जब प्राकृतिक विपत्तियाँ आती हैं
हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसे शायद विपत्तियों का एक युग पुकारा जाए। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट प्रकट करती है कि १९६३-९२ की ३०-वर्ष की अवधि में, विपत्तियों से मारे गए, घायल, या बेघर लोगों की संख्या प्रति वर्ष ६ प्रतिशत की औसत से बढ़ी है। इस निराशाजनक स्थिति ने संयुक्त राष्ट्र को नब्बेआदि को “प्राकृतिक विपत्तियों की कटौती का अन्तरराष्ट्रीय दशक” मनोनित करवाया है।
निश्चय ही, प्रकृति की एक शक्ति—जैसे एक तूफ़ान, एक ज्वालामुखीय विस्फ़ोट, या एक भूकम्प—हमेशा विपत्ति नहीं लाती। प्रत्येक वर्ष ऐसी हज़ारों घटनाएँ होती हैं जिनमें मनुष्यों को कोई क्षति नहीं होती। लेकिन जब जान और माल का भारी नुक़सान शामिल होता है, तो इसे उचित रूप से विपत्ति कहा जाता है।
प्राकृतिक विपत्तियों में बढ़ोतरी अपरिहार्य मालूम पड़ती है। पुस्तक प्राकृतिक विपत्तियाँ—परमेश्वर के कृत्य या मनुष्य के कृत्य? (अंग्रेज़ी) कहती है: “लोग अपने वातावरण को कुछ विपत्तियों के प्रति अधिक प्रवृत करने के लिए बदल रहे हैं, और ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जो उन्हें ऐसी दुर्घटनाओं के प्रति अधिक असुरक्षित बनाता है।” यह पुस्तक एक परिकाल्पनिक उदाहरण प्रस्तुत करती है: “ढलानदार तंगघाटी के किनारे बने भारी मिट्टी-ईंट के घरों की एक झोपड़पट्टी में एक हल्का-सा भूकम्प मानवी मृत्यु और पीड़ाओं के अर्थ में शायद एक विपत्ति साबित हो। लेकिन क्या विपत्ति ज़्यादातर भूकम्प के झटकों के परिणामस्वरूप आती है या इस बात की सच्चाई से कि लोग ऐसी ख़तरनाक भूमि पर ऐसे ख़तरनाक घरों में रहते हैं?”
बाइबल के विद्यार्थियों के लिए, एक और भी कारण है कि क्यों प्राकृतिक विपत्तियों में बढ़ोतरी आश्चर्य की बात नहीं है। क़रीब २,००० वर्ष पहले, यीशु मसीह ने पूर्वबताया था कि “इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति” (NW) अन्य बातों के साथ-साथ, ‘जगह जगह आकाल पड़ने, और भुईंडोल होने’ के द्वारा चिन्हित होती। (मत्ती २४:३, ६-८) बाइबल ने यह भी पूर्वबताया कि “अन्तिम दिनों” के दौरान मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, मयारहित, और भले के बैरी होंगे।a (२ तीमुथियुस ३:१-५) ये लक्षण अकसर मनुष्य को वातावरण के विरुद्ध कार्य करने की वजह बनते हैं, जो मनुष्यों को प्राकृतिक शक्तियों के सामने ज़्यादा असुरक्षित बनाती हैं। मानव-निर्मित्त विपत्तियाँ उस प्रेमरहित समाज से निकली हुई डालियाँ भी हैं जिसमें अधिकांश लोगों को रहना पड़ता है।
जैसे-जैसे हमारा ग्रह आबादी से भरता जाता है, जैसे-जैसे मानव व्यवहार लोगों को बड़े जोख़िमों में डालता है, और जैसे-जैसे पृथ्वी की सम्पदाओं का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है, वैसे-वैसे विपत्तियाँ मनुष्य को पीड़ित करती रहेंगी। राहत प्रदान करना चुनौतियाँ पेश करता है, जैसा अगला लेख दिखाएगा।
[फुटनोट]
a अन्तिम दिनों के चिन्ह के बारे में अधिक जानकारी के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, पुस्तक ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है के पृष्ठ ९८-१०७ देखिए।
[पेज 3 पर चित्र-शीर्षक]
अकरा, घाना, जुलाई ४, १९९५: क़रीब ६० वर्षों में सबसे भारी वर्षा के कारण तीव्र बाढ़। कुछ २,००,००० लोगों ने सब कुछ गँवा दिया, ५,००,००० अपने घरों में प्रेवश खो बैठे, और २२ ने अपनी जानें गँवाईं।
[पेज 3 पर चित्र-शीर्षक]
सैन ऎन्जलो, टैक्सास, अमरीका, मई २८, १९९५: बवण्डर और ओलों ने ९०,००० निवासियों के इस शहर को बरबाद किया, जिसके कारण अनुमानित $१२ करोड़ (अमरीकी) का नुक़सान।
[पेज 3 पर चित्र-शीर्षक]
कोबे, जापान, जनवरी १७, १९९५: मात्र २० सैकण्ड तक रहनेवाले एक भूकम्प ने हज़ारों की जाने लीं, लाखों को घायल, और करोड़ों को बेघर किया।
[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]
Top: Information Services Department, Ghana; right: San Angelo Standard-Times
[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]
Cover: Maxie Roberts/Courtesy of THE STATE