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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 10/15 पेज 5-7

सच्ची ख़ुशी—इसकी कुंजी क्या है?

मनुष्यों को ख़ुश रहने के लिए बनाया गया था। हम इस बारे में निश्‍चित क्यों हो सकते हैं? मनुष्य के आरंभ पर विचार कीजिए।

यहोवा परमेश्‍वर ने पहले मानव जोड़े को ख़ुशी का मज़ा लेने की क्षमता के साथ सृजा था। आदम और हव्वा को एक परादीस में रखा गया, जो अदन नामक आनंद की वाटिका था। रचयिता ने उन्हें जीवन की सभी आवश्‍यक भौतिक वस्तुएँ प्रदान कीं। उस वाटिका में “सब भांति के वृक्ष” थे “जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे” थे। (उत्पत्ति २:९) आदम और हव्वा स्वस्थ, सुदृढ़ और सुंदर थे—वे परिपूर्ण और सचमुच ख़ुश थे।

लेकिन, उनकी ख़ुशी की कुंजी क्या थी? क्या यह उनका परादीसीय घर थी या शायद उनकी शारीरिक परिपूर्णता थी? परमेश्‍वर की ओर से इन वरदानों ने उनके जीवन के आनंद में योग दिया। लेकिन उनकी ख़ुशी ऐसी ऊपरी बातों पर निर्भर नहीं थी। अदन की वाटिका एक सुंदर उद्यान से अधिक थी। वह एक पवित्रस्थान, परमेश्‍वर की उपासना का स्थान थी। उनकी अनंत ख़ुशी की कुंजी थी रचयिता के साथ एक प्रेममय संबंध बनाने और उसे बनाए रखने की उनकी क्षमता। ख़ुश रहने के लिए, पहले उन्हें आध्यात्मिक होने की ज़रूरत थी।—मत्ती ५:३ से तुलना कीजिए।

आध्यात्मिकता ख़ुशी की ओर ले जाती है

शुरू में आदम का परमेश्‍वर के साथ एक आध्यात्मिक संबंध था। जैसे पुत्र का पिता के साथ एक प्रेममय और कोमल संबंध होता है यह वैसा ही था। (लूका ३:३८) अदन की वाटिका में, आदम और हव्वा के पास सर्वोत्तम परिस्थितियाँ थीं जिनमें वे उपासना करने की अपनी इच्छा पूरी कर सकते थे। यहोवा के प्रति अपनी ऐच्छिक, प्रेममय आज्ञाकारिता के द्वारा वे परमेश्‍वर को उससे कहीं अधिक सम्मान और महिमा लाते जितना कि पशु सृष्टि ला सकती। वे परमेश्‍वर के अद्‌भुत गुणों के लिए बुद्धिमानी से उसकी स्तुति कर सकते थे और उसकी सर्वसत्ता का समर्थन कर सकते थे। वे यहोवा की प्रेममय और कोमल परवाह भी प्राप्त करते रह सकते थे।

रचयिता के साथ यह संबंध और उसके नियमों के प्रति आज्ञाकारिता हमारे पहले माता-पिता के लिए सच्ची ख़ुशी लायी। (लूका ११:२८) आदम और हव्वा को ख़ुशी की कुंजी ढूँढ़ निकालने से पहले, सालों तक अलग-अलग तरीक़े आज़माकर देखने की ज़रूरत नहीं थी। वे अपनी सृष्टि के क्षण से ही ख़ुश थे। परमेश्‍वर के साथ मेल में होने और उसके अधिकार के प्रति अधीन होने के कारण वे ख़ुश थे।

लेकिन, जिस क्षण उन्होंने परमेश्‍वर की अवज्ञा की, वह ख़ुशी चली गयी। विद्रोह करने के द्वारा, आदम और हव्वा ने यहोवा के साथ अपना आध्यात्मिक संबंध तोड़ दिया। अब वे परमेश्‍वर के मित्र नहीं रहे। (उत्पत्ति ३:१७-१९) ऐसा प्रतीत होता है कि जिस दिन से उन्हें वाटिका में से निकाला गया, यहोवा ने उनके साथ पूरी तरह से संचार बंद कर दिया। उन्होंने अपनी परिपूर्णता, सर्वदा जीवित रहने की प्रत्याशा और अपना वाटिकारूपी घर खो दिया। (उत्पत्ति ३:२३) लेकिन उससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि परमेश्‍वर के साथ अपना संबंध खोने के कारण उन्होंने ख़ुशी की कुंजी खो दी।

चयन करने की हमारी क्षमता

मरने से पहले आदम और हव्वा ने अपनी संतान को अपने मानव गुण, अपना स्वाभाविक अंतःकरण और आध्यात्मिकता की योग्यता दी। मानव परिवार जानवरों के स्तर तक नहीं गिरा। हम रचयिता के साथ फिर से मेल मिलाप कर सकते हैं। (२ कुरिन्थियों ५:१८) बुद्धिमान सृष्टि होने के कारण, मनुष्यों के पास अभी भी यह शक्‍ति है कि वे परमेश्‍वर की आज्ञा मानने या न मानने का चयन कर सकते हैं। इसका सचित्रण अनेक सदियों बाद हुआ जब यहोवा ने नव-निर्मित इस्राएल जाति को जीवन या मरण चुनने का अधिकार दिया। अपने प्रवक्‍ता मूसा के द्वारा परमेश्‍वर ने कहा: “आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।”—व्यवस्थाविवरण ३०:१५-१८.

आज भी, मूल परादीस के खो जाने के हज़ारों साल बाद, हम मनुष्य अभी तक सही चुनाव करने में सक्षम हैं। हमारे अंदर एक जीवित अंतःकरण और परमेश्‍वर के नियमों का पालन करने की मूल योग्यता है। बाइबल “भीतरी मनुष्यत्व” के बारे में बोलती है। (रोमियों ७:२२; २ कुरिन्थियों ४:१६) यह अभिव्यक्‍ति परमेश्‍वर के व्यक्‍तित्व को प्रतिबिंबित करने की, उसकी तरह सोचने की और आध्यात्मिक होने की उस स्वाभाविक योग्यता से संबंधित है जो हम सब के पास है।

हमारे नैतिक स्वभाव और अंतःकरण के बारे में, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उन के पास न होने पर भी वे अपने लिये आप ही व्यवस्था हैं। वे व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती हैं।”—रोमियों २:१४, १५.

ईश्‍वरीय बुद्धि और आज्ञाकारिता —इसकी कुंजी

लेकिन एक व्यक्‍ति शायद पूछे, ‘यदि हम सभी के पास परमेश्‍वर की उपासना करने और इसके फलस्वरूप सच्ची ख़ुशी महसूस करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, तो दुःख इतना क्यों फैला हुआ है?’ ऐसा इसलिए है कि ख़ुश होने के लिए, हममें से हरेक को आध्यात्मिक रूप से बढ़ने की ज़रूरत है। हालाँकि मनुष्य मूलतः परमेश्‍वर के स्वरूप में सृजा गया था, वह अपने रचयिता से विमुख हो गया है। (इफिसियों ४:१७, १८) इसलिए, हममें से हरेक को परमेश्‍वर के साथ आध्यात्मिक संबंध बनाने और उसे बनाए रखने के लिए निश्‍चित क़दम उठाने की ज़रूरत है। ऐसा संबंध अपने आप नहीं बन जाता।

आध्यात्मिकता विकसित करने के लिए यीशु ने दो महत्त्वपूर्ण सिद्धांत बताये। एक है कि परमेश्‍वर का यथार्थ ज्ञान लें और दूसरा है कि आज्ञाकारिता से उसकी इच्छा के प्रति अधीनता दिखाएँ। (यूहन्‍ना १७:३) परमेश्‍वर के वचन को उद्धृत करते हुए, यीशु ने कहा: “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” (मत्ती ४:४) एक और अवसर पर, यीशु ने कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्‍ना ४:३४) हमें ख़ुशी की खोज में अलग-अलग तरीक़े आज़माकर देखने में दशकों बिताने की ज़रूरत नहीं। अनुभव ख़ुशी की कुंजी नहीं है। इसके बजाय, केवल ईश्‍वरीय बुद्धि और हमारे रचयिता के प्रति आज्ञाकारिता जीवन में सच्चे आनंद की ओर ले जा सकते हैं।—भजन १९:७, ८; सभोपदेशक १२:१३.

स्पष्ट है कि ईश्‍वरीय बुद्धि से चलने और परमेश्‍वर के सम्मुख एक अच्छी स्थिति रखने से मिली ख़ुशी हमारी पहुँच से बाहर नहीं है। (प्रेरितों १७:२६, २७) यहोवा और उसके उद्देश्‍यों का ज्ञान सभी को उपलब्ध है। अनेक भाषाओं में बाइबल की अरबों प्रतियाँ होने के कारण, यह आज तक संसार की सबसे विस्तृत रूप से वितरित पुस्तक है। बाइबल आपको परमेश्‍वर का मित्र बनने और सच्ची ख़ुशी का मज़ा लेने में मदद दे सकती है, क्योंकि शास्त्र हमें बताता है कि “ख़ुश हैं वे लोग जिनका परमेश्‍वर यहोवा है!”—भजन १४४:१५, NW.

[पेज 6 पर बक्स]

ख़ुशी में योग देनेवाले क़दम

१. आध्यात्मिकता को समझिए और विकसित कीजिए। यीशु ने कहा: “धन्य [ख़ुश] वे हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।”—लूका ११:२८.

२. यह समझिए कि परमेश्‍वर की स्वीकृति धन अथवा विलासिता से अधिक महत्त्वपूर्ण है। पौलुस ने लिखा: “सन्तोष सहित भक्‍ति बड़ी कमाई है। . . . यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।”—१ तीमुथियुस ६:६-८.

३. एक बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण विकसित करने और उसकी मानने की कोशिश कीजिए।—रोमियों २:१४, १५.

४. यहोवा परमेश्‍वर की आज्ञा मानने का दृढ़संकल्प कीजिए और इस प्रकार उसकी प्रजा बनने के योग्य ठहरिए। प्राचीन समय में दाऊद ने लिखा: “जिस राज्य का परमेश्‍वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य [ख़ुश] है!”—भजन १४४:१५.

[पेज 7 पर तसवीर]

“ख़ुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।”—मत्ती ५:३, NW

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