछ ऐसे शब्द आसानी से कंप्यूटर पर टाइप कर दें, जिन्हें वैसै तो वे ज़ुबान पर लाने से भी कतराएँ। शायद आप गाली न दें, लेकिन आप बातों-ही-बातों में अपनी हदें पार कर दें, इश्कबाज़ी पर उतर आएँ, यहाँ तक की अश्लील बातचीत भी करने लगें।”—दीपिका, 19 साल।
आपकी राय में लोग कंप्यूटर पर बातचीत करते वक्त कम झिझक क्यों महसूस करते हैं?
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क्या इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि आप अपने वेब पेज पर कैसी तसवीरें लगाते हैं या कैसे कमेंट लिखते हैं? बेशक! जैनी नाम की एक किशोर लड़की कहती है, ‘स्कूल में इस विषय पर काफी बातचीत की जाती है। हमने इस बारे में भी चर्चा की है कि किस तरह नौकरी पर रखने से पहले कंपनियाँ एक व्यक्ति के बारे में जानने के लिए उसका सोशल नेटवर्क पेज भी देखती हैं।’
फेसबुक फॉर पेरंट्स नाम की किताब में डॉक्टर बी. जे. फॉग बताते हैं कि लोगों को नौकरी पर रखने से पहले वे बिलकुल ऐसा ही करते हैं। वे कहते हैं, ‘मैं किसी को नौकरी पर रखने से पहले उसके बारे में जाँच-पड़ताल करना अपना फर्ज़ समझता हूँ। अगर मैं उसका प्रोफाइल देख पाता हूँ और उसमें मुझे कुछ बेतुका नज़र आता है तो मैं उसे नौकरी पर नहीं रखता। क्यों? क्योंकि मैं सिर्फ समझदार लोगों को काम पर रखता हूँ।’
अगर आप एक मसीही हैं, तो आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आपके पेज पर जो कुछ है उसका दूसरों पर क्या असर होगा, फिर चाहे वे मसीही हों या नहीं। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हम किसी भी तरह से ठोकर खाने की कोई वजह नहीं देते।”—2 कुरिंथियों 6:3; 1 पतरस 3:16.
आप क्या कर सकते हैं
अगर आपके माता-पिता आपको सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करने देते हैं, तो वेब साइट पर लगी अपनी तसवीरों पर दोबारा नज़र डालिए और खुद से पूछिए: ‘ये तसवीरें मेरे बारे में क्या कहती हैं? क्या मैं चाहता हूँ कि लोग मेरे बारे में ऐसी ही राय रखें? अगर मेरे माँ-बाप, मसीही प्राचीन या जो मुझे नौकरी पर रखने की सोच रहे हैं, वे उन तसवीरों को देख लें, तो क्या मैं शर्मिंदा महसूस करूँगा?’ अगर आप इस आखिरी सवाल का जवाब हाँ में देते हैं, तो बदलाव कीजिए। इक्कीस साल की कीर्ती ने यही किया। वह कहती है, “एक मसीही प्राचीन ने मेरे प्रोफाइल में दी तसवीर के बारे में मुझे सलाह दी और मैं इसके लिए उनका बहुत एहसान मानती हूँ। मैं जानती हूँ कि उन्हें मेरी फिक्र है और वे नहीं चाहते कि मेरा नाम खराब हो।”
इसके अलावा, खुद आपने और दूसरों ने आपके पेज पर जो कमेंट लिखे हैं, उनकी ध्यान से जाँच कीजिए। “बेवकूफी की बातें” और “अश्लील मज़ाक” को बिलकुल बर्दाश्त मत कीजिए। (इफिसियों 5:3, 4) उन्नीस साल की जैनी कहती है, ‘कभी–कभार लोग गंदे या दोहरे मतलबवाले शब्द लिखते हैं। वे आपके शब्द नहीं होते, लेकिन आप बदनाम होते हैं क्योंकि वे आपके पेज पर होते हैं।’
जब आप अपने पेज पर तसवीरें या विचार डालते हैं तो अपनी नेकनामी बनाए रखने के लिए आप क्या कदम उठाएँगे?
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दोस्तों का चुनाव
अगर आपके पास एक नयी गाड़ी होती, तो क्या आप किसी को भी उसमें बिठा लेते? नहीं ना? उसी तरह, अगर आपके माता-पिता ने आपको सोशल नेटवर्क का खाता खोलने दिया है, तो आपको सोच-समझकर फैसला करना चाहिए कि आप किसे दोस्त बनने का न्यौता देंगे और किसका न्यौता कबूल करेंगे। आप यह कैसे तय कर सकते हैं?
“कुछ लोगों का एक ही मकसद होता है, ज़्यादा-से-ज़्यादा दोस्त बनाना। वे मानते हैं कि जितने ज़्यादा दोस्त बनें उतना ही अच्छा है। इस चक्कर में शायद वे ऐसे लोगों को भी अपनी ‘लिस्ट’ में शामिल कर लें जिन्हें वे जानते तक नहीं।”—नायीशा, 16 साल।
“सोशल नेटवर्क की मदद से आप अपने पुराने साथियों से फिर संपर्क कर सकते हैं। पर शायद ये ऐसे लोग हों जिनसे दोस्ती ना करना ही बेहतर है।”—हैलन, 25 साल।
आप क्या कर सकते हैं
सुझाव: जाँच करके काट-छाँट कीजिए। अपने दोस्तों की सूची देखिए और ज़रूरत के मुताबिक फेरबदल कीजिए। हर दोस्त के बारे में खुद से पूछिए:
1. ‘मैं इसे असल ज़िंदगी में कितनी अच्छी तरह जानता हूँ?’
2. ‘यह व्यक्ति कैसी तसवीरें लगाता है और किस तरह के कमेंट लिखता है?’
3. ‘क्या इस दोस्त से मैं अच्छी बातें सीख सकता हूँ?’
“मैं अकसर हर महीने अपने ‘दोस्तों की लिस्ट’ जाँचती हूँ। अगर उसमें कोई ऐसा है जो मुझे ठीक नहीं लगता या जिसे मैं अच्छी तरह नहीं जानती, तो मैं उसका नाम ‘लिस्ट’ से निकाल देती हूँ।”—वनीता, 17 साल।
सुझाव: ‘दोस्त बनाने की नीति’ तय कीजिए। यह तय कीजिए कि आप किस तरह के लोगों को दोस्त बनने का न्यौता भेजेंगे और किसके दोस्त बनने का न्यौता कबूल करेंगे, ठीक जैसे आप असल ज़िंदगी में करते हैं। (1 कुरिंथियों 15:33) मिसाल के लिए, लवीना नाम की एक नौजवान कहती है: “मेरी नीति यह है: अगर मैं आपको नहीं जानती तो मैं आपकी दोस्त बनने का न्यौता कबूल नहीं करूँगी। अगर मैं आपके पेज पर कुछ ऐसा देखती हूँ जो मुझे पसंद नहीं आता, तो मैं अपने दोस्तों की ‘लिस्ट’ से आपका नाम हटा दूँगी और दोबारा आपकी दोस्त बनने का न्यौता कभी कबूल नहीं करूँगी।” दूसरों ने भी इसी तरह की नीतियाँ बनायी हैं।
“मैं किसी भी ऐरे-गैरे को अपना ‘दोस्त’ नहीं बना लेती। ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है।”—आरुषी, 21 साल।
“मेरे स्कूल के साथियों ने मुझे नेटवर्क पर अपना दोस्त बनने का न्यौता भेजा। जब मैं स्कूल में था तो मैं इन लोगों से दूर रहने की पूरी कोशिश करता था, तो भला अब मैं उनका दोस्त क्यों बनूँगा?”—एलिक्स, 21 साल।
नीचे लिखिए कि दोस्त बनाने की आपकी नीति क्या होगी।
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(g11-E 08)
“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं
[फुटनोट]
a सजग होइए! किसी भी तरह की सोशल नेटवर्क साइट को ना तो बढ़ावा देती है, ना ही उसे गलत ठहराती है। मसीहियों को ध्यान रखना चाहिए कि वे इंटरनेट का इस्तेमाल करते वक्त बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ ना जाएँ।—1 तीमुथियुस 1:5, 19.
[पेज 18 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
बाइबल में यह कहावत है: ‘बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहने योग्य है।’—नीतिवचन 22:1.
[पेज 20 पर बक्स]
क्यों ना अपने माता-पिता से पूछें?
पिछले लेख और इस लेख को अपने माता-पिता के साथ दोबारा पढ़िए। चर्चा कीजिए कि इंटरनेट का (1) आपकी निजी जानकारी (2) आपके समय (3) आपकी नेकनामी और (4) दोस्तों के आपके चुनाव पर कैसा असर पड़ रहा है।
[पेज 21 पर बक्स]
माता-पिता ध्यान दें
शायद आपके बच्चे इंटरनेट की दुनिया के बारे में आपसे ज़्यादा जानते हों। मगर उनमें इतनी समझ नहीं होती जितनी आप में है। (नीतिवचन 1:4; 2:1-6) इंटरनेट-सुरक्षा की एक विशेषज्ञ, पेरी आफ्ताब कहती हैं: “बच्चे टेक्नॉलजी के बारे में ज़्यादा जानते हैं, लेकिन माता-पिता ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा समझ रखते हैं।”
हाल ही के कुछ सालों में सोशल नेटवर्क बहुत मशहूर हो गया है। क्या आपका बच्चा इतना समझदार है कि आप उसे सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करने दें? यह फैसला तो आपके हाथ में है। मगर यह याद रखिए कि जिस तरह गाड़ी चलाने में, क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने में या बैंक का खाता चलाने में कुछ खतरे होते हैं, ठीक उसी तरह सोशल नेटवर्क वेब साइट के भी कुछ खतरे हैं। इनमें से कुछ क्या हैं?
निजी जानकारी। बहुत-से जवान समझते नहीं कि इंटरनेट पर अपने बारे में ज़रूरत-से-ज़्यादा जानकारी देने के क्या खतरे हो सकते हैं। अगर आपके बच्चे दूसरों को यह बताएँ कि वे कहाँ रहते हैं, किस स्कूल में पढ़ते हैं या कब घर पर रहते हैं और कब नहीं, तो इससे आपके परिवार की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
आप क्या कर सकते हैं। जब आपके बच्चे छोटे थे, तो आपने उन्हें सिखाया था कि दाएँ-बाएँ देखकर ही सड़क पार करें। उसी तरह, अब उन्हें सिखाइए कि वे इंटरनेट पर कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करते वक्त अपनी निजी जानकारी को सुरक्षित रखने के बारे में पिछले लेख में जो बताया गया था, उसे पढ़िए। इसके अलावा, जनवरी-मार्च 2009 की सजग होइए! के पेज 12-17 भी देखिए। फिर अपने बच्चे के साथ इन पर चर्चा कीजिए। इस तरह इंटरनेट पर सुरक्षित रहने के लिए अपने बच्चे को “खरी बुद्धि और विवेक” हासिल करने में मदद दीजिए।—नीतिवचन 3:21.
समय। एक इंसान को सोशल नेटवर्क की लत लग सकती है। तेईस साल का रौशन कहता है, “मुझे खाता खोले बस कुछ ही दिन हुए थे और मैं हर वक्त उसी में लगा रहता था। मैं घंटों तसवीरें देखता रहता और लोगों के कमेंट पढ़ता रहता।”
आप क्या कर सकते हैं। अपने बच्चे के साथ अप्रैल-जून 2011 की सजग होइए! में छपा लेख “नौजवान पूछते हैं . . . क्या मुझे इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों की लत लग चुकी है?” पढ़िए और चर्चा कीजिए। पेज 18 पर दिए बक्स, “मुझे सोशल नेटवर्क वेब साइट की लत लग चुकी थी” पर खास ध्यान दीजिए। अपने बच्चे की मदद कीजिए ताकि वह इंटरनेट पर बिताए समय के मामले में ‘संयम बरतना’ सीखे। (1 तीमुथियुस 3:2) उसे याद दिलाइए कि इंटरनेट के अलावा भी एक ज़िंदगी है!
नेकनामी। “बालक भी अपने कामों से जाना जाता है, कि उसका चालचलन शुद्ध है, या नहीं।” (नीतिवचन 20:11, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इंटरनेट पर यह बात एकदम सच है! सोशल नेटवर्क पर दी जानकारी कोई भी पढ़ सकता है, इसलिए आपके बच्चे उस पर जो डालते या लिखते हैं, उससे सिर्फ उनके नाम पर ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के नाम पर असर पड़ता है।
आप क्या कर सकते हैं। बच्चों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि वे इंटरनेट पर जो कुछ लिखते हैं, उससे ज़ाहिर होता है कि वे असल में कैसे इंसान हैं। उन्हें यह हकीकत समझनी चाहिए कि इंटरनेट पर एक बार जो लिख दिया गया, वह हमेशा के लिए रह जाता है। डॉ. ग्वेन शुरगन ओकीफ अपनी किताब साइबरसेफ में कहती हैं, ‘बच्चे अकसर समझते ही नहीं कि इंटरनेट पर जानकारी हमेशा के लिए रह जाती है, मगर यह ज़रूरी है कि आप उन्हें यह समझाएँ। अपने बच्चों को याद दिलाइए कि वे इंटरनेट पर कभी किसी को कोई ऐसी बात न कहें, जो वे आमने-सामने किसी को नहीं कहेंगे।’
दोस्तों का चुनाव। 23 साल की तान्या कहती है, “बहुत-से बच्चे मशहूर होना चाहते हैं इसलिए वे उन लोगों की ‘दोस्ती’ का न्यौता भी कबूल कर लेते हैं जो बिलकुल अजनबी होते हैं या जिनके कोई उसूल नहीं होते।”
आप क्या कर सकते हैं। अपने बेटे या बेटी को ‘दोस्त बनाने की नीति’ तय करने में मदद दीजिए। उदाहरण के लिए, 22 साल की ऐलिस अपने दोस्तों के दोस्तों को अपनी सूची में शामिल नहीं करती। वह कहती है, “अगर मैं आपको नहीं जानती या आपसे आमने-सामने नहीं मिली हूँ, तो मैं आपको अपने दोस्तों की ‘लिस्ट’ में बस इसलिए शामिल नहीं कर लूँगी कि आप मेरे दोस्तों के दोस्त हैं।”
सुनील और जूली ने अपनी बेटी के पेज और उसके दोस्तों पर नज़र रखने के लिए, खुद अपना एक खाता खोला है। जूली कहती है, “हमने उससे कहा कि वह हमें भी अपने दोस्तों की लिस्ट में शामिल करे। इंटरनेट पर उसका लोगों से मिलना-जुलना उन्हें हमारे घर बुलाने के बराबर है। हम जानना चाहते हैं कि ये लोग कौन हैं।”
[पेज 19 पर तसवीर]
जिस तरह लापरवाही से गाड़ी चलाने पर वह तहस-नहस हो सकती है, उसी तरह इंटरनेट पर गंदी तसवीरें डालने और भद्दे कमेंट लिखने से आपका नाम बदनाम हो सकता है
[पेज 20 पर तसवीर]
क्या आप किसी अजनबी को लिफ्ट देंगे? अगर नहीं, तो फिर इंटरनेट पर किसी अजनबी को दोस्त के तौर पर क्यों कबूल करें?