अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर चलना
हिल्डा पैजॆट द्वारा बताया गया
“मेरा जीवन परमप्रधान की सेवा को समर्पित है,” प्रॆस रिपोर्ट में लिखा था, “और मैं दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकती।” १९४१ में ब्रिटिश श्रम और राष्ट्रीय सेवा मंत्रालय के अधिकारियों को मेरे कथन के इन शब्दों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अस्तपाल-कार्य करने के उनके निर्देशन का इनकार करने के मेरे कारण को प्रस्तुत किया। उसके कुछ ही समय बाद मेरे इनकार के लिए मैं दोषी ठहरायी गयी और मुझे तीन महीने क़ैद की सज़ा हो गयी।
मेरी यह दुर्दशा कैसे हुई? जी नहीं, यह कोई युवा सनक या विद्रोही व्यवहार नहीं था। इसके बजाय, इसके कारण उस समय के हैं जब मैं एक बच्ची थी।
राज्य के लिए डैडी का जोश
मेरा जन्म जून ५, १९१४ को इंग्लैंड के उत्तर में, लीड्स के नज़दीक, होर्सफर्थ में हुआ। मेरे माता-पिता, ऎटकॆनसन और पैटी पैजॆट, प्रिमिटिव मॆथोडिस्ट चेपल में सण्डे-स्कूल के शिक्षक और गायक-मण्डल सदस्य थे जहाँ डैडी ऑर्गन बजाते थे। जब मैं एक शिशु थी, तब हमारा घर एक बात को छोड़ सुखी था। संसार की परिस्थितियाँ डैडी को परेशान करती थीं। वो युद्ध और हिंसा से घृणा करते थे और बाइबल की आज्ञा पर विश्वास करते थे: “तू खून न करना।”—निर्गमन २०:१३.
१९१५ में, सरकार ने सभी युवा पुरुषों को स्वेच्छापूर्वक सेना में भर्ती होने और इस प्रकार अनिवार्य सैनिक भर्ती से बचने का आग्रह किया। कुछ आशंका से डैडी सैनिक के रूप में नाम लिखाने की अपनी बारी के इन्तज़ार में पूरा दिन बारिश में खड़े रहे। उसके अगले ही दिन, उनका पूरा जीवन बदल गया!
एक बड़े घर में एक नलसाज़ के रूप में कार्य करते वक़्त, उन्होंने संसार की घटनाओं के बारे में अन्य सहकर्मियों के साथ बातें कीं। माली ने उनके हाथ में एक छोटा ट्रैक्ट, प्रभु की मणियों को इकट्ठा करना (अंग्रेज़ी) थमाया। डैडी उसे घर ले गए, उसे पढ़ा, और फिर से पढ़ा। “यदि यह सत्य है,” उन्होंने कहा, “तब बाक़ी सब ग़लत है।” अगले दिन, उन्होंने ज़्यादा जानकारी का निवेदन किया, और तीन सप्ताह तक रात रातभर, उन्होंने बाइबल का अध्ययन किया। वो जान गए थे कि उन्हें सच्चाई मिल गयी है! रविवार, जनवरी २, १९१६, उनकी डायरी कहती है: “सुबह चेपल गया, रात को आइ.बी.एस.ए. [अंतर्राष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थी संघ, जैसे यहोवा के साक्षी इंग्लैंड में तब जाने जाते थे] गया—इब्रानियों ६:९-२० का अध्ययन—भाइयों को मेरी पहली भेंट।”
जल्द ही विरोध शुरू हुआ। हमारे रिश्तेदार और चेपल के दोस्तों ने सोचा कि डैडी पागल थे। परन्तु वो अपना निर्णय कर चुके थे। सभाएँ और अध्ययन उनके जीवन की मुख्य बातें थीं, और मार्च तक उन्होंने यहोवा के प्रति अपने समर्पण को पानी में बपतिस्मे के द्वारा चिन्हित कर दिया था। कुछ सप्ताहों तक डैडी के सभाओं में अकेले जाने के बाद, मम्मी ने सभाओं में जाने का विरोध करना रोक दिया। उन्होंने मुझे मेरी बच्चा-गाड़ी में डाला और लीड्स तक आठ किलोमीटर चल कर गयीं, और सभा के अन्त होने पर पहुँचीं। आप डैडी की ख़ुशी का अंदाज़ा लगा सकते हैं। तब से, हमारा परिवार यहोवा की सेवा में संयुक्त था।
डैडी की स्थिति बहुत कठिन थी—सेना में एक स्वयंसेवक और फिर कुछ सप्ताहों में, एक सैद्धान्तिक विरोधकर्ता। जब उन्हें बुलाया गया, तब उन्होंने बन्दूक उठाने से इनकार किया, और जुलाई १९१६ तक उन्होंने पाँच सेना-न्यायालयों में से पहली सेना-न्यायालय की जाँच का सामना किया और उन्हें ९० दिन की क़ैद हुई। पहली सज़ा काटने के बाद, डैडी को दो सप्ताह की छुट्टी मिली, जिसके बाद एक और सेना-न्यायालय की जाँच हुई और ९० दिन की क़ैद फिर से हो गयी। उनकी क़ैद की दूसरी मीआद के बाद, उन्हें रॉयल आर्मी मेडिकल कोर को स्थानांतरित किया गया, और फरवरी १२, १९१७ को, वो रूअन, फ्रांस के लिए सैनिक पोत से रवाना हुए। उनकी डायरी बताती है कि वहाँ वो अपनी स्थिति से हर रोज़ और खीजते गए। उन्हें एहसास हुआ कि वो सैनिकों की मरहम-पट्ठी भर कर रहे थे ताकि वे वापस जाकर लड़ाई करें।
फिर से उन्होंने सहयोग देने से इनकार किया। इस बार सेना-न्यायालय ने उन्हें रूअन की ब्रिटिश सैन्य क़ैदखाने में पाँच साल की सज़ा दी। जब डैडी सैद्धान्तिक विरोधकर्ता के तौर पर एक असैनिक क़ैदखाने में स्थानांतरित किए जाने के लिए कहते रहे, तब उन्हें सज़ा के तौर पर तीन महीने रोटी और पानी पर रखा गया, जिसके बाद उनका वज़न बढ़ने तक सामान्य क़ैद आहार दिया गया; फिर यह पूरी प्रक्रिया दोहरायी जाती थी। दिन में उनके हाथों को उनके पीछे करके और रात में तथा भोजन के वक़्त उनके हाथों को उनके आगे करके हथकड़ी लगायी जाती थी। उनके पूरे जीवन में, उनकी कलाई में वे निशान रह गये थे जहाँ इतनी छोटी हथकड़ियाँ कसकर लगायी गयी थीं कि वे उनके मांस में घुस गयी थीं और जिसकी वजह से मवादवाले घाव हो गए। उनकी कमर से बान्धकर पैरों की बेड़ियाँ भी लगायी गयी थीं।
सेना अधिकारियों ने उनके दृढ़संकल्प को तोड़ने के लिए उनके बस में जो कुछ था वह किया लेकिन सब व्यर्थ। उनकी बाइबल और पुस्तकें उनसे ले ली गयीं। उन्हें घर से आनेवाले कोई ख़त नहीं दिए जाते थे, ना ही वो कोई ख़त भेज सकते थे। दो साल बाद उन्होंने भूख-हड़ताल करने के द्वारा अपनी निष्कपटता प्रदर्शित करने का निर्णय किया। सात दिनों तक उन्होंने न खाने ना ही पीने के द्वारा अपना दृढ़संकल्प बनाए रखा, जिसके परिणामस्वरूप वो गंभीर रूप से बीमार हो गए और उन्हें क़ैदखाने के अस्पताल को स्थानांतरित किया गया। उन्होंने अपनी बात साबित की, हालाँकि उन्होंने इसके परिणाम में अपना जीवन लगभग खो दिया। बाद के सालों में उन्होंने स्वीकार किया कि अपने जीवन को इस तरह से संकट में डालने में उन्होंने ग़लती की, और वो ऐसा मार्ग फिर कभी नहीं अपनाएँगे।
डैडी रूअन की क़ैद में ही थे जब युद्ध नवम्बर १९१८ में समाप्त हुआ, लेकिन अगले साल की शुरूआत में, उन्हें इंग्लैंड के एक असैनिक क़ैदखाने में ले जाया गया। उनकी ख़ुशी की कल्पना कीजिए जब उन्हें एकत्रित हुए मम्मी के सारे ख़त और पार्सल, साथ ही उनकी अनमोल बाइबल और पुस्तके मिलीं! उन्हें विनचॆस्टर क़ैदखाने में ले जाया गया, जहाँ उनकी एक जवान भाई से मुलाक़ात हुई जिसके युद्ध के दौरान के अनुभव भी उनके समान थे। उसका नाम फ्रैंक प्लैट था, जिसने बाद में कई साल तक लंदन बेथेल में सेवा की। उन्होंने अगले दिन मिलने का प्रबन्ध किया, लेकिन तब तक फ्रैंक को कहीं और स्थानांतरित किया गया था।
अप्रैल १२, १९१९ को, मम्मी को एक तार मिला: “हल्लिलूयाह! घर आ रहा हूँ—लंदन बेथेल फ़ोन करूँगा।” तीन साल के परीक्षण, परीक्षाएँ, और जुदाई के बाद क्या ही आनन्द मनाने का समय! डैडी का पहला विचार था फ़ोन करके लंदन बेथेल के भाइयों से मिलना। ३४ क्रेवन टॆरॆस में उनका प्रेममय स्वागत हुआ। नहाने और दाढ़ी बनाने और एक माँगा हुआ सूट तथा हैट पहनने के बाद, डैडी घर वापस आए। क्या आप हमारे पुनर्मिलन की कल्पना कर सकते हैं? मैं तब लगभग पाँच साल की थी, और मुझे वो याद नहीं थे।
अपनी स्वतंत्रता पाने के बाद जिस सबसे पहली सभा में डैडी उपस्थित हुए वह स्मारकोत्सव थी। हॉल में जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने पर, जिस भाई से वो सबसे पहले मिले वह फ्रैंक प्लैट था, जिसे लीड्स के एक सैन्य अस्पताल में ले जाया गया था। अपने अनुभव बाँटने में उन्होंने क्या ही हर्ष पाया! तब से लेकर अपनी रिहाई तक, फ्रैंक ने हमारे घर को अपना दूसरा घर बनाया।
मम्मी की विश्वासी सेवा
उस समय के दौरान जब डैडी बाहर थे, मम्मी ने सरकार से मिलने वाले कम भत्ते को बढ़ाने के लिए कपड़े धोने का काम किया। भाई हमारे प्रति बहुत कृपालु थे। नियमित रूप से कुछ सप्ताह बाद कलीसिया का एक प्राचीन उन्हें एक छोटा लिफ़ाफ़ा देता जिसमें एक अनाम तोहफ़ा होता। मम्मी ने हमेशा कहा कि यह भाइयों का प्रेम था जो उन्हें यहोवा के निकट ले आया और उन कष्टकर समयों में धीरज धरने में मदद की। वो डैडी की अनुपस्थिति के दौरान वफ़ादारी से कलीसिया सभाओं में उपस्थित हुईं। उनकी सबसे कठोर परीक्षा तब हुई थी जब, सालभर से भी ज़्यादा समय तक, उन्हें कुछ ख़बर नहीं थी कि डैडी ज़िन्दा थे या मर गए थे। एक अतिरिक्त बोझ हम पर पड़ा जब १९१८ में दोनों, मम्मी और मुझे, स्पैनिश फ्लू हो गया। हमारे चारों तरफ़ लोग मर रहे थे। जो पड़ोसी पड़ोसियों की मदद करने के लिए जाते थे, उन्हें बीमारी लग जाती थी और वे मर जाते थे। निःसंदेह उस समय खाद्य पदार्थ की कमी ने लोगों में संक्रमण की प्रतिरोध-शक्ति को कम करने में योग दिया।
प्रेरित पतरस के शब्द हमारे परिवार के लिए कितने सही साबित हुए: “तुम्हारे थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद [परमेश्वर] तुम्हें . . . स्थिर और बलवन्त करेगा”! (१ पतरस ५:१०) मेरे माता-पिता ने जो कष्ट सहा, उसके कारण उनको यहोवा में एक अटल विश्वास विकसित करने में मदद मिली, एक पूर्ण आश्वासन कि वह हमारी परवाह करता है और कि कोई भी चीज़ हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती। मुझे विशेषकर विश्वास में इस प्रकार का पालन-पोषण पाने की आशीष मिली है।—रोमियों ८:३८, ३९; १ पतरस ५:७.
युवावस्था में सेवा
डैडी की रिहाई के बाद, राज्य सेवा हमारे जीवन का केन्द्र बन गयी। बीमारी के अलावा, कभी कोई सभा चूकना मुझे याद नहीं। उनके घर लौटने के बाद जल्द ही, डैडी ने एक अधिवेशन में उपस्थित होने के लिए अपना प्लेट कैमरा और मम्मी का सोने का कंगन बेच दिया। हालाँकि हमारी औक़ात नहीं थी कि छुट्टियों पर जाएँ, हम ये समूहन, जिनमें लंदन के समूहन शामिल हैं, कभी नहीं चूके।
युद्ध के बाद के पहले दो-तीन साल स्फूर्तिदायक समय था। डैडी और मम्मी ने साहचर्य और संगति करने के सभी मौक़ों का पूरा-पूरा फ़ायदा उठाया। मुझे याद है कि कैसे हम दूसरे भाई-बहनों को भेंट करने जाते थे, और मैं, छोटी लड़की के तौर पर, बैठकर रंग भरती और चित्र बनाती थी जब मेरे अग्रज सच्चाई की नयी समझ के बारे में साथ मिलकर घंटों बात करते थे। एक साथ बात करना, ऑर्गन के साथ गीत सत्र रखना, सुखद साहचर्य का आनन्द उठाना उन्हें बहुत ख़ुश और ताज़ा करता था।
मेरे माता-पिता मेरे प्रशिक्षण में बहुत सख़्त थे। स्कूल में पाँच साल की उम्र में भी, मैं अलग-सी दिखती थी। कक्षा जब कैटिकिज़्म सीखती थी तब मैं पढ़ने के लिए अपना “नया नियम” ले जाती थी। बाद में पूरे स्कूल के सामने “सैद्धान्तिक विरोधकर्ता” के रूप में मेरी परेड करायी गयी क्योंकि मैं स्मारक दिन उत्सवों में भाग नहीं लेती।a मुझे अपने पालन-पोषण का पछतावा नहीं है। वास्तव में, यह एक सुरक्षा थी और इसने ‘सकरे मार्ग’ पर रहना आसान बनाया। जहाँ कहीं मेरे माता-पिता जाते थे, चाहे वह सभा हो या सेवा, मैं वहाँ होती।—मत्ती ७:१३, १४.
मुझे विशेषकर वह रविवार की सुबह याद है जब मैंने सबसे पहले ख़ुद-ब-ख़ुद प्रचार कार्य शुरू किया। मैं केवल १२ साल की थी। जब मैं किशोरी थी, तब मुझे रविवार की एक सुबह को यह घोषणा करना याद है कि मैं घर पर ही रहनेवाली हूँ। किसी ने भी मेरी आलोचना नहीं की या मुझसे प्रचार-कार्य में जाने की जबरदस्ती नहीं की, सो मैं बग़ीचे में बैठकर अपनी बाइबल का अध्ययन कर रही थी और पूरी तरह से नाख़ुश महसूस कर रही थी। इसके एक या दो सप्ताह बाद, मैंने डैडी से कहा: “मैं सोचती हूँ कि आज मैं आपके साथ आऊँगी!” तब से मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
१९३१ क्या ही अद्भुत साल था! हमने न सिर्फ़ अपना नया नाम, यहोवा के साक्षी, पाया बल्कि लंदन के ऎलॆक्ज़ान्ड्रा पैलॆस में हुए एक राष्ट्रीय अधिवेशन में मैंने बपतिस्मा लिया। मैं वह दिन कभी नहीं भूलूँगी। हम लम्बे, काले वस्त्र पहने हुए थे, और मेरा वस्त्र पहले से भीगा था जिसे एक अन्य उम्मीदवार पहले ही इस्तेमाल कर चुका था!
बचपन से मेरी अभिलाषा एक कॉलपोटर, जैसे उस समय पूर्ण-समय प्रचारक कहलाए जाते थे, बनने की थी। जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मैंने महसूस किया कि यहोवा की सेवा में मुझे ज़्यादा करना चाहिए। सो मार्च १९३३ में, १८ साल की उम्र में, मैं पूर्ण-समय सेवकों की श्रेणी में शामिल हो गयी।
कुछ बड़े शहरों में “पायनियर सप्ताह” हमारे लिए ख़ास हर्ष थे, जब लगभग एक दर्जन पूर्ण-समय सेवक एक साथ आते, स्थानीय भाइयों के साथ रहते, और टीम के रूप में कार्य करते। हमने धार्मिक अगुओं और अन्य प्रमुख व्यक्तियों तक पुस्तिकाएँ पहुँचायीं। उनके पास जाने के लिए साहस की ज़रूरत थी। ज़्यादातर हमें तिरस्कार का ही सामना करना पड़ा, और हममें से अनेकों के मुँह पर दरवाज़ा बन्द किया जाता था। ऐसा नहीं कि इसने हमें चिन्ता में डाला, क्योंकि हमारा जोश इतना ज़्यादा था कि हम मसीह के नाम के लिए निन्दा किए जाने में आनन्द मनाते थे।—मत्ती ५:११, १२.
लीड्स में हमने एक बच्चा-गाड़ी, एक ट्राईसाइकिल, और डैडी की मोटरसाइकिल तथा पार्श्वगाड़ी और बाद में उनकी कार को बड़े लाउडस्पीकरों वाले फ़ोनोग्राफ़ ले जाने के लिए रूपान्तरित किया। दो भाई मशीन के साथ सड़क पर जाते, लोगों को सचेत करने और उन्हें उनके दरवाज़ों तक लाने के लिए एक सांगीतिक रिकार्ड बजाते, फिर इसके बाद भाई रदरफर्ड द्वारा रिकार्ड किया गया पाँच-मिनट का भाषण लगाते। इसके बाद वे अगली सड़क पर चले जाते और हम प्रकाशक, पीछे-पीछे चलते हुए बाइबल साहित्य पेश करते।
सालों तक, सभा के बाद हर रविवार शाम को हम नगर-भवन चौराहे को जाते जहाँ जन वक्ताओं के लिए एक स्थान है और भाई रदरफर्ड के घंटे-भर के भाषणों में से एक को सुनने, और पर्चियाँ देने तथा दिलचस्पी दिखानेवाले किसी भी व्यक्ति से संपर्क करने के द्वारा समर्थन देते। हम वहाँ प्रसिद्ध हो गए। पुलिस भी हमारा आदर करती थी। एक शाम हम हमेशा की तरह इकट्ठे हुए जब दूर, हमने ढोल और बैंड की आवाज़ सुनी। जल्द ही लगभग सौ फ़ासिस्ट सड़क से परेड करते हुए आए। वे चारों तरफ़ चलते हुए हमारे पीछे आकर अपने झण्डे ऊँचा उठाए हुए रुक गए। बैंड रुक गया, और सन्नाटा छा गया जैसे ही भाई रदरफर्ड की आवाज़ गूँजी: “यदि वे चाहें तो उन्हें अपने झण्डों को सलामी देने दो और मनुष्यों का जयजयकार करने दो। हम केवल यहोवा हमारे परमेश्वर की ही उपासना और जयजयकार करेंगे!” हम सोच में थे कि आगे क्या होगा! इसके सिवाय कुछ नहीं हुआ कि उन्हें एक अच्छी गवाही मिली, और पुलिस ने उन्हें चुप कराया ताकि हम जन भाषण के शेष भाग को सुन सकें।
अब तक फ़ोनोग्राफ़ एक शानदार गवाही देने में हमारी मदद के लिए इस्तेमाल होने लगा। दरवाज़े पर, लोगों को रिकार्ड किए हुए बाइबल उपदेश को पूरे पाँच मिनट सुनने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते हम ध्यानपूर्वक अपनी आँखें रिकार्ड पर लगाए रखते। गृहस्वामी अकसर हमें अन्दर बुलाते और इससे ख़ुश होते कि हम वापस आकर और रिकार्ड बजाएँ।
विरोध और हिंसा की शुरूआत की वजह से वर्ष १९३९ बहुत व्यस्त और कठिन था। हमारे एक अधिवेशन से पहले, भाइयों को सड़क पर बड़ी उत्तेजित भीड़ द्वारा परेशान किए जाने और नारेबाज़ी किए जाने का अनुभव हुआ। सो सम्मेलन के दौरान, उन्होंने कारों में भाइयों की एक ख़ास टुकड़ी की योजना बनायी ताकि वे अशान्त क्षेत्रों में प्रचार करें जबकि बहनें और अन्य भाई वैसी जगहों में गए जो सुरक्षित थे। एक सड़क पर एक समूह के साथ कार्य करते वक़्त, मैं पीछे के घरों में भेंट करने के लिए एक गली से गयी। जब मैं एक दरवाज़े पर थी, तो मैंने शोरगुल शुरू होते हुए सुना—सड़क से चिल्लाने और रोने की आवाज़ आ रही थी। मैंने दरवाज़े पर खड़े व्यक्ति से बात करना जारी रखा, और वार्तालाप को तब तक बढ़ाती गयी जब तक कि स्थिति को शान्त होते नहीं सुना। फिर मैं गली से सड़क पर निकली और यह पाया कि अन्य भाई-बहन डर गए थे जब वे मुझे ढूँढ नहीं पाए! हालाँकि, बाद में उसी दिन, उपद्रवी लोगों ने हमारी सभा को भंग करने की कोशिश की, लेकिन भाई उन्हें बाहर तक पहुँचा आए।
दूसरा विश्व युद्ध छिड़ता है
अब तक अनिवार्य सैनिक भर्ती लागू हो गयी थी, और अनेक युवा भाइयों को ३ से १२ महीनों के लिए क़ैद किया गया। डैडी को तब क़ैदखाने में भाइयों से भेंट करनेवाले के रूप में एक अतिरिक्त विशेषाधिकार प्राप्त हुआ। हर रविवार को वो स्थानीय जेल में प्रहरीदुर्ग अध्ययन संचालित करते थे। बुधवार शाम को वो भाइयों को उनकी कोठरी में भेंट करते थे। पहले विश्व युद्ध के दौरान ख़ुद इतनी लम्बी और कठिन क़ैद का अनुभव करने की वजह से, वो समान परीक्षाओं से गुज़रनेवाले भाइयों की सेवा करने के लिए विशेषकर ख़ुश थे। ऐसा उन्होंने २० साल तक, अर्थात् १९५९ में अपनी मृत्यु तक किया।
१९४१ तक, तटस्थता की हमारी स्थिति पर अनेक लोगों द्वारा व्यक्त की गयी कटुता और शत्रुता के हम आदी होते जा रहे थे। पत्रिकाओं के साथ सड़कों पर खड़े होकर इसका सामना करना आसान नहीं था। साथ ही साथ, हम अपने क्षेत्र में आश्रय दिए गए शरणार्थियों की मदद करने में आनन्दित होते थे। लैटविया, पोलैंड, एस्टोनिया, जर्मनी के लोग—जब वे अपनी भाषा में प्रहरीदुर्ग या कॉन्सोलेशन (अब सजग होइए!) को देखते, तब उनकी आँखों में आयी चमक को देखना क्या ही हर्ष था!
उसके बाद तटस्थता की जो स्थिति मैं ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ली थी, उसकी परीक्षा हुई। हर २४ घंटों में से १९ घंटों के लिए अपनी कोठरी में बन्द रहने की वजह से मैंने क़ैदखाने के जीवन को कठिन पाया। पहले तीन दिन सबसे कठिन थे, क्योंकि मैं अकेली थी। चौथे दिन, मुझे गवर्नर के दफ़्तर में बुलाया गया जहाँ मैंने दो अन्य लड़कियों को खड़ा देखा। उनमें से एक लड़की ने मुझसे फुसफुसा कर कहा: “तुम किस लिए अन्दर हो?” मैंने कहा: “यदि तुम जानोगी तो हैरान हो जाओगी।” उसने एक तनावपूर्ण फुसफुसाहट में पूछा: “क्या तुम यहोवा की एक साक्षी हो?” दूसरी लड़की ने उसे सुन लिया और हम दोनों से पूछा: “क्या तुम दोनों यहोवा की साक्षी हो?” और हम तीनों ने एक दूसरे को बाँहों में भर लिया। अब हम अकेली नहीं थीं!
आनन्दप्रद पूर्ण-समय सेवा
क़ैद से छूटने पर, मैंने अपनी पूर्ण-समय सेवा को जारी रखा, और १६ वर्ष की एक युवा लड़की, जिसने अभी-अभी स्कूल छोड़ा था, मेरे साथ हो ली। हम यॉर्कशायर डेल्स के किनारे पर एक खूबसूरत नगर, इल्कली, को गए। पूरे छः महीनों तक, हमने अपनी सभाओं के लिए एक उपयुक्त स्थान ढूँढने की बहुत कोशिश की। अंततः हमने एक छोटे गराज को किराए पर लिया, जिसे हमने एक राज्यगृह में रूपान्तरित किया। डैडी हमारी मदद को आए और प्रकाश-व्यवस्था और तापन का प्रबन्ध किया। उन्होंने हमारे लिए इमारत को सजाया भी। सालों तक पास की कलीसिया ने हमारी सहायता की, उन्होंने हर सप्ताह जन भाषण देने के लिए भाइयों को नियुक्त किया। यहोवा की आशीष से हम फले-फूले और बढ़े, और अंततः एक कलीसिया स्थापित की गयी।
जनवरी १९५९ में, डैडी एकाएक बीमार हो गए। मुझे घर बुलाया गया, और वो अप्रैल में गुज़र गए। उसके बाद के साल कठिन थे। मम्मी का स्वास्थ्य गिरने लगा और उसके साथ उनकी याददाश्त भी, जिसने मेरे लिए इसे एक संघर्ष बना दिया। लेकिन यहोवा की आत्मा मेरे साथ रही, और १९६३ में उनकी मृत्यु तक मैं उनकी देखरेख करने में समर्थ हुई।
सालों के दौरान मुझे यहोवा से इतनी सारी आशीषें मिली हैं। इतनी कि गिन भी नहीं सकती। मैंने अपनी गृह-कलीसिया को बढ़ते और चार बार विभाजित होते, कुछ प्रकाशकों और पायनियरों को मिशनरियों के तौर पर बोलिविया, लाओस, और यूगाण्डा जैसे दूर देशों को भेजे जाते हुए देखा है। परिस्थितियाँ इस तरीक़े से विकसित हुईं कि मैं विवाह करके घर नहीं बसा पायी। इससे मैं दुःखी नहीं हुई हूँ; मैं अति व्यस्त रही थी। हालाँकि मेरा अपना कोई शारीरिक रिश्तेदार नहीं है, प्रभु में मेरे अनेक बच्चे और नाती-पोते हैं, यहाँ तक कि सौगुना।—मरकुस १०:२९, ३०.
मैं अकसर मसीही साहचर्य का आनन्द लेने के लिए युवा पायनियरों और अन्य युवाओं को अपने घर पर आमंत्रित करती हूँ। हम प्रहरीदुर्ग अध्ययन के लिए एक साथ तैयारी करते हैं। साथ ही हम अनुभव बताते और राज्य गीत गाते हैं, उसी तरह जैसे मेरे माता-पिता किया करते थे। युवा लोगों के एक प्रसन्न समूह से घिरी, मैं एक युवा और ख़ुश दृष्टिकोण रखती हूँ। पायनियर सेवा से ज़्यादा मेरे लिए कोई बेहतर जीवन नहीं है। मैं यहोवा के प्रति कृतज्ञ हूँ कि मुझे अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर चलने का विशेषाधिकार रहा है। मेरी दुआ है कि मैं सदा-सर्वदा के लिए यहोवा की सेवा जारी रख सकूँ।
[फुटनोट]
a १९१८, और बाद में १९४५ में युद्ध के समाप्त होने के स्मारक में।
[पेज 23 पर तसवीरें]
हिल्डा पैजॆट अपने माता-पिता, ऎटकॆनसन और पैटी के साथ
[पेज 23 पर तसवीरें]
वह ट्रैक्ट जिसने सच्चाई में डैडी की दिलचस्पी को जगाया