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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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दैवी संरक्षण का प्रमाण

परमेश्‍वर का प्रेरित वचन हम तक यथार्थ रूप में पहुँचाया गया है, और अद्‌भुत संरक्षण के लिये हमें सर्वप्रथम बाइबल के लेखक का अवश्‍य धन्यवाद करना चाहिये। सभी इब्रानी शास्त्रों, या उनके कुछ अंशों की लगभग ६,००० और मसीही यूनानी शास्त्रों की ५,००० हस्तलिपियाँ हैं। “यहोवा का वचन युगानुयुग स्थिर रहेगा।” (१ पतरस १:२५) लेकिन आधुनिक युग की खोज से पवित्र वचन के संरक्षण के विषय में कौनसी बातें प्रकाश में आयी हैं?

मूल ग्रन्थ कितना विश्‍वासयोग्य है?

मसीही यूनानी शास्त्र के अंश आख़िर कितने विश्‍वासयोग्य है? निश्‍चय ही अत्याधिक विश्‍वासयोग्य और बेजोड़ हैं, जब हम प्राचीन समय के अन्य बचे हुये लेखों से तुलना करते हैं। गेरहार्ड क्रोल द्वारा लिखी पुस्तक ‘औफ़ डेन स्प्यूरेन जेसु’ (यीशु के पद-चिन्हों में) में इस सच्चाई की विशिष्टता बतायी गयी थी। उदाहरण के लिये, लेखक ने बताया कि यूननी दार्शनिक, अरस्तू (चौथी शताब्दी सामान्य युग पूर्व) के लेखों में से केवल ६ पॅपाइराय सुरक्षित हैं, जो अधिकतर दसवीं शताब्दी सामान्य युग या बाद की अवधि के हैं। प्लेटो (चौथी शताब्दी सा.यु.पू.) के लेखों की स्थिति इससे कुछ बेहतर है। उसके लेखों में से दस हस्तलिपियाँ हैं जो कि तेरहवीं सदी से पहले की अवधि की हैं। हेरोदोतोस (पाँचवीं शताब्दी सा.यु.पू.) के मामले में २० पॅपाइरस खण्ड पहली शताब्दी सा.यु. और बाद के हैं। उसके लेख की पहली सम्पूर्ण हस्तलिपियाँ दसवीं शताब्दी की हैं। जोसेफ़स के लेखों की प्रारंभिक हस्तलिपियाँ केवल ग्यारहवीं शताब्दी के समय की हैं।

इसके विपरीत, मसीही यूनानी शास्त्र (प्रथम शताब्दी सा.यु. में पूरा हुआ) के मूल ग्रंथ को दूसरी शताब्दी के खण्डों और चौथी शताब्दी के सम्पूर्ण प्रतिलिपियों से अनुप्रमाणित किया गया है। क्रोल के अनुसार, दूसरी से सातवीं शताब्दी तक के ८१ पॅपाइराय, चौथी से दसवीं शताब्दी के २६६ बड़े अक्षरों में लिखी हस्तलिपियाँ और नौवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक की २,७५४ घसीट अक्षरों में लिखी हस्तलिपियाँ और २,१३५ स्तुतिसंग्रह मौजूद हैं। यह सभी मसीही यूनानी शास्त्र के मूल ग्रन्थ को स्थापित करने में सहायता करती हैं। इसलिए, हाँ, यह अच्छी तरह से अनुप्रमाणित है।

यूहन्‍ना के इंजील का एक प्रमुख अंश

कूड़े के ढ़ेर में एक मूल्यवान बाइबल हस्तलिपि को पाने की किसने आशा की होगी? तो भी वहीं पर, यूहन्‍ना का इंजील के १८ अध्याय का एक मूल्यवान खण्ड पाया गया। और अब यह जॉन राएलैन्डस्‌ पॅपाइरस ४५७ (पी५२) नाम से जाना जाता है, और मॅनचेस्टर, इंगलैंड, में सुरक्षित रखा हुआ है। इसकी खोज कैसे हुई और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

इस शताब्दी के आरम्भ में, मिस्र के एल फ़ाय्यूम ज़िले के ऑक्सीरिंकस शहर के बाहर, पुरातत्वज्ञों ने बहुत सारे पॅपाइरस खण्ड खोद कर निकाले जिसमें पत्र, रसीदें, निवेदन पत्र और जनगणना दस्तावेज़ों के साथ अन्य लिखित ग्रन्थ सम्मिलित थे। अधिकतर यूनानी भाषा में लिखे हुये थे, यह सभी सूखी रेत में शताब्दियों से सुरक्षित पड़े हुये थे।

वर्ष १९२० में मॅनचेस्टर के जॉन राएलैन्डस पुस्तकालय ने इस ‘पॅपाइराय’ के संग्रह को प्राप्त किया। चौदह वर्षों बाद, विद्वान सी. एच. रॉबर्टस ने कुछ हिस्सों को छाँटते समय, कछ ऐसे शब्द पाए जो उसे जाने-पहचाने से लगे। उसकी उत्तेजना की कल्पना कीजिये जब उस ने यह जाना के वे यूहन्‍ना १८ अध्याय से थे, जहाँ ३१ से ३३ वचन के भाग खण्ड की एक ओर थे और दूसरी ओर (पुस्तक केवाम पृष्ठ पर) ३७ और ३८ वचन के भाग थे। यह पॅपाइरस खण्ड अब तक खोज निकाली गयी मसीही यूनानी शास्त्र की हस्तलिपि का सबसे पुराना भाग साबित हुआ। यूनानी बड़े अक्षरों में लिखा, जिन्हें ‘अनशियल’ अक्षर कहते हैं, यह हमारे सामान्य युग की दूसरी शताब्दी के प्रथम भाग से उत्पन्‍न था।

यह खण्ड केवल ३.५ इंच लम्बा और २.५ इंच चौड़ा है। इस पॅपाइरस के टुकड़े की इतनी सही तरीख़ का अनुमान लगाना कैसे संभव हुआ? मुख्य रूप से लिखाई का ढंग जाँचकर, जिसे पेलियोग्राफ़ी या प्राचीन शिलालेखों का अध्ययन कहते हैं। सभी हस्तलेख कई वर्षों में धीरे-धीरे बदल जाते हैं। और यही परिवर्तन हस्तलिपि के समय को दर्शाते हैं, जिसमें कुछ वर्षो में ग़लती की गुंजाइश किसी भी ओर हो सकती है। इसलिये यह सम्पूर्ण हस्तलिपि, जिसका यह खण्ड एक छोटा-सा भाग है, यूहन्‍ना के अपने मूल इंजील को लिखने के काफ़ी निकट के समय की थी। संभवतः यह अन्तर ३० से ४० वर्ष जितने कम समय का अन्तर होगा। हम इस बात से भी विश्‍वस्त हो सकते हैं कि यूहन्‍ना का लेख बाद के शास्त्रियों द्वारा भी उल्लेखनीय रूप से बदला नहीं गया, क्योंकि बाद में पाई गयी हस्तलिपियों से इस खण्ड का विषय लगभग संपूर्ण रूप से मेल खाता है।

इस खोज से पहले, आलोचक यह विवाद करते थे कि यूहन्‍ना का इंजील वास्तव में यीशु के प्रेरितों द्वारा नहीं लिखा गया, परन्तु कुछ समय बाद दूसरी शताब्दी के अन्त में किसी के द्वारा लिखा गया था। इसके विपरीत, इस खण्ड से अब यह स्पष्ट है कि यूहन्‍ना का इंजील, मिस्र देश में दूसरी शताब्दी के पहले भाग में, एक लपेटवें कागज़ के रूप में नहीं, बल्कि एक हस्तलिखित पुस्तक के रूप में मौजूद था। कितनी आश्‍चर्यजनक बात है कि एक प्रतीयमान रूप से महत्त्वहीन दिखाई देनेवाला पॅपाइरस का खण्ड आलोचकों को इतने प्रभावशाली रूप से शान्त कर सका!

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पॅपाइरस

पॅपाइरस एक पौधा है जो, कम गहरे, स्थिर पानी में या गीली भूमि और धीमी बहनेवाली नदी के किनारे, जैसे की नील नदी, में पनपता है। (अय्यूब ८:११) पॅपाइरस कागज़ को लिखाई के लिए उपयोग में लाया जाना, संभावतः इब्राहीम के समय से ही शुरू हो गया था। बाद में इसका निर्माण, प्राचीन मिस्र के प्रमुख उद्योगों, में से एक था। इसके निर्माण में उन्होंने एक काफ़ी साधारण प्रक्रिया अपनायी। अन्दर के गूदे को लम्बाई में पतले कतरन के रूप में काटे जाते थे और साथ-साथ (आड़े) रखकर, दूसरी ओर से (तिरछे) एक और परत चिपका देते थे। फिर इसे दबाते थे और एक चादर के रूप में धुप में सुखाते थे, और बाद में झांवा (प्यूमिस), शंख या हाथी दाँत से पॉलिश कर देते थे। इन चादरों को जोड़कर लपेटवाँ काग़ज़ का रूप दिया जा सकता था, जिसकी औसत लम्बाई १४-२० फुट की होती थी, यद्यपि एक १३३ फुट लम्बी चादर भी सुरक्षित रखी हुई है। या, पत्तों को एक हस्तलिखित पुस्तक के रूप में बारी-बारी मोड़ते थे, इस प्रकार की हस्तलिपि जो प्रारम्भिक मसीहियों में बहुत प्रचलित थी।

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पार्चमेन्ट और वेलम

पाँचवीं शताब्दी की अलैकज़ैन्डरीन कोडैक्स,’ जिसमें प्रारंभ में सम्पूर्ण बाइबल थी, महीन चर्मपत्र या ‘वेलम’ पर लिखी है। यह पदार्थ क्या है और यह पार्चमेन्ट या साधारण चमड़े के कागज़ से कैसे भिन्‍न है?

प्राचीन समय से, पार्चमेन्ट भेड़, बकरी या बछड़े की खाल से बनाया जाता था। इसे बनाने के लिये खाल को धोकर, उसके बालों को खुरचकर साफ़ करके, उन्हें साँचों में डालकर खींचकर सुखाया जाता था। (२ तीमु. ४:१३ से तुलना करें) हमारे सामान्य युग की तीसरी और चौथी शताब्दी तक, इस पदार्थ की दो विभिन्‍न श्रेणीयों को स्वीकार किया गया, घटिया श्रेणी पार्चमेन्ट से ही जाना जाता रहा और बढ़िया श्रेणी वेलम के नाम से जाना गया। बढ़िया चर्मपत्र या वेलम के लिये बछड़े या बक़री के बच्चे, अथवा मृत उत्पन्‍न हुये बछड़े या मेमने की कोमल खाल, का उपयोग किया जाता था। उससे एक पतला, चिकना और लगभग सफ़ेद लिखने का पदार्थ बनता था, जो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों को लिखने में प्रयोग किया जाता रहा, जब तक कि छपाई का आविष्कार नहीं हुआ, जिसके लिये कागज़ का उपयोग सस्ता और उत्तम था।

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