यीशु का आना या यीशु की उपस्थिति—कौन-सी?
“तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती २४:३, NW.
१. यीशु की सेवकाई में सवालों की क्या भूमिका थी?
यीशु के सवालों के कुशल प्रयोग ने उसके सुननेवालों को सोचने के लिए, यहाँ तक कि बातों को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए मजबूर किया। (मरकुस १२:३५-३७; लूका ६:९; ९:२०; २०:३, ४) हम शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि उसने सवालों का जवाब भी दिया। उसके जवाब उन सच्चाइयों पर प्रकाश डालते हैं जो अन्यथा शायद हमें मालूम न होतीं या समझ नहीं आतीं।—मरकुस ७:१७-२३; ९:११-१३; १०:१०-१२; १२:१८-२७.
२. किस सवाल पर हमें अभी ध्यान देना चाहिए?
२ मत्ती २४:३ में, हम उन सबसे महत्त्वपूर्ण सवालों में से एक पाते हैं जिनका यीशु ने कभी जवाब दिया। अपने पार्थिव जीवन की समाप्ति के क़रीब, यीशु ने हाल ही में चिताया था कि यहूदी व्यवस्था के अन्त को चिन्हित करते हुए, यरूशलेम का मंदिर नाश किया जाता। मत्ती का वृत्तान्त आगे कहता है: “जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था, तो चेले एकान्त में उसके पास आकर कहने लगे: ‘हमें बता, ये बातें कब होंगी, और तेरी उपस्थिति [“आने,” NHT] का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?’”—मत्ती २४:३, NW.
३, ४. मत्ती २४:३ में एक मुख्य शब्द को जिस प्रकार से बाइबल अनुवादित करती हैं उसमें कौन-सी महत्त्वपूर्ण भिन्नता है?
३ करोड़ों बाइबल पाठकों ने सोचा है, ‘चेलों ने यह सवाल क्यों पूछा, और यीशु के जवाब को मुझे कैसे प्रभावित करना चाहिए?’ यीशु ने अपने जवाब में पत्तों के निकलने के बारे में कहा जो दिखाता है कि ग्रीष्म काल “निकट है”। (मत्ती २४:३२, ३३) इसलिए, अनेक गिरजे सिखाते हैं कि प्रेरित, यीशु के “आने” का चिन्ह माँग रहे थे, वह चिन्ह जो सिद्ध करता कि उसकी वापसी सन्निकट थी। वे विश्वास करते हैं कि वह ‘आना’ एक क्षण होगा जब वह मसीहियों को स्वर्ग ले जाता है और तब संसार का अन्त लाता है। क्या आप विश्वास करते हैं कि यह सही है?
४ कुछ बाइबल अनुवाद, जिनमें पवित्र शास्त्र का नया संसार अनुवाद (अंग्रेज़ी) भी शामिल है, ‘आना’ अनुवाद करने के बजाय, शब्द “उपस्थिति” का प्रयोग करते हैं। क्या यह हो सकता है कि जो चेलों ने पूछा और यीशु ने जवाब में जो कहा उससे भिन्न है जो कि गिरजों में सिखाया जाता है? वास्तव में क्या पूछा गया था? और यीशु ने क्या जवाब दिया?
वे क्या पूछ रहे थे?
५, ६. हम प्रेरितों के सोच-विचार के बारे में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं जब उन्होंने वह सवाल पूछा था जिसे हम मत्ती २४:३ में पढ़ते हैं?
५ यीशु ने मंदिर के बारे में जो कहा उसको ध्यान में रखते हुए, चेले संभवतः यहूदी प्रबंध के बारे में सोच रहे थे जब उन्होंने ‘उसकी उपस्थिति [या, “आने”] का और इस रीति-व्यवस्था [शाब्दिक रूप से, “युग”] की समाप्ति का चिन्ह’ माँगा।—१ कुरिन्थियों १०:११ में “जगत,” और गलतियों १:४ में “संसार” से तुलना कीजिए।
६ इस समय पर प्रेरितों को यीशु की शिक्षाओं की मात्र थोड़ी समझ थी। इससे पहले उन्होंने कल्पना की थी कि “परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट हुआ चाहता है।” (लूका १९:११; मत्ती १६:२१-२३; मरकुस १०:३५-४०) और जैतून पहाड़ पर चर्चा के बाद भी, लेकिन पवित्र आत्मा से अभिषिक्त होने से पहले, उन्होंने पूछा कि क्या यीशु उसी समय इस्राएल का राज्य पुनःस्थापित कर रहा था।—प्रेरितों १:६.
७. प्रेरित यीशु से उसकी भावी भूमिका के बारे में क्यों पूछते?
७ फिर भी, वे जानते थे कि वह जाता, क्योंकि उसने हाल ही में कहा था: “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो।” (यूहन्ना १२:३५; लूका १९:१२-२७) सो उन्होंने वास्तव में सोचा होगा, ‘यदि यीशु जानेवाला है, तो हम उसकी वापसी को कैसे पहचानेंगे?’ जब वह एक मसीहा के तौर पर प्रकट हुआ तो अधिकांश लोगों ने उसे नहीं पहचाना। और एक साल बाद, इस बारे में सवाल बने रहे कि क्या वह उन सभी बातों को पूरा करता जो मसीहा को करनी थीं। (मत्ती ११:२, ३) सो प्रेरितों के पास भविष्य के बारे में पूछताछ करने का कारण था। लेकिन, दोबारा, क्या वे इसका चिन्ह माँग रहे थे कि वह शीघ्र आता या कुछ और पूछ रहे थे?
८. प्रेरित संभवतः यीशु से किस भाषा में बात कर रहे थे?
८ कल्पना कीजिए कि आप एक पक्षी होते और जैतून पहाड़ पर उस बातचीत को सुन रहे होते। (सभोपदेशक १०:२० से तुलना कीजिए।) संभवतः आप यीशु और प्रेरितों को इब्रानी में बात करते सुनते। (मरकुस १४:७०; यूहन्ना ५:२; १९:१७, २०; प्रेरितों २१:४०) फिर भी, संभवतः वे यूनानी भाषा भी जानते थे।
यूनानी में—मत्ती ने जो लिखा
९. मत्ती के अधिकांश आधुनिक अनुवाद किस पर आधारित हैं?
९ सामान्य युग दूसरी शताब्दी के स्रोत यह सूचित करते हैं कि मत्ती ने अपनी सुसमाचार पुस्तक पहले इब्रानी में लिखी थी। स्पष्टतः उसने बाद में उसे यूनानी में लिखा। अनेक यूनानी हस्तलिपियाँ हमारे समय तक पहुँची हैं और उसकी सुसमाचार पुस्तक को आज की भाषाओं में अनुवादित करने के लिए एक आधार का काम किया है। जैतून पहाड़ पर उस बातचीत के बारे में मत्ती ने यूनानी में क्या लिखा? उसने “आने” या “उपस्थिति” के बारे में क्या लिखा, जिसके विषय में चेलों ने पूछा था और जिस पर यीशु ने टिप्पणी की थी?
१०. (क) मत्ती ने “आने” के लिए कौन-से यूनानी शब्द का अकसर प्रयोग किया, और इसके क्या अर्थ हो सकते हैं? (ख) कौन-सा दूसरा यूनानी शब्द दिलचस्पी का है?
१० मत्ती के पहले २३ अध्यायों में, ८० से ज़्यादा बार हम “आने” के लिए एक आम यूनानी क्रिया पाते हैं, जो एरखोमाइ है। यह प्रायः पास जाने या निकट आने के भाव को व्यक्त करती है, जैसा कि यूहन्ना १:४७ में: ‘यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखा।’ प्रयोग पर आधारित इस क्रिया एरखोमाइ का अर्थ “आना,” “जाना” “मौजूद होना” “पहुँचना” या ‘अपने मार्ग पर होना’ हो सकता है। (मत्ती २:८, ११; ८:२८; यूहन्ना ४:२५, २७, ४५; २०:४, ८; प्रेरितों ८:४०; १३:५१) लेकिन मत्ती २४:३, २७, ३७, ३९ में, मत्ती ने एक भिन्न शब्द का प्रयोग किया, एक ऐसी संज्ञा का जो सुसमाचार पुस्तकों में और कहीं नहीं पाई जाती: परोसिया। क्योंकि बाइबल लेखन को परमेश्वर ने उत्प्रेरित किया, तो उसने क्यों मत्ती को यूनानी में उसकी सुसमाचार पुस्तक लिखते वक़्त इस यूनानी शब्द को चुनने के लिए प्रेरित किया? इसका क्या अर्थ है, और हमें क्यों इसे जानना चाहिए?
११. (क) परोसिया का क्या अर्थ है? (ख) जोसीफ़स के लेखन से उदाहरण, परोसिया की हमारी समझ को कैसे पुष्ट करते हैं? (फुटनोट देखिए।)
११ स्पष्ट रूप से, परोसिया का अर्थ “उपस्थिति” है। वाईन की एक्सपोसिट्री डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टेस्टामॆन्ट वर्ड्स कहती है: “परोसिया, . . . शाब्दिक रूप से, एक उपस्थिति, पारा, साथ, और ओसिया, मौजूद (एइमी से, होना), आगमन और उसके साथ परिणित उपस्थिति दोनों का अर्थ रखती है। उदाहरण के लिए, एक पपीरस के पत्र में एक महिला अपनी सम्पत्ति से सम्बन्धित मामलों की देखरेख करने के लिए एक अमुक स्थान पर अपनी परोसिया की ज़रूरत के बारे में कहती है।” अन्य शब्दकोश व्याख्या करते हैं कि परोसिया ‘एक शासक के दौरे’ को सूचित करती है। अतः, यह आगमन का मात्र एक क्षण नहीं है, बल्कि आगमन के बाद से शुरू होनेवाली उपस्थिति है। दिलचस्पी की बात है, इसी तरह यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स, प्रेरितों के एक समकालिक, ने परोसिया का प्रयोग किया था।a
१२. स्वयं बाइबल परोसिया के अर्थ की पुष्टि करने में हमारी कैसे मदद करती है?
१२ यह अर्थ “उपस्थिति” प्राचीन साहित्य द्वारा स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है, लेकिन मसीही ख़ास तौर पर इस बात में दिलचस्पी रखते हैं कि परमेश्वर का वचन परोसिया का प्रयोग कैसे करता है। जवाब वही है—उपस्थिति। हम इसे पौलुस की पत्रियों में उदाहरणों से देखते हैं। उदाहरण के लिए, उसने फिलिप्पियों को लिखा: “जिस प्रकार तुम सदैव आज्ञा पालन करते आए हो, न केवल मेरी उपस्थिति में परन्तु अब उस से भी अधिक मेरी अनुपस्थिति में . . . अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ।” (तिरछे टाइप हमारे।) उसने उनके साथ रहने के बारे में भी बात की ताकि वे “फिर [उसके] लौट आने उपस्थिति [परोसिया] से” हर्ष मनाएँ। (फिलिप्पियों १:२५, २६; २:१२, NHT) अन्य अनुवाद कहते हैं “मेरा तुम्हारे साथ फिर होने” (वेमाऊथ; न्यू इन्टरनैश्नल वर्शन, अंग्रेज़ी); “जब मैं फिर तुम्हारे साथ होऊँगा।” (जॆरूसलेम बाइबल; न्यू इंग्लिश बाइबल, अंग्रेज़ी); और “जब तुम मुझे फिर एक बार अपने बीच पाओगे।” (ट्वेन्टियथ सॆंचुरी न्यू टेस्टामॆन्ट, अंग्रेज़ी) २ कुरिन्थियों १०:१०, ११ (NHT) में पौलुस ने “उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति” की विषमता “अनुपस्थिति” के साथ की। इन उदाहरणों में वह स्पष्टतया अपने समीप आने या आगमन के बारे में बात नहीं कर रहा था; उसने परोसिया को उपस्थित होने के भाव में प्रयोग किया।b (१ कुरिन्थियों १६:१७ से तुलना कीजिए।) लेकिन, यीशु की परोसिया के उल्लेखों के बारे में क्या? क्या वे उसके “आने” का भाव देते हैं या क्या वे एक लम्बी उपस्थिति को सूचित करते हैं?
१३, १४. (क) हम यह निष्कर्ष क्यों निकालते हैं कि परोसिया का काफ़ी समय तक चलना ज़रूरी है? (ख) यीशु की परोसिया की अवधि के बारे में क्या कहा जाना ज़रूरी है?
१३ पौलुस के दिन के आत्मा-अभिषिक्त मसीही यीशु की परोसिया में दिलचस्पी रखते थे। लेकिन पौलुस ने उन्हें चेतावनी दी ताकि ‘उनके मन अस्थिर’ न हों। पहले “अधर्म का पुरुष” प्रकट होना ज़रूरी है, जो कि मसीहीजगत का पादरीवर्ग सिद्ध हुआ है। पौलुस ने लिखा कि “उस अधर्मी की उपस्थिति शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ, और चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ . . . है।” (२ थिस्सलुनीकियों २:२, ३, ९, NW) स्पष्टतया, ‘अधर्म के पुरुष’ की परोसिया, या उपस्थिति, केवल एक क्षणिक आगमन नहीं था; यह काफी समय तक रहती, जिसके दौरान झूठे चिन्ह उत्पन्न किए जाते। यह महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१४ उससे पहली आयत पर ध्यान दीजिए: “वह अधर्मी प्रकट किया जाएगा जिसे प्रभु अपने मुंह की फूंक से मार डालेगा और अपने उपस्थिति के तेज से भस्म कर देगा।” ठीक जिस तरह ‘अधर्म के पुरुष’ की उपस्थिति एक समयावधि तक चलती, उसी तरह यीशु की उपस्थिति कुछ समय तक चलती और उस अधर्मी “विनाश के पुत्र” के विनाश के साथ चरमसीमा तक पहुँचती।—२ थिस्सलुनीकियों २:८, NHT.
इब्रानी-भाषा के पहलू
१५, १६. (क) मत्ती के अनेक इब्रानी अनुवादों में कौन-सा एक ख़ास शब्द प्रयोग किया गया है? (ख) बोह को शास्त्र में कैसे प्रयोग किया गया है?
१५ जैसा बताया गया है, स्पष्टतः मत्ती ने अपनी सुसमाचार पुस्तक पहले इब्रानी भाषा में लिखी थी। सो, उसने मत्ती २४:३, २७, ३७, ३९ में कौन-सा इब्रानी शब्द प्रयोग किया था? प्रेरितों के सवाल और यीशु के जवाब दोनों में, आधुनिक इब्रानी में अनुवादित मत्ती के अनुवादों में क्रिया बोह का एक रूप है। यह इस प्रकार के पठन में परिणित हो सकता है: “तेरी [बोह] का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?” और, “जैसे नूह के दिन थे, वैसे ही मनुष्य के पुत्र की [बोह] भी होगी।” बोह का क्या अर्थ है?
१६ हालाँकि इसके अनेक भाव हैं, इब्रानी क्रिया बोह का मूल रूप से अर्थ है “आना।” पुराने नियम का धर्मविज्ञानी शब्दकोश (अंग्रेज़ी) कहता है: ‘इब्रानी शास्त्र में बोह सबसे ज़्यादा प्रयोग की गई क्रिया है, २,५३२ बार आती है, और गति व्यक्त करनेवाली क्रियाओं में आगे है।’ (उत्पत्ति ७:१, १३; निर्गमन १२:२५; २८:३५; २ शमूएल १९:३०; २ राजा १०:२१; भजन ६५:२; यशायाह १:२३; यहेजकेल ११:१६; दानिय्येल ९:१३; आमोस ८:११) यदि यीशु और प्रेरितों ने एक ऐसे शब्द का प्रयोग किया होता जिसके इतने भिन्न अर्थ हैं, तो भाव शायद विवादास्पद होता। लेकिन क्या उन्होंने ऐसा किया?
१७. (क) मत्ती के आधुनिक इब्रानी अनुवाद क्यों शायद वह बात सूचित न करें जो यीशु और प्रेरितों ने कही? (ख) और किस स्थान पर हमें इस बात का सुराग़ मिल सकता है कि यीशु और प्रेरितों ने कौन-सा शब्द प्रयोग किया होगा, और किस कारण से यह स्रोत हमारे लिए दिलचस्पी का है? (फुटनोट देखिए।)
१७ याद रखिए कि आधुनिक इब्रानी भाषान्तर ऐसे अनुवाद हैं जो कि शायद बिलकुल वही बात प्रस्तुत न करें जो मत्ती ने इब्रानी में लिखी थी। सच्चाई यह है कि यीशु बोह के अलावा कोई और शब्द प्रयोग कर सकता था, एक ऐसा शब्द जो परोसिया के इस भाव में ठीक बैठता। हम इसे प्रॉफ़ॆसर जॉर्ज हॉवर्ड की, १९९५ की मत्ती की इब्रानी सुसमाचार पुस्तक (अंग्रेज़ी) से देखते हैं। यह पुस्तक यहूदी चिकित्सक शेम-टोब बॆन आइसिक इब्न शॉपरूत की मसीहियत के ख़िलाफ़ १४वीं-शताब्दी की खण्डनात्मक कृति पर केन्द्रित थी। उस अभिलेख ने मत्ती की सुसमाचार पुस्तक के एक इब्रानी मूलपाठ को प्रस्तुत किया। इसका प्रमाण है कि शेम-टोब के समय में, लातीनी या यूनानी से अनुवादित किए जाने के बजाय, मत्ती का यह मूलपाठ बहुत पुराना था और मूल रूप से इब्रानी में लेखबद्ध किया गया था।c अतः यह हमें शायद उसके निकट लाए जो जैतून पहाड़ पर कहा गया था।
१८. शेम-टोब ने कौन-से दिलचस्प इब्रानी शब्द का प्रयोग किया, और इसका क्या अर्थ है?
१८ मत्ती २४:३, २७, ३९ में, शेम-टोब के मत्ती में क्रिया बोह का प्रयोग नहीं होता। इसके बजाय, इसमें सम्बन्धित संज्ञा बिआह प्रयोग होती है। यह संज्ञा इब्रानी शास्त्र में केवल यहेजकेल ८:५ (NHT) में आती है, जहाँ इसका अर्थ है “प्रवेशद्वार।” आने की क्रिया को व्यक्त करने के बजाय, यहाँ बिआह एक इमारत के प्रवेश को सूचित करती है; जब आप प्रवेश-मार्ग पर या दहलीज़ पर हैं, तो आप इमारत में हैं। साथ ही, मृत सागर हस्तलिपियों में से ग़ैर-बाइबलीय धार्मिक अभिलेख अकसर बिआह को आगमन या याजकीय पदों की शुरूआत के सम्बन्ध में प्रयोग करते हैं। (१ इतिहास २४:३-१९; लूका १:५, ८, २३ देखिए।) और १९८६ का एक प्राचीन सीरियाई (या, आरामी) पेशिट्टा का इब्रानी अनुवाद मत्ती २४:३, २७, ३७, ३९ में बिआह प्रयोग करता है। सो यह प्रमाण मौजूद है कि प्राचीन समय में संज्ञा बिआह शायद बाइबल में प्रयोग की गई क्रिया बोह से कुछ भिन्न अर्थ रखती थी। यह दिलचस्पी की बात क्यों है?
१९. यदि यीशु और प्रेरितों ने बिआह प्रयोग किया तो हम शायद क्या निष्कर्ष निकालें?
१९ प्रेरितों ने अपने सवाल में और यीशु ने अपने जवाब में शायद इस संज्ञा बिआह का प्रयोग किया हो। यदि प्रेरितों के मन में मात्र यीशु के भावी आगमन का ही विचार था, तब भी मसीह ने जो वे विचार कर रहे थे उससे ज़्यादा को शामिल करने के लिए शायद बिआह प्रयोग किया हो। यीशु एक नए पद की शुरूआत करने के लिए अपने आगमन की ओर संकेत कर रहा होगा; उसका आगमन उसकी नयी भूमिका की शुरूआत होता। यह परोसिया के भाव से मेल खाता, जिसे बाद में मत्ती ने प्रयोग किया। बिआह के ऐसे प्रयोग को, स्वाभाविक रूप से, उसको समर्थन देना चाहिए जिसके बारे में यहोवा के साक्षियों ने बहुत पहले से सिखाया है, कि यीशु ने जो संयुक्त “चिन्ह” दिया था वह यह दर्शाने के लिए था कि वह उपस्थित है।
उसकी उपस्थिति की चरमसीमा का इन्तज़ार करना
२०, २१. नूह के दिनों के बारे में यीशु की टिप्पणी से हम क्या सीख सकते हैं?
२० यीशु की उपस्थिति के बारे में हमारे अध्ययन को हमारे जीवन और हमारी आशाओं पर सीधा प्रभाव डालना चाहिए। यीशु ने अपने अनुयायियों से आग्रह किया कि सचेत रहें। उसने एक चिन्ह प्रदान किया ताकि उसकी उपस्थिति की पहचान की जा सके, हालाँकि अधिकांश लोग कोई ध्यान नहीं देते: “क्योंकि जैसे नूह के दिन थे, ठीक वैसी ही मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति भी होगी। क्योंकि जैसे वे जल-प्रलय से पहले के उन दिनों में थे, खाते-पीते, पुरुष विवाह करते और स्त्रियों विवाह में दी जाती थीं, उस दिन तक जब तक कि नूह ने जहाज में प्रवेश न किया; और जब तक कि जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया, वैसी ही मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति भी होगी।”—मत्ती २४:३७-३९, NW.
२१ नूह के दिनों के दौरान, उस पीढ़ी के अधिकांश लोगों ने अपने रोज़मर्रा के कामों को जारी रखा। यीशु ने पूर्वबताया कि “मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति” में भी ऐसा ही होता। नूह के आसपास के लोगों ने शायद सोचा हो कि कुछ नहीं होगा। लेकिन आप जानते हैं कि क्या हुआ। वे दिन जो एक समयावधि तक चले, एक चरमसीमा की ओर ले गए, “जब तक कि जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया।” लूका इसी तरह का एक वृत्तान्त प्रस्तुत करता है जिसमें यीशु ने “नूह के दिनों” की तुलना “मनुष्य के पुत्र के दिनों” से की। यीशु ने चेतावनी दी: “मनुष्य के पुत्र के प्रकट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।”—लूका १७:२६-३०.
२२. मत्ती अध्याय २४ में यीशु की भविष्यवाणी में हमें ख़ास तौर से क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?
२२ यह सब हमारे लिए एक ख़ास अर्थ ले लेता है क्योंकि हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ हम उन घटनाओं की पहचान करते हैं जो यीशु ने पूर्वबतायी थीं—युद्धों, भूकंपों, महामारियों, अकालों, और उसके चेलों पर सताहट। (मत्ती २४:७-९; लूका २१:१०-१२) ये परिस्थितियाँ प्रथम विश्वयुद्ध के नाम से ख्यात इतिहास बदल देनेवाले झगड़े के समय से प्रत्यक्ष रही हैं, हालाँकि अधिकतर लोग इन्हें इतिहास के आम हिस्से मानते हैं। लेकिन, सच्चे मसीही इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं के अर्थ को भाँपते हैं, ठीक जैसे अंजीर के पेड़ पर पत्तियों के निकलने से सतर्क लोग समझ जाते हैं कि ग्रीष्म काल निकट है। यीशु ने सलाह दी: “इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है।”—लूका २१:३१.
२३. मत्ती अध्याय २४ में यीशु के शब्दों का किस के लिए ख़ास अर्थ है, और क्यों?
२३ जैतून पहाड़ पर यीशु का जवाब अधिकांशतः उसके अनुयायियों की ओर निर्दिष्ट था। ये वे लोग थे जो अन्त आने से पहले पूरी पृथ्वी पर सुसमाचार प्रचार करने के जीवन-रक्षक कार्य में हिस्सा लेते। ये वे लोग होते जो ‘उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु का पवित्र स्थान में खड़ा होना’ समझ सकते थे। ये वे लोग होते जो भारी क्लेश से पहले ‘भाग जाने’ के द्वारा प्रतिक्रिया दिखाते। और ये वे लोग होते जो ख़ास तौर पर उन अतिरिक्त शब्दों से प्रभावित होते: “यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएंगे।” (मत्ती २४:९, १४-२२) लेकिन इन गंभीर शब्दों का वास्तव में क्या अर्थ है, और यह क्यों कहा जा सकता है कि ये हमें अभी ज़्यादा ख़ुशी, विश्वास, और जोश में रहने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं? मत्ती २४:२२ का अगला अध्ययन इनके जवाब प्रदान करेगा।
[फुटनोट]
a जोसीफ़स के उदाहरण: सीनै पर्वत पर बिजली और गर्जन ने “वहाँ परमेश्वर की उपस्थिति [परोसिया] को घोषित किया।” निवासस्थान में चमत्कारिक प्रकटन ने “परमेश्वर की उपस्थिति [परोसिया] को दिखाया।” एलीशा के सेवक को घेरा डाले हुए रथों को दिखाने के द्वारा, परमेश्वर ने “अपने सेवक के सामने अपनी शक्ति और उपस्थिति [परोसिया] को प्रकट” किया। जब रोमी अधिकारी पॆट्रोनिअस ने यहूदियों को शान्त करने की कोशिश की, जोसीफ़स ने दावा किया कि ‘परमेश्वर ने’ वर्षा भेजने के द्वारा ‘पॆट्रोनिअस को अपनी उपस्थिति [परोसिया] दिखायी।’ जोसीफ़स ने परोसिया को मात्र एक समीप आने या क्षणिक आगमन पर लागू नहीं किया। इसका अर्थ था एक जारी, यहाँ तक कि अदृश्य, उपस्थिति। (निर्गमन २०:१८-२१; २५:२२; लैव्यव्यवस्था १६:२; २ राजा ६:१५-१७)—यहूदियों का प्राचीन इतिहास, (अंग्रेज़ी) पुस्तक ३, अध्याय ५, अनुच्छेद २ [८०]; अध्याय ८, अनुच्छेद ५ [२०२]; पुस्तक ९, अध्याय ४, अनुच्छेद ३ [५५]; पुस्तक १८, अध्याय ८, अनुच्छेद ६ [२८४] से तुलना कीजिए।
b ए क्रिटिकल लॆक्सीकन एण्ड कॉनकॉर्डन्स टू दी इंग्लिश एण्ड ग्रीक न्यू टेस्टामॆन्ट में, ई. डब्ल्यू. बुलिंगर स्पष्ट करता है कि परोसिया का अर्थ है ‘मौजूद होना या हाज़िर होना, इसलिए, उपस्थिति, आगमन; एक ऐसा आना जिसमें उस आगमन से शुरू होनेवाले स्थायी वास का विचार शामिल होता है।’
c एक प्रमाण यह है कि इसमें इब्रानी अभिव्यक्ति “नाम,” पूरे या संक्षिप्त रूप में, १९ बार पायी जाती है। प्रॉफ़ॆसर हॉवर्ड लिखता है: “एक यहूदी खण्डनकर्ता द्वारा उद्धृत मसीही अभिलेख में परमेश्वरीय नाम को पढ़ना अनोखा है। यदि यह यूनानी या लातीनी मसीही अभिलेख का इब्रानी अनुवाद होता, तो एक व्यक्ति मूलपाठ में एदोनाई [प्रभु] के पाए जाने की, न कि अवर्णनीय परमेश्वरीय नाम YHWH (यहवह) के एक चिन्ह की आशा करता। . . . उसके लिए अवर्णनीय नाम को जोड़ना अव्याख्येय है। यह प्रमाण दृढ़तापूर्वक सूचित करता है कि शेम-टोब को उसकी मत्ती की प्रति मूलपाठ में परमेश्वरीय नाम के साथ ही मिली थी, और कि उसने संभवतः उसे निकालने के ख़तरे को मोल लेने का अपराधी होने के बजाय उसे सुरक्षित रखा।” पवित्र शास्त्र का नया संसार अनुवाद—संदर्भों सहित शेम-टोब के मत्ती (J2) को मसीही यूनानी शास्त्र में ईश्वरीय नाम को प्रयोग करने के लिए एक आधार के रूप में प्रयोग करता है।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ मत्ती २४:३ को बाइबलें जिस प्रकार अनुवादित करती हैं उसकी भिन्नता को देखना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
◻ परोसिया का क्या अर्थ है, और क्यों यह ध्यान देने लायक़ बात है?
◻ यूनानी और इब्रानी में मत्ती २४:३ में कौन-सी संभव समानता शायद मौजूद हो?
◻ मत्ती अध्याय २४ की समझ के लिए समय के सम्बन्ध में कौन-सी मुख्य बात हमें जानने की ज़रूरत है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
जैतून पहाड़, जहाँ से यरूशलेम दिखाई देता है