क्या आप संसार की आत्मा का विरोध कर रहे हैं?
“हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है।”—१ कुरिन्थियों २:१२.
१, २. भोपाल, भारत में विषैली गैस से सम्बन्धित क्या दुर्घटना हुई, लेकिन संसार में चारों ओर लोग किस ज़्यादा घातक “गैस” में साँस ले रहे हैं?
वर्ष १९८४ में दिसम्बर की एक ठंडी रात को भोपाल, भारत में एक दहलानेवाली घटना घटी। उस शहर में एक रासायनिक कारख़ाना है, और दिसम्बर की उस रात, एक गैस संग्रह-टंकी का एक वाल्व ख़राब हो गया। अचानक, टनों मिथाइल आइसोसाइनेट हवा में उड़ने लगी। हवा के साथ उठकर, यह घातक गैस घरों में और सोते हुए परिवारों पर से बही। जो मरे उनकी संख्या हज़ारों में थी, और बहुत से अन्य लोग अपंग हो गए। यह उस समय तक की सबसे बुरी औद्योगिक दुर्घटना थी।
२ जब लोगों ने भोपाल के बारे में सुना तो उन्होंने शोक मनाया। लेकिन जबकि वह गैस घातक थी, वहाँ उठी गैस द्वारा मारे गए लोग उनसे कहीं कम हैं जो एक ऐसी “गैस” द्वारा आध्यात्मिक रूप से मारे जाते हैं जिसमें पूरे संसार में लोग हर दिन साँस लेते हैं। बाइबल उसे “संसार की आत्मा” कहती है। प्रेरित पौलुस ने इस घातक वातावरण की विषमता परमेश्वर की ओर से आत्मा से की जब उसने कहा: “हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।”—१ कुरिन्थियों २:१२.
३. “संसार की आत्मा” क्या है?
३ “संसार की आत्मा” है क्या? द न्यू थेयरस् ग्रीक इंग्लिश लेक्सिकन ऑफ़ द न्यू टेस्टामेंट के अनुसार, शब्द “आत्मा” (यूनानी, न्यूमा) का सामान्य अर्थ है “वह मनोवृत्ति या प्रभाव जो किसी के प्राण को भरता और नियंत्रित करता है।” एक व्यक्ति की भली या बुरी आत्मा, या मनोवृत्ति हो सकती है। (भजन ५१:१०; २ तीमुथियुस ४:२२) लोगों के एक समूह की भी एक आत्मा, या प्रबल मनोवृत्ति हो सकती है। प्रेरित पौलुस ने अपने मित्र फिलेमोन को लिखा: “हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा पर होता रहे।” (फिलेमोन २५) उसी प्रकार—लेकिन उससे कहीं बड़े पैमाने पर—सामान्य रूप से संसार की एक प्रबल मनोवृत्ति है, और यह “संसार की आत्मा” है जिसका उल्लेख पौलुस ने किया। विन्सेंट की वर्ड स्टडीज़ इन द न्यू टेस्टामेंट के अनुसार, “इस वाक्यांश का अर्थ है बुराई का सिद्धान्त जो हठी संसार को प्रेरित करता है।” यह पापमय प्रवृत्ति है जो इस संसार के सोच-विचार में व्याप्त है और प्रभावकारी रीति से लोगों के कार्य करने के ढंग को प्रभावित करती है।
४. संसार की आत्मा का स्रोत कौन है, और इस आत्मा का मनुष्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
४ यह आत्मा विषैली है। क्यों? क्योंकि यह ‘जगत के सरदार,’ शैतान से निकलती है। सचमुच, वह ‘आकाश [हवा, NW] के अधिकार का हाकिम अर्थात् वह आत्मा . . . जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है,’ कहलाता है। (यूहन्ना १२:३१; इफिसियों २:२) इस “हवा” या “आत्मा . . . जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है” से बचना मुश्किल है। यह मानव समाज में हर जगह है। यदि हम इसे साँस में अन्दर ले लेते हैं, तो हम इसकी प्रवृत्तियाँ, इसके लक्ष्य अपनाना शुरू कर देते हैं। संसार की आत्मा ‘शरीर के अनुसार दिन काटना’ प्रोत्साहित करती है, अर्थात्, हमारी पापमय अपरिपूर्णता के अनुसार जीना। यह प्राण-घातक है, “क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे।”—रोमियों ८:१३.
इस संसार की आत्मा से बचना
५. भोपाल में महाविपदा के दौरान एक गवाह ने कैसे बुद्धिमत्ता से कार्य किया?
५ भोपाल की महाविपदा के दौरान, यहोवा का एक गवाह भोंपुओं और विषैली गैस की तेज़ गंध से जाग गया। बिना देर किए उसने अपने परिवार को जगाया और उन्हें तुरंत सड़क की ओर भगाया। हवा की दिशा जानने के लिए एक क्षण रुकते हुए, उसने चकरायी हुई भीड़ से निकलने के लिए संघर्ष किया और अपने परिवार को शहर के बाहर एक पहाड़ी के ऊपर ले गया। वहाँ वे अपने फेफड़े ताज़ी, साफ़ हवा से भर सके जो पास की झील से बह रही थी।
६. संसार की आत्मा से बचने के लिए हम कहाँ जा सकते हैं?
६ क्या एक उत्थित स्थान है जहाँ हम इस संसार की विषैली “हवा” से बचने के लिए जा सकते हैं? बाइबल कहती है कि ऐसा स्थान है। हमारे दिन की ओर देखते हुए, भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे। और बहुत देशों के लोग आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।” (यशायाह २:२, ३) शुद्ध उपासना का उत्थित स्थान, ऊँचा किया गया “यहोवा के भवन का पर्वत” इस ग्रह पर एकमात्र स्थान है जो इस संसार की दम घोंटनेवाली, विषैली आत्मा से मुक्त है। वहाँ यहोवा की आत्मा विश्वासी मसीहियों के बीच स्वच्छन्द रूप से प्रवाहित होती है।
७. अनेक लोग संसार की आत्मा से कैसे बचे हैं?
७ अनेक लोगों ने जो पहले इस संसार की आत्मा में साँस लेते थे, अब वैसी ही राहत का आनन्द लिया है जैसी भोपाल में उस गवाह ने अनुभव की। “आज्ञा न माननेवालों” के बारे में बोलने के बाद, जो इस संसार की हवा, या आत्मा में साँस लेते हैं, प्रेरित पौलुस कहता है: “इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया। जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया।” (इफिसियों २:३-५) जो सिर्फ़ इस रीति-व्यवस्था की विषैली हवा में ही साँस लेते हैं आध्यात्मिक रूप से मरे हुए हैं। लेकिन, यहोवा का शुक्र है कि आज लाखों लोग आध्यात्मिक ऊँचे स्थान की ओर भाग रहे हैं और उस घातक स्थिति से बच रहे हैं।
“संसार की आत्मा” के प्रकटन
८, ९. (क) क्या बात दिखाती है कि संसार की आत्मा के विरुद्ध हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए? (ख) शैतान की आत्मा हमें कैसे भ्रष्ट कर सकती है?
८ शैतान की प्राण-घातक हवा अभी भी हमारे चारों ओर चक्कर काटती है। हमें सतर्क रहना चाहिए और कभी नीचे की ओर वापस संसार में नहीं जाना चाहिए, शायद आध्यात्मिक रूप से हमारा दम घुट जाए। इसके लिए हमेशा चौकस रहने की ज़रूरत है। (लूका २१:३६; १ कुरिन्थियों १६:१३) उदाहरण के लिए, इस तथ्य पर विचार कीजिए। सभी मसीही यहोवा के नैतिकता के स्तरों से परिचित हैं और कभी नहीं मानेंगे कि परस्त्रीगमन, व्यभिचार, और समलिंगकामुकता जैसे अशुद्ध अभ्यास स्वीकार्य हैं। फिर भी, हर साल लगभग ४०,००० लोग यहोवा के संगठन से बहिष्कृत किए जाते हैं। क्यों? अनेक मामलों में इन्हीं उल्लिखित अशुद्ध अभ्यासों के कारण। ऐसा कैसे हो सकता है?
९ क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं। शरीर कमज़ोर है, और हमें अपने हृदय में उठनेवाली ग़लत प्रवृत्तियों से निरन्तर लड़ना पड़ता है। (सभोपदेशक ७:२०; यिर्मयाह १७:९) लेकिन, वे ग़लत प्रवृत्तियाँ संसार की आत्मा द्वारा प्रोत्साहित की जाती हैं। इस संसार में अनेक लोगों को अनैतिकता में कोई बुराई नहीं दिखती, और यह विचार कि कुछ भी चलता है, शैतान की रीति-व्यवस्था की मानसिक प्रवृत्ति का हिस्सा है। यदि हम अपने आप को ऐसे सोच-विचार के प्रभावन में डालते हैं, तो अति संभव है कि हम संसार के समान सोचने लगेंगे। जल्द ही, ऐसे अशुद्ध विचार ग़लत इच्छाएँ उत्पन्न कर सकते हैं जिसका परिणाम गंभीर पाप होगा। (याकूब १:१४, १५) हम यहोवा की शुद्ध उपासना के पर्वत से बहककर शैतान के संसार की संदूषित निम्नभूमि में चले गए होंगे। कोई भी व्यक्ति जो वहाँ जानबूझकर रहता है अनन्त जीवन का वारिस नहीं हो सकता।—इफिसियों ५:३-५, ७.
१०. शैतान की हवा का एक प्रकटन क्या है, और मसीहियों को इससे दूर क्यों रहना चाहिए?
१० संसार की आत्मा हमारे चारों ओर स्पष्ट दिखती है। उदाहरण के लिए, अनेक लोगों की जीवन के प्रति ढीठ, व्यंग्यात्मक मनोवृत्ति है। भ्रष्ट या अयोग्य राजनीतिज्ञों और अनैतिक, लोभी धार्मिक नेताओं से निराश होकर वे गंभीर बातों के बारे में भी श्रद्धाहीन रूप से बोलते हैं। मसीही लोग इस प्रवृत्ति का विरोध करते हैं। जबकि हम हितकर मज़ाक कर सकते हैं, हम कलीसिया में अनादर की व्यंग्यात्मक आत्मा लाने से दूर रहते हैं। एक मसीही की बोली यहोवा का भय और हृदय की शुद्धता प्रतिबिम्बित करती है। (याकूब ३:१०, ११; साथ ही नीतिवचन ६:१४ से तुलना कीजिए.) चाहे हम जवान हैं या बूढ़े, हमारी बोली को “सदा अनुग्रह सहित और सलोना” होना चाहिए “कि [हमें] हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।”—कुलुस्सियों ४:६.
११. (क) संसार की आत्मा का दूसरा पहलू क्या है? (ख) जो लोग इस पहलू को प्रतिबिम्बित करते हैं मसीही उनसे भिन्न क्यों हैं?
११ घृणा एक और सामान्य प्रवृत्ति है जो इस संसार की आत्मा को प्रतिबिम्बित करती है। संसार प्रजातीय, नृजातीय, राष्ट्रीय, और यहाँ तक कि व्यक्तिगत भेदों पर आधारित घृणा और शत्रुता द्वारा विभाजित है। जहाँ परमेश्वर की आत्मा सक्रिय है वहाँ चीज़ें कितनी बेहतर हैं! प्रेरित पौलुस ने लिखा: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो। जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा। परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो, तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा। बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।”—रोमियों १२:१७-२१.
१२. मसीही लोग भौतिकवाद से क्यों दूर रहते हैं?
१२ इस संसार की आत्मा भौतिकवाद को भी प्रोत्साहित करती है। वाणिज्यवाद से प्रोत्साहित होकर, अनेक लोग नवीनतम उपकरण, नवीनतम फ़ैशन, नवीनतम मॉडल की कार से सम्मोहित हो जाते हैं। वे “आंखों की अभिलाषा” के दास बन जाते हैं। (१ यूहन्ना २:१६) अधिकांश लोग जीवन में अपनी सफलता इससे नापते हैं कि उनका घर कितना बड़ा है या उनके बैंक में कितने पैसे हैं। मसीही, यहोवा की शुद्ध उपासना के उत्थित पर्वत पर साफ़ आध्यात्मिक हवा में साँस ले रहे हैं। वे इस प्रवृत्ति का विरोध करते हैं। वे जानते हैं कि भौतिक चीज़ों का दृढ़ता से पीछा करना विनाशक हो सकता है। (१ तीमुथियुस ६:९, १०) यीशु ने अपने चेलों को याद दिलाया: “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।”—लूका १२:१५.
१३. इस संसार की आत्मा के कुछ अतिरिक्त प्रकटन क्या हैं?
१३ इस संसार की अस्वास्थ्यकर “हवा” के अन्य प्रकटन हैं। एक है विद्रोह की आत्मा। (२ तीमुथियुस ३:१-३) क्या आप ने नोट किया है कि अनेक लोग अधिकारी-वर्ग के साथ सहयोग नहीं देते? क्या आपने अपने कार्य-स्थल में इस व्याप्त प्रथा पर ध्यान दिया है कि यदि कोई वास्तव में नहीं देख रहा है तो लोग काम नहीं करते? आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं जिन्होंने नियम तोड़े हैं—शायद कर देने में बेईमानी की है या कार्य-स्थल से चोरी की है? यदि आप अभी भी स्कूल में पढ़ते हैं, तो क्या आप कभी पूरी मेहनत करके पढ़ाई करने से निरुत्साहित हुए हैं क्योंकि आपके सहपाठी उन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं जो शैक्षिक सफलता प्राप्त करते हैं? ये सभी संसार की आत्मा के प्रकटन हैं जिनका मसीहियों को विरोध करना चाहिए।
इस संसार की आत्मा का विरोध कैसे करें
१४. मसीही किन तरीक़ों से ग़ैर-मसीहियों से भिन्न हैं?
१४ लेकिन, हम संसार की आत्मा का विरोध कैसे कर सकते हैं जब हम वास्तव में संसार में रहते हैं? हमें यह याद रखना है कि शारीरिक रूप से हम चाहे कहीं भी क्यों न हों, आध्यात्मिक रूप से हम संसार का भाग नहीं हैं। (यूहन्ना १७:१५, १६) हमारे लक्ष्य इस संसार के लक्ष्य नहीं हैं। चीज़ों के प्रति हमारी दृष्टि भिन्न है। हम आध्यात्मिक लोग हैं, “हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिलाकर” बोलते और सोचते हैं।—१ कुरिन्थियों २:१३.
१५. हम संसार की आत्मा का विरोध किस प्रकार कर सकते हैं?
१५ यदि एक व्यक्ति अपने आपको विषैली गैस से प्रदूषित क्षेत्र में पाता है तो वह क्या कर सकता है? या तो वह साफ़ हवा की सप्लाई से जुड़ा गैस मास्क पहन सकता है, अन्यथा वह अपने आपको शारीरिक रूप से उस क्षेत्र से दूर कर सकता है। शैतान की हवा से बचने का तरीक़ा इन दोनों तरीक़ों का मिश्रण है। जहाँ तक संभव हो, हम अपने आपको शारीरिक रूप से ऐसी किसी भी चीज़ से दूर रखने की कोशिश करते हैं जो संसार की आत्मा को हमारे सोच-विचार प्रभावित करने में समर्थ करेगी। अतः, हम ग़लत संगति से दूर रहते हैं, और अपने आपको ऐसे किसी भी मनोरंजन के प्रभावन में नहीं डालते जो हिंसा, अनैतिकता, प्रेतात्मवाद, विद्रोह, या शरीर के अन्य किसी काम को बढ़ावा देता है। (गलतियों ५:१९-२१) फिर भी, क्योंकि हम संसार में रहते हैं, हम पूरी तरह इन चीज़ों के प्रभावन में पड़ने से नहीं बच सकते। इसलिए हम बुद्धिमत्ता से कार्य कर रहे हैं यदि हम एक आध्यात्मिक ताज़ी-हवा की सप्लाई से जुड़ जाते हैं। हम नियमित सभा उपस्थिति, व्यक्तिगत अध्ययन, मसीही गतिविधियों तथा संगति, और प्रार्थना द्वारा मानो अपने आध्यात्मिक फेफड़ों को भरते हैं। इस तरह, यदि शैतान की कुछ हवा हमारे आध्यात्मिक फेफड़ों में आ भी जाए तो परमेश्वर की आत्मा हमें उसे अस्वीकार करने के लिए ताक़त देती है।—भजन १७:१-३; नीतिवचन ९:९; १३:२०; १९:२०; २२:१७.
१६. हमारे पास परमेश्वर की आत्मा होने का प्रमाण हम कैसे देते हैं?
१६ परमेश्वर की आत्मा एक मसीही को एक ऐसे व्यक्ति में बदल देती है जो कि उन लोगों से स्पष्ट रूप से भिन्न दिखता है जो इस संसार का भाग हैं। (रोमियों १२:१, २) पौलुस ने कहा: “आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।” (गलतियों ५:२२, २३) परमेश्वर की आत्मा मसीहियों को बातों की एक गहरी समझ भी देती है। पौलुस ने कहा: “परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा।” (१ कुरिन्थियों २:११) सामान्यतः, “परमेश्वर की बातें” छुड़ौती बलिदान, यीशु मसीह के अधीन परमेश्वर का राज्य, अनन्त जीवन की आशा, और इस दुष्ट संसार का सन्निकट दूरीकरण जैसी सच्चाइयों को सम्मिलित करती हैं। परमेश्वर की आत्मा की मदद से मसीही लोग इन बातों को सत्य के रूप में जानते और स्वीकार करते हैं, और यह जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को संसार के लोगों के दृष्टिकोण से भिन्न बना देता है। वे अभी यहोवा की सेवा करने में प्राप्त अपने आनन्द से और अनन्तकाल तक उसकी सेवा करने की प्रत्याशा से संतुष्ट हैं।
१७. संसार की आत्मा का विरोध करने में किसने सर्वोत्तम उदाहरण रखा, और कैसे?
१७ इस संसार की आत्मा का विरोध करनेवालों में यीशु सर्वोत्तम आदर्श था। यीशु के बपतिस्मा के थोड़े ही समय बाद, शैतान ने तीन प्रलोभन प्रस्तुत करने के द्वारा उसे यहोवा की सेवा करने से दूर करने की कोशिश की। (मत्ती ४:१-११) अंतिम प्रलोभन में यह संभावना सम्मिलित थी कि यीशु शैतान को उपासना देने के मात्र एक कृत्य के दाम पर पूरे संसार का शासकत्व प्राप्त कर सकता था। यीशु यह तर्क कर सकता था: ‘मैं उपासना का एक कृत्य कर दूँगा और फिर संसार का शासकत्व प्राप्त करने के बाद, मैं पश्चाताप करके यहोवा की उपासना को लौट आऊँगा। संसार के शासक के रूप में, मैं मानवजाति को लाभ प्रदान करने की बेहतर स्थिति में होऊँगा जितना कि मैं अब नासरत के एक बढ़ई के रूप में नहीं कर सकता।’ यीशु ने उस रीति से तर्क नहीं किया। वह उस समय तक प्रतीक्षा करने को तैयार था जब तक कि यहोवा उसे संसार का शासकत्व न दे। (भजन २:८) उस अवसर पर, और अपने जीवन के सभी अन्य अवसरों पर उसने शैतान की हवा के विषैले प्रभाव का विरोध किया। अतः, उसने आध्यात्मिक रूप से प्रदूषित इस संसार पर विजय प्राप्त की।—यूहन्ना १६:३३.
१८. हमारे द्वारा संसार की आत्मा का विरोध करना किस प्रकार परमेश्वर को स्तुति लाता है?
१८ प्रेरित पतरस ने कहा कि हमें यीशु के पदचिह्नों पर ध्यानपूर्वक चलना चाहिए। (१ पतरस २:२१) हमारे लिए उससे बेहतर आदर्श क्या होगा? इन अन्तिम दिनों में, संसार की आत्मा से प्रभावित होकर मनुष्य भ्रष्टता में अधिकाधिक नीचे धँसते जा रहे हैं। यह कितनी अच्छी बात है कि एक ऐसे संसार के मध्य यहोवा की उपासना का उत्थित स्थान शुद्ध और स्वच्छ खड़ा है! (मीका ४:१, २) निश्चित ही, परमेश्वर की आत्मा की शक्ति इसमें देखी जा सकती है कि लाखों लोग परमेश्वर के उपासना स्थान पर धारा की नाईं आ रहे हैं, इस संसार की सर्वव्यापी आत्मा का विरोध कर रहे हैं और यहोवा को महिमा और स्तुति दे रहे हैं! (१ पतरस २:११, १२) ऐसा हो कि हम सभी उस उत्थित स्थान पर रहने के लिए दृढ़-संकल्प रहें जब तक कि यहोवा का अभिषिक्त राजा इस दुष्ट संसार को हटा न दे और शैतान अर्थात् इब्लीस तथा उसके पिशाचों को अथाह कुंड में न डाल दे। (प्रकाशितवाक्य १९:१९-२०:३) तब, इस संसार की आत्मा फिर विद्यमान न होगी। वह क्या ही धन्य समय होगा!
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ संसार की आत्मा क्या है?
▫ इस संसार की आत्मा का व्यक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
▫ संसार की आत्मा के कुछ प्रकटन क्या हैं, और हम इससे दूर कैसे रह सकते हैं?
▫ हम कैसे दिखाते हैं कि हमारे पास परमेश्वर की आत्मा है?
▫ जो लोग संसार की आत्मा का विरोध करते हैं उन्हें क्या आशिषें मिलती हैं?
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
संसार की आत्मा शैतान से है
संसार की आत्मा से दूर रहने के लिए यहोवा की उपासना के उत्थित स्थान की ओर भागिए