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  • “सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए करो”

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अध्याय 13

“सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए करो”

परमेश्‍वर के समर्पित सेवकों के नाते हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपनी हर बात से और अपने हर काम से यहोवा की महिमा करें। प्रेषित पौलुस ने एक सिद्धांत दिया, जिसे ध्यान में रखकर हम ऐसा कर सकते हैं। उसने कहा, “चाहे तुम खाओ या पीओ या कोई और काम करो, सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए करो।” (1 कुरिं. 10:31) जब हम हर हाल में यहोवा के नेक स्तरों को मानते हैं, तो हम यहोवा के जैसे बनते हैं, जो खुद इन स्तरों से समझौता नहीं करता। (कुलु. 3:10) परमेश्‍वर पवित्र है और उसके लोग होने के नाते हमें भी पवित्र होना चाहिए।​—इफि. 5:1, 2.

2 मसीहियों को यह बात समझाते हुए प्रेषित पतरस ने लिखा, “आज्ञा माननेवाले बच्चों की तरह, अपनी उन इच्छाओं के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो जो तुम्हारे अंदर उस वक्‍त थीं जब तुम परमेश्‍वर से अनजान थे। मगर उस पवित्र परमेश्‍वर की तरह, जिसने तुम्हें बुलाया है, तुम भी अपना पूरा चालचलन पवित्र बनाए रखो क्योंकि लिखा है: ‘तुम्हें पवित्र बने रहना है क्योंकि मैं पवित्र हूँ।’” (1 पत. 1:14-16) जैसे पुराने ज़माने में इसराएलियों को पवित्र रहना था, वैसे ही आज सभी मसीहियों को पवित्र रहना चाहिए। इसका मतलब यह है कि वे कोई पाप करके भ्रष्ट न हों, साथ ही दुनियावी रवैयों से पूरी तरह शुद्ध और बेदाग बने रहें। इस तरह वे पवित्र सेवा के लिए अलग किए जाते हैं।​—निर्ग. 20:5.

3 यहोवा ने पवित्र शास्त्र बाइबल में जो नियम और सिद्धांत दर्ज़ करवाए हैं, उनके मुताबिक जीने से हम पवित्र बने रह सकते हैं। (2 तीमु. 3:16) जब हमने बाइबल का अध्ययन किया था, तब हमने यहोवा और उसके तौर-तरीकों के बारे में सीखा और हम उसकी तरफ खिंचे चले आए। हमें यकीन हो गया कि हमें परमेश्‍वर के राज को और उसकी मरज़ी पूरी करने को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देनी है। (मत्ती 6:33; रोमि. 12:2) यह सब करने के लिए ज़रूरी था कि हम नयी शख्सियत पहन लें।​—इफि. 4:22-24.

परमेश्‍वर की नज़र में और नैतिक तौर पर शुद्ध रहें

4 यहोवा के नेक स्तरों के मुताबिक जीना हमेशा आसान नहीं होता। हमारा दुश्‍मन शैतान हमें सच्चाई से दूर ले जाने की कोशिश करता है। दुनिया की बुराइयों का असर और पापी होने के कारण हममें जो गलत इच्छाएँ पैदा होती हैं, उन सबकी वजह से कभी-कभी यहोवा के स्तरों को मानना हमारे लिए मुश्‍किल हो जाता है। अगर हम अपने समर्पण के मुताबिक जीना चाहते हैं, तो हमें संघर्ष करना होगा। बाइबल बताती है कि जब हमारा विरोध किया जाता है या हम पर परीक्षाएँ आती हैं, तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए। अगर हम परमेश्‍वर के स्तरों को मानें, तो हमें दुख झेलने ही पड़ेंगे। (2 तीमु. 3:12) लेकिन परीक्षाओं से गुज़रते वक्‍त भी हम खुश रह सकते हैं, क्योंकि ये परीक्षाएँ इस बात का सबूत हैं कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी कर रहे हैं।​—1 पत. 3:14-16; 4:12, 14-16.

5 यीशु परिपूर्ण था, फिर भी उसने दुख उठाकर परमेश्‍वर की आज्ञा मानना सीखा। वह शैतान की आज़माइशों के आगे कभी नहीं झुका, न ही दुनिया में नाम या शोहरत कमाने के पीछे भागा। (मत्ती 4:1-11; यूह. 6:15) यीशु के मन में परमेश्‍वर के स्तरों से समझौता करने का खयाल तक नहीं आया। दुनिया ने उससे नफरत की, फिर भी वह परमेश्‍वर का वफादार रहा। यीशु ने अपनी मौत से कुछ ही समय पहले अपने चेलों से कहा कि यह दुनिया उनसे भी नफरत करेगी। तब से लेकर आज तक यीशु के चेले तकलीफें झेलते आ रहे हैं, मगर उन्हें इस बात से हिम्मत मिलती है कि परमेश्‍वर के बेटे यीशु ने पूरी दुनिया पर जीत हासिल की है।​—यूह. 15:19; 16:33; 17:16.

6 यीशु ने अपने चेलों से कहा कि तुम दुनिया के नहीं हो। दुनिया से अलग रहने के लिए हमें अपने मालिक यीशु की तरह यहोवा के नेक स्तरों को मानना होगा। हमें दुनिया के राजनैतिक और सामाजिक मामलों में भी नहीं पड़ना चाहिए और दुनिया के बिगड़े हुए नैतिक माहौल से दूर रहना चाहिए। हम याकूब 1:21 में दी सलाह गंभीरता से लेते हैं, “हर तरह की गंदगी और बुराई का हर दाग दूर करो और जब तुम्हारे अंदर वचन बोया जाता है, तो उसे कोमलता से स्वीकार करो क्योंकि यह तुम्हारी जान बचा सकता है।” बाइबल का अध्ययन करके और सभाओं में जाकर हम अपने दिलो-दिमाग में सच्चाई का ‘वचन बो रहे होंगे।’ साथ ही, हम दुनिया की ऐशो-आराम की चीज़ें पाने की ख्वाहिश नहीं करेंगे। शिष्य याकूब ने लिखा, “क्या तुम नहीं जानते कि दुनिया के साथ दोस्ती करने का मतलब परमेश्‍वर से दुश्‍मनी करना है? इसलिए जो कोई इस दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वह परमेश्‍वर का दुश्‍मन  बन जाता है।” (याकू. 4:4) इसी वजह से बाइबल कड़े शब्दों में आगाह करती है कि हम यहोवा के नेक स्तरों को मानें और दुनिया से अलग रहें।

7 परमेश्‍वर का वचन हमें शर्मनाक और अनैतिक चालचलन से दूर रहने की चेतावनी देता है। यह बताता है, “जैसा पवित्र लोगों के लिए उचित है, तुम्हारे बीच नाजायज़ यौन-संबंध और किसी भी तरह की अशुद्धता या लालच का ज़िक्र तक न हो।” (इफि. 5:3) हमें अपना मन अश्‍लील, शर्मनाक या नीच कामों पर नहीं लगाना चाहिए, यहाँ तक कि ऐसे कामों का ज़िक्र भी नहीं करना चाहिए। इस तरह हम ज़ाहिर करेंगे कि हम नैतिकता के मामले में यहोवा के शुद्ध और नेक स्तरों को मानते हैं।

साफ-सफाई

8 मसीही जानते हैं कि परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध रहने और नैतिक तौर पर शुद्ध रहने के साथ-साथ साफ-सफाई का भी ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। पुराने ज़माने में पवित्र परमेश्‍वर यहोवा ने इसराएलियों से कहा था कि उन्हें अपनी छावनी को साफ रखना चाहिए। हमें भी साफ-सुथरा रहना चाहिए, ताकि यहोवा हममें ‘कुछ ऐसा न देखे जो घिनौना हो।’​—व्यव. 23:14.

9 बाइबल से पता चलता है कि पवित्रता और साफ-सफाई का आपस में गहरा नाता है। पौलुस ने लिखा, ‘प्यारे भाइयो, आओ हम तन और मन की हर गंदगी को दूर करके खुद को शुद्ध करें और परमेश्‍वर का डर मानते हुए पूरी हद तक पवित्रता हासिल करें।’ (2 कुरिं. 7:1) इस वजह से मसीहियों को नियमित तौर पर नहाना चाहिए और कपड़े धोने चाहिए। इस तरह उन्हें खुद को साफ रखना चाहिए। भले ही अलग-अलग देशों के हालात एक जैसे न हों, मगर हमारे पास इतना पानी और साबुन तो होता ही है कि हम खुद को और अपने बच्चों को साफ रख सकें।

10 प्रचार काम की वजह से आम तौर पर हमारे इलाके के लोग हमें अच्छी तरह पहचानते हैं। अगर हम अपना घर अंदर और बाहर से साफ-सुथरा रखें और हर चीज़ सही जगह पर रखें, तो इससे पड़ोसियों को अच्छी गवाही मिलेगी। परिवार में हर कोई इस काम में हाथ बँटा सकता है। भाइयों को इस बात पर खास ध्यान देना चाहिए कि वे अपने घर और उसके आस-पास की जगह साफ रखें, क्योंकि घर-आँगन साफ रहे तो इसका लोगों पर अच्छा असर होगा। जब परिवार का मुखिया उपासना में अगुवाई लेने के साथ-साथ साफ-सफाई पर भी ध्यान देता है, तो इससे पता चलता है कि वह अपने घरबार की अच्छी देखरेख कर रहा है। (1 तीमु. 3:4, 12) बहनों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे घर के काम-काज करें, खासकर घर के अंदर की साफ-सफाई। (तीतु. 2:4, 5) अगर बच्चों को अच्छी तरह सिखाया जाए तो वे खुद को और अपने कमरे को साफ-सुथरा रखने के लिए जितना उनसे हो सकता है, उतना करेंगे। इस तरह मिलकर काम करने से परिवार साफ-सफाई की अच्छी आदतें डाल पाएगा, जो नयी दुनिया में भी काम आएगी।

11 आज बहुत-से भाई-बहन गाड़ियों से सभाओं में आते-जाते हैं। कुछ जगहों में तो बिना अपनी गाड़ी के प्रचार में जाना बहुत मुश्‍किल है। हमें अपनी गाड़ी को साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखना चाहिए। हमारी गाड़ी और घर से दूसरों पर यह ज़ाहिर होना चाहिए कि हम यहोवा के शुद्ध और पवित्र लोग हैं। इसी तरह हम प्रचार में जो बाइबल और बैग ले जाते हैं, वे भी साफ-सुथरे और अच्छी हालत में होने चाहिए।

12 हम जिस तरह के कपड़े पहनते हैं और सजते-सँवरते हैं, वह भी परमेश्‍वर के सिद्धांतों के मुताबिक होना चाहिए। अगर हमें किसी बड़े आदमी के सामने जाना हो, तो हम बेढंगे कपड़े पहनकर कभी नहीं जाएँगे। तो ज़रा सोचिए, जब हम यहोवा की तरफ से लोगों को गवाही देते हैं या स्टेज से सिखाते हैं, तब तो हमें अपने पहनावे पर और भी ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। हम जिस तरह बाल बनाते हैं और जिस तरह के कपड़े पहनते हैं, उससे काफी हद तक यह तय होता है कि लोग यहोवा की उपासना के बारे में कैसी राय कायम करेंगे। हमें दूसरों का लिहाज़ करना चाहिए और बेहूदा किस्म के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। (मीका 6:8; 1 कुरिं. 10:31-33; 1 तीमु. 2:9, 10) जब हम प्रचार काम, मंडली की सभाओं, सर्किट सम्मेलनों या अधिवेशनों के लिए तैयार होते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि बाइबल साफ-सफाई और सजने-सँवरने के बारे में क्या कहती है। हमें हर वक्‍त यहोवा का आदर और उसकी महिमा करनी चाहिए।

परमेश्‍वर के समर्पित सेवकों के नाते हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपनी हर बात से और अपने हर काम से यहोवा की महिमा करें

13 जब हम यहोवा के साक्षियों का विश्‍व मुख्यालय या कोई शाखा दफ्तर देखने जाते हैं, तब भी हमें इन बातों का खयाल रखना चाहिए। याद रखिए कि बेथेल का मतलब है, “परमेश्‍वर का घर।” इसलिए बेथेल में घूमते वक्‍त हमारा पहनावा, बनाव-सिंगार और बरताव बिलकुल वैसा ही होना चाहिए जैसा राज-घर में सभाओं के दौरान होता है।

14 जब हम फुरसत के पल बिता रहे होते हैं, तब भी हमें अपने पहनावे और बनाव-सिंगार पर ध्यान देना चाहिए। सोचिए, कहीं आपका पहनावा ऐसा तो नहीं है कि मौके ढूँढ़कर गवाही देने में आपको शर्मिंदगी महसूस होती है?

अच्छा मनोरंजन

15 अच्छे से काम करने और सेहतमंद रहने के लिए आराम और मनोरंजन भी ज़रूरी है। एक बार यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे उसके साथ एकांत जगह में आएँ और ‘थोड़ा आराम कर लें।’ (मर. 6:31) आराम करने और कभी-कभी मन-बहलाने के लिए खेल-कूद या मनोरंजन करने से हम तरो-ताज़ा रहते हैं। इस ताज़गी की वजह से हम रोज़मर्रा के काम अच्छी तरह कर पाते हैं।

16 मनोरंजन के लिए आज बहुत कुछ मौजूद है। इस वजह से मसीहियों को परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि के मुताबिक तय करना चाहिए कि वे कैसा मनोरंजन करेंगे। हम सबको थोड़ा-बहुत मनोरंजन करना अच्छा लगता है, मगर यह हमारी ज़िंदगी में सबकुछ नहीं है। हमें खबरदार किया गया है कि “आखिरी दिनों में” लोग “परमेश्‍वर के बजाय मौज-मस्ती से प्यार करनेवाले होंगे।” (2 तीमु. 3:1, 4) आज मनोरंजन के नाम पर जो पेश किया जाता है, उसमें से ज़्यादातर बातें यहोवा के नेक स्तरों पर चलनेवालों के लिए सही नहीं हैं।

17 पहली सदी के मसीही ऐसी दुनिया में जी रहे थे जो मौज-मस्ती में डूबी हुई थी, इसलिए उन्हें उस वक्‍त के गंदे माहौल का विरोध करना पड़ा। रोम के अखाड़ों में दर्शक दूसरों को तड़पता देखकर मज़े लेते थे। मार-पीट, खून-खराबा और अनैतिकता दिखाकर लोगों का मन-बहलाव किया जाता था। मगर मसीही ऐसे मनोरंजन से कोसों दूर रहते थे। आज भी यह दुनिया ऐसा मनोरंजन पेश करती है जिससे पापी इंसान की ख्वाहिशें पूरी हों। हमें “खुद पर कड़ी नज़र” रखनी चाहिए कि हमारा चालचलन कैसा है। हमें ऐसा मनोरंजन नहीं करना चाहिए जो नैतिक रूप से शुद्ध रहने का हमारा इरादा कमज़ोर कर सकता है। (इफि. 5:15, 16; भज. 11:5) हो सकता है मनोरंजन अपने आप में गलत न हो, मगर उसका मज़ा ऐसे लोगों के साथ लेना गलत हो सकता है, जो परमेश्‍वर के स्तरों पर नहीं चलते।​—1 पत. 4:1-4.

18 कुछ अच्छे किस्म के मनोरंजन भी हैं, जिनका मसीही मज़ा ले सकते हैं। इस बारे में हमारे प्रकाशनों में बाइबल से जो सलाह और बढ़िया सुझाव दिए जाते हैं, उन्हें मानकर कई लोगों को फायदा हुआ है।

19 एक मसीही चाहे तो कुछ परिवारों को अपने घर बुला सकता है ताकि सभी एक-दूसरे की संगति का आनंद ले सकें। या फिर भाई-बहनों को शादी की दावत में या ऐसे ही किसी दूसरे मौके पर आने का न्यौता दिया जा सकता है। (यूह. 2:2) ऐसे मौकों पर जो कुछ होता है, उसके लिए मेज़बान ज़िम्मेदार होता है। इस वजह से जब बहुत-से लोग इकट्ठा होते हैं, तो सावधानी बरती जानी चाहिए। ऐसी पार्टियों में किसी किस्म की बंदिश न होने की वजह से कुछ लोग मसीही दायरे से बाहर चले गए हैं। वे हद-से-ज़्यादा खाने और शराब पीने में डूब गए, यहाँ तक कि गंभीर पाप कर बैठे। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, समझदार मसीहियों ने देखा है कि पार्टी के लिए कम लोगों को बुलाना और देर तक पार्टी न चलाना ही सही होगा। अगर शराब का इंतज़ाम है, तो इसे पीते वक्‍त अपनी हद ध्यान में रखनी चाहिए। (फिलि. 4:5) अगर मसीही इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखें कि उनकी पार्टियों में लोगों को परमेश्‍वर की सेवा और ज़्यादा करने का हौसला मिले, तो वे खाने-पीने को सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं देंगे।

20 मेहमान-नवाज़ी करना बहुत अच्छी बात है। (1 पत. 4:9) हम ऐसे लोगों को अपने घर चाय-नाश्‍ते या खाने पर बुला सकते हैं, जिनके हालात इतने अच्छी नहीं हैं। (लूका 14:12-14) जब हम किसी के यहाँ मेहमान होते हैं, तो हमारा चालचलन मरकुस 12:31 में दी सलाह के मुताबिक होना चाहिए। लोगों के प्यार के लिए एहसान ज़ाहिर करना अच्छी बात होती है।

21 मसीहियों को परमेश्‍वर ने जो ढेरों तोहफे दिए हैं, उनसे वे खुश रहते हैं और जानते हैं कि ‘खाना-पीना और अपनी मेहनत के सब कामों से खुशी पाना’ गलत नहीं है। (सभो. 3:12, 13) जब हम “सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए” करते हैं, तो मेज़बान और मेहमान दोनों के लिए पार्टियाँ मीठी यादें बन जाती हैं और वे परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए तरो-ताज़ा हो जाते हैं।

स्कूल के कार्यक्रम

22 यहोवा के साक्षियों के बच्चे स्कूल की बुनियादी शिक्षा लेते हैं जो उनके लिए फायदेमंद है। स्कूल में वे मन लगाकर अच्छी तरह पढ़ना-लिखना सीखते हैं। वहाँ जो-जो विषय सिखाए जाते हैं, वे परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े लक्ष्य हासिल करने में बच्चों के बहुत काम आ सकते हैं। साक्षियों के बच्चे स्कूल की पढ़ाई के दौरान यहोवा की उपासना को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। इस तरह वे ‘अपने महान सृष्टिकर्ता को याद रखने’ की जी-जान से कोशिश करते हैं।​—सभो. 12:1.

23 अगर आप स्कूल जानेवाले मसीही नौजवान हैं, तो ध्यान रखिए कि आप बेवजह दुनियावी नौजवानों से मेल-जोल न रखें। (2 तीमु. 3:1, 2) यहोवा ने हमारी हिफाज़त के लिए कई इंतज़ाम किए हैं, इसलिए आप दुनिया के रवैयों से खुद को बचाए रखने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। (भज. 23:4; 91:1, 2) यहोवा के इंतज़ामों का पूरा-पूरा फायदा उठाइए।​—भज. 23:5.

24 बहुत-से जवान साक्षी दुनिया से अलग रहने के लिए स्कूल में छुट्टी के बाद खेल-कूद वगैरह में हिस्सा नहीं लेते। उनका यह फैसला शायद क्लास के बच्चों और टीचरों के लिए समझना मुश्‍किल हो। लेकिन परमेश्‍वर को खुश करना सबसे ज़्यादा मायने रखता है। इस वजह से हमें बाइबल से प्रशिक्षित अपने ज़मीर के मुताबिक फैसला करना चाहिए कि हम किसी भी हाल में दुनियावी प्रतियोगिताओं या देश-भक्‍ति से जुड़े कामों में हिस्सा नहीं लेंगे। (गला. 5:19, 26) नौजवानो, आपके मसीही माता-पिता बाइबल से जो सलाह देते हैं, उसे मानिए और मंडली के भाई-बहनों से दोस्ती कीजिए। इस तरह आप यहोवा के नेक स्तरों को मान पाएँगे।

नौकरी और साथ काम करनेवाले लोग

25 बाइबल के मुताबिक परिवार के मुखियाओं की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने घर के लोगों की ज़रूरतें पूरी करें। (1 तीमु. 5:8) फिर भी परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते वे जानते हैं कि राज का काम सबसे पहले आता है, उसके बाद नौकरी-पेशा। (मत्ती 6:33; रोमि. 11:13) वे ज़िंदगी में परमेश्‍वर की उपासना को ज़्यादा अहमियत देते हैं और उनके पास खाने-पहनने के लिए जो भी है उसी में संतुष्ट रहते हैं। इस वजह से वे उन चिंताओं और फंदों से बचे रहते हैं, जिनका खतरा दौलत के पीछे भागनेवाले इंसान को रहता है।​—1 तीमु. 6:6-10.

26 नौकरी-पेशा करनेवाले सभी समर्पित मसीहियों को बाइबल के सिद्धांत मन में रखने चाहिए। हमें ईमानदारी से काम करके अपने घर-परिवार की देखभाल करनी चाहिए। हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो परमेश्‍वर के नियमों या देश के कायदे-कानूनों के खिलाफ हो। (रोमि. 13:1, 2; 1 कुरिं. 6:9, 10) यही नहीं, हम बुरी संगति में पड़ने के खतरों से भी सावधान रहते हैं। मसीह के सैनिक होने के नाते, हम ऐसा कोई बिज़नेस नहीं करते जो परमेश्‍वर के स्तरों के खिलाफ है या जिसकी वजह से हम निष्पक्ष न रह पाएँ या फिर परमेश्‍वर के साथ हमारा रिश्‍ता खतरे में पड़ जाए। (यशा. 2:4; 2 तीमु. 2:4) हम परमेश्‍वर के दुश्‍मन “महानगरी बैबिलोन” यानी झूठे धर्मों से कोई नाता नहीं रखते।​—प्रका. 18:2, 4; 2 कुरिं. 6:14-17.

27 हम परमेश्‍वर के नेक स्तरों को मानते हैं, इसलिए हम अपना बिज़नेस चलाने के इरादे से सभाओं में भाई-बहनों का फायदा नहीं उठाएँगे, न ही उनसे अपना कोई दूसरा काम करवाने की कोशिश करेंगे। सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हम सिर्फ यहोवा की उपासना करने के मकसद से भाई-बहनों से मिलते हैं। यहाँ हम परमेश्‍वर की मेज़ से खाना खाते हैं और ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं।’ (रोमि. 1:11, 12; इब्रा. 10:24, 25) ऐसे मौकों पर भाई-बहनों से मिलते वक्‍त हमें सिर्फ उपासना से जुड़ी बातों पर ध्यान देना चाहिए।

मसीही एकता बनाए रखें

28 हम यहोवा के नेक स्तरों को मानते हैं, इसलिए हम ‘शांति बनाए रखते हैं जो हमें एकता के उस बंधन में बाँधे रखती है जिसे हम पवित्र शक्‍ति से हासिल करते हैं।’ (इफि. 4:1-3) हर मसीही अपनी ख्वाहिश पूरी करने के बजाय, दूसरों का भला करने की कोशिश करता है। (1 थिस्स. 5:15) बेशक आपकी मंडली के भाई-बहन भी ऐसा ही करते होंगे। हम चाहे किसी भी जाति या देश के हों, समाज में हमारा ओहदा जो भी हो, हम अमीर हों या गरीब, कम पढ़े-लिखे हों या ज़्यादा, हम सब एक ही तरह के नेक स्तरों को मानते हैं। यहाँ तक कि बाहरवालों ने भी यहोवा के लोगों की इस खासियत पर गौर किया है।​—1 पत. 2:12.

29 हमारे बीच एकता का आधार क्या है, इस पर ज़ोर देते हुए प्रेषित पौलुस ने यह भी लिखा, “एक ही शरीर है और एक ही पवित्र शक्‍ति है, ठीक जैसे वह आशा भी एक ही है जिसे पाने के लिए तुम बुलाए गए थे। एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास, एक ही बपतिस्मा। और सबका एक ही परमेश्‍वर और पिता है, जो सबके ऊपर है और सबके ज़रिए और सबमें काम करता है।” (इफि. 4:4-6) इसका मतलब है कि हम बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं और गूढ़ बातों की एक-जैसी समझ रखें। ऐसा करके हम अपना यह विश्‍वास ज़ाहिर करते हैं कि यहोवा को ही हुकूमत करने का अधिकार है। वाकई, यहोवा ने अपने लोगों को सच्चाई की शुद्ध भाषा सिखायी है, जिस वजह से वे एक-दूसरे के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा कर पाते हैं।​—सप. 3:9.

30 मसीही मंडली में सबके बीच जो एकता और शांति है, वह यहोवा के सभी उपासकों को तरो-ताज़ा करती है। हमने यहोवा का यह वादा पूरा होते देखा है, “मैं उन्हें एकता में ऐसे रखूँगा, जैसे भेड़ें एक-साथ बाड़े में रहती हैं।” (मीका 2:12) हम यहोवा के नेक स्तरों को मानकर मंडली की शांति और एकता बरकरार रखना चाहते हैं।

31 क्या ही खुश हैं वे लोग जिन्हें यहोवा ने अपनी शुद्ध मंडली में जगह दी है! यहोवा के नाम से अपनी पहचान कराने के लिए हम जो भी त्याग करेंगे, वह बेकार नहीं जाएँगे। अगर हम यहोवा के साथ अपना अनमोल रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखना चाहते हैं, तो हम उसके नेक स्तरों को मानने की जी-जान से कोशिश करेंगे और दूसरों को भी ऐसा करने का बढ़ावा देंगे।​—2 कुरिं. 3:18.

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