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  • बच्चों को नम्र बनना सिखाइए

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  • बच्चों को नम्र बनना सिखाइए
  • सजग होइए!—2017
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सजग होइए!—2017
g17 अंक 6 पेज 8-9
एक लड़का अपनी माँ से सेवा करवा रहा है

परिवार के लिए मदद | बच्चों की परवरिश

बच्चों को नम्र बनना सिखाइए

चुनौती

  • आपका बेटा सिर्फ दस साल का है, मगर वह अपने आप को कुछ ज़्यादा ही समझता है।

  • वह चाहता है कि सब लोग उसी की मानें।

यह देखकर आप परेशान हैं। आपको यह बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा कि वह खुद को ज़रूरत से ज़्यादा समझ रहा है, पर आप यह भी नहीं चाहते कि वह खुद को बहुत कम समझे।

आप बच्चे के आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाए बिना उसे नम्र बनना कैसे सिखा सकते हैं?

एक छोटी लड़की राजकुमारी की तरह बैठी है और उसके माता-पिता उसके सामने झुक रहे हैं

आपको क्या मालूम होना चाहिए?

हाल के कुछ सालों में सलाहकारों ने माता-पिताओं को बढ़ावा दिया कि वे बच्चों की हर फरमाइश पूरी करें, उनकी खूब तारीफ करें फिर चाहे उन्होंने तारीफ के लायक कुछ न किया हो, उन्हें कभी न डाँटें, न ही सज़ा दें। माना जाता था कि अगर बच्चों को एहसास दिलाया जाए कि वे बहुत खास हैं, तो बचपन से ही उनका आत्म-सम्मान बढ़ेगा। लेकिन ऐसा करने से बच्चों पर क्या असर हुआ है? खुदगर्ज़ पीढ़ी (अँग्रेज़ी) नाम की किताब कहती है, “जब माता-पिताओं ने बच्चों का आत्म-सम्मान बढ़ाने की धुन में उनकी हर मरज़ी पूरी की, तो बच्चों की ऐसी पीढ़ी उभरकर आयी, जो हालात के हिसाब से खुद को ढालने और खुश रहने के बजाय खुदगर्ज़ थी।”

जिन बच्चों की बेवजह तारीफों के पुल बाँधे जाते हैं, वे बड़े होकर मुश्‍किलों का सामना नहीं कर पाते। अगर उन्होंने जो सोचा वह नहीं होता या कोई उन्हें उनकी गलती बताता है या वे कभी नाकाम हो जाते हैं, तो उनके लिए बरदाश्‍त करना मुश्‍किल हो जाता है। उन्हें बचपन से सिर्फ अपनी इच्छाएँ पूरी करना सिखाया जाता है, इसलिए बड़े होने पर वे दूसरों के साथ अच्छा रिश्‍ता नहीं बना पाते। ऐसे में वे निराशा या मायूसी के शिकार हो जाते हैं।

बच्चों का आत्म-सम्मान सही मायने में तब बढ़ता है जब वे मेहनत करके कुछ हासिल करते हैं, न कि उन्हें बार-बार यह कहने से कि वे सबसे खास हैं। खुद के बारे में सिर्फ यह मान बैठने से कि वे सबसे अच्छे हैं, उनका आत्म-सम्मान नहीं बढ़ेगा। उन्हें कुछ हुनर सीखना होगा और उन्हें निखारना होगा। (नीतिवचन 22:29) उन्हें दूसरों की परवाह भी करनी चाहिए। (1 कुरिंथियों 10:24) यह सब करने के लिए नम्रता ज़रूरी है।

आप क्या कर सकते हैं?

बच्चे की तारीफ तब कीजिए, जब उसने वाकई कुछ अच्छा किया हो। जैसे, अगर उसे इम्तहान में अच्छे नंबर मिले हैं, तो शाबाशी दीजिए। अगर नंबर कम आए हैं, तो फट से टीचर पर दोष मत लगाइए। ऐसा करने से आपका बच्चा नम्र बनना सीख नहीं पाएगा। इसके बजाय उसे समझाइए कि वह कैसे अच्छे नंबर ला सकता है। जब वह मेहनत करके कुछ हासिल करता है, तो ही उसकी तारीफ कीजिए।

ज़रूरत पड़ने पर गलतियाँ सुधारिए। इसका यह मतलब नहीं कि आप बच्चे की हर गलती पर उसे टोकें। (कुलुस्सियों 3:21) लेकिन अगर वह कोई बड़ी गलती करता है, तो उसे सुधारना ज़रूरी है। उसी तरह अगर किसी मामले में उसका रवैया गलत है, तो उसे सुधारना चाहिए, नहीं तो बुरी आदतें उसमें घर कर जाएँगी।

मान लीजिए, आपका बेटा खुद की बहुत बड़ाई करने लगा है। अगर आप उसे सुधारेंगे नहीं, तो हो सकता है कि वह घमंडी बन जाए और लोग उससे दूर रहने लगें। उसे समझाइए कि डींगें मारना अच्छी बात नहीं है और ऐसा करनेवालों को लोग पसंद नहीं करते। इस वजह से उसे कभी शर्मिंदा भी होना पड़ सकता है। (नीतिवचन 27:2) उसे यह भी समझाइए कि एक अच्छा इंसान खुद को न बहुत बड़ा समझता है, न छोटा और वह सबके सामने अपनी खूबियों का ढिंढोरा नहीं पीटता। अगर आप उसे प्यार से सुधारेंगे, तो उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाए बिना आप उसे नम्र बनना सिखा पाएँगे।—पवित्र शास्त्र से सलाह: मत्ती 23:12.

मुश्‍किलों का सामना करना सिखाइए। बच्चे की हर फरमाइश पूरी करने से वह यह मानने लगेगा कि उसे जो चाहिए, वह पाने का उसे हक है। अगर बच्चा आपसे कोई ऐसी चीज़ माँग रहा है जिसे खरीदने के लिए आपके पास पैसे नहीं हैं, तो उससे यह बात छिपाइए मत। उसे समझाइए कि हमारे पास जो है, उसी में हमें खुश रहना है। अगर आपने बच्चे से कहा कि आप उसे छुट्टियों में कहीं घुमाने ले जाएँगे और बाद में किसी वजह से नहीं ले जा पा रहे हैं, तो उसे शायद अच्छा न लगे। ऐसे में उसे समझाइए कि हम जो सोचते या चाहते हैं, वह हमेशा नहीं होता। फिर बताइए कि आप जो सोचते हैं जब वह नहीं होता, तो आप क्या करते हैं। उसे हर मुश्‍किल का सामना करना सिखाइए। ऐसा मत सोचिए कि बच्चे पर कभी कोई तकलीफ नहीं आनी चाहिए। जब हम बच्चों को मुश्‍किलों का सामना करना सिखाते हैं, तो बड़े होने पर वे खुद उनका सामना कर पाएँगे।—पवित्र शास्त्र से सलाह: नीतिवचन 29:21.

दूसरों की सेवा करना सिखाइए। पवित्र शास्त्र में लिखा है, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) दूसरों को देने का मतलब उनकी मदद या सेवा करना भी होता है। आप यह बात बच्चे के दिल में कैसे बिठा सकते हैं? आप उसके साथ बैठकर उन लोगों के नाम लिख सकते हैं, जिन्हें कोई मदद चाहिए। जैसे खरीदारी करने, कहीं आने-जाने या घर की मरम्मत करने में। फिर जब आप यह काम करने जाएँ, तो बच्चे को साथ लेकर जाइए। जब वह देखेगा कि दूसरों की मदद करने से आपको कितनी खुशी मिलती है, तो वह भी दूसरों की सेवा करने के लिए आगे आएगा। बच्चे को नम्रता सिखाने का इससे बढ़िया तरीका और कोई नहीं हो सकता कि आप खुद नम्र बनें।—पवित्र शास्त्र से सलाह: लूका 6:38.

ज़्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट jw.org पर जाइए और यह लेख देखिए, “मतलबी दुनिया में बच्चों को दूसरों की परवाह करना सिखाइए।”

खास आयतें

  • “जो कोई खुद को बड़ा बनाता है, उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”—मत्ती 23:12.

  • “अगर एक नौकर को बचपन से सिर पर चढ़ाया जाए, तो आगे चलकर वह एहसान-फरामोश निकलेगा।”—नीतिवचन 29:21.

  • “दिया करो।”—लूका 6:38.

दूसरों को खुद से बेहतर समझिए

पवित्र शास्त्र में लिखा है, “झगड़ालू रवैए या अहंकार की वजह से कुछ न करो, मगर नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो। और हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में न रहे, बल्कि दूसरे के भले की भी फिक्र करे।”—फिलिप्पियों 2:3, 4.

अगर एक बच्चे को इस सलाह पर चलना सिखाया जाए, तो उसे इस बात का एहसास रहेगा कि हर कोई उससे किसी-न-किसी मामले में बेहतर है। वह नम्र रहेगा और उस पर इस मतलबी दुनिया का असर नहीं होगा।

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