वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • bt अध्या. 15 पेज 117-123
  • ‘वे मंडलियों को मज़बूत करते गए’

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • ‘वे मंडलियों को मज़बूत करते गए’
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • ‘चलो, हम उन शहरों में दोबारा जाएँ और भाइयों को देख आएँ’ (प्रेषि. 15:36)
  • “ज़बरदस्त तकरार हुई” (प्रेषि. 15:37-41)
  • मंडली के भाई, ‘तीमुथियुस की बहुत तारीफ करते हैं’ (प्रेषि. 16:1-3)
  • “मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया” (प्रेषि. 16:4, 5)
  • तीमुथियुस—सेवा करने के लिए तैयार
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2008
  • मरकुस ‘सेवा के लिए बहुत काम का’
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2010
  • तीमुथियुस—“विश्‍वास में . . . सच्चा पुत्र”
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
  • बरनबास—“शान्ति का पुत्र”
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
और देखिए
‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 15 पेज 117-123

अध्याय 15

‘वे मंडलियों को मज़बूत करते गए’

सफरी निगरानों की मदद से मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता है

प्रेषितों 15:36–16:5 पर आधारित

1-3. (क) पौलुस का नया साथी कौन है? उसके बारे में थोड़ा बताइए। (ख) इस अध्याय में हम क्या सीखेंगे?

प्रेषित पौलुस एक ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चल रहा है। बीच-बीच में वह अपने साथ चल रहे एक नौजवान को देखता है। उसका नाम तीमुथियुस है। वह करीब 20 साल का है और उसमें बहुत जोश है। तीमुथियुस पहली बार मिशनरी सफर पर निकला है और उसका हर कदम उसे अपने घर से दूर ले जा रहा है। जैसे-जैसे दिन ढल रहा है, लुस्त्रा और इकुनियुम शहर कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। इस सफर पर उनके साथ क्या-क्या होगा? पौलुस को थोड़ा-बहुत अंदाज़ा है क्योंकि यह उसका दूसरा मिशनरी दौरा है। वह जानता है कि कदम-कदम पर उन्हें खतरों और मुश्‍किलों का सामना करना होगा। शायद वह सोच रहा है कि क्या तीमुथियुस इन मुश्‍किलों का सामना कर पाएगा।

2 तीमुथियुस खुद को इस ज़िम्मेदारी के काबिल नहीं समझता मगर पौलुस को उस पर पूरा भरोसा है। अभी उन्हें मंडलियों का दौरा करना है और भाई-बहनों को मज़बूत करना है। उन्हें यह काम दिल लगाकर करना है और एक जैसी सोच रखनी है। पौलुस जानता है कि इस काम के लिए सही साथी का होना बहुत ज़रूरी है। क्यों? शायद एक वजह यह है कि कुछ वक्‍त पहले पौलुस और बरनबास के बीच तकरार हो गयी थी और वे एक-दूसरे से अलग हो गए थे।

3 इस अध्याय में हम सीखेंगे कि जब भाई-बहनों के साथ कुछ मन-मुटाव होता है तो हमें क्या करना चाहिए। हम यह भी जानेंगे कि पौलुस ने क्यों तीमुथियुस को अपना साथी चुना। और हम आज के सर्किट निगरानों की ज़िम्मेदारियों के बारे में भी ज़्यादा जानेंगे।

‘चलो, हम उन शहरों में दोबारा जाएँ और भाइयों को देख आएँ’ (प्रेषि. 15:36)

4. पौलुस किन वजहों से भाई-बहनों से दोबारा मिलना चाहता है?

4 पिछले अध्याय में हमने देखा कि पौलुस, बरनबास, यहूदा और सीलास अंताकिया की मंडली में आते हैं। वे खतने के मसले पर उन्हें शासी निकाय का फैसला सुनाते हैं और उन्हें मज़बूत करते हैं। इसके बाद पौलुस क्या करता है? वह बरनबास को अगले सफर की योजना बताता है, “चलो, हम उन सभी शहरों में दोबारा जाएँ जहाँ हमने यहोवा का वचन सुनाया था और देख आएँ कि वहाँ के भाई कैसे हैं।” (प्रेषि. 15:36) पौलुस यह नहीं कह रहा था कि वे जाकर उन नए मसीहियों का बस हाल-चाल पूछें। प्रेषितों की किताब साफ बताती है कि उसके मिलने की दो खास वजह थीं। पहली, शासी निकाय के आदेश मंडलियों तक पहुँचाना। (प्रेषि. 16:4) दूसरी, सफरी निगरान के नाते मंडली के भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना और उनका विश्‍वास मज़बूत करना। (रोमि. 1:11, 12) प्रेषितों की तरह आज यहोवा का संगठन क्या करता है?

5. आज शासी निकाय किस तरह मंडलियों को निर्देश देता है और उनका हौसला बढ़ाता है?

5 यीशु आज शासी निकाय के ज़रिए सभी मंडलियों का मार्गदर्शन कर रहा है। शासी निकाय के अभिषिक्‍त भाई चिट्ठियों, सभाओं, किताबों-पत्रिकाओं, ऑनलाइन प्रकाशनों और दूसरे तरीकों से मंडलियों को निर्देश देते हैं और उनका हौसला बढ़ाते हैं। यह निकाय हर मंडली को भी अच्छी तरह जानना चाहता है। इसलिए उन्होंने सर्किट निगरानों का इंतज़ाम किया है। शासी निकाय ने दुनिया-भर में हज़ारों काबिल प्राचीनों को सर्किट निगरान ठहराया है।

6, 7. सर्किट निगरान क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं?

6 जब सर्किट निगरान मंडलियों का दौरा करते हैं तो वे सभी भाई-बहनों को जानने की कोशिश करते हैं और उनका विश्‍वास बढ़ाते हैं। वे यह कैसे करते हैं? वे पौलुस जैसे सफरी निगरानों के नक्शे-कदम पर चलते हैं। पौलुस ने तीमुथियुस को, जो खुद एक सफरी निगरान था, यह बढ़ावा दिया, “तू वचन का प्रचार कर। और वक्‍त की नज़ाकत को समझते हुए इसमें लगा रह, फिर चाहे अच्छा समय हो या बुरा। सब्र से काम लेते हुए और कुशलता से सिखाते हुए गलती करनेवाले को सुधार, डाँट और समझा। . . . प्रचारक का काम कर।”​—2 तीमु. 4:2, 5.

7 इन शब्दों के मुताबिक, सर्किट निगरान भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रचार करते हैं और सेवा के दूसरे पहलुओं में हिस्सा लेते हैं। जो सर्किट निगरान शादीशुदा हैं उनकी पत्नियाँ भी भाई-बहनों के साथ प्रचार में जाती हैं। जब भाई-बहन देखते हैं कि सर्किट निगरान प्रचार काम बहुत पसंद करते हैं और लोगों को अच्छी तरह सिखाते हैं, तो उनका भी जोश बढ़ता है। (रोमि. 12:11; 2 तीमु. 2:15) सर्किट निगरान और उनकी पत्नी भाई-बहनों से सच्चा प्यार करते हैं और उनके लिए बहुत त्याग करते हैं। अगर मौसम खराब हो या किसी इलाके में जाना खतरनाक हो तब भी वे मंडलियों का दौरा करने जाते हैं। (फिलि. 2:3, 4) इसके अलावा, सर्किट निगरान बाइबल पर आधारित भाषण देकर मंडलियों को सिखाते, समझाते और उनका हौसला बढ़ाते हैं। अगर हम सर्किट निगरानों की मिसाल पर ध्यान दें और उनके जैसा विश्‍वास बढ़ाने की कोशिश करें, तो इससे हमारा ही फायदा होगा।​—इब्रा. 13:7.

“ज़बरदस्त तकरार हुई” (प्रेषि. 15:37-41)

8. जब पौलुस बरनबास से दूसरे मिशनरी दौरे पर चलने के लिए कहता है, तो बरनबास को कैसा लगता है?

8 जब पौलुस बरनबास से कहता है कि वे दोबारा उन शहरों में जाकर ‘भाइयों को देख आएँ,’ तो बरनबास जाने के लिए राज़ी हो जाता है। (प्रेषि. 15:36) पौलुस और बरनबास साथ काम कर चुके हैं और एक-दूसरे को अच्छे-से समझते हैं। वे उन शहरों के भाई-बहनों को भी पहले से जानते हैं। (प्रेषि. 13:2–14:28) इसलिए उन्हें यह सही लगा कि इस दौरे पर भी वे दोनों साथ में जाएँ। लेकिन तभी एक मसला खड़ा हो जाता है। प्रेषितों 15:37 बताता है, “बरनबास ने तो ठान लिया था कि वह अपने साथ यूहन्‍ना को भी ले जाएगा जो मरकुस कहलाता है।” बरनबास पौलुस से पूछ नहीं रहा है बल्कि उसने “ठान लिया” है कि इस मिशनरी दौरे पर वह अपने भाई मरकुस को भी साथ ले जाएगा।

9. पौलुस बरनबास से क्यों राज़ी नहीं होता?

9 मगर पौलुस बरनबास से राज़ी नहीं होता। क्यों नहीं? आयत बताती है, “क्योंकि [मरकुस] पमफूलिया में उन्हें छोड़कर चला गया था और उसने इस काम में उनका साथ नहीं दिया था।” (प्रेषि. 15:38) पौलुस और बरनबास के पहले मिशनरी दौरे पर मरकुस उनके साथ गया ज़रूर था मगर वह आखिर तक उनके साथ नहीं रहा। (प्रेषि. 12:25; 13:13) जब वे पमफूलिया प्रांत में ही थे तब मरकुस उन्हें छोड़कर अपने घर यरूशलेम लौट गया। बाइबल नहीं बताती कि उसने ऐसा क्यों किया। लेकिन ऐसा मालूम होता है कि पौलुस को यह बात बुरी लगी। इसलिए उसे मरकुस पर दोबारा भरोसा करना मुश्‍किल लग रहा होगा।

10. पौलुस और बरनबास के बीच क्या होता है? और इसका नतीजा क्या होता है?

10 फिर भी बरनबास मरकुस को ही साथ ले जाने की ज़िद करता है। पौलुस भी अड़ जाता है कि वह मरकुस को हरगिज़ नहीं ले जाएगा। प्रेषितों 15:39 बताता है, “इस बात को लेकर पौलुस और बरनबास के बीच ज़बरदस्त तकरार हुई, इसलिए वे एक-दूसरे से अलग हो गए।” बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज़ से अपने घर कुप्रुस के लिए रवाना हो जाता है। और पौलुस अपनी योजना के मुताबिक दूसरे मिशनरी दौरे पर निकल पड़ता है। आयत बताती है, “पौलुस ने सीलास को चुना। भाइयों ने पौलुस के लिए प्रार्थना की कि उस पर यहोवा की महा-कृपा बनी रहे। फिर वे दोनों निकल पड़े।” (प्रेषि. 15:40) पौलुस और सीलास ‘सीरिया और किलिकिया के इलाकों से होते हुए मंडलियों को मज़बूत करते गए।’​—प्रेषि. 15:41.

11. बरनबास और पौलुस एक-दूसरे को माफ क्यों कर पाए? इससे हम क्या सीखते हैं?

11 यह घटना दिखाती है कि हम अपरिपूर्ण हैं और हम सबमें कमज़ोरियाँ हैं। पौलुस और बरनबास को शासी निकाय ने अपना खास प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। पौलुस शायद खुद भी शासी निकाय का सदस्य रहा होगा। फिर भी इस मौके पर उन दोनों ने अपना आपा खो दिया। लेकिन क्या इस वजह से उनकी दोस्ती टूट गयी? क्या वे ज़िंदगी-भर एक-दूसरे से नाराज़ रहे? जी नहीं। हालाँकि उनमें कमियाँ थीं फिर भी वे नम्र थे और मसीह के जैसी सोच रखते थे। इसलिए आगे चलकर उन्होंने एक-दूसरे को माफ कर दिया और फिर से अच्छे दोस्त बन गए। (इफि. 4:1-3) बाद में पौलुस और मरकुस ने भी फिर से साथ मिलकर काम किया।a​—कुलु. 4:10.

12. पौलुस और बरनबास की तरह आज निगरानों में कौन-से गुण होने चाहिए?

12 माना कि पौलुस और बरनबास के बीच ज़बरदस्त तकरार हुई, मगर इसका यह मतलब नहीं कि वे दोनों गरम मिज़ाज के थे। बरनबास भाई-बहनों से बहुत प्यार करता था और हमेशा उनकी मदद करता था। उसके इस स्वभाव की वजह से ही प्रेषितों ने उसका नाम बरनबास रखा था, जिसका मतलब है “दिलासे का बेटा” जबकि उसका असली नाम यूसुफ था। (प्रेषि. 4:36) पौलुस भी दूसरों की फिक्र करता था और नरमी से पेश आता था। (1 थिस्स. 2:7, 8) आज सभी प्राचीनों और सर्किट निगरानों को भी पौलुस और बरनबास की तरह नम्र होना चाहिए और दूसरे प्राचीनों के साथ और पूरे झुंड के साथ कोमलता से पेश आना चाहिए।​—1 पत. 5:2, 3.

मंडली के भाई, ‘तीमुथियुस की बहुत तारीफ करते हैं’ (प्रेषि. 16:1-3)

13, 14. (क) तीमुथियुस कौन है और पौलुस उससे कब और कैसे मिला था? (ख) पौलुस, तीमुथियुस पर क्यों खास ध्यान देता है? (ग) तीमुथियुस को क्या ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है?

13 अपने दूसरे मिशनरी दौरे में पौलुस गलातिया नाम के रोमी प्रांत में जाता है जहाँ पहले से कुछ मंडलियाँ हैं। वह ‘दिरबे और लुस्त्रा शहर भी पहुँचता है।’ आयत बताती है, “वहाँ तीमुथियुस नाम का एक चेला था, जो एक विश्‍वासी यहूदी औरत का बेटा था मगर उसका पिता यूनानी था।”​—प्रेषि. 16:1.b

14 ऐसा मालूम पड़ता है कि करीब ईसवी सन्‌ 47 में जब पौलुस अपने पहले मिशनरी दौरे पर लुस्त्रा आया था, तब वह तीमुथियुस के परिवार से मिला था। अब दो-तीन साल बाद जब वह अपने दूसरे मिशनरी दौरे पर यहाँ आता है तो वह जवान तीमुथियुस पर खास ध्यान देता है। क्यों? क्योंकि मंडली के भाई, ‘तीमुथियुस की बहुत तारीफ करते हैं।’ ना सिर्फ उसकी अपनी मंडली बल्कि आस-पास की मंडलियाँ भी उसके बारे में अच्छी बातें कहती हैं। जैसे इकुनियुम की मंडली, जो लुस्त्रा से करीब 30 किलोमीटर दूर है। (प्रेषि. 16:2) फिर पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में लुस्त्रा के प्राचीन, तीमुथियुस को एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपते हैं। वे उसे सफरी निगरान ठहराते हैं ताकि वह पौलुस और सीलास के साथ जाकर उनकी मदद कर सके।​—प्रेषि. 16:3.

15, 16. भाइयों ने तीमुथियुस की तारीफ क्यों की?

15 तीमुथियुस ने कम उम्र में इतना अच्छा नाम कैसे कमाया? क्या इसलिए कि वह बहुत होशियार था, दिखने में अच्छा था या उसमें कई काबिलीयतें थीं? अकसर इंसान इन्हीं बातों पर ध्यान देते हैं। एक मौके पर भविष्यवक्‍ता शमूएल ने भी कुछ ऐसा ही किया। मगर यहोवा ने उसे याद दिलाया, “[मेरा] देखना इंसान के देखने जैसा नहीं है। इंसान सिर्फ बाहरी रूप देखता है, मगर [मैं] दिल देखता हूँ।” (1 शमू. 16:7) तो भाइयों ने तीमुथियुस का बाहरी रूप देखकर नहीं बल्कि उसके अच्छे गुण देखकर उसकी तारीफ की।

16 आगे चलकर, प्रेषित पौलुस ने भी तीमुथियुस के कई अच्छे गुणों की तारीफ की। उसने बताया कि तीमुथियुस जैसा स्वभाव रखनेवाला और कोई भी नहीं है, वह भाइयों से सच में प्यार करता है और मंडलियों के लिए बहुत मेहनत करता है। (फिलि. 2:20-22) यही नहीं, तीमुथियुस के बारे में यह भी कहा जाता था कि उसके ‘विश्‍वास में कोई कपट नहीं है।’​—2 तीमु. 1:5.

17. तीमुथियुस की तरह बनने के लिए आज नौजवान क्या कर सकते हैं?

17 आज कई नौजवान, तीमुथियुस की तरह अपने अंदर मसीही गुण बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इस तरह वे छोटी उम्र से ही यहोवा और भाई-बहनों की नज़रों में एक अच्छा नाम कमाते हैं। (नीति. 22:1; 1 तीमु. 4:15) उनके विश्‍वास में कोई कपट या ढोंग नहीं है। यानी वे भाई-बहनों के सामने अच्छा बनने का नाटक नहीं करते। (भज. 26:4) तीमुथियुस के जैसे ये नौजवान यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं। जब वे प्रचारक बनते हैं, यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं, तो मंडली में सब बहुत खुश होते हैं।

“मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया” (प्रेषि. 16:4, 5)

18. (क) अलग-अलग मंडलियों का दौरा करते वक्‍त पौलुस और तीमुथियुस ने क्या किया? (ख) इससे मंडलियों को क्या फायदा हुआ?

18 पौलुस और तीमुथियुस ने साथ मिलकर कई सालों तक काम किया। सफरी निगरानों के नाते उन्होंने अलग-अलग मंडलियों का दौरा किया और शासी निकाय ने उन्हें जो भी काम दिया उसे पूरा किया। बाइबल बताती है, “वे अपने सफर में जिन-जिन शहरों में गए, वहाँ उन्होंने बताया कि यरूशलेम के प्रेषितों और प्राचीनों ने क्या-क्या आदेश दिए हैं ताकि वे उन्हें मानें।” (प्रेषि. 16:4) मंडलियों ने यरूशलेम के प्रेषितों और प्राचीनों के निर्देशों को ज़रूर माना होगा। तभी “मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।”​—प्रेषि. 16:5.

19, 20. मसीही क्यों ‘अगुवाई करनेवाले’ भाइयों के निर्देशों को मानते हैं?

19 आज भी जब हम ‘अगुवाई करनेवाले’ भाइयों के निर्देशों को खुशी-खुशी मानते हैं तो हमें कई आशीषें मिलती हैं। (इब्रा. 13:17) दुनिया का दृश्‍य हर वक्‍त बदल रहा है इसलिए “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमें जो भी हिदायत देता है हमें उसे फौरन मानना चाहिए। (मत्ती 24:45; 1 कुरिं. 7:29-31) ऐसा करने से हमारा विश्‍वास मज़बूत बना रहेगा और हम खुद को दुनिया से बेदाग रख पाएँगे।​—याकू. 1:27.

20 यह सच है कि मसीही प्राचीन और शासी निकाय के सदस्य अपरिपूर्ण हैं, ठीक जैसे पहली सदी में पौलुस, बरनबास, मरकुस और दूसरे अभिषिक्‍त प्राचीन अपरिपूर्ण थे। (रोमि. 5:12; याकू. 3:2) मगर हम शासी निकाय पर भरोसा कर सकते हैं। यह निकाय हर हाल में परमेश्‍वर के वचन का पालन करता है और प्रेषितों के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलता है। (2 तीमु. 1:13, 14) इसीलिए आज मंडलियाँ विश्‍वास में दिनों-दिन मज़बूत होती जा रही हैं।

तीमुथियुस ने “खुशखबरी फैलाने में” कड़ी मेहनत की

तीमुथियुस, प्रेषित पौलुस के लिए एक बढ़िया मददगार साबित हुआ। उन दोनों ने करीब 11 साल साथ-साथ सेवा की थी। बाद में पौलुस ने तीमुथियुस के बारे में लिखा, “मेरे पास उसके जैसा स्वभाव रखनेवाला दूसरा और कोई भी नहीं, जो सच्चे दिल से तुम्हारी परवाह करेगा। . . . तुम खुद उसके बारे में जानते हो कि जैसे एक बेटा अपने पिता का हाथ बँटाता है वैसे ही उसने खुशखबरी फैलाने में मेरे साथ कड़ी मेहनत की है।” (फिलि. 2:20, 22) तीमुथियुस ने प्रचार काम में खुद को पूरी तरह लगा दिया था, इसलिए वह पौलुस को बहुत अज़ीज़ था। वह हमारे लिए भी एक बेहतरीन मिसाल है।

तीमुथियुस।

तीमुथियुस का पिता यूनानी था और माँ यहूदी थी। शायद उसकी परवरिश लुस्त्रा में हुई थी। उसकी माँ यूनीके और नानी लोइस ने तब से उसे पवित्र शास्त्र की बातें सिखानी शुरू कीं जब वह एक शिशु ही था। (प्रेषि. 16:1, 3; 2 तीमु. 1:5; 3:14, 15) ये तीनों उस वक्‍त मसीही बने थे जब पौलुस अपने पहले मिशनरी दौरे में उनके शहर लुस्त्रा आया था।

कुछ साल बाद जब पौलुस दोबारा लुस्त्रा आया, तब तीमुथियुस करीब 20 साल का था। “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे।” (प्रेषि. 16:2) पवित्र शक्‍ति की प्रेरणा से उसके बारे में कुछ “भविष्यवाणियाँ” की गयी थीं। उनको ध्यान में रखकर पौलुस और लुस्त्रा के प्राचीनों ने तीमुथियुस को एक खास ज़िम्मेदारी देने का फैसला किया। (1 तीमु. 1:18; 4:14; 2 तीमु. 1:6) उसे पौलुस का साथी बनकर मिशनरी दौरों पर जाना था। इसके लिए उसे अपने परिवार से दूर जाना होगा और खतना भी करवाना होगा ताकि उसकी वजह से यहूदी ठोकर ना खाएँ।​—प्रेषि. 16:3.

अपनी मिशनरी सेवा के दौरान तीमुथियुस ने जगह-जगह प्रचार किया। उसने पौलुस और सीलास के साथ फिलिप्पी में प्रचार किया, फिर सीलास के साथ बिरीया में और थिस्सलुनीके में उसने अकेले ही प्रचार किया। जब वह कुरिंथ में पौलुस से दोबारा मिला, तो उसने थिस्सलुनीके के भाइयों के बारे में अच्छी खबर दी। उसने बताया कि वे दुख झेलने के बाद भी परमेश्‍वर के वफादार हैं और उनका प्यार कम नहीं हुआ है। (प्रेषि. 16:6–17:14; 1 थिस्स. 3:2-6) फिर जब पौलुस इफिसुस में था और उसे कुरिंथ की मंडली के बारे में कुछ ऐसी खबर मिली जिससे वह परेशान हो उठा, तो उसने तीमुथियुस को कुरिंथ भेजने की सोची। (1 कुरिं. 4:17) बाद में जब तीमुथियुस और इरास्तुस पौलुस के साथ इफिसुस में थे तो उसने उन्हें मकिदुनिया भेजा। लेकिन जब पौलुस कुरिंथ में था और उसने रोम के मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तो उस वक्‍त तक तीमुथियुस वापस पौलुस के पास कुरिंथ आ चुका था। (प्रेषि. 19:22; रोमि. 16:21) ये बस कुछ ही उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि तीमुथियुस ने खुशखबरी की खातिर दूर-दूर तक सफर किया।

ऐसा मालूम होता है कि तीमुथियुस अपने अधिकार का इस्तेमाल करने से हिचकिचाता था। तभी पौलुस ने उसे बढ़ावा दिया, “कोई भी तेरी कम उम्र की वजह से तुझे नीची नज़रों से न देखे।” (1 तीमु. 4:12) पौलुस को पूरा भरोसा था कि तीमुथियुस अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाएगा। इसलिए उसने तीमुथियुस को एक ऐसी मंडली में भेजा जहाँ कुछ समस्याएँ थीं और उसे यह निर्देश दिया, “जो लोग अलग किस्म की शिक्षाएँ दे रहे हैं, उन्हें आज्ञा दे  कि वे ऐसा न करें।” (1 तीमु. 1:3) पौलुस ने उसे प्राचीन और सहायक सेवक ठहराने का भी अधिकार दिया।​—1 तीमु. 5:22.

तीमुथियुस में कई अच्छे गुण थे इसलिए वह पौलुस को बहुत प्यारा था। बाइबल बताती है कि तीमुथियुस का पौलुस के साथ वैसा ही रिश्‍ता था जैसा एक बेटे का पिता के साथ होता है। तीमुथियुस उसके बहुत करीब था, हमेशा उसका साथ देता था और उसे पौलुस से बहुत लगाव था। इसी वजह से पौलुस ने लिखा कि वह दिन-रात तीमुथियुस के लिए प्रार्थना करता है और उसके आँसुओं को याद करके उससे मिलने के लिए तरस रहा है। ऐसा मालूम होता है कि तीमुथियुस को पेट की कुछ शिकायत थी जिस वजह से वह ‘बार-बार बीमार’ हो जाता था। एक पिता की तरह पौलुस को उसकी बहुत चिंता थी, इसलिए पौलुस ने उसे कुछ सलाह दी।​—1 तीमु. 5:23; 2 तीमु. 1:3, 4.

पौलुस जब पहली बार रोम में कैद हुआ, तब तीमुथियुस उसकी मदद करने के लिए उसके साथ था। कुछ समय के लिए तीमुथियुस ने भी उसके साथ कैद में तकलीफें झेलीं। (फिले. 1; इब्रा. 13:23) जब पौलुस को एहसास हुआ कि उसकी मौत करीब है तो उसने तीमुथियुस को लिखा, “मेरे पास जल्द-से-जल्द आने की कोशिश कर।” (2 तीमु. 4:6-9) इससे पता चलता है कि उन दोनों का रिश्‍ता बहुत गहरा था। तीमुथियुस अपने अज़ीज़ दोस्त और सलाहकार से आखिरी बार मिल पाया था या नहीं, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती।

मरकुस को परमेश्‍वर की सेवा में कई खास मौके मिले

खुशखबरी की किताब मरकुस में लिखा है कि जब लोग यीशु को गिरफ्तार करने आए तो उन्होंने “एक नौजवान” को भी पकड़ने की कोशिश की। मगर वह “अपना मलमल का कपड़ा छोड़कर नंगा भाग गया।” (मर. 14:51, 52) सिर्फ मरकुस ने ही इस बात का ज़िक्र किया। इसका मतलब, वह नौजवान शायद मरकुस ही था और उसे यीशु के साथ थोड़ी-बहुत संगति करने का मौका मिला था। मरकुस को यूहन्‍ना मरकुस भी कहा जाता है।

एक बुज़ुर्ग आदमी बात कर रहा है और मरकुस उसकी बातें सुनकर कुछ लिख रहा है।

ऊपर बतायी घटना के करीब 11 साल बाद हेरोदेस अग्रिप्पा मसीहियों पर ज़ुल्म करने लगा। उस दौरान यरूशलेम मंडली के “काफी चेले” प्रार्थना के लिए मरियम के घर इकट्ठा हुए। यह मरियम मरकुस की माँ थी। जब पतरस को एक स्वर्गदूत ने कैद से छुड़ाया तो वह मरियम के घर ही गया था। (प्रेषि. 12:12) इसी घर में मरकुस का बचपन बीता था और शायद यहीं सभाएँ रखी जाती थीं। इसलिए यीशु के शुरूआती चेलों से मरकुस की अच्छी जान-पहचान थी और उनकी संगति का उस पर गहरा असर हुआ।

मरकुस ने मंडली के कई निगरानों के साथ मिलकर सेवा की थी। ऐसा लगता है कि उसे सबसे पहले अपने भाई बरनबास और प्रेषित पौलुस के साथ सीरिया के अंताकिया में सेवा करने का मौका मिला। (प्रेषि. 12:25) फिर जब बरनबास और पौलुस अपने पहले मिशनरी दौरे पर गए तो मरकुस भी उनके साथ गया। वे पहले कुप्रुस द्वीप गए और फिर एशिया माइनर। बाइबल बताती है कि यहाँ से मरकुस वापस यरूशलेम लौट गया, पर क्यों इसकी वजह नहीं बतायी गयी है। (प्रेषि. 13:4, 13) मरकुस को लेकर जब बरनबास और पौलुस के बीच तकरार हुई, तो उसके बाद मरकुस और बरनबास कुप्रुस में मिशनरी सेवा करते रहे।​—प्रेषि. 15:36-39.

ईसवी सन्‌ 60 या 61 में मरकुस ने एक बार फिर पौलुस के साथ मिलकर रोम में सेवा की जहाँ पौलुस कैद था। इससे पता चलता है कि वे दोनों अपना झगड़ा भुलाकर सुलह कर चुके थे। पौलुस ने कुलुस्से की मंडली को लिखा, “अरिस्तरखुस जो मेरे साथ कैद है, तुम्हें नमस्कार कहता है और मरकुस भी जो बरनबास का भाई लगता है तुम्हें नमस्कार कहता है (जिसके बारे में तुम्हें हिदायतें मिली थीं कि अगर वह तुम्हारे पास आए तो उसका स्वागत करना)।” (कुलु. 4:10) ज़ाहिर है कि पौलुस, मरकुस को कुलुस्से भेजने की सोच रहा था ताकि वह मंडली की मदद कर सके।

मरकुस ने ईसवी सन्‌ 62-64 के बीच प्रेषित पतरस के साथ बैबिलोन में भी सेवा की। जैसा हमने इस किताब के अध्याय 10 में पढ़ा था, उन दोनों का रिश्‍ता बहुत गहरा हो चुका था क्योंकि पतरस ने जवान मरकुस को “मेरा बेटा मरकुस” कहा।​—1 पत. 5:13.

फिर ईसवी सन्‌ 65 में पौलुस को दूसरी बार रोम में कैद किया गया। तब उसने तीमुथियुस को, जो इफिसुस में था, एक खत लिखा। उसने कहा, “मरकुस को अपने साथ लेते आना क्योंकि वह सेवा के लिए मेरे बहुत काम का है।” (2 तीमु. 4:11) उस वक्‍त मरकुस इफिसुस में था। पौलुस का बुलावा सुनकर वह तुरंत रोम के लिए निकल पड़ा। उसके इसी स्वभाव की वजह से वह बरनबास, पौलुस और पतरस को बहुत अज़ीज़ था।

मरकुस को सबसे खास सम्मान यह मिला कि उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से खुशखबरी की एक किताब लिखी। कुछ लोगों का मानना है कि मरकुस को ज़्यादातर जानकारी पतरस से मिली थी। और यह सही भी है क्योंकि इस किताब में ऐसी बारीक जानकारी है जो सिर्फ पतरस जैसा व्यक्‍ति दे सकता है जिसने उन घटनाओं को अपनी आँखों से देखा हो। मरकुस ने यह किताब रोम में लिखी, ना कि बैबिलोन में जब वह पतरस के साथ था। उसने कई लातीनी शब्द इस्तेमाल किए और ऐसे कई इब्रानी शब्दों का अनुवाद भी किया जो गैर-यहूदियों को समझने में मुश्‍किल होते। इससे पता चलता है कि मरकुस ने खासकर गैर-यहूदियों को ध्यान में रखकर अपनी किताब लिखी थी।

a यह बक्स देखें, “मरकुस को परमेश्‍वर की सेवा में कई खास मौके मिले।”

b यह बक्स देखें, “तीमुथियुस ने ‘खुशखबरी फैलाने में’ कड़ी मेहनत की।”

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें