यहोवा से आनेवाली सांत्वना के सहभागी होना
“हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्ति [सांत्वना] के भी सहभागी हो।”—२ कुरिन्थियों १:७.
१, २. आज जो मसीही बने हैं उनमें से अनेकों का क्या अनुभव रहा है?
परमेश्वर के सत्य की जानकारी के बिना प्रहरीदुर्ग के अनेक वर्तमान पाठक बड़े हुए। शायद यह आपके बारे में सच है। यदि ऐसा है, तो याद कीजिए कि आपने कैसा महसूस किया जब आपकी समझ की आँखें खुलने लगीं। उदाहरण के लिए, जब आपने पहली बार समझा कि मृत जन पीड़ा नहीं भुगत रहे बल्कि अचेत हैं, क्या आपको राहत नहीं मिली? और जब आपने मृत जनों के लिए आशा के बारे में सीखा, कि परमेश्वर के नए संसार में अरबों जीवन के लिए पुनरुत्थित किए जाएँगे, क्या आपको सांत्वना नहीं मिली?—सभोपदेशक ९:५, १०; यूहन्ना ५:२८, २९.
२ दुष्टता का अन्त करने और इस पृथ्वी को परादीस में परिवर्तित करने की परमेश्वर की प्रतिज्ञा के बारे में क्या? जब आपने इसके बारे में सीखा, तो क्या इसने आपको सांत्वना नहीं दी और आपको उत्सुक प्रत्याशा से नहीं भर दिया? कभी न मरने बल्कि उस आनेवाले पार्थिव परादीस में बचकर जाने की संभावना के बारे में जब आपने पहली बार सीखा तो आपने कैसा महसूस किया? निःसंदेह आप रोमांचित हुए थे। जी हाँ, आप परमेश्वर के उस सांत्वनादायक संदेश के प्रापक बने थे, जिसका प्रचार अब संसार-भर में यहोवा के साक्षियों द्वारा किया जा रहा है।—भजन ३७:९-११, २९; यूहन्ना ११:२६; प्रकाशितवाक्य २१:३-५.
३. परमेश्वर का सांत्वनादायक संदेश दूसरों के साथ बाँटनेवाले भी क्यों क्लेश भुगतते हैं?
३ लेकिन, जब आपने दूसरों के साथ बाइबल का संदेश बाँटने की कोशिश की, तो आपको यह एहसास भी हुआ कि “हर एक में विश्वास नहीं” होता। (२ थिस्सलुनीकियों ३:२) शायद आपके पहले के कुछ दोस्तों ने बाइबल की प्रतिज्ञाओं में विश्वास व्यक्त करने के लिए आपका मज़ाक उड़ाया। यहोवा के साक्षियों की संगति में बाइबल का अध्ययन करना जारी रखने के लिए आपने शायद सताहट भी सहन की हो। जब आपने अपने जीवन को बाइबल के सिद्धान्तों के सामंजस्य में लाने के लिए परिवर्तन करने शुरू किए तब यह विरोध शायद तीव्र हो गया हो। आप उस क्लेश का अनुभव करने लगे जो शैतान और उसका संसार उन सभी पर लाता है जो परमेश्वर की सांत्वना को स्वीकार करते हैं।
४. किन भिन्न तरीक़ों से नयी-नयी दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्ति क्लेश के प्रति प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं?
४ दुःख की बात है, जैसे यीशु ने पूर्वबताया, क्लेश कुछ लोगों के ठोकर खाने और मसीही कलीसिया के साथ अपनी संगति को छोड़ देने का कारण बनता है। (मत्ती १३:५, ६, २०, २१) अन्य व्यक्ति जिन सांत्वनादायक प्रतिज्ञाओं के बारे में वे सीख रहे हैं उन पर अपने मन केन्द्रित करने के द्वारा क्लेश को सहते हैं। आख़िरकार वे अपने जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं और उसके पुत्र, यीशु मसीह के शिष्यों के तौर पर बपतिस्मा लेते हैं। (मत्ती २८:१९, २०; मरकुस ८:३४) निःसंदेह, एक बार जब किसी मसीही का बपतिस्मा हो जाता है तो क्लेश थम नहीं जाता। उदाहरण के लिए, जिस व्यक्ति की अनैतिक पृष्ठभूमि रही है उसके लिए पवित्र रहना एक कड़ा संघर्ष हो सकता है। दूसरों को परिवार के अविश्वासी सदस्यों से निरन्तर विरोध का सामना करना पड़ता है। क्लेश चाहे जो भी हो, वे सभी जो परमेश्वर को समर्पित जीवन वफ़ादारी से जीते हैं एक बात के बारे में निश्चित हो सकते हैं। बहुत ही व्यक्तिगत रूप से, वे परमेश्वर की सांत्वना और सहायता का अनुभव करेंगे।
‘सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर’
५. जिन अनेक परीक्षाओं से पौलुस गुज़रा, उनके साथ-साथ उसने क्या अनुभव किया?
५ एक व्यक्ति जिसने परमेश्वर द्वारा दी जानेवाली सांत्वना का गहराई से मूल्यांकन किया वह था प्रेरित पौलुस। आसिया और मकिदुनिया में विशेषकर परीक्षा-भरे समय के बाद, उसने यह सुनने पर बड़ी राहत का अनुभव किया कि कुरिन्थ की कलीसिया ने उसकी ताड़ना की पत्री के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया दिखायी थी। इस बात ने उसे प्रेरित किया कि उन्हें दूसरी पत्री लिखे, जिसमें स्तुति की निम्नलिखित अभिव्यक्ति है: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया [“कोमल करुणाओं,” NW] का पिता, और सब प्रकार की शान्ति [सांत्वना] का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति [सांत्वना] देता है।”—२ कुरिन्थियों १:३, ४.
६. दूसरा कुरिन्थियों १:३, ४ में पाए गए पौलुस के शब्दों से हम क्या सीखते हैं?
६ इन उत्प्रेरित शब्दों से हमें बहुत जानकारी मिलती है। आइए हम इनका विश्लेषण करें। जब पौलुस परमेश्वर को स्तुति या धन्यवाद व्यक्त करता है या अपनी पत्रियों में उससे बिनती करता है, तो हम सामान्यतः पाते हैं कि वह मसीही कलीसिया के सिर, यीशु के लिए गहरे मूल्यांकन को भी शामिल करता है। (रोमियों १:८; ७:२५; इफिसियों १:३; इब्रानियों १३:२०, २१) इसलिए, पौलुस स्तुति की इस अभिव्यक्ति को “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता” को सम्बोधित करता है। (तिरछे टाइप हमारे।) उसके बाद, अपने लेखनों में पहली बार, वह “कोमल करुणाओं” अनुवादित एक यूनानी संज्ञा का प्रयोग करता है। यह संज्ञा ऐसे शब्द से आती है जो दूसरे व्यक्ति के दुःख के प्रति उदासी व्यक्त करने के लिए प्रयोग होता है। इस प्रकार पौलुस परमेश्वर की कोमल भावनाओं का वर्णन करता है, अपने उन वफ़ादार सेवकों के लिए जो क्लेश भुगत रहे हैं—ऐसी कोमल भावनाएँ जो परमेश्वर को उनके पक्ष में करुणा से कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं। आख़िर में, पौलुस ने यहोवा को ‘कोमल करुणाओं का पिता’ पुकारने के द्वारा इस चाहनेयोग्य गुण के स्रोत के तौर पर उसकी ओर देखा।
७. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा ‘सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर’ है?
७ परमेश्वर की “कोमल करुणाओं” का परिणाम क्लेश भुगतने वाले एक व्यक्ति के लिए राहत होता है। इसलिए, पौलुस आगे यहोवा का वर्णन ‘सब प्रकार की सांत्वना के परमेश्वर’ के रूप में करता है। अतः, संगी विश्वासियों की कृपा से शायद हम सांत्वना का किसी तरह अनुभव करें, हम स्रोत के तौर पर यहोवा की ओर देख सकते हैं। ऐसी कोई वास्तविक, स्थायी सांत्वना नहीं है जो परमेश्वर से नहीं आती। इसके अलावा, वही है जिसने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा, और इस प्रकार हमें सांत्वनादाता होने के लिए समर्थ किया। यह परमेश्वर की पवित्र आत्मा है जो उसके सेवकों को उन लोगों के प्रति कोमल करुणा दिखाने के लिए प्रेरित करती है जो सांत्वना की ज़रूरत में हैं।
सांत्वनादाता होने के लिए प्रशिक्षित
८. हालाँकि परमेश्वर हमारी परीक्षाओं का स्रोत नहीं है, क्लेश सहन करने का कौन-सा लाभदायक प्रभाव हम पर हो सकता है?
८ जबकि यहोवा परमेश्वर उसके वफ़ादार सेवकों पर आनेवाली विभिन्न परीक्षाओं की अनुमति देता है, वह कभी-भी ऐसी परीक्षाओं का स्रोत नहीं होता। (याकूब १:१३) लेकिन, क्लेश सहते वक़्त जो सांत्वना वह हमें प्रदान करता है वह हमें दूसरों की ज़रूरतों के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होने के लिए प्रशिक्षित कर सकती है। किस परिणाम के साथ? “ताकि हम उस शान्ति [सांत्वना] के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति [सांत्वना] दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।” (२ कुरिन्थियों १:४) इस प्रकार जब हम मसीह का अनुकरण करते हैं और ‘सब विलाप करनेवालों को सांत्वना’ देते हैं, तो यहोवा हमें प्रशिक्षित करता है कि संगी विश्वासियों के साथ और अपनी सेवकाई में हम जिनसे मिलते हैं उनके साथ अपनी सांत्वना के प्रभावकारी सहभागी हों।—यशायाह ६१:२; मत्ती ५:४.
९. (क) क्या बात हमें दुःख सहन करने में मदद देगी? (ख) जब हम वफ़ादारी से क्लेश सहन करते हैं तो दूसरों को कैसे सांत्वना प्राप्त होती है?
९ पौलुस ने अनेक दुःखों को सहा, मसीह के माध्यम से परमेश्वर से जो अत्यधिक सांत्वना उसे प्राप्त हुई उसका शुक्र है। (२ कुरिन्थियों १:५) हम भी परमेश्वर की बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं पर मनन करने के द्वारा, उसकी पवित्र आत्मा के सहारे के लिए प्रार्थना करने के द्वारा, और अपनी प्रार्थनाओं के प्रति परमेश्वर के जवाब का अनुभव करने के द्वारा अत्यधिक सांत्वना का अनुभव कर सकते हैं। इस प्रकार हम बलवन्त किए जाएँगे कि यहोवा की सर्वसत्ता को ऊँचा उठाना और इब्लीस को झूठा साबित करना जारी रखें। (अय्यूब २:४; नीतिवचन २७:११) जब हम किसी भी प्रकार का क्लेश वफ़ादारी से सहन कर चुके हैं, तब हमें, पौलुस की तरह सारा श्रेय यहोवा को देना चाहिए, जिसकी सांत्वना मसीहियों को परीक्षा के अधीन वफ़ादार रहने के लिए समर्थ करती है। वफ़ादार मसीहियों का धीरज भाईचारे पर एक सांत्वनादायक प्रभाव छोड़ता है, जिससे दूसरे “धीरज के साथ उन क्लेशों को सह” लेने का दृढ़-निश्चय करते हैं।—२ कुरिन्थियों १:६.
१०, ११. (क) कौन-सी कुछ बातें हैं जिनके कारण प्राचीन कुरिन्थ की कलीसिया को दुःख हुआ? (ख) पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया को कैसे सांत्वना दी, और उसने कौन-सी आशा व्यक्त की?
१० कुरिन्थियों ने उन दुःखों को भी सहा जो सभी सच्चे मसीहियों पर आते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें एक पश्चाताप-रहित व्यभिचारी को बहिष्कृत करने के लिए सलाह की ज़रूरत थी। (१ कुरिन्थियों ५:१, २, ११, १३) यह कार्यवाही करने में और अनबन तथा फूट को ख़त्म करने में असफल होने के कारण कलीसिया पर कलंक लगा था। लेकिन उन्होंने आख़िरकार पौलुस की सलाह को लागू किया और सच्चा पश्चाताप दिखाया। इसलिए, उसने हृदय से उनकी प्रशंसा की और कहा कि उसकी पत्री के प्रति उनकी अच्छी प्रतिक्रिया ने उसे सांत्वना दी थी। (२ कुरिन्थियों ७:८, १०, ११, १३) स्पष्टतः, उस बहिष्कृत व्यक्ति ने भी पश्चाताप किया था। इसलिए पौलुस ने उन्हें सलाह दी कि ‘उसका अपराध क्षमा करें; और सांत्वना दें, न हो कि ऐसा मनुष्य बहुत उदासी में डूब जाए।’—२ कुरिन्थियों २:७.
११ पौलुस की दूसरी पत्री ने कुरिन्थ की कलीसिया को निश्चित ही सांत्वना दी होगी। और यह पौलुस का एक लक्ष्य था। उसने समझाया: “हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्ति [सांत्वना] के भी सहभागी हो।” (२ कुरिन्थियों १:७) अपनी पत्री की समाप्ति में, पौलुस ने आग्रह किया: “सांत्वना प्राप्त करना . . . जारी रखो; और प्रेम और शान्ति का परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा।”—२ कुरिन्थियों १३:११, NW.
१२. सभी मसीहियों को किस बात की ज़रूरत है?
१२ हम इससे क्या ही महत्त्वपूर्ण सबक़ सीख सकते हैं! मसीही कलीसिया के सभी सदस्यों को उस ‘सांत्वना के सहभागी’ होने की ज़रूरत है जो परमेश्वर अपने वचन, अपनी पवित्र आत्मा, और अपने पार्थिव संगठन के माध्यम से प्रदान करता है। यदि बहिष्कृत व्यक्तियों ने पश्चाताप किया है और अपने ग़लत मार्ग को सुधारा है तो उन्हें भी सांत्वना की ज़रूरत हो सकती है। अतः, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने उनकी सहायता करने के लिए एक करुणामयी प्रबन्ध स्थापित किया है। साल में एक बार दो प्राचीन अमुक बहिष्कृत व्यक्तियों से शायद भेंट करें। ये शायद अब एक विद्रोही मनोवृत्ति न दिखाएँ या घोर पाप में शामिल न हों और बहाल होने के लिए आवश्यक क़दम उठाने के लिए शायद उन्हें सहायता की ज़रूरत हो।—मत्ती २४:४५; यहेजकेल ३४:१६.
आसिया में पौलुस का क्लेश
१३, १४. (क) पौलुस ने उस तीव्र क्लेश के समय का वर्णन कैसे किया जो उसने आसिया में अनुभव किया था? (ख) पौलुस के मन में शायद कौन-सी घटना रही होगी?
१३ कुरिन्थ की कलीसिया ने जिस प्रकार का दुःख अब तक अनुभव किया था उसकी तुलना पौलुस के उन अनेक क्लेशों के साथ नहीं की जा सकती थी जो उसे सहन करने पड़े थे। अतः, वह उन्हें याद दिला सकता था: “हे भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। बरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, बरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है। उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।”—२ कुरिन्थियों १:८-१०.
१४ कुछ बाइबल विद्वान मानते हैं कि पौलुस इफिसुस के एक दंगे का उल्लेख कर रहा था, जिसमें पौलुस साथ ही उसके दो मकिदुनी संगी यात्रियों, गयुस और अरिस्तरखुस को अपनी जानें गवाँनी पड़ सकती थीं। इन दो मसीहियों को ऐसे जनसमूह से भरी एक रंगशाला में ज़बरदस्ती ले जाया गया जो “कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, कि इफिसियों की [देवी] अरतिमिस महान है।” आख़िरकार, नगर का एक अधिकारी उस भीड़ को शान्त करने में सफल हुआ। गयुस और अरिस्तरखुस की जानों के लिए इस ख़तरे से पौलुस बहुत ही व्यथित हुआ होगा। असल में, वह अन्दर जाकर उस पागल जनसमूह से तर्क करना चाहता था, लेकिन इस तरीक़े से अपनी जान को जोखिम में डालने से उसे रोका गया।—प्रेरितों १९:२६-४१.
१५. पहला कुरिन्थियों १५:३२ में शायद कौन-सी गंभीर स्थिति का वर्णन है?
१५ लेकिन, पौलुस शायद इस पूर्वोक्त घटना से कहीं ज़्यादा गंभीर स्थिति का वर्णन कर रहा होगा। कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री में, पौलुस ने पूछा: “यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ?” (१ कुरिन्थियों १५:३२) इसका शायद यह अर्थ हो कि पौलुस की जान को न सिर्फ़ पशु-समान मनुष्यों से बल्कि इफिसुस के अखाड़े में वास्तविक जंगली जानवरों से ख़तरा आया था। अपराधियों को कभी-कभी बन-पशुओं से लड़ने के लिए मजबूर किए जाने के द्वारा सज़ा दी जाती थी जबकि रक्त-पिपासु भीड़ तमाशा देखती। यदि पौलुस का अर्थ था कि उसने वास्तविक जंगली पशुओं का सामना किया था, तो आख़िरी क्षण में उसे एक क्रूर मृत्यु से चमत्कारिक रीति से छुड़ा लिया गया होगा, ठीक जैसे दानिय्येल को वास्तविक सिंहों के मुँह से बचा लिया गया था।—दानिय्येल ६:२२.
आधुनिक उदाहरण
१६. (क) अनेक यहोवा के साक्षी क्यों पौलुस द्वारा सहन किए गए क्लेशों को समझ सकते हैं? (ख) अपने विश्वास के कारण मरनेवालों के सम्बन्ध में हम किस बात के बारे में निश्चित हो सकते हैं? (ग) कौन-सा अच्छा प्रभाव हुआ है जब मसीही मृत्यु से बाल-बाल बचने का अनुभव करते हैं?
१६ वर्तमान दिनों के अनेक मसीही पौलुस द्वारा सहन किए गए क्लेशों को समझ सकते हैं। (२ कुरिन्थियों ११:२३-२७) आज भी, मसीही ‘ऐसे भारी बोझ से दबाए गए हैं, जो उनकी सामर्थ से बाहर था,’ और उनमें से अनेकों ने ऐसी स्थितियों का सामना किया है जिनमें वे ‘अपने जीवन से भी हाथ धो बैठ’ सकते थे। (२ कुरिन्थियों १:८) कुछ व्यक्ति सामूहिक हत्यारों और क्रूर सतानेवालों के हाथों मारे गए हैं। हम निश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर के सांत्वना देनेवाले सामर्थ्य ने उन्हें धीरज धरने के लिए समर्थ किया और कि अपनी आशा, चाहे वह स्वर्गीय हो या पार्थिव, की पूर्ति पर उनके हृदय और मन दृढ़तापूर्वक केन्द्रित रखते हुए उनकी मृत्यु हुई। (१ कुरिन्थियों १०:१३; फिलिप्पियों ४:१३; प्रकाशितवाक्य २:१०) अन्य मामलों में, यहोवा ने बातों को नियंत्रित किया है, और हमारे भाई मृत्यु से बच गए हैं। निःसंदेह जिनका इस प्रकार से बचाव हुआ है उनका भरोसा “परमेश्वर [पर] जो मरे हुओं को जिलाता है,” और बढ़ा है। (२ कुरिन्थियों १:९) उसके बाद, जब उन्होंने दूसरों के साथ परमेश्वर के सांत्वनादायक संदेश को बाँटा तो वे और अधिक निश्चय के साथ बात कर सकते थे।—मत्ती २४:१४.
१७-१९. कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि रुवाण्डा में हमारे भाई परमेश्वर की सांत्वना में सहभागी रहे हैं?
१७ हाल में रुवाण्डा के हमारे प्रिय भाई ऐसे ही अनुभव से गुज़रे जो पौलुस और उसके साथियों के अनुभव जैसा था। अनेकों ने अपने जीवन खो दिए, लेकिन शैतान के प्रयास उनके विश्वास को नष्ट करने में असफल रहे। इसके बजाय, इस देश में हमारे भाइयों ने अनेक व्यक्तिगत तरीक़ों से परमेश्वर की सांत्वना का अनुभव किया है। रुवाण्डा में रहनेवाले टूटसी और हूटू के जनसंहार के दौरान, ऐसे हूटू थे जिन्होंने टूटसी की रक्षा करने के लिए अपने जीवन को ख़तरे में डाला और ऐसे टूटसी थे जिन्होंने हूटू की रक्षा की। कुछ लोगों को अपने संगी विश्वासियों का बचाव करने के लिए उग्रवादियों द्वारा मार दिया गया। उदाहरण के लिए, चाँटाल नामक एक टूटसी बहन को छुपाने के बाद गाहीज़ी नामक एक हूटू साक्षी को मार दिया गया। चाँटाल के टूटसी पति, ज़ाँ को, किसी और स्थान पर, शारलाट नामक एक हूटू बहन द्वारा छुपाया गया। ४० दिन तक ज़ाँ और एक अन्य टूटसी भाई एक बड़ी चिमनी में छुपे रहे, और केवल थोड़े समय के लिए रात को बाहर निकलते थे। इस सारे समय, शारलाट ने उन्हें भोजन और सुरक्षा प्रदान की, हालाँकि वह एक हूटू सेना शिविर के पास रहती थी। इस पृष्ठ पर, आप ज़ाँ और चाँटाल का चित्र देख सकते हैं जिनका पुनर्मिलन हुआ, और जो शुक्रगुज़ार हैं कि उनके हूटू संगी उपासकों ने उनके लिए ‘अपने जीवन भी जोखिम में डाले,’ ठीक जैसे प्रिस्का और अक्विला ने प्रेरित पौलुस के लिए किया था।—रोमियों १६:३, ४, NHT.
१८ एक और हूटू साक्षी, रुआकाबूबू, की समाचार-पत्र ईन्टारेमारा ने टूटसी संगी विश्वासियों की रक्षा करने के लिए प्रशंसा की।a इसने कहा: “रुआकाबूबू भी है, यहोवा का एक साक्षी, जिसने अपने भाइयों (संगी विश्वासी इसी तरह एक दूसरे को पुकारते हैं) में से लोगों को यहाँ-वहाँ छुपाना जारी रखा। वह उनके लिए भोजन और पीने का पानी लाने में सारा दिन बिताता था हालाँकि वह दमे का मरीज़ है। लेकिन परमेश्वर ने उसे असाधारण रूप से बलवन्त किया।”
१९ साथ ही, नीकोडेम और आटानाज़ी नामक दिलचस्पी रखनेवाले एक हूटू दम्पति पर ग़ौर कीजिए। जनसंहार के फूट पड़ने से पहले, यह विवाहित दम्पति ऑल्फोन्स नामक एक टूटसी साक्षी के साथ बाइबल का अध्ययन करते रहे थे। अपने जीवन को जोखिम में डालकर, उन्होंने ऑल्फोन्स को अपने घर में छुपाया। बाद में उन्हें अहसास हुआ कि उनका घर एक सुरक्षित स्थान नहीं था क्योंकि उनके हूटू पड़ोसी उनके टूटसी मित्र के बारे में जानते थे। इसलिए, नीकोडेम और आटानाज़ी ने ऑल्फोन्स को अपने आँगन के एक गड्ढे में छुपाया। यह एक अच्छी युक्ति थी क्योंकि वे पड़ोसी ऑल्फोन्स को ढूँढने के लिए लगभग हर दिन आने लगे। इस गड्ढे में २८ दिनों तक रहते वक़्त, ऑल्फोन्स ने राहाब के वृत्तान्त जैसे बाइबल वृत्तान्तों पर मनन किया, जिसने दो इस्राएलियों को यरीहो में अपने मकान की छत पर छुपाया था। (यहोशू ६:१७) आज ऑल्फोन्स रुवाण्डा में सुसमाचार के प्रचारक के तौर पर अपनी सेवा जारी रखे हुए है, इस बात के लिए शुक्रगुज़ार कि उसके हूटू बाइबल विद्यार्थियों ने उसके लिए अपने जीवन को जोखिम में डाला। और नीकोडेम और आटानाज़ी के बारे में क्या? वे अब यहोवा के समर्पित साक्षी हैं और दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्तियों के साथ २० से अधिक बाइबल अध्ययन चलाते हैं।
२०. रुवाण्डा में हमारे भाइयों को यहोवा ने किस तरीक़े से सांत्वना दी है, लेकिन उनमें से अनेकों को अब भी कौन-सी ज़रूरत है?
२० जिस समय पर रुवाण्डा में यह जनसंहार शुरू हुआ, तब इस देश में सुसमाचार के २,५०० उद्घोषक थे। हालाँकि सैकड़ों ने अपनी जानें गवाँयी या उन्हें देश से भागने पर मजबूर किया गया, फिर भी साक्षियों की संख्या बढ़कर ३,००० से अधिक हो गयी है। यह एक सबूत है कि परमेश्वर ने सचमुच हमारे भाइयों को सांत्वना दी। यहोवा के साक्षियों के बीच अनेक अनाथों और विधवाओं के बारे में क्या? स्वाभाविक है कि ये अब भी क्लेश भुगत रहे हैं और निरन्तर सांत्वना की ज़रूरत में है। (याकूब १:२७) उनके आँसू पूरी तरह से केवल तब पोंछ दिए जाएँगे जब परमेश्वर के नए संसार में पुनरुत्थान होगा। फिर भी, उनके भाइयों की सेवाओं के कारण और क्योंकि वे ‘सब प्रकार की सांत्वना के परमेश्वर’ के उपासक हैं, वे जीवन का सामना करने में समर्थ हैं।
२१. (क) और कहाँ हमारे भाई परमेश्वर की सांत्वना की सख़्त जरूरत में रहे हैं, और एक तरीक़ा क्या है जिससे हम सब सहायता कर सकते हैं? (“युद्ध के चार सालों के दौरान सांत्वना” बक्स देखिए।) (ख) सांत्वना के लिए हमारी ज़रूरत को सम्पूर्ण रीति से कब पूरा किया जाएगा?
२१ एरिट्रिया, सिंगापोर और भूतपूर्व युगोस्लाविया जैसी अनेक अन्य जगहों में, हमारे भाई क्लेश के बावजूद वफ़ादारी से यहोवा की सेवा करना जारी रखते हैं। ऐसा हो कि हम नियमित प्रार्थनाएँ करने के द्वारा ऐसे भाइयों की सहायता करें ताकि वे सांत्वना प्राप्त कर सकें। (२ कुरिन्थियों १:११) और ऐसा हो कि हम उस समय तक वफ़ादारी से धीरज धरें जब यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर पूरे अर्थ में हमारी “आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।” तब हम पूरी तरह से उस सांत्वना का अनुभव करेंगे जो यहोवा अपने धार्मिकता के नए संसार में प्रदान करेगा।—प्रकाशितवाक्य ७:१७; २१:४; २ पतरस ३:१३.
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग, जनवरी १, १९९५, पृष्ठ २६ पर रुआकाबूबू की बेटी, डेबोरा का अनुभव बताया गया है, जिसकी प्रार्थना ने हूटू सैनिकों की एक टुकड़ी को छू लिया और उस परिवार की हत्या होने से बचाया।
क्या आप जानते हैं?
◻ क्यों यहोवा को ‘सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर’ कहा गया है?
◻ हमें क्लेशों को किस दृष्टि से देखना चाहिए?
◻ हम किसके साथ सांत्वना के सहभागी हो सकते हैं?
◻ सांत्वना के लिए हमारी ज़रूरत को सम्पूर्ण रीति से कैसे पूरा किया जाएगा?
[पेज 17 पर तसवीरें]
ज़ाँ और चाँटाल, टूटसी साक्षी होने के बावजूद, रुवाण्डा में जनसंहार के दौरान अलग-अलग स्थानों में हूटू साक्षियों द्वारा छुपाए गए थे
यहोवा के साक्षी रुवाण्डा में अपने पड़ोसियों के साथ परमेश्वर के सांत्वनादायक संदेश को बाँटना जारी रखते हैं