अध्याय 38
दिलचस्पी जगानेवाली शुरूआत
भाषण की शुरूआत, उसकी जान होती है। अगर आप सचमुच अपने सुननेवालों की दिलचस्पी जगाते हैं, तो आगे की जानकारी को ध्यान से सुनने के लिए उनका मन तैयार होगा। प्रचार में, अगर आपकी बातचीत की शुरूआत से घर-मालिक की दिलचस्पी न जगी, तो आप अपनी बातचीत जारी नहीं रख पाएँगे। और अगर किंगडम हॉल में भाषण देते वक्त, आप अपने सुननेवालों का ध्यान नहीं खींच पाते हैं; वे हॉल में बैठे तो होंगे, मगर उनका ध्यान कहीं और होगा।
भाषण की शुरूआत की तैयारी करते वक्त, इन लक्ष्यों को ध्यान में रखें: (1) सुननेवालों का ध्यान खींचना, (2) विषय साफ-साफ बताना, और (3) उन्हें दिखाना कि यह विषय उनके लिए क्या अहमियत रखता है। कुछ भाषणों में, इन तीनों लक्ष्यों को लगभग एक-साथ हासिल किया जा सकता है। मगर, कभी-कभी इन पर अलग से ध्यान दिया जा सकता है और इनके क्रम में भी फर्क आ सकता है।
सुननेवालों का ध्यान कैसे खींचें। कोई भाषण सुनने के लिए लोगों के इकट्ठा होने का यह मतलब नहीं कि वे आपके विषय पर पूरा ध्यान देने के लिए तैयार हैं। ऐसा हम क्यों कहते हैं? क्योंकि उनकी ज़िंदगी में ऐसी बहुत-सी परेशानियाँ हैं जिनकी फिक्र उन्हें बार-बार सताती है। शायद वे घर की किसी समस्या या किसी चिंता को लेकर परेशान हों। इसलिए एक वक्ता होने के नाते आपके सामने चुनौती है, सुननेवालों का ध्यान खींचना और उसे बाँधे रखना। ऐसा करने के कई तरीके हैं।
दुनिया के जाने-माने भाषणों में से एक है, यीशु का पहाड़ी उपदेश। इस भाषण की शुरूआत क्या थी? लूका के वृत्तांत के मुताबिक यीशु ने कहा: “धन्य हो तुम, जो दीन हो, . . . धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो; . . . धन्य हो तुम, जो अब रोते हो, . . . धन्य हो तुम, जब . . . लोग तुम से बैर करेंगे।” (लूका 6:20-22) इससे लोगों की दिलचस्पी क्यों जागी? क्योंकि यीशु ने चंद शब्दों में ही ऐसी गंभीर समस्याओं का ज़िक्र किया जिनका सामना उसके सुननेवाले कर रहे थे। और फिर, उन समस्याओं के बारे में ज़्यादा बोलने के बजाय उसने बताया कि ऐसी समस्याओं के होते हुए भी वे लोग धन्य या खुश हो सकते हैं। उसने यह बात इस तरह कही कि सुननेवालों की दिलचस्पी जागी, और वे उसकी बातें और अधिक सुनना चाहते थे।
सवालों का अच्छा इस्तेमाल करने से भी दिलचस्पी जगायी जा सकती है, बशर्ते ये सवाल सही किस्म के हों। अगर आप ऐसे सवाल पूछेंगे जिससे सुननेवालों को पता लगेगा कि आप एक आम विषय पर बात करनेवाले हैं, तो उनकी दिलचस्पी बहुत जल्द खत्म हो जाएगी। ऐसे सवाल मत पूछिए जिससे आपके सुननेवाले शर्मिंदा महसूस करें या ऐसा लगे कि वे किसी गलत काम के लिए कसूरवार हैं। इसके बजाय, इस तरह के सवाल पूछिए जिनसे वे सोचना शुरू कर दें। हर सवाल पूछने के बाद, कुछ पल के लिए ठहरिए ताकि आपके सुननेवाले अपने मन में इसका जवाब दे पाएँ। जब उन्हें लगेगा कि वे मन-ही-मन आपके साथ सवाल-जवाब कर रहे हैं, तो उनका पूरा ध्यान आप पर होगा।
ध्यान खींचने का एक और अच्छा तरीका है, ज़िंदगी के सच्चे अनुभव सुनाना। लेकिन अगर उस अनुभव से सुननेवालों में से कोई शर्मिंदा महसूस करता है, तो इससे आप अपने मकसद तक नहीं पहुँच पाएँगे। आप अपने मकसद को हासिल करने में तब भी नाकाम होंगे, जब सुननेवालों को सबक से ज़्यादा कहानी याद रह जाए। अगर शुरूआत में आप कोई अनुभव बताते हैं, तो इससे आपके भाषण के मुख्य भाग के किसी अहम पहलू को समझने में मदद मिलनी चाहिए। अनुभव को जानदार बनाने के लिए कुछ छोटी-मोटी बातें बताना शायद ज़रूरी हो, मगर ध्यान रहे कि इनसे अनुभव बेवजह लंबा-चौड़ा न हो जाए।
कुछ भाषण देनेवाले, हाल की घटना, अखबार से लिया गया हवाला, या किसी जानी-मानी किताब या हस्ती के शब्द बताकर अपना भाषण शुरू करते हैं। अगर वे बातें विषय से मेल खाती हों और सुननेवालों के मुताबिक सही हों, तो ऐसी शुरूआत असरदार हो सकती है।
अगर आपका भाषण, किसी परिचर्चा का एक हिस्सा है या सेवा सभा का कोई भाग है, तो आम तौर पर शुरूआत को चंद शब्दों में बताकर असली मुद्दे पर आना अच्छा होगा। अगर आप जन भाषण दे रहे हैं, तो शुरूआत के हिस्से के लिए जितना समय दिया गया है, उतना ही लीजिए। यह इसलिए क्योंकि भाषण के मुख्य भाग में ज़रूरी जानकारी दी जाएगी जिससे आपके सुननेवालों को सबसे ज़्यादा फायदा होगा।
कभी-कभार आपको ऐसे लोगों के सामने बात करनी पड़ सकती है जो शक्की मिज़ाज के हैं या हमारा विरोध करते हैं। ऐसे में आप उनका ध्यान कैसे खींच सकते हैं? पहली सदी के एक मसीही, स्तिफनुस के बारे में बताया जाता है कि वह “आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण” था, और उसे ज़बरदस्ती यहूदी महासभा के सामने ले जाया गया था। वहाँ उसने मसीहियत के पक्ष में एक बेहतरीन गवाही दी। उसने शुरूआत कैसे की? बड़े आदर के साथ उसने सबसे पहले ऐसी बात कही जिस पर महासभा में मौजूद सभी लोग विश्वास करते थे। उसने कहा: “हे भाइयो, और पितरो सुनो, हमारा पिता इब्राहीम . . . जब मिसुपुतामिया में था; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया।” (प्रेरि. 6:3; 7:2) अरियुपगुस, अथेने में लोग यहूदी नहीं बल्कि दूसरी जाति के थे, इसलिए पौलुस ने उनसे बात करने के लिए अलग तरीके से शुरूआत की। उसने कहा: “हे अथेने के लोगो मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो।” (प्रेरि. 17:22) इस तरह बढ़िया शुरूआत करने का यह नतीजा निकला कि दोनों मामलों में सुननेवाले, और अधिक सुनने के लिए तैयार हो गए।
प्रचार में भी लोगों का ध्यान खींचना ज़रूरी है। अगर आप घर-मालिक से पहली बार मिल रहे हैं, तो शायद वह किसी दूसरे काम में लगा हुआ हो। दुनिया के कुछ हिस्सों में जब किसी के घर पर कोई अजनबी आता है, तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह जल्द-से-जल्द अपने आने की वजह बताए। जबकि दूसरी जगहों पर यह दस्तूर है कि अपने आने की वजह बताने से पहले दुआ-सलाम करने, घर-मालिक की खैरियत पूछने जैसे अदब-कायदे का पालन किया जाए।—लूका 10:5.
आपके इलाके में दस्तूर चाहे जो भी हो, दोस्ताना अंदाज़ में बातचीत शुरू करने से ऐसा माहौल पैदा होता है जिसमें घर-मालिक के साथ आराम से बात की जा सकती है। अच्छा होगा अगर हम अपनी बातचीत ऐसे विषयों से शुरू करें जिनके बारे में घर-मालिक सोच रहा है। मगर आप यह कैसे पता कर सकते हैं कि किस विषय पर बातचीत शुरू करें? जब आप घर-मालिक के पास गए, तो क्या वह कोई काम कर रहा था? शायद वह खेत में काम कर रहा था, घर के आस-पास की ज़मीन की देखरेख कर रहा था, गाड़ी की मरम्मत कर रहा था, खाना बना रहा था, कपड़े धो रहा था या फिर बच्चों को सँभाल रहा था। क्या वह कुछ देख रहा था जैसे अखबार में कोई खबर या रास्ते पर होनेवाली हलचल? क्या उसके आस-पास के माहौल से पता लगता है कि उसे खेलकूद, संगीत, मछली पकड़ने, सफर करने का शौक है या कंप्यूटर के क्षेत्र में या किसी और क्षेत्र में दिलचस्पी है? लोग अकसर टी.वी. की खबरों में जो देखते हैं या रेडियो पर जो सुनते हैं, उससे चिंतित रहते हैं। इनमें से किसी भी बात पर सवाल पूछने या कुछ कहने से दोस्ताना बातचीत शुरू की जा सकती है।
किसी को गवाही देने के लिए बातचीत कैसे शुरू करें, इसकी एक उम्दा मिसाल यीशु ने दी जब उसने सूखार नगर के पास एक कुएँ पर सामरी स्त्री से बातचीत शुरू की।—यूह. 4:5-26.
गवाही देते वक्त आप शुरूआत में क्या कहेंगे, इस पर आपको खास ध्यान देने की ज़रूरत है, खासकर अगर आपकी कलीसिया ऐसे इलाके में काम कर रही है, जहाँ कई बार प्रचार किया जा चुका है। अगर आप तैयारी न करें, तो आप शायद गवाही भी नहीं दे पाएँगे।
अपना विषय साफ-साफ बताइए। आम तौर पर मसीही कलीसिया में चैयरमैन या आपसे पहले भाग पेश करनेवाला भाई आपके भाषण का शीर्षक बताता है और आपको स्टेज पर बुलाता है। फिर भी, अपने भाषण की शुरूआत में सुननेवालों को फिर से अपना विषय बताना फायदेमंद हो सकता है। आप चाहे तो विषय को शब्द-ब-शब्द दोहरा सकते हैं, या दूसरे शब्दों में बता सकते है। आप चाहे जो भी तरीका अपनाएँ, जैसे-जैसे आप अपना भाषण देते हैं, शीर्षक खुलकर समझ आना चाहिए। किसी-न-किसी तरीके से भाषण की शुरूआत में ही आपको सुननेवालों का ध्यान अपने विषय पर दिलाना चाहिए।
जब यीशु ने अपने चेलों को प्रचार करने के लिए भेजा, तो उसने उन्हें साफ-साफ बताया था कि उन्हें क्या संदेश सुनाना है। उसने कहा: “चलते चलते प्रचार कर कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” (मत्ती 10:7) हमारे दिनों के बारे में यीशु ने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा।” (मत्ती 24:14) हमें ‘वचन का प्रचार करते’ यानी गवाही देते वक्त बाइबल का इस्तेमाल करने के लिए उकसाया जाता है। (2 तीमु. 4:2) लेकिन, बाइबल खोलकर पढ़ने से पहले या राज्य की तरफ ध्यान दिलाने से पहले अकसर किसी ऐसे मसले का ज़िक्र करना ज़रूरी होता है जिसकी वजह से लोग फिलहाल परेशान हैं। आप अपराध, बेरोज़गारी, अन्याय, युद्ध, नौजवानों की मदद कैसे करें, बीमारी या मौत के बारे में एक-दो बातें कह सकते हैं। मगर ऐसी निराश कर देनेवाली बातों पर चर्चा करने में ज़्यादा वक्त मत बिताइए, क्योंकि आप लोगों को खुशी की खबर सुना रहे हैं। बातचीत के दौरान परमेश्वर के वचन और राज्य की आशा की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश कीजिए।
सुननेवालों को दिखाइए कि आपका विषय उनके लिए क्यों अहमियत रखता है। अगर आप कलीसिया में भाषण दे रहे हैं, तो आप इस बात का यकीन रख सकते हैं कि सुननेवाले आपके भाषण में दिलचस्पी लेंगे। मगर, क्या वे उस इंसान की तरह सुनेंगे जिसे पता है कि वह जो सीख रहा है, वह खास तौर पर उसी के लिए है? क्या सुननेवाले इसलिए ध्यान देंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि वे जो सुन रहे हैं, वह उनके हाल पर बिलकुल ठीक बैठता है, साथ ही कि आप उनके अंदर इस बारे में कुछ करने की इच्छा जगा रहे हैं? ऐसा तभी होगा जब भाषण तैयार करते वक्त, आप सुननेवालों के हालात, उनकी चिंताओं और उनके रवैए पर ध्यान देंगे। अगर आपने इस पर ध्यान दिया है, तो अपने भाषण की शुरूआत में कुछ ऐसा कहिए जिससे यह पता लगे।
आप चाहे स्टेज से भाषण दे रहे हों या किसी एक इंसान को गवाही दे रहे हों, किसी विषय पर दिलचस्पी जगाने का सबसे बेहतरीन तरीका है, सुननेवालों को बातचीत में शामिल करना। उन्हें दिखाइए कि आप जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं, उसका उनकी समस्याओं, ज़रूरतों या उनके मन में उठनेवाले सवालों से क्या ताल्लुक है। अगर आप साफ-साफ कहें कि आप किसी विषय के आम पहलुओं पर नहीं बल्कि कुछ खास पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं, तो वे आपकी बात और भी ध्यान से सुनेंगे। इसके लिए आपको अच्छी तैयारी करनी होगी।
पेश करने का तरीका। हालाँकि यह सच है कि आप अपनी शुरूआत में क्या कहते हैं, वह ज़्यादा मायने रखता है, मगर आप उसे कैसे कहते हैं, इससे भी दिलचस्पी जगाने में मदद मिलती है। इसलिए भाषण की शुरूआत की तैयारी करते वक्त, न सिर्फ आपको यह देखना है कि आप क्या बोलेंगे बल्कि यह भी देखना है कि आप इसे कैसे बोलेंगे।
अपने लक्ष्य को हासिल करने लिए सही शब्द चुनना ज़रूरी है। इसलिए अच्छा होगा कि आप अपने भाषण के पहले एक-दो वाक्यों को काफी सोच-समझकर तैयार करें। अकसर छोटे और सरल वाक्य सबसे बेहतर होते हैं। कलीसिया में भाषण देने के लिए आप चाहें तो इन वाक्यों को अपने नोट्स् में लिख सकते हैं या फिर उन्हें मुँह-ज़बानी याद कर सकते हैं ताकि आपके भाषण की शुरूआत ज़बरदस्त और बढ़िया हो। भाषण की शुरूआत, बिना हड़बड़ाए और बढ़िया तरीके से करने से आप पूरा भाषण शांत रहकर दे पाएँगे।
शुरूआत कब तैयार करें। इस बात पर लोगों की अपनी-अपनी राय है। कुछ तजुर्बेकार वक्ताओं का कहना है कि भाषण में सबसे पहले उसकी शुरूआत तैयार करनी चाहिए। जबकि दूसरों का कहना है कि मुख्य भाग तैयार हो जाने के बाद, शुरूआत की तैयारी की जानी चाहिए।
आपको शुरूआत में ठीक-ठीक क्या कहना चाहिए, यह तय करने के लिए आपको यह जानना होगा कि आपका विषय क्या है और आप किन मुख्य मुद्दों को समझाना चाहते हैं। लेकिन अगर आपको एक बनी-बनायी आउटलाइन से भाषण तैयार करना है, तो आप क्या करेंगे? आउटलाइन पढ़ने के बाद, अगर आपके दिमाग में शुरूआत करने के बारे में कुछ विचार आते हैं, तो उन्हें लिख लेने में कोई हर्ज़ नहीं। यह बात भी याद रखिएगा कि अपने भाषण की शुरूआत को असरदार बनाने के लिए ज़रूरी है कि आप न सिर्फ अपने सुननेवालों को ध्यान में रखें बल्कि यह भी याद रखें कि आउटलाइन में क्या जानकारी दी गयी है।