एक विधवा के रूप में मैं ने सच्ची सान्त्वना पायी
लिली आर्थर के शब्दों में
यहोवा के गवाहों का एक जवान प्रचारक भारत के ऊटकामण्ड नगर के एक हिस्से में घर-घर जा रहा था। वहाँ रिवाज़ के अनुसार औरतें ऐसे अजनबी के लिए दरवाज़ा नहीं खोलतीं। कुछ घंटों बाद, थका-मान्दा और कुछ-कुछ निराश होकर, वह घर जाने के लिए मुड़ गया। लेकिन अगला दरवाज़ा खटखटाने के लिए किसी रीति से प्रेरित महसूस करने की वजह से, वह रुक गया। ग़ौर कीजिए कि तब क्या हुआ, उसी औरत के शब्दों में, जिसने उसके लिए दरवाज़ा खोल दिया था।
अपनी बाँहों में अपनी दो-महीने की बच्ची को लेकर और मेरे पास अपने २२-महीने के बेटे के साथ, मैं ने फ़ौरन दरवाज़ा खोल दिया और देखा वहाँ एक अजनबी खड़ा हुआ है। बस पिछली रात को ही मैं बहुत ही परेशान रही थी। सान्त्वना पाने के लिए, मैं ने प्रार्थना की थी: “हे स्वर्ग के पिता, कृपया मुझे अपने वचन से सान्त्वना दीजिए।” और अब मुझे ताज्जुब हुआ जब अजनबी ने समझाया: “मैं परमेश्वर के वचन से आपको सान्त्वना और आशा का एक संदेश लाया हूँ।” मुझे लगा कि वह एक भविष्यवक्ता है जो परमेश्वर द्वारा भेजा गया था। लेकिन वह कौनसी परिस्थिति थी, जिसकी वजह से मैं ने मदद के लिए प्रार्थना की थी?
बाइबल सच्चाइयाँ सीखना
मेरा जन्म १९२२ में दक्षिण भारत के सुन्दर नीलगिरी पहाड़ियों के गुडलूर गाँव में हुआ। जब मैं तीन साल की थी, मेरी माँ मर गयी। बाद में, पिताजी ने, जो कि एक प्रोटेस्टेन्ट पादरी थे, दूसरी शादी कर ली। जैसे ही हम बोल सके, पिताजी ने मेरे भाई-बहनों को और मुझे प्रार्थना करना सिखाया था। चार साल की उम्र में, जब पिताजी हर रोज़ अपनी मेज़ के पास बैठकर अपनी बाइबल पढ़ा करते थे, तब मैं भी अपनी बाइबल पढ़ती हुई ज़मीन पर बैठी हुई होती थी।
बड़ी होने पर, मैं एक शिक्षिका बन गयी। फिर, जब मैं २१ साल की हुई, मेरे पिताजी में मेरी शादी तय कर दी। एक बेटा, सुन्दर, और बाद में एक बेटी, रत्ना, के जन्म से मैं और मेरे पति का सुख दुगना हुआ। लेकिन, तक़रीबन रत्ना के जन्म के समय से ही, मेरे पति बहुत ही बीमार हो गए और उसके फ़ौरन बाद वह गुज़र गए। २४ साल की उम्र में, मैं अचानक एक विधवा बन चुकी थी जिस पर दो नन्हे बच्चों की ज़िम्मेदारी थी।
उसके बाद मैं ने परमेश्वर से खूब याचना की कि वह मुझे अपने वचन से सान्त्वना दें, और अगले ही दिन ऐसा हुआ कि यहोवा के गवाहों का एक प्रचारक मेरे दरवाज़े पर आया। मैं ने उसे अन्दर बुला लिया और “लेट गॉड बी ट्रू” नामक किताब स्वीकार की। उस रात किताब पढ़ते समय, मैं यहोवा, यह नाम देखती रही, जो मेरे लिए बहुत ही निराला था। बाद में उस प्रचारक ने लौटकर मुझे बाइबल में से दिखाया कि यही परमेश्वर का नाम है।
जल्दी ही मैं ने यह भी सीखा कि त्रियेक और नरकाग्नि जैसे उपदेश बाइबल पर आधारित नहीं हैं। सान्त्वना और आशा मुझे तब मिली जब मुझे समझ में आया कि परमेश्वर के राज्य के आधीन पृथ्वी एक परादीस बन जाएगी और मृत प्रिय जन पुनरुत्थान में लौटेंगे। सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं सच्चे परमेश्वर, यहोवा, को जानने और उन से प्रीति रखने लगी, जिन्होंने मेरी प्रार्थना सुनी और मेरी मदद के लिए आए।
नए रूप से प्राप्त ज्ञान बाँटना
मैं ताज्जुब करने लगी कि किस तरह मैं ने परमेश्वर के नाम को समाविष्ट करनेवाले उन बाइबल वचनों को पढ़ना चूका था। और खुद अपनी बाइबल पढ़ाई से मैं ने एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन पाने की स्पष्ट आशा क्यों नहीं देखी थी? मैं एक ऐसी पाठशाला में पढ़ा रही थी जो प्रोटेस्टेन्ट मिशनरियों द्वारा चलायी जाती थी, इसलिए मैं ने पाठशाला के प्रबन्धक को ये बाइबल वचन दिखाए। (निर्गमन ६:३; भजन ३७:२९; ८३:१८; यशायाह ११:६-९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) मैं ने ग़ौर किया कि किसी रीति से हम इन्हें पढ़ना चूक गए थे। लेकिन मुझे ताज्जुब हुआ जब वह ज़रा नाराज़ लगने लगी।
फिर मैं ने इन बाइबल वचनों को उद्धृत करके प्रिंसीपल को लिखा जो दूसरे नगर में रहती थीं। मैं ने बिनती की कि उनके साथ बातचीत करने का मौक़ा मिले। उसने जवाब दिया कि उसका पिता, जो इंग्लैंड में एक सुप्रसिद्ध पादरी थे, मेरे साथ इस मामले पर विचार-विमर्श करते। प्रिंसीपल का भाई एक सुविख्यात बिशप था।
मैं ने सब मुद्दे और शास्त्रपद तैयार किए और अपनी “लेट गॉड बी ट्रू” किताब और बच्चों को लेकर दूसरे नगर गयी। बड़े उत्साह से मैं ने समझाया कि यहोवा कौन हैं, कि कोई त्रियेक नहीं, और ऐसी दूसरी बातें भी जो मैं ने सीखी थीं। उन्होंने कुछ देर तक सुना लेकिन कुछ भी नहीं कहा। फिर इंग्लैंड से आए हुए पादरी ने कहा: “मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा।” फिर उसने मेरे लिए प्रार्थना की और मुझे विदा किया।
सड़क पर प्रचार कार्य
एक दिन यहोवा के गवाहों के एक प्रचारक ने मुझे वॉचटावर और अवेक! पत्रिकाओं के साथ सड़क पर प्रचार कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। मैं ने उस से कहा कि यह एक ऐसा काम है जो मैं कभी नहीं कर पाऊँगी। आपको तो पता ही है कि भारत में लोग एक ऐसी औरत के बारे में बुरी से बुरी बातें सोचेंगे, जो रास्ते पर खड़ी रहती है या जो घर-घर जाती है। इस से औरत की नेकनामी पर कलंक आएगा और उसके परिवार पर भी। चूँकि मैं अपने पिता से बहुत ही प्यार और उनका आदर करती थी, मैं उन पर कलंक लाना नहीं चाहती थी।
लेकिन उस प्रचारक ने मुझे एक ऐसा बाइबल वचन दिखाया जिस में कहा गया है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा।” (नीतिवचन २७:११, किंग जेम्स वर्शन, King James Version) उसने कहा: “आप सबके सामने दिखाइए कि आप उन की और उनके राज्य की तरफ़ हैं, और यहोवा के मन को आनन्दित कीजिए।” यहोवा के मन को आनन्दित करना सबसे ज़्यादा चाहकर, मैं ने पत्रिका की झोली उठायी और उनके साथ सड़क के प्रचार कार्य में निकली। अब भी मैं सोच ही नहीं सकती कि मैं ने यह किस तरह किया। वह साल १९४६ था, मुझ से पहली बार मिलने के तक़रीबन चार महीने बाद।
डर पर क़ाबू पाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना
१९४७ में, मैं ने भारत के पूर्वी तट पर, मद्रास शहर के बाहरी इलाके में एक शिक्षिका का पद स्वीकार किया, और मैं बच्चों को लेकर वहाँ रहने गयी। शहर में लगभग यहोवा के आठ गवाह नियमित रूप से एकत्र होते थे। उन सभाओं में उपस्थित होने के लिए, हमें २५ किलोमीटर का सफ़र करना पड़ता था। उस ज़माने में भारत में, औरतें आम तौर से अकेली सफ़र नहीं करती थीं। उन्हें ले जाने के लिए वे मर्दों पर भरोसा रखती थीं। मैं नहीं जानती थी कि किस तरह बस पर चढ़ें, किस तरह टिकट कटाएँ, किस तरह बस से उतर जाएँ, इत्यादि। मुझे लगा कि मुझे यहोवा की सेवा करनी तो चाहिए, मगर कैसे? इसलिए मैं ने प्रार्थना की: “यहोवा परमेश्वर आपकी सेवा किए बिना मैं जी नहीं सकती। लेकिन एक भारतीय नारी होने के नाते घर-घर जाना तो मेरे लिए नामुमकिन है।”
मैं सोचती थी कि इस संघर्ष से छूटने के लिए यहोवा मुझे मरने क्यों नहीं देते। लेकिन, मैं ने तय किया कि मैं बाइबल में से कुछ पढ़ लूँगी। यूँ हुआ कि मैं ने उसे यिर्मयाह की किताब पर ही खोल डाला, जहाँ यह कहा गया है: “मत कह कि मैं लड़का हूँ; क्योंकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँ वहाँ तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे आज्ञा दूँ वही तू कहेगा। तू उनके मुख को देखकर मत डर, क्योंकि तुझे छुड़ाने के लिए मैं तेरे साथ हूँ।”—यिर्मयाह १:७, ८.
मुझे लगा कि यहोवा सचमुच ही मेरे साथ बात कर रहे हों। इसलिए मैं ने साहस बटोर लिया और फ़ौरन ही अपनी सिलाई मशीन के पास बैठकर पत्रिकाओं को ले जाने के लिए एक बेग सी डाला। गंभीर प्रार्थना करने के बाद, मैं अकेली घर-घर गयी, अपनी सारी पत्रिकाएँ दे डालीं, और उस दिन एक बाइबल अध्ययन को भी शुरू किया। मैं ने संकल्प किया कि मैं यहोवा को अपनी ज़िन्दगी में पहला स्थान दूँगी, और मैं ने उन्हीं पर अपना पूरा भरोसा और विश्वास रखा। ज़बानी अपमान के बावजूद सबके सामने किया जानेवाला प्रचार कार्य मेरी ज़िन्दगी का एक नियमित हिस्सा बन गया। विरोध के बावजूद, मेरे काम से कुछ लोगों पर एक गहरा असर हुआ।
यह तब चित्रित हुआ जब कई साल बाद मैं और मेरी बेटी मद्रास में घर-घर के कार्य में गए। एक हिंदू श्रीमान ने, जो उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश थे, मेरी उम्र का ग़लत अंदाज़ा लगाते हुए कहा: “तुम्हारे जन्म से पहले ही मैं इन पत्रिकाओं से वाक़िफ़ हूँ! तीस साल पहले, एक महिला नियमित रूप से माउन्ट रोड पर खड़ा रहकर इन्हें पेश करती थीं।” उन्हें एक अभिदान चाहिए था।
एक और घर में एक हिंदू ब्राह्मण ने, जो एक रिटायर्ड अधिकारी थे, हमें अन्दर बुलाया और कहा: “बहुत, बहुत समय पहले, एक महिला हुआ करती थीं जो माउन्ट रोड पर खड़ा रहकर द वॉचटावर पत्रिका पेश करती थीं। उन्हीं की ख़ातिर में इन पत्रिकाओं को लूँगा, जो आप मुझे दे रही हैं।” मुझे थोड़ा सा मुस्कुराना ही पड़ा, इसलिए कि मैं जानती थी कि मैं ही वह महिला थीं जिनका ज़िक्र उन दोनों ने किया था।
बल बढ़ाया जाना और आशीर्वाद दिया जाना
अक्तूबर १९४७ में मैं ने पानी में बपतिस्मा लेने के द्वारा यहोवा के प्रति अपने समर्पण का प्रतीक दिया। उस समय पूरे प्रान्त में मैं एकमात्र तामिल बोलनेवाली औरत थी, लेकिन अब सैंकड़ों तामिल औरतें यहोवा के विश्वसनीय और सक्रिय गवाह हैं।
मेरा बपतिस्मा होने के बाद, विरोध चारों ओर से आया। मेरे भाई ने लिखा: “तुम ने हर तरह की मर्यादा और शालिनता का हद पार किया है।” मैं जिस पाठशाला में काम करती थी, वहाँ और बिरादरी में भी मेरा विरोध हुआ। लेकिन निरन्तर, गंभीर प्रार्थना से मैं यहोवा से और भी ज़्यादा लिपटी रही। अगर मैं मध्यरात को जाग जाती, तो मैं फ़ौरन मिट्टी के तेल से जलनेवाली लालटेन जला देती और अभ्यास करती।
जैसे-जैसे मेरा बल बढ़ गया, वैसे-वैसे मैं दूसरों को सान्त्वना देने और मदद करने के लिए एक बेहतर स्थिति में थी। एक वयोवृद्ध हिंदू औरत ने, जिसके साथ मैं ने अभ्यास किया, यहोवा की उपासना के लिए एक दृढ़ स्थिति ली। जब वह गुज़र गयीं, घराने की एक और औरत ने कहा: “हम उस परमेश्वर के प्रति उनकी वफ़ादारी को देखकर बहुत ही खुश हुए, जिनकी उपासना उन्होंने आख़िर तक करना चुना था।”
एक और औरत, जिसके साथ मैं ने अभ्यास किया, कभी हँसती ही न थी। उसके चेहरे पर हमेशा परेशानी और उदासी छायी रहती थी। लेकिन उसे यहोवा के बारे में सिखाने के बाद, मैं ने उसे उनसे प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित किया, चूँकि वह हमारी तक़लीफ़ों को जानते हैं और हमारी परवाह करते हैं। अगले हफ़्ते उसका चेहरा प्रफुल्ल था। पहली बार मैं ने उसे मुस्कुराते हुए देखा था। “मैं यहोवा से प्रार्थना करती रही हूँ,” उसने बताया, “और मैं दिल और दिमाग़ में सुकून महसूस कर रही हूँ।” उसने अपनी ज़िन्दगी यहोवा को समर्पित की और कई मुश्किलों के बावजूद अब भी विश्वस्त रह रही है।
ज़िम्मेदारियों को सन्तुलन में रखना
चूँकि मुझे दो छोटे-छोटे बच्चों की देख-भाल करनी थी, मुझे लगा कि एक पायनियर के रूप में यहोवा की पूरे-समय सेवा करने की मेरी इच्छा का पूरा होना नामुमकिन था। लेकिन जब तामिल भाषा में बाइबल साहित्य का भाषांतर करने के लिए किसी की ज़रूरत पैदा हुई, तब सेवा करने का एक नया रास्ता खुल गया। यहोवा की मदद से, मैं उस नियतकार्य को सँभाल सकी और, साथ ही, एक शिक्षिका के तौर से दुनिया में काम कर सकी, बच्चों की देख-भाल कर सकी, घर का काम-काज कर सकी, सभी सभाओं में उपस्थित हो सकी, और क्षेत्र सेवा में हिस्सा ले सकी। आख़िर में, जब बच्चे ज़रा बड़े हो गए, मैं एक ख़ास पायनियर बन गयी, जो एक ऐसा ख़ास अनुग्रह है जिसका आनन्द मैं पिछले ३३ साल से ले रही हूँ।
जब सुन्दर और रत्ना कच्ची उम्र के थे, तभी से मैं ने उन के मन में यहोवा के लिए प्रीति तथा अपनी ज़िन्दगी के हर पहलू में उनके हितों को हमेशा ही प्रथम स्थान पर रखने की इच्छा बैठाने की कोशिश की। वे जानते थे कि जागने पर पहले व्यक्ति जिनके साथ उन्हें बात करनी चाहिए वह यहोवा ही थे, और सोने से पहले उन्हें आख़िर में उन्हीं के साथ बातचीत करनी चाहिए। और वे यह भी जानते थे कि पाठशाला के होम-वर्क की वजह से मसीही सभाओं और क्षेत्र सेवा के लिए तैयारी को नज़रंदाज़ करना नहीं चाहिए। जबकि मैं उन्हें अपने पाठशाला के काम में बेहतर से बेहतर काम करने के लिए प्रोत्साहित करती थी, मैं ने कभी आग्रह नहीं किया कि वे ऊँचे अंक पाएँ, इस बात का डर करते हुए कि वे इस को अपनी ज़िन्दगी की सबसे अहम बात बनाएँगे।
उनका बपतिस्मा होने के बाद, उन्होंने पाठशाला की छुट्टियाँ पायनियर कार्य करने के लिए इस्तेमाल कीं। मैं ने रत्ना को साहसी होने के लिए प्रोत्साहित किया, न कि मेरे जैसी सहमी-सहमी सी और संकोची। अपना उच्चविद्यालय का शिक्षण और रोज़गार के लिए प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, उसने पायनियर कार्य शुरू किया, और बाद में वह एक ख़ास पायनियर बन गयी। कुछ समय बाद, उसने एक सफ़री अध्यक्ष, रिचर्ड गेब्रिएल, से शादी की जो कि अब भारत में वॉच टावर सोसाइटी के लिए शाखा कमेटी के प्रबन्धक के तौर से कार्य करता है। वे और उनकी बेटी, ॲबिगेल भारत की शाखा में पूरा समय काम करते हैं, और उनका छोटा बेटा, ॲन्डरू, सुसमाचार का एक प्रचारक है।
लेकिन, अठारह साल की उम्र में, सुन्दर ने मेरा दिल तोड़ ही दिया जब उसने यहोवा के गवाहों के साथ संग-साथ करना छोड़ दिया। उसके बाद वाले साल मेरे लिए व्यथा-भरे साल थे। मैं ने यहोवा से सतत याचना की कि सुन्दर को बड़ा करने में अगर मैं ने कोई कसर की हो तो उसे माफ़ कर दें और उसे होश में ला दें ताकि वह लौट सके। लेकिन समय के बीतने पर, मैं ने उम्मीद ही छोड़ दी। फिर १३ साल बाद एक दिन, उस ने आकर मुझ से कहा: “फ़िक्र मत करो, मम्मी, मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊँगा।”
उसके जल्द ही बाद, सुन्दर ने आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ बन जाने की ख़ास कोशिशें की। उस ने इस हद तक प्रगति की कि उसे यहोवा के गवाहों की एक मण्डली की अध्यक्षता सौंप दी गयी। बाद में पायनियर बनने के लिए उस ने अपनी अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरी छोड़ दी। अब वह और उसकी पत्नी, एस्तर, दक्षिण भारत के बंग्लौर शहर में यही कार्य करके सेवा कर रहे हैं।
ज़िन्दगी भर की सान्त्वना
अक्सर मैं यहोवा का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने मुझे इन सालों में दुःख और मुश्किलों का सामना करने दिया। ऐसे अनुभवों के बग़ैर मुझे यहोवा की भलाई, उनकी कृपा, और कोमल परवाह तथा स्नेह की उनकी अभिव्यक्तियाँ इस हद तक चखने का क़ीमती ख़ास अनुग्रह प्राप्त न होता। (याकूब ५:११) बाइबल में “अनाथ और विधवा” के लिए यहोवा की परवाह और चिन्ता के बारे में पढ़ने से दिल भर आता है। (व्यवस्थाविवरण २४:१९-२१) लेकिन उनकी परवाह और चिन्ता को वास्तविक रूप से अनुभव करने में जो सान्त्वना और खुशी मिलती है, उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं।
मैं ने यहोवा पर निर्विवाद रूप से भरोसा और विश्वास रखना सीखा है, न कि अपनी समझ का सहारा लेना, लेकिन अपने सभी कामों में उन्हीं को ध्यान में रखना। (भजन ४३:५; नीतिवचन ३:५, ६) एक जवान विधवा के रूप में, मैं ने परमेश्वर से उनके वचन में से सान्त्वना देने के लिए प्रार्थना की थी। अब ६९ साल की उम्र में, मैं सचमुच ही कह सकती हूँ कि बाइबल को समझने और उसकी सलाह पर अमल करने से मैं ने असीम सान्त्वना पायी है।
[पेज 27 पर तसवीरें]
अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठी लिली आर्थर