गीत 153
कैसा लगता है?
राज की ख-बर दे-के,
लग-ता है बो-लो कै-सा?
जब सि-खा-ते दी-नों को
सच्-चा व-चन याह का?
कौन है य-हाँ नेक दिल,
छो-ड़ें ये फैस-ला याह पे,
अप-नी ओर खीं-चे उन-को
पू-रा य-कीं ह-में।
(कोरस)
मिल-ती खु-शी बे-इं-ति-हा
य-हो-वा की से-वा में, हाँ,
दें-गे उ-से हम यूँ हर दिन
नज़-रा-ना हों-ठों का।
सच से कि-सी का दिल
जी-तें तो लग-ता कै-सा?
कि पा-एँ याह से वो भी
ज़िं-द-गी का तोह-फा?
पर भा-ए ना सब-को
अप-ना सं-देश ये प्यार का
हाँ, सु-ना-एँ-गे फिर भी,
पै-ग़ाम य-हो-वा का।
(कोरस)
मिल-ती खु-शी बे-इं-ति-हा
य-हो-वा की से-वा में, हाँ,
दें-गे उ-से हम यूँ हर दिन
नज़-रा-ना हों-ठों का।
याह का मि-ला जो साथ,
लग-ता है बो-लो कै-सा?
है भ-रो-सा तुझ-पे तो
उस-ने ये काम सौं-पा।
बोल-ते हम हिम्-मत से
फिर भी बोल रह-ते मी-ठे;
कि सब नेक दिल-वा-ले जल्द
जु-ड़ें य-हो-वा से।
(कोरस)
मिल-ती खु-शी बे-इं-ति-हा
य-हो-वा की से-वा में, हाँ,
दें-गे उ-से हम यूँ हर दिन
नज़-रा-ना हों-ठों का।
(प्रेषि. 13:48; 1 थिस्स. 2:4; 1 तीमु. 1:11 भी देखिए।)