राशिचक्र ज्योतिषविद्या के साथ इसका सम्बन्ध
पृथ्वी से नज़र आनेवाले तारों के एक समूह को जो सूरज के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के समक्षेत्र के दोनों तरफ़ नौ डिग्री के अंदर दिखायी देता है, राशिचक्र कहा जाता है। यहूदा के राजा योशिय्याह के बारे में २ राजा २३:५ कहता है: “और जिन पुजारियों को यहूदा के राजाओं ने यहूदा के नगरों के ऊंचे स्थानों में और यरूशलेम के आस पास के स्थानों में धूप जलाने के लिये ठहराया था, उनको और जो बाल और सूर्य-चन्द्रमा, राशिचक्र और आकाश के कुल गण को धूप जलाते थे, उनको भी राजा ने दूर कर दिया।” जो शब्द यहाँ “राशिचक्र” अनुवाद किया गया है वह इब्रानी शब्द मज़ज़ालोथ से आता है, जो बाइबल में सिर्फ़ एक बार आता है, हालाँकि अय्यूब ३८:३२ में पाया गया शब्द मज़ज़ारोथ शायद इससे जुड़ा हुआ हो। इसका संदर्भ ही इसके अर्थ को स्पष्ट करने में सहायक है।
जिसे राशिचक्रीय मंडल कह सकते हैं उसकी खोज का श्रेय सामान्यतः प्रारंभिक बाबुलियों को दिया जाता है। निःसंदेह उन्होंने तारों के बीच सूरज के प्रत्यक्ष वार्षिक पथ पर निगाह रखी, जिस पथ को अब रविमार्ग के तौर पर जाना जाता है। खगोल-विज्ञानी नोट कर पाए कि १८ डिग्री चौड़े क्षेत्र के अंदर ही, जो रविमार्ग के दोनों तरफ नौ-नौ डिग्री तक फैलता है, सूरज, चंद्रमा और मुख्य ग्रहों के पृथ्वी से नज़र आनेवाले प्रत्यक्ष पथ हैं। लेकिन, यह सा.यु.पू. दूसरी शताब्दी में ही हुआ कि एक यूनानी खगोल-विज्ञानी ने राशिचक्र को प्रति ३० डिग्री के १२ बराबर भागों में विभाजित किया; इन भागों को राशिचक्र के चिह्न कहा गया और सम्बन्धित नक्षत्रों का नाम उन्हें दिया गया। “राशिचक्र” के लिए अंग्रेज़ी शब्द यूनानी भाषा से है और उसका अर्थ है “जानवरों का चक्र,” क्योंकि शुरूआत में राशिचक्र के १२ नक्षत्रों में से अधिकांश नक्षत्रों को जानवरों या समुद्री जीवों के नाम दिए गए।
ये चिह्न अब उन नक्षत्रों से मेल नहीं खाते जिनका नाम इन्हें शुरूआत में दिया गया था। यह इस बात की वजह से है जिसे विषुव अयन के तौर पर जाना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप नक्षत्र एक चक्र में हर ७० वर्ष लगभग एक डिग्री से धीरे-धीरे उत्तर की ओर खिसकते हैं जिसे पूरा होने के लिए कुछ २६,००० वर्ष लगते हैं। इस तरह, मेष राशि का चिह्न, बीते २,००० वर्षों में लगभग ३० डिग्री खिसककर मीन राशि के नक्षत्र में आ गया है।
ज्योतिष-विद्या के साथ सम्बन्ध
राशिचक्रीय नक्षत्र प्रारंभिक मिसुपुतामिया के समय से झूठी उपासना के पात्र बनाए गए। विभिन्न नक्षत्रों में से प्रत्येक को निश्चित गुण दिए गए, और इन्हें फिर ज्योतिष के पूर्वकथनों में प्रयोग किया गया। ये पूर्वकथन किसी भी निश्चित समय पर आकाश के ग्रहों का राशिचक्र के चिह्नों के साथ सम्बन्ध या उनके विशिष्ट स्थान पर आधारित थे। जैसे २ राजा २३:५ का पाठ दिखाता है, ज्योतिष का ऐसा प्रयोग यहूदा में पराए-देवता के पुजारियों द्वारा शुरू किया गया, जिन्हें कुछ राजा देश में ले आए थे। यहोवा परमेश्वर ने ऐसी तारों की उपासना को काफ़ी पहले निषेध किया था, जिसकी सज़ा मृत्यु थी।—व्यवस्थाविवरण १७:२-७.
ज्योतिष-विद्या बाबुलीय उपासना का एक प्रधान पहलू थी। लेकिन, राशिचक्र पर आधारित उसके ज्योतिषियों द्वारा किए गए पूर्वकथन, बाबुल को विनाश से बचा नहीं सके वैसे ही जैसे भविष्यवक्ता यशायाह ने यथार्थ रूप से पूर्वसूचना दी थी।—यशायाह ४७:१२-१५.
आधुनिक समय में राशिचक्रीय चिह्न अब भी अनेक लोगों की उपासना में एक महत्त्वपूर्ण भाग अदा करते हैं। दिलचस्पी की बात है कि राशिचक्र के चिह्नों ने मसीहीजगत के कुछ धार्मिक कथिड्रलों में भी प्रवेश प्राप्त कर लिया और आज इन्हें पैरिस में कथिड्रल ऑफ नोटर डेम जैसी जगहों में साथ ही फ्रांस में अमयाँ और शार्टर के कथिड्रलों पर भी देखा जा सकता है।