अच्छे-बुरे समयों के दौरान परमेश्वर की सेवा में संयुक्त
मीशल और बाबॆट मूलर द्वारा बताया गया
“मेरे पास तुम्हारे लिए बुरी ख़बर है,” डॉक्टर ने कहा। “तुम अफ्रीका के अपने मिशनरी जीवन के बारे में भूल सकती हो।” मेरी पत्नी, बाबॆट की ओर देखते हुए उसने कहा, “तुम्हें स्तन कैंसर है।”
हम ऐसे दंग रह गए कि बोलती बन्द हो गयी। कई बातें हमारे मन में कौंध गयीं। हमने सोचा था कि डॉक्टर से हमारी यह भेंट केवल एक अंतिम परीक्षण होगी। बॆनिन, पश्चिमी अफ्रीका के लिए हमारी वापसी-टिकटें ख़रीदी जा चुकी थीं। हमने आशा की थी कि सप्ताह के भीतर ही हम वहाँ वापस पहुँच जाएँगे। हमारे विवाह के २३ सालों के दौरान, हमने अच्छे-बुरे समयों का अनुभव किया है। उलझन में पड़े और डरे हुए, हमने अब कैंसर के विरुद्ध लड़ने के लिए अपने आप को तैयार किया।
आइए हम शुरू से आरम्भ करें। मीशल का जन्म सितम्बर १९४७ को, और बाबॆट का जन्म अगस्त १९४५ को हुआ था। हम फ्रांस में बड़े हुए और हमारा विवाह १९६७ में हुआ। हम पैरिस में रहे। वर्ष १९६८ के आरम्भ में एक सुबह, बाबॆट को नौकरी के लिए देर हो गयी। दरवाज़े पर एक स्त्री आई और उसे एक धार्मिक ब्रोशर प्रस्तुत किया; उसने उसे स्वीकार कर लिया। फिर उस स्त्री ने कहा: “क्या मैं आपसे और आपके पति से बात करने के लिए अपने पति के साथ वापस आ सकती हूँ?”
बाबॆट अपनी नौकरी के बारे में सोच रही थी। वह चाहती थी कि स्त्री चली जाए, सो उसने कहा, “ठीक है, ठीक है।”
मीशल वर्णन करता है: “मुझे धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन ब्रोशर ने मेरा ध्यान आर्कषित किया और मैंने उसे पढ़ा। कुछ दिनों के बाद, वह स्त्री, जॉसलन लॆमवान अपने पति, क्लोड के साथ लौटी। बाइबल के अपने प्रयोग में वह बहुत कुशल था। उसके पास मेरे सभी सवालों के जवाब थे। मैं प्रभावित हो गया।
“बाबॆट एक अच्छी कैथोलिक थी लेकिन उसके पास बाइबल नहीं थी, जो कैथोलिकों के लिए असामान्य बात नहीं थी। वह परमेश्वर के वचन को देखने और पढ़ने के लिए काफ़ी उत्तेजित थी। हमारे अध्ययन से हमने सीखा कि हमें सिखाए गए अनेक धार्मिक विचार झूठे थे। जो हम सीख रहे थे उसके बारे में हमने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से बात करनी शुरू की। जनवरी १९६९ में हम यहोवा के बपतिस्मा-प्राप्त साक्षी बन गए। उसके बाद जल्द ही हमारे नौ रिश्तेदारों और दोस्तों ने बपतिस्मा प्राप्त किया।”
वहाँ सेवा करना जहाँ प्रचारकों की ज़रूरत थी
हमारे बपतिस्मे के बाद जल्द ही हमने सोचा: ‘हमें बच्चे नहीं हैं। तो क्यों न पूर्ण-समय की सेवकाई अपनाएँ?’ सो १९७० में हमने अपनी-अपनी नौकरियाँ छोड़ीं, नियमित पायनरों के तौर पर नाम लिखवाए, और मध्य-फ्रांस में, नेवर्स् के पास, मानयी-लोर्म के छोटे-से क़स्बे में स्थानांतरित हुए।
वह एक कठिन नियुक्ति थी। ऐसे लोगों को ढूँढना कठिन था जो बाइबल का अध्ययन करना चाहते थे। हमें लौकिक नौकरी नहीं मिल सकी, सो हमारे पास कम पैसे थे। कभी-कभी हमारे पास खाने के लिए केवल आलू थे। जाड़े के दौरान तापमान शून्य सॆल्सियस से २२ डिग्री नीचे गिर जाता था। जो समय हमने वहाँ गुज़ारा उसे हम ने सात दुबली गायों का काल कहा।—उत्पत्ति ४१:३.
लेकिन यहोवा ने हमें संभाला। एक दिन जब हमारा भोजन तक़रीबन ख़त्म हो गया था, तब डाकिए ने बाबॆट की बहन की ओर से पनीर का एक बड़ा डिब्बा पहुँचाया। एक और दिन प्रचार कार्य से हम घर लौटे और हमने कुछ दोस्तों को पाया जो हमें देखने के लिए गाड़ी से ५०० किलोमीटर तय करके आए थे। उनके यह सुनने पर कि स्थिति कितनी कठिन थी, इन भाइयों ने अपनी दोनों कारों को हमारे लिए भोजन से भर दिया था।
डेढ़ साल के बाद, संस्था ने हमें ख़ास पायनियरों के तौर पर नियुक्त किया। अगले चार सालों के दौरान, हमने नेवर्स्, फिर ट्रावॉ, और अंततः मोनटीन्यी ले- मॆट्स् में सेवा की। १९७६ में, मीशल को दक्षिण-पश्चिमी फ्रांस में सर्किट ओवरसियर के तौर पर सेवा करने के लिए नियुक्त किया गया।
दो साल बाद, सर्किट ओवरसियरों के एक स्कूल के दौरान, हमें वॉच टावर सोसाइटी से एक ख़त मिला जिसमें हमारे लिए मिशनरियों के तौर पर विदेश जाने का निमंत्रण था; ख़त में लिखा था कि हम चाड और बुरकिना फासो (तब अपर वॉल्टा) के बीच चुनाव कर सकते हैं। हमने चाड चुना। जल्द ही हमें एक और ख़त मिला, जिसमें हमें तहीती शाखा के अधीन काम करने के लिए नियुक्त किया गया था। हमने अफ्रीका माँगा था, जो एक विशाल महाद्वीप है, लेकिन जल्द ही हमने अपने आपको एक छोटे-से द्वीप में पाया।
दक्षिण प्रशान्त में सेवा करना
तहीती दक्षिण प्रशान्त में एक खूबसूरत उष्णकटिबन्धी द्वीप है। जब हम पहुँचे, तो हवाईअड्डे पर हमें मिलने के लिए लगभग सौ भाई मौजूद थे। उन्होंने पुष्पमालाओं से हमारा स्वागत किया, और हालाँकि हम फ्रांस से अपने लम्बे सफ़र के बाद थके हुए थे, हम बहुत ख़ुश थे।
तहीती में हमारे पहुँचने के चार महीने बाद, हम पाल-नाव पर चढ़े जो सूखे नारियलों के माल से लदी थी। पाँच दिनों बाद हम अपनी नयी नियुक्ति—मारकेसस् द्वीप-समूह में नूकू हीवा के द्वीप—पर पहुँचे। उस द्वीप पर लगभग १,५०० लोग रहते थे, लेकिन वहाँ कोई भाई नहीं थे। केवल हम।
उस समय परिस्थितियाँ आदिम थीं। हम कंकरीट और बाँस से बने एक छोटे-से घर में रहते थे। बिजली-व्यवस्था नहीं थी। हमारे पास एक नल था जो कभी-कभी काम करता था, लेकिन पानी गंदला था। अधिकांश समय, हम बरसात के पानी का इस्तेमाल करते थे जो एक टँकी में जमा होता था। वहाँ कोई पक्की सड़कें नहीं थीं, केवल मिट्टी के कच्चे मार्ग।
द्वीप के दूर भागों पर पहुँचने के लिए, हमें घोड़े किराए पर लेने पड़ते थे। ज़ीन लकड़ी के बने होते थे—बहुत ही असुविधाजनक, विशेषकर बाबॆट के लिए जिसने घोड़े पर कभी सवारी नहीं की थी। मार्ग पर औंधे गिरे बाँस को काटने के लिए हम एक छूरा साथ ले जाते थे। फ्रांस की ज़िन्दगी से यह बहुत बड़ा परिवर्तन था।
हम रविवार की सभाओं को आयोजित करते थे, हालाँकि केवल हम दोनों ही उपस्थित होते थे। शुरू-शुरू में हम अन्य सभाओं को नहीं रखते थे क्योंकि केवल हम दोनों ही थे। इसके बजाय हम सभा के विषय को एक साथ मिलकर पढ़ते थे।
कुछ महीनों के बाद, हमने निर्णय किया कि ऐसा ही जारी रखना ठीक नहीं था। मीशल वर्णन करता है: “मैंने बाबॆट से कहा, ‘हमें उचित रूप से कपड़े पहनने चाहिए। तुम वहाँ बैठो, और मैं यहाँ बैठूँगा। मैं प्रार्थना से शुरू करूँगा, और फिर हम ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल और सेवा सभा रखेंगे। मैं सवाल पूछूँगा, और तुम जवाब दोगी, यद्यपि कमरे में केवल तुम एकमात्र व्यक्ति होगी।’ यह अच्छा था कि हमने वैसा किया क्योंकि जब कलीसिया नहीं होती है तो आध्यात्मिक रूप से ढीला पड़ना आसान होता है।”
अपनी मसीही सभाओं में लोगों को आने के लिए प्रेरित करने में समय लगा। पहले आठ महीनों के लिए केवल हम दोनों ही थे। बाद में, हमारे साथ एक, दो, या कभी-कभी तीन अन्य लोग भी शामिल हो जाते। एक साल, मात्र हम दोनों ने प्रभु के संध्या भोज के वार्षिकोत्सव को शुरू किया। दस मिनट के बाद, कुछ लोग आए, सो मैंने रुककर भाषण को फिर से शुरू किया।
आज, मारकेसस् द्वीप-समूह में ४२ प्रकाशक और ३ कलीसियाएँ हैं। हालाँकि कार्य का अधिकांश भाग हमारे उत्तराधिकारियों द्वारा किया गया, कुछ लोग जिनसे हमने तब संपर्क किया था, अब बपतिस्मा-प्राप्त हैं।
हमारे भाई मूल्यवान हैं
नूकू हीवा में हमने धीरज सीखा। सबसे मूलभूत ज़रूरतों के अलावा हमें सब कुछ के लिए इन्तज़ार करना पड़ता था। उदाहरण के लिए, यदि आपको एक पुस्तक चाहिए तो आपको उसके लिए लिखना पड़ता था, फिर उसके आने से पहले दो-तीन महीनों के लिए इन्तज़ार करना पड़ता था।
एक और सबक़ जो हमने सीखा वह यह था कि हमारे भाई मूल्यवान हैं। जब हमने तहीती में भेंट की और एक सभा में उपस्थित हुए और भाइयों को गाते हुए सुना तो हमारी आँखों में आँसू आ गए। यह सच हो सकता है कि कुछ भाइयों के साथ पटरी खाना मुश्किल है, लेकिन जब आप अकेले हैं, तब आपको एहसास होता है कि भाइचारे के साथ रहना कितना अच्छा है। १९८० में संस्था ने फ़ैसला किया कि हमें तहीती को लौटना चाहिए और सर्किट कार्य में सेवा करनी चाहिए। वहाँ भाइयों की स्नेहिल सत्कारशीलता और प्रचार कार्य के लिए उनके प्रेम से हम बहुत ही प्रोत्साहित हुए। हमने तहीती में सर्किट कार्य में तीन साल बिताए।
द्वीप से द्वीप
इसके बाद हमें एक और प्रशान्त द्वीप, रीयटेया के एक मिशनरी घर में नियुक्त किया गया, और हम वहाँ क़रीब-क़रीब दो साल रहे। रीयटेया के बाद, हमें टूआमोटू द्वीप-समूह में सर्किट कार्य के लिए नियुक्त किया गया। हमने नाव से ८० द्वीपों में से २५ द्वीपों पर भेंट की। बाबॆट के लिए यह कठिन था। हर बार जब वह नाव से यात्रा करती, उसे जहाज़ी मतली हो जाती थी।
बाबॆट कहती है: “वह बहुत ही बुरा था! जितना समय हम नाव पर गुज़ारते थे, मैं बीमार रहती थी। यदि हम समुद्र में पाँच दिन रहते, तो मैं पाँचों दिन बीमार रहती थी। कोई भी दवा मुझ पर काम नहीं करती थी। फिर भी, मेरी बीमारी के बावजूद, मुझे समुद्र खूबसूरत लगता था। वह एक बढ़िया दृश्य था। डॉल्फ़िन नाव से दौड़ लगातीं। यदि आप हाथों से तालियाँ बजातें तो वे अकसर पानी से ऊपर उछलती थीं!”
सर्किट कार्य में पाँच साल रहने के बाद, हमें दो साल के लिए तहीती में पुनःनियुक्त किया गया और हमने फिर से प्रचार कार्य में अच्छा समय बिताया। डेढ़ साल में हमारी कलीसिया दुगुनी होकर ३५ से ७० प्रकाशकों की हो गयी। हमारे जाने से ठीक पहले उन लोगों में से बारह जन बपतिस्मा-प्राप्त हो गए, जिनके साथ हमने बाइबल का अध्ययन किया था। उनमें से कुछ भाई अब कलीसिया में प्राचीन हैं।
दक्षिण प्रशान्त में हमने कुल मिलाकर १२ साल गुज़ारे। फिर हमें संस्था से एक ख़त मिला जिसमें लिखा था कि उन्हें अब द्वीपों में मिशनरियों की और ज़रूरत नहीं थी क्योंकि कलीसियाएँ अब मज़बूत हो गयी थीं। जब हम तहीती में पहुँचे थे, तब लगभग ४५० प्रकाशक थे और जब हम वापस लौटे तो वहाँ १,००० से भी ज्यादा प्रकाशक थे।
आख़िरकार अफ्रीका!
हम फ्रांस लौटे, और डेढ़ महीने के बाद, संस्था ने हमें नयी नियुक्ति दी—बॆनिन, पश्चिमी अफ्रीका। १३ साल पहले हम अफ्रीका जाना चाहते थे, सो हम बहुत ख़ुश थे।
हम नवम्बर ३, १९९० को बॆनिन पहुँचे और उन पहले पहुँचनेवाले विदेशी मिशनरियों में थे जो राज्य प्रचार कार्य पर १४-साल के प्रतिबन्ध के हटाए जाने के बाद पहुँचे थे। यह बहुत ही उत्तेजक था। हमें बसने में कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि ज़िन्दगी प्रशान्त द्वीपों के समान ही है। लोग बहुत ही दोस्ताना और सत्कारशील स्वभाव के हैं। आप सड़क पर रुककर किसी के साथ भी बात कर सकते हैं।
बॆनिन में पहुँचने के मात्र कुछ सप्ताह बाद, बाबॆट ने अपने स्तन में एक पिंडक देखा। सो हम नए-नए स्थापित शाखा दफ़्तर के पास एक छोटे-से चिकित्सालय में गए। डॉक्टर ने उसकी जाँच की और कहा कि उसे जल्द ही शल्यचिकित्सा की ज़रूरत है। अगले दिन हम एक और चिकित्सालय को गए जहाँ हमारी मुलाक़ात एक यूरोपीय डॉक्टर से हुई, जो फ्रांस की एक स्त्रीरोगविज्ञानी थी। उसने भी यही कहा कि हमें तत्काल फ्रांस जाना चाहिए ताकि बाबॆट की शल्यचिकित्सा हो सके। दो दिन बाद हम फ्रांस जानेवाले एक हवाईजहाज़ में थे।
बॆनिन को छोड़ने में हम दुःखी थे। देश में फिर से ताज़ी की गयी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ, नए मिशनरियों को पाने में भाई रोमांचित थे और हम वहाँ होने के लिए आनन्दित थे। सो हम दुःखी थे कि हमें उस देश में केवल कुछ सप्ताह रहने के बाद उसे छोड़ना पड़ा।
जब हम फ्रांस में पहुँचे, शल्यचिकित्सक ने बाबॆट को जाँचा और पुष्टि की कि उसे शल्यचिकित्सा की ज़रूरत थी। डॉक्टरों ने शीघ्रता से कार्य किया, एक छोटा-सा ऑपरेशन किया, और अगले दिन बाबॆट को अस्पताल से छोड़ दिया। हमने सोचा कि मामले का यही अन्त था।
आठ दिन बाद, हम शल्यचिकित्सक से मिले। यह तब था जब उसने प्रकट किया कि बाबॆट को स्तन कैंसर है।
उस वक़्त जैसा उसने महसूस किया उस पर विचार करते हुए, बाबॆट कहती है: “पहले-पहल, मुझसे ज़्यादा मीशल परेशान था। लेकिन बुरी ख़बर के अगले दिन मैं भावात्मक रूप से शून्य हो गयी। मुझसे रोया नहीं गया। मुझसे मुस्कराया नहीं गया। मैंने सोचा कि मैं मरनेवाली हूँ। मेरे लिए, कैंसर का मतलब मौत थी। मेरी मनोवृत्ति थी, हमें वो करना है जिसे करना ज़रूरी है।”
कैंसर के साथ लड़ाई
हमने शुक्रवार को बुरी ख़बर सुनी, और बाबॆट का दूसरा ऑपरेशन मंगलवार को नियत किया गया था। हम बाबॆट की बहन के साथ रह रहे थे, लेकिन वह भी बीमार थी, सो हम उसके छोटे-से कमरे में रहना जारी नहीं रख सकते थे।
हम सोच रहे थे कि हम कहाँ जा सकते थे। तब हमें ईव और ब्रीज़ीट मरडा की याद आई, एक दम्पति जिनके साथ हम पहले ठहरे थे। यह दम्पति हमारे प्रति बहुत ही सत्कारशील रहे थे। सो हमने ईव को फ़ोन किया और उससे कहा कि बाबॆट को शल्यचिकित्सा की ज़रूरत है और कि हमें यह नहीं मालूम था कि हमें कहाँ रहना है। हमने उससे यह भी कहा कि मीशल को एक नौकरी की ज़रूरत है।
ईव ने मीशल को उसके घर के इधर-उधर के काम दिए। भाइयों ने अनेक कृपा के कार्यों द्वारा हमें सहारा दिया और हमारा हौसला बढ़ाया। उन्होंने आर्थिक रूप से भी हमारी मदद की। संस्था ने बाबॆट के चिकित्सीय बिल भरे।
शल्यचिकित्सा गम्भीर थी। डॉक्टरों को लसीकापर्व और स्तन को हटाना पड़ा। उन्होंने तुरन्त रसायनोपचार शुरू किया। एक सप्ताह के बाद, बाबॆट अस्पताल छोड़ सकती थी, लेकिन उसे जारी चिकित्सा के लिए हर तीन हफ़्ते में वापस आना था।
उस समय के दौरान जब बाबॆट चिकित्सा ले रही थी, तब कलीसिया के भाई बहुत सहायक थे। एक बहन जिसे स्वयं स्तन कैंसर हुआ था, बहुत बड़ा प्रोत्साहन थी। उसने बाबॆट को यह बताया कि क्या उम्मीद करनी है, और उसे काफ़ी सांत्वना दी।
फिर भी, हम अपने भविष्य के बारे में चिन्तित थे। इसे समझते हुए, मीशल और ज़ॉनॆट सिलेरी हमें भोजन के लिए एक रेस्तराँ में ले गए।
हमने उन्हें बताया कि हमें मिशनरी सेवा त्यागनी पड़ी और कि हम फिर कभी अफ्रीका नहीं जा सकते थे। लेकिन, भाई सिलेरी ने कहा: “क्या? किसने कहा कि तुम्हें त्यागनी पड़ेगी? शासी निकाय ने? फ्रांस के भाइयों ने? किसने कहा?”
“किसी ने नहीं कहा,” मैंने जवाब दिया, “मैं कह रहा हूँ।”
“नहीं, नहीं!” भाई सिलेरी ने कहा। “तुम लौटोगे!”
रसायनोपचार के बाद विकिरण किया गया, जो अगस्त १९९१ के अन्त तक ख़त्म हुआ। डॉक्टरों ने कहा कि हमारे अफ्रीका को लौटने में उन्हें कोई समस्या नहीं दिखती, बशर्ते कि बाबॆट नियमित परीक्षण के लिए फ्रांस को आया करे।
बॆनिन को वापस
सो हमने ब्रुकलिन के मुख्यालय को लिखा, और मिशनरी सेवा में वापस आने की अनुमति माँगी। हम उनके जवाब सुनने के लिए उत्सुक थे। दिन आहिस्ते-आहिस्ते गुज़रते गए। आख़िरकार, मीशल से और इन्तज़ार नहीं किया गया, सो उसने ब्रुकलिन को फ़ोन किया और पूछा कि उन्हें हमारा ख़त मिला है या नहीं। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस पर विचार किया था—हम बॆनिन को लौट सकते थे! हम यहोवा के प्रति कितने आभारी थे!
मरडा परिवार ने समाचार को मनाने के लिए एक बड़ी पार्टी आयोजित की। नवम्बर १९९१ को हम बॆनिन लौटे, और भाइयों ने दावत के द्वारा हमारा स्वागत किया!
बाबॆट अब बेहतर लगती है। हम समय-समय पर सम्पूर्ण चिकित्सीय परीक्षण के लिए फ्रांस लौटे हैं, और डॉक्टर कैंसर का नामो-निशान नहीं पाते। अपनी मिशनरी नियुक्ति में वापस आने में हमें ख़ुशी है। बॆनिन में हमें ऐसा महसूस होता है कि हमारी ज़रूरत है, और यहोवा ने हमारे कार्य पर आशीष दी है। जब से हम लौटे हैं तब से हमने १४ लोगों को बपतिस्मा प्राप्त करने में मदद की है। उनमें से पाँच लोग अब नियमित पायनियर हैं, और एक को सहायक सेवक नियुक्त किया गया है। हमने अपनी छोटी-सी कलीसिया को भी बड़ा होते और दो कलीसियाओं में विभाजित होते हुए देखा है।
सालों के दौरान, हमने पति-पत्नी के तौर पर यहोवा की सेवा की है और अनेक आशीषों का आनन्द उठाया है और अनेक बढ़िया लोगों को जान पाए हैं। लेकिन हम कठिनाइयों को सफलतापूर्वक सहने के लिए यहोवा द्वारा प्रशिक्षित और मज़बूत भी किए गए हैं। अय्यूब की तरह, हम यह हमेशा नहीं समझ पाए कि बातें वैसी क्यों घटीं जैसी वे घटीं, लेकिन हमने यह ज़रूर जाना कि यहोवा हमारी मदद करने के लिए हमेशा मौजूद था। यह ऐसा है जैसा परमेश्वर का वचन कहता है: “सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके।”—यशायाह ५९:१.
[पेज 23 पर तसवीरें]
मीशल और बाबॆट मूलर बॆनिन में स्थानीय पोशाक पहने हुए
[पेज 25 पर तसवीरें]
उष्णकटिबन्धी तहीती में पॉलिनेशिया-वासियों के बीच मिशनरी कार्य