कुरुक्षेत्र से अरमगिदोन तक—और आपकी उत्तरजीविता
१. अनेक लोगों की स्वाभाविक इच्छा क्या होती है, परन्तु इसे प्राप्त करना क्यों कठिन है?
क्या आप उस समय सुख और शान्ति में रहना पसन्द करेंगे जब पूरी पृथ्वी पर सच्चे न्याय का पालन होगा? निःसन्देह आपका उत्तर होगा, हाँ! मानवजाति के सम्पूर्ण इतिहास में धार्मिकता के सब प्रेमियों की यही स्वाभाविक लालसा रही है। लेकिन, जब तक दुष्ट और अन्यायी मनुष्य मौजूद हैं, तब तक आपको या अन्य किसी व्यक्ति को स्थायी चित्त–शांति और आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता।
२. दुःख और अन्याय मिटाने के लिये मनुष्य ने कैसे प्रयास किया है?
२ इस कारण, यह दुःख का विषय है कि अन्याय मिटाने और धर्मी लोगों के लिए सुख-शांति स्थापित करने के मानव प्रयासों में मानव इतिहास युद्धों से कलंकित रहा है। ऐसे युद्धों में से एक युद्ध प्रत्यक्षतः प्राचीन भारत के कुरुक्षेत्र नामक मैदान में लड़ा गया था। मनुष्य की इस इच्छा के कारण कि बुराई पर परमेश्वर की भलाई की विजय हो, कुरुक्षेत्र का रणस्थल, कुछ समय बाद, भारत के प्रसिद्ध धार्मिक महाकाव्य, महाभारत के लिये, और विशेषकर उस महाकाव्य के केन्द्र, भगवद् गीता के लिये पृष्ठभूमि बना। हिन्दु लेखक के. एम. सेन लिखता है कि गीता की रचना के लिए दी गयी तिथियों में काफी भिन्नता है, जिनमें से अनेक अनुमान इसकी तिथि सा.यु.पू. ४०० और सा.यु.पू. २०० के मध्य निर्धारित करते हैं।
३–६. (क) प्रत्यक्षतः, प्राचीन भारत में ऐसा एक प्रयास क्या था? (ख) हम यह कैसे जानते हैं कि स्थायी निपटारा नहीं हुआ था?
३ बहुत से लोगों का यह विश्वास है कि जब मित्र पक्ष का नेता, अर्जुन सेनाओं का सर्वेक्षण कर रहा था तब वह स्वजनों को एक-दूसरे के विरुद्ध विपक्षी दलों में देखकर व्याकुल हो गया। अतः भगवद् गीता के अध्याय एक, श्लोक २६–२९, ४७ में लिखा है: “वहाँ दोनों सेनाओं में अर्जुन ने पिता, पितामह, आचार्य, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र और साथियों को खड़े देखा। और उनके ससुर और उनके मित्रों को भी दोनों सेनाओं में खड़े देखा। जब कुन्ती के पुत्र (अर्जुन) ने स्वजनों को इस प्रकार युद्ध के लिये सुसज्जित देखा तो वह अति करुणा से अभिभूत हुआ और दुःखी होकर कहा; हे कृष्ण, जब मैं स्वजनों को लड़ने के लिये सुसज्जित और उत्सुक देखता हूँ तो मेरे अंग शिथिल हो जाते हैं, मेरा मुंह सूख जाता है, मेरा शरीर कांपता है और मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। रणभूमि में इस प्रकार कहने के बाद, अर्जुन अपना धनुष–बाण फेंककर अपने रथ की गद्दी पर निराश होकर बैठ गया, उसकी आत्मा शोकग्रस्त हो गयी।”
४ कहा जाता है कि अर्जुन के रथ सारथी कृष्ण के रूप में, ईश्वर विष्णु ने, अर्जुन को उसके क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिये आग्रह करते हुए और इस गृह युद्ध को उचित ठहराते हुए, यह कहा: “यदि तू यह विधिसंगत युद्ध नहीं लड़ता है, तो तू अपने धर्म का पालन करने में असफल और कीर्ति से वंचित होगा और तू पाप का भागी होगा। सुख–दुःख, लाभ–हानि, जय–पराजय को समान मानकर युद्ध के लिये तैयार हो जा। तब तू पाप का भागी नहीं होगा।”—गीता २:३३, ३८.
५ बहुत से लोगों का यह विश्वास है कि यह घमासान युद्ध १८ दिन तक होता रहा और अन्ततः केवल एक महत्त्वपूर्ण प्रधान, अर्जुन अपने चार भाइयों और कृष्ण सहित जीवित बचा। अतः, वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वे जो धार्मिकता के पक्ष में थे, कुरुक्षेत्र के युद्ध में बचे और इस प्रकार न्याय की संतुष्टि हुई। इसके बाद कुछ समय तक शान्ति रही। परन्तु कब तक?
६ दुःख का विषय यह है कि आज, अन्याय और कष्ट सम्पूर्ण मानवजाति को ज़्यादा व्यापक रूप से और इतनी तीव्रता के साथ पीड़ित कर रहे हैं जितना कि पहले इतिहास में कभी नहीं हुआ। अतः यह बात स्वीकार की जानी चाहिये कि इतिहास का कोई युद्ध इस वादविषय को स्थायी रूप से नहीं निपटा पाया है जो परमेश्वर की राजसत्ता और मनुष्य की शासन पद्धतियों के मध्य है, जिसके परिणाम स्वरूप आज इतनी दुष्टता है। स्थायी शान्ति और सुरक्षा मनुष्य के हाथ अब तक नहीं आयी है। अतः सच्चे न्याय के उद्देश्य की संतुष्टि अब भी होना बाक़ी है। परन्तु कैसे?
७. स्थायी निपटारा कैसे किया जाएगा?
७ केवल उसी तरह से जैसे विश्वास किया जाता है कि कुरुक्षेत्र में कोशिश की गयी। इसके लिये एक निर्णायक युद्ध होने की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा युद्ध जो बहुत बड़े पैमाने पर हो, जिसके परिणाम वास्तव में स्थाई होंगे। तथापि, इसके लिये एक ऐसा युद्ध आवश्यक है जिसमें धर्मी उत्तरजीवी मानवजाति के बचाव को सुनिश्चित करेंगे। इसी प्रकार के युद्ध की भविष्यवाणी की गई है और लाखों व्यक्ति यह अपेक्षा करते हैं कि वह किसी भी समय छिड़ सकता है। इस प्रकार के युद्ध के लिये मानवजाति के बीच परिस्थितियाँ बिलकुल सही हैं। अतः बाइबल प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६ में यह कहती है: “ये चिन्ह दिखानेवाली दुष्टात्मा हैं, जो सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिये जाती हैं, कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिये इकट्ठा करें। और उन्हों ने उन को उस जगह इकट्ठा किया, जो इब्रानी में हर–मगिदोन कहलाता है।”
८. अरमगिदोन क्या है, और यह कितना विस्तृत होगा?
८ बाइबल से यह बात नोट की जानी चाहिये कि सम्पूर्ण बसी हुई पृथ्वी के राजाओं की संयुक्त सेनाएं इस युद्ध में अंतर्ग्रस्त होंगी और इस प्रकार यह एक विश्वव्यापी, संसारव्याप्त युद्ध होगा। अतः हर–मगिदोन या अरमगिदोन का स्थान कोई स्थानीय रणक्षेत्र नहीं है जैसे कुरुक्षेत्र था। इस कारण, अरमगिदोन नाम का अर्थ लाक्षणिक है, जो एक वास्तविक स्थान को नहीं बल्कि उस क्षेत्र को सूचित करता है जहाँ मानवीय राजनेता सामूहिक रूप से परमेश्वर के, जिसका नाम यहोवा है, पवित्र हितों के विरुद्ध संघर्ष करेंगे।—भजन संहिता ८३:१८, पवित्र बाइबल।
९, १०. अरमगिदोन क्यों होना आवश्यक है, और कौन नष्ट होंगे?
९ अरमगिदोन का युद्ध सत्य और न्याय के लिये लड़ा जायेगा। परमेश्वर का एक प्राचीन मसीही-पूर्व गीत परमेश्वर के प्रमुख योद्धा के विषय में यह कहकर हमें आश्वासन देता है: “सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपने ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए!” (भजन संहिता ४५:४) जैसा कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुआ था, यहाँ भी बड़ी संख्या में कत्लेआम होगा। अरमगिदोन के युद्ध के बाद “रणभूमि” के बारे में बाइबल कहती है:
१० “पृथ्वी की छोर लों भी कोलाहल होगा, क्योंकि सब जातियों से यहोवा का मुक़द्दमा है; वह सब मनुष्यों से वादविवाद करेगा, और दुष्टों को तलवार के वश में कर देगा। सेनाओं का यहोवा यों कहता है, देखो, विपत्ति एक जाति से दूसरी जाति में फैलेगी, और बड़ी आंधी पृथ्वी की छोर से उठेगी! उस समय यहोवा के मारे हुओं की लोथें पृथ्वी की एक छोर से दूसरी छोर तक पड़ी रहेंगी। उनके लिये कोई रोने-पीटनेवाला न रहेगा, और उनकी लोथें न तो बटोरी जाएंगी और न कबरों में रखी जाएंगी; वे भूमि के ऊपर खाद की नाईं पड़ी रहेंगी।”—यिर्मयाह २५:३१-३३.
११. अरमगिदोन के युद्ध में उत्तरजीवी कौन होंगे?
११ परन्तु खुशी की बात यह है कि जैसा कुछ लोगों का विश्वास है कि कुरुक्षेत्र में हुआ था, यहाँ भी कुछ उत्तरजीवी होंगे। अरमगिदोन के युद्ध के उत्तरजीवी धर्मी व्यक्ति होंगे जो हमारे सृष्टिकर्ता द्वारा मानवजाति को जीवित बचाए रखने योग्य ठहराए गए होंगे। परंतु, ये धर्मी उत्तरजीवी इस संघर्ष में भाग नहीं लेंगे। यह कैसे संभव होगा इसको यहोवा का प्राचीन सेवक यशायाह प्रकट करता है जब वह भविष्यवाणी करता है: “हे मेरे लोगो, आओ, अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो। क्योंकि देखो, यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने के लिये अपने स्थान से चला आता है, और पृथ्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किये हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।” (यशायाह २६:२०, २१) तब स्पष्टतया, अरमगिदोन एक युद्ध होगा जो केवल मनुष्यों के मध्य ही नहीं लड़ा जायेगा, केवल एक “विश्वयुद्ध” ही नहीं होगा बल्कि यह ऐसा युद्ध होगा जिसमें परमेश्वर की अदृश्य सेनाएं भाग लेंगी।
अरमगिदोन का समय
१२, १३. कौन-सा प्रश्न बहुत समय पहले पूछा गया था, और सत्य के खोजी वास्तव में क्या जानना चाहते थे?
१२ परमेश्वर का अरमगिदोन युद्ध कब होगा? उसके समीप होने का क्या चिन्ह होगा? इससे सम्बन्धित प्रश्न सच्चे जिज्ञासुओं द्वारा बहुत पहले पूछा गया था, यह अत्यावश्यक है कि हम उस उत्तर की जांच करें जो उन्हें मिला था। उनका प्रश्न था: “हम से कह कि ये बातें कब होंगी और तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३, NW) यह वाक्यांश “रीति-व्यवस्था” यूनानी शब्द एऑन का अनुवाद है, जिसे कभी-कभी “युग” अनुवादित किया जाता है। अतः दी इम्फ़ैटिक डायग्लॉट मत्ती २४:३ का अनुवाद इस प्रकार करती है: “‘हमें बता, ये बातें कब होंगी?’ और ‘तेरी उपस्थिति और इस युग की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?’” संस्कृत बाइबल मत्ती २४:३ में शब्द एऑन का अनुवाद “युग” करती है। युग को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “संसार का एक काल” या “एक लम्बी सांसारिक समयावधि, जो संख्या में चार हैं, जिसमें तीन काल बीत चुके हैं जबकि इस समय कलि युग है जिसमें हम जी रहे हैं।” अतः मत्ती २४:३ में १९७८ की न्यू हिन्दी बाइबल युगान्त शब्द का प्रयोग करती है जिसका अर्थ है, “युग का अन्त।”
१३ इसलिये, वे सत्य के खोजी पूछ रहे थे, ‘वर्तमान युग के अन्त का चिन्ह क्या होगा?’ इसी को कुछ लोग कलि युग कहते हैं।
१४. हिन्दु परम्परा के अनुसार, इस युग के अन्त का क्या चिन्ह होता?
१४ इसके उत्तर में हिन्दु पाठ विष्णु-पुराण ने यह कहा है: “जाति, वर्ग, और पद के प्रयोग और प्रथाएँ नहीं रहेंगे . . . धन का अपव्यय ही धर्म होगा . . . राजा अपनी प्रजा की रक्षा करने के बजाय उनको लूटेंगे, और वे कर बढ़ाने के बहाने व्यापारियों का धन खींचेंगे। तब संसार के अन्तिम युग में मानवाधिकार संभ्रमित होंगे, कोई संपत्ति सुरक्षित नहीं होगी, न कोई खुशी और न कोई समृद्धि स्थायी होगी।” लेखक ए. एल. बाशम कहता है: “अनेक महाकाव्य परिच्छेदों के अनुसार कलियुग का अन्त वर्गों के संभ्रम, संस्थापित स्तरों की अस्वीकृति, समग्र धार्मिक अनुष्ठानों की समाप्ति, और निर्दयी और परदेशी राजाओं के शासन द्वारा चिन्हित है।” क्या ये विवरण हमारी इस २०वीं शताब्दी की परिस्थितियों पर कुछ-कुछ सही नहीं बैठते? नास्तिक सिद्धान्तों के प्रसार के साथ, आज आत्यंतिक और अनाध्यात्मिक प्रभाव मानव शासन को अधिकाधिक दूषित कर रहे हैं। स्थापित स्तरों को अस्वीकार किया जा रहा है जैसे-जैसे गर्भपात और समलिंगकामुकता को क़ानूनी वैधता प्राप्त हो रही है, उसी समय निर्दय आतंकवाद और नैतिक पतन विश्वव्यापी हो रहे हैं और इनका ज़ोर बढ़ता जा रहा है।
१५. क्या वर्तमान-समय की स्थितियां पारम्परिक प्रत्याशाओं को पूरा करती हैं?
१५ इसके अतिरिक्त, उद्योग और टेक्नॉलोजी मानव समाज के पारम्परिक वर्गों में गड़बड़ी उत्पन्न कर रहे हैं। औद्योगिक कारखाने, अस्पताल और चिकित्सा व्यवसाय, जन शिक्षण संस्थाएँ और आधुनिक जन परिवहन सब प्रकार के लोगों को एकसाथ ला रहे हैं, इससे समाज के चिर प्रचलित भेदभाव मिट रहे हैं। इस उद्योग-प्रमुख संसार की तेज़ रफ़्तार और अतिक्रमणों के दबाव के कारण लाखों लोगों ने अनेकों समय-व्ययी धार्मिक अनुष्ठान और रीतियों की समाप्ति को मानकर स्वीकार कर लिया है। ये स्थितियाँ तेज़ी से आ रहे वर्तमान युग के अन्त की ओर इशारा कर रही हैं। निश्चय ही कालानुक्रम ही एकमात्र निर्णायक तत्व नहीं है। बल्कि, वर्तमान मानवी व्यवस्था के पतन की दिशा में अनपलट तेज़ गति परमेश्वर द्वारा अपने अरमगिदोन युद्ध को आरम्भ करने का मुख्य कारण है!
१६. (क) बाइबल इस युग के “अन्तिम दिनों” का वर्णन कैसे करती है? (ख) पारिवारिक जीवन कैसे प्रभावित हुआ है?
१६ बाइबल के २ तीमुथियुस ३:१-५ में इस वर्तमान युग के “अन्तिम दिनों” का और उनकी पहचान करानेवाली परिस्थितियों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। जब हम इस पाठ को पढ़ते हैं तो कृपया अव्यवस्था और पारिवारिक पतन पर गौर करें। “पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना।” (तिरछे टाईप हमारे।) इस प्रकार, अन्य क्रूरताओं के अतिरिक्त स्वाभाविक पारिवारिक स्नेह से रिक्त होना और बच्चों का माता–पिता के प्रति अवज्ञाकारी होना “अन्तिम दिनों” का लक्षण है। समाज की मूल इकाई, परिवार ही जब टूट जाता है तो समुदाय पर अहितकर प्रभाव पड़ता है। अधिकार के प्रति असम्मान बढ़ता है, और अव्यवस्था में वृद्धि होती है। ईश्वरीय नियमों की उपेक्षा होती है और सम्पूर्ण परिवार अव्यवस्था के अधीन होने लगते हैं।
१७. कौन-सी परिस्थितियाँ अरमगिदोन के निकट होने को चिन्हित करती हैं?
१७ समान ढंग से गीता प्रकट करती है: “कुल छिन्नता से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं: और कुल-धर्म के नाश से सम्पूर्ण कुल अधर्म में डूबने लगता है।” (१:४०) इन्हीं परिस्थितियों से प्रत्यक्षतया कुरुक्षेत्र का युद्ध छिड़ा था। इससे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी परिस्थितियाँ हमारे समय में व्याप्त हैं और इसे वर्तमान दुष्ट रीति-व्यवस्था के “अंतिम दिनों” के रूप में चिन्हित करती हैं। ये अरमगिदोन की निकटता का चिन्ह हैं। धार्मिकता के प्रेमी आज इस ईश्वरीय हस्तक्षेप का स्वागत करेंगे, जो दुष्टों का अन्त करेगा और उत्तरजीवियों के लिये शांति एवं सुरक्षा लायेगा।
१८. “अन्तिम दिनों” के सम्बन्ध में कौन-से प्रश्न उठते हैं?
१८ चूंकि ये ‘अन्तिम दिन’ हमारी इस २०वीं शताब्दी में आ गए हैं, आप शायद यह पूछ सकते हैं, वे शुरू कब हुए? इसके अतिरिक्त, ये ‘अन्तिम दिन’ कब तक जारी रहेंगे? कोई कैसे यह जाने कि अरमगिदोन हमारे ही जीवन काल में लड़ा जायेगा ताकि यदि कोई योग्य ठहरे तो जीवित बच सकता है? बाइबल के मत्ती अध्याय २४ पर अपनी चर्चा जारी रखने से हम प्रबोधन प्राप्त करते हैं। आपको यह प्रश्न याद होगा, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी, और तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?”
१९, २०. (क) ‘पीड़ाओं के आरम्भ’ के रूप में बाइबल किन घटनाओं की पूर्व सूचना देती है? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि हमारे वर्तमान युग के ‘अन्तिम दिन’ ई.स. वर्ष १९१४ में आरम्भ हुए?
१९ इसके उत्तर में, भविष्यवाणी आगे कहती है: “जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भुईंडोल होंगे। ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी। और अधर्म [अराजकता, NW] के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती २४:७, ८, १२) इस २०वीं शताब्दी के किस वर्ष को आप चुनेंगे कि वह “पीड़ाओं का आरम्भ” था? क्या यह बात सत्य नहीं है कि प्रथम विश्वयद्ध से, जो वर्ष १९१४ में शुरू हुआ, अतुलनीय पीड़ाओं की श्रंखला आरम्भ हुई और उस समय से पीड़ाओं के परिणाम और उग्रता में वृद्धि होती गयी है? पहले से कहीं अधिक, १९१४ से युद्ध लाखों लोगों के लिये दुःख, पीड़ा और मृत्यु का कारण बने हैं। यदि युद्ध से मृत्यु न हुई तो लाखों लोग खाद्य पदार्थ की न्यूनता से मरे हैं, यदि खाद्य पदार्थ की न्यूनता से नहीं तो वे भूकम्प, महामारी, अव्यवस्था और हिंसक आतंकवाद से मरे। आज, अधिकांश लोग परमेश्वर और पड़ोसी के प्रति प्रेम भूल गए हैं। मानव इतिहास में कभी इस प्रकार से लोगों के दुःख और नास्तिकता का इतना अधिक संकेंद्रण इतने अल्प समय में नहीं हुआ है!
२० निःसन्देह, १९१४ का वर्ष इतिहास में एक अति महत्त्वपूर्ण मोड़ था! हाल ही में एक समाचारपत्र के सम्पादकीय लेख में कहा गया: “संख्या में कम होते जा रहे वे लोग जो १९१४ के पूर्व की दुनिया के सुखद समय में रह चुके हैं, उनके अतिरिक्त कोई भी तब और अब के दिनों के बीच की दुःखद विषमता को नहीं समझ सकता है।” अतः, वर्तमान युग के ‘अन्तिम दिन’ ई.स. वर्ष १९१४ में आरम्भ हुए।
२१. ये ‘अन्तिम दिन’ कब तक जारी रहेंगे और क्यों अरमगिदोन का युद्ध संकटपूर्ण रूप से निकट होना चाहिये?
२१ ये ‘अन्तिम दिन’ कब तक जारी रहेंगे? बाइबल उत्तर देती है: “इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को होते देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” (मत्ती २४:३३, ३४, तिरछे टाइप हमारे।) दूसरे शब्दों में, १९१४ की पीढ़ी के लोग जो अब ‘संख्या में कम होते जा रहे हैं,’ जिन्होंने इन कष्टदायक स्थितियों का आरम्भ देखा है, उस समय भी जीवित रहेंगे जब परमेश्वर का अरमगिदोन युद्ध छिड़ेगा। अतः “अन्तिम दिनों” की समयावधि उस एक मानव पीढ़ी तक सीमित है जो १९१४ में जीवित थी। चश्मदीद गवाहों की उस पीढ़ी की आयु बढ़ती जा रही है—इस समय वे ७० और ८० वर्ष से अधिक आयु के हो चुके हैं। इस प्रकार अरमगिदोन के छिड़ने का समय अब बहुत संकटपूर्ण रूप से निकट आता जा रहा है। सारे संसार में धार्मिकता के अनेक प्रेमी आज परमेश्वर के उस अपरिहार्य युद्ध के छिड़ने के लिए तैयारी कर रहे हैं।
२२. इस सम्बन्ध में कि दुष्टों का विनाश कब होगा, बाइबल और गीता दोनों क्या सूचित करती हैं?
२२ क्या अरमगिदोन के छिड़ने के ठीक वर्ष की भविष्य सूचना देना संभव है? नहीं। सहज रूप से बाइबल कहती है: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु, केवल पिता।” (मत्ती २४:३६) और न गीता ही वह वर्ष बताती है। गीता केवल यह कहती है: “जब जब धर्म की ग्लानि और अधर्म की वृद्धि होती है, हे भरत (अर्जुन), तब मैं अवतार लेता हूँ। भले लोगों के संरक्षण और दुष्टों के विनाश के लिये और धार्मिकता की स्थापना के लिये मैं युगे–युगे अस्तित्व में आता हूँ।” (४:७, ८) इसलिये, बहुतों का विश्वास है कि जब धार्मिकता का पतन होता है और अधार्मिकता का प्रभुत्व होता है, तो परमेश्वरीय हस्तक्षेप की अपेक्षा की जानी चाहिये। वह समय अब आ गया है जब परमेश्वर दुष्टों पर अपना न्यायिक निर्णय लागू करेगा!
अरमगिदोन का ऐतिहासिक पूर्वदर्शन
२३. कौन-सी ऐतिहासिक घटना अरमगिदोन का पूर्वदर्शन प्रस्तुत करती है?
२३ अरमगिदोन में हम किस बात की प्रत्याशा करें, उसका पूर्वदर्शन हमें इतिहास से मिलता है। परमेश्वर का युद्ध जो नज़दीक आता जा रहा है, उसकी पूर्वझलक नूह के युग की बड़ी बाढ़ में थी। पूरे संसार में ९० से अधिक भिन्न कहानियां एक ऐतिहासिक विश्वव्यापी बाढ़ के विषय में प्रचलित हैं। हिन्दुओं में इसे जलप्रलय कहा जाता है। जल का अर्थ है “पानी” और प्रलय “समाप्ति” को सूचित करता है—अर्थात् “पानी द्वारा समाप्ति।” ऐसा विश्वास किया जाता है कि जलप्रलय में सब जीवित प्राणी नष्ट हो गये। लेकिन, मनु पर उसके ईश्वर की कृपादृष्टि थी और उसको एक दैवी चेतावनी मिली कि वह अपने को और सात अन्य ऋषियों को, कुल मिलाकर आठ व्यक्तियों को बचाने के लिये एक जलयान बनाये। जब उसका जलयान एक उत्तरी पर्वत पर ठहरा और बाढ़ कम हुई तो मनु इस वर्तमान युग में अपने ईश्वर के प्रति पहला बलिदान चढ़ाने के लिये बाहर निकला। मनु को मानवजाति का प्रथम विधिकर्ता भी माना जाता है। वास्तव में, अनेक हिन्दु पौराणिक कथाएँ निश्चयपूर्वक बताती हैं कि मनुष्यों की प्रत्येक क्रमिक प्रजाति के प्रजनक का नाम मनु था।
२४, २५. बाइबल में वर्णित बाढ़ और हिन्दु परम्परा के जलप्रलय के मध्य क्या समानताएं पायी जाती हैं?
२४ एक हिन्दु वृत्तान्त कहता है कि वह देवता विष्णु था जिस ने मनु को चेतावनी दी थी और उसे सुरक्षित रखा था। रूचिकर बात यह है कि नाम विष्णु उच्चारण के पहले स्वर के बिना इश–नूह है जिसका कसदी भाषा में अर्थ है “मनुष्य नूह” या “विश्रान्त मनुष्य।” हिन्दु परम्परा के अनुसार विष्णु शेष नामक कुंडलित सर्प पर विश्राम कर रहा है या सो रहा है जो एक महासागर में तैर रहा है। शेष का अर्थ है “बचा हुआ भाग,” और सुविचारित अन्वेषकों के अनुसार, शेष एक युग के अन्त पर विश्व के विनाश के बाद उसके ‘अवशेष’ को चित्रित करता है। स्पष्टतया, यह कल्प-कथा बाढ़ और सुरक्षा जहाज़ तथा उसमें सवार व्यक्तियों के बारे में बाइबल के ऐतिहासिक अभिलेख की ओर संकेत करती है।
२५ मनु ने अनेक पौराणिक व्यक्तियों का रूप लिया—अर्थात् मनु जो जलप्रलय से बचा, वर्तमान प्रजाति का प्रजनक, प्रथम विधिकर्ता, और जिसने बाढ़ के बाद सबसे पहला धार्मिक बलिदान चढ़ाया—ये सब बाइबलीय नूह के जीवन की कुछ घटनाओं का तर्कसंगत पुष्टिकरण हैं। (उत्पत्ति ६:८, १३-२२; ८:४, उत्पत्ति ८:१८–९:७; १०:३२ से तुलना कीजिये।) इसके अतिरिक्त, जलप्रलय के विषय में हिन्दु अभिलेख बाइबल के उत्प्रेरित अभिलेख के कुछ मुख्यांशों के साथ सहमत होता है, अर्थात् (१) कुछ उत्तरजीवियों के लिये आश्रय स्थान, (२) शेष सभी जीवों का जल द्वारा विश्वव्यापी विनाश, और (३) मानवजाति का वंश सुरक्षित रखा गया।
२६. (क) जलप्रलय से पहले पृथ्वी पर जो परिस्थितियाँ थीं बाइबल उनका वर्णन कैसे करती है? (ख) इतिहास की बड़ी बाढ़ और परमेश्वर के युद्ध अरमगिदोन के सम्बन्ध में कौन-सी परिस्थितियाँ समान हैं?
२६ अरमगिदोन के इस ऐतिहासिक पूर्वदर्शन के विषय में बाइबल का कथन है: “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य क पुत्र का आना भी होगा।” (मत्ती २४:३७-३९) इस प्रकार, अरमगिदोन में हमारी विश्व व्यवस्था के अन्त से सम्बन्धित कुछ परिस्थितियाँ वैसी ही होंगी जैसी प्राचीन बाढ़ के समय थीं। वे ये होंगी: (१) यह ग्रह पृथ्वी और इसका पशु-जीवन बचेगा; (२) जीवन के सामान्य नित्यक्रम में मग्न होने के कारण अधिकांश मानवजाति हमारे समय का महत्त्व पहचानने में असफल होगी; (३) अरमगिदोन के बारे में ईश्वरीय चेतावनी पर अधिकांश मानवजाति ध्यान नहीं देगी; (४) इसलिये, अधिकांश मानवजाति अरमगिदोन में नष्ट हो जायेगी; और (५) मनुष्यजाति में से बहुत ही कम लोगों पर परमेश्वर की कृपादृष्टि होगी और वे “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” से बचेंगे। (प्रकाशितवाक्य १६:१४) परिणाम स्वरूप बुद्धिमान लोगों के लिये यह अति उपयुक्त परामर्श है कि वे परमेश्वर के युद्ध और उससे बचने के विषय में इस संदेश की जांच जारी रखें।
उत्तरजीवी कौन होंगे?
२७. अरमगिदोन के युद्ध से बचने के लिये हमें किस बात की जानकारी प्राप्त करनी चाहिये?
२७ सफलता और बुद्धिमत्तापूर्ण कर्म के लिये अर्जुन को सत्य ज्ञान ग्रहण करने का परामर्श दिया गया था। गीता कहती है: “विनम्र आदर द्वारा, जांच–पड़ताल द्वारा और सेवा द्वारा उसे प्राप्त करो। बुद्धिमान पुरुष जिन्होंने सत्य को देखा है, तुझे ज्ञान में शिक्षा देंगे।” (४:३४) इससे पहले, बाइबल ने बुद्धिमता का एकमात्र रास्ता सपन्याह २:३ में व्यक्त किया: “हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के माननेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो, सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।” स्पष्ट है कि अरमगिदोन यहोवा का युद्ध है। इसलिये अरमगिदोन के उत्तरजीवी वे होंगे जो नम्रतापूर्वक यहोवा और उसकी धार्मिकता की जानकारी प्राप्त करते हैं। परन्तु यहोवा कौन है? हम उसके विषय में ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
२८. ऋग्वेद में परमेश्वर की पहचान के विषय में क्या प्रश्न उठाया गया है?
२८ इस ज्ञान की महत्ता गीता में बतायी गयी है, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं। हिन्दुओं ने धार्मिक ज्ञान को सदैव उच्च सम्मान दिया है। स्वयं वेद का अर्थ है ज्ञान। इसलिये यह दावा किया जाता है कि चार वेदों में ईश्वरीय ज्ञान पाया जाता है। हिन्दु ज्ञान का प्राचीनतम संग्रह ऋग्वेद है, और कहा जाता है कि इसके अधिकतर भाग का संकलन शायद सा.यु.पू. पहली सहस्राब्दि के पहले भाग में हुआ था। इस संकलन कार्य के अन्तिम चरणों में ऋग्वेद के कवि परमेश्वर की पहचान के बारे में सोचने लगे थे। अतः ऋग्वेद के श्लोक १०, १२१ को “अज्ञात परमेश्वर के प्रति” शीर्षक दिया गया है। उसके प्रत्येक पद के अन्त में यह प्रश्न है, “कौन है वह परमेश्वर जिसको हम बलिदान अर्पित करें?” उदाहरणतः, पद ९ कहता है: “वह हमें हानि न पहुंचाये, वह जो पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है, या वह जो धर्मी है, जिसने स्वर्ग को सृष्ट किया; वह जिसने उज्जवल और शक्तिशाली जल को भी सृष्ट किया;—कौन है वह परमेश्वर जिसको हम बलिदान अर्पित करें?”
२९. परमेश्वर के विषय में कुछ प्राचीन हिन्दुओं ने क्या स्वीकार किया?
२९ ऋग्वेद के इस प्रश्न का सत्यपूर्ण उत्तर क्या है? स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता कौन है जिसको वैदिक कवि अनजाने में ईश्वरीय भक्ति देते थे? इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करते हुए सैकड़ों वर्षों की अवधि में विकसित धार्मिक चिन्तन को भगवत् गीता में इस प्रकार अभिव्यक्त किया गया है: “तू परम ब्रह्म, परम धाम, परम शोधक, अनन्तकालीन, दिव्य व्यक्ति, ईश्वरों में पहला, अजन्मा, सर्वव्यापी, ईश्वरों का परमेश्वर है।” (१०:१२, १५) अतः कुछ प्राचीन हिन्दुओं ने इस बात को स्वीकार किया कि केवल एक अनन्तकालीन, सर्वोच्च परमेश्वर है जो ईश्वरों में पहला और ईश्वरों का परमेश्वर है।
३०–३२. (क) किस वाक्यांश द्वारा एस. राधाकृष्णन् ने परमेश्वर की अनन्तता का वर्णन किया है? (ख) इस वाक्यांश द्वारा बाइबल किसकी पहचान कराती है?
३० सुप्रसिद्ध हिन्दु तत्वज्ञानी एस. राधाकृष्णन् ने ब्रह्म के अनन्त स्वरूप की व्याख्या करने का प्रयास करते हुए कहा: “हम केवल यही कह सकते हैं, ‘मैं हूँ वह मैं हूँ।’” डॉक्टर राधाकृष्णन् यहां ब्रह्म के अनन्तता के गुण का सम्बन्ध बाइबल में दी गयी परमेश्वर के नाम, यहोवा की परिभाषा से जोड़ता है जो निर्गमन ३:१३, १४ में इस प्रकार बतायी गयी है: “मूसा ने परमेश्वर से कहा, देख, जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर यह कहूँ कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझसे पूछें कि उसका नाम क्या है? तब मैं उनको क्या बताऊँ? और परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं हूँ वह मैं हूँ: और उसने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना कि जिसका नाम मैं हूँ उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।”—ऑथोराइज़्ड वर्शन।
३१ अधिक यथार्थ, आधुनिक अंग्रेजी भाषा में न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ़ द होली स्क्रिप्चर्स निर्गमन ३:१४, १५ का अनुवाद इस प्रकार करती है: “इस पर परमेश्वर ने मूसा से कहा: ‘मैं जो साबित होऊँगा वह मैं साबित होऊँगा।’ और उसने आगे कहा: ‘तुझे इस्राएल के पुत्रों को यह कहना है, “मैं जो साबित होऊँगा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।”’ तब एक बार फिर परमेश्वर ने मूसा से कहा:
३२ “‘तुझे इस्राएल के पुत्रों को यह कहना है, “तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर, इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।” अनन्त काल के लिये यही मेरा नाम है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी मेरा स्मरण इसी से होगा।’”
३३. कौन-से गुण यहोवा परमेश्वर के लिये प्रयुक्त हुए हैं?
३३ अतः ऐसा प्रतीत होता है कि डॉक्टर राधाकृष्णन् ने अनन्त ब्रह्म का वर्णन करने के लिए “मैं हूँ वह मैं हूँ” वाक्यांश का प्रयोग करते समय परम ब्रह्म को बाइबल के यहोवा परमेश्वर के बराबर बताने का प्रयास किया है। यह सच है कि जो गुण ब्रह्म के लिये बताये गये हैं उन में से कुछ वही हैं जो बाइबल में यहोवा परमेश्वर के लिये प्रयुक्त हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, गीता में ‘ईश्वरों के परमेश्वर’ के रूप में “ब्रह्म” का उल्लेख, जो माना जाता है कि सा.यु.पू. पांचवी और तीसरी शताब्दी के मध्य में लेखबद्ध किया गया था, उस कथन की प्रतिध्वनि है जो सा.यु.पू. १५वीं शताब्दी, अर्थात् १४७३ में बाइबल अभिलेख में लिखा गया था। यह व्यवस्थाविवरण १०:१७ में लेखबद्ध है: “क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरों का परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर है, जो किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है।”
३४. किसने आकाश और पृथ्वी को सृष्ट किया?
३४ अतः यहोवा, परमेश्वर द्वारा स्वयं को दिया हुआ नाम है। इस कारण से बाइबल सृष्टि कार्य को यहोवा परमेश्वर द्वारा किया हुआ बताती है, और कहती है: “आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृतान्त यह है जब वे उत्पन्न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया।” (उत्पत्ति २:४) अतः यहोवा, ‘आकाश और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता’ है।
३५. (क) किस परमेश्वर को हमारे पूर्वजों अर्थात् जलप्रलय के उत्तरजीवियों ने बलिदान चढ़ाया था? (ख) अतः ऋग्वेद के उस प्राचीन प्रश्न का क्या उत्तर है?
३५ वह यहोवा ही था जो प्राचीन बाढ़ लाया था और जिसने भक्तिहीन व्यक्तियों का नाश किया और आठ धर्मी व्यक्तियों को जीवित रखा। बाइबल सूचना देती है: “यहोवा ने नूह से कहा, तू अपने सारे घराने समेत जहाज़ में जा; क्योंकि मै ने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी देखा है। क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; और जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं हैं सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।” (उत्पत्ति ७:१, ४, ५) क्योंकि वर्तमान मानव वंश उन्हीं आठ धर्मी व्यक्तियों से आया है, तदनुसार हमें कृतज्ञ होना चाहिये और हमारे प्राचीन पूर्वजों के अच्छे उदाहरण का अनुकरण करना चाहिये। कृपया इस पर भी ग़ौर कीजिये कि वह यहोवा था जिसको जलप्रलय के उत्तरजीवियों ने उद्धाररूपी जहाज़ से निकलने के बाद कृतज्ञ होकर बलिदान चढ़ाया था। वृत्तान्त कहता है: ‘तब नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पायी।’ (उत्पत्ति ८:२०, २१) अतः यह है ऋग्वेद में पूछे गये प्राचीन प्रश्न: “कौन है वह परमेश्वर जिसको हम बलिदान अर्पित करें?” का सत्यपूर्ण उत्तर।
३६. (क) अरमगिदोन के युद्ध के दौरान केवल कौन बचेंगे? (ख) उन्हें इस विषय में जानकारी कैसे प्राप्त होगी?
३६ यहोवा, आकाश और पृथ्वी का परमेश्वर वह व्यक्ति है जो अरमगिदोन के युद्ध द्वारा इस दुष्ट युग का भी अन्त करेगा। वे सब जो यहोवा परमेश्वर को वास्तव में जानते हैं और जो यहोवा के नाम और उसके असाधारण व्यक्तित्व में भक्तिपूर्ण रूप से अंतर्ग्रस्त हैं, वे अरमगिदोन से बचने के बाद स्वच्छ पृथ्वी पर रहेंगे। बाइबल कहती है: “जो कोई प्रभु [यहोवा, NW] का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर जिस पर उन्हों ने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (रोमियों १०:१३-१५) यह अत्यावश्यक है कि हम स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा और मानवजाति के लिए उसके प्रेममय उद्देश्यों की जानकारी प्राप्त करें।
३७. (क) “अन्त” के आने से पहले क्या घटित होना है? (ख) यह अब कैसे पूरा हो रहा है?
३७ इसीलिये आज पूरी पृथ्वी पर यहोवा के साक्षियों द्वारा अरमगिदोन के युद्ध का चेतावनी संदेश और संभव बचाव का सुसमाचार सुनाया जा रहा है। अतः, अरमगिदोन की निकटता के चिन्ह के एक भाग के रूप में विश्वव्यापी प्रचार कार्य की भविष्यवाणी की गई थी जो इस युग के अन्त से कुछ ही समय पहले होना है। मत्ती २४:१४ में बाइबल की भविष्यवाणी यह कहती है: “और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” इस समय यहोवा के साक्षी पृथ्वी के २०० से ज़्यादा देशों और १६० से अधिक भिन्न भाषाओं में इस अति-महत्त्वपूर्ण कार्य को करने में लगे हुए हैं। और अब यह जीवन-रक्षक कार्य आपके अपने घर में पहुँच गया है!
अरमगिदोन के बाद—क्या?
३८. परम्परा के अनुसार कलियुग के बाद क्या आता है?
३८ यह सामान्य विश्वास है कि कलियुग के बाद कृतयुग आयेगा। कृतयुग को “स्वर्ण युग” बताया गया है। संसार में दुष्टता नहीं रहेगी और सारी मानवजाति केवल एक परमेश्वर की उपासना करेगी। इस युग को सतयुग, अर्थात् सत्य का युग भी बताया गया है—वह युग जिसमें असत्यता का अस्तित्व नहीं होगा।
३९. (क) उत्तरजीवियों की वह कौन-सी विशेषताएँ हैं जो नयी व्यवस्था को एक अच्छी शुरूआत देने में सहायता देंगी? (ख) विश्वव्यापी धार्मिकता कैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करेगी?
३९ अरमगिदोन के उत्तरजीवी जो नयी मानव व्यवस्था के बुनियादी सदस्य होंगे, धार्मिकता से अटूट रूप से जुड़े होंगे। अरमगिदोन ने पृथ्वी को सारी अधार्मिकता से स्वच्छ कर दिया होगा और मानवजाति को एक नयी शुरूआत मिलेगी। इसलिये परमेश्वर का वचन कहता है: “हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) परमेश्वर यहोवा अपनी बलिदान सम्बन्धी व्यवस्था के लाभ पृथ्वी के निवासियों को उनके पापों, शारीरिक और मानसिक अपूर्णताओं और अशक्तताओं से चंगा करने के लिये प्रयोग करेगा। अन्ततः, परादीस पृथ्वी पर जीवन के अधिकार को पूर्ण रूप से पुनःस्थापित किया जायेगा। फिर कभी गरीबी, महंगाई, भुखमरी, घर विहीनता, गन्दी बस्तियों में लोगों की भीड़, कुरूपकारी कुष्ठ-रोग या क्षयरोग नहीं होगा, न ही शिशु–मरण होगा और न अस्पतालों की आवश्यकता होगी। न बंधुआ बेगार और न कुली होंगे, न बेरोज़गारी होगी न भिखारी, न जाति–प्रथा और न जीवन में ऊंच नीच के अन्य भेदभाव होंगे। इसके बजाय, वहाँ ओजपूर्ण स्वास्थ्य, अनन्तकालीन युवावस्था, अच्छे भोजन की बहुतायत, संतोषप्रद काम और सुरक्षित वातावरण होगा।
४०–४२. उस नये युग में निम्न से संबंधित कैसी परिस्थितियाँ होंगी (क) भोजन? (ख) बीमारी और मृत्यु? (ग) आवास? (घ) रोज़गार? (ङ)वन्य जन्तु?
४० आप स्वयं बाइबल में भविष्यद्वक्ता यशायाह के द्वारा दिये गए हृदय को उत्साहित करनेवाले आश्वासन को पढ़िये। उसने लिखा: “सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशों के लोगों के लिये ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा; . . . और जो पर्दा सब देशों के लोगों पर पड़ा है, जो घूंघट सब अन्यजातियों पर लटका हुआ है, उसे वह इसी पवर्त पर नाश करेगा। वह मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा, और अपनी प्रजा की नामधराई सारी पृथ्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है।” “तब अन्धों की आंखें खोली जाएंगी और बहिरों के कान भी खोले जाएंगे; तब लंगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा और गूंगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे।”—यशायाह २५:६-८; ३५:५, ६.
४१ यशायाह ने यह भी लिखा: “क्योंकि देखो, मैं [यहोवा] नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूँ; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और कोई दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे। उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बालबच्चे उन से अलग न होंगे। उनके पुकारने से पहिले ही मैं उनको उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा।”—यशायाह ६५:१७, २१-२४.
४२ “भेड़िया और मेम्ना स्वयं एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाईं भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दुःख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।”—यशायाह ६५:२५.
४३, ४४. (क) हमारे मृत पूर्वजों और पुरखाओं का क्या होगा और किस माध्यम से? (ख) इन विस्मयपूर्ण आशीषों के भागी कौन होंगे?
४३ यहाँ तक कि मृतकों को भी याद किया जायेगा। सभी प्रजातियों और धर्मों के करोड़ों अनगिनत मनुष्यों को उनकी मृत्यु की नींद से उठाकर पुनर्जीवित किया जायेगा। यह पुनर्जन्म या प्राण का देहान्तरण नहीं होगा। इसकी अपेक्षा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानव देह को पुनः सृष्ट करेगा, और अपनी अचूक स्मरण शक्ति से वह उनको उनकी पिछली जीवन-शैली और व्यक्तित्व प्रदान करेगा, जिससे कि वे अपने प्रियजनों द्वारा फिर से पहचाने जा सकेंगे। कितनी खुशी होगी! पुनरुत्थित मृतकों को अनन्तकालीन ईश्वरीय उद्देश्य में पूर्ण रूप से पुनर्वास करने का अवसर प्राप्त होगा। बाइबल विश्वासपूर्वक कहती है: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका [परमेश्वर के पुत्र का] शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।”—यूहन्ना ५:२८, २९.
४४ क्या यही वे आश्चर्यजनक कार्य नहीं हैं जिनकी आप इच्छा करते हैं? क्या ये आपकी हार्दिक अभिलाषाएँ नहीं हैं? आप व्यक्तिगत रूप से इन आनन्दों और उदारताओं में भाग ले सकते हैं। ये आशीषें उन लोगों के लिये सुरक्षित हैं जो तेज़ी से निकट आ रहे अरमगिदोन के युद्ध से बचकर निकलेंगे।
४५, ४६. हम कैसे निश्चित हो सकते हैं कि ये प्रतिज्ञाएँ विश्वसनीय हैं?
४५ लेकिन क्या अरमगिदोन के पश्चात् के संसार के विषय में ये प्रतिज्ञाएँ विश्वसनीय हैं? हम कैसे निश्चित हो सकते हैं कि अरमगिदोन कोई काल्पनिक कथा नहीं है? क्योंकि प्राचीन जलप्रलय कोई काल्पनिक कथा नहीं था। मनुष्य कल्पना नहीं है। मनुष्य का रचयिता परमेश्वर कल्पना नहीं है! और हम इन प्रतिज्ञाओं के विषय में निश्चित हो सकते हैं क्योंकि परमेश्वर का झूठ बोलना असंभव है। (तीतुस १:२) जरा सोचिये! छोटे बच्चे अपने दयालु और प्रेममय माता-पिता पर क्यों विश्वास करते हैं? साधारणतया, बच्चे अपने साथियों के दबाव से अपने प्रति माता–पिता की प्रेमपूर्ण चिन्ता के बारे में शंकित नहीं हो सकते हैं। छोटे बच्चों के पास अपने माता–पिता की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है। क्या वे अपने माता–पिता द्वारा किए गए प्रबन्धों से अपने जीवन में इस स्थिति तक नहीं पहुँचे हैं? अतः, आप मनुष्यों के तत्त्वज्ञान और प्रतिज्ञाओं की विफलता तथा निराशा के कारण, मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर की प्रेमपूर्ण चिन्ता में विश्वास करने की अपनी तत्परता को नाश न होने दें। उपलब्ध प्रमाणों का परीक्षण कीजिये। इस विषय में निश्चय जान लीजिए कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में आशा रखना व्यर्थ नहीं है। मात्र यहोवा के पास अरमगिदोन का युद्ध छेड़ने और नयी रीति-व्यवस्था को बनाने के लिए ज़रूरी बुद्धि, शक्ति और इच्छा है। यहोवा सांत्वनापूर्वक यह “गारंटी” देता है:
४६ “परमेश्वर आप उनके साथ रहेगा; . . . और वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं। और जो सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा, कि ‘देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उस ने कहा, कि लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।”—प्रकाशितवाक्य २१:३-५; इब्रानियों ६:१८ से तुलना कीजिये।
४७. “समय” की कौनसी विशेषता परमेश्वर की नयी व्यवस्था के स्थायित्व को नहीं बिगाड़ेगी?
४७ परन्तु, ये भली परिस्थितियाँ कब तक बनी रहेंगी? जैसा कुछ लोग कहते हैं क्या यह सिर्फ़ एक और युग, या कालचक्र होगा? ऐसा क्यों होना चाहिये? समय चक्र में नहीं चलता। समय एक ही दिशा में बढ़ता है—आगे। समय स्वयं में एक अवयैक्तिक, अमूर्त्त शब्द है। समय उसमें हो रहे कार्यों को प्रभावित नहीं कर सकता है। एक विशेष युग में जो विशेषताएँ पायी जाती हैं वे बाह्य, चैतन्य शक्तियों द्वारा उत्पन्न होती हैं। अतः जब बुराई की सभी शक्तियों और प्रभाव का हमेशा के लिये नाश हो जायेगा, तब अनन्तकाल केवल भलाई की शक्ति से ही भरा होगा।
४८. मुख्यतः क्या बात नयी रीति-व्यवस्था की अवधि को निर्धारित करती है?
४८ तथापि, मुख्यतः यह परमेश्वर की इच्छा है न कि किसी प्रकार की सार्वत्रिक स्वचलित घड़ी, जो आनेवाली रीति-व्यवस्था की अवधि को निर्धारित करती है। अतः यदि हम वास्तव में यह जानना चाहते हैं कि ये भली परिस्थितियाँ कितने समय तक बनी रहेंगी, तो वास्तव में हम पूछ रहे हैं, ‘इस पृथ्वी और मानवजाति के लिये परमेश्वर की इच्छा क्या है?’
४९. हम केवल कहाँ से यह सीख सकते हैं कि भविष्य के लिये परमेश्वर की इच्छा क्या है? कौनसी अन्य जानकारी है जो केवल यही स्रोत हमें देता है?
४९ क्या हम इस प्रश्न का उत्तर किसी पवित्र पुस्तक में पा सकते हैं? क्या यह हमें कहीं मिल सकता है? हां, परन्तु केवल बाइबल में। केवल बाइबल में परमेश्वर उस प्रश्न का उत्तर देता है जो ऋग्वेद में पूछा गया था: “कौन है वह परमेश्वर जिसे हम बलिदान अर्पित करें?” यह बाइबल है जो हमें बताती है कि सभी वस्तुओं के सृष्टिकर्ता का नाम यहोवा है। पूरे इतिहास में परमेश्वर का मानवजाति के साथ जो व्यवहार रहा है, उसका स्पष्ट विवरण हमें केवल बाइबल में मिलता है। बाइबल ही, वह एकमात्र पवित्र पुस्तक है जो हमें सचमुच स्पष्ट चित्र देती है कि अन्तिम दिनों अर्थात् हमारे दिनों में परिस्थितियाँ कैसी होंगी। और बाइबल हमें समझाती है कि भविष्य के विषय में परमेश्वर की इच्छा क्या है।
५०. परमेश्वर की इच्छा का ज्ञान हमें भविष्य का कैसा विस्मयपूर्ण दर्शन देता है?
५० और यहोवा परमेश्वर ने जो ठाना है वह वस्तुतः विस्मयपूर्ण है। बाइबल के अनुसार, उसने ठाना है कि एक धर्मी रीति-व्यवस्था स्थापित की जायेगी जो केवल एक युग के लिये नहीं वरन् अनन्तकाल के लिये बनी रहेगी। और हममें से प्रत्येक को उस प्रबन्ध की आशीषों का आनन्द उठाने का अवसर दिया गया है। (भजन संहिता ३७:१०, ११, २७–२९) बाइबल उन व्यक्तियों के विषय में, जिनको उनके परिवारों ने परमेश्वर के प्रति निष्ठा के कारण त्याग दिया है, कहती है कि वे ‘इस समयावधि में कई गुना अधिक पाएँगे और आनेवाली रीति-व्यवस्था में’ परादीस पृथ्वी पर ‘अनन्त जीवन।’—लूका १८:२९, ३०, NW; हबक्कूक २:१४.
५१. केवल कैसे, मानवजाति सच्चे न्याय और संतोष का आनन्द लेगी?
५१ वास्तव में, उस समय से जब—पौराणिक कथा के अनुसार—कुरुक्षेत्र में एक महायुद्ध लड़ा गया था, एक लंबी अवधि बीत चुकी है। उस समयावधि के दौरान मनुष्य का सुख अनेक युद्धों के द्वारा भंग हो गया है, और अन्याय को मिटाने और शांति को स्थापित करने के लिये उसके प्रयत्न अधिकांशतः विफल हुए हैं। दुख की बात है कि स्थायी सुख और शान्ति मानव प्रयासों से नहीं प्राप्त हुए हैं। क्यों? इसलिये कि ऐसी आशीषें यहोवा परमेश्वर के उस परामर्श का अनुसरण करने से मिलती हैं जो अद्वितीय पुस्तक अर्थात् पवित्र बाइबल में पाया जाता है। अतः अब आप क्या करेंगे?
५२. अभी क्या करने से आप शायद यहोवा के अरमगिदोन युद्ध के दिन शरण पाएँ?
५२ क्या आप ‘यहोवा की खोज’ करने और ‘धार्मिकता और नम्रता की खोज’ करने’ के ईश्वरीय निमंत्रण को स्वीकार करेंगे? यदि आप करते हैं तो ‘सम्भव है कि आप यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाएं।’ यह हमारी प्रार्थना है कि आप इसे स्वीकार करें और “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के महान दिन की लड़ाई”—अरमगिदोन—से बचने वाले प्रसन्न लोगों के मध्य हों।—सपन्याह २:३; प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६.
[पेज १४ पर बक्स/तसवीर]
सब एक पीढ़ी में
१९१४
विश्वयुद्ध
हिंसात्मक अपराध
भारी अकाल
महामारियाँ
विश्वव्यापी प्रदूषण
इस व्यवस्था का अन्त
[पेज ६ पर तसवीर]
अरमगिदोन एक विश्वव्यापी युद्ध होगा जो पृथ्वी को स्वच्छ करेगा
[पेज ८ पर तसवीर]
अरमगिदोन के उत्तरजीवी जिनको हमारा सृष्टिकर्ता मानवजाति को जीवित रखने के लिये योग्य ठहराता है
[पेज १३ पर तसवीर]
अरमगिदोन के युद्ध का चिन्ह १९१४ से दिखाई दे रहा है
[पेज १८ पर तसवीर]
हिन्दु परम्परा में रक्षण का साधन शेष—उस पर विष्णु का शयन
[पेज १९ पर तसवीर]
बाइबल में वर्णित बाढ़—अरमगिदोन का पूर्वदर्शन
[पेज २५ पर तसवीर]
यहोवा के साक्षियों द्वारा विश्वव्यापी जीवन-रक्षक प्रचार कार्य इस युग के अन्त की पूर्वसूचना देता है