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  • सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है

“परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिए . . . दिखाया।”—इब्रानियों ६:१०.

१, २. सच्चा प्रेम हमारे लिए व्यक्‍तिगत रूप से पुरस्कारदायक क्यों है?

निःस्वार्थ प्रेम सबसे बड़ा, सबसे महान्‌ और सबसे क़ीमती गुण है, जो हम व्यक्‍त कर सकते हैं। इस प्रेम से (यूनानी, अ·गाʹपे) हम से सतत बहुत माँगा जाता है। पर चूँकि हमारी सृष्टि न्याय और प्रेम के परमेश्‍वर द्वारा की गयी है, हम पाते हैं कि निःस्वार्थ प्रेम सचमुच ही पुरस्कारदायक है। ऐसा क्यों?

२ सच्चे प्रेम का पुरस्कारदायक होने के एक कारण में वह मनोदैहिक सिद्धान्त सम्मिलित है, यानी, अपने शरीरों पर विचारों और जज़बातों का असर। तनाव के एक विशेषज्ञ ने कहा है: “‘अपने पड़ोसी से प्रेम रख,’ यह किसी भी समय में दी गयी सबसे अक्लमन्द चिकित्सक सलाह है।” जी हाँ, “कृपालु मनुष्य अपना ही भला करता है, परन्तु जो क्रूर है, वह अपनी ही देह को दुःख देता है।” (नीतिवचन ११:१७) ये शब्द भी समान महत्त्व के हैं: “उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट किया जाएगा, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।”—नीतिवचन ११:२५, न्यू.व.; लूका ६:३८ से तुलना करें।

३. सच्चे प्रेम को पुरस्कारदायक बनाने के लिए परमेश्‍वर किस तरह कार्य करते हैं?

३ प्रेम इसलिए भी पुरस्कारदायक है कि परमेश्‍वर निःस्वार्थता का प्रतिफल देते हैं। हम पढ़ते हैं: “जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल [परमेश्‍वर से] पाएगा।” (नीतिवचन १९:१७) यहोवा के गवाह इन शब्दों के अनुरूप कार्य करते हैं जब वे परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करते हैं। वे जानते हैं कि ‘परमेश्‍वर अन्यायी नहीं कि उनके काम और उनके प्रेम को भूल जाए।’—इब्रानियों ६:१०.

हमारे सबसे उत्तम आदर्श

४. सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है, इस बात का सबसे उत्तम आदर्श कौन पेश करते हैं, और उन्होंने यह किस तरह पेश किया है?

४ सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है, इसके लिए कौन सबसे उत्तम आदर्श पेश करता है? अजी, यह आदर्श तो परमेश्‍वर ही पेश करते हैं! उन्होंने “जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।” (यूहन्‍ना ३:१६) अपने पुत्र को दे देना, ताकि उस छुड़ौती की क़ुरबानी पर विश्‍वास करनेवालों को अनन्त जीवन मिले, बेशक यह यहोवा के लिए बहुत भारी क़ीमत रही होगी, और इस से स्पष्ट रूप से दर्शाया गया कि उन्हें प्रेम और समानुभूति, दोनों हैं। इसके अलावा, यह बात इस तथ्य से भी दर्शायी जाती है कि ‘मिस्र में उठाए उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया।’ (यशायाह ६३:९) यहोवा के लिए यह कितना ज़्यादा कष्टप्रद रहा होगा जब उन्होंने अपने पुत्र को यातना स्तंभ पर कष्ट उठाते देखा और उसे ज़ोर से पुकारते हुए सुना: “हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?”—मत्ती २७:४६.

५. परमेश्‍वर ने मनुष्यजाति से ऐसा प्रेम रखने की वजह से, जिस से उन्होंने अपने पुत्र को एक क़ुरबानी के तौर से दिया, क्या घटित हुआ है?

५ क्या यहोवा ने सच्चे प्रेम की खुद की अभिव्यक्‍ति को पुरस्कारदायक पाया? उन्होंने निश्‍चय ही पाया। विशिष्ट रूप से, परमेश्‍वर इब्लीस के मुँह पर क्या ही ज़बरदस्त जवाब फेंक सके, इसलिए कि यीशु उन सारी तक़लीफ़ों के बावजूद भी विश्‍वस्त रहा, जो शैतान उस पर ला सका! (नीतिवचन २७:११) दरअसल, यहोवा के नाम से बदनामी हटाने, इस पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित करने और करोड़ों को अनन्त जीवन देने में परमेश्‍वर का राज्य जो भी निष्पन्‍न करेगा, वह सब इसलिए होगा कि परमेश्‍वर ने मनुष्यजाति से ऐसा प्रेम रखा कि उन्होंने अपने परमप्रिय पुत्र को एक क़ुरबानी के तौर से दे दिया।

यीशु का बढ़िया आदर्श

६. प्रेम से यीशु क्या करने के लिए प्रेरित हुआ?

६ सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है, इसे साबित करनेवाला एक और बढ़िया आदर्श परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु मसीह का है। वह अपने स्वर्ग के पिता से प्रेम रखता है और उस प्रेम से यीशु यहोवा की इच्छा को हर क़ीमत पर पूरा करने के लिए प्रेरित हुआ। (यूहन्‍ना १४:३१; फिलिप्पियों २:५-८) यीशु परमेश्‍वर के प्रति अपना प्रेम हमेशा दिखाता रहा, हालाँकि कभी-कभी इसका मतलब यह होता था कि उसे अपने पिता से “ऊँचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आँसू बहा बहाकर” बिनती करनी पड़ती थी।—इब्रानियों ५:७.

७. यीशु ने सच्चे प्रेम को किन रीतियों में पुरस्कारदायक पाया है?

७ क्या ऐसे आत्म-त्यागी प्रेम के लिए यीशु को प्रतिफलित किया गया? बिल्कुल! उस आनन्द के बारे में सोचिए जो उसने अपनी साढ़े तीन साल की सेवकाई में खुद के द्वारा किए गए सारे भले कामों से प्राप्त किया। उसने लोगों की आत्मिक तथा शारीरिक रूप से कितनी मदद की! सब से ज़्यादा, यह दर्शाकर कि शैतान उसके ख़िलाफ़ जो भी करे, उसके बावजूद भी एक परिपूर्ण पुरुष परमेश्‍वर के प्रति परिपूर्ण रूप से ख़राई बनाए रख सकता था, यीशु ने इब्लीस को एक झूठा साबित करने का संतोष प्राप्त किया। इसके अलावा, परमेश्‍वर के एक विश्‍वसनीय सेवक की हैसियत से, यीशु को स्वर्गीय जीवन में अपने पुनरुत्थान पर अमरता का बड़ा प्रतिफल प्राप्त हुआ। (रोमियों ६:९; फिलिप्पियों २:९-११; १ तीमुथियुस ६:१५, १६; इब्रानियों १:३, ४) और आरमागेडोन के समय तथा अपने सहस्राब्दिक शासनकाल के दौरान, जब पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित होगी और करोड़ों लोगों को मरणावस्था में से जिलाया जाएगा, तब उसके आगे कैसे उत्कृष्ट ख़ास अनुग्रह हैं! (लूका २३:४३) इस बात पर कोई शक नहीं कि यीशु ने सच्चे प्रेम को पुरस्कारदायक पाया है।

पौलुस का आदर्श

८. परमेश्‍वर और अपने संगी-मनुष्यों के लिए सच्चे प्रेम के कारण पौलुस का कैसा अनुभव रहा?

८ एक बार प्रेरित पतरस ने यीशु से पूछा: “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिए हैं: तो हमें क्या मिलेगा?” अंशतः, यीशु ने जवाब दिया: “जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिए छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।” (मत्ती १९:२७-२९) इसका एक उल्लेखनीय आदर्श हमें प्रेरित पौलुस में मिलता है, जिस ने कई आशिषों का आनन्द लिया, जैसा कि ख़ास तौर से लूका ने प्रेरितों के काम की किताब में लेखबद्ध किया है। परमेश्‍वर और अपने संगी-मनुष्यों के लिए सच्चे प्रेम की भावना से प्रेरित होकर पौलुस ने एक सम्मानित फ़रीसी के तौर से अपना पेशा त्याग दिया। और यह भी सोचिए कि पौलुस ने कितना सहा था, कोड़े खाने में, मृत्यु की जोख़िमों में, संकटों में, और तंगी में—ये सारा इसलिए कि उसे परमेश्‍वर और उनकी पवित्र सेवा के लिए सच्चा प्रेम था।—२ कुरिन्थियों ११:२३-२७.

९. सच्चा प्रेम दर्शाने की वजह से पौलुस को कैसा प्रतिफल मिला?

९ सच्चा प्रेम दर्शाने में ऐसा बढ़िया आदर्श होने के कारण क्या यहोवा ने पौलुस को प्रतिफल दिया? ख़ैर, ज़रा सोचिए कि पौलुस की सेवकाई कितनी फलवान्‌ थी। वह मसीही मण्डलियों को एक के बाद एक स्थापित कर सका था। और परमेश्‍वर ने उसे कैसे-कैसे चमत्कार करने के लिए समर्थ किया! (प्रेरितों १९:११, १२) पौलुस को अलौकिक दर्शन पाने और १४ पत्रियाँ लिखने का भी ख़ास अनुग्रह प्राप्त था, जो कि अब मसीही यूनानी शास्त्रों का एक हिस्सा हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह थी, कि उसे स्वर्ग में अमरता का इनाम दिया गया। (१ कुरिन्थियों १५:५३, ५४; २ कुरिन्थियों १२:१-७; २ तीमुथियुस ४:७, ८) पौलुस ने निश्‍चय ही पाया कि परमेश्‍वर सच्चे प्रेम का प्रतिफल देते हैं।

हमारे समय में सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है

१०. यीशु का शिष्य बनने और यहोवा के लिए अपना प्रेम व्यक्‍त करने की क़ीमत शायद क्या होगी?

१० उसी तरह आज यहोवा के गवाहों ने भी पाया है कि सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है। यहोवा की तरफ़ अपनी स्थिति लेने और यीशु के शिष्य बनने के द्वारा उनके लिए अपना प्रेम व्यक्‍त करने के कारण शायद ख़राई बनाए रखनेवालों के रूप में हमारी जान भी चली जाए। (प्रकाशितवाक्य २:१० से तुलना करें।) इसीलिए यीशु ने कहा कि हमें इसके पक्ष-विपक्ष की सोचना चाहिए। लकिन हम वैसा यह तय करने के लिए नहीं करते कि क्या एक शिष्य बनना पुरस्कारदायक है या नहीं। उलटा, हम ऐसा इसलिए करते हैं कि खुद को वह सब चुकाने के लिए तैयार करें जो शिष्यता की क़ीमत हो।—लूका १४:२८.

११. कुछ लोग खुद को परमेश्‍वर के प्रति समर्पित करने से क्यों रह जाते हैं?

११ आज, अनेक लोग—बेशक करोड़ों लोग—उस संदेश पर विश्‍वास करते हैं जो यहोवा के गवाह उन्हें परमेश्‍वर के वचन से ले आते हैं। लेकिन वे परमेश्‍वर के प्रति खुद को समर्पित करने और बपतिस्मा लेने से कतराते हैं। क्या यह इसलिए है कि उन में परमेश्‍वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं जो दूसरों में है? अनेक लोग समर्पण और बपतिस्मा का क़दम उठाने से रह जाते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि अपने अविश्‍वासी साथी की कृपादृष्टि उन पर बनी रहे। अन्य लोग परमेश्‍वर के क़रीब नहीं आते क्योंकि उनका रवैया उस व्यापारी के रवैये के जैसा है, जिसने एक गवाह से कहा: “मुझे पाप पसन्द है।” यह ज़ाहिर है कि ऐसे व्यक्‍ति उन सारी बातों की क़दर नहीं करते जो परमेश्‍वर और मसीह ने उनकी ख़ातिर किया है।

१२. इस पत्रिका में क्या कहा जा चुका है जो ज्ञान के उन प्रतिफलों को विशिष्ट करता है, जो हमें सच्चे प्रेम के बन्धन में परमेश्‍वर के और भी क़रीब ले आते हैं?

१२ अगर हमें उन सारी बातों के लिए असली क़दरदानी है जो यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह ने हमारी ख़ातिर की हैं, तो हम इस क़दरदानी को अपने स्वर्ग के पिता की सेवा करने और यीशु के एक शिष्य बनने के लिए जो भी क़ीमत देनी पड़े, उसे स्वेच्छा से देकर दर्शाएँगे। परमेश्‍वर के लिए सच्चा प्रेम होने के कारण, ज़िन्दगी के हर पेशे में पुरुषों और स्त्रियों ने—क़ामयाब व्यापारी, क्रिड़ा-जगत के सुप्रसिद्ध व्यक्‍ति, इत्यादि, ने स्वार्थी पेशों के बदले में मसीही सेवकाई को अपना लिया है, उसी तरह जैसे प्रेरित पौलुस ने किया। और परमेश्‍वर को जानने और उनकी सेवा करने के लाभ के बदले में वे कुछ भी नहीं लेंगे। इस सम्बन्ध में, द वॉचटावर में एक बार बताया गया: “हम ने कभी-कभी पूछा है कि कितने भाई सच्चाई की जानकारी के बदले में एक हज़ार डॉलर लेने के लिए तैयार होंगे? एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा! कौन दस हज़ार डॉलर लेंगे? कोई भी नहीं! कौन दस लाख डॉलर लेंगे? कौन ईश्‍वरीय गुणों और ईश्‍वरीय योजना के बारे में जो कुछ वे जानते हैं, उसके बदले में पूरी दुनिया लेंगे? कोई नहीं! तब हम ने कहा, प्रिय मित्रों, आप बहुत ज़्यादा असंतुष्ट भीड़ नहीं। अगर आप खुद को इतना धनी महसूस करते हैं कि आप परमेश्‍वर के बारे में अपने ज्ञान के बदले में कुछ भी नहीं लेंगे, तो आप हमारे ही जैसे धनी महसूस करते हैं।” (दिसम्बर १५, १९१४, पृष्ठ ३७७) जी हाँ, परमेश्‍वर और उनके उद्देश्‍यों के बारे में यथार्थ ज्ञान हमें सच्चे प्रेम के एक ऐसे बन्धन में उन के और भी क़रीब ले आता है, जो सचमुच ही पुरस्कारदायक है।

१३. हमें निजी अभ्यास के बारे में कैसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए?

१३ अगर हम परमेश्‍वर से प्रेम रखेंगे, तो हम उनकी इच्छा जानने और उसके अनुसार करने की कोशिश करेंगे। (१ यूहन्‍ना ५:३) निजी अभ्यास, प्रार्थना और मसीही सभाओं में उपस्थित होने के बारे में हम संजीदगी से विचार करेंगे। इन सारी बातों के लिए आत्म-त्याग आवश्‍यक हो जाता है, इसलिए कि इन गतिविधियों में समय, शक्‍ति और अन्य साधन का ख़र्च शामिल है। हमें शायद टेलिविशन का एक कार्यक्रम देखने और निजी बाइबल अभ्यास करने के बीच चुनना पड़ेगा। लेकिन जब हम ऐसे अभ्यास को संजीदगी से लेते हैं, और उसके लिए पर्याप्त समय अलग से नियत करते हैं, तब हम आध्यात्मिक रूप से कितने ज़्यादा ताक़तवर और दूसरों को गवाही देने में कितने ज़्यादा सक्षम बन जाते हैं, तथा मसीही सभाओं में से हम कितना ज़्यादा लाभ प्राप्त करते हैं!—भजन १:१-३.

१४. प्रार्थना और यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कितने महत्त्वपूर्ण हैं?

१४ क्या हम ‘प्रार्थना में नित्य लगे रहने’ से अपने स्वर्ग के पिता से नियमित बातचीत करने का आनन्द लेते हैं? (रोमियों १२:१२) या इस अमूल्य ख़ास अनुग्रह का पूरा लाभ उठाने के लिए क्या हम अक्सर बहुत ही व्यस्त रहते हैं? ‘निरन्तर प्रार्थना में लगा रहना’ यहोवा परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को मज़बूत करने का एक अत्यावश्‍यक तरीक़ा है। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) और जब हम प्रलोभनों का सामना कर रह होते हैं, तब हमारी मदद करने के लिए यहोवा के साथ एक अच्छे रिश्‍ते के जैसे कोई बात नहीं। पोतीपर की पत्नी द्वारा प्रलोभित होते समय, यूसुफ किस बात के कारण प्रतिरोध कर सका? और जब मादियों और फ़ारसियों के क़ानून से दानिय्येल का यहोवा से याचना करना मना किया गया, तब उसने प्रार्थना करना क्यों बन्द नहीं किया? (उत्पत्ति ३९:७-१६; दानिय्येल ६:४-११) अजी, परमेश्‍वर के साथ एक अच्छे रिश्‍ते से उन पुरुषों को विजयी होने में मदद हुई, उसी तरह जैसे इस से हमें भी विजयी होने में मदद मिलेगी!

१५. हमें मसीही सभाओं के बारे में कैसा दृष्टिकोण रखना चाहिए, और क्यों?

१५ फिर, हम अपनी पाँच साप्ताहिक सभाओं में उपस्थित होना कितनी संजीदगी से लेते हैं? क्या हम थकावट, थोड़ी-बहुत शारीरिक अस्वस्थता, या ज़रा-से ख़राब मौसम को संगी विश्‍वासियों के साथ एकत्र होना न छोड़ने की हमारी ज़िम्मेदारी को पूरा करने में दख़ल देने देते हैं? (इब्रानियों १०:२४, २५) एक अमरीकी मशीन-चालक ने देखा, जिसे बहुत अच्छी तनख़्वाह मिलती थी, कि उसकी नौकरी के कारण वह बारंबार मसीही सभाओं में उपस्थित न हो पा रहा है। इसलिए उसने अपनी नौकरी बदल दी, और उस आर्थिक हानि को भी सहा, ताकि वह नियमित रूप से मण्डली की सारी सभाओं में उपस्थित हो सके। हमारी सभाओं से हम आपस में प्रोत्साहित होने का आनन्द ले सकते हैं, और एक दूसरे के विश्‍वास को पक्का बना सकते हैं। (रोमियों १:११, १२) इन सारे मामलों में, क्या हम नहीं पाते कि ‘उदारता से बोनेवाला, उदारता से काटेगा?’ (२ कुरिन्थियों ९:६) जी हाँ, इन रीतियों से सच्चा प्रेम दर्शाना बहुत ही पुरस्कारदायक है।

सच्चा प्रेम और हमारी सेवकाई

१६. जब प्रेम से हम अनौपचारिक गवाही देने के लिए प्रेरित होते हैं, तब इसका नतीजा क्या हो सकता है?

१६ प्रेम से हम यहोवा के लोगों की हैसियत से सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित होते हैं। उदाहरणार्थ, इस से हम अनौपचारिक गवाही देने के लिए प्रेरित होंगे। हम शायद अनौपचारिक रूप से गवाही देने से हिचकेंगे, लेकिन प्रेम ही हमें बोलने के लिए प्रेरित करेगा। सचमुच, प्रेम के कारण हम बातचीत शुरू करने के लिए कार्यकुशल तरीक़ों के बारे में सोचेंगे और फिर बातचीत को राज्य की ओर निर्दिष्ट करेंगे। दृष्टान्त देने के लिए: एक हवाई जहाज़ में, एक मसीही प्राचीन को किसी रोमन कैथोलिक पादरी के पास बिठा दिया गया। पहले-पहले, प्राचीन ने पादरी से अनेक आपत्तिहीन सवाल किए। बहरहाल, जहाज़ से उतरने के समय तक, पादरी की दिलचस्पी इतनी जगा दी गयी थी, कि उस ने हमारी दो किताबें ली थी। अनौपचारिक गवाही देने का यह क्या ही उत्तम नतीजा रहा!

१७, १८. मसीही सेवकाई के सम्बन्ध में, प्रेम से हम क्या-क्या करने के लिए प्रेरित होंगे?

१७ सच्चे प्रेम से हम नियमित रूप से घर-घर के प्रचार कार्य में और मसीही सेवकाई के अन्य पहलुओं में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित होते हैं। जिस हद तक हम बाइबल-आधारित विचार-विमर्श कर सकेंगे, उस हद तक हम यहोवा परमेश्‍वर को आदर देंगे और भेड़-समान लोगों को अनन्त जीवन के रास्ते पर आने की मदद करेंगे। (मत्ती ७:१३, १४ से तुलना करें।) अगर हम बाइबल-आधारित विचार-विमर्श नहीं कर सकेंगे, तब भी हमारी कोशिशें व्यर्थ नहीं रही होंगी। लोगों के घरों में हमारी उपस्थिति ही एक गवाही का काम करती है, और हम खुद सेवकाई से लाभ प्राप्त करते हैं, चूँकि ऐसा नहीं हो सकता कि हम बाइबल की सच्चाइयाँ घोषित कर रहे हों, और हमारा विश्‍वास मज़बूत न हो रहा हो। यह सच है कि घर-घर से जाने के लिए विनम्रता आवश्‍यक होती है, ‘सब कुछ सुसमाचार के लिए करते हुए, कि हम औरों के साथ उसके भागी हो जाएँ।’ (१ कुरिन्थियों ९:१९-२३) लेकिन परमेश्‍वर और संगी मनुष्यों के प्रति प्रेम के कारण, हम विनम्रता से कोशिश करते हैं और हमें प्रचुर आशीर्वादों का प्रतिफल दिया जाता है।—नीतिवचन १०:२२.

१८ बाइबल सच्चाई में दिलचस्पी रखनेवाले लोगों से पुनःभेंट करने के बारे में कर्तव्यनिष्ठ होने के लिए भी यहोवा के सेवकों की ओर से सच्चा प्रेम आवश्‍यक हो जाता है। हफ़्ते पर हफ़्ते और साल पर साल बाइबल अध्ययनों को संचालित करना परमेश्‍वर और पड़ोसी के लिए प्रेम की अभिव्यक्‍ति है, इसलिए कि इस से समय, प्रयास और भौतिक साधन का ख़र्च आवश्‍यक होता है। (मरकुस १२:२८-३१) फिर भी, जब हम इन में से किसी बाइबल विद्यार्थी को बपतिस्मा लेते और शायद पूरे-समय की सेवकाई में शुरू होते देखते हैं, तब क्या हम क़ायल नहीं होते कि सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है?—२ कुरिन्थियों ३:१-३ से तुलना करें।

१९. प्रेम और पूरे-समय की सेवा के बीच क्या सम्बन्ध है?

१९ अगर हमारे लिए पूरे-समय की सेवा में हिस्सा लेना मुमकिन हो, तो सच्चा प्रेम हमें उसकी ख़ातिर भौतिक सुख-साधन त्याग देने के लिए प्रेरित करेगा। कई हज़ार गवाह साक्षी दे सकते हैं कि उस रीति से अपने प्रेम को व्यक्‍त करना बहुत ही पुरस्कारदायक रहा है। अगर परिस्थितियाँ आपको पूरे-समय की सेवकाई में भाग लेने देती हैं पर आप इनका फ़ायदा नहीं उठाते, तो आप उन आशीर्वादों के बारे में कुछ भी नहीं जानते जो आप गवाँ रहे हैं।—मरकुस १०:२९, ३० से तुलना करें।

अन्य रीति से पुरस्कारदायक

२०. प्रेम हमें किस तरह क्षमाशील होने की मदद करता है?

२० सच्चा प्रेम एक और रीति से भी पुरस्कारदायक है, और वह है कि यह हमें क्षमाशील होने की मदद करता है। जी हाँ, प्रेम “अन्याय का हिसाब नहीं रखता।” दरअसल, “प्रेम ढेर सारे पापों को ढाँप देता है।” (१ कुरिन्थियों १३:५, न्यू.व.; १ पतरस ४:८, न्यू.व.) “ढेर सारे” का मतलब है बहुत पाप, है ना? और क्षमाशील होना कितना पुरस्कारदायक है! जब आप क्षमा करते हैं, तब इस से आप और वह व्यक्‍ति, जिसने आपके ख़िलाफ़ पाप किया है, बेहतर महसूस करते हैं। लेकिन यह तथ्य और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है कि जब तक हम ने उन लोगों को, जो हमारे ख़िलाफ़ पाप करते हैं, पहले ही क्षमा नहीं किया, तब तक हम यहोवा से हमें क्षमा कर देने की अपेक्षा नहीं रख सकते।—मत्ती ६:१२; १८:२३-३५.

२१. सच्चा प्रेम हमें अधीन रहने की मदद किस तरह करता है?

२१ इसके अलावा, सच्चा प्रेम इसलिए भी पुरस्कारदायक है कि यह हमें अधीनता में रहने की मदद करता है। अगर हम यहोवा से प्रेम रखते हैं, तो हम उनके बलवन्त हाथ के अधीन दीनता से रहेंगे। (१ पतरस ५:६) उनके लिए प्रेम से हम उनके चुने हुए माध्यम, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के भी अधीन रहने के लिए प्रेरित होंगे। इस में मण्डली में अगुवाई करनेवालों के अधीन रहना शामिल है। यह इसलिए पुरस्कारदायक है कि ऐसा करने से रह जाना हमारे लिए ‘हानिकारक’ होगा। (मत्ती २४:४५-४७; इब्रानियों १३:१७, न्यू.व.) बेशक, अधीन रहने का यह सिद्धान्त परिवार में भी लागू होता है। ऐसा आचरण पुरस्कारदायक है क्योंकि हमें वह संतोष देने के साथ-साथ, जो उस जानकारी से आता है कि हम परमेश्‍वर को प्रसन्‍न कर रहे हैं, यह परिवार में आनन्द, शान्ति और मेल को बढ़ाता है।—इफिसियों ५:२२; ६:१-३.

२२. हम किस तरह सचमुच ही खुश हो सकते हैं?

२२ तो फिर, स्पष्ट रूप से, वह सबसे बड़ा गुण जिसे हम विकसित कर सकते हैं, अ·गाʹपे, यानी निःस्वार्थ, सिद्धान्ती क़िस्म का प्रेम है। इसलिए, हम सचमुच ही खुश होंगे अगर हम अपने प्रेममय परमेश्‍वर, यहोवा की महिमा के लिए इस गुण को और भी अधिक मात्रा में विकसित और व्यक्‍त करेंगे।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ यहोवा परमेश्‍वर ने किन रीतियों से सच्चा प्रेम दर्शाया है?

◻ यीशु मसीह ने किस तरह प्रेम दिखाया है?

◻ प्रेरित पौलुस ने सच्चा प्रेम दिखाने में कौनसा आदर्श पेश किया?

◻ यहोवा के गवाह किस तरह प्रेम दर्शाते आए हैं?

◻ आप क्यों कहेंगे कि सच्चा प्रेम पुरस्कारदायक है?

[पेज 16 पर तसवीरें]

मनुष्यजाति के लिए यहोवा के प्रेम से वह अपने पुत्र को देने के लिए प्रेरित हुए ताकि हम अनन्त जीवन पा सकें। क्या आप ऐसे सच्चे प्रेम की क़दर करते हैं?

[पेज 18 पर तसवीरें]

यहोवा के लिए सच्चे प्रेम से हम ‘प्रार्थना में नित्य लगे रहने’ के लिए प्रेरित होंगे

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