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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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  • “ऊँचे पहाड़ पहाड़ी बकरियों के लिए हैं”
  • ‘क्या आप जानते हैं कि पहाड़ी बकरियाँ कब जन्म देती हैं?’
  • एक ‘प्रिय हरिणी वा सुन्दर पहाड़ी बकरी’
  • ‘तू पहाड़ों से अधिक उत्तम और महान है’
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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पहाड़ी चट्टानों के कलाबाज़

मृत सागर के पश्‍चिमी तट के पास एन-गेदी नामक वह प्राचीन शहर और उसके आस-पास का उजाड़ इलाक़ा था। इस इलाक़े के चट्टानी दर्रे और खड़ी-चट्टान, प्रतिज्ञात देश की पहाड़ी बकरी के लिए जो यहाँ दिखायी गयी पहाड़ी बकरी के समान है, एक उत्कृष्ट घर प्रदान करते हैं।

यह अचूक-क़दमवाला जीव पशु सृष्टि के चमत्कारों में से एक है। आइए हम बाइबल खोलें और इस मुग्ध करनेवाले जानवर पर एक क़रीबी नज़र डालें।

“ऊँचे पहाड़ पहाड़ी बकरियों के लिए हैं”

भजनहार ने यूँ गाया। (भजन १०४:१८, NW) पहाड़ी बकरियाँ ऊँचे स्थानों में जीने के लिए भली-भाँति सज्जित हैं! वे बहुत ही फुर्तीली होती हैं, और अति विश्‍वास और तेज़ी से उबड़-खाबड़ भूभाग पर चलती-फिरती हैं। यह अंशतः उनके खुर्रों की बनावट की वज़ह से है। बकरी के खुर्रों के बीच का छेद, उसके वजन से फैल सकता है, जिससे कि इस बकरी को तंग ताक़नुमा चट्टानों पर खड़े रहते या चलते-फिरते वक़्त मज़बूत पकड़ मिलती है।

पहाड़ी बकरियाँ असाधारण रूप से संतुलन भी बनाए रखती हैं। वे लंबी छलाँग लगा सकती हैं और ऐसे कगार पर पहुँच सकती हैं जहाँ उनके चारों पैरों को एकसाथ रखने के लिए मुश्‍किल से जगह होती है। जीव-विज्ञानी डगलस कैडविक ने एक बार एक दूसरे क़िस्म की पहाड़ी बकरी को अपना संतुलन प्रयोग करते हुए देखा। यह बकरी एक ऐसे कगार में फँसने से बचने की कोशिश कर रही थी जो उसके लिए इतना छोटा था कि वह घूम नहीं सकती थी। वह कहता है: “लगभग १२० मीटर नीचे के अगले कगार पर एक नज़र डालने के बाद, इस बकरी ने अपने आगे के पैरों को मज़बूती से रखा और धीरे-धीरे अपने पिछले भाग को अपने सिर के ऊपर से चट्टान की सतह पर चलाते हुए ऐसे घुमाया मानो वह घूमते-पहिए की कलाबाज़ी कर रही हो। मैं अपना श्‍वास रोके खड़ा देखता रहा और उस बकरी ने यह कृत तब तक जारी रखा जब तक कि उसके पिछले पैर नीचे न आ गए। अब वह उस दिशा की ओर अभिमुख थी जहाँ से वह आयी थी।” (नैशनल जिओग्राफ़िक, अंग्रेज़ी) इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि पहाड़ी बकरियों को “पहाड़ी चट्टानों के कलाबाज़” कहा गया है!

‘क्या आप जानते हैं कि पहाड़ी बकरियाँ कब जन्म देती हैं?’

पहाड़ी बकरियाँ बड़े ही शर्मीले प्राणी हैं। वे मनुष्यों से दूर एकांत में जीना पसंद करती हैं। वाक़ई, उन्हें उनके असल रूप में देखने के लिए उनके बहुत ही पास पहुँचने में लोगों को कठिनाई होती है। अतः, ‘हजारों पहाड़ों के जानवरों’ का स्वामी उचित ही अय्यूब नामक पुरुष से यह सवाल कर सका: “क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं?”—भजन ५०:१०; अय्यूब ३९:१.

जब उसके प्रसव का समय आता है तो परमेश्‍वर-प्रदत्त सहजवृत्ति पहाड़ी बकरी को इसका एहसास दिलाती है। वह एक सुरक्षित स्थान को ढूँढ़ निकालती है और एक या दो मेम्नों को जन्म देती है, आम तौर पर मई के अंत में या जून में। नवजात मेम्ने बस कुछ ही दिनों के अंदर अचूक रूप से क़दम रखना सीख लेते हैं।

एक ‘प्रिय हरिणी वा सुन्दर पहाड़ी बकरी’

बुद्धिमान राजा सुलैमान ने पतियों से आग्रह किया: “अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह, [जो कि एक] प्रिय हरिणी वा सुन्दर सांभरनी [“पहाड़ी बकरी,” NW]” है। (नीतिवचन ५:१८, १९) इसका मक़सद स्त्रियों को नीचा दिखाना नहीं था। प्रत्यक्षतः, सुलैमान इन जानवरों की सुंदरता, लालित्य, व अन्य उत्कृष्ट गुणों का उल्लेख कर रहा था।

पहाड़ी बकरी उन अनगिनत ‘जीवित प्राणियों’ में से है जो सृष्टिकर्ता की बुद्धि का जब़रदस्त सबूत देते हैं। (उत्पत्ति १:२४, २५) क्या हम ख़ुश नहीं हैं कि परमेश्‍वर ने हमारे चारों तरफ़ ऐसे अनेक मुग्ध करनेवाले प्राणियों को बनाया है?

[पेज 24 पर चित्र का श्रेय]

Athens University के सौजन्य से

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