शास्त्र से शिक्षा: योएल १:१-३:२१
यहोवा का नाम लेकर प्रार्थना करो और सही-सलामत बच निकलो!
“यदि यह मुसीबत नियंत्रण से बाहर होगी, तो वह पूर्वी आफ्रीका और निकट पूर्व तक फैलेगी। यह एक अनर्थ हो सकता है।” इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के एक अधिकारी ने उस भुक्कड़ कीड़े के बारे में कहा जो हाल में करोड़ों की तादाद में उत्तर-पश्चिमी आफ्रीका में घुस रही है—टिड्डी।
लगभग सामान्य युग पूर्व सन् ८२० में, परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता योएल ने एक समान मुसीबत के बारे में कहा। सजीव शब्दों में, जो यथार्थता और वास्तविकता में अद्वितीय हैं, उसने वर्णन किया कि यहूदा की जाति किस तरह कीड़ों के घातक आक्रमण द्वारा बरबाद की जाती। परन्तु, वह मुसीबत एक पारिस्थितिक ख़तरे से कहीं ज़्यादा सार्थक बात का चित्रण थी। वह “यहोवा के दिन” का उद्घोषक थी। हमारी पीढ़ी उस “भय-प्रेरक दिन” और उसकी सारी विनाशक प्रकोप के सम्मुख है। उद्धार की क्या आशा है? और योएल के भविष्यसूचक किताब से हम क्या शिक्षा सीख सकते हैं?
कीड़ों का दहलानेवाला आक्रमण
यहोवा के भय-प्रेरक दिन में उद्धार के लिए पश्चाताप ज़रूरी है। योएल के नज़रों से, हम एक अनर्थ देखते हैं, जैसे सूँडी, टिड्डी, रेंगनेवाली पर-रहित टिड्डी, और तिलचट्टों के दल, पेड़-पौधों को छील-छीलकर भूमि खाली कर देते हैं। यहूदा के याजक, पुरनिए, और अन्य निवासियों को पश्चाताप करने ‘और यहोवा की दोहाई देने’ के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। भण्डार सूने पड़े हैं, और खत्ते गिर पड़े हैं इसलिए कि वे उपज रहित बन गए हैं। पालतु जानवर यहाँ-वहाँ विकल भटककर, व्यर्थ ही चराई के लिए खोजते हैं। सर्वशक्तिमान से वंचन का यह कैसा दिन!—१:१-२०.
यहोवा के दिन की सन्निकटता हमें पवित्र चालचलन और दैवी कर्मों में व्यस्त होने के लिए प्रेरित करनी चाहिए। (२ पतरस ३:१०-१२) योएल हमें उसे तिमिर, बादलों, और घने अँधियारे के एक दिन के तौर से देखना संभव करता है। टिड्डियाँ उस दिन के भयावह अग्रदूत हैं। उनके आने के एकदम बाद, यहूदा का एदन-जैसा भू-दृश्य एक वीरान बंजर भूमि बन जाती है। टिड्डियों की बस आवाज़ ही अनिष्ट सूचक है, इसलिए कि यह रथ और खूँटी भस्म करनेवाली एक धधकती आग के जैसी है। जैसे जैसे टिड्डयाँ “पाँति बाँधे हुए बलि योद्धाओं” के समान आगे बढ़ती हैं, वे दीवारों पर चढ़ती हैं, नगरों में घुस पड़ती हैं, और घरों में प्रवेश करती हैं। ‘यहोवा के भय-प्रेरक दिन’ के दौरान सूर्य, चंद्र, और तारें भी अंधियारे होते हैं।—२:१-११.
उद्धार का मार्ग
उद्धार के लिए, हमें स्वीकार करना चाहिए कि ‘यहोवा ही परमेश्वर है और कोई दूसरा नहीं।’ “अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ,” यहोवा सलाह देता है। दैवी अनुग्रह की याचना करने के वास्ते बूढ़ों और जवानों को गंभीर सभाओं में इकट्ठा होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। परमेश्वर तरस खाएगा, कीड़ों के किए विध्वंस की क्षतिपूर्ति करेगा, और अपने लोगों को प्रचुरता से आशीर्वाद-प्राप्त करेगा। जो कोई यहोवा के पद को, एकमात्र सच्चे परमेश्वर और उद्धार का स्रोत होने के नाते, स्वीकार करेगा, उन्हें कभी शर्मिंदा किया नहीं जाएगा।—२:१२-२७.
हमारा उद्धार विश्वास से यहोवा का नाम लेकर प्रार्थना करने पर भी निर्भर है। “यहोवा के उस बड़े और भय-प्रेरक दिन” से पहले, परमेश्वर ‘अपनी आत्मा सब प्राणियों पर उँडेल देगा।’ छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, भविष्यवाणी करने का काम करेंगे। इस प्रकार, अनेक जान जाएँगे कि ‘जो कोई यहोवा का नाम लेकर प्रार्थना करेगा, वह सही-सलामत बच निकलेगा।’—२:२८-३२.
अन्यजातियों पर दंडादेश
यहोवा अपने विश्वसनीय लोगों को बचाएगा जब वह अन्यजातियों को दंडादेश देगा। (तुलना यहेजकेल ३८:१८-२३; प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६ से करें।) सोर, सीदोन, और पलिश्तीन को परमेश्वर के लोगों का दुर्व्यवहार करने और उन्हें गुलामी में बेचने का फल भोगना ही पड़ेगा। यहोवा यहूदा और यरूशलेम के गुलामों को वापस लाएगा और वह अपने बैरियों को यह कहकर ललकारता है कि: “युद्ध पवित्र करो!” पर वे परमेश्वर के कोई जोड़ नहीं, जो उनको “यहोशापात की तराई” में दंडादेश देगा। हालाँकि आकाश और पृथ्वी थरथराएँगे, यहोवा अपने लोगों के लिए शरणस्थान होगा। विश्वासयोग्य लोग अन्यजातियों पर लाए दंडादेश से बचेंगे और प्रमोदवन-जैसी अवस्था में जीवन का आनन्द लेंगे।—३:१-२१.
याद रखने के लिए शिक्षा: यहोवा के भय-प्रेरक दिन में अगर किसी व्यक्ति को बचना है तो पश्चाताप पहले से आवश्यक है। उस दिन की सन्निकटता हमें पवित्र चालचलन और दैवी कर्मों में व्यस्त होने के लिए प्रेरित करनी चाहिए। निश्चय ही, हमारा उद्धार यह स्वीकारने पर निर्भर है कि केवल यहोवा ही परमेश्वर है। और अगर हम उसका नाम लेकर विश्वास से प्रार्थना करेंगे, तो जब वह अन्यजातियों को दंडादेश देगा, तब वह हमें बचाएगा।
योएल की भविष्यवाणी हमें और भी चिंतन के विषय देती है। अजी, “यहोवा का बड़ा और भय-प्रेरक दिन” सन्निकट है! योएल की भविष्यवाणी के टिड्डियों के जैसे, यहोवा के गवाह ईसाईजगत् की आत्मिक रूप से बाँझ अवस्था को अनावृत करके उसे उजाड़ देते हैं। यह उसके अगुवाओं का प्रकोप और विरोध जगाता है, पर वे जो भी दीवार-जैसी बाधाओं को प्रतीकात्मक टिड्डियों के रास्ते में खड़ा करने की कोशिश करते हैं, वे बेकार साबित होते हैं। यहोवा ने अपने लोगों पर अपनी आत्मा उँडेल दी है, और इस तरह उन्हें अपने निर्णयन सुनाने के लिए लैस किया है। इसलिए, परमेश्वर के भय-प्रेरक दिन से पहले बचे थोड़े समय में, हम दूसरों को मदद करने में पूरा हिस्सा लें, कि वे ‘यहोवा का नाम लेकर प्रार्थना करें, ताकि सही-सलामत बच निकल सकें।’
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बाइबल के मूल शास्त्रों का परीक्षण
१:२—योएल ने उन “पुरनियों” को संबोधित किया जिन्होंने जाति को गुमराह किया था। चूँकि “देश के सब रहनेवालों” ने वह झूठा मार्गदर्शन अपनाया था, वे भी यहोवा के नज़रों में जवाबदेह थे। आज, उसी तरह ईसाईजगत् के धार्मिक अगुवाओं ने अपने झुंडों को गुमराह किया है। योएल के जैसे, यहोवा के गवाहों ने उस पादरी वर्ग को संदेश निर्दिष्ट किए हैं। फिर भी, आम जनता को परमेश्वर के वचन की घोषणा की जानी चाहिए क्योंकि वे भी यहोवा को लेखा देंगे।—यशायाह ९:१५-१७; रोमियों १४:१२.
२:१-१०, २८—इस्राएलियों को चेतावनी दी गयी थी कि अगर वे परमेश्वर की आज्ञा न मानते, तो टिड्डियाँ और अन्य जीव-जंतु उनके पैदावार को खा जाते। (व्यवस्थाविवरण २८:३८-४५) चूँकि धर्मशास्त्र कनान देश पर योएल द्वारा ज़िक्र किए गए अनुपात का कीड़ों के हमले का रिकार्ड नहीं करते, उसने जो मुसीबत वर्णित की, वह प्रकट रूप से चित्रात्मक थी। प्रत्यक्षतः, यह भविष्यवाणी सामान्य युग पूर्व ३३ के पिन्तेकुस्त पर परिपूर्ण होना शुरु हुई, जब यहोवा ने यीशु के अनुगामियों पर ‘अपनी आत्मा उँडेलना शुरु किया, जिन्होंने अपने इश्वर-प्रदत्त संदेश से झूठे धर्मानुयायिओं को संतप्त किया। (प्रेरितों के काम २:१, १४-२१; ५:२७-२९) यहोवा के गवाह अब समान रूप से अतिशय प्रभावशाली कार्य करते हैं।
२:१२, १३—प्राचीन काल में, अपने वस्त्रों को फाड़ डालना शोक की एक बाहरी अभिव्यक्ति थी। (उत्पत्ति ३७:२९, ३०; ४४:१३) पर यह कपटपूर्ण और ढ़ोंगी रीति से किया जा सकता था। योएल ने यह स्पष्ट किया कि दुःख के बाहरी अभिव्यक्तियाँ काफ़ी न थीं। हार्दिक पश्चाताप दिखाकर, यह ज़रूरी था कि व्यक्ति ‘अपना हृदय फाड़ डाले।’
२:३१, ३२—यहोवा ने योएल के समय के विश्वसनीय लोगों के लिए विनाश से बचाव का प्रबंध किया। अब, इन “अंतिम दिनों” में, परमेश्वर यीशु मसीह के द्वारा उद्धार संभव कर रहा है। (२ तीमुथियुस ३:१; रोमियों ५:८, १२; ६:२३) परंतु, अनन्त उद्धार के लिए यह यहोवा का नाम ही है जिसे लेकर पापी मानवों को प्रार्थना करनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि दैवी नाम जान जाएँ, उसको पूरा-पूरा आदर दिखाएँ, और उसके धारक पर पूर्ण रूप से भरोसा करें। इस प्रकार यहोवा का नाम लेकर विश्वास से प्रार्थना करनेवाले ‘सही-सलामत बच निकलेंगे’ जब यहोवा अपने “बड़े और भय-प्रेरक दिन” में अन्यजातियों पर अपना दंडादेश देगा।—सपन्याह २:२, ३; ३:१२; रोमियों १०:११-१३.
३:२, १४—“यहोवा के बड़े और भय-प्रेरक दिन” में दैवी दंडादेश देने की प्रतीकात्मक जगह को “निबटारे की तराई” कही गयी है। इसे “यहोशापात की तराई” भी कहा गया है। यह उचित है क्योंकि यहोशापात, इस नाम का अर्थ है, “यहोवा न्यायकर्ता है।” राजा यहोशापात के शासनकाल में, परमेश्वर ने यहूदा और यरूशलेम को मोआबी, अम्मोनी, और सेईर के पहाड़ी देश की सेनाओं से मुक्ति दिलायी, और उन्हें विभ्रांत करके एक दूसरे की हत्या करने के लिए प्रेरित किया। (२ इतिहास २०:१-३०) हमारे समय में, “यहोशापात की तराई” एक प्रतीकात्मक रसकुण्ड के तौर से काम आती है जिस में अन्यजातियाँ, चूँकि उन्होंने यहोवा के लोगों से दुर्व्यवहार किया, अंगूरों की तरह रौंदे जाते हैं।
३:६—सोर, सीदोन, और पलिश्तीन यहूदा और यरूशलेम के लोगों को यूनानियों की गुलामी में बेच डालने के अपराधी थे। संभवतः, अन्यजातियों द्वारा कब्ज़े में लिए गए कुछ यहूदी लोग, सोरी, सीदोनी, और पलिश्ती गुलाम के व्यापारियों के हाथों लग गए। उस से कहीं ज़्यादा बुरा, शायद इन जातियों ने ऐसे यहूदियों को गुलाम बनाया, जो अपने शत्रुओं से भागकर उन में शरणस्थान खोज रहे थे। बात चाहे कैसे भी हो, अपने लोगों का दुर्व्यवहार करने की वजह से परमेश्वर ने मानवी जीवन के इन व्यापारियों से हिसाब माँगा। यह संकेत करता है कि आज जो अन्यजातियाँ यहोवा के सेवकों को उत्पीडित करते हैं, उनके लिए भविष्य में क्या रखा है।
[पेज 27 पर चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.