ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध पिशाचों की शिक्षाएँ
“कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं [पिशाचों, NW] की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।”—१ तीमुथियुस ४:१.
१. मसीही किस लड़ाई के बीच में हैं?
अपना पूरा जीवन एक युद्ध क्षेत्र में जीने की कल्पना कीजिए। बन्दूक चलने की आवाज़ सुनते हुए सोना और तोपों की आवाज़ से जागना कैसा होगा? दुःख की बात है कि संसार के कुछ हिस्सों में, लोग सचमुच वैसे ही जीते हैं। लेकिन, आध्यात्मिक अर्थ में, सभी मसीही इसी रीति से जीते हैं। वे एक बड़ी लड़ाई के बीच में हैं जो कुछ ६,००० साल से चल रही है और हमारे दिनों में तीव्र हो गयी है। यह कैसा युग-युगांतरी युद्ध है? सत्य के विरुद्ध झूठ की लड़ाई, ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध पिशाचों की शिक्षाओं की लड़ाई। इस लड़ाई को—कम से कम एक विरोधी पक्ष के कार्यों के सम्बन्ध में—मानवजाति के इतिहास का सबसे निर्दयी और सबसे घातक संघर्ष कहना बढ़ा-चढ़ाकर बातें करना नहीं है।
२. (क) पौलुस के अनुसार, कौन से दो पक्ष एक दूसरे के विरोध में हैं? (ख) “विश्वास” से पौलुस का क्या अर्थ था?
२ प्रेरित पौलुस ने इस संघर्ष के दो पक्षों का उल्लेख किया जब उसने तीमुथियुस को लिखा: “आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं [पिशाचों, NW] की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।” (१ तीमुथियुस ४:१) नोट कीजिए कि पिशाचों की शिक्षाएँ ख़ासकर “आनेवाले समयों” में प्रभावशाली होंगी। पौलुस के दिन से देखें तो, हम ऐसे समय में जी रहे हैं। यह भी नोट कीजिए कि, पिशाचों की शिक्षाओं के विरोध में क्या है, अर्थात् “विश्वास।” यहाँ, “विश्वास” ईश्वरीय शिक्षा को चित्रित करता है, जो बाइबल में दिए गए परमेश्वर के ईश्वरीय उत्प्रेरित वचन पर आधारित है। ऐसा विश्वास जीवनदायक है। यह एक मसीही को परमेश्वर की इच्छा पूरी करना सिखाता है। यह वह सत्य है जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है।—यूहन्ना ३:१६; ६:४०.
३. (क) सत्य और झूठ के बीच लड़ाई में अत्याहतों का क्या होता है? (ख) पिशाचों की शिक्षाओं के पीछे कौन है?
३ जो विश्वास से बहक जाते हैं वे अनन्तकाल का जीवन नहीं पाते। वे युद्ध में अत्याहत हैं। अपने आप को पिशाचों की शिक्षाओं द्वारा धोखा खाने देने का क्या ही दुःखद परिणाम! (मत्ती २४:२४) हम व्यक्तिगत रूप से अत्याहत होने से कैसे बच सकते हैं? पूरी तरह इन झूठी शिक्षाओं को ठुकराने के द्वारा, जो केवल “दुष्टात्माओं [पिशाचों, NW] के सरदार,” शैतान अर्थात् इब्लीस का उद्देश्य पूरा करती हैं। (मत्ती १२:२४) क्योंकि शैतान “झूठ का पिता है” यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि शैतान की शिक्षाएँ झूठ हैं। (यूहन्ना ८:४४) विचार कीजिए कि उसने हमारे प्रथम माता-पिता को बहकाने के लिए कितनी कुशलता से झूठ का प्रयोग किया।
पिशाचों की शिक्षाएँ प्रकट
४, ५. शैतान ने हव्वा से क्या झूठ बोला, और वह इतना दुष्ट क्यों था?
४ ये घटनाएँ बाइबल में उत्पत्ति ३:१-५ में अभिलिखित हैं। एक साँप का प्रयोग करते हुए शैतान स्त्री हव्वा के पास पहुँचा और उससे पूछा: “क्या यह सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” प्रश्न अहानिकर प्रतीत होता है, लेकिन उस पर एक बार फिर ध्यान दीजिए। “क्या यह सच है?” शैतान चकित सुनाई पड़ता है, मानो कह रहा है, ‘परमेश्वर उस प्रकार की बात क्यों कहेगा?’
५ अपनी नादानी में, हव्वा ने संकेत दिया कि ऐसा ही था। इस विषय पर वह ईश्वरीय शिक्षा जानती थी, कि परमेश्वर ने आदम को कहा था कि यदि उन्होंने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाया तो वे मर जाएँगे। (उत्पत्ति २:१६, १७) स्पष्ट है कि शैतान के प्रश्न ने उसकी दिलचस्पी जगायी, इसलिए वह सुन रही थी जब वह अपने तर्क के मुख्य मुद्दे पर आया: “तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे।” कितनी दुष्ट बात कही! शैतान ने यहोवा, सत्य के परमेश्वर, प्रेम के परमेश्वर, सृष्टिकर्ता पर अपने मानव बच्चों से झूठ बोलने का आरोप लगाया!—भजन ३१:५; १ यूहन्ना ४:१६; प्रकाशितवाक्य ४:११.
६. शैतान ने यहोवा की भलाई और सर्वसत्ता को कैसे चुनौती दी?
६ लेकिन शैतान ने और भी कहा। उसने आगे कहा: “वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” शैतान के अनुसार, यहोवा परमेश्वर—जिसने हमारे प्रथम माता-पिता के लिए इतनी बहुतायत में प्रदान किया था—उन्हें किसी अद्भुत चीज़ से वंचित रखना चाहता था। वह उन्हें ईश्वरों के समान होने से रोकना चाहता था। अतः, शैतान ने परमेश्वर की भलाई को चुनौती दी। उसने आत्मतुष्टि और जानबूझकर परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करने को भी बढ़ावा दिया, और यह कहा कि इस तरह कार्य करना लाभकारी होगा। वस्तुतः, शैतान ने यह आरोप लगाते हुए कि परमेश्वर के पास मनुष्य के कार्यों पर सीमा लगाने का कोई अधिकार नहीं था, स्वयं परमेश्वर की सृष्टि पर उसकी सर्वसत्ता को चुनौती दी।
७. पिशाचों की शिक्षाएँ पहली बार कब सुनाई दीं, और वे आज भी कैसे समान हैं?
७ शैतान के उन शब्दों के साथ ही, पिशाचों की शिक्षाएँ सुनाई देना शुरू हो गईं। ये बुरी शिक्षाएँ अभी भी वैसे ही अधर्मी सिद्धान्तों को बढ़ावा देती हैं। शैतान, जिसके साथ अभी अन्य विद्रोही आत्माएँ मिल गई हैं, कार्य के स्तर निश्चित करने के परमेश्वर के अधिकार को अभी भी चुनौती देता है, ठीक जैसे उसने अदन की वाटिका में किया था। वह अभी भी यहोवा की सर्वसत्ता का विरोध करता है और अपने स्वर्गीय पिता की अवज्ञा करने के लिए मनुष्यों को प्रभावित करने की कोशिश करता है।—१ यूहन्ना ३:८, १०.
८. आदम और हव्वा ने अदन में क्या खोया, लेकिन यहोवा कैसे सच्चा साबित हुआ?
८ ईश्वरीय शिक्षा और पिशाचों की शिक्षाओं के बीच लड़ाई के उस पहले मुक़ाबले में, आदम और हव्वा ने ग़लत निर्णय लिया और अनन्त जीवन की अपनी आशा खो दी। (उत्पत्ति ३:१९) जैसे-जैसे समय बीता और उनके शरीर विकृत होना शुरू हो गए, उनके लिए इस बात की अच्छी तरह पुष्टि हो गयी थी कि अदन में किसने झूठ बोला था और किसने सच बोला था। लेकिन, उनके शारीरिक रूप से मरने के सैकड़ों साल पहले, वे सत्य और झूठ के बीच लड़ाई में पहले अत्याहत बने जब वे अपने सृष्टिकर्ता, जीवन के सोते द्वारा जीवन के अयोग्य ठहराए गए। वह तब हुआ जब वे आध्यात्मिक रूप से मरे।—भजन ३६:९; साथ ही इफिसियों २:१ से तुलना कीजिए.
आज पिशाचों की शिक्षाएँ
९. शताब्दियों के दौरान पिशाचों की शिक्षाएँ कितनी प्रभावकारी रही हैं?
९ जैसा प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में अभिलिखित है, प्रेरित यूहन्ना उत्प्रेरणा से “प्रभु के दिन” में ले जाया गया, जो १९१४ में शुरू हुआ। (प्रकाशितवाक्य १:१०) उस समय शैतान और उसके पिशाचों को स्वर्ग से निकालकर पृथ्वी के प्रतिवेश में फेंक दिया गया था—हमारे महान् सृष्टिकर्ता के इस विरोधी के लिए एक बड़ा धक्का। फिर कभी स्वर्ग में उसकी आवाज़ निरन्तर यहोवा के सेवकों के विरुद्ध लांछन लगाते हुए नहीं सुनायी दी। (प्रकाशितवाक्य १२:१०) लेकिन, पिशाचों की शिक्षाओं ने अदन के समय से पृथ्वी पर क्या प्रगति की थी? अभिलेख कहता है: “वह बड़ा अजगर अर्थात् वही पुराना सांप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया।” (प्रकाशितवाक्य १२:९) सारा संसार शैतान के झूठ में आ गया था! कोई आश्चर्य नहीं कि शैतान को “इस जगत का सरदार” कहा गया है!—यूहन्ना १२:३१; १६:११.
१०, ११. शैतान और उसके पिशाच किन तरीक़ों से आज सक्रिय हैं?
१० स्वर्ग से निकाले जाने के बाद क्या शैतान ने हार मान ली? निश्चित ही नहीं! उसने ईश्वरीय शिक्षा के और जो उसे थामे रहते हैं उनके विरुद्ध लड़ते रहने का निर्णय लिया। उसके स्वर्ग से निकाले जाने के बाद, शैतान ने अपना युद्ध जारी रखा: “अजगर [शैतान] स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया।”—प्रकाशितवाक्य १२:१७.
११ परमेश्वर के सेवकों से लड़ने के अतिरिक्त, शैतान संसार पर अपने प्रचार की भरमार कर रहा है, मानवजाति पर अपनी जकड़ बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहा है। प्रभु के दिन के बारे में अपने एक प्रकाशितवाक्य दर्शन में, प्रेरित यूहन्ना ने तीन जंगली पशु देखे जिन्होंने लाक्षणिक रूप से शैतान, उसके पार्थिव राजनीतिक संगठन, और हमारे समय की प्रमुख विश्व शक्ति को चित्रित किया। इन तीनों के मुँह से मेंढक निकले। इन्होंने क्या चित्रित किया? यूहन्ना लिखता है: “ये चिन्ह दिखानेवाली दुष्टात्मा [पिशाच, NW] हैं, जो सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिये जाती हैं, कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिये इकट्ठा करें।” (प्रकाशितवाक्य १६:१४) स्पष्टतया, पिशाचों की शिक्षाएँ पृथ्वी पर बहुत सक्रिय हैं। शैतान और उसके पिशाच अभी भी ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध लड़ रहे हैं, और वे ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक कि यीशु मसीह, मसीहाई राजा उन्हें ज़बरदस्ती नहीं रोकता।—प्रकाशितवाक्य २०:२.
पिशाचों की शिक्षाओं को पहचानना
१२. (क) पिशाचों की शिक्षाओं का विरोध करना क्यों संभव है? (ख) परमेश्वर के सेवकों के साथ शैतान अपना उद्देश्य पूरा करने की कैसे कोशिश करता है?
१२ क्या परमेश्वर का भय-माननेवाले मनुष्य पिशाचों की शिक्षाओं का विरोध कर सकते हैं? वे सचमुच विरोध कर सकते हैं, इसके दो कारण हैं। पहला, क्योंकि ईश्वरीय शिक्षा अधिक प्रभावकारी है; और दूसरा, क्योंकि यहोवा ने शैतान की युद्धनीतियों का पर्दाफ़ाश किया है ताकि हम उनका विरोध कर सकें। जैसा प्रेरित पौलुस ने कहा, “हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं।” (२ कुरिन्थियों २:११) हम जानते हैं कि शैतान अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए सताहट को एक साधन के रूप में प्रयोग करता है। (२ तीमुथियुस ३:१२) लेकिन उससे कहीं अधिक धूर्तता से, वह उनके मन और हृदय प्रभावित करने की कोशिश करता है जो परमेश्वर की सेवा करते हैं। उसने हव्वा को बहकाया और उसके हृदय में ग़लत इच्छाएँ डालीं। वह आज भी वैसा ही करने की कोशिश करता है। पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा: “मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।” (२ कुरिन्थियों ११:३) विचार कीजिए कि उसने सामान्य रूप से मानवजाति के सोच-विचार कैसे भ्रष्ट कर दिए हैं।
१३. अदन के समय से शैतान ने मानवजाति को क्या झूठ बोले हैं?
१३ शैतान ने यहोवा पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए हव्वा से कहा कि यदि मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता की अवज्ञा करते तो वे ईश्वरों के जैसे हो सकते थे। आज मानवजाति की पतित स्थिति साबित करती है कि शैतान, न कि यहोवा झूठा था। मनुष्य आज कोई ईश्वर नहीं हैं! लेकिन, शैतान ने उस झूठ को चलाने के लिए अन्य झूठ बोले। उसने यह विचार प्रस्तुत किया कि मानव आत्मा अमर, अमिट है। इस प्रकार उसने मानवजाति के सामने एक अन्य तरीक़े से ईश्वरों के तुल्य होने की संभावना का लोभ रखा। फिर, उस झूठे सिद्धान्त पर आधारित, उसने नरकाग्नि, शोधन-स्थान, प्रेतात्मवाद, और पूर्वजों की उपासना जैसी शिक्षाओं को बढ़ावा दिया। अभी भी करोड़ों लोग इन झूठी शिक्षाओं के दासत्व में हैं।—व्यवस्थाविवरण १८:९-१३.
१४, १५. मृत्यु के और भविष्य के लिए मनुष्य की आशा के बारे में सत्य क्या है?
१४ निःसंदेह, जो यहोवा ने आदम को कहा था वह सत्य था। परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने के बाद आदम मरा। (उत्पत्ति ५:५) जब आदम और उसके वंशज मरे, वे मृत प्राणी बने, मूर्छित और निष्क्रिय। (उत्पत्ति २:७; सभोपदेशक ९:५, १०; यहेजकेल १८:४) आदम से उत्तराधिकार में पाप पाने के कारण, सभी मानव प्राणी मरते हैं। (रोमियों ५:१२) लेकिन, अदन में, यहोवा ने एक वंश के आने की प्रतिज्ञा की जो इब्लीस के कार्यों के विरुद्ध लड़ेगा। (उत्पत्ति ३:१५) वह वंश यीशु मसीह था, स्वयं परमेश्वर का एकलौता पुत्र। यीशु पापरहित मरा, और उसका बलि दिया हुआ जीवन मानवजाति को उनकी मरणासन्न स्थिति से ख़रीदने के लिए छुड़ौती बना। जो लोग आज्ञाकारिता से यीशु में विश्वास रखते हैं उनके पास वह अनन्तकालीन जीवन प्राप्त करने का अवसर है जो आदम ने खो दिया।—यूहन्ना ३:३६; रोमियों ६:२३; १ तीमुथियुस २:५, ६.
१५ मानवजाति के लिए असली आशा छुड़ौती है, न कि कोई अस्पष्ट विचार कि मृत्यु होने पर आत्मा बच जाती है। यह ईश्वरीय शिक्षा है। यह सत्य है। यह यहोवा के प्रेम और बुद्धि का अद्भुत प्रदर्शन भी है। (यूहन्ना ३:१६) हमें कितना आभारी होना चाहिए कि हम ने यह सत्य सीखा है और हम इन विषयों पर पिशाचों की शिक्षाओं से मुक्त हुए हैं!—यूहन्ना ८:३२.
१६. जब मनुष्य स्वयं अपनी बुद्धि पर चलते हैं, तो दीर्घकालिक परिणाम क्या होते हैं?
१६ अदन की वाटिका में झूठ बोलने के द्वारा, शैतान ने आदम और हव्वा को परमेश्वर से स्वतंत्र होने की आकांक्षा करने और स्वयं अपनी बुद्धि पर भरोसा रखने के लिए प्रोत्साहित किया। आज, हम उसके दीर्घकालिक परिणामों को आज संसार में विद्यमान अपराध, आर्थिक कठिनाइयों, युद्धों, और घोर असमानता में देखते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि बाइबल कहती है: “इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है”! (१ कुरिन्थियों ३:१९) फिर भी, अधिकांश मनुष्य यहोवा की शिक्षाओं पर ध्यान देने के बजाय मूर्खतापूर्वक कष्ट सहना पसन्द करते हैं। (भजन १४:१-३; १०७:१७) मसीही, जिन्होंने ईश्वरीय शिक्षा स्वीकार की है, उस फंदे में फंसने से बचते हैं।
१७. शैतान ने कौनसा ‘झूठा ज्ञान’ बढ़ाया है, और उसके फल क्या हैं?
१७ पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा: “हे तीमुथियुस इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके [झूठे ज्ञान के, NW] अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह। कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके, विश्वास से भटक गए हैं।” (१ तीमुथियुस ६:२०, २१) वह “ज्ञान” पिशाचों की शिक्षाओं को भी चित्रित करता है। पौलुस के दिन में, संभव है कि यह धर्मत्यागी विचारों को सूचित करता था जिनको कलीसियाओं में कुछ लोग बढ़ावा दे रहे थे। (२ तीमुथियुस २:१६-१८) बाद में, झूठे ज्ञान, जैसे कि प्रज्ञानवाद और यूनानी तत्त्वज्ञान ने कलीसिया को भ्रष्ट कर दिया। आज संसार में, निरीश्वरवाद, अज्ञेयवाद, विकासवाद, और बाइबल की उच्च समालोचना झूठे ज्ञान के उदाहरण हैं। आधुनिक धर्मत्यागियों द्वारा बढ़ाए गए अशास्त्रीय विचार भी इसी के उदाहरण हैं। इस सब झूठे ज्ञान के फल नैतिक अपभ्रष्टता, अधिकार के लिए व्यापक अनादर, बेईमानी, और स्वार्थ में दिखते हैं जो शैतान की रीति-व्यवस्था की विशेषताएँ हैं।
ईश्वरीय शिक्षा को थामे रहना
१८. आज कौन ईश्वरीय शिक्षा की खोज करते हैं?
१८ हालाँकि शैतान अदन के समय से पृथ्वी पर पिशाचों की शिक्षाओं की भरमार करता रहा है, हमेशा से कुछ लोग रहे हैं जिन्होंने ईश्वरीय शिक्षा की खोज की। ऐसे लोग आज लाखों की संख्या में हैं। उनमें शेष अभिषिक्त मसीही सम्मिलित हैं जिनके पास यीशु के साथ उसके स्वर्गीय राज्य में राज्य करने की निश्चित आशा है। और इनमें ‘अन्य भेड़ों’ की बढ़ती हुई बड़ी भीड़ भी सम्मिलित है जिसके पास उस राज्य के पार्थिव क्षेत्र में बसने की आशा है। (मत्ती २५:३४; यूहन्ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य ७:३, ९) आज, ये लोग एक विश्वव्यापी संगठन में इकट्ठे किए गए हैं जिस पर यशायाह के शब्द लागू होते हैं: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।”—यशायाह ५४:१३.
१९. यहोवा द्वारा सिखलाए जाने में क्या सम्मिलित है?
१९ यहोवा के द्वारा सिखलाए जाने का अर्थ सही सिद्धान्त जानने से ज़्यादा है—जबकि वह महत्त्वपूर्ण है। यहोवा हमें सिखाता है कि कैसे जीएँ, अपने व्यक्तिगत जीवन में ईश्वरीय शिक्षा कैसे लागू करें। उदाहरण के लिए, हम स्वार्थ, अनैतिकता, और स्वतंत्रता की आत्मा का विरोध करते हैं जो कि हमारे चारों ओर संसार में इतने व्याप्त हैं। हम जानते हैं कि इस संसार में धन के पीछे निरन्तर दौड़ क्या है—प्राण घातक। (याकूब ५:१-३) हम प्रेरित यूहन्ना के शब्दों में व्यक्त ईश्वरीय शिक्षा को कभी नहीं भूलते हैं: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है।”—१ यूहन्ना २:१५.
२०, २१. (क) मनुष्यों को अन्धा करने के अपने प्रयासों में शैतान किस चीज़ का प्रयोग करता है? (ख) जो लोग ईश्वरीय शिक्षा को थामे रहते हैं उन्हें क्या आशिषें मिलती हैं?
२० पिशाचों की शिक्षाओं का जो प्रभाव उसके शिकारों पर पड़ता है वह कुरिन्थियों को लिखे पौलुस के शब्दों में देखा जाता है: “अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को [शैतान] ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है; उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।” (२ कुरिन्थियों ४:४) शैतान सच्चे मसीहियों को भी इस तरीक़े से अन्धा करना चाहेगा। अदन में, उसने परमेश्वर के एक सेवक को बहकाने के लिए एक साँप का प्रयोग किया। आज, वह हिंसात्मक या अनैतिक फ़िल्मों और टेलीविज़न कार्यक्रमों का प्रयोग करता है। वह रेडियो, साहित्य, और संगीत का अनुचित लाभ उठाता है। उसके पास एक प्रभावकारी शस्त्र है, ग़लत संगति। (नीतिवचन ४:१४; २८:७; २९:३) हमेशा ऐसी चीज़ों को वही समझिए जो वे हैं—पिशाचों की युक्तियाँ और शिक्षाएँ।
२१ याद रखिए, अदन में शैतान के शब्द झूठ थे; यहोवा के शब्द सत्य साबित हुए। उन आरंभिक दिनों से, स्थिति वही रही है। शैतान हमेशा झूठा साबित हुआ है, और ईश्वरीय शिक्षा अचूक रूप से सत्य रही है। (रोमियों ३:४) यदि हम परमेश्वर के वचन को थामे रहें, तो हम सत्य और झूठ के बीच लड़ाई में हमेशा विजयी पक्ष में होंगे। (२ कुरिन्थियों १०:४, ५) तो फिर, आइए, पिशाचों की सभी शिक्षाओं को ठुकराने के लिए दृढ़-संकल्प रहें। ऐसा करने से हम उस समय तक स्थिर रहेंगे जब तक सत्य और झूठ के बीच युद्ध समाप्त न हो जाए। सत्य की जीत हो चुकी होगी। शैतान जा चुका होगा, और पृथ्वी पर केवल ईश्वरीय शिक्षा सुनाई देगी।—यशायाह ११:९.
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ पैशाचिक शिक्षाएँ पहली बार कब सुनाई दीं?
▫ शैतान और उसके पिशाचों द्वारा बढ़ाए गए कुछ झूठ क्या हैं?
▫ आज शैतान किन तरीक़ों से अति सक्रिय है?
▫ पिशाचों की शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए शैतान क्या प्रयोग करता है?
▫ जो लोग ईश्वरीय शिक्षा को थामे रहते हैं उन्हें क्या आशिषें प्राप्त हैं?
[पेज 9 पर तसवीर]
पैशाचिक शिक्षा पहली बार अदन की वाटिका में सुनाई दी
[पेज 10 पर तसवीर]
छुड़ौती और राज्य के बारे में ईश्वरीय शिक्षा मानवजाति के लिए एकमात्र आशा प्रस्तुत करती है