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  • जब आपका बच्चा बड़ा होने लगे

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  • जब आपका बच्चा बड़ा होने लगे
  • सजग होइए!—2016
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सजग होइए!—2016
g16 अंक 2 पेज 14-15
एक पिता अपने बच्चे से बात कर रहा है

परिवार के लिए मदद | बच्चों की परवरिश

जब आपका बच्चा बड़ा होने लगे

एक पिता और उसका बेटा सड़क पर लगे एक बोर्ड देख रहे हैं, जिस पर बचपन से लेकर जवानी तक का चिन्ह लगा हुआ है

चुनौती

ऐसा लगता है कि यह कल ही की तो बात है, जब आपका नन्हा-मुन्‍ना आपकी गोदी में खेलता था। पर अब आपके सामने आपका वही बच्चा जो अब भी छोटा ही है, उम्र के ऐसे पड़ाव पर है जहाँ से वह जवानी की दहलीज़ पर कदम रखेगा, जिसे हम किशोरावस्था कह सकते हैं।

इस उम्र में आकर बच्चे परेशान हो जाते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता है कि उनके शरीर में यह कैसे बदलाव हो रहे हैं और क्यों हो रहे हैं। ऐसे में आप उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

आपको क्या मालूम होना चाहिए?

किशोरावस्था शुरू होने की कोई तय उम्र नहीं होती। यह आठ साल की उम्र में भी शुरू हो सकती है या फिर पंद्रह साल के आस-पास। बच्चों की परवरिश के बारे में लिखी गयी एक किताब बताती है, “सभी बच्चों के शरीर में बदलाव एक ही उम्र में शुरू नहीं होते।”

किशोरावस्था के दौरान मन में उथल-पुथल मचती है। किशोर बच्चे इस बारे में बहुत सोचते हैं कि लोगों का उनके रंग-रूप के बारे में क्या खयाल है। जयa नाम का लड़का कहता है, “मैं हर वक्‍त यह सोचता रहता था कि मैं कैसा दिखता हूँ और लोगों के साथ कैसे पेश आता हूँ। जब लोग मेरे आस-पास होते थे, तो मैं यह सोचता था कि कहीं उन्हें मैं अजीब तो नहीं लगता।” और अगर चेहरे पर कील-मुहाँसे आ जाएँ, तो फिर पूछो ही मत, तब तो किसी के सामने जाने की हिम्मत ही नहीं होती। सत्रह साल की कोमल कहती है, “मुझे ऐसा लगा, जैसे किसी ने मेरे चेहरे पर हमला बोल दिया हो। मुझे याद है कि मैं रोया करती थी और अपने आप को बदसूरत समझती थी।”

जो बच्चे किशोरावस्था में जल्दी कदम रखते हैं, उन्हें ज़्यादा मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। यह बात खास तौर पर लड़कियों के मामले में ठीक बैठती है। जब उनके शरीर में कुछ बदलाव होने लगते हैं जैसे छाती उभरना वगैरह, तो लोग उन्हें तंग करते हैं। माता-पिता अपने किशोर बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं, इस बारे में लिखी गयी एक किताब कहती है, “उन्हें उन लड़कों की नज़रों में भी आने का खतरा होता है, जो अब जवान हो चुके हैं।”

किशोरावस्था का मतलब यह नहीं है कि बच्चे समझदार हो गए हैं। बाइबल में लिखा है कि लड़के के मन में मूर्खता होती है। (नीतिवचन 22:15) किशोर होने पर एक लड़का या लड़की अपने-आप समझदार नहीं बन जाते। आप और आपके किशोर बच्चे (अंग्रेज़ी) नाम की किताब में लिखा है कि एक किशोर लड़का शरीर से तो बड़ा हो जाता है, लेकिन इससे “यह नहीं पता चलता कि क्या वह अच्छे फैसले करेगा, ज़िम्मेदारी से काम करेगा, खुद पर काबू रखेगा या फिर समझदारी से काम लेगा कि नहीं।”

आप क्या कर सकते हैं?

किशोरावस्था शुरू होने से पहले ही बच्चों से बात कीजिए। शरीर में होनेवाले बदलावों के बारे में अपने बच्चों को पहले से बताइए, खास तौर पर माहवारी के बारे में (लड़कियों को) और रात को सोते वक्‍त वीर्य निकलने के बारे में (लड़कों को)। हालाँकि बाकी बदलाव शरीर में धीरे-धीरे होते हैं, लेकिन ये बदलाव अचानक होते हैं। इससे बच्चे परेशान हो जाते हैं या डर जाते हैं। इन विषयों पर बातचीत के दौरान उनसे ऐसे बात कीजिए जिससे उन्हें बुरा न लगे, बल्कि वे यह समझ पाएँ कि बड़े होने के लिए ये बदलाव ज़रूरी हैं। —पवित्र शास्त्र से सलाह: भजन 139:14.

खुलकर समझाइए। जीवन नाम का लड़का कहता है, “जब मेरे माता-पिता ने मुझसे इस विषय में बात की, तो उन्होंने सीधे-सीधे नहीं, बल्कि घूमा-फिराकर की। काश, उन्होंने मुझसे इस बारे में खुलकर बात की होती!” 17 साल की अखिला कहती है, “मेरी माँ ने मुझे मेरे शरीर में हो रहे बदलावों के बारे में तो बताया, मगर काश उन्होंने मुझे यह भी समझाया होता कि मेरे मन में जो अलग-अलग खयाल आ रहे हैं, वे क्यों आ रहे हैं।” इससे हम समझ पाते हैं कि चाहे किशोरावस्था के बारे में बात करना कितना भी अटपटा क्यों न लगे, फिर भी हमें अपने बच्चे से खुलकर बात करनी चाहिए।—पवित्र शास्त्र से सलाह: प्रेषितों 20:20.

ऐसे सवाल कीजिए, जिनसे बातचीत शुरू हो सके। इस बारे में बात शुरू करने के लिए उसके दोस्तों या सहेलियों के बारे में सवाल कीजिए। जैसे आप अपनी बेटी से ये पूछ सकते हैं, “क्या आपके स्कूल में किसी लड़की ने माहवारी के बारे में आपसे बात की है?” “क्या आपके स्कूल के बच्चे उन लड़कियों का मज़ाक उड़ाते हैं, जो अब जवान लगने लगी हैं?” आप अपने बेटे से यह पूछ सकते हैं, “क्या बच्चे उन लड़कों का मज़ाक उड़ाते हैं, जो बड़े नहीं हुए हैं?” जब माता-पिता दूसरे बच्चों में हो रहे बदलावों के बारे में बात करते हैं, तो उनके अपने बच्चों के लिए खुलकर बात करना आसान हो जाता है। लेकिन जब बच्चे बात कर रहे होते हैं, तब माता-पिता पवित्र शास्त्र की इस सलाह को ध्यान में रख सकते हैं, “हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे।”—याकूब 1:19.

अपने किशोर बच्चे की बुद्धि और समझ-बूझ बढ़ाइए। (नीतिवचन 3:21) किशोरावस्था में सिर्फ शारीरिक और जज़्बाती तौर पर ही बदलाव नहीं होते। इस दौरान आपका बच्चा तर्क करना भी सीखता है, जिससे वह बड़ा होकर अच्छे फैसले कर सके। यही सही वक्‍त है, जब आप अपने बच्चे में बुद्धि और समझ-बूझ बढ़ा सकते हैं।—पवित्र शास्त्र से सलाह: इब्रानियों 5:14.

हार मत मानिए। कई बार नौजवान अपने माता-पिता से इस विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं, इसलिए समझदारी से काम लीजिए। आप और आपके किशोर बच्चे (अंग्रेज़ी) नाम की किताब कहती है, “आपका किशोर बच्चा शायद यह जताए कि वह आपकी सुन नहीं रहा, उसे इन बातों में दिलचस्पी नहीं है, या फिर मुँह बनाकर आपके सामने बैठ जाए और यह जताए कि वह बोर हो रहा है, पर असल में वह आपकी हर एक बात पर ध्यान दे रहा होता है।” ◼ (g16-E No.2)

a इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

खास आयतें

  • “तूने मुझे लाजवाब तरीके से बनाया है।”—भजन 139:14, एन.डब्ल्यू.

  • “मैं तुम्हें ऐसी कोई भी बात बताने से न चूका जो तुम्हारे फायदे की थी।”—प्रेषितों 20:20.

  • ‘बड़े अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं।’—इब्रानियों 5:14.

“जब मैं बड़ी होने लगी, तो मेरे माता-पिता ने मुझे बहुत सँभाला, खास तौर पर मेरी माँ ने। उन्होंने मुझे बड़े इत्मीनान से हर एक बात समझायी। मुझे पहले से ही पता था कि मेरे साथ क्या होगा, इसलिए जब मुझमें बदलाव हुए, तो मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ। और-तो-और मेरी माँ ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि मैं उनसे खुलकर बात कर सकूँ। इस तरह मेरे माता-पिता ने मेरे लिए इन सब बातों का सामना करना आसान बना दिया।”—16 साल की माही।

“मेरे माता-पिता ने मेरा पूरा साथ दिया। जैसे, वे जानते थे कि यह दौर मेरे लिए बहुत अजीब-सा है, इसलिए वे हर वक्‍त मुझसे पूछताछ नहीं किया करते थे, बल्कि थोड़ी देर के लिए मुझे अकेले भी छोड़ देते थे। मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी कि उन्होंने यह बात हर किसी को नहीं बतायी। उन्होंने ये सारे बदलाव होने से पहले ही मुझसे बात कर ली थी।”—18 साल की जसप्रीत।

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