पाठकों से प्रश्न
◼ क्या यह बाइबल सिद्धान्तों के अनुकूल होगा अगर एक शादी-शुदा मसीही दम्पति ने संतति-निरोध गोलियों का इस्तेमाल किया?
धर्मशास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि मसीही दम्पति पर बच्चे जनने की बाध्यता है या, यदि उनके बच्चे होते हैं, तो कितने बच्चे होने चाहिए। हर दम्पति को निजी और ज़िम्मेदार रूप से तै करना चाहिए कि क्या उन्हें अपने परिवार को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए या नहीं। अगर वे संतति-निरोध इस्तेमाल करने के लिए सहमत होते हैं, तो वे कौनसा गर्भ-निरोधक इस्तेमाल करेंगे, यह भी एक निजी मामला है। बहरहाल, बाइबल के विषय में उनकी समझ और उनके अंतःकरण के अनुसार, उन्हें इस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि क्या अमुक तरीक़ा अपनाने से जीवन की पवित्रता के लिए आदर दिखाया जाएगा या नहीं।
बाइबल सूचित करती है कि व्यक्ति का जीवन अण्डाणु-निषेचन से शुरु होता है; जीवन-दाता उस जीवन को देखते हैं जो निषेचित हुआ है, उस “बेडौल तत्त्व को” भी, जो बाद में गर्भ में विकसित होगा। (भजन १३९:१६; निर्गमन २१:२२, २३a; यिर्मयाह १:५) इसलिए, किसी निषेचित जीवन का ख़त्म करने की कोई कोशिश नहीं की जानी चाहिए। ऐसा करना गर्भपात होगा।
दुनिया भर में संतति-निरोध गोलियाँ व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती हैं। वे शिशु-जन्म को किस तरह रोकती हैं? दो मुख्य क़िस्म की गोलियाँ हैं—कॉम्बिनेशन् पिल् और प्रोजेस्टिन-ओन्ली पिल् (या, मिनि-पिल्)। अनुसन्धान से गर्भ रोकने के लिए उनकी प्रधान प्रक्रिया स्पष्ट की गयी है।
कॉम्बिनेशन् गोली में ईस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टिन हॉर्मोन हैं। यू. एस. फ़ूड ॲन्ड ड्रग ॲड्मिनिस्ट्रेशन् के अनुसार, कॉम्बिनेशन् गोली की “प्रधान प्रक्रिया अण्डोत्सर्ग को रोकना है।” ऐसा प्रतीत होता है कि जब यह सतत ली जाती है, तब इस क़िस्म की गोली लगभग हमेशा ही अण्डाशय से डिंब के छोड़े जाने को रोकती है। जब कोई डिंब या अण्डाणु छोड़ा नहीं जाता, तब डिंबवाहिनी (फैलोपिओ) नलियों में अण्डाणु-निषेचन घटित नहीं हो सकता। जबकि इस क़िस्म की गोली शायद “एन्डोमेट्रियम [गर्भाशय के अंतःस्तर]” में परिवर्तन भी उत्पन्न कर सकती है, “(जिसके कारण गर्भस्तर से निषेचित अण्डाणु के लग जाने की संभावना कम होती है),” इसे एक अप्रधान प्रक्रिया समझी जाती है।
गौण प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से, इस तरह की कॉम्बिनेशन् गोलियों को विकसित किया गया है जिन में ईस्ट्रोजेन की घटा दी गयी ख़ुराक हैं। प्रत्यक्ष रूप से, ये कम-ख़ुराकवाली कॉम्बिनेशन् गोलियाँ अण्डाशय में अधिक क्रिया होने देती हैं। नॅशनल् इंस्टिट्यूटस् ऑफ हेल्थ के गर्भ-निरोधक विकास शाखा के अध्यक्ष, डॉ. गेब्रिएल बियाली कहते हैं: “वैज्ञानिक सबूत के आधिक्य से सूचित होता है कि कम-ईस्ट्रोजेन वाली गोली से भी, अण्डोत्सर्ग रोका जाता है, शत प्रतिशत नहीं, लेकिन अधिक संभव रूप से यह तक़रीबन ९५ प्रतिशत तक रोका जाता है। लेकिन सिर्फ़ यह तथ्य, कि अण्डोत्सर्ग होता है, यह कहने के बराबर नहीं कि अण्डाणु-निषेचन हुआ है।”
अगर कोई स्त्री कॉम्बिनेशन् गोली के लिए रचे गए कार्यक्रम के मुताबिक़ उसे लेना चूक जाती है, तो संभावना बढ़ जाती है कि अप्रधान प्रक्रिया गर्भ-धारण को रोकने में एक भूमिका अदा करेगी। जो स्त्रियाँ दो कम-ख़ुराकवाली गोलियाँ लेना चूक गयी थीं, उन के एक अनुशीलन से पता हुआ कि जाँच की गयी ३६ प्रतिशत स्त्रियों को “निस्सरण” अण्डोत्सर्ग हुए थे (जो कि नहीं होना चाहिए था)। कॉन्ट्रासेप्शन् नामक पत्रिका रिपोर्ट करती है कि ऐसी स्थितियों में “गर्भाशय के अंतःस्तर (एन्डोमेट्रियम) और ग्रैव श्लेष्मा (सर्वाइकल् म्यूकस्, जो ग्रीवा के पास उत्पन्न होनेवाली श्लेष्मा है) पर गोलियों के प्रभाव शायद . . . गर्भ-निरोधक सुरक्षा देते रहेंगे।”
दूसरी क़िस्म की गोली—प्रोजेस्टिन-ओन्ली (मिनि-पिल्) का क्या? ड्रग ईवॅल्यूएशनस् (१९८६) रिपोर्ट करती है: “प्रोजेस्टिन-ओन्ली गोलियों से अण्डोत्सर्ग का रोका जाना, गर्भ-धारण की एक प्रमुख विशेषता नहीं है। इन कारकों से एक गाढ़ी ग्रैव श्लेष्मा (सर्वाइकल् म्यूकस्) का निर्माण होता है जो शुक्राणुओं के लिए अपेक्षया अभेद्य है; इन के कारण शायद डिंबवाहिनी (फैलोपिओ) नलियों में निषेचित अण्डाणु के आगे बढ़ने का समय बढ़ेगा और इन से गर्भाशय का अंतःस्तर (एन्डोमेट्रियम) भी गर्भधारण के लिए तैयार नहीं होता [जो किसी भी निषेचित अण्डाणु के विकास में बाधा बनेगा]।”
कुछेक अनुसन्धायक दावा करते हैं कि प्रोजेस्टिन-ओन्ली गोलियों से, “४० प्रतिशत प्रयोक्ताओं में सामान्य अण्डोत्सर्ग घटित होता है।” तो यह गोली अक्सर अण्डोत्सर्ग को घटित होने देती है। ग्रीवा (सर्विक्स) के पास गाढ़ी श्लेष्मा शायद शुक्राणुओं के रास्ते को बन्द करेगा और इस प्रकार अण्डाणु-निषेचन को होने नहीं देगा; यदि नहीं, तो इन गोलियों की वजह से गर्भ में उत्पन्न प्रतिकूल वातावरण शायद निषेचित अण्डाणु को गर्भस्तर से लग जाने और एक बच्चे में विकसित हो जाने से रोकेगा।
तो फिर, यह समझा जा सकता है कि जब ये गर्भ-निरोध के लिए नियमित रूप से इस्तेमाल की जाती हैं, तब प्रतीत होता है कि दोनों मुख्य क़िस्म की गोलियाँ अधिकांश स्थितियों में अण्डणु-निषेचण को रोकती हैं और इस प्रकार गर्भपात उत्पन्न नहीं करतीं। परन्तु, चूँकि प्रोजेस्टिन-ओन्ली (मिनि-पिल्) अण्डोत्सर्ग को और भी अक्सर घटित होने देती है, इसलिए एक अधिक बड़ी संभावना है कि निषेचित-अण्डाणु का गर्भस्तर से लग जाने में दख़ल देकर, जिसका जीवन शुरु हुआ है, यह गोली कभी-कभी बच्चे के जन्म को रोकती है। वैज्ञानिक अनुशीलन से सूचित होता है कि सामान्यतः (ऐसी स्थिति में जहाँ गर्भाशय गर्भ-निरोधक गोलियों से अप्रभावित है) “साठ प्रतिशत निषेचित अण्डाणु . . . पहले चूके गए रजोधर्म से पहले ही गँवाए जाते हैं।” यह बात कि ऐसा होता है, गर्भ-निरोध का एक ऐसा तरीक़ा चुनने से काफ़ी अलग है, जो किसी निषेचित-अण्डाणु का गर्भस्तर से लग जाने में अधिक संभव रूप से बाधा बन सकता है।
इसलिए, अगर कोई दम्पति किसी चिकित्सक के साथ गर्भ-निरोधक गोलियों के इस्तेमाल के मामले पर विचार-विमर्श करते हैं, तो कुछ ऐसे सुनिश्चित नैतिक पहलु हैं जिन पर विचार करना होगा। मसीहियों को गुप्त और निजी मामलों को भी एक ऐसी रीति से तै करना चाहिए, कि वे हमारे परमेश्वर और जीवन-दाता के सामने एक “बिल्कुल ही साफ़ अन्तःकरण” बनाए रख सकें।—प्रेरितों के काम २३:१, न्यू.व.; गलतियों ६:५.
[फुटनोट]
a द वॉचटावर, का अगस्त १, १९७७, अंक, पृष्ठ ४७८-८० देखें।