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  • निष्ठा से यहोवा की सेवा कीजिए

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  • निष्ठा से यहोवा की सेवा कीजिए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
w93 2/1 पेज 25-30

निष्ठा से यहोवा की सेवा कीजिए

“निष्ठावान के साथ तू [यहोवा] निष्ठा से व्यवहार करेगा।”—२ शमूएल २२:२६, NW.

१. यहोवा उनके साथ कैसा व्यवहार करता है जो उसके प्रति निष्ठावान हैं?

अपने लोगों के लिए यहोवा जो कुछ करता है उसका बदला नहीं दिया जा सकता। (भजन ११६:१२) उसके आध्यात्मिक और भौतिक उपहार और कोमल दया कितनी उत्तम है! प्राचीन इस्राएल का राजा दाऊद जानता था कि परमेश्‍वर भी उनके साथ निष्ठा से व्यवहार करता है जो उसके प्रति निष्ठावान हैं। दाऊद ने ऐसा उस गीत में कहा जो उसने तब लिखा “जिस समय यहोवा ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं और शाऊल के हाथ से बचाया था।”—२ शमूएल २२:१.

२. दूसरा शमूएल के अध्याय २२ में लिखित दाऊद के गीत में प्रस्तुत कुछ मुद्दे क्या हैं?

२ दाऊद ने अपना गीत (भजन १८ के समान) ऐसी स्तुति के द्वारा शुरू किया कि यहोवा प्रार्थनाओं के उत्तर में “छुड़ानेवाला” है। (२ शमूएल २२:२-७) अपने स्वर्गीय मंदिर से, परमेश्‍वर ने अपने निष्ठावान सेवकों को सामर्थी शत्रुओं से बचाने का कार्य किया। (आयतें ८-१९) इस प्रकार दाऊद को खरे मार्ग का पीछा करने और यहोवा के मार्ग पर चलते रहने का फल मिला। (आयतें २०-२७) इसके बाद परमेश्‍वर-प्रदत्त शक्‍ति से किए कार्यों की नाम-ब-नाम सूची दी गयी। (आयतें २८-४३) अन्त में, दाऊद ने घर के झगड़ों और विदेशी शत्रुओं से छुड़ौती का हवाला दिया और यहोवा को धन्यवाद दिया जो ‘अपने ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपने अभिषिक्‍त पर करुणा करता है।’ (आयतें ४४-५१) यहोवा हमें भी छुड़ा सकता है यदि हम खरे मार्ग का पीछा करें और शक्‍ति के लिए उसका सहारा लें।

निष्ठावान होने का अर्थ क्या है

३. शास्त्रीय दृष्टिकोण से, निष्ठावान होने का क्या अर्थ है?

३ दाऊद का छुटकारे का गीत हमें यह सुखद आश्‍वासन देता है: “निष्ठावान के साथ तू [यहोवा] निष्ठा से व्यवहार करेगा।” (२ शमूएल २२:२६, NW.) इब्रानी विशेषण चासिध (Chasidh) “निष्ठावान व्यक्‍ति,” या “प्रेममय कृपावाले” को सूचित करता है। (भजन १८:२५, NW, फुटनोट) संज्ञा चेसेध (Chesedh) में कृपा का विचार है जो पात्र से अपने आपको उस समय तक जोड़े रखता है जब तक उसके सम्बन्ध में उसका उद्देश्‍य पूरा न हो जाए। यहोवा अपने सेवकों के प्रति उसी क़िस्म की कृपा व्यक्‍त करता है, जैसे कि वे भी उसके प्रति व्यक्‍त करते हैं। इस धर्मी, पवित्र निष्ठा का अनुवाद “प्रेममय-कृपा” और “निष्ठावान प्रेम” किया गया है। (उत्पत्ति २०:१३; २१:२३, NW.) यूनानी शास्त्रों में, “निष्ठा” पवित्रता और श्रृद्धा का विचार रखती है, जो संज्ञा होसिओटीस (hosiotes) और विशेषण होसिओस (hosios) में अभिव्यक्‍त है। ऐसी निष्ठा वफ़ादारी और भक्‍ति को सम्मिलित करती है और इसका अर्थ भक्‍त होना और ध्यानपूर्वक परमेश्‍वर के प्रति सारे कर्तव्यों को पूरा करना है। यहोवा के प्रति निष्ठावान होने का अर्थ है उससे इतनी गहरी भक्‍ति के साथ जुड़े रहना कि यह एक शक्‍तिशाली गोंद के समान काम करे।

४. यहोवा की निष्ठा किस प्रकार दिखाई गई है?

४ स्वयं यहोवा की निष्ठा बहुत तरीकों से दिखायी गयी है। उदाहरण के लिए, अपने लोगों के लिए निष्ठावान प्रेम और न्याय और धार्मिकता के प्रति निष्ठा के कारण वह दुष्टों के विरुद्ध न्यायिक कार्यवाही करता है। (प्रकाशितवाक्य १५:३, ४; १६:५) इब्राहीम के साथ वाचा के प्रति निष्ठा ने उसे इस्राएलियों के प्रति धीरजवंत होने को प्रेरित किया। (२ राजा १३:२३) जो परमेश्‍वर के प्रति निष्ठावान हैं वे अपने निष्ठावान जीवन के अन्त तक उसकी सहायता पर भरोसा रख सकते हैं और निश्‍चित हो सकते हैं कि वह उन्हें याद रखेगा। (भजन ३७:२७, २८; ९७:१०) यीशु को इस ज्ञान से शक्‍ति मिली थी कि परमेश्‍वर के मुख्य “निष्ठावान जन” के रूप में, उसका प्राण अधोलोक में नहीं छोड़ा जाएगा।—भजन १६:१०; प्रेरितों २:२५, २७.

५. क्योंकि यहोवा निष्ठावान है, वह अपने सेवकों से क्या मांग करता है, और किस प्रश्‍न पर विचार किया जाएगा?

५ क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर निष्ठावान है, वह अपने सेवकों से निष्ठा की मांग करता है। (इफिसियों ४:२४) उदाहरण के लिए, कलीसिया में प्राचीन नियुक्‍त होने के योग्य बनने के लिए पुरुषों को निष्ठावान होने की ज़रूरत है। (तीतुस १:८) कौन-से तत्त्व हैं जिनसे यहोवा के लोगों को निष्ठा से उसकी सेवा करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?

सीखी हुई बातों के लिए मूल्यांकन

६. जो शास्त्रीय बातें हमने सीखीं हैं उनके विषय में हमें कैसा महसूस करना चाहिए, और ऐसे ज्ञान के विषय में हमें क्या याद रखना चाहिए?

६ जो शास्त्रीय बातें हमने सीखीं हैं उनके लिए कृतज्ञता से हमें यहोवा की सेवा निष्ठा से करने के लिए प्रेरित होना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस से आग्रह किया: “तू इन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं और प्रतीति की थी, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था? और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्‍वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (२ तीमुथियुस ३:१४, १५) याद रखिए कि ऐसा ज्ञान परमेश्‍वर की ओर से “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के द्वारा आया था।—मत्ती २४:४५-४७.

७. परमेश्‍वर की ओर से विश्‍वासयोग्य दास द्वारा दिए गए आध्यात्मिक भोजन के विषय में प्राचीनों को कैसा महसूस करना चाहिए?

७ ख़ासकर नियुक्‍त प्राचीनों को उस पुष्टिकर आध्यात्मिक भोजन का मूल्यांकन करना चाहिए जिसका प्रबन्ध यहोवा विश्‍वासयोग्य दास के द्वारा करता है। सालों पहले कुछ प्राचीनों को ऐसे मूल्यांकन की कमी थी। एक प्रेक्षिता ने बताया कि ये पुरुष “प्रहरीदुर्ग के लेखों के प्रति आलोचनात्मक थे, इसे परमेश्‍वर का सत्य का साधन . . . स्वीकार नहीं करना चाहते थे, हमेशा दूसरों को अपने सोचने के तरीके से प्रभावित करने की कोशिश करते थे।” फिर भी, निष्ठावान प्राचीन कभी दूसरों को किसी भी आध्यात्मिक भोजन को अस्वीकार करने के लिए प्रभावित नहीं करते जिसका प्रबन्ध यहोवा विश्‍वासयोग्य दास के द्वारा करता है।

८. यदि हम विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास द्वारा प्रस्तुत किसी शास्त्रीय मुद्दे का पूरी तरह मूल्यांकन नहीं करते हैं, तब क्या?

८ यहोवा के समर्पित गवाहों के रूप में, हम सब को उसके और उसकी संस्था के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। हमें परमेश्‍वर के अद्‌भुत प्रकाश से हटकर एक धर्मत्यागी मार्ग का पीछा करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए जो इस समय आध्यात्मिक मृत्यु की ओर और अन्त में विनाश की ओर ले जा सकता है। (यिर्मयाह १७:१३) परन्तु यदि हमें विश्‍वासयोग्य दास द्वारा प्रस्तुत कुछ शास्त्रीय मुद्दों को स्वीकार करना या पूरी तरह मूल्यांकन करना मुश्‍किल लगे, तब क्या? तब हमें नम्रता से स्वीकार करना चाहिए कि हमने सत्य कहां से सीखा और इस परीक्षा से निपटने के लिए तब तक बुद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए जब तक इन विषयों पर किसी प्रकाशित स्पष्टीकरण के द्वारा, यह समाप्त न हो जाए।—याकूब १:५-८.

मसीही भाईचारे का मूल्यांकन कीजिए

९. पहला यूहन्‍ना १:३-६ किस प्रकार दिखाता है कि मसीहियों में मैत्रीभाव की आत्मा होनी चाहिए?

९ हमारे मसीही भाईचारे के मध्य मैत्रीभाव की आत्मा का हार्दिक मूल्यांकन निष्ठा से यहोवा की सेवा करने का दूसरा प्रेरक प्रस्तुत करता है। वास्तव में, इस आत्मा के बिना परमेश्‍वर और मसीह के साथ हमारा सम्बन्ध आध्यात्मिक रूप से पक्का नहीं हो सकता है। प्रेरित यूहन्‍ना ने अभिषिक्‍त मसीहियों को कहा: “जो कुछ हम ने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिये कि तुम भी हमारे साथ सहभागी [“मैत्रीभाव,” डायगलौट (Diaglott)] हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। . . . यदि हम कहें, कि उसके साथ हमारी सहभागिता है, और फिर अन्धकार में चलें, तो हम झूठे हैं: और सत्य में नहीं चलते।” (१ यूहन्‍ना १:३-६) यह सिद्धान्त सभी मसीहियों पर लागू होता है चाहे उनकी आशा स्वर्गीय हो या पार्थिव।

१०. जबकि स्पष्ट है कि यूओदिया और सुन्त्रुखे को निजी समस्या सुलझाने में कठिनाई हुई, पौलुस का उन स्त्रियों के विषय में क्या विचार था?

१० मैत्रीभाव की आत्मा को बनाए रखने में प्रयास की आवश्‍यक्‍ता है। उदाहरण के लिए, यह स्पष्ट है कि मसीही स्त्रियों यूओदिया और सुन्त्रुखे ने अपने बीच एक समस्या को सुलझाना कठिन पाया। इसलिए पौलुस ने उन्हें समझाया कि “प्रभु में एक मन रहें।” उसने आगे कहा: “हे सच्चे सहकर्मी मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि तू उन स्त्रियों की सहायता कर, क्योंकि उन्हों ने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे उन और सहकर्मियों समेत परिश्रम किया, जिन के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।” (फिलिप्पियों ४:२, ३) उन ईश्‍वरपरायण स्त्रियों ने पौलुस और दूसरों के साथ-साथ “सुसमाचार फैलाने में” परिश्रम किया था और वह आश्‍वस्त था कि वे उन में थीं “जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।”

११. यदि एक निष्ठावान मसीही आध्यात्मिक समस्या का सामना करता है, तो मन में किस बात को रखना उचित होगा?

११ मसीही यह दिखाने के लिए सम्मान का बिल्ला नहीं पहनते कि उन्हें यहोवा के संगठन में क्या करने का विशेषाधिकार मिला है और उन्होंने कैसे निष्ठा से उसकी सेवा की है। यदि उनकी कोई आध्यात्मिक समस्या है, तो यह कितना प्रेमरहित होगा कि यहोवा के प्रति उनकी सालों की निष्ठावान सेवा को नज़रअंदाज़ किया जाए! संभवतः, जिसे ‘सच्चा सहकर्मी’ कहा गया वह एक निष्ठावान भाई था जो दूसरों की सहायता करने में उत्सुक था। यदि आप एक प्राचीन हैं, तो क्या आप एक “सच्चे सहकर्मी” हैं, जो करुणामय तरीके से सहायता करने के लिए तैयार है? ऐसा हो कि संगी विश्‍वासियों द्वारा की गयी अच्छाई पर हम सब विचार करें, जैसा कि परमेश्‍वर भी करता है, और प्रेमपूर्वक उनके भार उठाने में उनकी सहायता करें।—गलतियों ६:२; इब्रानियों ६:१०.

कहीं और जाने को नहीं

१२. जब यीशु के कथन से “चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए,” तब पतरस ने कौन-सी स्थिति अपनायी?

१२ यदि हम यह याद रखें कि अनन्त जीवन के लिए कहीं और जाने को नहीं है तो हम निष्ठा से यहोवा के संगठन के साथ उसकी सेवा करने के लिए प्रेरित होंगे। जब यीशु के कथन से “चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए,” तब उसने अपने प्रेरितों से पूछा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस ने उत्तर दिया: “हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। और हम ने विश्‍वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्‍वर का पवित्र जन तू ही है।”—यूहन्‍ना ६:६६-६९.

१३, १४. (क) प्रथम-शताब्दी के यहूदी मत पर ईश्‍वरीय अनुग्रह क्यों नहीं था? (ख) एक व्यक्‍ति, जो काफ़ी समय से यहोवा का गवाह है, ने परमेश्‍वर के दृश्‍य संगठन के विषय में क्या कहा?

१३ “अनन्त जीवन की बातें” सामान्य युग प्रथम शताब्दी के यहूदी मत में नहीं पाई गईं। यीशु को मसीहा के रूप में अस्वीकार करना उसका मुख्य पाप था। अपने किसी भी रूप में यहूदी मत पूरी तरह इब्रानी शास्त्र पर आधारित नहीं था। सदूकियों ने स्वर्गदूतों के अस्तित्व का इन्कार किया और पुनरुत्थान में विश्‍वास नहीं करते थे। जबकि फरीसी इन मामलों में उन से असहमत थे, उन्होंने अपनी अशास्त्रीय रीतियों से परमेश्‍वर के वचन को व्यर्थ ठहराने के कारण पाप किया। (मत्ती १५:१-११; प्रेरितों २३:६-९) इन रीतियों ने यहूदियों को दासता में रखा और बहुतों के लिए यीशु मसीह को स्वीकार करना कठिन बनाया। (कुलुस्सियों २:८) “अपने बापदादों के व्यवहारों” के लिए उत्साह ने शाऊल (पौलुस) को अपनी अज्ञानता में मसीह के अनुयायियों का निर्दयी अत्याचारी बनने के लिए प्रेरित किया।—गलतियों १:१३, १४, २३.

१४ यहूदी मत पर परमेश्‍वर का अनुग्रह नहीं था, लेकिन यहोवा ने अपने पुत्र के अनुयायियों से बने संगठन को आशीष दी—‘एक ऐसी जाति जो भले कामों में सरगर्म थी।’ (तीतुस २:१४) वह संगठन अभी भी अस्तित्व में है, और उसके विषय में एक व्यक्‍ति ने, जो काफ़ी समय से यहोवा का गवाह है, कहा: “यदि एक चीज़ मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण रही है, तो वह यहोवा के दृश्‍य संगठन के निकट रहने के विषय में है। मेरे प्रारम्भिक अनुभव ने मुझे सिखाया कि मानवी तर्क पर निर्भर करना कितना ग़लत है। एक बार मेरा मन जब इस बात पर निश्‍चित हो गया, तब मैंने विश्‍वासयोग्य संगठन के साथ रहने का दृढ़ निश्‍चय कर लिया। और किस तरह कोई यहोवा का अनुग्रह और आशीष प्राप्त कर सकता है?” ईश्‍वरीय अनुग्रह और अनन्त जीवन के लिए कहीं और जाने को नहीं है।

१५. यहोवा के दृश्‍य संगठन और जो उसमें ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं, उनको सहयोग क्यों देना है?

१५ हमारे हृदय को हमें यहोवा के संगठन के साथ सहयोग देने के लिए प्रेरित करना चाहिए क्योंकि हम जानते हैं कि केवल यह ही उसकी आत्मा के द्वारा निर्देशित है और उसके नाम और उद्देश्‍यों को फैला रही है। निःसन्देह, जो इसमें कार्यभार संभाल रहे हैं वे अपरिपूर्ण हैं। (रोमियों ५:१२) लेकिन “यहोवा का कोप” हारून और मरियम “पर भड़का,” जब उन्होंने मूसा में नुक़्स निकाले और यह भूल गए कि उसे, न कि उन्हें, परमेश्‍वर-दत्त ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। (गिनती १२:७-९) आज, निष्ठावान मसीही “अगुवों” को सहयोग देते हैं, क्योंकि यही यहोवा की मांग है। (इब्रानियों १३:७, १७) मसीही सभाओं में नियमित उपस्थिति और ‘प्रेम और भले कामों में दूसरों को उस्काने’ वाली टिप्पणी करना हमारी निष्ठा के प्रमाण में सम्मिलित है।—इब्रानियों १०:२४, २५.

प्रोत्साहक बनिए

१६. दूसरों के लिए क्या करने की इच्छा से भी हमें निष्ठा से यहोवा की सेवा करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?

१६ दूसरों के लिए प्रोत्साहक बनने की इच्छा से भी हमें निष्ठा से यहोवा की सेवा करने के लिए प्रेरित होना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “ज्ञान घमण्ड उत्पन्‍न करता है, परन्तु प्रेम से उन्‍नति होती है।” (१ कुरिन्थियों ८:१) क्योंकि कुछ क़िस्म के ज्ञान से उसके ज्ञाताओं को घमण्ड होता था, पौलुस का यह अर्थ रहा होगा कि प्रेम भी उस गुण को दर्शाने वालों को प्रोत्साहन देता है। प्रोफेसर वाइस और इंगलिश द्वारा लिखी पुस्तक कहती है: “एक व्यक्‍ति जिसमें प्रेम करने की क्षमता है उसे अकसर बदले में प्रेम मिलता है। जीवन के हर पहलू में सद्‌भाव और सम्मान दिखाने की क्षमता . . . ऐसी भावनाओं के दिखानेवाले और साथ ही जो व्यक्‍ति इन्हें प्राप्त करते हैं दोनों पर रचनात्मक प्रभाव डालती है और इस प्रकार दोनों को सुख मिलता है।” प्रेम दिखाने के द्वारा, हम दूसरों को और अपने आपको प्रोत्साहित करते हैं, जैसा कि यीशु के शब्दों से सूचित होता है: “लेने से देने में अधिक आनन्द है।”—प्रेरितों २०:३५, NW.

१७. प्रेम किस प्रकार उन्‍नति के लिए प्रोत्साहन देता है, और यह हमें क्या करने से रोकेगा?

१७ पहले कुरिन्थियों ८:१ में, पौलुस ने यूनानी शब्द अगापे (agape) का प्रयोग किया, जो सिद्धांती प्रेम का अर्थ रखता है। इससे उन्‍नति होती है, क्योंकि यह धीरजवन्त और कृपाल है, सब बातों को सह लेता है और सब बातों में धीरज रखता है, और कभी नहीं टलता। यह प्रेम घमण्ड और ईर्ष्या जैसी नाशक भावनाओं को हटाता है। (१ कुरिन्थियों १३:४-८) ऐसा प्रेम हमें अपने भाइयों के विषय में शिकायत करने से रोकेगा, जो कि हमारी ही तरह अपरिपूर्ण हैं। यह हमें उन “भक्‍तिहीन” लोगों के समान बनने से रोकेगा जो प्रथम शताब्दी के सच्चे मसीहियों के बीच ‘चुपके से आ मिले थे।’ ये पुरुष ‘प्रभुता को तुच्छ जानते थे; और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते थे,’ स्पष्टतः अभिषिक्‍त मसीही ओवरसियर जैसे व्यक्‍तियों की निन्दा करते थे जिन को कुछ गौरव दिया गया था। (यहूदा ३, ४, ८) यहोवा के प्रति निष्ठा में, हम कभी भी कुछ ऐसा करने के बहकावे में न आएं।

इब्‌लीस का विरोध कीजिए!

१८. यहोवा के लोगों के साथ शैतान क्या करना चाहता है, लेकिन वह ऐसा क्यों नहीं कर सकता?

१८ परमेश्‍वर के लोगों के रूप में हमारी एकता को शैतान नष्ट करना चाहता है, इस ज्ञान से निष्ठापूर्वक यहोवा की सेवा करने का हमारा दृढ़ निश्‍चय बढ़ना चाहिए। शैतान तो यह भी चाहेगा कि परमेश्‍वर के सारे लोगों को समाप्त कर दे, और इब्‌लीस के पार्थिव सेवकों ने कभी-कभी सच्चे उपासकों की हत्या की है। लेकिन परमेश्‍वर शैतान को कभी भी सभी को समाप्त नहीं करने देगा। यीशु मरा ताकि “जिसे मृत्यु पर शक्‍ति मिली थी, अर्थात्‌ शैतान को निकम्मा कर दे।” (इब्रानियों २:१४) जब से १९१४ में मसीह राजा बना और शैतान को स्वर्ग से निकाला गया तब से ख़ासकर शक्‍ति का प्रयोग करने का उसका क्षेत्र सीमित हो गया है। और यहोवा के उचित समय में, शैतान और उसके संगठन को यीशु नाश कर देगा।

१९. (क) शैतान के प्रयासों के विषय में इस पत्रिका ने सालों पहले क्या चेतावनी दी थी? (ख) शैतान के फन्दों से बचने के लिए, अपने संगी विश्‍वासियों के साथ व्यवहार करते समय हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?

१९ इस पत्रिका ने एक बार चेतावनी दी थी: “यदि शैतान, अर्थात्‌ इब्‌लीस, परमेश्‍वर के लोगों के मध्य गड़बड़ी उत्पन्‍न कर सकता है, उनके बीच आपस में लड़ाई-झगड़े, या एक स्वार्थी मनोवृति दिखाना और विकसित करना उत्पन्‍न कर सकता है जिससे भाइयों के लिए प्रेम नाश हो सकता है, तब वह उन्हें फाड़ खाने में सफल होगा।” [द वॉचटावर, (The Watch Tower), मई १, १९२१, पृष्ठ १३४) शायद एक दूसरे की निन्दा करने के लिए हमें उकसाने के द्वारा, या एक दूसरे के साथ झगड़ा करने के द्वारा हम शैतान को हमारी एकता नाश न करने दें। (लैव्यव्यवस्था १९:१६) ऐसा न हो कि शैतान हमें चलाकी से मात दे कि हम व्यक्‍तिगत रूप से उनको नुकसान पहुँचाएं जो निष्ठा से यहोवा की सेवा कर रहे हैं या उनके लिए जीवन और कठिन बना दें। (२ कुरिन्थियों २:१०, ११ से तुलना कीजिए.) इसके बजाए, आइए हम पतरस के शब्दों पर अमल करें: “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्‍वास में दृढ़ होकर, . . . उसका साम्हना करो।” (१ पतरस ५:८, ९) दृढ़ होकर शैतान का सामना करने से, हम यहोवा के लोगों के रूप में अपनी धन्य एकता बनाए रख सकते हैं।—भजन १३३:१-३.

प्रार्थनापूर्वक परमेश्‍वर पर भरोसा रखिए

२०, २१. यहोवा पर प्रार्थनामय भरोसा किस प्रकार निष्ठा से उसकी सेवा करने से सम्बन्धित है?

२० परमेश्‍वर पर प्रार्थनामय भरोसा हमें निष्ठा से यहोवा की सेवा निरन्तर करते रहने में सहायता करेगा। जब हम देखते हैं कि वह हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दे रहा है, तो हम उसके और क़रीब आकर्षित होते जाते हैं। प्रार्थनामय भरोसे के लिए आग्रह किया गया था जब प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।” (१ तीमुथियुस २:८) उदाहरण के लिए, यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि प्राचीन प्रार्थनापूर्वक परमेश्‍वर पर भरोसा रखें! जब वे कलीसिया के मामलों पर विचार करने के लिए मिलते हैं तो यहोवा के प्रति निष्ठा का ऐसा प्रमाण अन्तहीन विवादों और संभव क्रोध के भड़कने को रोकेगा।

२१ यहोवा परमेश्‍वर पर प्रार्थनामय भरोसा हमें उसकी सेवा में विशेषाधिकारों को पूरा करने में सहायता करता है। एक पुरुष जिसने दशकों तक निष्ठा से यहोवा की सेवा की थी कह सकता था: “परमेश्‍वर के विश्‍वव्यापी संगठन में दिए गए किसी भी नियतकार्य को हमारा तत्परता से स्वीकार करना, और अपनी कार्य-नियुक्‍ति पर अटल बना रहना, हमारे प्रयासों पर परमेश्‍वर की स्वीकृति लाता है। चाहे नियुक्‍त कार्य छोटा ही क्यों न प्रतीत हो, अकसर ऐसा होता है कि यदि उसे वफ़ादारी से न किया जाए तो दूसरी अत्यावश्‍यक सेवाएं नहीं की जा सकेंगी। अतः यदि हम नम्र हैं और पूर्णतया यहोवा के नाम की और न कि अपने नाम की महिमा में रुचि रखते हैं, तो हम आश्‍वस्त हो सकते हैं कि हम हमेशा ‘दृढ़ और अटल रहेंगे, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाएंगे।’”—१ कुरिन्थियों १५:५८.

२२. यहोवा की अनेक आशिषों का हमारी निष्ठा पर क्या प्रभाव पड़ना चाहिए?

२२ चाहे हम यहोवा की सेवा में कोई भी काम क्यों न करते हों, निःसंदेह, जो वह हमारे लिए करता है हम उसका बदला नहीं चुका सकते हैं। हम परमेश्‍वर के संगठन में उन लोगों द्वारा घिरे होने से कितने सुरक्षित हैं, जो उसके मित्र हैं! (याकूब २:२३) यहोवा ने हमें एकता की ऐसी आशीष दी है जो भाईचारे के इतने गहरे प्रेम से उत्पन्‍न होती है कि स्वयं शैतान तक उसे उखाड़ नहीं सकता। इसलिए आइए हम अपने निष्ठावान्‌ स्वर्गीय पिता से जुड़े रहें और उसके लोगों के रूप में एक साथ काम करें। अब और अनन्तकाल तक, आइए हम निष्ठा से यहोवा की सेवा करें।

आप किस प्रकार उत्तर देंगे?

▫ निष्ठावान होने का क्या अर्थ है?

▫ कुछ तत्त्व क्या हैं जिनसे हमें यहोवा की सेवा करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?

▫ हमें इब्‌लीस का विरोध क्यों करना चाहिए?

▫ यहोवा के निष्ठावान सेवक होने के लिए प्रार्थना हमारी सहायता कैसे कर सकती है?

[पेज 30 पर तसवीरें]

अपनी एकता को यहोवा के निष्ठावान सेवक अपने सिंह समान विरोधी, इब्‌लीस, को नहीं तोड़ने देते हैं

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