गीत 3
‘घर घर सुनाना’
1. हम घर घर में सुनाते हैं
यहोवा का वचन,
नगर नगर जाके “भेड़ों”
को देते हैं भोजन।
मसीही राज का संदेश
देते हैं हर कहीं,
फैलाते हैं सच्चाई
को बूढ़े, जवाँ, सभी।
2. हम घर घर में करते
ऐलान ये मुक्ति का पैग़ाम,
पाएँगे मुक्ति लेते हैं
यहोवा का जो नाम।
पर कैसे लें भला वो
नाम जिसे नहीं सुना,
सो इस पवित्र नाम को
उन तक है ले जाना।
3. है सच कि हर दरवाज़े
पे ना मानेंगे सभी,
दुत कारेंगे, मुँह मोड़ेंगे,
सुनेंगे ना कभी।
ऐसे ही थे यीशु के
दिन ना मानी उसकी बात,
पर “भेड़ें” सुन लेंगी आवाज़,
हम झिझकेंगे ना आज।
4. तो आओ चलें घर घर
में ये शुभ संदेश दें,
कि “भेड़ें” हैं या “बकरियाँ,”
वो फ़ैसला करें।
यहोवा नाम कम से कम
उन्हें बताएँगे,
और जैसे घर घर जाएँगे
हम “भेड़ें” पाएँगे।